ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- I April  - 2022
Anthology The Research
गोरक्षपीठ और भारतीय राजनीति
Gorakshapeeth and Indian Politics
Paper Id :  15989   Submission Date :  18/04/2022   Acceptance Date :  21/04/2022   Publication Date :  25/04/2022
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रचना कुशवाहा
शोध छात्रा
राजनीति विज्ञान विभाग
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय
गोरखपुर,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश धर्म और राजनीति का रिश्ता सदियों पुराना है। सदियों से दोनों व्यक्तित्व एवं समाज पर गहरा प्रभाव डालने वाले विषय रहे हैं। दोनों ने मानव सभ्यता के विकास में अहम भूमिका निभाई है और समय-समय पर मानव इतिहास को नई दिशा भी दी है। उसी परिपेक्ष्य में गोरक्ष पीठ का भी एक नाम है जिसका धर्म के साथ राजनीति से भी गहरा रिश्ता है। अनादि काल से ही हमारा भारत वर्ष एक महान राष्ट्र के रूप में जगत प्रसिद्ध रहता चला आ रहा है। भारतीय संस्कृति की सर्वाधिक प्रमुख विशेषताएं हैं आत्मशुद्धि अर्थात स्वयं शुद्धिकरण की। इसी विशेषता के परिणाम स्वरुप वैदिक धर्म में जब कुछ विकार आया तो महात्मा बुद्ध पैदा हुए। जब बौद्ध धर्म में विकार उत्पन्न हुआ तो गुरु श्री गोरक्षनाथ तथा शंकराचार्य का आविर्भाव हुआ। इस्लामी शासन में जब विकृतियों की संभावनाएं बढी तो भक्ति आंदोलन का सूत्रपात हुआ।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The relationship between religion and politics is centuries old. For centuries, both have been subjects with a profound impact on personality and society. Both have played an important role in the development of human civilization and have also given new direction to human history from time to time. In the same context, there is also a name of Goraksha Peeth, which has a deep relationship with religion as well as politics.
Since time immemorial, our India has been world famous as a great nation. The most prominent features of Indian culture are self-purification. As a result of this specialty, when some disorder came in the Vedic religion, then Mahatma Buddha was born. When there was disorder in Buddhism, Guru Shri Gorakshanath and Shankaracharya appeared. When the possibilities of distortions increased under Islamic rule, the Bhakti movement was initiated.
मुख्य शब्द धर्म और राजनीति, गोरक्षपीठ, नाथ पंथ, महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवैद्यनाथ, योगी आदित्यनाथ
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Religion and Politics, Gorakshapeeth, Nath Panth, Mahant Digvijaynath, Mahant Avaidyanath, Yogi Adityanath
प्रस्तावना
भारतीय समाज को दिशा देने में साधु,सन्तों की प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गुरू वशिष्ट, विश्वामित्र, याज्ञवलक्य, भारद्वाज बालमीकी, मनु, कौटिल्य, वेदव्यास, शुक्राचार्य आदि ने धर्म, राजनीति, समाजिक व्यवस्था आदि के विषय में सम्यक चिन्तन एवं मनन किया है। आधुनिक युग में राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, रामतीर्थ, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द आदि ने समाज सुधार एवं धर्म सुधार आन्दोलनों के द्वारा भारत की सोई आत्मा को जगाया। उसी परम्परा के प्रतीक श्री गोरक्षनाथ मन्दिर गोरखपुर सिद्धपीठ के ब्रह्मालीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महराज हेतु धर्म, संस्कृति, राष्ट्रीयता आदि की रक्षा के लिए सदा समर्पित रहे। गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर के रूप में अवैद्यनाथ जी महाराज ने जिस गुरु का उत्तराधिकारी प्राप्त किया वह दिग्विजयनाथ जी महाराज हिंदुत्व और राष्ट्रीयता के वैचारिक विरासत की एक यशस्वी परंपरा सौंप कर ब्रह्मालीन हुए थे।
अध्ययन का उद्देश्य धर्म और राजनीति दोनों अपने आप में अक्षुण्ण विषय हैं। हर नागरिक का कर्त्तव्य है कि अनुकरणीय आचरणों से वह अपने धर्म को प्रशंसित करे एवं राजनीति में भी सक्रिय एवं सकारात्मक भूमिका निभाकर इसे सही दिशा में ले जाने का प्रयत्न करे। ये दोनों सहजीवी के रूप में सामाजिक गतिविधियों में स्थापित रहते हैं। इसलिए इन दोनों को न अलग करने की जरूरत है, न मिलाने की जरूरत है, बल्कि इन दोनों को दूषणकारी तत्वों एवं सोच से बचाने की जरूरत है। तभी निष्ठावान व्यक्ति एवं सुसंस्कृत समाज का निर्माण संभव हो सकेगा।
साहित्यावलोकन
1- नाथ सम्प्रदाय का इतिहास,दर्शन एवं साधना-प्रणाली में डॉ. कल्याणी मालिक ने व्यक्ति और व्यक्तित्व के अनुरूप गोरक्ष-नाथ की उत्पत्ति दो रूपों में बताया तथा उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व के रूप में गोरक्षनाथ शिवावतार है तथा महाकाल योग शास्त्र में शिव ने स्वंय स्वीकार किया है कि “ मैं योगमार्ग का प्रचारक गोरक्ष हूँ| 2- गोरक्षनाथ और उनका युग में रांगेय राघव ने गोरक्षनाथ की जन्मस्थिति पर मत देते हुए कहते है कि गोरक्षनाथ का जन्मस्थान पेशावर का उत्तर-पश्चिमी पंजाब है तथा इन्होने बताया कि गोरक्षनाथ की महिमा भारत के प्रत्येक प्रान्त में प्रचलित है| 3- महाराष्ट्र के नाथ पंथीय कवियों का हिंदी काव्य में डॉ. अशोक प्रभाकर का मत ने गोगि सांप्रदाय विष्कृति के अनुसार कहा है कि गोरखनाथ का जन्मभूमि गोदावरी नदी के तट पर स्थित'चंद्रगिरी' नामक स्थान है। 4-सबदी के गोरखवानी में बताया गया है कि प्राचीन काल से ही यह परंपरा रही है की गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती और ज्ञान के बिना जीवन व साधना में सफलता नहीं मिल सकती। यहां तक की नाथ योग में गुरु की प्राप्ति ही साधना का प्राण माना जाता था।
मुख्य पाठ

गोरक्षपीठ का उदभव एवं विकास

नाथ पंथ की परम्परा में गुरू श्री गोरक्षनाथ, भगवान शिव के अवतार माने जाते है। नाथ परम्परा उन्हें अजन्मा और अमर मानती है। इतिहासकारों में श्री गोरक्षनाथ के अविर्भाव को लेकर मतैक्य नहीं है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का मानना था कि विक्रम संवत की दसवीं शताब्दी में गुरू श्री गोरक्षनाथ का अविर्भाव मानते है। भारत वर्ष के कोने-कोने में आज भी उनके अनुआयी पाये जाते है। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन की गोरक्षनाथ का योगमार्ग ही था। भारत वर्ष में ऐसी कोई भाषा नहीं है जिसमें गोरखनाथ से सम्बन्धित विवरण न पायी जाती हों। गोरक्षनाथ अपने युग के सबसे बड़े धार्मिक नेता थे। वस्तुतः भारत के सामाजिक, धार्मिक इतिहास को महात्मा बुद्ध, आदि शंकराचार्य और महायोगी श्री गोरक्षनाथ ऐसे धार्मिक नेता हुए जिन्होने अपने युग की धारा की ही मोड़ दिया।

श्री गोरखनाथ मन्दिर के महंत महायोगी गुरू श्री गोरक्षनाथ के प्रतिनिधि होते हैं। श्री गोरक्षपीठ के पीठाधीश के रूप में उनका अभिषेक होता है। नाथपंथ एव श्री गोरखनाथ मन्दिर का संचालन वे गुरू गोरक्षनाथ के प्रतिनिधि-रूप में करते हैं। आडम्बर एवं धार्मिक पाखण्ड के विरूद्ध अभ्युदित नाथपंथ के योगी सामाजिक विभेदीकरण को अस्वीकार करते हैं। योगमार्ग के द्वारा मानव को मुक्ति का मार्ग दिखाने वाली नाथपंथी परम्परा मानव दुःख के परित्राण हेतु सदैव संवेदनशील रही है। श्री गोरखनाथ मन्दिर के महंत महायोगी गुरू श्री गोरक्षनाथ के योगमार्ग का अनुसरण करते हुए सदैव समाज के साथ जुड़े रहते हैं। सामाजिक जनजागरण नाथपंथी योगियों एवं गोरखनाथ मन्दिर के श्री महन्तों की उपासना का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नाथपंथी योगी भक्ति-आन्दोलन को प्रभावित करने के लिए महन्त युगानुसार अपनी सामाजिक राष्ट्रीय-भूमिका का निर्वाह करते रहे हैं।

श्री गोरखनाथ मन्दिर की महन्त-परम्परा में अभिशक्त श्री महंतो-पीठाधीश्वरों में अनेक महंत महान योगी हुए है, जो अपने आध्यात्मिक ज्ञान और योगशक्ति के लिए लोक विश्रुत हैं। इन मंहतों ने महायोगी गोरक्षनाथ की योगसाधना को अपने शिष्यों के माध्यम से आगे बढ़ाया। कई मंहत योग-अध्यात्म के साथ-साथ लोक-कल्याण एवं जन-सेवा के माध्यम से सामाजिक चेतना को जागृत किया और सामाजिक परिवर्तन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करायी। यद्यपि कि श्रीमहंत-पीठाधीश्वरों का कालानुक्रम में प्रामाणिक विवरण उपलब्ध नहीं है तथापित महंत श्री वरदनाथ जी श्री गोरक्षपीठ के पहले महन्त कहे जाते हैं। उनके बाद व्यातनाम सिद्ध महंतों में बाबा अमृतनाथ, परमेश्वरनाथ, बुद्धनाथ, रामचन्द्र नाथ, वीरनाथ अजबनाथ तथा पियारनाथ जी के नाम उल्लेखनीय है। 1758 ई. से 1786 ई. तक श्री बालनाथ जी यहाँ के महंत थे। वे एक उच्चकोटि के अलौकिक शक्ति सम्पन्न योगी थे। उनके बाद के महंतों की परम्परा सुज्ञात हैं। ये सभी तत्कालीन प्रसिद्ध योगी थे। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार है:- श्री माननाथ जी (1880 ई. तक), श्री बालभद्रनाथ जी (1889 ई. तक), श्री दिलवरनाथ जी (1896 ई. तक)। तदन्तर श्री दिलवरनाथ जी के उत्तराधिकारी श्री सुन्दरनाथ जी इस मठ के महंत बने। महंत सुन्दरनाथ जी के समय में ही मन्दिर की व्यवस्था के सुचारू संचालन का दायित्व सिद्धयोगी की चमत्कारिक घटनाएँ आज भी प्रसिद्ध है। सुन्दरनाथ जी के समाधिस्थल होने पर महान योगी गंभीरनाथ जी के शिष्य ब्रह्मनाथ जी महंत बने। उनके पश्चात् 1934 ई. में एकान्त साधना में नैष्ठिक योगी, साथ ही साथ देश प्रसिद्ध लोकसंग्रही और विख्यात हिन्दू नेता श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज पीठाधीश्वर (महंत) बने। उन्होंने अपनी युग-पुरूषोचित चेतना से श्री गोरक्षनाथ मन्दिर की परिसर भूमि का विस्तार तथा मन्दिर-मठ को अभिनव स्वरूप एवं युगोचित गौरव प्रदान किया। इस अवतारी शक्ति के ब्रह्मलीन होने पर उनके एकमात्र शिष्य, सुयोग्य उत्तराधिकारी, लोकसंग्रही भाव से जनोत्थान कार्यनिरत, प्रखर-विद्वान, जनसेवी मनोवृत्ति और व्यापक-उदार दृष्टिकोण वाले महंत अवैद्यनाथ जी गोरक्षपीठाधीश्वर हुए जिन्होंने अपने प्रातः स्मरणीय लोक विख्यात गुरू के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए न केवल उनकी प्रारम्भ की हुई योजनाओं को पूर्ण किया अपितु विविध क्षेत्रो में मन्दिर के धार्मिक, आध्यत्मिक एवं सेवा कार्य को बढ़ाया। श्री गोरक्षनाथ मन्दिर का वर्तमान स्वरूप और सुचारू प्रबंधन इनकी एकनिष्ठ तत्परता और उच्चकोटि की सुरूचि का परिचायक है। 12 सितम्बर 2014 को महंत अवैद्यनाथ जी के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद सुयोग्य उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी महाराज सम्प्रति गोरक्षपीठाधीश्वर पद को गौरवान्वित कर रहे हैं।

गोरखनाथ ने ब्रहाचर्य, वाक् संयम, शारीरिक-मानसिक पवित्रता, ज्ञान के प्रति निष्ठां आदि पर बल देकर समाज को नैतिक पतन के दलदल से बाहर निकाला। नाथपंथ की सबसे बड़ी विशेषता आचरण की शुद्धता पर बल देना है। भारतीय संस्कृति में ‘मनसावाचाकर्मणा’ की पवित्रता पर बल दिया गया है।

नाथपंथ के इस प्रयत्न का परवर्ती आन्दोलनों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परवर्ती संत कवियों की रचनाओ की भावभूमि के निर्माण में नाथ-साहित्य की प्रमुख भूमिका रही है। भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण को परिशुद्ध करने में नाथपंथ का महत्वपूर्ण योगदान है। परवर्ती भारतीय भक्ति-साहित्य में चारित्रिक दृढ़ता, आचरण की शुद्धता और मानसिक पवित्रता का जो स्वर सुनायी पड़ता है उसका अधिकांश श्रेय नाथ साहित्य को जाता है। अखिल भारतीय व्याप्ति वाले इस नाथपंथ के प्रभाव का प्रमाण यह है कि देश भर में इसके पीठ स्थापित हुए और साधना स्थलियों की श्रृंखला खड़ी हुई| सम्प्रदायगत मान्यताओं के अनुसार शिवावतार माने जाने वाले गोरखनाथ की सत्ययुग में कैलास, त्रेता में गोरखपुर, द्वापर में जूनागढ़ और कलियुग में पेशावर स्थित गोरखहट्टी साधना स्थालियाँ प्रमुख हैं| इतिहासकार इसे स्वीकार करें या नहीं इस सम्प्रदायगत मान्यता से इस बात का संकेत अवश्य मिलता है कि नाथपंथ का प्रभाव बहुत ही व्यापक और उसका स्वरूप अखिल भारतीय था| आज जिसे हम भारतीय उपमहाद्वीप कहते हैं जिसकी परिधि में भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका आते हैं। उन सब स्थानों पर नाथपंथ का व्यापक प्रभाव था|


गोरक्षपीठ की सामाजिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक परम्परा

अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिवेश में राष्ट्र की अखंडता के संरक्षक में मानव मात्र को अभयदान देना हमारी सांस्कृतिक गरिमा है। भारत में इस अभयदान व्रत का बड़ी निष्ठा और आस्था से यज्ञ कर्म के रूप में पालन होता आया है।

यह असंदिग्ध है कि राष्ट्र के अखंड रहने पर ही राष्ट्रीय भावनात्मक एकता जीवित रहती है, इसलिए यह सहज स्पष्ट है कि राष्ट्रीय अखंडता राष्ट्रीय एकता से कहीं विशिष्ट है, इसलिए हमें राष्ट्र की अखंडता सुरक्षित रखने में सदा तत्पर रहना चाहिए जिस समय देश में इस्लामी संस्कृति ने प्रवेश किया और हिंदू-मुसलमानों का संपर्क बढ़ा तो पारस्परिक वैमनस्य ना बढ़े, आपस में मेलजोल स्थापित हो, इसको दृष्टि में रखकर महायोगी गोरखनाथ ने इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद साहब के संबंध में निष्पक्ष भावना व्यक्त कर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय अखंडता की बड़ी सावधानी से संरक्षण किया है।

हमारी सांस्कृतिक मर्यादा और प्रतिष्ठा का आधार विश्व के समस्त मानवों को जागृति प्रदान करना है। महर्षि मनु ने अपनी मनुस्मृति में कहा है कि ब्रह्मादेश, कुरुक्षेत्र, मत्स्य, पांचाल आदि क्षेत्रों में उत्पन्न विद्वानों से पृथ्वी के सभी मनुष्य को अपने-अपने आचार-जीवन पद्धति और व्यवहार सीखना चाहिए। धर्म के संरक्षण के स्तर पर हमारी राष्ट्रीय सदभावना का सदा यही स्वर रहता आया है कि नष्ट हुआ धर्म ही मरता है और रक्षित धर्म ही रक्षा करता है। इसलिए नष्ट किया हुआ धर्म कहीं हमको न मारे, यह विचार कर धर्म का नाश नहीं करना चाहिए। यही नाथपंथ और गोरक्षपीठ का मूलमंत्र रहा है| जिस राष्ट्रवादी विचार और सामाजिक समरसता की नीवं ब्रह्मालीन महंत दिग्विजय नाथ महाराज जी ने डाली उसके पश्चात उनके शिष्ट महन्त अवेद्यनाथ जी ने उसे एक वटवृक्ष का स्वरूप प्रदान किया और सही अर्थो में कहा जाए तो वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे|

भारतीय राजनीति एवं महंत दिग्विजयनाथ

यह लोक विश्रुत है कि गोरखपुर का गोरखनाथ मन्दिर श्री गोरक्षनाथ की त्रेतायुगीन पुरातन तपःस्थली पर निर्मित है। गोरखनाथ मन्दिर के महन्त नाथयोगियों के आध्यत्मिक प्रमुख नेता माने जाते हैं। इस मन्दिर की दीर्घकालीन महन्त परम्परा में कुछ ऐसे महान योगी हुए हैं जिन्होंने अपने आध्यत्मिक ज्ञान से समाज का मंगल किया है। आधुनिक युग में राष्ट्र जागरण हेतु महापुरूषों की जो लम्बी श्रृंखला दिखाई पड़ती है उसमें दिग्विजयनाथ जी महत्वपूर्ण कड़ी रहे है। उन्होंने भारतीय संस्कृति, जिसे हम हिन्दू संस्कृति भी कह सकते है, के जागरण एवं उत्कर्ष के लिए अनथक परिश्रम किया।

महंत दिग्विजयनाथ जी बचपन में राणा नान्हू सिंह के नाम से विख्यात थे| इनका जन्म उदयपुर के राणा वंशी परिवार में सन 1894 में वैशाखी पूर्णिमा को हुआ था|

महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज गुलाम भारत में देश की आजादी के लिए कांग्रेस में रहते हुए भी हिंदू हितों की रक्षा के लिए तत्पर रहते थे। 1934 ईस्वी के पूर्व उन्होंने कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया। जिन से हिंदू जाति और धर्म के ऊपर किसी प्रकार के आघात की आशंका थी। 1939 ईस्वी में उन्होंने अखिल भारत वर्षीय अवधूत वेष बारह पंथ योगी महा सभा की स्थापना की तथा साधु संप्रदाय को एक नवीन दिशा प्रदान करने के साथ निष्क्रियता और एकांतिक कथा के स्थान पर समाज सापेक्ष कार्यों की ओर प्रेरित किया। भारत की संसद में महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने गरजते हुए कहा था कि जब तक धर्म प्राण भारत के पवित्र भूमि पर गौमाता के रक्त की एक बूंद भी गिरती रहेगी तब तक देश अशांति की भट्टी में जलता रहेगा। मैं तो हिंदू धर्म का वकील हूं, सन्यासी होते हुए राजनीति में केवल इसलिए उतरा हूं क्योंकि हिंदू संस्कृति और सभ्यता पर आज चारों ओर प्रहार हो रहे हैं। उनका कहना था की राष्ट्र एक सांस्कृतिक इकाई है। किसी भूखंड में निवास करने वाले उस समूह को ही राष्ट्र कहा जाता है जो भूखंड की संस्कृति सभ्यता परंपरा इतिहास आदि को मानता हुआ परस्पर एकता की अनुभूति रखता है। अतः भारत राष्ट्र है जहां किसी पर अत्याचार नहीं होगा। इस राष्ट्र में रहने वाले प्रत्येक निवासी के साथ न्याय होगा तथा प्रत्येक नागरिक को अपनी उपासना पद्धति अपनाने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। महंत  दिग्विजयनाथ जी को सिद्धपीठ के महन्त के रूप में और उनके व्यक्तित्व को रेखांकित करने के लिए मन्दिर तथा उसके आसपास के परिवेश को भव्य रूप प्रदान किया है। पूर्वोंचल में शिक्षा के प्रसार के लिए ‘महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद’ की स्थापना की। गोरखपुर आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। विश्वविद्यालय की स्थापना महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा संचालित महाराणा प्रताप महाविद्यालय के भवन, शिक्षक, विद्यार्थी सहित सम्पूर्ण सम्पत्ति महन्त दिग्विजयनाथ जी द्वारा विश्वविद्यालय को दिये जाने से हुई। अपने समय के देश के अग्रणी राजनेताओं, सामाजिक कार्य में संलग्न विभूतियों तथा धार्मिक एवं आध्यत्मिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित सन्त-महात्माओं से उनके घनिष्ठ एवं सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध थे। अपने कर्मशील एवं ध्येयवाद में प्रेरित जीवन के 77 शरद व्यतीत करने के बाद 28 सितम्बर 1969 ई. को महन्त जी ब्रह्मलीन हुए।

महंत अवैद्यनाथ की राजनीतिक यात्रा

महन्त दिग्विजयनाथ जी ब्रह्मलीन होने के बाद उन्हीं के योग्य शिष्य एवं ब्रह्मलीन महन्त जी के जीवन काल में ही अपनी सक्रियता से सभी क्षेत्रों में विशेष छाप छोड़ने वाले अवैद्यनाथ जी गोरक्षपीठ के महन्त पद पर आसीन हुए। गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज का बचपन का नाम कृपाल सिंह विष्ट था। आपके पिता श्री राय सिंह बिष्ट हिमालय की गोद में बसे देव भूमि की पौड़ीगढ़वाल के कंडे ग्राम के निवासी थे। 18 मई 1919 को पांडे ग्राम में जन्मे बालक को कौन जानता था कि एक दिन वह बालक देश-विदेश के हिंदू धर्म कार्यों का नेतृत्व करेगा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति पूर्णतः समर्पित होकर राष्ट्रीय एकता अखंडता के उस यज्ञ का आचार्य बनेगा जिस की प्रज्वलित अग्नि सिखाओ से हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों विशेष कर छुआ छूत को बस में करने की प्रेरणा एवं संदेश प्राप्त होगा। किंतु ईश्वर ने उन्हें भारत भूमि पर उसी महान कार्य हेतु भेजा था वो उसी अनुरूप परिस्थितियां करवट लेने लगी।

धर्म की रक्षा के लिए राजनीति, महंत अवैद्यनाथ जी महाराज को अपने गुरुदेव की विरासत से प्राप्त हुई। महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज के साथ ही महंत अवैद्यनाथ जी महाराज राजनीति मंच पर सक्रिय हो चुके थे। 1962 में उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव में मानीराम विधानसभा से विजयी होकर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज पहली बार विधानसभा के सदस्य बने और लगातार 1977ईस्वी तक के मानीराम विधानसभा से चुनाव में विजयी होते रहे। 1980 में मीनाक्षी पुरम में हुए धर्म परिवर्तन की घटना से विचलित महंत जी राजनीति से संन्यास लेकर हिंदू समाज की सामाजिक विषमता के विरुद्ध जनसाधारण के अभियान पर चल पड़े। लोकसभा चुनाव में पहली बार मानदेय विजयनाथ जी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर 1969 ईसवी के उपचुनाव में महंत अवैद्यनाथ जी महाराज को गोरखपुर की जनता ने ससम्मान संसद में भेज दिया। 1989 में श्री राम जन्म भूमि आंदोलन अपने उत्कर्ष पर तथाकथित सेकुलर राजनीति दल चुनौती देने लगे। इस आंदोलन को जनता का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ। इस परिस्थितियों से अयोध्या में हुए धर्म संसद में महंत अवैद्यनाथ जी महाराज से लोकसभा चुनाव जीतकर सेकुलर दलों को जवाब देने का प्रस्ताव पास हुआ और हिंदू महासभा से 1979 के लोकसभा चुनाव में श्री रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण के मुद्दे पर संत महात्माओं के समर्थन में चुनाव हुए। भारतीय जनता पार्टी और श्री विश्वनाथ प्रसाद के नेतृत्व वाले गठबंधन के प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में लोकसभा 1991 के मध्यावधि 1996 लोकसभा चुनाव में रहे। लोकसभा में सम्मानित सदस्य होते हुए महंतजी 1971,1990,1991 में भारत सरकार के गृहमंत्रालय के सदस्य राजनीति को भी सभी ने स्वीकारी। 1996 के दैनिक समाचार पत्र ने अपनी टिप्पणी में लिखा मौजूदा संसद के बड़े-बड़े राजनेता भी हैं जिन्होंने 5 विधानसभा और लोकसभा का चुनाव जीता है। 1962 में पहली बार विधायक बने। हिंदू महासभा से 1967-69, 1970 और 1974 में विधायक स्पष्ट है कि किसी का प्रभाव यहां तक की जनता की लहर में भी 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी महाराज को चुनाव लड़ने का निर्देश दिया। गोरखपुर की संसदीय सीट पर गोरक्षपीठाधीश्वर महाराज की कृपा और आशीर्वाद से पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज अयोध्या के प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके है। महंत अवैद्यनाथ जी महाराज ने सदैव राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं भारतीय संस्कृति की पुनः प्रतिष्ठा तथा हिंदू समाज की रक्षा में अपने राजनीतिक भूमिका निर्धारित की| बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज के नेतृत्व में गोरक्षपीठ ने सामाजिक परिवर्तन की जो मशाल प्रज्वलित की वह महंत अवेद्यनाथ जी महाराज द्वारा देश भर में चलाये गए छुआ-छूत विरोधी अभियानों से पुर्णतः देदीप्यमान हो गयी| हम लोग पूज्य महंत जी को 1987 ई. से लगातार सुनते आ रहे है| कोई मंच हो, कोई विषय हो, किन्तु महाराज जी के उद्बोधन में हिन्दू समाज की एकता और छुआछुत समाप्त करने की अपील किसी-न-किसी रूप में आती रही है|

10 नवंबर 1989 को महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित जनसभा में महंत अवैद्यनाथ जी महाराज ने कहा कि मैं राजनीति से संयास ले चुका था किंतु सरकार हिंदू समाज के साथ अन्याय कर रही है सरकार अब अपने को धन्य पेश करती है किंतु एक समान कानून नहीं बनाती हिंदू पर अलग कानून और मुस्लिम पर अलग कानून लागू होते हैं|

महंत अवैद्यनाथ जी महाराज द्वारा सामाजिक समरसता हेतु किए गए भागीरथ प्रयासों का संकलन और उनका उल्लेख तो संभव नहीं है किंतु पटना के महावीर मंदिर में दलित पुजारी की प्रतिष्ठा के प्रयास का इतिहास में हमेशा उल्लेख किया जाता रहेगा। यह सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्र के लिए बड़ा आघात था। पर संसार के चक्र के इस अटल सत्य से कोई कैसे मुक्त हो सकता है? पर संतोष इस बात का था कि महन्त जी ने अपने जीवन को चरितार्थ किया था।

योगी आदित्यनाथ एवं भारतीय समावेशी राजनीति

महंत योगी आदित्यनाथ जी का असली नाथ अजय सिंह है| उत्तराखंड के एक गाँव में पैदा हुए योगी ने गढ़वाल यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढ़ाई की| पढ़ाई के बाद वो गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए| महंत ने दीक्षा देकर अजय को योगी आदित्यनाथ का नाम दिया| महंत अवैद्यनाथ ने 1998 में राजनीति से सन्यास लिया तो योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया|

अपने मठाधीशो के कार्यो का अनुसरण करते हुए वर्तमान पीठाधीश्वर और उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी सामाजिक समरसता राष्टवाद की भावना तथा जनता की सुविधा के लिए शिक्षण प्रशिक्षण चिकित्सा प्रौद्दोगिकी तथा कृषि के उन्नति के लिए विभिन्न संस्थाओ के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित किया और वर्तमान समय में इस पीठ से सम्बंधित लगभग तीन दर्जन से अधिक संस्थाए जनमानस की सेवा में स्थापित है|

निष्कर्ष आदि काल से भारतीय संस्कृति के उत्थान में ऋषियों महाऋषियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और भारत में जितने धर्म और संप्रदाय विकसित हुए वैसा विश्व की किसी भी संस्कृति में दिखाई नहीं देता है। इसलिए धर्म को भारतीय संस्कृति की प्राण वायु माना गया है। इन धार्मिक मान्यताओं में शैव, वैष्णव, शाक्तगणपति जैसे अनेक संप्रदायों का विकास हुआ, जिन की महत्ता देश के अलग-अलग भागों में स्थापित है। भगवान विष्णु की तरण शिव का अवतार नहीं हुआ बल्कि उनका विकास रूद्र से शिव के रूप में हुआ क्योंकि ऋग्वेद में भगवान शिव को रूद्रनाम से ही संबोधित किया गया है। जो अपने विघटनकारी और विनाशकारी शक्तियों के लिए ही जाना जाता है लेकिन उत्तर वैदिक काल तक आते-आते रूद्रशक्ति के रूप में स्थापित हुए और पुराणों में इन्हें देवाधिदेव महादेव के रूप में श्रेष्ठतम देवता के रूप में स्थापित किया गया है। इस पुरातन धार्मिक और यौगिक परंपरा के अनेक अनछुए पक्षों को उजागर कर सामान्य जन के लिए सुलभ बनाया जाए क्योंकि इस पंथ के ग्रंथ की शिक्षाएं, गुरुवाणी, गोरक्षवाणी के मूल तत्वों से अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं। अत: ऐसे जिज्ञासाओं के अंदर गोरक्षपीठ के उपदेश, इनके आदर्श, इनकी सांस्कृतिक, परंपराओं राष्ट्रवादी विचारधाराओ के साथ-साथ धार्मिक और यौगिक परंपराओं को पुनर्स्थापित कर राष्ट्रवाद संस्कृति शिक्षा और पारस्परिक सौहार्द की जड़ों को सुदृढ़ किया जाए जिससे एक श्रेष्ठ और आदर्श समाज की संकल्पना साकार हो सके। गोरक्षपीठ की परंपरा को सतत आगे बढ़ाने में प्रदेश की वर्तमान सरकार भी निरंतर प्रयासरत है। इससे समाज में मानव विकास की दिशा में नवीन संभावनाओ का मार्ग प्रशस्त होगा तथा एक स्वस्थ एवम समृद्ध राष्ट्र निर्माण में सहायता प्राप्त होगी|
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. दिवेदी, डॉ. हजारी प्रसाद : नाथ सम्प्रदाय, सागर प्रिन्टर्स, नई दिल्ली 2. दिवेदी, डॉ. हजारी प्रसाद: गोरक्ष सिद्धांत संग्रह 3. विद्यापति : गोरक्ष विजय 4. ब्रिम्स, जी० डब्लू० : गोरक्षनाथ एण्ड कनफटा योगीज 5. बन्धोपाध्याय,अक्षय कुमार : गम्भीरनाथ प्रसंग 6. महाजन, ए०के० : आधुनिक भारत एवं भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, यूथ टाइम्स प्रेस, नई दिल्ली