शिक्षा में प्रौद्योगिकी का योगदान
ISBN: 978-93-93166-33-3
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उच्च स्तर पर ऑनलाइन शिक्षा: वर्तमान समय की आवश्यकता

 डॉ. राजेन्द्र कुमार यादव
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिक्षा शास्त्र विभाग
ग्राम्यांचल पी.जी. कालेज
 हैदरगढ़, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश, भारत 

DOI:
Chapter ID: 17033
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शिक्षा समाज का एक अभिन्न अंग है। जैसे हमें जीवित रहने के लिए प्राणवायु की आवश्यकता होती है, वैसे ही, समाज को जीवित रहने के लिए शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है। बगैर शिक्षा के मानव समाज एक झुण्ड होकर निरूद्देश्य हो जायेगा। संसार के समस्त प्राणी चेतनाशील होते हैं। उनमे मानव सर्वाधिक चेतनाशील होता है। अपनी चेतनाशीलता के कारण ही मानव ने सर्वाधिक उन्नति की है। यह उन्नति शिक्षा के द्वारा ही सम्भव हो पायी है।

मानव समाज में किसी-न-किसी रूप में शिक्षा विद्यमान रही है। ज्यों-ज्यों मानव सभ्यता में उन्नति होती रही, त्यों-त्यों उसकी शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन आते रहे। एक ओर जहां मानव विकास-क्रम के प्रारम्भिक दौर में शिलाखण्डों, ताम्रपत्रों, कपड़ों आदि पर शैक्षिक गतिविधियां देखने को मिलती हैं तो, वहीं दूसरी ओर आधुनिक सूचना संचार तकनीकी के द्वारा शिक्षा में कम्प्यूटर, इन्टरनेट, टेलीवीजन, प्रोजेक्टर आदि के माध्यम से शैक्षिक गतिविधियां देखने को मिलती    हैं।

1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सूचनाओं को तीव्र गति से प्रेषित किये जाने की आवश्यकता महसूस की गई, जिससे युद्धरत् जवानों व आम जनमानस को संदेश शीघ्र और सरलता से प्राप्त हो सके। निरन्तर प्रौद्योगिकी उन्नति से यह सम्भव हो सका है कि आज हम सूचनाओं को हजारें लाखों मील दूर पलभर में पहुँचा सकते हैं। सूचना सम्प्रेषण तकनीकी जैसे- कम्प्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल, मोबाइल फोन, टेलीवीजन का हम आज प्रत्येक क्षेत्र में उपयोग करते हैं, जिसमें शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में सूचना संचार तकनीकी संसाधनों का बहुधा प्रयोग करते हैं। इन सूचना संचार तकनीकी संसाधनों ने शिक्षा प्रक्रिया को एक नया आयाम दिया है। जिससे सीखने-सिखाने की क्रिया अत्यंत सरल हो गई है।

कम्प्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल, मोबाइल फोन, टेलीवीजन, रेडियो आदि ने हमारी परम्परागत शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया है, जिससे सीखने और सिखाने में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलते   हैं। सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग से परम्परागत कक्षा कक्ष को स्मार्ट कक्षा में बदला जा सका है, जिसमें विद्यार्थी कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर, टेलीवीजन आदि के द्वारा रूच्यात्मक शिक्षण प्राप्त करता   है। इतना ही नही, इन सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के द्वारा हम कहीं भी, कभी भी अधिगम/ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। सूचना संचार तकनीकी ने सीखने की जटिल प्रक्रिया को काफी सरल कर दिया है।

अधिकांशतः शिक्षा में अपव्यय और अवरोधन की समस्या देखने को मिलती है। भारत जैसे विकासशील देश में इस समस्या को दूर करने के लिए मुक्त विश्वविद्यालय और ओपन स्कूलिंग की व्यवस्था की गई जिसमें छात्र पत्राचार के द्वारा पठन-पाठन की क्रियायें करता है। छात्र अपने शंका समाधन का भी पत्रों के आदान प्रदान से निवारण प्राप्त करता है। इस प्राकर शिक्षा से वंचित छात्र भी अपनी पढ़ाई पूरी कर सकता है। सूचना सम्प्रेषण तकनीकी में प्रोद्यौगिकी यंत्रों के शामिल होन से दूरस्थ शिक्षा को एक नया रूप मिला। जिससे कम्प्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से छात्र-श्रव्य दृश्य रूप में एक वास्तविक कक्षा का अनुभव करते हुए पठन-पाठन करते हैं। इंटरनेट, कम्प्यूटर व मोबाइल के माध्यम से छात्र शिक्षक से प्रश्न पूछ सकते हैं और उनका उत्तर तत्काल प्राप्त कर सकते हैं। इस आधुनिक सूचना सम्प्रेषण तकनीकी युक्त शिक्षा पद्धति को ऑनलाइन शिक्षा पद्धति कहा गया। क्योंकि, छात्र और शिक्षक मोबाइल या कम्प्यूटर के माध्यम से वास्तविकता का अनुभव करते हैं। अपने प्रारम्भिक काल में यह तकनीकी दूरस्थ विद्यालयों व दूरस्थ विश्वविद्यालयों में प्रयोग की जाती थी। किन्तु, बदलती वैश्विक परिस्थितियों में ऑनलाईन शिक्षा सामान्य विश्वविद्यालयों व स्कूलों में भी प्रयोग की जाने लगी है।

21वीं सदी सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का युग है जिसने हमें चौथी औद्योगिक क्रान्ति के मुहाने पर पहुँचाया है। शिक्षा में भी इस तकनीकी का बहुधा प्रयोग किया जा रहा है। कोविड-19 की वैश्विक महामारी में जब स्कूलों को लम्बी अवधि के लिए बन्द कर दिया गया था, तो विद्याथियों की अधिगम परिस्थितियां प्रभावित रही थी। ऐसी दशा में विद्यार्थियों की क्षमताओं को विकसित करने में ऑनलाइन शिक्षा मील का पत्थर साबित हुई जिसमें विद्यार्थी अपने घर पर रहकर ही मोबाईल या कम्प्यूटर के माध्यम से शिक्षण कार्य करता था। परिणामस्वरूप शिक्षण प्रक्रिया सतत गतिमान रही। कोविड-19 के समय प्रयोग की गई ऑनलाईन शिक्षा प्रणाली ने शिक्षा को एक नया स्वरूप प्रदान किया है। अब ऑनलाइन शिक्षा द्वारा छात्र अधिकतम अधिगम कर सकता है। एक ओर जहां पहले सूचना तकनीकी, शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में देखी जाती थी, वहीं आधुनिक समय सूचना सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षा व्यवस्था का एक मुख्य अंग है। इसके बगैर हमारी शिक्षा व्यवस्था पंगु हो सकती है। ऑनलाईन शिक्षण में पुनःशिक्षण बहुत सरलता से किया जा सकता है। पुनःशिक्षण अधिगम की आधारशिला होती है। यह छात्रों की क्षमताओं को बढ़ाने व मार्गदर्शन करने में अत्यंत उपयोगी है। ऑनलाईन शिक्षा व्यवस्था में शिक्षण को एक ही बार व्यवस्थित (रिकार्ड) करने के बाद उसे लाइफटाईम उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे असंख्य लोग उसका उपयोग करते हुए सीखते हैं तथा अनुभव प्राप्त करते हैं।

ऑनलाइन शिक्षा वर्तमान समय की एक आवश्यक आवश्यकता है। यदि ऑनलाइन शिक्षा से हम विचारों, विषयवस्तु को अधिक लोगों तक पहुँचा रहे हैं तो इसका तात्पर्य हुआ कि हम अधिक संख्या में लोगों को लाभान्वित कर रहे हैं। जब वास्तविकता, वैज्ञानिकता व आधारभूत तथ्यों से व्यक्ति लाभान्वित होगा, तो समाज भी सुदृढ़ होगा। यदि समाज में सुदृढ़ता आयेगी तो राष्ट्रीय शैक्षिक लक्ष्यों/उद्देश्यों की प्राप्ति भी सरलता से हो सकेगी। ऑनलाइन शिक्षा ने सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने एवं नये कलेवर में ढालने का कार्य किया है।

जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही प्रत्येक विचार व व्यवस्था के भी दो पहलू होते हैं। जहां ऑनलाईन शिक्षा वर्तमान युग की एक मांग और आवश्यकता भी है, वहीं इसमें कुछ व्यवधान भी देखने को मिलते हैं। भारत जैसे विकासशील देश के लिए प्रौद्योगिकी-युक्त संचार मशीनें जैसे- कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर, मोबाइल फोन, टेलीवीजन आदि के लिए बड़े बजट की आवश्यकता होती है। आवश्यकतानुसार बजट सुनिश्चित करना एक कठिन कार्य है। इसके साथ-ही-साथ तकनीकी रूप से दक्ष शिक्षकों के द्वारा ही मशीनों का संचालन होता है। तकनीकी रूप से दक्ष शिक्षक की उपलब्द्धता भी कठिन कार्य होता है। सूचना संप्रेषण में प्रयुक्त होने वाली मशीनों के रखरखाव में समस्या आती है, जो काफी मुश्किल कार्य है। यदि समाज में तकनीकी रूप से दक्ष, प्रगतिशील शिक्षक और बजट की प्रचुरता है, तो ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था एक स्वर्णिम आयाम है जिसके द्वारा हम समाज के प्रत्येक पक्ष को रोशन करते हुए राष्ट्र को उच्चतम शिखर प्रदान कर सकते हैं।