Multidimensional Aspects of Geography
ISBN: 978-93-93166-30-2
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बुण्डू प्रखंड का भौगोलिक अध्ययन (A Geographical Study of Bundu Block)

 रोहित कुमार चौबे
शोध छात्र
भूगोल विभाग
रांची विश्वविद्यालय
 रांची, झारखण्ड, भारत 

DOI:
Chapter ID: 17739
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सारांश

        भूगोल किसी क्षेत्र के भौगोलिक अध्ययन की विशेषता रखता है जिससे उस क्षेत्र की समग्रता का ज्ञान होता है इतना ही नहीं वर्त्तमान परस्परावलंबन युग में क्षेत्र के नियोजन एवं विकास में इसकी स्पष्ट भागीदारी परिलक्षित होती है। बुण्डू प्रखंड झारखंड राज्य के राँची जिला अंतर्गत एक महत्वपूर्ण प्रखंड का दर्जा प्राप्त किए हुए है, प्रस्तुत अध्याय इसी प्रखंड के भौतिक एवं मानवीय पहलूओं पर प्रकाश डालता है, द्वितीयक आँकड़ों की सहायता से प्रखंड का भौगोलिक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है बुण्डू को न केवल प्रखंड यद्यपि अनुमंडल का भी दर्जा प्राप्त है, 2011 की जनगणना के अनुसार बुण्डू प्रखंड अपने मंे 88 गाँवों व 01 संवैधानिक नगर को समाहित करते हुए 82975 आबादी वाला प्रखंड है।

मुख्य शब्द: प्रखंड, गाँव, जनजाति, क्षेत्र

प्रस्तावना :

       बुण्डू प्रखंड भारत के झारखण्ड राज्य के राँची जिला अंतर्गत अवस्थित है। इसका अक्षांशीय एवं देशांतरीय विस्तार क्रमशः 2309’ उत्तर से 23016’ उत्तर एवं 85035’ पूर्व से 85059‘ पूर्व है तथा समुद्र तल से औसत ऊँचाई 650 मीटर है। प्रखंड में कुल गाँव की संख्या 88 है एवं 01 संवैधानिक नगर है। बुण्डू का वास्तविक नाम बुँङू है जो बू+ऊँङू शब्द से बना है, स्थानीय भाषा में बू का अर्थ पानी तथा ऊँङू का अर्थ छेद है। यह क्षेत्र पश्चिम में राजधानी शहर राँची से तैमारा घाटी द्वारा अलग है तथा पूर्व में दलमा शृंखलाद्वारा लौह नगरी जमशेदपुर से अलग है। उत्तर में राहे एवं सोनाहातु प्रखंड, दक्षिण में खूँटी जिला, पूर्व में तमाड़ प्रखंड, पश्चिम में नामकुम प्रखंड द्वारा घिरा हुआ है यद्यपि यह क्षेत्र राँची पठार के अंतर्गत आता है अतः यहाँ कई सारे पठार देखने को मिलते है जिनका आर्विभाव हिमालय के तीन क्रमबद्व उत्थान से जुड़ा हुआ है।

विषय विश्लेषण:

स्थलाकृतिक मानचित्र क्रमांक-73म्ध्12 के आधार पर बुण्डू प्रखंड के भौगोलिक अध्ययन हेतु निम्नलिखित भौतिक एवं मानवीय तथ्यों का विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है:


उच्चावच:

       बुण्डू के वर्त्तमान उच्चावच की रूपरेखा की रचना में तृतीय कल्प की भौगोलिक हलचल का महत्वपूर्ण योगदान है। यह क्षेत्र राँची पठार का हिस्सा है तथा भूगोलविद् एस.पी. चटर्जी महोदय ने इस क्षेत्र को ‘पँचपरगना क्षेत्र‘ की संज्ञा दी है। टर्शियरी काल से पूर्व यह संपूर्ण क्षेत्र समप्राय मैदान में परिणत हो चुका था परंतु टर्शियरी काल में हुए हिमालय के तीन क्रमबद्ध उत्थानों ने इस क्षेत्र पर भी अपना प्रभाव डाला तथा यह क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 600 मीटर ऊँचा उठ गया इतना ही नहीं आर्कियन युगीन ग्रेनाइट व नीस चट्टानें (जो मेग्मा निर्मित है एंव बैथोलिथ का उदाहरण प्रस्तुत करती है) धरातल पर पठार के रूप में दृष्टिगोचर होने लगी इसके उदाहरण संपूर्ण क्षेत्र में देखे जा सकते है। पश्चिम में यह क्षेत्र स्कार्पमेंट (कगार) द्वारा राँची शहर से पृथक है जो तैमारा घाटी के नाम से जाना जाता है तथा इसके पूर्व में प्री कैम्ब्रियन युगीन लावा उद्गार से बना दलमा शृखंला अवस्थित है। स्थलाकृतिक मानचित्र से ज्ञात होता है कि क्षेत्र का उत्तर-पश्चिमी हिस्सा तुलनात्मक रूप से अधिक ऊँचा है जहाँ से 500 मीटर से 540 मीटर तक की समोच्च रेखा गुजरती है तथा BM क्रमशः 442, 448 व 527 मिलता है, यहाँ के पठारों में हुमटा पहाड़ (570 मीटर), बानाबुरू (510 मीटर) शामिल है। 

अपवाह:

      अपवाह निश्चित जलमार्ग द्वारा जल के बहाव को प्रदर्शित करता है। बुण्डू प्रखंड के स्थलाकृतिक मानचित्र के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यह पठारी क्षेत्र दोआब क्षेत्र का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसके उत्तर में काैंचा नदी इसकी उत्तरी सीमा बनाती है वहीं दक्षिण में काँची नदी इसकी दक्षिणी सीमा बनाती है। क्षेत्र का ढाल पश्चिम से पूर्व होने के कारण अपवाह भी पूर्व दिशा की ओर है, काँची नदी इस क्षेत्र की प्रमुख नदी है जो नामकुम प्रखंड से निकलती है एवं सिली प्रखंड के मुरी नामक स्थान के पास स्वर्णरेखा नदी से मिल जाती है। काँची नदी के द्वारा बुण्डू प्रखंड के पानसाकाम गाँव में 130 फीट ऊँचे जल प्रपात का निर्माण किया गया है जो दशम जलप्रपात के नाम से विख्यात है। अन्य नदियों में अरा नदी, शयसा नदी, तीरूली नदी शामिल है जो अंत मंे काँची नदी में अपना जल विसर्जित कर काँची की सहायक बन जाती है वास्तव में यह संपूर्ण क्षेत्र स्वर्णरेखा नदी बेसिन का हिस्सा है।

जलवायु:

       बुण्डू प्रखंड की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी प्रकार की है, ऋतु के दृष्टिकोण से यहाँ ग्रीष्म ऋतु (मार्च-जून), वर्षा ऋतु (जून-अक्टूबर), शीत ऋतु (नवम्बर-फरवरी) का प्रभाव रहता है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ का अधिकतम तापमान 400 से. से अधिक चला जाता है तथा मई सबसे गर्म माह होता है,वर्षा ऋतु में यहाँ मानसूनी वर्षा होती है वर्षा ऋतु में वार्षिक वर्षा का 80 प्रतिशत पानी बरस जाता है। शीत ऋतु में न्यूनतम तापमान 10.30 से. मापा गया है तथा दिसंबर सबसे ठंडा माह होता है। शीत ऋतु में यह क्षेत्र लौटती हुई मानसून एवं पश्चिमी विक्षोभ से वर्षा प्राप्त करता है। कोपेन जलवायु वर्गीकरण के अनुसार यह क्षेत्र उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु के अंतर्गत आता है जिसमें शुष्क शीत ऋतु होती है।

मृदा एवं वनस्पति:

       लाल मृदा इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण मृदा है साथ ही साथ यहाँ नदी के तटवर्ती क्षेत्रों में जलोढ़ मृदा का विकास हुआ है, जिससे इस क्षेत्र में धान, गेहूँ, चना जैसे फसलों की खेती सुगमता से की जाती है। यहाँ चिकनी मिट्टी, दोमट मिट्टी पाई जाती है। जिसे स्थानीय भाषा में क्रमशः चीटा एवं चरका कहा जाता है। टाँड (उच्च भूमि) को दिहार एवं दोन (निम्न भूमि) को बहियार कहा जाता है। यह प्रखंड उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन क्षेत्र के अंतगर्त आता है यहाँ साल, महुआ, पलाश, बाँस, जामुन महत्वूपर्ण वृक्ष है जिनका प्रयोग औषधि, फर्नीचर, निर्माण कार्य आदि के लिए किया जाता है। प्रखण्ड के पश्चिमी हिस्से में वन का सर्वाधिक विस्तार हुआ है। जहाँ खुला वन, साल के साथ घना वन, संरक्षित वन मिलते हैं।

जनसंख्या:

       जनसंख्या से तात्पर्य क्षेत्र में लोगों के बसाव से है। 2011 की जनगणना के अनुसार बुण्डू प्रखंड की कुल जनसंख्या 82975 है जिसमें पुरूष 42273 एवं महिलाएँ 40702 है। कुल परिवारों की संख्या 18376 है। वर्ष 0-6 आयु के बच्चों की जनसंख्या 11557 है। प्रखंड में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 6008 (पुरूष 3037 एवं महिला 2971) एवं अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 39928 (पुरूष 20162 एवं महिला 19766) है। यहाँ कुल श्रमिकों की संख्या 37182 है जिसमें पुरूष 22606 एवं महिलाएँ 14576 सम्मिलित है। प्रखण्ड के कुल 88 गाँवो में से सर्वाधिक जनसंख्या वाल गाँव ताउ (Tau) है यहाँ कुल 3672 आबादी निवास करती है जिसमें पुरूष 1978 एवं महिलाएँ 1694 है वही तीसरो एक ऐसा गाँव है जो जनसंख्या की दृष्टि से निर्जन है। लिंगानुपात किसी क्षेत्र की जनसंख्या में पुरूष एवं महिला के अनुपात को दर्शाता है बुण्डू प्रखंड का लिंगानुपात 962 है अर्थात यहाँ प्रति हजार पुरुषों पर 962 महिलाएँ है तथा अशोधित साक्षरता दर 59.08 प्रतिशत है।

अधिवास:

       मानव द्वारा निर्मित आवासों का संगठित समूह ‘अधिवास‘ कहलाता है अर्थात अधिवास मानव के बसाव का प्रतिनिधित्व करती है ग्रामीण अधिवास का तात्पर्य प्राथमिक कार्यो में संलग्न लोगों की आश्रय स्थली से है जो अपने पेशे के अनुरूप इन्हें निर्मित करते है, इसी आश्रय स्थली को गाँव‘ कहा जाता है जिसे ग्रामीण अधिवास के नाम से भी संबोधित किया जाता है बुण्डू प्रखंड पठारी क्षेत्र है अतः यहाँ सघन एवं प्रकीर्ण दोनों प्रकार के अधिवास प्रतिरूप  मिलते है बुण्डू नगर पंचायत जहाँ सघन अधिवास का क्षेत्र है वही प्रखंड का तीसरों गाँव अधिवास शून्य हैं। प्रखंड में 25.66 प्रतिशत पक्के, 66.84 प्रतिशत अर्द्ध पक्के तथा 7.45 प्रतिशत अधिवास कच्चे अधिवास है। प्रखंड में 39.97 परिवारों के पास भोजन बनाने के लिए अलग से पाकशाला (किचन) है तथा 60.04 प्रतिशत परिवार ऐसे है जिसके पास किचन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। 92.2 प्रतिशत परिवार (हाउसहोल्ड) भोजन बनाने हेतु आज भी जलावन लकड़ी का उपयोग करते है मात्र 1.45 प्रतिशत एल.पी.जी का प्रयोग करते है, शौचालय सुविधा के दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रखंड में मात्र 16.65 प्रतिशत परिवार के पास ही अपना शौचालय है शेष 83.35 प्रतिशत परिवार खुले में शौच वाले है, 83.06 प्रतिशत परिवारों के पास जलनिकास की कोई सार्थक व्यवस्था नहीं है। प्रखंड के मात्र 38.95 प्रतिशत परिवार ही प्रकाश हेतु विद्युत (इलेक्ट्रिसिटी) का प्रयोग करते है 60.39 प्रतिशत परिवार आज भी केरोसिन का प्रयोग करते है।

सांस्कृतिक विन्यास:

       बुण्डू प्रखंड पंचपरगना क्षेत्र के अंतगर्त्त आता है। पंचपरगना का अर्थ पाँच प्रशासनिक इकाईयों से मिल कर बना क्षेत्र है। यह क्षेत्र जनजाति बहुल क्षेत्र है यहाँ मुंडा व उराँव जनजाति की बहुलता मिलती है इसके साथ ही अन्य जातियों में महतो, कुर्मी, लोहार, ब्राह्मण, कुम्हार इत्यादि शामिल है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषा पंचपरगनिया है (55.12ः) तथा द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर क्रमशः मुंडारी (27%) एवं हिंदी  (7.44%) है। जनसंख्या का 61.72% हिस्सा हिन्दु धर्मावलंबी की है तथा 34.03 प्रतिशत हिस्सा सरना धर्म को मानने वाले है तथा इसाई व मुस्लिम एक-एक प्रतिशत के साथ बने हुए है।

निष्कर्ष:

       उपरोक्त तथ्यों के अध्ययन से ज्ञात होता है बुण्डू प्रखंड एक जनजाति बहुल क्षेत्र है इसकी अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक गतिशीलता है जो इसे अनूठी बनाती है, क्षेत्र पठारों व कगार से घिरा है, 88 गाँव व 01 नगर पंचायत के साथ यह प्रखंड वर्त्तमान में विकास की तेजी दर से गुजर रहा है, राष्ट्रीय राजमार्ग 33 के यहाँ से गुजरने के कारण क्षेत्र काफी लाभान्वित रहा है साथ ही पर्यटन की दृष्टि से आगामी वर्षो में यह क्षेत्र महत्वपूर्ण स्थान रखेगा यद्यपि आज भी कई गाँव विकास के सफर में पीछे है इन्हें मुख्य धारा से जोड़ने का भगीरथ प्रयास होना चाहिए अनुमंडल होने के कारण इस क्षेत्र का समुचित विकास होना अभी बाकी है। 


संदर्भ ग्रंथ:

1. कुमार, शि. (2015),झारखंण्ड का सामान्य भूगोल, एस.एस.पब्लिशर्स, राँची।

2. तिवारी, रा.कु. (2019),झारखण्ड का भूगोल, बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी, पटना।

3. महतो, भू.कु. (2003),झारखण्ड एक अध्ययन, साहित्य भवन, आगरा।

4. एडमिनिस्ट्रेटिव एटलस झारखण्ड (2011), वॉल्यूम-2, डायरेक्टर ऑफ सेन्सस ऑपरेशन्स,झारखण्ड।

5. डिस्ट्रिक्ट सेन्सस हेडबूक राँची (2011), विलेज एंड टाउन वाइज प्राइमेरी सेन्सस एब्सट्रेक्ट, डायरेक्टरेट ऑफ सेन्सस ऑपरेशन्स, झारखण्ड।

6. स्थलाकृतिक मानचित्र, 73म्ध्12 (2009), ऑपन सीरीज मैप, सर्वे ऑफ इंडिया, देहरादून, उत्तराखंड।