Pollution Control : The Need of Time
ISBN: 978-93-93166-38-8
For verification of this chapter, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/books.php#8

जनसंख्या विस्फोट - एक विवेचनात्मक अध्ययन

 डॉ. अमित सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
अंग्रेजी विभाग
शिवपति पी0जी0 कालेज शोहरतगढ़,
 सिद्धार्थनगर, उत्तर प्रदेश, भारत  

DOI:
Chapter ID: 17330
This is an open-access book section/chapter distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.

जीवन जितना सरल प्रतीत होता है, आन्तरिक एवं पूर्ण रूप से अध्ययन करने पर वस्तुतः यही निष्कर्ष निकलता है कि, उतना सरल है नहीं; चाहे वह मानव जीवन हो अथवा किसी अन्य प्रजाति की बात   हो। वस्तुतः अगर हम मानव प्रजाति की ही बात करें अथवा मानव जीवन मात्र की ही चर्चा करें तो हमें स्वतः यह आभास होता है कि मानव जीवन प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अनगिनत कारकों से प्रभावित होता   है। कई विद्वानों एवं शोधकर्ताओं के अध्ययन के आधार पर भी इस बात की पुष्टि होती है कि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन की सुगमताओं एवं प्रत्याशाओं को बढ़ाने के लिए जहाँ योग-आसनों, प्राणायामों और ग्रंथों की रचना की, वही समय-समय पर नवाचारों को भी सुगमता से अपनाने पर बल दिया है। जीवन की विभिन्न आयुओं में मानव विभिन्न प्रकार की समस्याओं से गुजरता रहा है और निःसंदेह अपनी दृढ़ इच्छा और गुरूओं के मार्गदर्शन से विभिन्न समस्याओं पर विजय प्राप्त करता रहा है।

इसी क्रम में अगर विचार करें तो इस तथ्य की भी पुष्टि होती है कि मानव जीवन को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाले कारक भी बहुआयामी हैं, जिसमें प्रमुख हैं- पर्यावरण, औद्योगीकरण, गरीबी, अशिक्षा, असमानता, लैंगिक भेदभाव, धर्म, प्रदूषण, आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक मनोविज्ञान, सामयिक परिस्थितियाँ आदि किन्तु मौलिक रूप से सभी कारकों का गहन अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं कि कमोवेश उक्त सभी एवं अन्य समस्याओं के मूल में जो कारण हैं; वह है अतिशय जनसंख्या वृद्धि अथवा जनसंख्या विस्फोट।

अतः सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम समझ ले कि जनसंख्या होती क्या है या जनसंख्या किसे कहते हैं विभिन्न विद्वानों ने जनसंख्या को परिभाषित किया है जैसे कि ‘‘जीव विज्ञान में, विशेष प्रजाति के अंतः जीव प्रजनन के संग्रह को जनसंख्या कहते हैं।’’[1] वहीं, ‘‘समाजशास्त्र में इसे मनुष्यों का संग्रह कहते हैं।’’[2] एक अन्य परिभाषा के अनुसार ‘‘एक निश्चित भू-भाग पर रहने वाले, एक  ही प्रजाति के जीवों के समूह को अथवा उनकी कुल संख्या जो जनसंख्या कहते हैं।’’ उक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि ‘‘एक तरह से दिखने वाले, कपड़े पहनने वाले, बोलचाल का प्रयोग करने वाले, निश्चित भू-भाग का प्रयोग करने वाले एवं उसी निश्चित प्राकृतिक भू-भाग के प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग, उपयोग एवं दोहन करने वाले मानव समूह को ही जनसंख्या कहते हैं।’’

जनसंख्या, अपने आपमें एक समस्या नहीं है अपितु यदि निश्चित भू-भाग पर रहने वाले और उत्पन्न होने वाले जीवों को अगर सामान्य रूप से मिलने वाले सभी प्रकार के अधिकारों और मूलभूत सुविधाओं, आवश्यकताओं में यदि समान अथवा उचित भाग (अनुपात) की पूर्ति प्रभावित होती है अथवा समान रूप से वितरित नहीं होती है तो वह एक समस्या का रूप ले लेती है। अतः जनसंख्या, जनसंख्या वृद्धि एवं नियंत्रण को एक सापेक्षिक घटना के रूप में देखने की आवश्यकता है, किसी भी घटना को देखने और मंथन करने के लिए उसके सभी पहलुओं को गहनतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है; जिस प्रकार कहा जाता है कि One"s man Poision is another"s man meal, तो जो जनसंख्या कहीं अधिकता के कारण एक समस्या के रूप में विकराल होती जा रही है तो वहीं कहीं जनसंख्या की कमी से कई देश विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं। भारत और चीन जैसे देशों में जहाँ जनसंख्या ने एक समस्या का रूप ले लिया है वहीं यूरोपीय देशों में मानव संसाधन की कमी एक समस्या का रूप ले चुकी है, विश्व के अन्य देशों में भी जहाँ प्राकृतिक एवं मानव निर्मित संसाधन बहुतायत में है वहाँ मानव संसाधन की कमी को महसूस किया जा रहा है। विकसित देशों में तो जनसंख्या नियंत्रण में है परन्तु अविकसित एवं विकासशील देशों में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति या तो आ चुकी है अथवा प्रत्याशित है।

वस्तुतः जनसंख्या विस्फोट की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब जन्म दर एवं जीवन प्रत्याशा अत्यधिक बढ़ जाती है और मृत्युदर अत्यधिक कम हो जाती है। अन्य शब्दों में अगर कहें तो जीवन दर और मृत्युदर के अन्तर (अप्रत्याशित) के कारण ही जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उत्पन्न होती है। जिसके कारण संसाधनों को सम्पूर्ण जनसंख्या के लिए उचित अनुपात में सुगमता से उपलब्ध करा पाने की व्यवस्था एक अत्यन्त जटिल चुनौती के रूप में सामने आती है; जिसके अपने कई आयाम होते हैं, जिसमें कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण मूलभूत आयाम सम्मानपूर्वक जीवन स्तर एवं जीने का, शिक्षा का, भोजन का, चिकित्सा सुविधाओं का, रोजगार का एवं सद्भाव और सौहार्दपूर्ण वातावरण का जैसे आयाम है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में जनसंख्या विस्फोट एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यह कोई तात्कालिक समस्या नहीं है अपितु भविष्य में भी भारत के सतत विकास में यह विभिन्न प्रकार की बाधाओं हेतु उत्तरदायी रहेगी। योजना आयोग ने भी इसी प्रकार का विचार व्यक्त किया है- ‘‘भारत जैसी स्थिति वाले देश की जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि दर का आर्थिक विकास एवं प्रतिव्यक्ति जीवन स्तर पर निश्चित ही विपरीत प्रभाव पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के सामाजिक एवं आर्थिक विभाग के अध्ययन के अनुसार भारत 2027 तक चीन को भी जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ देगा और विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से प्रथम स्थान पर होगा एवं निश्चित रूप से यह स्थिति विभिन्न प्रकार की समस्याओं को अन्तर्निहित करते हुए प्रति व्यक्ति जीवन स्तर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी। डा0 ज्ञानचन्द के शब्दों में- ‘‘द्रुतगति से बढ़ती हुई जनसंख्या भारत के आर्थिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा सिद्ध हो रही है।’’[3]

जनसंख्या की जहाँ तक बात है तो इसकी चर्चा अबुल-फजल के आईने अकबरी और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलती है कौटिल्य के जनसंख्या की चर्चा कर निर्धारण के संदर्भ में की थी। भारत में जनसंख्या नियंत्रण पर बहुत पहले ही बल दिया जाना शुरू हो गया था परन्तु फिर भी हमारा देश 1970 के दशक में जनसंख्या विस्फोट के प्रति सरकार का भी रूझान और बढ़ा। हालांकि इससे पूर्व 1958 में अखिल भारतीय चिकित्सा परिषद में भारत के तत्कालिक चिकित्सा मंत्री डा0 करमाकर ने अपने व्यक्तव्य में भी अपने विचारों को रखा- ‘‘जनसंख्या में असाधारण वृद्धि राष्ट्र के समक्ष गम्भीर समस्या उत्पन्न कर रही है, यह देश के जीवन स्तर को निम्न बना रही है; बेकारी में वृद्धि कर रही है तथा देश के विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रही है। देश की जनसंख्या का स्वास्थ्य, व्यक्तियों के गुण तथा देश का आर्थिक पुनर्रुत्थान इत्यादि चीजें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जनसंख्या की समस्या पर ही आधारित है।’’[4]

वर्तमान में जन्म दर में कमी आयी है एवं हमारा देश भी विकास की ओर प्रगतिशील हुआ है परन्तु अपनी पीठ थपथपाने से पहले हमें यह भी संज्ञान में लेना आवश्यक है कि वह कौन-कौन से कारक थे जिसके कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई। जनसंख्या विस्फोट के लिए उत्तरदायी कारकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कुछ कारक हैंः- 

अशिक्षा

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है और भारत की बहुतायत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जहाँ शिक्षा की उचित व्यवस्था की कमी है। एक अध्ययन के अनुसार कनाडा, फिनलैण्ड, स्लोवरकिया जैसे देश विश्व के सबसे शिक्षित देश है जबकि विश्वपटल पर भारत कई पायदान नीचे है। अशिक्षा एक व्यापक आयाम है जो स्वयं में अन्य कई कारकों को समेटे है जैसे कि अशिक्षा के कारण रोजगार के अवसर अत्यधिक सीमित हो जाते हैं और व्यक्ति गरीबी के दुष्चक्र में फंस जाता है। गरीबी से लड़ने के लिए और परिवार के लिए भोजन की उपलब्धता और जीवन यापन के लिए, कार्य अथवा श्रम की आवश्यकता होती है; तो जितने अधिक सदस्य उतना अधिक आपके सिद्धान्त पर भी जनसंख्या में व्यापक वृद्धि को देखा जा सकता है। इसके अलावा अशिक्षा के कारण व्यक्ति में झिझक होती है और वह परिवार नियेाजन अथवा जनसंख्या नियंत्रण के उपायों के बारे में चर्चा करने में एक शर्म या झिझक महसूस करता है जिससे कि परिवार-नियोजन के आर्थिक और सामाजिक लाभ के महत्वपूर्ण बिन्दुओं की जानकारी से वंचित रह जाता है।

अंधविश्वास

वृहत तौर से अगर देखे तो अंधविश्वास भी कमोवेश अशिक्षा का ही परिणाम है परन्तु यह एक अलग ही आयाम है जनसंख्या विस्फोट में। भारत वर्ष में सन्तान ईश्वर का वरदान माना जाता है और यदि ईश्वर कुछ दे रहे हैं तो उसे अस्वीकार करना पाप की श्रेणी में आता है।

वंश वृद्धि की चाहत

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताकी भावना से ओत-प्रोत होते हुए भी हमारा देश एक पुरुष प्रधान देश है जहाँ महिलाओं का सम्मान तो होता है परन्तु प्रधानता पुरुष की ही होती है। अतः कई बार पुत्र की प्राप्ति की चाहत में व्यक्ति परिवार-नियाजन के उपायों को अपनाने से कतराते हैं जिसके फलस्वरूप भी जनसंख्या में वृद्धि होती है। हालांकि विज्ञान (चिकित्सा) में हुई क्रांति के कारण यह सुलभ था कि मां के गर्भ में ही पता लगाया जा सके कि संतान पुत्र है अथवा पुत्री परन्तु भ्रूण हत्या के रूप में जो परिणाम सामने आये उसके कारण सरकार को इस पर कठोर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा और एक महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दूसरे लक्ष्य को समाप्त करना पड़ा।

राजनीतिक कारण

भारत एक महान लोकतांत्रिक देश रहा है और सदैव से सर्व धर्म सम्भाव के सिद्धान्त को ही अपनाया है। यहाँ सभी धर्मों, सम्प्रदायों और पंथों के लोग निवास करते हैं जिनकी अपनी धार्मिक मान्यताएं हैं जिसके आधार पर भी जनसंख्या वृद्धि को समझा जा सकता है।

सरकार की गलत नीतियाँ

समय-समय पर सरकार जनसंख्या नियंत्रण एवं भ्रूणहत्या जैसे अहम मसलों पर नीतियाँ बनाती और लागू कराती रहती है परन्तु वही नीतियाँ कभी-कभी एक अन्य समस्या का कारण बन जाती है जैसे कि प्रथम संतान के जन्म के समय सरकार 6000 रू0 का प्रोत्साहन देती है परन्तु दूसरे संतान के समय भी प्रोत्साहन राशि वही रहती है जबकि अन्य देशों जैसे नीच में दूसरे या अधिक संतान होने पर सरकार के नियम अधिक कठोर हैं। हालांकि सरकार ने इस प्रकार की नीतियों पर अब विशेष बल दिया है कि जनसंख्या नियंत्रण करने वाले दम्पत्ति को प्रोत्साहित किया जा सके।

इस प्रकार हम देखते हैं कि जनसंख्या विस्फोट के लिए उत्तरदायी कारणों ने स्वयं अपने में कई अन्तर्निहित समस्याओं को छुपा रखा है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देश के सतत विकास में निरन्तरता नहीं आने देते हैं। अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि अथवा जनसंख्या विस्फोट के परिणामों पर अगर चर्चा करें तो हम पाते हैं कि इससे जीवन स्तर में गिरावट आती है, देश के संसाधनों पर भी दबाव निरन्तर बढ़ता चला जाता है चाहे वे प्राकृतिक संसाधन हो या मानव निर्मित संसाधन, गरीबी का दुष्चक्र प्रारम्भ हो जाता है, असंतोष की भावना प्रबल होने से मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ता है जिससे अशांति फैलती है (अफवाहों की बहुलता) और सबसे व्यापक प्रभाव होता है मानवता, भाईचारे, सहयोग और निस्वार्थता की भावना का हर प्रकार से हृास होता है।

उपरोक्त एवं अन्य कई दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए ही सरदार पटेल ने संविधान सभा में विधेयक रखा था जिसके कारण कि वर्ष 1948 में जनसंख्या कानून बना। वर्ष 1951 में भारत की जनसंख्या 36.1 करोड़ थी जो 2011 में 121 करोड़ हो चुकी थी वर्तमान में 132 करोड़ है यह विश्व की कुल जनसंख्या की 17% जनसंख्या है; इसमें सर्वाधिक जनसंख्या युवाओं की है और युवा जनसंख्या किसी भी देश के लिए एक सम्पत्ति होती है जो पूर्ण रूप से ऊर्जावान होती है और किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में पूर्णतः सक्षम होती है। यही कारण है कि भारत को युवा भारतकी संज्ञा से भी बुलाया जाता है। लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री जी ने भी युवाओं से लगातार आह्वान किया है कि सभी साथ आये और भारत को जनसंख्या विस्फोट जैसी समस्या से लड़ने में सरकार का सहयोग करें। ‘‘माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने उन परिवारों को राष्ट्रभक्त की भी संज्ञा दी जो अपने परिवार की जनसंख्या (सदस्यों की संख्या) को नियंत्रित रखते हैं; उनके राष्ट्रभक्त कहने का सीधा अर्थ यही है कि सरकार बिना किसी दबाव के अपने नागरिकों से चाहती है कि वे Volenteerly (वालेंटियरली)। स्वयं स्वेच्छा से जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को अपना करके देश के विकास में अपना योगदान सुनिश्चित करें।’’[5]

जनसंख्या विस्फोट की समस्या से लड़ने और भविष्य में इस नाम की सुरक्षा मुँह न खोले इसके लिए सभी को कुछ साधारण से प्रयास करने की आवश्यकता है जिसमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैः-

1.   कौशल विकास की आवश्यकता

2.   शिक्षा की सुगम उपलब्धता

3.   यौन शिक्षा के लिए जागरूकता

4.   जनसंख्या नियंत्रण उपायों के प्रति सभी को जागरूकता

5.   महिला सशक्तिकरण

6.   अंधविश्वास के विरूद्ध अभियान

7.   लिंग-भेद के प्रति जागरूकता

उपरोक्त सरल उपायों/सुझावों को अपना कर और क्रियान्वयन में लाकर निश्चित तौर पर जनसंख्या की अनियंत्रित वद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है। भारत सरकार द्वारा लागू किये गये जनसंख्या नियंत्रण के कारकों का परिणाम भी अब वर्तमान में दृष्टिगोचर होने लगा है, नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रजनन दर जो 2016 में 2.2 थी 2000 में बढ़कर 3.2 हो गयी थी परन्तु 2022 में पुनः यह 2.159 तक आ चुकी है जो 2021 से 0.92 प्रतिशत कम रही। इसके अलावा भारत सरकार ने जो महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया है उसका परिणाम है कि महिलाएं भी अब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही हैं वहीं उनका रुझान नौकरी और आय का स्रोत बनने की ओर हुआ है जिससे कि विवाह में देरी हो रही है और आने वाली पीढ़ी को वह भी एक सुदृढ़ भविष्य देने हेतु अपनी क्षमतानुसार प्रयास कर देश की प्रगति में महती भूमिका का निर्वहन कर रही हैं। वर्तमान में सरकार और देश की जागरूक जनसंख्या इस ओर अग्रसर भी है कि भारत को हर प्रकार से विश्व पटल पर एक योग्य स्थान प्राप्त  हो सके, एवं जनसंख्या, जो कि प्रायः सभी समस्याओं की जड़ है, पर नियंत्रण करके इस लक्ष्य की प्राप्ति शीघ्र भविष्य में सम्भावित प्रतीत होती है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1.   एचआई.एम.विकिपीडिया.ओआरजी

2.   एचआई.एम.विकिपीडिया.ओआरजी

3.   प्रो0 (डा0) सिंह गोपी रमण प्रसाद, भारत में सामाजिक व्याधिकी, अग्रवाल प्रकाशन- आगरा, 2015, पेज-222.

4.   प्रो0 (डा0) सिंह गोपी रमण प्रसाद, भारत में सामाजिक व्याधिकी, अग्रवाल प्रकाशन- आगरा, 2015, पेज-222.

5.   डीडी न्यूज, एचडी, आमने-सामने विशेष बहस-जनसंख्या विस्फोट, अगस्त 18, 2019.