हिंदी साहित्य : एक अनुदित संकलन
ISBN: 978-93-93166-31-9
For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8

डॉ॰ रामकुमार वर्मा के नाटकों का शिल्प विधान

 प्रवेशिका पटेल
शोधार्थी
हिंदी विभाग
  भारत
डॉ. ऋतम्भरा
(प्राचार्या) शोध निर्देशिका
हिंदी विभाग
आचार्य नरेन्द्र देव नगर निगम महिला महाविद्यालय
कानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

DOI:
Chapter ID: 15788
This is an open-access book section/chapter distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

डॉ. रामकुमार वर्मा आधुनिक काल के एक सशक्त नाटककार है। आधुनिक हिन्दी नाटक तथा रंगमंच को उन्होने नवीन एवं मौलिक आयाम दिया है। साथ ही हिन्दी नाटक को एक उच्च शिखर पर पहुँचाया है। जिस प्रकार डॉ. रामकुमार वर्मा ने ऐहितासिक सांस्कृतिक राष्ट्रीय, पौराणिक आदि किसी भी विषय को लेकर उसे नितान्त यथार्थवादी स्वरूप प्रदान करने का सफल प्रयत्न किया है, उसी प्रकार उन्होने हिन्दी नाटक को निश्चय ही एक आधुनिक यर्थाथवादी एवं मौलिक नवीन शिल्प भी साबित हुए है। उनके नाटकों में नाट्य शिल्प का विविध रूप मिला है। डॉ. रामकुमार वर्मा के शिवाजीनाटक का कुछ शिल्प दृश्य- "शिवाजी भोंसले ने बीजापरु के हाथ से कल्याण और भिवडी नाम के शहन छीन लिए है न! महाराष्ट्र में अपार संपदा आई है, और उस सम्पदा को लाने वाले मेरे भाई आबाजी हैं। उनहोने कल्याण का सारा खजाना लूट लिया है। उसी विजय के समारोह में मैने यह कक्ष इतना सुन्दर सजाने का आयोजन किया है।"[1]। समस्त वातारण में एक पवित्रता है। इस नाटक के लिए नाटककार ने एक ही रंगमंच का उपयोग किया है।

डॉ. रामकुमार वर्मा का नाट्यशिल्प जहाँ तक परम्परागत भारतीय नाट्यारोल्प के साथ चलता है, वहाँ उन्होने आधुनिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उसे सर्वथा नया स्वररूप, नया आयाम और नया रंग भी प्रदान किया है।

उनका नाटय शिल्प आधुनिक रंग बोधो से सुशोभित है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने नाटकों में तत्कालीन घटनाओं को दिखाने का प्रयास किया है। डॉ॰ रामकुमार वर्मा के नाटक महाराणा प्रताप‘ का कुछ दृश्य- "मेरे कार्यो को राजनीति की आंखो से देखो। मेरे कार्यों की आलोचना करने का अधिकार किसी को नही है, स्वयं सम्राट अकबर को भी नही। जंगल-जंगल भटकने वाले राणा प्रताप को क्या हो सकता है।"[2] इस प्रकार प्रमुख घटनाओं द्वारा महाराणा प्रताप के जीवन की संवदेनाओं को उभारने की चेष्टा की गई है।

डॉ. रामकुमार वर्मा ऐतिहासिक नाटककार है, जिसमें भारत की राष्ट्रीयता एवं सांस्कृतिक चेतना पूर्णतः साकार होती है। वे इतिहास के पृष्ठों से ऐसे वीज पात्रों को चुनते हैं, जो नयी पीढ़ी के मन में अतीत के गौरव तथा वर्तमान के लिए उत्सर्ग का भाव जागृत कर सके। डॉ. रामकुमार वर्मा जी प्रख्यात कथा वस्तु को नाटक के लिए चुनते है। परन्तु कहीं-कहीं कल्पना का इतिहास-सम्मत प्रयोग करते हैं।

डॉ. रामकुमार वर्मा जी ने अपने ऐतिहासिक नाटकों से भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आदर्शो के प्रति गौरव और अभिमान का भाव जागृत किया है। उन्होने अपने अधिकांश नाटकों में इसी उद्देश्य को सामने रखकर महात्मा बुद्ध, सम्राट अशोक, समुद्रगुप्त पराक्रमांक, चन्द्रगुप्त, कनिष्क, महाराणाप्रताप, छत्रपति शिवाजी, नानाफड़नवीस आदि महान चरित्रों पर नाटकों की सृष्टि करके देश की गौर व गरिमा तथा उनकी अस्मिता की रक्षा एवं उसकी महता का आख्यान प्रस्तुत किया है। डॉ. रामकुमार वर्मा नाटक् सम्राट कनिष्ठका कुछ अंश- "धर्म के प्रचार में उन्होने युद्ध की नीति कभी नही अपनायी। उन्होने अहिंस वृत धारण कर धर्म का प्रचार प्रसार किया। तुम भी अहिंसा की नीति अपनाकर धर्म का प्रसार कर सकते हो"[3]। उसने सम्राट कनिष्ठ के विचारों की दिशा में महान परिवर्तन किया। जीव हत्या करने वाला सम्राट कनिष्क पाश्र्व और मातृचेता के कहने के कारण अहिंसावादी वन जाता है। 

डॉ. रामकुमार वर्मा के सभी नाटक अभिनेय है। रंगमंच की मर्यादाओं को ध्यान में रखकर ही उन्होने अपने नाटकों की रचना की है। अपने नाटकों में कथा के स्थ्ससप, काल तथा वातावरण का स्पष्ट उल्लेख किया है। उनके नाटकों की दृश्य योजना और साज सज्जा अत्यधिक सीधी-स्वाभावित तथा सार्थक है। डॉ. रामकुमार वर्मा जी ने अपने नाटकों में कथानक को विभिन्न नाटकीय परिस्थितियों से उद्घटित करने का प्रयास किया है। सत्य का स्वप्न‘ नाटक का शिल्प सामान्य नाटकों के शिल्प से भिन्न है। डॉ. रामकुमार वर्मा जी के शब्दों में- "मैने इस रचना को नाटकीयता प्रदान करते हुये उसे गतिशील बनाने का प्रयत्न किया है। इस भांति इसके आधार पर सीनिरियां भी लिखा जा सकता है। यही कारण है कि एक प्रमुख घटना के बादन दृश्यांतरो में विभाजन करना ही सीनिरियों का कौशल है। चित्रपट घटनाओं की गति का ही दूसरा नाम है। घटना में क्रम अनिवार्य अंग है। इस क्रम को जितेन कौशल, दृष्टिकोण, मनोभाव या प्रतीक हृदयंगम किया जा सकेगा।"[4] विभिन्न घटनाओं को एक साथ कल्पना के सूत्र में जोड़ने का सफल प्रयास इस नाटक में किया गया है।

डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने नाटकों के पात्रों की आयु तथा वेशभूषा पर अत्यधिक महत्व दिया है। नाटककार स्वंय अपने नाटकों के कुछ पात्रों की अत्यन्त विस्तृत वेशभूषा का परिचय देते हैं तो कुछ पात्रों की सुन्दरता का वर्णन संवादो द्वारा करते हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा के नाटकों के संवाद संक्षिप्त, सरल, सहज, बोधगम्य एवं सुव्यवस्थित है। उनके नाटकों के संवाद पाठकों एंव दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर करते है। नाटक में कार्य, स्थान तथा एकता का निर्वाह होना चाहिए, परन्तु ऐतिहासिक नाटकों के लिए यह कोई विशेष महत्व नही है। इसलिए वर्मा जी के अधिकतर नाटकों में संकलनमय का निर्वाह नही हुआ है। परन्तु उनके नाटकों में नदी की धरा की तरह सभी घटनाएँ एक ही प्रवाह मे बन जाती है। जय बांगलानाटके के बारे डॉ. राम कुमार वर्मा का क्थन- "‘घटनाए सत्य है पर पात्रो के नाम कल्पित है, लेकिन यह मानना होगा कि इस शताब्दी की एक महत्वपूर्ण घटना को बड़ी जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया गया है।"[5] वे इस नाटक की कथा को गतिशील बनाकर उसके विकास में योगदान देते है। संवाद योजना दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में काफी सफल बनी है। डॉ. रामकुमार वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के लेखक हैं। नाटक उनके प्रिय विधाओं में से एक है एकांकी के तो वे जनक माने जाते हैं। परन्तु नाटकों के रचना में भी उन्होने अपनी एक विशिष्ठ छाप छोड़ा है। डॉ. रामकुमार वर्मा "मेरे इन नाटकों के निर्माण में सदैव रंगमंच की प्रेरणा रही है। जब कभी मुझसे ध्वनि नाटकों के लिखने का आग्रह किया गया है, तब भी नाटकों के प्रति-न्यास को छोड़कर पात्रों के मनोवैज्ञानिक विकास और नाटको की परिस्थियिों को उभारने में रंगमंच को स्थान मिल गया है।"[6] डॉ. रामकुमार वर्मा ने ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं का चयन किया, जो देश की प्रतिष्ठा बढाती है।

डॉ. रामकुमार वर्मा जी ने रंग संकेतो के माध्यम से प्राकृतिक एवं कृत्रिम परिवेश की ओर संकेत किया है। जिससे नाटके के मंचन में कोई कठिनाई न हो। इसलिए उनकी रचनाएँ मंचन की कसौटी पर पूरी तरह सफल हो गयी है। रंगमंच की इसी मर्यादा के कारण उनके सभी नाटक अभिनेय बन गये है। डॉ. रामकुमार वर्मा का नाटक कला और कृपाणनाटक का कुछ अंश दृष्टव्य है- "कितना शक्तिशाली है। रूप उनका विशाल नेत्र और मिली भौंहे। जैसे शक्ति के दो अक्षर सौन्दर्य ने अपनी सीमा खींची हो। क्रोध से कसे हुये अधरोष्ठ जैसे प्रत्यंचा में किसी ने ग्रन्थि लगा दी हो।"[7] वासवदत्ता के सौन्दर्य का वर्णन उद्यन करता है। साथ ही इस नाटक में हिंसा पर महिंसा की विजय चिन्हित की गयी है।

डॉ. रामकुमार वर्मा जी के नाट्य शिल्प की एक बड़ी विशेषता यह है कि वे आरम्भ से ही पश्चिम के नाट्य सिद्धान्तो से अवगत रहे है। भारतीय नाट्य सिद्धान्तो तथा पश्चिम नाट्य सिद्धान्तों में से अपने अुनकूल तत्वों को अपनाते हुये उन्होने नाटकों की रचना की है। डॉ. रामकुमार वर्मा जी ने हिन्दी नाटकों को आधुनिक रूप देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होने अपने नाटकों में प्राचीन एवं आधुनिक नाटक के अंतरंग को रेखांकित किया है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने नाटकों में कौतूहलता को अधिक स्थान दिया है। यह कौतूहल उनके नाटकों में अन्त तक चलता है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने ऐतिहासिक नाटकों में भी आधुनिक नाट्य प्रवृत्तियों का यथा स्थान प्रयोग किया है।

अतः भारतीय साहित्य में नाटक को दृश्य काव्य कहा गया है। क्योंकि इसकी प्रत्येक घटना मंच पर घटित होती है। नाटक के पांच तत्व होते हैं, जो इस प्रकार हैं - (कथानक, चरित्र-चित्रण, संवाद देशकाल और दृष्टिकोंण) डॉ. रामकुमार वर्मा के सम्पूर्ण नाटकों में इन सभी तत्वों को पाया जाता है। उनके नाटक शिल्प दर्शक तथ मंच को जोड़ता है।

सन्दर्भ ग्रंथ सूची

1. रामकुमार वर्मा नाटक रचनावली- 1 (शिवाजी) डॉ. गोयनका, पृष्ठ - 34

2. रामकुमार वर्मा नाटक रचनावली 1 (महाराणा प्रताप) डॉ. गोयनका, पृष्ठ सं॰- 473

3. रामकुमार वर्मा नाटक रचनावली- 3 (सम्राट कनिष्क) डॉ. गोयनकापृष्ठ सं॰- 85

4. रामकुमार वर्मा नाटक रचनावली 1- (सत्य का स्वप्न) गायेनका- पृष्ठ सं॰- 342

5. रामकुमार वर्मा नाटक रचनावली- (भूमिका) डॉ. गोयनका- पृष्ठ सं॰- 05

6. रिमझिम (एकांकी सग्रह) डॉ. रामकुमार वर्मा, पृष्ठ सं.- 16

7. रामकुमार वर्मा रचनावली 1 (कला और कृपाण) डॉ. गोयनाक, पृष्ठ संख्या- 261- 261