Pollution Control : The Need of Time
ISBN: 978-93-93166-38-8
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वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जैविक खेती का महत्व एवं तरल जैविक खादों की उपयोगिता

 विवेक पाण्डेय
शोध छात्र
शस्य विज्ञान
सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
मेरठ,  उत्तर प्रदेश, भारत 
जयबीर तोमर
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष
शस्य विज्ञान
जनता वैदिक काँलिज बडौत
बागपत, उ0 प्र0, भारत
संदीप कुमार वर्मा
शोध छात्र
शस्य विज्ञान
सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
मेरठ, उ0 प्र0, भारत

DOI:
Chapter ID: 16680
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जैविक खेती

मनुष्य ने जब से कृषि कार्य करना प्रारंभ किया तभी से वह अपने चारों ओर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करता आया है। धीरे-धीरे वह सीखता गया और प्राप्त अनुभवों के आधार पर कृषि कार्यो में सुधार करता गया। कृषकों ने बीज की बुवाई से लेकर खेत की जुताई, खाद, पानी आदि का उचित प्रबंधन करके अधिकतम फसलोत्पादन प्राप्त करने की कोशिश हमेशा जारी रखी। कृषकों ने एक ओर जहां बढ़ती आबादी की खाद्य मांग को पूरा करने एवं अपने आर्थिक विकास हेतु हर संभव प्रयास किए वही, अधिक उत्पादन हेतु रासायनिक उर्वरकों एवं दवाइयों का भी बेहताशा प्रयोग किया। जो कि आज भविष्य के लिए एक बड़े संकट की ओर संकेत करता है। वर्तमान में देश की बढ़ती जनसंख्या आज एक गंभीर समस्या है इस बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान मॉग पूर्ति की होड़ में कृषक तरह-तरह की रासायनिक खादों एवं दवाइयों का लगातार प्रयोग कर रहे हैं, जिससे कि हमारा संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हो रहा है। रासायनिक उर्वरकों के निरंतर अत्याधिक प्रयोग से मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में परिवर्तन आ रहा है, परिणाम स्वरूप भूमि की उर्वराशक्ति में भी गिरावट देखने को मिल रही है, जिसका मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। आज किसानों के समक्ष यह एक चुनौती है कि, वही महंगी रासायनिक उर्वरकों एवं दवाइयों के दुष्प्रभाव से मिट्टी की उर्वरकता, पानी, वायु और अपने स्वास्थ्य को बचाए रखते हुए अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किस विधि का प्रयोग करें। इन बातों को ध्यान में रखते हुए आज किसान रासायनिक उत्पादों से बचाव के लिए अपनी पुरानी कृषि पद्धति की ओर मुंह मोड़ रहे हैं। इस प्राचीन पद्धति को हम जैविक खेती या कुदरती खेती के नाम से जानते हैं।

यह कृषि करने की एक ऐसी पद्धति है जिसमें संश्लेषित उर्वरकों एवं दवाइयों का अनुप्रयोग करते हुए अपने चारों तरफ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कर, प्रकृति एवं पर्यावरण को स्वच्छ व संतुलित बनाए रखते हुए मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। इसमें पूर्ण रूप से कार्बनिक खादों का प्रयोग किया जाता है। जिससे मृदा की संरचना, उसकी उर्वरता व जैविक विविधता में भी सुधार आता है। जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय फसलों में रोग व बीमारियों का प्रभाव भी कम होता है। वही दूसरी ओर, जैविक खेती भूमि और फसल की उपज को बनाए रखने, खेती की लागत को कम करने, संसाधनों की कमी और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और अंत में जरूरतमंद किसानों को नई तकनीक प्रदान करने में एक प्रमुख भूमिका निभाती   है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण के अनुसार आज हमारे देश में कुल 4.27 मिलियन हेक्टेयर भूमि जैविक खेती के अंतर्गत पंजीकृत है। आज भी भारत में लगभग 70 % किसान छोटे एवं सीमांत जोत वाले हैं, जिनके पास 1 हेक्टेयर से कम कृषि जोत है।

आजकल भारतीय कृषि में पशुपालन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिससे प्रतिदिन लगभग पर्याप्त मात्रा में गोबर एवं मूत्र प्राप्त होता है, जिसका उपयोग कर मृदा की उर्वरता को टिकाऊ बनाकर कृषि उत्पादन में वृद्धि एवं उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है। वर्तमान में कृषक फसलो की पोषक तत्वों की मांग को पूरा करने के लिए खेत में भारी मात्रा में जैविक खादे जैसे-गोबर की खाद, कंपोस्ट, केचुए की खाद एवं मुर्गी की खाद आदि पर निर्भर करते हैं। जिससे मौजूदा फसल में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति कुछ मात्रा में ही होती है, और अवशेष पोषक तत्वों का प्रभाव पूर्ववर्ती फसल को प्राप्त होता है, इसलिए जरूरतमंद किसानों के लिए कम लागत के साथ टिकाऊ कृषि तकनीक की आवश्यकता है, ताकि मौजूदा फसलों की पोषक तत्वों की मांग को पूरा किया जा सके। जैविक कृषि में सफल फसल उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु विभिन्न जैविक खादों के प्रयोग विधियॉं अपनाई जाती हैं। जिसमें तरल कार्बनिक खाद एक ऐसी विधि है, जिसका मुख्य उद्देश्य मिट्टी के सूक्ष्मजीवों एवं वनस्पति को समृद्ध करना है। तरल जैविक खादे गोबर, गौ-मूत्र एवं कृषि उत्पादित कचरे से तैयार की जाती हैं, जिसका उपयोग फसलो पर छिड़काव करके, सिंचाई जल के साथ एवं मृदा में सीधे मिला कर फसलों की पोषक आवश्यकता को पूरा में किया जा सकता है।

तरल जैविक खादों के प्रकार एवं बनाने की विधियाँ

जैव पदार्थों को गला सडाकर के तैयार की गयी ऐसी खाद जिसमें कि सूक्ष्मजीवों की संख्या व पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में उपस्थित हो जैविक खाद कहलाती है। कुछ तरल जैविक खादों के स्रोत, बनाने की विधि एवं प्रयोेग करने का तरीका निम्न प्रकार है।

1. वर्मीवाश- वर्मीवाश केंचुओं व गोबर की सहायता से तैयार किया एक तरल जैव खाद हैं। केंचुए का शरीर तरल पदार्थों से भरा रहता है, एवं उसके शरीर से लगातार इस का उत्सर्जन होता रहता है। इस तरल पदार्थ का संग्रहण ही वर्मीवाश होता है। इसमें बहुत सारे पोषक तत्व जैसे- साइटोकाइनिन, आक्सीटोसिन, विटामिन्स, एमिनो एसिड, एंजाइम्स एवं उपयोगी सूक्ष्मजीव जैसे- बैक्टीरिया, कवक, एक्टीनोमाइसिटिस इत्यादि पाए जाते हैं। इसमें सभी पोषक तत्व घुलनशील रूप में उपस्थित होते हैं, जो पौधों को आसानी से उपलब्ध होते रहते हैं।  इसका उपयोेग फसलों की वृद्धि व अधिक फसल उत्पादन हेतु करते हैं। वर्मीवाश में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं, ह्मूमिक अम्ल व हार्मोन्स से भूमि का पी-एच- मान भी सामान्य बना रहता है।

बनाने के लिए आवश्यक सामग्री

केंचुए               

 -5 किलोग्राम

गोबर               

 -50 किलोग्राम

जैव पदार्थ           

 -2 किलोग्राम

ताजा पानी          

 -10 लीटर

प्लास्टिक का एक ड्रम

 -100 लीटर क्षमता

बनाने की विधि

इस विधि में एक छोटे ड्रम के उपर बडे़ ड्रम को स्टैन्ड़ की सहायता से रख देते हैं। बडे़ ड्रम की तली में एक निकास द्वार बना कर इस पर एक टाट-पट्टी रखकर गोबर व केंचुए डालकर पानी छिड़क देते हैं। इसके ऊपर पानी से भरी छिद्रयुक्त बाल्टी लटका दें। इससे धीरे-धीरे पानी टपकता रहता है और नीचे वाले ड्रम में वर्मीवाश इकट्ठा होता रहता है। वर्मीवाश में 10 गुना  पानी मिलाकर फसलों पर छिड़काव करने से फसल की अच्छी बढ़वार होती है

2. पंचगव्य- पचगव्य एक विशेष प्रकार का किण्वित उत्पाद है जिसमें मुख्य रूप से गाय के पांच उत्पादों का प्रयोग किया जाता है। यह विभिन्न लाभकारी सूक्ष्मजीवों एवं पौधों के विकास को बढ़ावा देने में समृद्ध है। संस्कृत में पंचगव्य का अर्थ है गाय से प्राप्त पाँच उत्पादों (गोबर, मूत्र, दूध, घी और दही) के मिश्रण से है। पंचगव्य एक ऐसी तरल जैविक खाद है जिसका प्रयोग मिट्टी के सूक्ष्म जीवों की सुरक्षा एवं फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग रासायनिक उर्वरकों की तुलना में सस्ता एवं अधिक लाभदायक पाया गया है। विभिन्न परीक्षणों द्वारा इसको जैविक खेती में प्रयोग हेतु मानकीकृत किया गया है

बनाने हेतु आवश्यक सामग्री      

ताजा गाय का गोबर  

- 10 किलोग्राम

गोमूत्र 

 10 लीटर

गाय का दूध 

- 3 लीटर

गाय के दूध का दही 

 2 किलोग्राम

गाय का घी   

- 1 किलोग्राम

गुड 

-1 किलोग्राम

नारियल का पानी   

-  3 लीटर

पके हुए केले      

-1 दर्जन

प्लास्टिक का बड़ा ड्रम

-100 लीटर पानी की क्षमता

ढकने का कपड़ा  

 

बनाने की विधि

इस विधि में गाय के गोबर एवं घी को एक मिट्टी के बर्तन में अच्छी तरह मिलाकर चार दिन के लिए छाया वाले स्थान में रख देते हैं। इस प्रकार प्रत्येक दिन में दो बार इसको अच्छी तरह से मिलाते हैं। एक बड़े बर्तन में 10 लीटर गोमूत्र, 3 लीटर गाय का दूध, 2 किलोग्राम दही, 3 लीटर नारियल के पानी, 1 दर्जन केले एवं 1 किलोग्राम गुड डालकर अच्छी तरह मिला देते हैं। पांचवें दिन दोनों मिश्रण को अच्छी तरह एक बर्तन में मिलाकर उनके मुंह को कपड़े से बाधकर ढक देते हैं, और प्रत्येक दिन इसको अच्छी तरह से मिलाकर कपड़े से ढ़क देते हैं। 15 दिन के बाद घोल को एक पतले कपड़े की सहायता से छान लेते हैं । इस प्रकार तैयार घोल में पर्याप्त मात्रा में पानी मिलाकर फसलों की पोषण आवश्यकता को पूरा करने हेतु छिड़काव किया जाता है।

3. वीजामृत- यह एक अत्यंत प्रभावशाली जैविक खाद है। जिसे गोबर, गोमूत्र, बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी, गुड़ और दाल के आटे को पानी के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है। जीवामृत पौधों की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ मृदा संरचना की सुधार में मदद करता है। यह फसल की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाता है। जिससे फसल स्वस्थ बनी रहती है और अत्याधिक पैदावार देती है। फसलों में सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत को प्रति एकड़ की दर से प्रयोग किया जा सकता है, अथवा 10 से 20 लीटर तरल जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर खड़ी फसल में छिड़काव किया जा सकता है।

तरल जीवामृत बनाने की सामग्री

पानी                

- 200 लीटर

ताजा गाय का गोबर     

 -10 लीटर

दाल का आटा          

- 1 किलोग्राम

गुड    

 1 किलोग्राम

बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी

- 1 किलोग्राम

प्लास्टिक का बड़ा ड्रम   

- 200 लीटर पानी की क्षमता

ढकने का कपड़ा     

 

बनाने की विधि

इस विधि में 10 किलोग्राम ताजा देसी गाय का गोबर, 10 लीटर पुराना गोमूत्र, 1 किलोग्राम दाल का आटा, 1 किलोग्राम बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी तथा 1 किलोग्राम गुड लेकर उसको 200 लीटर पानी की क्षमता वाले प्लास्टिक के ड्रम में अच्छी तरह मिलाते हैं। इसके बाद बर्तन के मुंह को कपड़े की सहायता से बांधकर ढक देते हैं एवं प्रत्येक दिन में 2 बार इसे घोल को हिलाया जाता है। इसको छाया वाले स्थान पर एक सप्ताह के लिए रख देते हैं। एक सप्ताह बाद इसको पतले कपड़े से छान लेते हैं। इस प्रकार तैयार जीवामृत को खेत में प्रयोग कर सकते हैं

4. बीजमृत- एक ऐसा लाभदायक जैविक तरल है, जिसका उपयोग फसलों के बीजोपचार में किया जाता है, यह एक फफूंदनाशी की तरह काम करता है। जिससे बीजों के अंकुरण एवं प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इस तरल जैव से उपचारित बीज में मृदा जनित रोगों का प्रकोप बहुत ही कम होता है।

बनाने हेतु आवश्यक सामग्री

पानी                

-20 लीटर

ताजा गाय का गोबर

-10 किलोग्राम

पुराना गोमूत्र        

-10 लीटर

बुझा चूना            

-500 ग्राम

पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी

-1 किलोग्राम

प्लास्टिक का बड़ा ड्रम  

-200 लीटर पानी की क्षमता

ढकने का कपड़ा     

 

बनाने की विधि

इस विधि में 100 किलोग्राम बीजोपचार के लिए एक बड़े प्लास्टिक के ड्रम में 20 लीटर पानी लेकर उसमें 10 किलोग्राम गोबर एवं 10 लीटर गोमूत्र को डालकर अच्छी तरह मिलाते हैं। फिर 50 ग्राम बुझा चूना और 1 किलोग्राम मिट्टी को डालकर पुनः मिलाते हैं जिससे पूरा मिश्रण अच्छी तरह मिल जाए। अब बर्तन के मुंह को कपड़े से ढ़ककर छाया वाले स्थान पर एक सप्ताह के लिए रखते हैं। दिन में दो बार इसको पुनः हिलाते हैं। इस प्रकार तैयार बीजामृत को 24 घंटे के अदंर 100 किलोग्राम बीज को अच्छी तरह मिलाकर बुबाई हेतु प्रयोग करते है या नर्सरी को जड़ों को इसमें डूबो कर उपचारित किया जा सकता हैं।

5- हरित पानी- यह सड़क के किनारे खडे़ अनुपयोगी खरपतवारों से तैयार किया जाने वाला तरल खाद है जो कि मृदा की उर्वरा शाक्ति को बढाने के अलावा मृदा व पौधों को रोग व बीमारियों से बचाने का कार्य भी करता है। इस कारण पौधों की अच्छी बढ़वार होती है और फसल उत्पादन भी बढ़ता है।

बनाने हेतु आवश्यक सामग्री 

हरी अवस्था में खरपतवार

 -25 किलोग्राम

इमली 

 -500  ग्राम

गुड  

 -500 ग्राम

पिसा हुआ नमक  

 -250 ग्राम

ताजा पानी      

 -60 लीटर

प्लास्टिक का बड़ा ड्रम

 -100 लीटर पानी की क्षमता

बनाने की विधि

उपरोक्त सामग्री को आपस में मिलाकर 10 से 15 दिन तक सड़ाते हैं, इसके पश्चात इस मिश्रण को कपड़े से छान लेते हैं इस प्रकार प्राप्त हुए घोल को हरित पानी कहते हैं।

उपयोग करने की विधि

इस प्रकार प्राप्त हरित पानी में उसका चार गुना पानी मिला कर प्रति एकड़ की दर से पहली सिंचाई के एक सप्ताह बाद फसलों पर छिड़काव करते हैं अथवा सिंचाई के पानी के साथ देते हैं। इससे पौधों व मृदा की रोगप्रतिरोधक क्षमता एवं मृदा उर्वरता में सुधार होता है। हरित-पानी से पौधों व मृदा के रोग एवं बीमारियों पर नियंत्रण होता है, जिससे फसलों की बढ़वार अच्छी होती है और फसल उत्पादन भी पड़ता है

तरल जैविक खादों की उपयोगिता

1. तरल जैविक खाद में भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं।

2. तरल जैविक खाद मृदा में उपस्थित लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या एवं उनकी क्रियाशीलता में वृद्धि करती हैं।

3. फसल उत्पाद की गुणवत्ता एवं स्वाद में वृद्धि करती हैं।

4. तरल जैविक खाद मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए फसलों को आवश्यक पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में प्रदान कराती हैं।

5. पशु अवशोषित कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके कम लागत में अधिक मात्रा में तरल जैविक खाद तैयार किया जा सकता है।

6. रासायनिक उर्वरकों के उपयोग पर निर्भरता कम कर के कृषकों की लागत में कमी लाते हैं।

7. तरल जैविक खाद पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं।

8. तरल जैविक खाद हमारे पर्यावरण को दूषित एवं संक्रमित होने से बचाती हैं।

तरल जैविक खादों के महत्व

ठोस जैविक खादों की तुलना में तरल जैविक खादों में औसतन अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। आधुनिक जैविक खेती में तरल जैविक खादे काफी हद तक जैविक खेती की रीढ़ बनी हुई है। तरल जैविक खादो का विवेकपूर्ण उपयोग किसी भी फसल के स्थायी उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण रणनीतियों में से एक है। तरल जैविक खादो का निरंतर उपयोग फसलो को आवश्यक पोषक तत्वो की उपलब्धता बनाए रखने में मदद करता है। चूंकि, सभी प्रकार के जैविक कचरे का उपयोग करके कम लागत पर इन्हें बड़ी मात्रा में उत्पादित किया जा सकता है, तरल खाद किसानों के लिए एक वरदान हो सकती है, तरल जैविक पर्याप्त मात्रा में प्रमुख और साथ ही छोटे पौधे पोषक तत्व होते है साथ ही इनमें पौधों के लिए आवश्यक वृद्धि नियामक हार्मोन जैसे- पंचगव्य में इंडोल एसिटिक एसिड और जिबरेलिक एसिड की पर्याप्त मात्रा होती है  इसका 3% का स्प्रे चना की उच्च उपज एवं चावल के दाने की मिलिंग गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए आदर्श है। अतः इस प्रकार ये कृषक की उत्पादन लागत को कम करके आय कोे बढ़ाती है, साथ ही साथ तरल जैविक खादे पौधो द्वारा  मृदा जड़ों की तुलना में पत्तियों से लगभग 20 गुना तेजी से अवशोषित की जाती है, परिणाम स्वरूप यह पौधो को शीध्रता से पोषक तत्व प्रदान करती है। अतः तरल जैविक खादे अस्थाई पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जैविक खेती में इनका उपयोग मुख्य रूप से उस मौसम के दौरान फसल की वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है, जब पोषक तत्व का अवशोषण जड़ों के माध्यम से बाधित रहता है।