महात्मा गाँधी : समसामयिक प्रासंगिकता
ISBN: 978-93-93166-17-3
For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8

21वीं सदी में महात्मा गांधी की प्रासंगिकता

 सोनिया कुमारी शर्मा
सहायक आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
श्रीमती नर्बदा देवी बिहानी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
नोहर, हनुमानगढ़,  राजस्थान, भारत 

DOI:
Chapter ID: 15942
This is an open-access book section/chapter distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

सारांश
21वीं सदी में जहां राष्ट्रों के बीच बढ़ते विवादों से दुनिया हताश और बेहाल है वही सम्पूर्ण विश्व एक बाजार की दौड़ में शामिल हो चुका है। राष्ट्रों के लालच की परिणिती युद्ध की सीमा तक पहुँच चुकी है। ऐसे में सम्पूर्ण विश्व में गांधी के विचारो की प्रासंगिकता पहले से कही अधिक हो जाती है। विध्वंशकारी एटम बम के युग में विवेकशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानवता को अपनाने वाले तथा अहिंसा परमो धर्म की नींव डालने वाले महात्मा गाँधी का चिन्तन व जीवन दर्शन ही हमें शान्ति प्रदान करता है और यही मार्ग विश्व के मानव को भयमुक्त कर सकता है। गाँधीवादी दर्शन आज के संकटग्रस्त वातावरण में शांति और अहिंसा की संस्कृति के विकास में बडा सहायक सिद्ध हो सकता है। अहिंसा गाँधी के लिये  केवल आदर्श नही है बल्कि बुनियादी जीवन मूल्य हैं। अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है। गाँधी के विचारों से पता चलता है कि प्रकृति और हमारे साथी जीवों को नष्ट किये बिना सतत विकास कैसे संभव है। गाँधी की विचार धारा में हम एक पर्यावरणविद की सोच भी देख सकते है। आज जिस तरह से मानव ने अन्धाधुन्ध तरीके से प्रकृति का दोहन कर खुद के फायदे के लिये इसे भारी क्षति पहुँचाई है तो प्रकृति भी अपना रौद्र रूप हमें दिखा रही है। ऐसे मे गाँधी हमें कुदरत के प्रति करूणा के भाव सिखाते है। हिंसा और नफरत के दोर से गुजर रही दुनिया को गाँधी रास्ता दिखाते है। गाँधी हमे अपने लालच को सीमित रखते  हुये सब को साथ लेकर चलने का मार्ग दिखाते है। राजनीति के बारे मे भी गाँधी के विचार आज के समय में बेहद प्रासंगिक है। वर्तमान में राजनीति की समस्या मूल्यों के अवमूल्यन की समस्या बन गयी है जिसमें से नैतिकता को पृथक कर दिया गया है। गाँधी ने सत्य और अहिंसा पर आधारित राजनीति की नींव रखी गाँधी जी के अनुसार मेरे लिये धर्मविहीन राजनीति कोई चीज नहीं हैं। सही रूप में राजनीति वह है जो सभी के लिये मंगलकारी हो और लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त करे। गाँधीवादी चिन्तन हमें आत्मिक सुख और शांति प्रदान करता है।

कठिन शब्दसहिष्णुतापर्यावरणवादस्वार्थलोलुपमहादैत्य, अकल्पनीय, अनुप्रमाणित।   
प्रस्तावना
21 वीं सदी में महात्मा गाँधी की प्रासंगिकता लेख में गाँधी के विचारो उनके जीवन दृष्टिकोण की समकालीन परिप्रेक्ष्य में उपयोगिता व प्रासंगिकता प्रस्तुत की गयी है। प्रस्तुत लेख में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि गाँधी द्वारा दिखाये मार्ग पर चलकर हम कैसे वैश्विक चुनौतियो का शांतिपूर्ण ढंग से समाधान कर सकते है। गाँधी की प्रासंगिकता उनकी शिक्षाओं के उदय के  साथ आरम्भ हुई गाँधी से पूर्व भारत की स्थिति में सत्य अंहिसा का बोल अवश्य था मगर धारण करनाउसे आकार देना आदि सम्भव नहीं हुआ। गाँधी से पूर्व भारत में महावीर स्वामी आयेभगवान बुद्ध आये। इनका प्रभाव मानव समुदाय पर पड़ा मगर भारतीय युग के मध्यकाल में ये जब समाप्ति की ओर चल पड़ा फिर भारतवर्ष की भूमि पर उदय हुआ ऐसे एक युग पुरूष का जिसे लोग गांधी के नाम से जानने लगे और अब वो दौर शुरू हुआ जो समाप्त होने की जगह बढ़ता ही चला गया। आज हर मानव में गांधी जिन्दा है चाहे वो कैसा ही मानव क्यों ना हो। आज के धर्म मेंआर्थिक स्थितिकला मेंसाहित्य मेंराजनीति में गाँधी जिन्दा है। जो उनकी वर्तमान में प्रांसगिकता सिद्ध करता है।
लेख
गांधी के विचार जिसमे अहिंसक प्रतिरोधसबसे पहले दूसरो की सेवाश्रम की प्रतिप्ठासत्य के लिये आग्रहसंचय से पहले त्यागराजनीति का आध्यात्मिकरणसाध्य और साधनों की पवित्रता आदि विचारों की महत्ता वर्तमान सदी में और भी बढ़ गई है। विश्व की शक्तियाँ शस्त्रो की दौड़ में लगी हुई है ऐसे मे विश्व शांति की पुनर्स्थापना के लिए तथा समाज में मानवताप्रेमसहिष्णुताभाईचारे जैसे उच्च आदर्शो को पुनःप्रतिष्ठित करने के लिये आज गाँधी के विचारो की आवश्यकता व उपादेयता पहले से कहीं अधिक हो गयी है।
गाँधी की वर्तमान प्रासंगिकता को हम निम्न शीर्षकों के माध्यम से समझ सकते है:-
विज्ञान के बारे मे गाँधी की सोच
आज का युग विज्ञान  का युग है। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने जहाँ मानव की राह आसान कर दी और वह उन्नति की नई ऊचाईंयों पर पहुँच रहा है वही इसी विज्ञान ने सम्पूर्ण मानव सभ्यता के लिये विनाशकारी खतरा भी पैदा कर दिया है। आज परमाणु युग का मानव इसके खतरों से पीड़ित भी है और चितिंत भी है । आत्मरक्षा के नाम पर विकसित देशो ने ऐसे परमाणु अस्त्र तैयार कर लिये है जो सम्पूर्ण मानव जाति व सभ्यता का विनाश कर सकते है ऐसे खतरों से बचने के लिये गाँधी द्वारा दिखाये हुये अहिंसा व विश्वशांति के मार्ग को अपनाना आज की आवश्यकता है।
पर्यावरण के प्रति गाँधी की सोच
गाँधी की विचारधारा में हम एक पर्यावरणविद  की सोच भी देख सकते है। गांधी ने अपने समय में ही अधिकांश पर्यावरणीय समस्याओ का अनुमान लगा लिया था जिसका वर्तमान मे दुनिया सामना कर रही है। उन्होनें उसी समय हमें चेताया था ऐसा समय आयेगा जब अपनी जरूरतों को कई गुना बढ़ाने की अंधी दौड़ में लगे लोग अपने किए को देखेगे और कहेगें ये हमने क्या किया “गाँधी ने वर्षो पूर्व ही दुनिया को चेतावनी दी थी कि बडे़ बड़े व भारी भरकम कारखानों पर इतना आश्रित न हो कि जीवन ही मुश्किल में पड़ जाए। पर्यावरण संरक्षण और संरक्षण की अनिवार्यता के साथ आर्थिक विकास भी सुसंगत होना चाहिये। हमने अपने आप को ऐश्वर्यवान बनाने के लिये प्रकृति का अन्धाधुन्ध दोहन किया जिसका परिणाम आज विकराल होती प्रदूषण की समस्या है। जिसने सम्पूर्ण विश्व के बुद्धिजीवियो को चिन्तित कर रखा है और मानव सभ्यता विनाश की ओर बढ़ रही है गाँधी के व्यवहारिक विचारों ने लोगों की जरूरतों के साथ साथ प्रकृति के सामंजस्य को भी एक नई दिशा दी है। उनका विचार है कि प्रकृति में हर एक को संतुष्ट करने के लिये पर्याप्त ऊर्जा है लेकिन किसी के लालच को संतुष्ट करने के लिये नहीं। आधुनिक पर्यावरणवाद के लिये यह पंक्ति एक महावाक्य बन गई है। गांधी हमें कुदरत के प्रति करूणा के भाव सिखाते है और अपने लालच को कम करके ही पर्यावरण को बचाया जा सकता है।                                                
स्वच्छ राजनीति के प्रति गाँधी के विचार
राजनीति के बारे में भी गाँधी के विचार आज के समय में बेहद प्रासगिंक है। आज की राजनीति वस्तुतः कुछ सत्ता और स्वार्थलोलुप व्यक्तियो की राजनीति है जो उन्हीं के द्वारा और उन्हीं के लिये चलाई जाती है।[1] इसलिये यहाँ जनता के हितों का नहीं बल्कि अवसरवादिता व अपने स्वार्थ का ध्यान रखा जाता है वर्तमान की राजनीति मैकियावलीवादी राजनीति बन गई है जिसमें से मूल्यों व नैतिकता को पृथक कर दिया गया है इसलिये राजनीति का आध्यात्मीकरण करना आवश्यक है। गाँधी ने सत्य और अहिंसा पर आधारित राजनीति की नींव रखी। उनका यह भी मानना है कि राजनीति तमाम बुराइयों के बावजूद मनुष्य के लिये अनिवार्य है।[2] उन्होनें माना कि राजनीति ने वर्तमान समय में हमें साँप की तरह चारो ओर से लपेट रखा है जिसके चगुंल से हम कितनी भी कोशिश क्यो न करें नही निकल सकते। उन्होने कहा- मैं साँप से द्वंद युद्ध करना चाहता हूँ। अतः मै राजनीति मे धर्म को लाना चाहता हूँ।[3] गाँधी के अनुसार मेरे लिये धर्मविहीन राजनीति कोई चीज नही है नीति शून्य राजनीति सर्वथा त्याज्य है। उन्होनें यहाँ तक कह डाला कि राजनीति धर्म की अनुगानिमी है धर्म से शून्य राजनीति मृत्यु का एक जाल है क्योंकि उससे आत्मा का हनन होता है।‘’[4] गांधी ने सत्य और अहिंसा पर आधारित राजनीति की नींव रखी। उनके अनुसार घृणा और हिंसा से हिंसा का विकास होगा आज राजनीति मे मानव को गौण कर दिया गया है और राज्य की शक्ति काफी बढ़ गयी है। प्रजातांत्रिक समाजवादी राज्य भी आज महादैत्य की भाँति दिखते है।[5] मानव की स्वतत्रंता और प्रतिष्ठा गिर गयी है। गांधी राज्य की बढ़ती हुई शक्ति को नियंत्रित करना चाहते थे इसलिये उन्होने राजनीति में धर्म व नैतिकता का समावेश किया जिसमे उनका अटूट विश्वास था।
अहिंसा और सत्याग्रह के प्रति गाँधी के विचार
गांधी ने हमारे सामने युद्ध के नैतिक विकल्प के रूप मे सत्याग्रह का मार्ग रखा। उन्होने आम जन को यह सिखाया कि सत्याग्रह का प्रयोग कर किस तरह बड़ी से बड़ी समस्याओं का शांतिपूर्ण ढंग से समाधान किया जा सकता है। उन्होने अंग्रेजो के प्रति अहिंसा का व्यवहार करते हुये उनका विरोध किया। यह एक ऐसा प्रयोग था जिनको देख विश्व आश्चर्य चकित था। चंपारणबारदोलीसत्याग्रहसविनय अवज्ञा आंदोलन,दांडी सत्याग्रह, भारत छोडो आन्दोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण है जिसमे गाँधी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप मे प्रयोग किया। वे सभी प्रकार की हिंसा का विरोध करते हुये सत्य के लिये अहिंसक संघर्ष को एकमात्र मार्ग मानते है। जिनसे युद्ध रोका जा सके। उन्होंने अहिंसा को संघर्ष के सक्रिय साधन के रूप में प्रयुक्त कर दिखाया। अहिंसा से उनका अर्थ है अत्याचारी की इच्छा के विरूद्ध पूरी आत्मा को लगाना बिना किसी हथियार के। उनके लिये अहिंसा केवल आदर्श नही है बल्कि बुनियादी जीवन मुल्य है। संसार का कोई भी ऐसा धर्म नही है जो हमे हिंसा का उपदेश देता है और मार्ग बताता है। अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है। युद्धआतंकवादमानवाधिकारसतत् विकासजलवायु परिवर्तनसामाजिक राजनीतिक भ्रष्टाचार आदि समकालीन चुनौतियो को गांधीवादी तरीके से हल किया जा सकता है।
साधन व साध्य के प्रति गाँधी के विचार
गांधी साधन व साध्य दोंनो की शुद्धता पर बल देते थे। उनके उनुसार साधन व साध्य दोनो के बीच बीज व पेड़ के जैसा सम्बन्ध होता है। जिस प्रकार दूषित बीज होने की दशा में एक स्वस्थ पेड़ की उम्मीद करना अकल्पनीय है उसी प्रकार हमारे अनुचित साधनो के प्रयोग से उचित लक्ष्य को प्राप्त करना भी व्यर्थ है।  सामान्य रूप से साध्य उसको कहते हैं जिनको सिद्ध किया जाये ओर साधन वह होता है जिसके द्वारा साध्य को सिद्ध या प्राप्त किया जाये।[6]
आज के उपभोक्तावादी युग में लोग अपने उद्देश्यों को अधिक महत्व देते है और इसकी प्राप्ति के लिये उचित अनुचित साधनों को अपनाने के लिये तैयार रहते है। परन्तु गांधी पवित्र उददेश्यों की प्राप्ति के लिये साधनों की पवित्रता में विश्वास करते है। गांधी कहते है "हमारे साधन  जितने ही शुद्ध होगे ठीक उसी अनुपात में साध्य और ध्येय की ओर हमारी प्रगति होगी" उनके लिये अंहिसा साधन था सत्य साध्य। इस प्रकार विवेकशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानवता को अपनाने वाले महात्मा गाँधी का चिन्तन और दर्शन शांन्तिबन्धुत्वसहिष्णुताविकास और एकता जैसे विचारो से अनुप्रमाणित था। गाँधीवादी चिन्तन हमें आत्मिक सुख और शांति प्रदान करता है। गांधी द्वारा दिखाये रास्ते पर चलकर कई अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को शीघ्र व अच्छे तरीके से सुलझाया जा सकता है। और विभिन्न देशों में होने वाले संघर्षों की उग्रता को काफी हद तक कम किया जा सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि आज के वैज्ञानिक व भौतिकतावादी युग में गांधीवाद की जैसी आवश्यकता है वैसी पहले कभी नही थी।
निष्कर्ष
प्रस्तुत लेख “21वीं सदी में महात्मा गाँधी की प्रासगिंकता के अध्ययन से विदित होता है कि आज गांधी जी के विचारो की आवश्यकता व उपादेयता पहले से कहीं अधिक है।
वर्तमान अणुयुग में  शांति की आकांक्षा मानव सभ्यता की सबसे पवित्र धरोहर है क्योकि आज के मानव ने विज्ञान के माध्यम से मानव के प्रति हमारे सामने शांति का एकमात्र विकल्प सर्वनाश ही रख छोड़ा है। ऐसे खतरो से बचने के लिये गांधी द्वारा दिखाये हुये अहिसां व विश्वशाति के मार्ग को अपनाना आज की आवश्यकता है।
गाँधी जी राज्य की बढती हुई शक्ति को भी नियंत्रित करना चाहते थे इसलिये उन्होने राजनीति में धर्म व नैतिकता का समावेश किया जिसमे उनका अटूट विश्वास था। उनके लिये धर्म मानवीय आचरण करने की एक विधि एक पथ प्रदर्शक था जो अंधविश्वास व आडम्बरो से परे था।
गाँधी जी ने सत्य और अंहिसा पर आधारित राजनीति की नींव रखी जो निः स्र्वाथ लोकसेवा तथा नैतिकता का आदर्श लेकर चलती है। आज के युग में जहाँ अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिये अनुचित साधनों के प्रयोग के लिये भी हम तैयार रहते हैवहाँ गांधी साध्य और साधन दोनो की शुद्धता पर बल देते हैं वे सभी प्रकार की हिंसा का विरोध करते है और युद्ध के नैतिक विकल्प के रूप में सत्याग्रह का मार्ग दिखाते है। अतः 21वीं सदी के लोगो के पास अभी भी गांधी के विचारउनका दृष्टिकोणअनकी जीवन पद्धति आशा की एक किरण के रूप में है जो हमारे जीवन में एक नई उम्मीद पैदा करती है।
सन्दर्भ
1. गाँधी दर्शन मीमांसा - डां रामजी सिंहपृ0 सं0-163
2. गाँधी दर्शन - डां प्रभात कुमार भट्टाचार्यपृ0 सं0-27
3. वही पृ0 सं0-27
4. महात्मा गाँधी - हिज आँवन स्टोरी - सी.एफ. एंड्रयुज
5. ए प्ली फाँर रिकंशट्रकशन ओफ इंडियन पोलिटी - जय प्रकाश नारायणपृ0 सं0-38
6. गाँधी दर्शन मीमांसा - डां रामजीसिंहपृ0 सं0-104
7. वही पृ0 सं0-111