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ISBN: 978-93-93166-63-0
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भारत-पाकिस्तान संबंध (मोदी सरकार कार्यकाल के परिप्रेक्ष्य में)

 प्रो. बनवारी लाल मैनावत
प्राचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय कन्या महाविद्यालय
 गंगापुर सिटी, राजस्थान, भारत 

DOI:10.5281/zenodo.10863232
Chapter ID: 18757
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प्रस्तावना

भारत में मोदी सरकार की अनेकों अप्रत्याशित उपलब्धियों में से भारत-पाक संबंध भी हैं जिनमें सुधार हेतु भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी निरंतर प्रयत्नशील हैं। भारत-पाक विभाजन के बाद से ही दोनों राष्ट्र एक-दूसरे को अपना शत्रु मानते रहे हैं और हमेशा एक-दूसरे को नीचे दिखने की कोशिश करते रहे हैं। पाकिस्तान की परमाणु शक्ति ने भारत को लम्बे समय तक दबा कर रखा है।

यह सच है कि चीन और पाकिस्तान के आर्थिक और रक्षात्मक संबंध मजबूत हो रहे हैं, जहाँ दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता किया है जिसमें हथियारों के सौदे, संयुक्त अभ्यास और रक्षा समझौते शामिल हैं। पाकिस्तान का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जिसका पिछले साल उद्घाटन किया गया था, कराची में भी चीनी सहायता से बनाया गया था और दोनों देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता भी है। यहां भारत और चीन के बीच सरहद के विवाद को लेकर दूरियां बढ़ रही हैं वहीं पाकिस्तान और चीन के बीच व्यापारिक और सैनिक समझौते होना कहीं ना कहीं भारतीय आर्थिक और सुरक्षा के मुद्दे के लिए एक समस्या पैदा कर सकता है।

मोदी सरकार के आने से पहले भारतियों में पाकिस्तान के परमाणु बम  को लेकर डर रहता था कि कब पाकिस्तान परमाणु बम का प्रयोग करले और भारत को मिटादे। इसी प्रकार चीन को बहुत शक्तिशाली देश मानकर चीन के नाम से कांपते थे। आज स्थितियां विपरीत और सामान्य हैं। आज ‌हम अमेरिका और चीन से आंख से आंख मिला कर बात करते हैं और साथ ही पाकिस्तान के साथ भी संबंधों में अपेक्षाकृत सुधर भी हुआ है। यह सब प्रधानमंत्री श्री मोदी की उदारवादी  नीतियों और उनकी स्वच्छ छवि के कारण संभव हो पाया है।

आज वैश्विक स्तर पर उनको एक ऐसे शासक और प्रशासक के रूप  में पहचान प्राप्त है जो भ्रष्टाचार से शत-प्रतिशत मुक्त हैं; जिनके पास वैश्विक एकीकरण की दृष्टि है और जो वैश्विक भाई-चारे,  वैश्विक विकास और वैश्विक शांति के लिए समर्पित हैं।  मोदी जी ने भारत को अविश्वसनीय रूप से मजबूत बना दिया है और पाकिस्तान और चीन के प्रति व्याप्त डर से जन मानस को मुक्त कर दिया है। मोदी सरकार के आने से पहले व कांग्रेस के राज में यह लगता था कि पाकिस्तान एक परमाणु देश है और चीन एक बहुत शक्तिशाली देश है, इसलिए इन दोनों देश से हम बुरी तरह से डरते थे लेकिन आज मोदीजी ने दोनों देशों को अपनी रणनीति से हरा दिया है।

भारत और पाकिस्तान आज भी अतीत की कैद में जी रहे हैं। विभाजन की दास्तान आज भी दोनों देशों के लोगों की स्मृति में जीवित है। उन्होंने एक-दूसरे के लिए निश्चित, अपरिवर्तनीय और प्रतिस्पर्धी छवियां बनाई हैं। जबकि पाकिस्तान एक इस्लामी गणराज्य बन गया, भारत ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया, जिससे दो-राष्ट्र सिद्धांत को नकार दिया गया। विभाजन की यादों के साथ-साथ 'मतभेदों' ने भारतीय और पाकिस्तानी को स्थायी रूप से शत्रुतापूर्ण स्थिति में रहने के लिए मजबूर कर दिया है।  

दोनों देशों के नेता अपने विवादों को सुलझाने की कोशिश करते हैं लेकिन अपने सामाजिक और राजनीतिक संस्थानों से समर्थन की कमी के कारण असफल हो जाते हैं। 2014 में सत्ता में आने के बाद से, भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार दोनों देशों के बीच कई समस्याओं के बावजूद, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान को शामिल करने में कामयाब रही है।[1]

भारत की मोदी सरकार की सफलता के पीछे प्रधान मंत्री मोदी हैं जो एक शक्तिशाली नेता हैं। भारत में अभी तक स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अनेकों प्रधानमंत्री हुए और अनेकों सरकारें आईं, परन्तु जितने कठोर फैसले मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए हैं और हो रहे हैं, उतने कठोर फैसले पूर्व में किसी भी भारतीय सरकार के कार्यकाल में नहीं हुए। इसका प्रमुख उदहारण है उनके द्वारा सेना को पाकिस्तान में घुस कर आतंकियों को मारने की अनुमति।

यह सच है की पाकिस्तान मोदी के खिलाफ है एवं भारत में कांग्रेस और मुस्लिम भी मोदी के खिलाफ हैं, परन्तु मोदी जी के वैश्विक स्तर पर और राष्ट्र हित में लिए जाने वाले इस प्रकार के ऐतिहासिक निर्णयों का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। उनका प्रत्येक कदम और फैसला भारत-पाक संबंधों को मजबूत बनाने में सहायक होगा।

विश्व में पाकिस्तान को एक इस्लामी राष्ट्र के रूप में जाना जाता  है। पाकिस्तान की कुल आबादी 20 करोड़ है जबकि वहां पर हिंदुओं की आबादी महज 3000000 (तीस लाख) है। भारत में पिछले 7 दशकों में मुसलमानों का जनसंख्या प्रतिशत 9% से बढ़कर 15% हो गयी है। जबकि पाकिस्तान (पश्चिम पाकिस्तान) में हिंदुओं का जनसंख्या प्रतिशत 16% से घटकर पाकिस्तान में 2% से कम हो गया है। यह भारतीय लोकतंत्र की सफलता को दर्शाता है।

हमारे पास इतने सारे मुस्लिम राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, क्रिकेट कप्तान, मुख्य न्यायाधीश, केंद्रीय मंत्री, शीर्ष अभिनेता हुए है। लेकिन पाकिस्तान में ऐसे पदों पर कितने हिंदू पहुंचे हैं ? “तालिबान खान” (इमरान खान का निक नाम) को भारतीय मुसलमानों की चिंता नहीं करनी चाहिए और उन्हें अपने मुसलमानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अगर इमरान खान भरतिया मुसलमानो के लिए बोल रहे है तो इससे भरतिया मुसलमानो का सबसे बड़ा नुक़सान होगा। वहां गैर इस्लामी लोगों पर अत्याचार,  हिन्दुओं का इस्लामी लोगों  की  तरह दफनाया जाना, अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियों को जबर्दस्ती इस्लाम कबूल कराकर विवाह आदि वे घटनाएं हैं जो इस बात  को प्रमाणित करती हैं कि पाकिस्तान एक कट्टर इस्लामी राष्ट्र है।

मोदी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे पाकिस्तान को आर्थिक नुकसान हो। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का यह कहना कि हिंदुस्तान में फ़िरसे मोदी सरकार आनी चाहिए, इस बात की पुष्टि करता है कि पाकिस्तान में भी मोदी जी की क्षमताओं में विश्वास जागृत हो रहा है और वहां की जनता भी मोदी जी जैसा प्रधानमंत्री चाहती है जो सभी के हितों को सर्वोपरि रखकर कार्य कर सके।

भारत-पाक विभाजन से पूर्व पाकिस्तान भारत का हिस्सा था और पाकिस्तान के सभी लोग भारत में ही रहते थे। भारत-पाक विभाजन ने दोनों देशों के बीच न केवल भौगोलिक दूरी बढ़ा दी, वल्कि दोनों राष्ट्रों को एक दूसरे का कट्टर दुश्मन बना दिया। दोनों राष्ट्रों की अपनी अलग-अलग शक्तियां और क्षमताएं हैं। भारत  के वैज्ञानिक अपने दम पर चंन्द्रयान, पोखरण आदि तकनीक हासिल कर सकते हैं। उसी तरह पाकिस्तान के वैज्ञानिक भी अपने दम पर कुछ भी हासिल कर सकते हैं।

दोनों देशों की पूर्ववर्ती सरकारों ने शायद ही यह प्रयास किया हो कि भारत और पाकिस्तान के मध्य व्याप्त मतभेद समाप्त हों और वे मित्रता के सूत्र में बंधकर और एक-दूसरे का सहयोग करते हुए वैश्विक विकास में अपना अपना अमूल्य योगदान दें। मोदी सरकार इस दिशा में सकारात्मक पहल कर रही है। मोदी सरकार  का प्रमुख उद्देश्य भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को एक दूसरे के करीब लाना, आतंकवाद और भ्रष्टाचार को मिटाना, उद्योग और रोजगार उत्पन्न करना, शांति की स्थापना करना और दोनों देशों के मध्य व्यावसायिक संबंधों को सुदृढ़ बनाना है।

भारत-पाकिस्तान संबंधों को सुद्दृढ बनाना भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की प्रारम्भ से ही प्राथमिकता रही है। यही कारण था कि मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था। इतना ही नहीं, मोदी तत्कालीन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने के लिए पाकिस्तान गए और उनके साथ कुछ घंटे बिताए। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के मध्य लम्बे समय से चले आरहे तनाव को एक रणनीति के तहत समाप्त करना था।

बिना किसी पूर्व योजना के तथा आकस्मिक आने के लिए मोदी जी की पाकिस्तान मीडिया ने आलोचना भी की थी और इसे पाकिस्तान की संप्रभुता को कमजोर करने वाला बताया था, जो कि एक नकारात्मक और मिथ्या प्रचार था क्योंकि मोदी भारतीय राज्य के प्रमुख होने के नाते पाकिस्तान के साथ संबंध सुदृढ़ बनाने हेतु पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मिलना उनकी ओर से अच्छा और सकारात्मक कदम था।

उस समय ऐसा लग रहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच चीजें आखिरकार सुलझ सकती हैं और दोस्ती और विश्वास का एक नया युग आएगा, परन्तु अचानक  पठानकोट एयरबेस पर होने वाले हमले ने लोगों की आशाओं पर पानी फेर दिया। मोदी ने फिर भी नवाज शरीफ के साथ अपनी दोस्ती पर भरोसा नहीं खोया और आईएसआई को पठानकोट एयरबेस पर यह दिखाने के लिए आमंत्रित किया कि आतंकवादी कहां से घुसे हैं और इन गैर-राज्य अभिनेताओं के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध करें जो शांति प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास कर रहे हैं। मोदी ने पाकिस्तान या आईएसआई पर किसी संलिप्तता का आरोप नहीं लगाया, अपितु उन्होंने यह समझाने की कोशिश की कि कुछ ऐसे लोग हैं जो भारत पर हमला करने के लिए पाकिस्तान की  धरती पर प्रशिक्षण ले रहे हैं और शांति प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए उन्हें ख़त्म किया जाना चाहिए।

18 सितम्बर 2016 को जम्मू और कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर एक बड़ा आतंकी हमला हुआ, जिसमें भारत के 18 जवान शहीद हो गए। सैन्य बलों की कार्रवाई में सभी चार आतंकी मारे गए। यह भारतीय सेना पर किया गया, लगभग 20 सालों में सबसे बड़ा हमला था।

भारत सरकार ने इस आतंकी हमले को बहुत गम्भीरता से लिया। पहले हुए कई हमलों (पठानकोट आदि) की तरह इस हमले में भी आतंकवादियों के पाकिस्तान से सम्बन्ध होने के प्रमाण मिले, जिसके कारण भारतभर में पाकिस्तान के प्रति रोष प्रकट हुआ और भारत सरकार ने कई अप्रत्याशित कदम उठाए जिनसे भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध प्रभावित हुए।

भारत सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर विश्वभर में पाकिस्तान को अलग थलग करने की मुहिम छेड़ दी। संयुक्त राष्ट्र में भारत की विदेश मन्त्री ने आतंक का पोषण करने वाले देशों की निन्दा की। पाकिस्तान को स्पष्ट शब्दों में कहा कि कश्मीर छीनने का सपना पूरा नहीं होगा। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के बयान 'खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते' के साथ ही भारत ने सिन्धु जल सन्धि की समीक्षा शुरु कर दी। पाकिस्तान ने इसे युद्ध की कार्यवाही बताया[2], और भारत के विरुद्ध परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकी दी। सन्धि रद्द होने के डर से पाकिस्तान ने विश्व बैंक का दरवाजा खटखटाया।[3]

भारत ने नवम्बर 2016 में इस्लामाबाद में होने वाले दक्षेस शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करने की घोषणा की। बांग्लादेश, अफगानिस्तान व भूटान ने भी भारत का समर्थन करते हुए बहिष्कार की घोषणा की।[4] भारत ने पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे पर पुनर्विचार की घोषणा की।[5]

मई 2014 में निर्वाचित होने के बाद से अपने कार्यकाल के मध्य में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान नीति में नाटकीय बदलाव आया है। शुरुआती उत्साह से लेकर दिसंबर 2015 में लाहौर की अचानक यात्रा करने और फिर सितंबर 2016 में पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों के खिलाफ 'सर्जिकल स्ट्राइक' करने तक, श्री मोदी की पाकिस्तान नीति ने पूरी तरह से बदलाव ला दिया है।

29 सितम्बर 2016 को भारत के डीजीएमओ ने प्रेस काँफ्रेंस में बताया कि भारतीय सेना ने आतंकियों के ठिकानों पर सर्जिकल हमले किए।[6] प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 हटाकर ऐसा काम किया है जो अभी तक किसी भी प्रधानमंत्री ने किया न ही आगे वाले प्रधानमंत्री कर पाएंगे। अनुच्छेद 370 भारत व भारत के ताज जम्मू-कश्मीर के बीच एक बहुत बड़ी फांस बना हुआ था। मोदी जी ने इस अनुच्छेद को हटाकर संपूर्ण भारत को एक करने में सबसे बड़ा योगदान दिया है। इससे पहले के प्रधानमंत्री इसे हटाने के बारे में सोच भी नहीं सके थे।

निष्कर्ष

भारत और पाकिस्तान के ऐतिहासिक और राजनैतिक मुद्दे आधारित तनावपूर्ण सम्बन्ध सर्व विदित हैं जिसका मूल कारण है- भारत विभाजन और कश्मीर विवाद।  उक्त दोनों मुद्दे आज तक दोनों देशों को उलझाए हैं। भारत और पाकिस्तान कई बार इस विवाद को लेकर सैनिक समझौते व युद्ध कर चुके हैं, परन्तु आज तक दोनों देशों के मध्य तनाव व्याप्त है जो समय-समय पर दंगों और हमलों के रूप में प्रकट होता रहता है।

वर्तमान में भारत की सैन्य ताकत देश के पाकिस्तान और चीन  बॉर्डर पर एक साथ लड़ाई लड़ने की क्षमता रखती है। देश में राजनीतिक रूप से मजबूत सरकार राज कर रहीं है। ऐसे में पाकिस्तान जिसकी  आर्थिक स्थिति अत्यंत ख़राब है, पाकिस्तान शायद ही भारत को परास्त करने का दुःसाहस कर पाए। अन्य कारण यह भी है कि भारत की मोदी सरकार पाकिस्तान के साथ संबंध मजबूत करने की ओर अग्रसर है और साथ ही भारत ने  इन दिनों पाकिस्तान के पड़ोसी मुल्कों से अपने बहुत अच्छे सम्बंध बनाये हुऐ हैं।

मोदी जी के आने के पहले बड़े-बड़े युद्धों में पाकिस्तान को हराया गया है; पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश भी बनाया गया है;  चीन को 1967 में मुह की खानी पड़ी जिसके परिणामस्वरूप  चीन जैसा विशाल और शक्तिशाली देश उसके बाद कभी भी सीधे युद्द का साहस नहीं कर पाया। पाकिस्तान के दो टुकड़े जब किए गए तब श्री वाजपेयी जी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा था।

मोदी सरकार के आने के बाद वर्तमान स्थिति यह है कि पाकिस्तान आज मोदी जी से भयभीत है। पाकिस्तान प्रत्येक क्षेत्र में  संकट के दौर से गुजर रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, बलात्कार, बलात्कारियों को संरक्षण, दंगे सरकारों की अस्थिरता, हत्या और अपराध आज पाकिस्तान की प्रमुख समस्याएं हैं जिनका हल पाकिस्तान की सरकार के पास नहीं है।

त्रस्त पाकिस्तानी नागरिक इन समस्याओं से मुक्ति पाना चाहते हैं और सामान्य संतुष्टिपूर्ण जीवन व्यतीत करना  चाहते हैं। ऐसे में पाकिस्तान के लोग भी मोदी जी की असीम क्षमताओं में विश्वास करने लगे हैं और वे यह उम्मीद करने लगे हैं कि शीघ्र ही मोदी जी के प्रयासों से दोनों देशों के संबंध सुधरेंगे और दोनों देशों के मध्य शान्ति और भाईचारा स्थापित होगा।  

शासन स्तर पर राजनीतिक विमर्श में बदलाव भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संदर्भ में गहरा संबंधपरक प्रभाव लाता है, जैसा कि मोदी सरकार के तहत हुआ है। इससे पहले, मोदी की विदेश नीति के समग्र मैट्रिक्स का एक थंबनेल स्केच प्रस्तुत किया गया था। मोदी की विदेश नीति निश्चित रूप से भारत-पाक संबंधों को सुदृढ़ करने हेतु सहायक है जो निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच मतभेदों की खाई को कम करेगी और उनके मध्य समझदारी विकसित करेगी। मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान के साथ भविष्य में संबंधों को लेकर अपनाई गई विदेश नीति अत्यंत सराहनीय है।[7]

संदर्भ-सूची

1.देविका मित्तल, 'इंडिया-पाकिस्तान: कॉन्टूर्स ऑफ़ रिलेशनशिप', स्पेस एंड कल्चर इंडिया 4(1):6, 2016

2."सिंधु जल समझौते के उल्लंघन को 'युद्ध के लिए उकसाने' के तौर पर लिया जाएगा : पाकिस्तान". मूल से 28 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितंबर 2016.

3. "सिंधु जल संधि के मसले पर पाकिस्तान ने विश्व बैंक का रुख किया". मूल से 28 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितंबर 2016.

4."पाकिस्तान पड़ा अलग-थलग - भारत के बाद तीन और देशों ने किया सार्क सम्मेलन में शिरकत से इंकार". एनडीटीवी खबर. मूल से 29 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितंबर 2016.

5. "पाकिस्तान को दिए 'सबसे तरजीही मुल्क' के दर्जे पर पुनर्विचार करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी". मूल से 28 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितंबर 2016.

6. "कल रात हमने LoC पर आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल हमला किया: विदेश, रक्षा मंत्रालय की संयुक्त प्रेस ब्रीफिंग में DGMO". एनडीटीवी खबर. मूल से 2 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितंबर 2016.

7.रजा क़ैसर अहमद 'इंडिया-पाकिस्तान रिलेशन्स अंडर मोदी (2014-19)', पाकिस्तान फैक्टर एंड दि कंपेटिंग पर्सपेक्टिव्स इन इंडिया, पृष्ठ 103-124, 2022