ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- I April  - 2022
Anthology The Research
उत्तर प्रदेश में कृषि
Agriculture in Uttar Pradesh
Paper Id :  16018   Submission Date :  15/04/2022   Acceptance Date :  21/04/2022   Publication Date :  25/04/2022
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रश्मि गोयल
एसोसिएट प्रोफेसर और अध्यक्ष
भूगोल विभाग
एस0डी0 पी0जी0 कॉलेज
गाज़ियाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तम्भ है। कृषि में फसल उत्पादन के अलावा पशुपालन, बागवानी, मछली पालन रेशम उत्पादन आदि क्रियाओं को शामिल किया जाता है। यह सब भूमि से जुडी होती है। उत्तर प्रदेश की पहली प्राथमिकता किसानों की भलाई है। राज्य में गंगा नदी के किनारे बसे गांव में जैविक खेती को बढावा दिया गया है। गेहूं, आलू, हरी मटर, आँवला, आम, और गन्ना उत्पादन में उत्तर प्रदेश ने पहला स्थान प्राप्त किया है। वर्तमान युग में कृषि का आधुनिकीकरण तथा विज्ञानीकरण हो गया है। कृषि जीविका के लिए पुराना व्यवसाय है। कृषि उत्पादन बढ़ाने में लघु सिंचाई परियोजनाऐं ज्यादा कारगर सिद्ध हुई है। कृषि के क्षेत्र में जैव प्राविधिकी, कम्प्यूटरों तथा संवेदी उपग्रहों का प्रयोग नवीनतम उपलब्धि है। जैव प्राविधिकी की सहायता से गेंहू व चावल की अधिक उपज वाली किस्मों के प्रयोग पर डा0 विलियम गैड ने बल दिया था। किसानों की मेहनत, और सरकार का भरपूर साथ होने के कारण खाद्दान्न उत्पादन नया रिकाॅर्ड बनाने में कामयाब हो सका है। कोरोना में भी प्रोटोकाॅल का पालन करते हुए भी खेती की सारी गतिविधियाॅ जारी रही। इसी कारण उत्तर प्रदेश ने कृषि के क्षेत्र में सफलता अर्जित की। सबसे अधिक रोजगार देने वाले कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ने से जहां ग्रामीण रोजगार बढ़ेगा वही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Agriculture is the main pillar of the economy. Apart from crop production in agriculture, activities like animal husbandry, horticulture, fish farming, sericulture etc. are included. It is all connected with the land. The first priority of Uttar Pradesh is the welfare of the farmers. Organic farming has been promoted in the villages situated on the banks of river Ganga in the state. Uttar Pradesh has topped in the production of wheat, potato, green peas, amla, mango, and sugarcane. In the present era agriculture has been modernized and scientificised. Agriculture is an old occupation for livelihood. Minor irrigation projects have proved to be more effective in increasing agricultural production. The use of biotechnology, computers and sensing satellites is the latest achievement in the field of agriculture. Dr. William Gad emphasized the use of high yielding varieties of wheat and rice with the help of biotechnology. Due to the hard work of the farmers, and the full support of the government, the production of food grains has been able to make a new record. Despite following the protocol in Corona, all the farming activities continued. For this reason, Uttar Pradesh earned success in the field of agriculture. With the increase in investment in the most employable agriculture sector, where rural employment will increase, the rural economy will be strengthened.
मुख्य शब्द कृषि, कम्प्यूटर, पशुपालन, बागवानी, जैव प्राविधिकी, संवेदी उपग्रह।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Agriculture, Computer, Animal Husbandry, Horticulture, Biotechnology, Sensory Satellite.
प्रस्तावना
कृषि के द्वारा मानव की जीविका सम्बन्धी आवश्यकतायें पूरी होती है। पशुओं को भी पालतू बनाकर उनसे भी आवश्यकतानुसार पूर्ति की जाती है। इतिहास की दृष्टि से भी विकास आदिकाल से आधुनिक काल तक लगातार होता रहा है। कृषि मानव सभ्यता का प्रमुख आधार है। कृषि व्यवसाय को निर्धारित करने वाले भौतिक कारकों में जलवायु महत्वपूर्ण कारक है। विभिन्न प्रकार की कृषि फसलों के लिए अलग-अलग प्रकार की जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। कृषि फसलों के लिए विशेषतः ताप तथा नमी सम्बन्धी दशायें अधिक उपयुक्त है। प्रत्येक फसल के लिए उसके बोने, बढ़ने तथा काटने के लिए अलग-अलग- जलवायुयिक दशायें अपेक्षित होती है। उच्च एवं मध्य अक्षांशों में फसल उगाने व काटने के समय में पर्याप्त अंतराल रहता है। कृषि का महत्व राजस्व की प्राप्ति में महत्वपूर्ण है। इसका उत्पादन परिवहन, विपणन माल तैयार करने तथा अन्य पहलुओं और उपयोग के राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कृषि मानसून पर निर्भर है। समय से मानसून आ जाता है तो फसल का उत्पादन अच्छा होता है। जिससे खाद्दान्नों की आपूर्ति में कमी नही आती एवं उद्दोगों को कच्चा माल आसानी से वांछित मात्रा में मिल जाता है। साथ ही यदि फसलें अच्छी होती है, तो ऐसी स्थिति में राज्य सरकारें अपना बजट उसी हिसाब से बनाती है। क्योकि खाद्दान्नों का आयात उसे बाहर से नहीं करना पड़ता है। इसके विपरीत खाद्दान्नों की यदि अकाल की स्थिति होती है, तो सरकारों को राहत एवं बचाव कार्यों के लिए अधिक धनराशि का प्रावधान बजट में करना पड़ता है। पुराने समय से ही कृषि लोगों का परम्परागत व्यवसाय रहा है। विशाल आकार, तथा भौतिक एवं सामाजिक दशाओं में विविधता के कारण विविध प्रकार की फसलें उगायी जाती है।तथा विभिन्न प्रकार की कृषि पद्धतियाॅ अपनायी जाती है। इनमें स्थानान्तरणशील कृषि, पारस्परिक जीवन निर्वाहक कृषि, बागवानी कृषि, आदि सम्मिलित है। कृषि का अर्थ हेरोल्ड एच0 मैकार्टी के अनुसार फसलों एवं पशुओं की देख-रेख को कृषि की संज्ञा प्रदान की जाती है। लोगो का मानना है कि कुछ किसान जैविक व प्राकृतिक खेती करने को कठिन प्रकिया मानते हुए खेती करने से बचते है। पूरी प्रकिया को समझाने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र में गायपालन, शुरू किया गया है। गौमूत्र व गोबर से वर्मी कंपोस्ट तैयार करके उसका प्रयोग सब्जी व अन्य फसलों में किया जाता है। जैविक कृषि उत्पादन की ऐसी पद्धति है जिसमें सिन्थेटिक उर्वरकों कीट नाशकों वृद्धि नियन्त्रकों तथा पशु आहारों के योगात्मकों के प्रयोग का परिहार किया जाता है। जिन जगहों पर आबाद अधिक मात्रा में पायी जाती है, वहां पर कृषि भूमि पर अधिक भार चढ़ जाता है इस वजह से वहां पर जीवन निर्वाहन कृषि कार्य ही कर पाना संभव होता है। क्योकि अधिक आबादी के भोजन की आपूर्ति के लिए सम्पूर्ण कृषि भूमि भरण-पोषण वाली कृषि को बचा पाना ऐसे भागों में संभव नही हो पाता है।
अध्ययन का उद्देश्य खाद्द आपूर्ति के लिए कृषि का विकास दो रूपों में प्रथम कृषि क्षेत्र में वृद्धि तथा दूसरा कृषि क्षेत्र में वृद्धि के साथ-साथ कृषि की गहनता में वृद्धि। कृषि की गहनता के लिए उन्नत किस्मों के बीजों तथा रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशों का उपयोग होना चाहिये कृषि को निम्न बिदुओं के तहत स्पष्ट किया जा सकता है- 1. विदेशी मुद्रा अर्जन का साधन 2. कच्चे माल की पूर्ति 3. रोजगार की उपलब्धता 4. खाद्दान्न पूर्ति का साधन 5.राष्ट्रीय आय का प्रमुख स्रोत 6. राजस्व का साधन 7. आर्थिक विकास की प्राप्ति 8. पशु आहार की पूर्ति
साहित्यावलोकन
उत्तर प्रदेश राज्य में 2012 से 2017 वर्ष तक 139.40 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष चावल का औसत उत्पादन था। 2019-2020 में चावल की रोपाई 58.99 लाख हेक्टेयर हुई थी। 2012 से 2017 तक चावल 123.61 खरीद रही। इसी अवधि में 14.87519 किसानों को 17119 करोड़ का धान मूल्य का भुगतान हुआ। गेंहू उत्पादन 288.14 लाख मीट्रिक टन 2012 से 2017 वर्ष तक था। इसी अवधि में 94.38 लाख मीट्रिक टन खरीद और भुगतान 1902098 किसानों को 12808 करोड़ रू0 का किया गया। मत्स्य उत्पादन वर्ष 2017 में 6.18 लाख टन प्रति वर्ष था। गन्ने का उत्पादन 72.38 टन प्रति हेक्टेयर 2016-17 में था। 2017 से 2021 वर्ष तक 1.44 लाख करोड़ रूप्ये का भुगतान किया गया है। इतनी भारी रकम का भुगतान करने में सरकार ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। 2012 से 2017 वर्ष तक 95215 करोड़ रूपये का भुगतान गन्ना किसानों को किया गया। और 2007 से 2012 तक 52131 करोड़ रू0 का 2015-16 से 2020-21 में तिलहनी फसलों को काफी लाभ मिला है। 43 प्रतिशत की वृद्धि हासिल हुई है। 2009-10 वर्ष में यह राज्य भारत के गेहूं क्षेत्र का 32.52 प्रतिशत तथा उत्पादन का 32.68 प्रतिशत योगदान देता है। सिंचित गेहूं का क्षेत्र 36.8 प्रतिशत वर्ष 1965 से बढ़कर 2008-09 में 91.3 प्रतिशत हो गया। 1965 में 4.9 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर उर्वरकों के उपयोग की अपेक्षा 65 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर 2009 में हो गया था। वर्षा की कमी के कारण कभी-कभी विदेशों से गेहूं आयात करना पड़ता है। 2006-07 में 60.8 लाख टन गेहूं का आयात किया गया था। 2013-14 में देश में कुल गन्ना क्षेत्र 43 प्रतिशत तथा उत्पादन का 35.8 प्रतिशत इसी राज्य से प्राप्त होता है। रबी तिलहनों मे उत्तर प्रदेश सर्वोपरि है। इसी अवधि में लाही और सरसों का उत्पादन राज्य में 17.1 प्रतिशत तथा अलसी का 12.7 प्रतिशत तम्बाकू उत्पादन 28.5 प्रतिशत तथा देश का 25 प्रतिशत से अधिक सन उत्पादक क्षेत्र एवं 30 प्रतिशत से अधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। 2010-11 वर्ष में कुल 4.75 करोड़ टन अनाज के उत्पादन, पूर्वी क्षेत्र में गेहूं की बुवाई, धान के संकर बीजों का उपयोग तथा गन्ने के साथ-साथ उडद की बुवाई में पहला स्थान प्राप्त हुआ है।
मुख्य पाठ


अध्ययन क्षेत्र
उत्तर प्रदेश का वर्तमान भौगोलिक स्वरूप 9 नवम्बर 2000 को अपने रूप में आया उसी समय उत्तर प्रदेश के 13 पर्वतीय जिलों को काटकर उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण किया गया। उत्तर प्रदेश पुरान समय के गोंडवाना लैंड का भू-भाग है। उत्तर प्रदेश की सीमा को छूने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, राज्यस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा , छत्तीसगढ, झारखण्ड, बिहार, उत्तराखण्ड एवं दिल्ली है। इस राज्य को स्पर्श करने वाला केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली एक मात्र है। सीमाऐं राज्य के गाजियाबाद और गौतमबुद्ध से लगी हुई है। राज्य की उत्तरी सीमा नेपाल के अलावा उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश पश्चिमी सीमाऐं हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली से दक्षिणी सीमायें मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़, सबसे लम्बी सीमा मध्य प्रदेश तथा न्यूनतम सीमा रेखा हिमाचल प्रदेश है। उत्तर प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र एक समतल मैदानी भू-भाग है।
राज्य का विस्तार
1.   Latitude - 26.8467° N
2.   Longitude - 80.9462°E
3.   Area - 243.286 Km2   
4.   Highest elevation (Amsot Peak) in Shakumbhari Devi Range -957m (3,140ft.)
5.   जिसमें से कुल बोने योग्य क्षेत्र -16.68 मिलियन हैक्टेयर
6.   सकल बोया योग्य क्षेत्र -25.5 मिलियन हैक्टेयर
7.   फसल सघनता प्रतिशत- 153 प्रतिशत
8.   कृषि का जी0डी0पीमें योगदान- 25.2 प्रतिशत
9.   देश की कृल कृषि भूमि- 10.45 प्रतिशत का हिस्सा
10. जनसंख्या- 243.4 मिलियन 

विश्लेषण
तिलहन, दलहन, बागवानी, पशुधन, डेयरी व मत्स्य क्षेत्र से कृषि विकास में बढोत्तरी हो सकती है। जैविक व प्राकृतिक खेती को सरकार उत्पादन की दृष्टी बढाने के लिए कीटनाशक व रसायनों का प्रयोग कर रही है। जैविक उत्पादन के उपभोग से स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है। फसलों के लिए तापमान, वर्षा, होने का तरीका, धूप या बादल सम्बन्धी दशायें, पानी का बरसने का समय तथा मिटटी में उपलब्ध नमी की मात्रा, हिम, पाला एवं ओले इन सब जलवायु दशाओं का प्रभाव पडता है। रबी की फसलों को शीतकाल के प्रारम्भ में बोया जाता है। यह विशेषकर सिचाई पर निर्भर करती है। गेहूं, जौ, चना, सरसों, मटर, अरहर, मसूर, आदि प्रमुख रबी की फसलें है गेहूं की पैदावार 11.13 करोड़ टन। खरीफ की फसल बारिश के आने से पहले बोयी जाती है। चावल , ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, जूट, मूंगफली, तिल, तम्बाकू, गन्ना, उडद, मूंग, मोठ, आदि प्रमुख खरीफ की फसलें है। चावल का उत्पादन 12.79 करोड़ टन। जायद की फसल गर्मियों में बोयी जाती है सब्जियाॅ, तरबूज ककडी, ज्वार आदि प्रमुख जायद फसले है। खाद्दान्नों पैदावार 31 करोड़ टन से अधिक रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। राज्य के अपवाह की सामान्य दिशा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। जो मैदान के ढाल के अनुरूप है। राज्य में उपार्द्र शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। शीत ऋतु शुष्क होती है। राज्य में वर्षा जून से सितम्बर के मध्य गर्मी के मानसूनों द्वारा प्राप्त होती है। वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर तथा पर से दक्षिण की ओर घटती जाती है। वर्षा की अनिश्चितता और असमान वितरण के कारण प्रदेश के कुछ भाग प्रायः बाढ़ तथा सूखा ग्रस्त रहते है। जैसे-बुंदेलखण्ड। वनस्पति में उष्णकटिबन्धीय आर्द्र पर्णपाती वन, उष्णकटिबन्धीय शुष्क पर्णपाती वन, उष्णकटिबन्धीय कटीलें वन। जिसमें साल सागौन, खैर, शीशम, गूलर, महुआ, सेमल, हर्रा, कुसुम, रोजवुड, नीम, पीपल, आम, जामुन, इमली पलाश, बबूल, खजूर, खैर, खेजरा, कन्जू, झाऊ आदि प्रमुख वृक्ष है राज्य में जलोढ़ तथा मिश्रित लाल-पीली मिटटी। जलोढ मिटटी का विस्तार सम्पूर्ण गंगा के मैदानी क्षेत्र पर पाया जाता है। रंग हल्का होता है इसमें चीका की मात्रा अधिक होती है। जिसमें नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा इसकी उर्वरता बनी रहती है। इसमें उर्वरकों का कम उपयोग किया जाता है। लाल-पीली मिट्टी बुन्देलखण्ड में पायी जाती है। इसमें लोहा एवं एल्युमिनियम की प्रचुरता होती है। कृषि प्रधान राज्य होने पर भी राज्य में कृषि का विकास अनेक कारणों से बाधित होता है। राज्य में कृषि खेतो का आकार बहुत छोटा होने के कारण कृषि का विकास बाधित होता है। राज्य के शुद्ध कृषित क्षेत्र को सिंचाई की सुविधायें उपलब्ध हैं। उपरी व निचली गंगा नहर, पूर्वी यमुना नहर, शारदा नहर, आगरा नहर, तथा गंडक नहर सिंचाई की प्रमुख नहरें है। खनिजों में चूना पत्थर, डोलोमाइट, काॅच बालू, कोयला, बाॅक्साइट, जिप्सम, संगमरमर, बालू का पत्थर आदि प्रमुख है। विद्दुत केन्द्र रिहन्द, ओबरा सिंगरौली, अनपारा, परीद्दा, टाण्डा, ऊॅचाहार, माताटीला, नरोरा आदि में स्थित है। राज्य में औद्दोगिक विकास में सबसे बड़ी बाधा ऊर्जा संकट, पूंजी अभाव तथा असुरक्षा से सम्बद्ध है। कानपुर, लखनऊ, मुगलसराय, टूण्डला, आगरा, मुरादाबाद, झांसी, वाराणसी, फैजाबाद, बरेली एवं सीतापुर रेलवे के अन्य प्रमुख जक्शन है। राज्य में प्रमुख हवाई अड्डे वाराणसी (बाबतपुर) आगरा (खेरिया), लखनऊ (अमौसी), कानपुर (चकेरी) इलाहाबाद (बमरौली), सहारनपुर (सरसावा), गाजियाबाद (हिण्डन), रायबरेली (फुर्सतगंज) झांसी, बरेली तथा गोरखपुर है। उत्तर प्रदेश में पर्यटकों के लिए बहुत आकर्षण मौजूद है। जैसे वाराणसी, विन्ध्यांचल, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग, मथुरा, वृन्दावन, फतेहपुर सीकरी, सारनाथ, कुशीनगर, आगरा, लखनऊ, जौनपुर, आदि। इलाहाबाद में कुम्भ मेला का आयोजन प्रत्येक बारहवें वर्ष तथा अर्द्ध कुम्भ प्रत्येक छठवें वर्ष में लगता है। उत्तर प्रदेश सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। भौतिक तथा सांस्कृतिक विविधताओं के आधार पर राज्य को तीन प्रमुख गंगा-मैदान उत्तर, गंगा मैदान दक्षिण, बुन्देलखण्ड में बांटा जाता है। विकास की दृष्टि से पश्चिमी उत्तर प्रदेश सर्वाधिक विकसित तथा बुन्देलखण्ड सबसे पिछड़ा क्षेत्र है। पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं गंगा की घाटी के क्षेत्रों में कुओं के द्वारा तथा दूसरें क्षेत्रों में तालाबों द्वारा तथा राज्य के पश्चिमी भाग में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है सबसे अधिक नलकूपों के द्वारा की जाती है।

कृषि की विशेषतायें- 
1. कृषि में मनुष्य का श्रम बहुत महत्वपूर्ण होता है।
2. खेत बिखरे हुए तथा जंगल में घिरे होते है। क्योकि जंगल को साफ करके भूमि को कृषि योग्य बनाया जाता है। खेत बदलते रहते है।
3. कृषि कार्य में किसान का सम्पूर्ण परिवार लगा रहता है। 
4. प्रति हैक्टेयर पैदावार अत्यन्त कम होती है।
5. कृषक कृषि के साथ-साथ एकत्रीकरण, आखेट एवं मछली पकड़ना आदि व्यवसाय करते है।
6. साफ की गई वनस्पति अनियन्त्रित रूप से पुनः उगने लगती है, यह कृषि में बाधक होती है।
7. उत्पादन में कमी
8. खाद्दान्नों फसलों की प्रमुखता
9. कृषि पर अधिक जनसंख्या का निर्भर होना।
10. जीवन यापन के रूप में
11. मानसून पर निर्भरता
12. राष्ट्रीय आय का प्रमुख खेत
13. भू-जोतों का छोटा स्वरूप
14. कृषि पर जलवायु का प्रभाव
15. सिंचित भूमि
16. कृषि के प्राचीन ढंग

उन्नति की ओर उत्तर प्रदेश- राज्य में कृषि क्षेत्र को अच्छा बनाने के लिए बाजार को बडा़ बनाने की दृष्टि से मंडी अधिनियम में संशोधन करने में और डीबीटी के माध्यम से भुगतान करने वाला राज्य प्रथम बना। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के द्वारा किसानों को इस प्रकार वर्षों के तहत करोड़ रूपये में दी गई।
2018-19 - 2238.35
2019-20 - 11002.54
2020-21 - 14309.46
2021-22 - 9970.65
किसान हित में यूरिया की दरों को दूसरे प्रदेशों के समान किया। सोलर पम्प योजना के अन्दर सिंचाई में प्रयोग की जाने वाले डीजल पम्प और दूसरें साधनों केो परिवर्तित करने के उद्देश्य से इस योजना को काफी आगे बढ़ाया जा रहा है। राज्य में 24437 सोलर पम्पों की स्थापना 2017-18 से 2021-22 तक की गयी। कृषि यन्त्रों की महत्ता को देखते हुए सीटू मैनेजमेंट ऑफ क्राॅप रोसेडयू योजना पर 50 प्रतिशत तक और फार्म मशीनरी बैंक पर 80 प्रतिशत तक अनुदान का लाभ मिल रहा है। 260 फार्म मशीनरी बैंक, 25 खाद्द प्रसंस्करण इकाईयाॅ, 48 एमएसपी आधारित क्रय केन्द्र शुरूआत, 114 फल सब्जी बिक्री केन्द्र स्थापित 28 बीज प्रसंस्करण इकाईयां स्वीकृत हुई है। आईआईटी0 रूड़की में किसान मोबाईल एप लांच किया गया जिसके द्वारा निम्न जानकारियाॅ मिलेगी।
1. चयन किये गये ब्लाॅक के मौसम का पूर्वानुमान।
2. एडवाइजरी बुलेटन सुझाव।
3. किसान एप के द्वारा फीडबैक और सुझावों से कृषि मौसम परामर्श सेवाओं को लाभदायक बनाया जायेगा।
4. आधुनिक तकनीक से 12 किमी0 तक की मौसम की जानकारी प्राप्त करायी जा रही है। किसान एवं राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र-दूसरो के सहयोग से बनाया गया है।
5. कीटनाशकों तथा अन्य कृषि सामग्री का छिडकाव के लिए 100 किसान ड्रोन, और ड्रोन स्टार्ट-अप जिसके द्वारा रोजगार के अवसर मिलेगे।
6. किसान ड्रोन की सहायता से किसान फल, सब्जियों और फूल जैसे उत्पादों को अल्प समय में बाजारों में लाने के लिए प्रयोग कर सकते है।
7. उत्तर प्रदेश किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अन्तर्गत संख्या लाख में अगस्त 2021 तक दर्ज की गई जो निम्न प्रकार हैः-
2016-17 - 100.42
2017-18 - 114.23
2018-19 - 131.81
2019-20 - 148.41
2020-21 - 156.86
2021-22 - 160.90
कम्प्यूटरों का प्रयोग कृषि जोतों, मिट्टी, वर्षा तथा सिंचाई के प्रारूप, शस्य प्रारूप, बीजों, उर्वरकों, तथा कृषि उपकरणों की उपलब्धता, भूमि उपयोग प्रारूप, आदि अनेक सूचनायें एकत्र करने के लिए किया जा सकता है।
कृषि में दूर संवेदी उपग्रहों से महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त की जा सकती है। विनष्ट भूमि तथा उसके उद्गार भूगर्मिक जल तथा नदी के प्रवाह क्षेत्र के जल संसाधनों के आकलन, बाढ़ों से होने वाली क्षति, हिम के पिघलने से नदियों में जल की वृद्धि की मात्रा टिड्डी दल के आगमन की पूर्व सूचना, आदि अनेक क्षेत्रों में दूर संवेदी उपग्रहों का विशेष योगदान सम्भव है। भविष्य में महंगाई को रोकेने के लिए भावी नीति तीन मोर्चों से निर्धारित होगी।
1. खाने-पीने की चीजें
2. किसानों की दूसरी कृषि उत्पादों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा।
3. आने वाली नीति जल्द नष्ट होने वाले उत्पादों की भंडारण क्षमता को लेकर है। 
कृषि उत्पादन में आपदाओं से होने वाली क्षति की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय फसल बीमा योजना राज्य में पहले से ही लागू कर दी गई थी। राजकीय खाद्द-प्रसंस्करण प्रौद्दोगिकी संस्थान लखनऊ द्वारा फल, शाकभाजी, एवं विविध खाद्दो का तकनीकी विकास तथा कई उत्पादों के विकास का प्रयोग कार्य किया जाता है।
निष्कर्ष इस कथन को हम नकार नहीं सकते कि कृषि प्रधान होने के कारण कृषि का अपना विशेष महत्व है। जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग कृषि कार्यों में संलग्न है। अर्थव्यवस्था में भी इसका बड़ा योगदान है। साथ ही कृषि श्रम प्रधान भी है। कृषि उत्पादन की दृष्टि से खाद्दान्न फसलों के अलावा व्यापारिक फसलें जैसे-जूट, कपास, रेशम, रबर आदि की भी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। वर्तमान समय में पूरी दुनिया में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने कृषि का बाजारीकरण करके एक ऐसा तन्त्र विकसित कर दिया है। जिसमें बिना पूंजी के अन्न उत्पादन करना कठिन है। आज सब स्थानों पर विभिन्न रासायनिक उत्पादों का प्रयोग कृषि में हो रहा है। इससे खाद्द सामग्री में भी रासायनिक पदार्थों की उपस्थिति बढ़ती जा रही है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है। पर्वतीय क्षेत्रों की मिट्टी को स्थायित्व देने में वनों का ही महत्वपूर्ण योगदान है क्योकि वृक्ष अपनी जड़ों से मिट्टी को बाधें व रोके रखते है तथा स्वंय नष्ट होने होने के बाद मिट्टी में बदल जाते है। अतः वन ही कृषि को महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करते है। कृषि को प्रभावित करने वाले कारकों में मानवीय कारक-ज्ञान तकनीकी, जागरूकता, फसलो के रोग आदि भौतिक कारक-धरातल, मिटटी, आदि जल संसाधन, जलवायु कारक, अन्य कारक-स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी, सरकार द्वारा प्रयास आदि प्रमुख है। कृषि के महत्व को हम निम्नलिखित विचार से स्पष्ट कर सकते हैः अपनी मिट्टी अपनी खाद अपने बीज अपना स्वाद कड़ी धूप हो या हो शीतकाल हल चलाकर न होता बेहाल उम्मीदों से वो बीज है बोता मिट्टी से फसल उगाता है, पेट वो भरता हम सबका अन्नदाता कहलाता है। कृषि पर निर्भर है वो किसान है। कभी बाढ़ आती तो कभी बंजर जमीन हो जाती है। किसानों का दर्द भला ये दुनिया कहां समझती। नकली बीज नशीली खाद इससे खेती होती बर्बाद घर के बीज जब होगें गोल बीज भण्डार से लेंगे मोल बीज भण्डार का क्या है काम नकली बीज मंहगे दाम मिट्टी, पानी, बीज और पेड़ बंद करो तुम इनसे छेड़ आज समय की यही पुकार बीज पर हो कृषक का अधिकार।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. न्यूजपेपर की सहायता से 2. स्वयं के द्वारा 3. पर्यावरण एवं मानव बदलते प्रतिमान डा0 देवेन्द्र नाथ सिंह 4. पर्यावरण अध्ययन डा0 विनय कुमार सिंह 5. गूगल की सहायता से http://agriculture.up.nic.in/ 6. The Kisan credit card scheme: Impact, Weaknesses and Further Reforms, National Council of Applied Economic Research, New Delhi Anil Sharma. 7. Strategy of Agricultural Development in Uttar Pradesh: Post Reform Period, Department of Coordination (APC Branch), Government of Uttar Pradesh, Lucknow.