Research Substance
ISBN: 978-93-93166-22-7
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आधुनिकता बोध की अवधारणा, स्वरुप एवं विकास

 हनी कुमारी वर्मा
शोध छात्रा
हिंदी विभाग
आचार्य नरेंद्र देव नगर निगम महिला महाविद्यालय
कानपुर  उत्तर प्रदेश भारत

DOI:
Chapter ID: 15791
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आधुनिकता बोध की अवधारणा, स्वरूप एवं विकास
       प्राचीन और अर्वाचीन काल के स्वच्छ निर्मल प्रवाह से समुत्पन्न आधुनिकता का प्रसार प्रत्येक काल के काल स्वरूप में वैविध्यतावच्छिन्न स्वरूप में परिलक्षित हो रहा है। भारत की भूमि दार्शनिक और धामिर्क आस्था से आविष्ट रही है। यहां काल सापेक्ष ही रहा है निरपेक्ष में अन्वय-व्यतिरेक से गम्यमान रहा भारत का मध्यकाल ब्रह्म के प्रति आस्था एवं विश्वास के साथ इहलोक और परलोक प्राप्ति कम र्वाद पर बल देती है। आस्था श्रद्धा का विषय है कि बुद्धि का। श्रद्धा के द्वारा ज्ञान के यथार्थ स्वरूप का दर्शन हो सकता है लेकिन बुद्धि संशयशाली होती है। बुद्धि माता-पिता में सन्देह उत्पन्न कर देती है। गीता में कहा गया है कि -

श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्1
       आधुनिकता आक्षेप व्यतिरके है वह किसी स्थल पर प्रश्न नहीं प्रेषित करती है। आधुनिकता प्रतिभा भावाच्छिन्न है क्योंकि प्रतिभा नवोन्मेशषालिनी होती है और प्रतिभा के द्वारा ही नूतनविधा का निर्माण होत है। वही नूतनाभिधान तन्त्र मालावत् गुम्फित होकर एक नये युग या कालक्रम की सृश्टि करती है। अतः यह स्पष्ट है कि जिस प्रकार प्रतिभा नवोन्मेषशाली होती है वैसे ही आधुनिकता भी साहित्य की दृष्टि से नवोन्मेषशालिनी होती है। स्पष्ट है कि आधुनिकता सर्वव्यापी है। आधुनिकता प्रत्येक युग में जन्म लेती है और काल के कालान्तरित होने पर समय के परार्द्ध में एक युग का निर्माण करके पुनः नूतन तंत्र को ग्रहण कर लेती है। आधुनिकता समय के सापेक्ष ही गतिमान रहा है। साधारणतया जैसे नदी अपने उद्गम स्थल से निकलकर मार्गागे्रसित हर रहती है वापस नहीं होती है ठीक वैसे ही आधुनिकता है जो सर्वदा अग्रसर ही रहता है। यह एक सार्वभौमिक चरित्र है जिसे समाज का प्रत्येक वग र् शिरोधार्य करता है। आधुनिकता समुद्र की भांति दु्रतगति से गतिमान् रहता है। इसमें द्रुत के साथ स्थायित्व अधिक रहता है इसलिए यह एक सभ्यता के रूप में परिगणित होता है।
आधुनिकता व्युत्पत्ति एवं अर्थ
       आधुनिक शब्द संस्कृत के अधुना शब्द में ठञ्´प्रत्यय के आने से बना है। अधुना भवः ´ साम्प्रतभावे, अर्वाचीने, अप्राचीने स्त्रियां ङीप्। अधुना अर्थात् वर्तमान कालिक बोध। आधुनिक शब्द मेंताप्रत्यय जोडने से आधुनिकता शब्द निष्पन्न हुआ। आधुनिक साम्प्रतिक अर्थ का बोधक है लेकिनताप्रत्यय के योग से बना आधुनिकता भूतकालिक बोध करा रहा है। यहां एक और स्पष्टार्थ हो सकता है कि संस्कृत का अधुना शब्द आधुनिक के मलू अभिप्राय से च्युत होकर कालगत पक्ष से है लेकिन शब्दअधुना + ठञ्द्वारा ही आधुनिक शब्द निष्पन्न होता है पाश्चात्य पक्ष में आधुनिक शब्द अंग्रेजी के मॉर्डन शब्द से निष्पन्न हुआ है। अंग्रेजी का मॉर्डन शब्द मूल लैटिन शब्द मोडो से बना है शब्दकोष में इस शब्द का अर्थ है - Modo – lotely ,just now मॉर्डन शब्द का अर्थ - - Being or existing at this time, present.
आधुनिकता की परिभाषा  
       आधुनिकता का स्वरूप का काल सापेक्ष और विचार सापेक्ष दोनों है। आधुनिकता काल के सापेक्ष ही विचार उत्पन्न होता है क्योंकि विचार काल व्यवहार से युक्त होता है। किसी भी साहित्यकार का विचार साम्प्रतिक काल के अनुसार ही गतिमान होता है। विचार -
विषेशेण चरणं पदार्थादिनिर्णयज्ञानमिति।
विचार ही आधुनिकता को पटल पर आसीन करता है। जब तक विचार व्यापक नहीं होगा आधुनिकता नहीं होगी डॉ. नगेन्द्र के अनुसार - आधुनिकता मध्ययुगीन जीवन दर्शन से भिन्न एक नया जीवन दर्शन और दृष्टिकोण है। दूधनाथसिंह के अनुसार आधुनिकता युग सन्दर्भ की भावना नहीं है। यह कथन स्पष्ट करता है कि आधुनिक होने का आशय आज का, इस दशक का, इस शताब्दी का होना नही असल में आधुनिक होना शाश्वत होना है। रामधारीसिंह दिनकर के अनुसार आधुनिकता एक प्रक्रिया का नाम है। यह प्रक्रिया अन्धविश्वास से बाहर निकलने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया नैतिकता में उदारता बरतने की प्रक्रिया है। यह बुद्धिवादी बनने की प्रक्रिया आधुनिक वह है। जो मनुष्य की उंचाई, उसकी जाति या गोत्र से नहीं बल्कि उसके कम र् से बनता है। आधुनिक वह है जो मनुष्य, मनुष्य को समान समझता है। 3 केदारनाथ अग्रवाल - आधुनिकता अस्वीकृति और स्वीकृति, समस्या और समाधान दोनों है। 4 अतः साहित्य के सन्दर्भ में आधुनिकता को परिभाषित करना अतीव क्लिष्ट है। जो साहित्य के सम्पूर्ण यथार्थ को अभिव्यक्त करता है वह आधुनिक है। आधुनिकता साम्प्रतिक काल के गतिमान् सन्दर्भ को व्यवसायिक करता है। आधुनिकता वैचारिक दृष्टि है। धीरेन्द्र वर्मा ने कहा है - सामन्य प्रयोग में आधुनिक शब्द को बहुत दूर तक समय सापेक्ष मान लिया जाता है। जैसे - इतिहास का विभाजन प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक कालों में करते समय परन्तु यह आधुनिक शब्द सुविधा निष्पन्न और लचीला अर्थ है जिसके अनुसार अगला काल अपने पूर्ववर्ती की अपेक्षा आधुनिक या अधिक आधुनिक होता है पर अपने विशिष्ट रूप में आधुनिक अर्थ इससे भिन्न है। आधुनिकता की पहली और अनिवार्य सत्य स्वचेतना है। 5 
आधुनिकता बोध की अवधारणा
       अवधारणा से हमारा आशय है कि मन में किसी विषय, कल्पना और अपरिकल्पित विचार का समुदय होना। आधुनिकता एक जीवन की लोकदृष्टि है जिसमें सर्जनात्मकता का प्रतिक्षण जन्म होता रहता है। यह एक कौमुदी उत्सव के सदृश है। समाज में आधुनिकता स्वचेतन से प्रस्फुटित मानसिक आलोक है। प्रायशः लौकिक परिवेश में व्याप्त कुप्रथाओं और मानवीय मालिन्यताओं पर आधुनिकता की सूक्ष्मदृष्टि स्थित होती जो उन समस्त दृष्कृत्यों को अनाश्रित करने के लिए उन पर कठोर आघात करती है जिसका माध्यम साहित्य होता है। साहित्य एक दर्पण है जिसमें प्रत्येक स्वरूप का दर्शन आत्मा में किया जा सकता है। योगसूत्र में एक सूत्र है -
तदाद्रष्टुः स्वरूपेवस्थानम्। 6
       अर्थात् अपने स्वरूप में अवस्थित हो जाना। साहित्य में कभी अपने स्वरूप में अवस्थित होकर स्वयुगीन आख्यानों का वर्णन करता है। ठीक उसी प्रकार पाठक को स्वात्मा में अवस्थित होकर तद् युगीन परिवेश का अनुभव करना चाहिए। आधुनिकता मेंस्वऔरचित्तवृत्तिसे निर्गत वृत्ति ही काव्यिक सृष्टि का अनुभव करती है। 
       सामाजिक तथ्यों और तत्कालीन व्यवस्थाओं के कर्त्तव्य बोध की क्षमता से वहन करना ही आधुनिकता है। चेतना के कारण ही मनुष्य बोधिकता की बुद्धि से आधुनिक मनुष्य पृथक् हो गया है। वह स्वास्तित्व के विषय में चिन्तनशील रहता है। वह आधुनिक युग के परिवर्तित दृष्टिकोण का प्रत्यक्ष नेतृत्व करता है। अतः सामान्यतः कहा जा सकता है कि चेतना ही मनुष्य को दृष्टिकोण के परिवर्तित स्वरूप के प्रतिनिधित्व के लिए अभिप्रेरित करती है। साहित्यकार तद् युगीन परिस्थितियों को साहित्य के माध्यम में उत्कीर्ण करने का प्रयास करता हे। आधुनिकता को मूल्य नहीं वरन् प्रक्रिया माना जाना चाहिए। आधुनिकता सतत परिवर्तनशील है जो कालक्रम का अधिग्रहण करती रहती है। 
दिनकर कहते हैं कि - जब मनुष्य समय के साथ कदम मिलाता है तभी आधुनिकता को ग्रहण करता है। जिसे हम आधुनिकता कहते हैं वह एक प्रक्रिया का नाम है। यह प्रक्रिया अन्धविश्वास से बाहर निकलने की प्रक्रिया है। यह  प्रक्रिया नैतिकता में उदारता बरतने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया बुद्धिवादी बनने की प्रक्रिया है। यह प्रकिया धर्म के सही रूप पर पहुंचने की प्रक्रिया है।7
डॉ. रमेशकुन्तल मेघ आधुनिकता को लेखक का अपना स्तर और उसके कथ्य के स्तर पर जोडने को कहते हैं। आधुनिक बोध मेधा और प्रज्ञा से नियत है यह चेतना की अनुभूति है। यह काव्य में स्वातन्त्र मूलकता और आनन्दमूलकता को आस्वादित कराने वाली होती है। आधुनिकता प्रखर आलोचना को अग्रसर करती है कि भावुकता को। भावुकता समाज के यथार्थ तत्वों से व्यपगत कर देती है। अतः भावुकता समाज का दोश माना जाता है। इसमें उदात्तता का महत्व अधिक है। आधुनिकता एक जटिल प्रक्रिया है। निष्कर्षतः आधुनिकता एक प्रक्रिया है जो अतीत की विरोधी नहीं वरन् सतत गम्यमान विकसित होने वाली जीवन के प्रति नूतन दृष्टिकोण को लब्ध कराने वाली चेतना है। आधुनिकता एक प्रगतिशील बल की ओर निर्दिष्ट है। जो मानव जाति को अज्ञानता और तर्कहीनता से मुक्त कराने का वादा करती है। 8 एक साधारण मनुष्य और एक बुद्धिजीवी आधुनिक होने का अर्थ एक ही नहीं समझते। आधुनिकता पर देश काल और परिस्थिति का र्प्याप्त प्रभाव पडता है। आधुनिकता का आरम्भ कहां और कैसे हुआ ? इसका कोई पुश्ट प्रमाण नहीं है। कतिपय आधुनिक विद्वान् यूरोप को आधुनिकता की देन मानते हैं किन्तु अमृत रॉय कहते हैं कि आधुनिकता के लिए यूरोप और अमेरिका कर तरफ टकटकी लगाए रहना बेतुकी बात है। आधुनिकता किसी देश या महादेश की बपौती नहीं है।9 देश, काल के परिवर्तित सन्दर्भ में आधुनिकता की प्रक्रिया और मूल प्रकृति को ज्ञात करने के लिए आधुनिकता जैविकी को समझने की जरूरत है और उसकी जैविकी है आधुनिकीकरण। आधुनिकीकरण और आधुनिकता पर्यायवाची होते हुए भी आधुनिकीकरण के अभाव में आधुनिकता समभव नहीं है। 


आधुनिकता बोध के तत्व

       आधुनिकता एक मानववृति है जो परम्परागत प्राचीन मूल्यों को नूतनपरिकल्पना की तलु ना में गौण सिद्ध करती है और प्रथित तथा अभिनव तथा तत्कालीन नूतन अन्वेषित और नूतन प्रकल्पों में समन्वय स्थापित करती है। समन्वय तभी स्थापित होता है जब वह अन्वय और अविनाभाव सम्बन्ध से सम्पृक्त हो। इसके दो भाव हो सकते हैं - 1.रूढिवादी, 2. नतू नव्यवहारिकी - इसका रूढिवादी परिणाम वहां दृष्टिगोचर होता है जहां नूतन की तुलना में परम्परागत की अपेक्षा उसे अप्रचलित होने या द्वन्द्व के कारण विनष्ट होने से रक्षा करती है। इस मनोवृति का नूतन व्यवहारिक परिणाम आवेशात्मक होता है जो आक्षेप को माध्यम बनाता है। यह परम्परागत प्राचीन अवधारणा और विचारों को शून्य तथा अयोग्य मिथ्या और व्यर्थ रूप में प्रमाणित करता है। आधुनिकता का रूढिवादी परिदृष्य धर्म में अत्यधिक देखा जा सकता है। आधुनिकता का नूतन सृजन कला और काव्य और तकनीकी में लब्ध हो सकता हे। इसका स्वरूप निर्माण मन्थर गति से होता है। जो व्यापकता को ग्रहण कर एक स्वरूप प्रदान करता है। इसमें राष्ट्रीयता सामाजिक विद्वेषता को उदात्त हृदय से विवेचन सम्प्राप्त होता है। मानव मस्तिष्क जब आधुनिक समकालीन प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख होता है तब इस व्यापक तन्त्र में क्रान्ति जाती है। जिसके कारण समाज के प्रत्येक क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पडता है। इसमें राजनीति, धर्म, संस्कृति, नैतिकता और प्राचीन परम्परा आदि विधायी तत्वों पर प्रभाव बढता है। 
परम्परा और आधुनिकता 
       परम्परा और आधुनिकता परस्पर व्युत्क्रम प्रदर्शित होते हैं, पर ये भिन्न होते हुए भी पृथक नहीं हैं। वे एक-दूसरे के समपूरक हैं जो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। परम्परा किसी भी समाज को, देश को समृद्ध और सम्पन्न बनाती है। वही आधुनिकता उसे गति प्रदान करता है। आधुनिकता पतंग है और परम्परा उसकी डोर जो मनुष्य द्वारा समवायित किया जाता है। अतः परम्परा और आधुनिकता में समानधर्मिता इसीलिये है कि वे प्राचीन गौरव को नूतन प्रकल्प के रूप में स्थापित करते हैं और समाज को समृद्धि की ओर अग्रसर करता है। परम्परा अर्थात् परमातिशयेनपृणाति पिपूर्ति वा पृप्ल वा परम्परा का निर्माण मनुष्य के समाज से होती है। वह एक श्रृंखला है जो कालखण्ड को जोडती है। नये परिवेष के आगमन पर परम्पराएं नये कलेवर धारण करती रहती है। परम्पराएं रूढ स्परूप को धारण करने लगती है तब आधुनिकता ही उसे नये आवरण में मानव के समक्ष प्रस्तुत करती है। मनुष्य के अस्तित्व की व्याप्ति जहां तक है वहां तक उसे आधुनिकता प्रभावित करने का कार्य करती है। आधुनिकता में विचारों की सार्वभौमिकता है। यह जातीयता, राष्ट्रीयता, वग र्विचारधारा और धर्म से परे है। परम्परा प्राचीन संस्कारावच्छिन्न प्रणाली है लेकिन आधुनिकता वैज्ञानिकता को प्रमाणिक मानती है।
आधुनिकता की व्याप्ति
       आधुनिकता एक विविधता सम्पन्न वैशिष्ट्य गुणावच्छेदक व्यापक दृष्टि का विशिष्ट दृष्टिकोण है। जो मनुष्य की वैचारिक पृष्ठ भूमि से भिन्न एक नवीन दृष्टि का वाचक है।
आधुनिकता और भारत का धर्म
     डॉ. नागेन्द्र के अनुसार आधुनिकता की धारणा का मूलाधार ऐतिहासिक चेतना है। गत 200 वर्षों से भारत आधुनिकता की ओर बढते हुए समस्त अपनी धामि र्क-संस्कृति को विस्मृत करते हुए अग्रसर हो रहा है। नैतिक सौन्दर्य बोध और आध्यात्म के सदृश आधुनिकता को ही शाश्वत मूल्य नही है। वह केवल समय सापेक्ष धर्म है। नये युग समय-समय पर आते ही रहते हैं। यथा आजकल का वत र्मान समाज साम्प्रतिक युग पर गर्वित है ठीक उसी प्रकार गत युग का समाज भी उस काल में गर्वित था। संसार का कोई भी समाज ऐसा नहींबना जो स्वाभाविक रूप में प्रत्येक मनुष्य के लिए लाभप्रद हो और कोई भी ऐसा आदर्श समाज नहीं हुआ जिसके आलोचक हुए हों। वैदिक युग भारत का प्रायः स्वाभाविक काल था। भारत आज भी अपने अस्तित्व को वैदिक युग में ही अवलोकित करता है। वैदिक आय र् काल स्वर्ण काल था। बौद्धों के प्रादुर्भाव से वैदिक धर्म का कुछ ह्रास होने लगा। बोध युग अनेक दृष्टियों से साम्प्रतिक आन्दोलन के सदृश था। ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के विरुद्ध बुद्ध ने विद्रोह किया। जातिप्रथा का प्रबल विद्रोह बुद्ध के द्वारा किया गया। वैदिक धर्म में जातिप्रथा थी ही नहीं। कृष्ण ने कहा है कि -

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकम र्विभागशः।10
       आधुनिक काल में भारत और भारतेतर धम र् की स्थिति निम्न स्तर पर सम्प्रतिष्ठित हो गयी है। भारत जाति और राजनीति के परितः भ्रमण कर रहा है। सम्पूर्ण विश्व में आधुनिकता का जो स्वरूप दृष्ट है वह भौतिकवाद का दर्पण है कि संस्कारवाद का। आधुनिकता ने सर्वप्रथम धम र् से मुक्ति का मार्गान्वेषण किया और धर्म के समस्त तन्त्रों को विदीर्ण कर दिया क्योंकि आधुनिकता धर्म के प्रभाव काे क्षीण करके धम र् निरपेक्षता की मांग करती है जो भारत में गणतन्त्र के रूप में व्याप्त है।
आधुनिकता और सामयिकता - समकालीनता
       आधुनिकता के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए आधुनिक-आधुनिकीकरण तथा आधुनिक भावबोध जैसे शब्दों का विश्लेषण अत्यावश्यक है। ऐतिहासिक परम्परा समसामयिकता और विज्ञान तथा धम र् को जोडकर सामाजिक सम्बन्धों और मूल्यों को स्थित किये बिना आधुनिकता की अवधारणा को स्पष्ट करना कठिन है। आधुनिकता नवीनता का एक स्वरूप है जो प्रत्येक सन्दर्भों को आधुनिक दृष्टि से व्याख्यायित करता है। आधुनिकता एक प्रश्नानुकूल मानसिकता है। जो हर बन्धी बन्धाई व्यवस्था मर्यादा या धारणा को तोडती है। इसे चरम या निरपेक्ष नहीं माना जा सकता। यह मुख्य रूप से एक ऐसी मानसिकता है जो किसी एक मूल्य  धारणा या सिद्धान्त को स्वीकारने से उसे जाचनें-पडतालने पर बल देती है।11 आधुनिकता वादी व्यवस्था नगरीय जीवन से समृद्ध है। आधुनिकता की अभिव्यक्ति आवेग और चिन्तन के माध्यम से हुई है जो निरर्थक जीवन से योग कर आधुनिकता से जुड गया। आधुनिक परिवेष में नगरीय व्यक्ति का जीवन निरर्थक रूप से स्वाथ र्परता में व्यतीत होत रहा इसलिये उस शून्य जीवन को आधुनिक बोध से जोडा गया।
समकालीनता
       समकालीन शब्द एक कालवाचक संज्ञा है। समकालीन का शाब्दिक अर्थ है। एक ही काल में स्थिर रहने वाला या एक युग में रहने वाला। समकालीन शब्द सम् उपसग र् तथा कालीन विषेशण के योग से निष्पन्न हुआ है। सम् उपसग र् समता या समतार्थ में होता है। मानक हिन्दी कोष के अनुसार जो उसी काल में था समय में जीवित अथवा वर्तमान रहा हो जिसमें कुछ और विशिष्ट मनुष्य भी रहे हों। 12 एक ही काल या समय में रहने वाले जैसे महाराणाप्रताप के समकालीन मानसिंह था। शब्द सागर के अनुसारसमकालीनशब्द का अर्थ है, जो एक ही समय में हुए हों।13 हिन्दी में समकालीन और समसामयिक शब्द अपने मूल अर्थ में अंग्रेजी के कन्टेम्पोरेरी तथा को-इबल शब्द पर्याय के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। श्री कल्याण चनू के अनुसार समसामयिक और समकालीनता में अन्तर है। एक समय में रहना और कालखण्ड को जीना दोनों अलग-अलग स्थितियां हैं। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि आज भौतिक रूप में जो भी जहां उपस्थित है वह समकालीन भी हो, जबकि समसामयिकता केवल आस-पास के परिवेश में उपस्थिति मात्र. हो।14  काल प्रवाह में अपने समय को पहचानता है और समय के प्रति चित्तोदात रहता है। समकालीनता युग सन्दर्भों में प्रासंगिक होती है। तत्सम्बन्धी आधुनिक जीवन मूल्यों के साथ भी साहचर्य भाव से युगमित होती है। समकालीनता को जानने के लिए आधुनिक और अत्याधुनिक शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। आधुनिक शब्द व्यापक अर्थ का बोध कराता है तथा अत्याधुनिक एक निश्चित कालखण्ड का। लक्ष्मीकान्त वर्मा का वक्तव्य है कि आधुनिकता युग का विशेष गुण है। समसामयिक स्थिति विशेष का आयाम है। विचार में आधुनिक होते हुए भी हम सामसामयिक नहीं हो सकते क्यों कि सामसामयिकता का परिवेश इतना विस्तृत नहीं होता। डॉ. नरेंद्र मोहन का मत है कि आधुनिकता समकालीनता का पर्याय नही है। अतः यह स्पष्ट है कि आधुनिकता एक युगीन भाव है जबकि समसामयिकता को वर्तमान काल से समुत्पन्न स्थिति विषेश माना जा सकता है।
आधुनिकता के घटक
       आधुनिकता एक नूतन दृष्टि है क्योंकि वह व्यापक संदर्भो से युक्त है। यह एक प्राचीन विचार को नवीनीकरण करने की प्रक्रिया है।
इतिहास
       आधुनिकता एक ऐतिहासिक बोध की उत्तम क्रिया है। आधुनिकता का मूल्य इतिहास के आधार पर ही आंकलित किया जा सकता है क्यों कि प्राचीन युग और अर्वाचीन युग के ऐतिहासिक बोध को मेधा के स्तर पर भुक्त कर आधुनिकता को प्राप्त किया जा सकता है। फ्रेजर ने कहा है कि - आधुनिकता को अपनी सुरक्षा के लिए अतीत से सम्बन्ध रखना चाहिए। अतीत या पुरातन इतिहास जिस दिशा की ओर संकेत करता है उससे आगे बढने के लिए युगबोध की जानकारी आवश्यक है। सामान्यतया आधुनिकता एक प्रश्नात्मक प्रक्रिया है। आधारभूत परिकल्पना है जो प्रश्नाधार पर नूतनाभिधान प्रस्तुत करता है। इतिहास बोध के द्वारा युगानुसार व्याख्या उसकी समकालीनता को स्पष्ट करता है। अतः आधुनिकता एक सतत प्रवाह की प्रक्रिया है। जो किसी तत्कालीन परिस्थति का बोध उत्तरकाल में कराने में समर्थ होती है। 
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1.       गीता
2.       वाचस्पत्यम्
3.       पौराणिककाव्य - पृ.-17
4.       आलोचक की आस्था - डॉ. नगेन्द्र, पृ.सं. - जुलाई - 1966, पृ.-15
5.       आधुनिकता एक पहचान - डॉ. चन्द्र आनुरावत, 1984, पृ.-51
6.       आधुनिकता बोध एवं मोहन राकेष का कथा साहित्य-पृ.-17
7.       हिन्दी शब्द कोष-भाग-1, पृ.-110
8.       माकर्ण्डेय पुराण - 96/28
9.       माकर्ण्डेय पुराण-1/1
10.    माकर्ण्डेय पुराण-81/67
11.    रामधारी सिंह दिनकर - आधुनिक बोध - पृ. 37
12.    रीधोनाद - पृ.-5
13.    अनुराग सह चिंतन - पृ.-36
14.    आधुनिक बोध - रामधारी सिंह दिनकर, पृ.-71
15.    गीता
16.    डॉ. नगेन्द्र
17.    मानक हिन्दी कोया भाग- 5 रामचन्द्र वर्मा, पृ.- 278
18.    नालन्दा विषसाल सागर- सम्पादक - नवल जी-पृ.-404
19.    समकालीन कवि और काव्य - कल्याणचन्द्र - पृ.-90 एक पक्षीय परिभाषाओं और विश्लेषणों के चक्राबन्धनसे बहिः इसके प्रति एक मुक्त मानसिक दृष्टि का अनुवर्तन आवश्यक है।