हिंदी भाषा व साहित्य में शोध, नवाचार और रोजगार
ISBN: 978-93-93166-13-5
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शोध के प्रकार

 डॉ रिंकी गोस्वामी
असिस्टेंट प्रोफेसर
इतिहास विभाग
मदर टेरेसा लॉ कॉलेज
जबलपुर  मध्य प्रदेश, भारत  

DOI:
Chapter ID: 16743
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प्रस्तावना
शोध ‘अंग्रेजी शब्द’ रिसर्च का पर्याय है किन्तु इसका अर्थ पुनः खोज नहीं है अपितु ‘गहन खोज’ है। इसके द्वारा हम कुछ नया आविष्कृत कर उस ज्ञान परम्परा में कुछ नए अध्याय जोड़ते है।[1] शोध समस्याओं का चुनाव करना तथा समस्या की पहचान के द्वारा परिकल्पना का निर्माण करना वास्तव में कठिन कार्य है क्योंकि समस्याओं का चुनाव करने या उसे जानने के लिए अनुसंधानकर्ता को बहुत सम्वेदनशील जटिल समस्याओं के समाधान करने की योग्यता वाला मेहनती एवं कुशाग्र बुद्धि वाला होना चाहिए।
व्यापक अर्थ में शोध या अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में ज्ञान की खोज करना या ‘विधिवत गवेशणा’ करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हुए जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है। नवीन वस्तुओं की खोज और पुरानी वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकेंउसे शोध करते है। शोध के अंतर्गत बोध पूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्यग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन विश्लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है।[2]
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशियल साइन्सेस के अनुसार:- ”अनुसंधान वस्तुओं अवधारणाओं एवं प्रतीकों के ज्ञान के विस्तार अथवा सत्यापन के लिए सामान्यीकरण के उद्देष्य से कुशलतापूर्वक किया गया कार्य हैचाहे वह ज्ञान किसी सिद्धान्त के निर्माण के लिए ही हो अथवा किसी कला को व्यवहार में लाने के लिए हो।
रेडमैन और मैरी के अनुसार:- ”नवीन ज्ञान की प्राप्ति हेतु व्यवस्थित प्रयत्न को हम अनुसंधान (शोध) कहते है।[3]
शोध को निम्नांकित दो प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है।
1.   काल के आधार पर
2.   उपयोग के आधार पर
काल के आधार पर
1. ऐतिहासिक शोध
ऐतिहासिक शोध विधि में भविश्य को समझने के लिये भूतकाल से सम्बंधित समस्याओं का विश्लेषण किया जाता है। ऐतिहासिक शोध का सम्बन्ध ऐतिहासिक समस्याओं के वैज्ञानिक विष्लेशण से है इसके विभिन्न चरण भूतकाल के सम्बन्ध में एक नयी चुनौती पैदा करते है जिसका सम्बन्ध वर्तमान और भविष्य से होता है।
इसके द्वारा अतीत की सूचनाओं एवं सूचना सूत्रों के सम्बन्ध में प्रमाणों की वैधता का सावधानीपूर्वक परीक्षण किया जाता है और परीक्षण किये गये प्रमाणों की सावधानीपूर्वक व्याख्या की जाती है।
a. सरल शब्दों में ऐतिहासिक शोध अतीत की घटनाओंविकासक्रमों का वैज्ञानिक अध्ययन या अन्वेशण है। इसके अन्तर्गत उन बातों या नियमों की खोज की जाती है जिन्होंने वर्तमान की विशेष रूप प्रदान किया हो।
b. किसी शोध समस्या का अध्ययन अतीत की घटनाओं के आधार पर करना जिससे यह पता चल सके कि समस्या का विकास किस प्रकार और क्यों हुआऐतिहासिक शोध कहलाता है।
c. सामाजिक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन औद्योगिकरण नगरीकरण से सम्बन्धित समस्याओं की परिवर्तन की प्रकृति को ऐतिहासिक शोध के प्रयोग द्वारा समझा जा सकता है।
ऐतिहासिक शोध की सीमांए
a. तथ्यों की अनुप्लब्धता तथा बिखराव ऐतिहासिक शोध की शोध समस्या से सम्बंधित साक्ष्य या तथ्य एक स्थान पर प्राप्त नहीं होते है। इसके लिये शोधकर्ता को कई संस्थाओं और पुस्तकालयों का संदर्भ लेना होता है। कभी-कभी समस्या से सम्बंधित पुस्तकेलेख शोधपत्र पत्रिकायें बहुत पुरानी होने पर इसके कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण आंशिक रूप से ही उपलब्ध हो पाते है।
b. तथ्यों का ऋुटिपूर्ण रखरखाव पुस्तकालयों तथा अनेक संस्थाओं में कभी प्रलेख क्रम में नहीं होते है अन्यथा कभी-कभी ऋुटिपूर्ण रखरखाव के कारण उपलब्ध नहीं होते।
तथ्यों की वस्तुनिष्ठता- ऐतिहासिक शोध में तथ्यों और साक्ष्यों का संग्रह अध्ययनकर्ता के पक्षपातोंअभिवृत्तियों मतों और व्यक्तिगत विचारधाराओं प्रभावित होता है जिससे परिणामों की विश्वसनीयता और वैधता संदिग्ध रहती है।
सीमित उपयोग ऐतिहासिक शोध का प्रयोग उन्ही समस्याओं के अध्ययन में हो सकता है जिनके ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि से सम्बन्धित प्रलेख पाण्डुलिपियॉ अथवा आंकड़ों या तथ्यों से सम्बन्धित सामग्री उपलब्ध हो। 
वर्णनात्मक/विवरणात्मक शोध
वर्णनात्मक शोध वर्तमान परिस्थियोंविश्वासोंविचारधाराओंअभिवृत्तियों का वर्णन एवं विश्लेषण करता है। वर्णनात्मक शोध का मुख्य उद्देश्य वर्तमान दशाओंक्रियाओंअभिवृत्तियों तथा स्थिति के विषय में ज्ञान प्राप्त करना है। वर्णनात्मक शोधकर्ता समस्या से सम्बन्धित केवल तथ्यों को एकत्र ही नहीं करता है बल्कि वह समस्या से सम्बंधित विभिन्न चरों में आपसी सम्बन्ध भी ढूंढने का प्रयास करता है।
वर्णनात्मक शोध विधि को निम्नलिखित तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है:-
सर्वेक्षण अध्ययन
सर्वेक्षण अध्ययन के द्वारा हम भिन्न प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करने का प्रयास करते है।
1. वर्तमान स्तर का निर्धारण।
2. वर्तमान स्तर और मान्य स्तर में तुलना।
3. वर्तमान स्तर का विकास करना एवं उसे प्राप्त करना।
सर्वेक्षण अध्ययन अनेक प्रकार का हो सकता है जैसे:-
1. कार्य विश्लेषण
2. प्रलेखी विश्लेषण
3. जनमत सर्वेक्षण
4. समुदाय सर्वेक्षण
अन्तर सम्बन्धी का अध्ययन
इसमें शोधकर्ता केवल वर्तमान स्थिति का ही सर्वेक्षण नहीं करता है। बल्कि उन तत्वों को ढूँढने का प्रयास भी करता है जो घटनाओं से सम्बंधित हों।
विकासात्मक अध्ययन
विकासात्मक अध्ययन वर्तमान स्थिति एवं पारस्परिक सम्बन्ध के साथ यह भी स्पष्ट करता है कि समय के साथ इनमें क्या परिवर्तन आये है। इसके अन्तर्गत शोधकर्ता लम्बे समय तक चरों के विकास का अध्ययन करता है।
उपयोग के आधार पर
मौलिक अथवा विशुद्ध शोध
शोध का यह वह प्रकार है जिसका सम्बन्ध सामाजिक जीवन एवं घटनाओं के बारे में मौलिक सिद्धान्त तथा मूलभूत नियमों की रचना करना होता है। मौलिक शोध का संपादन निम्नालिखित दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
(अ) पूर्व स्थापित नियमों की जांच या सत्यापन।
(ब) सामाजिक जीवन और घटनाओं से सम्बन्ध्ति नवीन ज्ञान की खोज करना।
इस प्रकार का शोध मुख्यतः ज्ञान प्राप्ति के लिए होता है और इसकी प्रकृति सैद्धान्तिक होती है।
गुडे तथा हॉट ने भी मौलिक अथवा विशुद्ध शोध की प्रकृति को इसके प्रकार्यों के सन्दर्भ में स्पष्ट किया है।
इस आधार पर मौलिक अथवा विशुद्ध शोध की प्रकृति तथा उसकी उपयोगिता को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है।
(अ) विशुद्ध शोध सामान्य सिद्धान्तों को विकसित करके अनेक व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कर देता है। इसका मतलब यह हे कि जब शोधकर्ता नये सिद्धान्तों अथवा नियमों का प्रतिपादन करता है तो इसकी सहायता से भविश्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में सरलतापूर्वक भविष्यवाणी की जा सकती है। इसकी सहायता से समस्याओं के निराकरण में भी मद्द मिलती है।
(ब) मौलिक शोध किसी विशेष समस्या से सम्बंधित मुख्य कारकों को ज्ञात करने में भी सहायक सिद्ध होता है। साधारणतया जी व्यक्ति किसी समस्या को सामान्य अवलोकन के द्वारा ही समझने का प्रयत्न करते है वे अक्सर उससे सम्बन्धित मुख्य कारकों को समझने में असफल रह जाते है। इस स्थिति को और अधिक स्पष्ट करते हुए समाज वैज्ञानिक गुडे तथा हॉट ने लिखा है, ”यदि किसी क्षेत्र में प्रजातीय भेदभाव हो तो एक खेल संगठक विभिन्न प्रजातियों में लड़कों को अलग-अलग मैदानों में भिन्न-भिन्न समय पर खेल की सुविधा देकर उनके संघर्श की संभावना को अस्थायी रूप से दूर कर सकता है।” लेकिन इसे समस्या का स्थायी समाधान नहीं माना जा सकता। जब तक तनाव और मतभेद के वास्तविक कारणों को ज्ञात करके उनका समाधान नहीं किया जाता तब तक प्रजातीय संघर्ष की स्थिति निरन्तर बनी रहेगी। अतः यदि विभिन्न जातियों के पारस्परिक सम्बन्धोंसमूह मनोदशा तनाव के विस्थापन तथा सामाजिक सम्बद्धता से सम्बन्धित मौलिक शोध द्वारा वास्तविक कारणों की खोज कर ली जाए तो उनके पारस्परिक सम्बन्धों को अधिक मधुर बनाया जा सकता है।
(स) मौलिक शोध किसी भी समस्या के समाधान के लिए एक साथ अनेक विकल्प प्रस्तुत करता है। ऐसा अनुसंधान कार्यान्वित करने में समय एवं धन अधिक तो लगता है लेकिन इसके द्वारा अंततः कोई ऐसी विकल्प आवश्यक ही मिल जाता है जिसके द्वारा सम्बन्धित समस्या का समाधान किया जा सके। शोध से प्राप्त यदि एक परिणाम उपयोगी सिद्ध नहीं होता तो कुछ समय बाद कोई दूसरा परिणाम हमारे लिए आवश्यक ही उपयोगी सिद्ध होने लगता है। इस दृश्टिकोण से भी मौलिक अथवा विशुद्ध शोध अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुए है।
(द) मौलिक शोध प्रशासकों के लिए एक प्रमाणिक और उपयोगी प्रणाली है। यही कारण है कि आज सामाजिक शोध के सिद्धान्तों का प्रयोग केवल सरकारी संगठनों द्वारा ही नहीं किया जाता बल्कि गैर सरकारी तथा व्यापारिक संगठनों द्वारा भी शोध करके कार्य करने के कुशल तरीकों की खोज की जाने लगी है। अनेक सामाजिक संगठनों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की नियुक्ति इसलिए की जाती है ताकि उनके द्वारा किए गये। शोध से लाभ उठाकर वे अपनी कार्य कुशलता में वृद्धि कर सकें। जो प्रशासक एवं संगठन विशुद्ध शोध के महत्व को जानते है वे प्रत्येक नई समस्या के उत्पन्न होने पर शोध के आधार पर उसका विश्लेषण करते है और इस प्रकार समस्या का स्थायी समाधान ढूंढ लेते है।[4]
व्यावहारिक शोध- मौलिक शोध सामाजिक जीवन के सैद्धान्तिक पक्ष से सम्बन्धित होता हैजब व्यावहारिक शोध का सम्बन्ध सामाजिक जीवन का व्यावहारिक पक्ष होता है। इस प्रकर के अनुसन्धान का उद्देश्य समाज को व्यावहारिक लाभ प्रदान करना होता है। व्यावहारिक शोध के अन्तर्गत “सामाजिक समस्याओं” का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक देश में किसी न किसी प्रकार की सामाजिक समस्याए होती है। देश के समुचित विकास और प्रगति के लिए इन समस्याओं का समाधान अनिवार्य है। समाज में व्याप्त समस्याओं का समाधान तब तक नहीं किया जा सकता हैजब तक कि इन समस्याओं के बारे में वैज्ञानिक जानकारी न हो। व्यावहारिक शोध के द्वारा समाज में व्याप्त सामाजिक समस्याओं की वैज्ञानिक जानकारी न हो। व्यावहारिक शोध के द्वारा समाज में व्याप्त सामाजिक समस्याओं की वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रकार समस्याओं के समाधान में मद्द मिलती है।
हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि व्यावहारिक शोध का सम्बन्ध समाज-सुधार या सामाजिक समस्याओं के निराकरण से नहीं है। इसका मात्र उद्देश्य है सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित यथार्थ ज्ञान को प्रस्तुत करना। श्रीमति यंग ने लिखा है कि ”ज्ञान की खोज का निष्चित सम्बन्ध लोगों की प्राथमिक आवश्यकताओं तथा कल्याण से होता है। विज्ञान की मान्यता यह है कि समस्त ज्ञान सारभूत रूप से इस अर्थ में उपयोगी है कि वह एक सिद्धान्त के निर्माण में या एक कला को व्यवहार में लाने में सहायक होता है सिद्धान्त तथा व्यवहार आगे चलकर बहुधा एक-दूसरे से मिल जाते है।
श्रीमति यंग के कथन से सामाजिक जीवन में व्यावहारिक शोध के महत्व को समझा जा सकता है। इसकी सहायता से व्यावहारिक जीवन की अनेक समस्याओं और घटनाओं को समझने में मद्द मिलती है। स्टाउफर ने लिखा है कि सामाजिक जीवन और घटनाओं को समझने में व्यावहारिक शोध निम्न प्रकार से योग देता है -
(अ) समाज के लिए उपयोगी अनेक तथ्यों के बारे में विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत करना।
(ब) मौलिक शोध के लिए उपयोगी विधियों का उपयोग और उनका विकास करना।
(स) इस प्रकार के तथ्यों और विचारों को प्रस्तुत करना जो सामान्यीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर सकें।[5]
संदर्भ ग्रन्थ सूची
1. नगेन्द्र डॉ. (1980), आस्था के चरण नयी दिल्लीनेशनल पब्लिशिंग हाउस पृ.49
2. पाण्डेय कुमार प्रदीप डॉ.शोध विधियॉ तथा सांख्यिकी उत्तरप्रदेशराजर्शि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालयइलाहाबाद पृ. 5
3. दुबे चरण श्यामा डॉ.सामाजिक अनुसंधानसागर विश्वविद्यालय पृ. 3
4. गोयल सुनील डॉ.कैप्टेन प्रारम्भिक सामाजिक अनुसंधान (शोध) आर. वी.एस.ए. पब्लिशर्सजयपुर पृ.13-14
5. बघेल एस.डी. डॉ. - बघेल किरण डॉ.अनुसंधान पद्धति शास्त्रकैलाश पुस्तक सदनभोपाल पृ. 7-8