Research Phenomenon
ISBN: 978-93-93166-26-5
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‘’प्राणायाम’’ – एक वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण

 कुलदीप कुमार
मुख्य शिक्षक
बेसिक शिक्षा विभाग
जेएचएस एगराहा कम्पोजिट, ब्लॉक-डिलारी
मुरादाबाद  उत्तर प्रदेश, भारत  

DOI:
Chapter ID: 17934
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‘’प्राणास्‍य आयाम: इति प्राणायाम:’’ अर्थात प्राण का विस्‍तार ही प्राणायाम है।

प्राणायाम दो शब्‍दों से मिलकर बना है प्राण+आयाम। प्राण का अर्थ है जीवनी शक्‍ति जो हमारे शरीर में जीवन का संचार करती है। तथा आयाम का अर्थ है विस्‍तार, फैलाव, विनियमन, अवरोध या नियन्‍त्रण। अत: प्राणायाम का अर्थ हुआ प्राण अर्थात श्‍वसन (जीवनी शक्‍ति) का विस्‍तार, दीर्घीकरण और फिर उसका नियन्त्रण। प्राणायाम का उद्देश्‍य शरीर में व्‍याप्‍त प्राण शक्‍ति को उत्‍प्रेरित, संचारित, नियंत्रित और सन्‍तुलित करना है। इससे हमारा शरीर तथा मन नियन्‍त्रण में आ जाता है। हमारे निर्णय लेने की शक्‍ति बढ़ जाती है और हम सही निर्णय करने की स्‍थिति में आ जाते हैं।  

हठयोग प्रदीपिका के द्वितीय उपदेश के दूसरे श्‍लोक के अनुसार-

चले वाते चलं चित्‍तं निश्‍चले निश्‍चलं भवेत ।

योगी स्‍थाणुत्‍वमाप्‍नोति ततो वायुं निरोधयेत ।। (ह.यो.प्र. 2/2)

अर्थात प्राणवायु के चलायमान होने से चित्‍त भी चलायमान होता और प्राणवायु के स्‍थिर हो जाने से चित्‍त भी स्‍थिर हो जाता है। प्राणवायु और चित्‍त दोनों के स्‍थिर होने से योगी स्‍थाणुरूप को प्राप्‍त होता है और लम्‍बे समय तक जीवित रहता है। अत: योगी प्राणवायु का निरोध करें।

हठयोग प्रदीपिका के दूसरे उपदेश के तीसरे श्‍लोक में लिखा गया है कि-

यावद्धायु: स्‍थितो देहे तावज्‍जीवनमुच्‍यते।

मरणं तस्‍यनिष्‍क्रांस्‍तितो वायुं निरोधयेत।। (ह.यो.प्र. 2/3)

शरीर में जब तक प्राणवायु है तभी तक जीवन कहलाता है और जब शरीर से प्राणवायु निकल जाता है तब उसे मृत्‍यु कहते हैं। इसीलिए जब किसी व्‍यक्‍ति की मृत्‍यु होती है तो हम कहते हैं कि इसके प्राण पखेरू उड़ गये। लोगों का मानना है कि जब तक श्‍वासें चलती रहती है तभी तक जीवन है। इनका चलना बंद हुआ तो समझिए-प्राणान्‍त। यह बात जितनी सामान्‍य है उतनी महत्‍वपूर्ण भी है, शरीर में श्‍वास प्रश्‍वास की क्रियाओं का सामान्‍य तथा अनवरत रूप से भी चलते रहना कोई साधारण बात नहीं है। किसी भी प्राणी को जीवित या चेतनायुक्‍त बनाये रखने का सारा उत्‍तरदायित्‍व इन्‍हीं श्‍वासों पर ही है। यही कारण है कि मनुष्‍य या तो इन्‍हीं श्‍वासों को ही प्राण समझने का भ्रम पाल लेता है या फिर आत्‍मतत्‍व को प्राण समझने लगता है। जबकि वास्‍तविकता यह है कि प्राण न तो आत्‍मतत्‍व हैं न ही साधारण श्‍वास-प्रश्‍वास। बल्‍कि प्राणतत्‍व वह तत्‍व है जिससे शरीर में श्‍वास-प्रश्‍वास आदि समस्‍त क्रियाएं होती हैं। समस्‍त जड़, जंगम, स्‍थावर तथा लोक-लोकेत्‍तर इसी प्राण शक्‍ति से उत्‍पन्‍न होकर उसी के आश्रय में जीवित बने रहते हैं और प्रलय के समय उसी में विलीन हो जाते हैं। प्राण एक व्‍यापक जीवनी शक्‍ति है जो मानव शरीर के पांचों कोशो अर्थात अन्‍नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश, तथा आनन्‍दमय कोश में फैली तथा क्रियाशील है।

प्राणायाम सम्‍पूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य देते हुए लम्‍बी उम्र प्रदान करता है। जब कोई व्‍यक्‍ति मरणासन्‍न होता है तो हमारे मुँह से अचानक निकल जाता है कि अब यह श्‍वास ही पूरे कर रहा है। धार्मिक मान्‍यता के अनुसार इसका अर्थ यह है कि ईश्‍वर ने हमारे भाग्‍य में जितने श्‍वास दिये हैं उन्‍हें हमें पूरा करना होता है चाहे उन्‍हे हम जल्‍दीजल्‍दी खर्च कर ले या प्राण के आयाम को बढ़़ाकर धीरे-धीरे। इस प्रकार प्राणायाम के द्वारा हमारी आयु बढ़ना निश्‍चित है।

अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा भी यह स्‍पष्‍ट हो चुका है कि श्‍वास-प्रश्‍वास की गति हमारी आयु को प्रभावित करती है। प्रकृति में भी हम देखते हैं कि जो जीव-जन्‍तु तेज गति से जल्‍दी जल्‍दी श्‍वास-प्रश्‍वास करते हैं। उनकी उम्र कम होती है, जबकि जो जीव-जन्‍तु श्‍वास-प्रश्‍वास धीमी गति से करते हैं उनकी आयु अधिक होती है। इसको निम्‍न तालिका से समझा जा सकता है।

क्र. सं.

जीव-जन्‍तु

श्‍वास-प्रश्‍वास

(प्रति मिनट)

आयु (लगभग)

1

कुत्‍ता

30 से 32 बार

14 से 15 वर्ष

2     

बिल्‍ली

28 से 30 बार

20 वर्ष

3

घोड़ा

24 से 26 बार

40 वर्ष

4

मनुष्‍य

15 से 16 बार

100 वर्ष

5

सर्प

8 से 10 बार

120 से 150 वर्ष

6

कछुआ

4 से 5 बार

200 से 400 वर्ष

उपरोक्‍त तालिका का अध्‍ययन करने पर स्‍पष्‍ट होता है कि श्‍वास-प्रश्‍वास की दर प्रति मिनट जितनी कम होगी उस जीव की आयु उतनी अधिक होगी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्राणायाम के द्वारा हम अपनी प्रति मिनट श्‍वसन दर को कम करके आयु को बढ़ा सकते हैं।

विज्ञान मानता है कि जैविक क्रियाओं के संचालन हेतु शरीर ऑक्‍सीजन को ग्रहण करता है तथा उसके द्वारा शरीर की प्रत्‍येक कोशिका के भीतर उपस्‍थित माइट्रोकान्‍ड्रिया एक पावर हाऊस के रूप में ऊर्जा का निर्माण करता है। यही ऊर्जा व्‍यक्‍ति को जीवित बनाये रखती है। इसी ऊर्जा को प्राण ऊर्जा या जीवनी ऊर्जा कहा जाता है।

योगशास्‍त्र के अनुसार शरीर में पांच प्रकार के मुख्‍य प्राण पाये जाते हैं।

1. प्राण        2. अपान        3. समान        4. उदान        5. व्‍यान

पांच प्रकार के ही उपप्राण पाये जाते हैं।

1. नाग        2. कूर्म         3. कृकल        4. देवदत्‍त      5. धनंजय

इन सबके शरीर में कार्य तथा स्‍थान अलग-अलग हैं।

प्राणायाम के चरण:-

पातंजल योगसूत्र में प्राणायाम का अभ्‍यास करने के लिए निम्‍न चरणों का वर्णन किया गया है-

1 . पूरक  पूरक का अर्थ है श्‍वास लेते हुए प्राणवायु को शरीर के भीतर ग्रहण करना। पूरक व सामान्‍य श्‍वसन में अन्‍तर है। सामान्‍य श्‍वास जीवनपर्यन्‍त स्‍वयं चलती रहती है, जबकि पूरक में पेशीय नियन्‍त्रण के द्वारा अधिक प्राणवायु (ऑक्‍सीजन) को शरीर में भीतर ग्रहण किया जाता है।

2 . रेचक  श्‍वास छोड़ते हुए अशुद्ध वायु (कार्बनडाईऑक्‍साइड) को शरीर से बाहर छोड़ना रेचक कहलाता है। अशुद्ध वायु सामान्‍य रूप से भी हमेशा बाहर निकलती रहती है, जिसे नि:श्‍वसन कहते हैं। किन्‍तु रेचक में अधिकाधिक अशुद्ध वायु को फेफड़ो से बाहर निकालने हेतु फेफड़ों एवं पेट की पेशियों पर पूर्ण नियन्‍त्रण का प्रयोग किया जाता है, जिससे श्‍वास को छोड़ने का समय बढ़ जाता है।

3. कुम्‍भक  कुम्‍भक का अर्थ है प्राणवायु (ऑक्‍सीजन) को रोकना। कुम्‍भक क्रिया दो प्रकार की होती हैं।

I.  अन्‍त: कुम्‍भक  प्राणवायु (ऑक्‍सीजन) को शरीर के भीतर रोककर उसका शरीर में विस्‍तार करना अन्‍त:कुम्भक कहलाता है। सामान्‍य स्‍थिति में ऑक्‍सीजन थोडी देर ही शरीर के भीतर रहती है जिसपर किसी का ध्‍यान भी नहीं जाता है। किन्‍तु प्राणायाम में किये जाने वाले अन्‍त:कुम्‍भक में ऑक्‍सीजन को भीतर ही रोककर रखा जाता है। रोकने का यह समय श्‍वास ग्रहण करने के समय का चार गुना तक रखा जा सकता है। ऐसा करने से शरीर की प्रत्‍येक कोशिका में स्‍थित ऊर्जा केंन्‍द्रों में अधिक जीवनी शक्‍ति का संचार होता है।

II. वाह्य कुम्‍भक  श्‍वास को छोड़कर बाहर रोकना वाह्य कुम्‍भक कहलाता है। सामान्‍य स्‍थिति में हम श्‍वास लिए बिना बहुत कम समय रह पाते हैं, जिसपर किसी का ध्‍यान भी नहीं जाता। प्राणायाम में किये जाने वाले वाह्य कुम्‍भक में श्‍वास को बाहर रोकर रखा जाता है। रोकने का यह समय श्‍वास ग्रहण करने के समय का लगभग चार गुना तक रखा जा सकता है। 

प्राणायाम के प्रकार:-

महर्षि घेरण्‍ड ने प्राणायाम के निम्‍नलिखित प्रकार बताए हैं-

सहित: सूर्यभेद्श्‍च  उज्‍जायी शीतली तथा ।

भस्‍त्रिका भ्रामरी मूर्च्‍छा केवली चाष्‍टकुम्‍भका: ।।

(घे.सं. 5/46)    

इस प्रकार ये आठ प्राणायाम हैं।

1. सहित कुम्‍भक,   2. सूर्यभेदी,    3. उज्जायी,   4. शीतली, 5. भस्‍त्रिका6. भ्रामरी,   7. मूर्च्छा, 8. केवली

सहित कुम्‍भक प्राणायाम दो प्रकार का होता है-

i. सगर्भ

ii. निगर्भ

सगर्भ कुम्‍भक में बीज मंत्र का प्रयोग होता है जबकि निगर्भ कुम्‍भक में बीज मंत्र से अभ्‍यास नहीं किया जाता है।

प्राणायाम से लाभ

प्राणायाम कोई काल्‍पनिक क्रिया नहीं है अपितु तत्‍काल प्रभावशाली है प्राणायाम के द्वारा विभिन्‍न प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक विकारों को पूरी तरह से दूर किया जा सकता है। प्राणायाम के अभ्‍यास द्वारा निम्‍नलिखित लाभ प्राप्‍त किये जा सकते हैं।

प्राणायाम दीर्घ आयु प्रदान करता है।

1. यह त्रिदोष नाशक अर्थात वात , पित्‍त , कफ तीनों का नाश करता है।

2. यह ब्रह्म्‍चर्य कारक है। अर्थात यह वीर्य को ऊर्ध्‍वमुखी बनाता है। जिससे ओज, तेज तथा बल बढ़ता है।

3. प्राणायाम से समस्‍त शरीर में जीवन और शक्‍ति का संचार होता है।

4. प्राणायाम से डायाफ्राम आदि उदरीय पेशियों की मालिश होने से पाचन तन्‍त्र स्‍वस्‍थ होता है जिससे कब्‍ज, गैस, अग्‍निमांद्य, अपच एवं अम्‍लता आदि रोग दूर होते हैं।

5. शुद्ध ढंग से किया गया अभ्‍यास सांसारिक विषय वासनाओं से विमुख करता है और साधक में अपनी इन्‍द्रियों को वश में करने की क्षमता आ जाती है।

6. प्राणायाम से रोग-प्रतिरोधक शक्‍ति का विकास होता है।

7. प्राणायाम से वायु सम्‍बन्‍धी रोग जैसे सिरदर्द, माइग्रेन, बालों का असमय सफेद होना, घुटनों का दर्द आदि दूर होते हैं।

8. पाचन तन्‍त्र का सुचारू रूप से परिचालन होने के कारण भोजन अच्‍छी तरह पचता है। अत: भोजन में पाये जाने वाले विटामिन, प्रोटीन एवं खनिज लवण पूर्णत: हमारे शरीर को पोषकता प्रदान करते हैं। जिससे हमारा शरीर बुढ़ापे तक स्‍वस्‍थ रहता है।

प्राणायाम के नियम व सावधानियाँ

1. प्राणायाम शुद्ध, स्‍वच्‍छ, हवादार एवं एकान्‍त स्‍थान पर ही करें।

2. प्राणायाम सुबह खाली पेट ही करना चाहिए भोजन करके तुरन्‍त प्राणायाम करना हानिकारक है। भोजन के 4-5 घण्‍टे बाद प्राणायाम कर सकते हैं।

3. पूर्ण श्रद्धा, आस्‍था, विश्‍वास, एवं ऊर्जा के साथ प्राणायाम करना चाहिए।

4. प्राणायाम किसी ध्‍यानात्‍मक आसन में बैठकर ही करें रोगी या वृद्ध  व्‍यक्‍ति अपनी सुविधानुसार बैठ सकते हैं।

5. प्राणायाम किसी योग शिक्षक के निर्देशन में करें तथा निर्देशों का पूर्णतया पालन भी करें।

6. प्राणायाम करते समय विचार सकारात्‍मक, आशावादी एवं मन-मस्‍तिष्‍क तनाव रहित होना चाहिए।

7. प्राणायाम की आवृत्‍ति अपनी क्षमता एवं सामर्थ्‍य के अनुसार ही रखें। अनावश्‍यक रूप से बल का प्रयोग न करें।

8. कम आयु वाले बच्‍चे एवं हृदयरोगी कुम्‍भक क्रिया का अभ्‍यास न करें।

9. प्राणायाम के समय या बाद में किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक परेशानी हो तो तुरन्‍त योग शिक्षक से परामर्श लें।

10. प्राणायाम तेज गति से न करें।

11. गंभीर रोगी और गर्भवती महिला योग शिक्षक से परामर्श लेकर ही प्राणायाम करें।

सन्‍दर्भ ग्रन्‍थ सूची

1. हठयोग प्रदीपिका

2. घेरण्‍ड संहिता

3. पातंजल योगसूत्र

4. ‘’सम्‍पूर्ण योग विद्या’’ – श्री राजीव जैन त्रिलोक