भारत में भ्रष्टाचार निवारण : संवैधानिक और संस्थागत ढांचा
ISBN: 978-93-93166-00-5
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भ्रष्टाचार: समस्या एवं समाधान

 डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष
समाजशास्त्र विभाग
बैसवारा पी0जी0 कॉलेज
 लालगंज, रायबरेली उत्तर प्रदेश, भारत  

DOI:
Chapter ID: 17837
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विश्व में भ्रष्टाचार मुक्त देश कोई नहीं है। कहीं भ्रष्टाचार कम है तो कहीं बहुत ज्यादा। भारत भी भ्रष्टाचार की समस्या से जूझ रहा है। भारत में लोक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एक गम्भीर समस्या है। कौटिल्य का कहना था ‘‘सार्वजनिक कर्मचारियों द्वारा सरकारी धन का दुरूपयोग न करना उसी तरह असंभव है जिस तरह की जीभ पर रखे शहद को न चखना। जिस प्रकार पानी में तैरती मछली कब दो बूंद पानी पी लेती है, पता ही नहीं चलता। उसी प्रकार सार्वजनिक धन के साथ कर्मचारी करते हैं।

भ्रष्टाचार व्यक्ति की किसी मनोवृत्ति या गुण का नाम न होकर भ्रष्ट आचरण का परिचायक है जो भ्रष्ट माना जाता है। शाब्दिक दृष्टि से भ्रष्टाचारव्यक्ति के उस आचरण को कहते हैं जो सामाजिक रूप से उसके अपेक्षित व्यवहार प्रतिमानों से हटकर हैं। अंग्रेजी भाषा में इसे Corruption कहते हैं। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के Corrutus से हुयी है, जिसका अर्थ तौर-तरीके और नैतिकता के आदर्शों का टूट जाना है।

समाजशास्त्रीय अर्थ में भ्रष्टाचार लोकजीवन में प्रतिष्ठित व्यक्ति का वह आचरण है जिसके द्वारा वह अपने निजी स्वार्थ या लाभ के लिये अपने पद या सत्ता का दुरूपयोग करता है।

भ्रष्टाचार निरोध समिति, 1964 के अनुसार, ‘‘शब्द के व्यापक अर्थ में एक सार्वजनिक पद (office) अथवा जनजीवन में उपलब्ध एक विशेष स्थिति (Position) के साथ संलग्न शक्ति तथा प्रभाव का अनुचित या स्वार्थपूर्ण प्रयोग ही भ्रष्टाचार है।

इलियट व मैरिल के अनुसार ‘‘प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष लाभ प्राप्ति हेतु जान-बूझकर निश्चित कर्तव्य का पालन न करना ही भ्रष्टाचार है।

भारतीय दण्ड विधान की धारा 161 के अनुसार, ‘‘कोई भी सार्वजनिक कर्मचारी वैध पारिश्रमिक के अतिरिक्त अपने या किसी दूसरे व्यक्ति के लिये जब कोई लाभ इसलिए लेता है कि सरकारी निर्णय पक्षपातपूर्ण ढंग से किया जाये तो यह भ्रष्टाचार है तथा इससे सम्बन्धित व्यक्ति भ्रष्टाचारी है।

अतः प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के लिए जान-बूझकर प्रदत्त कर्तव्य का पालन न करना एवं व्यक्तिगत लाभ के लिए कानून एवं समाज के विरोध में किया जाने वाला कार्य ही भ्रष्टाचार है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से भारत में राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों द्वारा भ्रष्टाचार के द्वारा अत्यधिक धन का संग्रहण किया है। केन्द्र सरकार के पांच मंत्रालय-रक्षा, रेलवे, पेट्रोलियम, ऊर्जा संचार तथा पी.डब्ल्यू.डी. भ्रष्टाचार के लिये कुख्यात रहे हैं। इनका वार्षिक बजट अरबों रुपयों का होता है। जिसका कुछ हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। लोक निर्माण, आबकारी, पुलिस, उत्पाद शुल्क तथा राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है। इसमें भ्रष्टाचार ऊपर से लेकर नीचे तक फैला हुआ है। न्यायालय भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है।

ट्रांसपेरेंसी इण्टरनेशनल द्वारा जारी वर्ष 2020 की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार 180 देशों की सूची में भारत का स्थान 86वें नम्बर पर है। इस सूची में डेनमार्क और न्यूजीलैण्ड सबसे कम भ्रष्टाचार वाले देश हैं जबकि दक्षिणी सूडान एवं सोमालिया सबसे अधिक भ्रष्टाचारी देश हैं। रिपोर्ट देशों को ‘‘अत्यधिक भ्रष्ट’’ से ‘‘भ्रष्टाचार मुक्त’’ के बीच 0 से 100 के पैमाने पर रैंकिंग करती है। डेनमार्क और न्यूजीलैण्ड दोनों को इस वर्ष समान अंक 88 मिले हैं। इनके बाद फिनलैंड, सिंगापुर, स्वीडन और स्विट्जरलैण्ड का स्थान है जिसमें सभी ने 85 अंक प्राप्त किये हैं। भारत 40 अंक के साथ 86वें स्थान पर है। दक्षिणी सूडान और सोमालिया 12 अंकों के साथ सबसे निम्न स्थान पर रहे।

भ्रष्टाचार सार्वजनिक व्यय को आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं से दूर कर देता है। वे देश जहां भ्रष्टाचार का स्तर अधिक होता है वहां पर न तो आर्थिक विकास पर ध्यान दिया जाता है और न ही स्वास्थ्य सेवाओं पर पर्याप्त खर्च किया जाता है।

इस बार के मापदंडों में कोविड-19 महामारी से निपटने के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर विशेष जोर दिया गया। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की अध्यक्ष डेलिया फरेरा रूबियो ने कहा ‘‘कोविड-19 सिर्फ स्वास्थ्य और आर्थिक संकट नहीं है यह भ्रष्टाचार संकट भी है जिससे हम फिलहाल निपटने में असफल रहे हैं।’’

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में प्रमुख भ्रष्टाचार घोटाले-

जीप घोटाला 1948- यह स्वतन्त्र भारत का यह पहला घोटाला था। सेना के लिये 1500 जीपों के क्रय हेतु लन्दन स्थित एक कम्पनी से सौदा किया गया था, लेकिन 1949 तक सिर्फ 155 जीपें आयीं। इसमें भी ज्यादातर जीपें तय मानक पर खरी नहीं उतरीं। जांच में ब्रिटेन स्थित उच्चायुक्त कृष्ण मेनन पर आरोप लगे थे।

मूँदड़ा कांड 1958- इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी ने जीवन बीमा निगम (L.I.C.) पर दबाव डालकर हरिदास मूंदड़ा की कम्पनी के शेयर ऊँचे दाम पर खरीदवाये थे। इससे एलआईसी को लगभग 50 लाख रुपये का नुकसान हुआ था।

कैरों प्रकरण 1964- पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों पर पद का दुरूपयोग कर अकूत सम्पत्ति अर्जित करने का मामला सन् 1964 में उठा। न्यायमूर्ति एस.आर. दास की जांच में दोषी पाये जाने के बाद उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा।

बोफोर्स घोटाला 1987- राजीव गांधी के जमाने में बोफोर्स तोप की खरीददारी में 64 करोड़ रुपये की दलाली लेने का मामला 1987 में प्रकाश में आया।

तेलगी घोटाला 1991- इसमें धोखेबाज अब्दुल करीम तेलगी द्वारा जाली स्टैम्प पेपरों को छापकर बैंक बीमा कम्पनियों को बेंचकर लगभग 200 करोड़ की कमाई की गई।

प्रतिभूति घोटाला 1992- इसमें हर्षद मेहता द्वारा बैंकों तथा शेयर बाजार में हेराफेरी कर कृत्रिम रूप से शेयरों के मूल्य बढ़ाकर घोटाला किया गया।

संचार घोटाला 1995- नरसिम्हा राव सरकार के संचार मंत्री सुखराम पर टेंडरों में अनियमितता का आरोप लगा। सी.बी.आई. के छापे में उनके निवास से करोड़ों रुपये की नकदी बरामद की गयी।

पशुपालन चारा घोटाला 1996- यह घोटाला बिहार में हुआ। इसमें पशुपालन विभाग के द्वारा पशुओं के लिये चारे, मशीन आदि खरीदे जाने में लगभग 600 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को त्याग पत्र देने के लिये बाध्य होना पड़ा था। बाद में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

मधु कोड़ा घोटाला 2009- इस घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने झारखण्ड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर 4000 करोड़ रुपये की अनुमानित धनराशि का धन शोधन का आरोप लगाया था।

सत्यम घोटाला 2009- यह कारपोरेट घोटाला सत्यम कम्प्यूटर के चेयरमैन रामलिंगा राजू द्वारा कम्पनी के खातों में हेरफेर के द्वारा किया गया।

राष्ट्र मण्डल खेल घोटाला 2010- राष्ट्र मण्डल खेल 2010 के आयोजन में लभग एक लाख करोड़ रुपये खर्च हुए। इसमें लगभग 40 प्रतिशत धनराशि दलाली की भेंट चढ़ गयी। इसमें आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर अनेक गम्भीर आरोप लगे।

2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला 2010- यह घोटाला मोबाइल फोन के 2 जी लाइसेंस के आवंटन से सम्बन्धित था। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के अनुसार घोटाला लगभग 1,76,000 करोड़ रुपये का जबकि सी.बी.आई. के अनुसार मात्र 30,984 करोड़ रुपये का था। इसमें सी.बी.आई द्वारा तत्कालीन संचार मंत्री ए. राजा तथा कनिमोझी के विरूद्ध आरोप पत्र दाखिल किये गये।

शारदा समूह चिट फण्ड घोटाला 2013- इस घोटाले में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, के 10 लाख से अधिक निवेशकों को शारदा समूह कम्पनी में अपनी जमा करोड़ों रुपये की धनराशि से वंचित होना पड़ा।

विजय माल्या प्रकरण 2015- विभिन्न बैंकों के 9000 करोड़ रुपये के लोन डिफॉल्ट मामले में कई जांच शुरू होने के बाद मुख्य आरोपी विजय माल्या अदालत द्वारा भगोड़ा घोषित कर दिया गया।

पी.एन.बी. घोटाला 2018- नीरव मोदी और उनके मामा मेहुल चौकसी ने लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के जरिये पंजाब नेशनल बैंक में 11300 करोड़ रुपये का घोटाला किया।

भ्रष्टाचार के कारण-

भ्रष्टाचार के अभ्युदय के अनेक कारण हैं। भ्रष्टाचार का मुख्य कारण राजनीतिज्ञों में भ्रष्टाचार का पाया जाना है। स्वतन्त्रता के बाद दो दशकों तक राजनीतिक अभिजात वर्ग ईमानदार, समर्पित व राष्ट्रवादी था किन्तु बाद में राजनीतिज्ञों एवं नौकरशाहों ने अपने पद और शक्ति का दुरूपयोग अवैध लाभों के लिये प्रारम्भ किया।

प्रजातन्त्र में दलीय प्रणाली महत्वपूर्ण है। चुनाव के समय दल को समर्थन देने वाले व्यक्ति या व्यवसायिक संगठन चुनाव के उपरान्त सरकार में सम्मिलित दल से अपने हितों के अनुरूप कार्य करवाते हैं। सत्ता बनाये रखने के लिए राजनीतिक दल सभी प्रकार के उचित व अनुचित कदम उठाते हैं जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

अनेक भ्रष्ट अधिकारी कुछ कमाई वाले पदों पर नियुक्ति कराने के लिए बड़ी धनराशि का भुगतान करते हैं और वहां पर नियुक्त होने के उपरान्त खूब भ्रष्टाचार करते हैं।

सरकार की आर्थिक नीतियों से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। हाल में अधिकतर घोटाला उन क्षेत्रों में हुए हैं जहां क्रय नीति या मूल्य सरकार के नियन्त्रण में है। उर्वरक, चीनी, तेल, सैन्य-सामग्री, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्पेक्ट्रम आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।

भ्रष्टाचार वस्तुओं के अभाव अथवा कमी से भी होता है। जब आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में कमी होती है तो व्यापारी वर्ग या शासक वर्ग इसका लाभ उठाने का प्रयास करता है।

प्रशासनिक कमजोरियों से भ्रष्टाचार पनपता है। प्रशासनिक उदासीनता, नियमों में अस्पष्टता, निरंकुशता अधिकारियों को भ्रष्ट होने का अवसर प्रदान करने के साथ भ्रष्टाचार करने के बाद भी अधिकारी मुक्त रहते हैं। सरकारी कार्यालय में अत्यधिक विलम्ब होने पर लाभार्थी थककर, परेशान होकर रिश्वत देने के लिए बाध्य होता है।

आजकल बढ़ता हुआ भौतिकवाद एवं उपभोक्तावादी संस्कृति भी भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी है। लोग तरह-तरह की भौतिक सुविधाओं की प्राप्ति के लिये धनार्जन हेतु भ्रष्ट तरीके अपनाने से भी परहेज नहीं करते हैं। आज देश में चरित्र एवं नैतिकता का संकट है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।

न्यायिक उदासीनता, विलम्बित न्याय प्रणाली भी भ्रष्टाचार के लिये उत्तरदायी है।

भ्रष्टाचार रोकने हेतु सरकार द्वारा किये गये प्रयास-

देश में भ्रष्टाचार को रोकने के लिये आजादी के बाद से प्रयास आरम्भ हो गये। सन् 1947 में भ्रष्टाचार निवारण कानून पास किया गया। 1953 में आचार्य कृपलानी की अध्यक्षता में रेलवे भ्रष्टाचार जांच कमेटी निर्मित की गयी।

तत्कालीन गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री कस्तूरीरंगा संथानम की अध्यक्षता में एक भ्रष्टाचार निरोधक समिति का गठन 1962 में किया गया था। इस संथानम समिति ने मार्च 1964 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही केन्द्रीय सरकारी  और अन्य कर्मचारियों के विरूद्ध भ्रष्टाचार के मामलों को देखने के लिए 1964 में केन्द्रीय सतर्कता आयोग C.V.C. (Central Vigilance Commission) की स्थापना की गयी थी। केन्द्र सरकार ने निम्नलिखित चार विभागों की स्थापना भ्रष्टाचार विरोधी उपायों के अन्तर्गत की है।

1. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में प्रशासनिक सतर्कता विभाग

2. केन्द्रीय जांच ब्यूरो CBI-Central Bureau of Investigation

3. राष्ट्रीय बैंकों/सार्वजनिक उपक्रमों/मंत्रालयों/विभागों में घरेलू सतर्कता इकाईयां और

4. केन्द्रीय सतर्कता आयोग C.V.C.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्सनामक संस्था द्वारा वर्ष 1999 में दायर की गई याचिका पर 3 मई, 2002 को उच्चतम न्यायालय ने यह निर्देश दिया कि किसी भी चुनाव में प्रत्याशी को अपने बारे में कुछ खास जानकारी जैसे आपराधिक रिकार्ड (यदि कोई हो), सम्पत्ति का विवरण, शैक्षिक विवरण आदि देनी होगी।

1993 में वोहरा कमेटी की रिपोर्ट में अपराधियों एवं भ्रष्टाचारी नेताओं और नौकरशाहों में गठजोड़ की जांच की गई थी। इस समिति ने देश में भ्रष्टाचार के लिये राजनीति के अपराधीकरण को जिम्मेदार ठहराया    था।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988-

भारत में भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों के बीच भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम- 1988 सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इसके द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1947 के प्रावधानों, भारतीय दण्ड संहिता तथा अपराध प्रक्रिया संहिता एवं अपराधिक विधि अधिनियम 1952 की कुछ धाराओं को एक साथ मिला दिया गया। इस अधिनियम ने लोकसेवकशब्द की परिधि का विस्तार कर दिया तथा बड़ी संख्या में कर्मचारियों को इसी परिधि के अन्दर ला दिया। केन्द्र सरकार तथा संघ शासित प्रदेश की सरकारों के कर्मचारियों के अलावा सार्वजनिक उपक्रमों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, केन्द्र तथा राज्य सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाली सहकारी समितियों के पदाधिकारियों, यू.जी.सी., कुलपतियों, प्रोफेसरों, वैज्ञानिकों, स्थानीय प्राधिकरण के कर्मचारियों सभी को लोकसेवक के रूप में घोषित कर दिया गया है। इसमें लोकसेवक के विरूद्ध न्यायालय में अपराध सिद्ध होने पर अर्थदण्ड एवं जेल की सजा का भी प्रावधान है।

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002

धन स्वामित्व के वास्तविक स्वामित्व को छिपाकर अवैध तरीके से वैध बनाने का प्रयास करना मनी लॉण्ड्रिंग/धन शोधन कहलाता है। यह एक जघन्य अपराध है। इसे रोकने के लिये धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया। यह अधिनियम जुलाई, 2005 से प्रभावी हुआ है। इसमें धन शोधन/मनी लॉण्ड्रिंग के खिलाफ अपराध की जांच करना, सम्पत्ति की कुर्की और जब्ती की कार्रवाई करना और धन शोधन के अपराध में लोगों के विरूद्ध मुकदमा चलाना शामिल है। इस अधिनियम के प्रावधान सभी वित्तीय कम्पनियों, बैंकों, बैंक फंडों, बीमा कम्पनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं। भारत की संसद में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच किये गये मामलों में दोष सिद्ध की दर काफी कम है

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

इस अधिनियम का उद्देश्य भ्रष्टाचार को रोकना, नागरिकों को सूचना प्राप्त किये जाने का अधिकार प्रदान किये जाने के द्वारा लोक सेवकों को जवाबदेह बनाया जाना तथा पारदर्शिता में सुधार लाया जाना था। इसके अन्तर्गत समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रही गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि हैं। प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी बनाये गये हैं जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार कर सूचनायें आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं। जनसूचना अधिकारी का दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतन्त्रता के मामले में 48 घंटे के अन्दर मांगी गई सूचना उपलब्ध कराये। यदि जनसूचना अधिकारी निश्चित समय सीमा में सूचना उपलब्ध नहीं कराता है तो देरी के लिए 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 25000 रुपये तक का जुर्माना उसके वेतन से काटा जा सकता है।

लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013- अन्ना हजारे के सन् 2011 से चलाये जा रहे भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के समय से जनता में भारी जनाक्रोश को देखते हुए सरकार द्वारा लोक पाल अधिनियम लाया गया। लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 को दिसम्बर, 2013 में राज्यसभा एवं लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया और यह कानून 16 जनवरी, 2014 से लागू हो गया। इसके महत्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार हैं।

1. केन्द्र में लोकपाल और राज्यों के स्तर पर लोकायुक्तहोंगे।

2. लोकपालमें एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य होंगे जिनमें से 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य होंगे। साथ ही लोकपाल के 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति/जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यकों तथा महिलाओं में से होने चाहिये।

3. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक चयन समिति द्वारा किया जायेगा। इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश (या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का एक वर्तमान न्यायाधीश) तथा इन चार सदस्यों की संस्तुतियों के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा नामित प्रख्यात विधिवेत्ता सदस्य होंगे।

4. इस अधिनियम में सांसदों/विधायकों, भ्रष्टाचार के दोषी व्यक्ति तथा 45 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को लोकपाल में न रखने का प्रावधान है।

5. लोकपाल के अधिकारिक क्षेत्र में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, समूह ए, बी, सी और डी अधिकारी और केन्द्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।

6. सी.बी.आई. सहित किसी भी जांच एजेन्सी को लोकपाल द्वारा भेजे गये मामलों की निगरानी करने तथा निर्देश देने का लोकपाल को अधिकार होगा।

7. इस अधिनियम में भ्रष्टाचार के जरिये अर्जित सम्पत्ति को कुर्की करने और उसे जब्त करन के प्रावधान शामिल किये गये हैं।

8. अधिनियम में प्रारम्भिक पूछतांछ, जांच और मुकदमे के लिये स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की गयी है तथा इसके लिये अधिनिय में विशेष न्यायालयों के गठन का भी प्रावधान है।

9. इस अधिनियम के लागू होने के 365 दिन के भीतर राज्य विधान सभाओं द्वारा कानून बनाकर लोकायुक्त की नियुक्ति की जानी अनिवार्य होगी। 

जस्टिस शाह की अध्यक्षता में विशेष जांच दल-

विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने के लिए मोदी सरकार द्वारा 21 मई, 2014 को न्यायाधीष एम.वी. शाह की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (SIT-Special Investigation Team) का गठन किया है। इसका सदस्य राजस्व सचिव, रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर, खुफिया ब्यूरो के निदेशक, निदेशक प्रवर्तन, अध्यक्ष केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड आदि को बनाया गया है। विशेष जांच दल को समय-समय पर कार्य की प्रगति की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को देनी पड़ती है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट-

वर्ष 2017 में देशभर में दर्ज सांसदों विधायकों के अपराधिक केस को जल्द निपटाने के लिए 10 फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की गयी।

भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय-

1. दागी जनप्रतिनिधियों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में निश्चित समय-सीमा में हो।

2. सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा डिजिटल प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग किया जाये। सभी विभाग महत्वपूर्ण जानकारियां अपनी वेबसाइटों पर उपलब्ध करायें। समस्त कार्यालयों में निगरानी हेतु सीसीटीवी कैमरे लगाये जायें।

3. प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता लायी जाये और जनता को भागीदार बनाया जाये।

4. नागरिक सेवाओं को गुणवत्ता के साथ जनता तक पहुँचाया जाये। नागरिक घोषणा पत्र जारी कर उसका पालन किया जाये।

5. जनता को सरकारी योजनाओं व अनुदानों की पूरी जानकारी दी    जाये।

6. न्यायालय में मुकदमों का निपटारा एक निश्चित समय सीमा के भीतर हो।

7. ईमानदार व्यक्तियों को ही उच्च पद प्रदान किये जाये।

8. भ्रष्ट अधिकारियों पर कठोर कार्यवाही हो और ईमानदार अधिकारियों को विशेष संरक्षण प्रदान किया जाये।

9. युवाओं को नैतिक शिक्षा प्रदान कर भ्रष्टाचार विरोधी संस्कृति का निर्माण किया जाये।

10. जनता द्वारा शिक्षित ईमानदार, कर्मठ जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया जाये।

उपरोक्त उपायों को अपनाकर ही भ्रष्टाचार को समाप्त कर देश का बहुमुखी विकास किया जा सकता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. ए.एन. ओझा, भारत की सामाजिक समस्यायें, क्रॉनिकल पब्लिकेशन्स बुक्स, नई दिल्ली, 2005

2. जी.एल. शर्मा, सामाजिक मुद्दे, रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर 2015

3. एम.एल. गुप्ता, डी.डी. शर्मा, साहित्य भवन पब्लिकेशन्स, आगरा 2003

4. प्रमोद कुमार अग्रवाल, भारत के विकास की चुनौतियां, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद 2013

5. राम आहूजा, सामाजिक समस्याएं, रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर 2016

6. भ्रष्टाचार और उसके समाधान का सवाल, सोचने के लिए कुछ मुद्दे, राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ 2017

7.https://hindi.webdunia.com/national-hindi-news/pnb-scam-scam-history-of-scam-118022000070_1.html

8.https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-analysis/corruption-perception-index-2020

9.https://navbharattimes.indiatimes.com/india/transparency-international-issues-corruption-perception-index-2020-india-ranks-86th/articleshow/80494192.cms

10.https://www.abplive.com/news/india/all-you-need-to-know-about-sharda-chit-fund-scam-1063525