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ISBN: 978-93-93166-28-9
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कच्चे दुग्ध के संग्रहण के दौरान जैव रासायनिक परिवर्तन: सार्थक चुनौतियाँ

 अनिल कुमार गुप्ता
सह - प्राध्यापक
विभाग डेयरी विज्ञान और प्रौद्योगिकी (पूर्व में ए.एच. एवं डेयरी)
आर.के. (पी.जी.) कॉलेज
 शामली (उ.प्र.) भारत  

DOI:10.5281/zenodo.10218047
Chapter ID: 18239
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जिस प्रकार से दुग्ध मानव जाति का सन्तुलित सभी पोषकयुक्त खाद्य पदार्थ के रूप में आहार है ठीक उसी तरह यह अपने इन उत्तम पोषक गुणों के कारण सूक्ष्म जीवियों मुख्यतः जीवाणुओं का भी जल सहित महत्त्वपूर्ण आहार है। फलस्वरूप दुग्ध में इन सूक्ष्म जीवियों की उपस्थिति स्वाभाविक है। दुग्ध का उत्पादन व क्रियान्वयन कितना भी स्वच्छ सावधानियों के साथ किया जाये वस्तुतः ये सूक्ष्मजीवी किसी न किसी माध्यम से दुग्ध में प्रवेश कर ही जाते हैं। इनके दुग्ध में प्रवेश के साधन प्रमुख हैं-

1. पशुओं के अयन के अन्दर व बाहर से

2. पशु शरीर के बाह्य भाग

3. पशुशाला का दूषित वायुमण्डल

4. गन्धयुक्त दुग्ध पात्र

5. ग्वाले के दूषित हाथ, कपड़े व शरीर आदि

6. दुग्ध में अपमिश्रण के लिए प्रयोग होने वाले पदार्थ

इस प्रकार दुग्ध जीवाणु संदूषण (Bacterial Contamination) हो जाता है फिर ये जीवाणु उचित वातावरण मिलने पर विभिन्न प्रकार की क्रियायें करके दुग्ध को दूषित कर देते हैं। इसके अतिरिक्त दुग्ध में उपस्थित अवयवों के कारण कुछ जैव रासायनिक परिवर्तनों के रूप में दोष तथा कुछ दूषित वातावरण के कारण भी उत्पन्न हो जाते हैं।

दुग्ध में जैव रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करने वाली एजेन्सियाँ-

(AGENCIES CONCERNED WITH BIO-CHEMICAL CHANGES IN MILK)–

1. कच्चे दुग्ध में उपस्थित उत्प्रेरकों दुग्ध द्वारा किण्वन

2. सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा जो दुग्ध में बाहर से प्रवेश करके किण्वन

3. दुग्ध द्वारा अवशोषित वातावरण की दुर्गन्धों (Off flavour) द्वारा

4. दुग्ध वसा के ऑक्सीकरण द्वारा

संग्रहित कच्चे दुग्ध में सूक्ष्म जीवियों द्वारा होने वाले जैव रासायनिक परिवर्तन-

(Bio-Chemical Changes in Stored Raw Milk Brought About Microorganism)–

1. लैक्टिक एसिड किण्वन (Lactic acid fermentation)- दुग्ध का खट्टापन एक सामान्य व महत्त्वपूर्ण किण्वन होता है। जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न एंजाइम की क्रिया से लैक्टोज का लैक्टिक एण्डि में परिवर्तन के फलस्वरूप दुग्ध में अम्लता में वृद्धि होती है। सबसे प्रमुख लैक्टिक एसिड जीवाणु स्ट्रैप्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus lactis) व स्ट्रैप्टोकोकस क्रिमोरिस (Streptococus cremoris) अम्ल उत्पादन में YeastMould की भूमिका न के समान होती है। उपरोक्त प्रमुख जीवाणु सामान्य ताप 10°C-37°C पर अपना कार्य करते हैं। इन जीवाणुओं द्वारा दुग्ध में 1% तक अम्लता उत्पन्न होती है। इसी अम्लता पर लैक्टिक एसिड उत्पादित करने वाले दूसरे समूह के जीवाणु लैक्टोबैसिलस जाति (Lactobacillus spp.) के होते हैं। इनमें Lactobacillus bulgaricus L. acidophilus तथा L. Casei प्रमुख है। इनके द्वारा लैैक्टोज का लैक्टिक एसिड में परिवर्तन के फलस्वरूप 2-4% तक अम्लता उत्पन्न होती है। इनके कार्य करने का उत्तम तापक्रम 37°C-43.8°C होता है। साथ में ये 15.5°C से कम तापक्रम होने पर अक्रियाशील हो जाते हैं। उपरोक्त सभी Lactic acid bacteria का उपयोग मानव के पेट रोगों में आँत विप्णन (Intestinal fermentation) को रोकने के लिए चिकित्सक अधिकांश करते हैं।

समकिण्वनकारी अथवा विशुद्ध किण्वन(Homo or Pure fermentation)

C12H22O11 ¾¾® CH3CHOHCOOH + CO2

Lactose                  Lactic acid

(98.99%)               (1-2%)

विषम अथवा किण्वनकारी (Hetero or Mixed fermentation)

 

C12H22O11 ¾¾® CH3CHOHCOOH + CH3COOH + CO2

Lactose                  Lactic acid                  Acetic acid

(50%)                         (50%)

लैक्टिक एसिड के उत्पन्न होने से अम्लता के कारण दुग्ध में खट्टापन पैदा हो जाता है जब दुग्ध में लैक्टिक एसिड की मात्रा 0.6-0.7% या इससे भी अधिक हो जाती है तब दुग्ध में उपस्थित केसीन का स्कंदन (Coagulation) होने लगता है।

Ca–H–Caseinate + Lactic acid ¾¾® Acid Casein¯ + Calcium lactate

  (Precipitate)             (Soluble)

दुग्ध में लैक्टिक एसिड, केसीन से संयुक्त कैल्शियम केा अलग कर घुलनशील Calcium lactate बनाता है जब दुग्ध की pH 4.6 (Isoelectric point) हो जाती है तो Casein, acid casein (Dahi) के रूप में अवशेषित (Precipitate) हो जाती है।

Calcium Phosphate + Lactic acid ¾¾® Mono Calcium Phosphate + Calcium lactate

(Colloidal)                                                             (Soluble)                         (Soluble)

दुग्ध में लैक्टिक एसिड बनने से Ca–H–Caseinate से कुछ हाइड्रोजन पृथक होकर फॉस्फोरस के साथ मिलकर Calcium hydrogen phosphate में बदल जाती है, जिसके फलस्वरूप दुग्ध के वास्तविक विलयन व कोलाइडल अवस्था की साम्यावस्था में परिवर्तन आ जाता है जिससे दुग्ध का Osmatic Pressure घट जाता है व Freezing Point बढ़ जाता है।

दुग्ध की अम्लता बढ़ने से दुग्ध का क्वथनॉक (Boiling Point) व विद्युत चालकता (Electrical Conductivity) बढ़ जाती है।

Lactococcus spp./streptococcus spp. के सहयोगी जीवाणु मुख्यतः Leuconostoc citrovorum तथा Leuconostoc dextranium द्वारा दुग्ध में उपस्थित Citric acid पर क्रिया करके किया जाता है। इन जीवाणुओं की क्रिया के परिणामस्वरूप दुग्ध में कुछ वाष्पशील अम्ल जैसे- Acetic acid, Diacetyl बनते हैं जो दुग्ध में हवा से विसरित होकर अपनी विशिष्ट गंध (Special flavour) फैलाते हैं। मक्खन निर्माण हेतु जामन से इन जीवाणुओं का विशिष्ट महत्व है।

2. ब्यूटारिक एसिड किण्वन (Butyric acid fermentation)- कभी-कभी गन्दे फर्श, साइलेज अथवा पशुओं के गोबर-मूत्र साधन द्वारा Clostridium butyricum नामक जीवाणु दुग्ध में प्रवेश कर पाते हैं। ये जीवाणु लैक्टोज से उत्पन्न लैक्टिक एसिड को विच्छेदित करके Butyric acid में बदल देते हैं साथ में थोड़ी मात्रा में Acetic acid, Propionic acid तथा  Formic acid के साथ H2, CO2 गैस भी बनती है। इस किण्वन में दुग्ध का दहीकरण (Curdling) धीरे-धीरे सम्पन्न होता है तथा दही में गैस के बुलबुले निकलने से दही अनेक स्थानों पर फट जाता है जिससे ठोस पदार्थ नीचे बैठ जाते हैं तथा व्हे (Whey) ऊपर निथर कर आ जाता है। साथ में दुग्ध में Butyric acid की तीव्र गंध आने लगती है।

C12H22O11 + H2O ¾¾¾¾® 2C6H12O6

Lactose                                  Glucose + Galactose

Glucose ¾® Triose ¾® Pyruvic acid ¾® Aldehyde ¾® Aldol ¾® Butyric acid

3. अल्कोहल किण्वन (Alocoholic fermentation)- इस प्रकार का किण्वन प्रायः दुग्ध में सामान्य अवस्था में नहीं होता लेकिन इस किण्वन में दुग्ध के लैक्टोज से इथाइल अल्कोहल बनता है। लैक्टिक एसिड उत्पन्न करने वाले जीवाणु जब अपना कार्य बन्द कर देते हैं उस स्थिति में खमीर (Yeast) द्वारा Alcohol dehydrogenase एन्जाइम उत्पन्न होता है जो कि दुग्ध में Alcohol उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार का किण्वन कभी-कभी Fungi-Mucor के द्वारा भी होता है।

Causative Organism ® Bacteria – Coli, aerogenes group

Yeast – Torulae, saccharomyces

C12H22O11 + H2O  C6H12O6 + C6H12O6

Lactose                      Glucose   Galactose

2C6H12O6 ¾¾¾® 4CH3COCOOH

Pyruvic acid

4CH3COCOOH ¾¾¾® 4CH3CHO + 4CO2

      Acetaldehyde

CH3CH2OH (Ethyl alcohol)

4. वसा किण्वन (Fat fermentation)/Lypolysis- कभी-कभी दुग्ध में प्रवेश हुए कुछ जीवाणु जैसे Pseudomonas fragi, Pseduomonas fluorescens, Achromobactor lepolyticumYeastLipase enzyme का स्त्राव करते हैं जो कि दुग्ध वसा को जल की उपस्थिति में GlycerolFatty acids में अपघटित कर देते हैं जिससे दुग्ध व मक्खन वसा में खट्वासता (Rancidity) उत्पन्न हो जाती है। यह क्रिया Lypolysis कहलाती है जिसमें दुग्ध में तेज अवांछनीय गंध पैदा हो जाती है।

5. प्रोटीन किण्वन (Protein fermentation)/Proteolysis - दुग्ध में प्रोटीन का किण्वन करने वाले जीवाणु जैसे Bacillus subitiles, B. cereus, Pseudomonas fluorsecence clostridium butyricum तथा streptococcus liquefaciens के द्वारा दुग्ध की केसीन को Polypeptide, Peptones, amino acidAmmonia इत्यादि में परिवर्तित कर दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप दुग्ध की गुणवत्ता प्रभावित होकर दुग्ध में विशेष प्रकार की गंध पैदा हो जाती है साथ में दुग्ध का स्वाद भी बदल जाता है।

6. गैस किण्वन (Gaseous fermentation½/Abnormal Sourcing - कुछ जीवाणु जैसे Escherichia मनुष्य व पशुओं की आँतों में मिलते हैं तथा Aerobacter aerogenes मल पदार्थों में मिलते हैं। ये सभी जीवाणु लैक्टोज को लैक्टिक एसिड में बदल देते हैं। फलस्वरूप दुग्ध में खटास (Acidity) पैदा होती है। इसके अतिरिक्त ये अन्य कार्बनिक अम्ल भी उत्पन्न करते हैं। इन अम्लों के बनने के साथ-साथ कुछ गैसें जैसे CO2, H2, N2, NH3 तथा  CH4 आदि भी स्वतन्त्र होती है। फलस्वरूप दही व चीज में छोटे-छोटे छिद्र (Hole) दृष्टिगत होते हैं तथा अवांछनीय गन्ध भी उत्पन्न होती है, जिससे इन दुग्ध पदार्थों की गुणवत्ता प्रभावित होता है।

7. मधुरित जमाव (Sweet curdling)- मुख्यतः गर्मियों में कुछ Heat Resistant जीवाणु Rennin enzyme का स्त्राव करते हैं जो कि दुग्ध में बिना अम्ल उत्पन्न हुए दुग्ध को स्कंधित कर देते हैं। इस प्रकार से परिवर्तन से दुग्ध की प्रोटीन प्रभावित होती है। यह कभी Pasteurized Milk में मुख्यतः मिलती है, जिसको प्रशीतन अवस्था में लम्बे समय तक संचित किया जाता है। Heat resistant जीवाणु Bacillus subtills Proteolytic (Protein splitting) प्रकृति के होने के कारण स्कंदित दुग्ध (Curdled Milk) की प्रोटीन पर आक्रमण (Attack) करते हैं। फलस्वरूप स्कंदन (Coagulum) अदृश्य हो जाता है और कड़वी गंध (Bitter Flavour) विकसित हो जाती हैं। इस प्रकार Pasteurization से यह कमी कम नहीं होती है।

Causative Microorganism (Bacteria)-

Cocci – Streptococcus liquefaciens

Aerobic spore former– Bacillus subtilis, Bacillus mycodis, Bacillus cereus.

बचाव-  दुग्ध में Sweet Curdling को निम्न कारणों से बचाया जा सकता है-

1. फार्म पर दुग्ध को ठण्डा (Cooling) करके Cold Storage में रखकर।

2. पाश्च्युरीकरण के तुरन्त बाद दुग्ध को 40°F पर ठण्डा करके।

3. घरों में सामान्य अवस्था में दुग्ध को रेफ्रीजरेटर में रखकर।

8. दुग्ध में धागों जैसे उत्पन्न अथवा रज्जुकता (Ropiness in the milk)- कभी-कभी दुग्ध को कम तापक्रम पर अधिक समय तक संग्रह करने पर दुग्ध द्रव अवस्था में न रहकर एक गाढ़ा चिकना पदार्थ (Slimy Mass) के रूप में बदल जाता है। यह परिवर्तन उस समय उजागर होता है जब दुग्ध को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेला जाता है तब वह एक चिकनी रस्सी (Rope) की तरह निकलता है यदि इस अवस्था में काँच की एक छड़ डालकर उसे ऊपर उठाई जाये तब यह चिपचिपा पदार्थ छड़ से चिपक जाता है। साथ में महीन रस्सी या धागे की तरह नीचे गिरने लगता है। ऐसे धागों की लम्बाई कुछ मिमी॰ से फीट तक हो जाती है। दुग्ध की इस असामान्य अवस्था को जो किण्वित अवस्था से अलग धागापन (Ropiness) अथवा चिपचिपापन (Sliminess) कहा जाता है। Ehrenberg (1840) ने प्रथम बार इसी Slimy Character को देखा तथा इसको ‘‘Ropy Milk’’ का नाम दिया।

दुग्ध व क्रीम में यह अवस्था प्रोटीन के भौतिक गुणों में परिवर्तन आने व जीवाणुओं के कारण होती है। यह जीवाणु कैप्सूल बनाते हैं जो कि आपस में मिलकर रस्सी या धागे के समरूप संरचना बन जाती है।

Causative Organism

I.        Gram-negative rods– Alcaligenes viscosus, Aerobactor aerogenes.

II.        Coli-aerogenes group– Enterobacter aerogenes, E. cloacal

III.       Aerobic sporeformers– Bacillus cereus, B. subtilis

IV.       Lactic acid bacteria– Lactococcus lactes, Lactobacillus casei, Lactobacillus bulgaricus.

Ropiness दुग्ध में उसको कम तापक्रम पर रखने पर मिलती है लेकिन दुग्ध को कम तापक्रम पर अधिक समय तक रखने पर, अधिक तापक्रम लैक्टिक एसिड जीवाणु Ropy bacteria पर हावी हो जाते हैं तथा अपना प्रभाव दिखाते हैं।

9. दुग्ध में झाग या फैनीय बनना (Fronthyness)- इस प्रकार के परिवर्तन कुछ विशिष्ट प्रकार के जीवाणुओं जैसे- Aerobacter aerogenes, Alkali genous viscosus व कुछ Yeast जैसे ज्ंतनसं Tarula Cremoris, Tarula sperica की सक्रियता से रासायनिक परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं जिसके परिणामस्वरूप दुग्ध में गैस उत्पादित मुख्यतः CO2 उत्पन्न होकर झाग उत्पन्न हो जाते हैं। अधिक Thick पदार्थों में कम Thick पदार्थों की तुलना में झाग कम बनते हैं। कभी-कभी झाग अधिक उत्पन्न होने के कारण कभी-कभी दुग्ध बर्तन से बाहर भी निकल जाता है साथ में उसमें दुर्गन्ध भी उत्पन्न हो जाती है। दुग्ध या क्रीम के परिवहन में अधिक हिलने से भी झाग उत्पन्न होते हैं। इनसे दुग्ध के गुणों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

10. क्रीम/दुग्ध वसा का टूटना (Bitty or Broken Cream Milk)- इस अवगुण में कच्चे अथवा निरोगित दुग्ध में Bacillus cercus, Bacillus mycodes जीवाणु द्वारा वसा कणों (Fat globulus) को अलग-अलग (Separate) कर दिया जाता है। इस दोषी दुग्ध (Defected Milk) से चाय या कॉफी बनाने पर उसमें वसा कण अलग-अलग तैरते हैं। बोतल में रखे दुग्ध में बोतल के ढक्कन (Lid) के नीचे Cream plug भी बन जाते हैं।

11. रंग का उत्पन्न होना (Production of Colour)- दुग्ध में विभिन्न प्रकार के जीवाणु अलग-अलग रंग पैदा करते हैं। इन जीवाणुओं के समूह को Chromogenic microorganism कहते हैं।

 

Name of Colour

Causative bacteria

1-

Yellow Colour

Bacillus synxanthus, Streptococcus lutea Microbacterium felavum, Bacteriume erythogens

2-

Blue Colour

Pseudomonas syncyanea, Psedomonas synxanthus

3-

Red Colour

Bacillus cyanogenes, Serratia marcescens, Sarcina roseous

4-

Green Colour

Pseudomonas fluorescens

5-

Black Colour

Pseudomonas nigrifaciens

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. Bhati, S.S. and Lavania, G.S. (2000). Dairy Science, V.K. Prakashan, Baraut.

2. Chalmer, C.H. (1962). Bacteria in relation to milk supply, IV Edition.

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5. Singh, Rama Shanker & Saraswat, B.L. (2008). Dairy Chemistry & Animal Nutrition, Kushal Publishers & Distributors, Varansi, ISBN : 81-86099-64-6.

6. Shrivastava, S.M. (2002). Milk and its Properties, Kalyani Publishers, ISBN-81-272-0250-9.

7. Rai, M.M. (1997). Dairy Chemistry & Animal Nutrition, Kalyani Publishers.