ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- II May  - 2022
Anthology The Research
उच्च शिक्षा का निजीकरण : वर्तमान परिप्रेक्ष्य
Privatization of Higher Education- Current Perspectives
Paper Id :  16090   Submission Date :  14/05/2022   Acceptance Date :  20/05/2022   Publication Date :  25/05/2022
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संगीता तिवारी
एसोसिएट प्रोफेसर
शिक्षक प्रशिक्षण विभाग
वी0 एस0 एस0 डी0 कॉलेज
कानपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात उच्च शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार मे सराहनीय उन्नति हुई है। स्वतन्त्रता से पहले भारत मे कुछ ही विश्वविद्यालय थे। "राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की वर्ष 2007 की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के सभी नौजवानों को पढ़ाई कराने के लिये कम से कम 1500 विश्वविद्यालय एवं 35000 कालेजों की आवश्यकता है। जबकि भारत में सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रो को मिलाकर 400 विश्वविद्यालय एवं 22000 ही कालेज है ज्ञान आयोग के सुझाव को दृष्टिगत करते हुए देश को लगभग 1100 और विश्वविद्यालय एवं 13000 और कालेजों की आवश्यकता है। [1] उच्च शिक्षा को समर्पित इन शिक्षण संस्थाओं में 22 भाषाओं विज्ञान, कला, वाणिज्य, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, प्रबन्धन, तथा शिक्षण प्रशिक्षण के अलावा अनेक व्यावसायिक महत्व के पाठ्यक्रम की शिक्षा की व्यवस्था है। इन संस्थाओं मे प्रतिवर्ष लगभग 8.5 लाख विद्यार्थी प्रवेश प्राप्त करते है। देश की जनसंख्या के आकड़े के अनुरूप यह संख्या पर्याप्त नही है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद After the attainment of independence in India, there has been an appreciable progress in the promotion and spread of higher education. Before independence, there were only a few universities in India. "In the 2007 report of the National Knowledge Commission, it was said that at least 1500 universities and 35000 colleges are needed to educate all the youth of India. Whereas in India, there are only 400 universities and 22000 colleges including both government and private sectors. Considering the suggestion of the Knowledge Commission, the country needs about 1100 more universities and 13000 more colleges.
In these educational institutions dedicated to higher education, there is a system of education of 22 languages ​​​​science, arts, commerce, technology, medicine, management, and teaching training, besides many professional courses. About 8.5 lakh students get admission in these institutions every year. This number is not sufficient according to the figure of the population of the country.
मुख्य शब्द उच्च शिक्षा, परिप्रेक्ष्य, गुणात्मकता, योजनाएं |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Higher Education, Perspectives, Qualitative, Schemes.
प्रस्तावना
शिक्षा को गुणवत्ता प्रदान करने के लिये अतिरिक्त संसाधन जोड़ने की महती आवश्यकता है। बजट में उच्चशिक्षा पर और अधिक राशि आवंटन के साथ ही शिक्षको की मनोवृत्ति में परिवर्तन एवं उनके विषय सम्बन्धी ज्ञान की वृद्धि निरन्तर परीक्षण तथा मूल्याकन की नई प्रवृत्तियों पर कार्यकारी नीति की आवश्यकता है शैक्षिक गुण वत्ता विकास हेतु स्थानीय परिस्थतियों को महत्व प्रदान करते हुए शिक्षको के कार्य निष्पादन की वस्तुनिष्ठता स्थापित करने के लिये निश्चित मानक तैयार किये जाये एवं परीक्षा एवं परिणाम के शून्य प्रतिशत हेतु उत्तरदायी माना जाये। [2] उच्च शिक्षा के लिये आवश्यक संसाधनो भारी कमी का कारण पिछली सरकारों का प्राथमिक शिक्षा पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना रहा है। यशपाल समिति के सुझावों को दृष्टिगत करते हुए कपिल सिब्बल ने इन विश्वविद्यालयो की जांच हेतु टंडन समिति का गठन किया जिससे भारत के निजी शिक्षा के उद्दोगों की गति पर नियन्त्रण लग गया देश मे वर्तमान मे 128 डीम्ड विश्वविद्यालय है, जिनमें 89 को कुछ ही समय पहले डीम्ड विश्वविद्यालय का स्तर प्राप्त हुआ है इनमे सरकारी एंव निजी दोनो ही क्षेत्र के संस्थान संम्मिलित है। जाँच पड़ताल के बाद 44 स्तर के संस्थानों में मानव संसाधन विकास मत्रालय ने टण्डन समिति के सुझाव पर अमल करके मान्यता समाप्त करा दी। जिससे इन विश्वविद्यालयो की चकाचौंध धूमिल हो गयी। [3]
अध्ययन का उद्देश्य उच्च शिक्षा का निजीकरण वर्तमान परिप्रेक्ष्य अध्ययन के उद्देश्य निम्नलिखित है – 1. उच्च शिक्षा को समाजोन्मुख एवं नैतिक मूल्य परक स्थान वर्तमान कसौटी पर प्राप्त कराना। 2. उच्च शिक्षा में गुणात्मकता एवं उत्पादकता में वृद्धि का स्तर बढ़ाना। 3. शैशिक संसाधनों का बौद्धिक एवं सामंजस्य पूर्ण वितरण कराना। 4. उच्च शिक्षा से संबन्धित विविध समस्याओं का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करना। 5. उच्च शिक्षा का जनसाधारण तक प्रसार कराना जिससे सामाजिक एवं शैक्षिक मूल्यों में निरन्तर वृद्धि हो। 6. नई शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में उच्च शिक्षा के वर्तमान आयामों को नवीनता प्राप्त कराना। 7. वैश्वीकरण एवं उच्च शिक्षा में अभिनव प्रयोगों को समृद्धि परक स्थान प्राप्त कराना। 8. शैक्षिक उन्नति को प्राप्त उच्च शिक्षा के द्वारा लोकतंत्रीय शासन प्रणाली का व्यापक प्रसार कराना है।
साहित्यावलोकन
छठी पंचवर्षीय योजना मे विशेषकर उच्च शिक्षा पर व्यय मे भारी कटौती की गई। सातंवी 7 वी पंचवर्षीय योजना मे पिछली योजना के व्यय से 2 गुनी धनराशि अधिक खर्च की गई किन्तु वह कुल शिक्षा व्यय प्रतिशत मे 22 की जगह 16 ही रह गई कि आठवी पंचवर्षीय योजना बायनवे व सत्तानवे मे आठवीं पंचवर्षीय योजना मे कुल शिक्षा व्यय का 8 प्रतिशत भागही आवंटित किया गया नवी पंचवर्षीय योजना मे 97 से 2002 मे इसे बढ़ाकार इसे 12 प्रतिशत कर दिया। (1992-97) मे इसे बड़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया पिछले वर्षों के उच्च शिक्षा व्यय सम्बन्धी आकड़ों के दृष्टिगत करते हुए यह कहना समीचीन होगा कि उच्च शिक्षा हेतु आवन्टित धनराशि में बजट मे निरन्तर कमी की जा रही है। किन्तु वास्तव में कितना व्यय उच्च शिक्षा में किया जा रहा है इसका अनुमान लगाना कठिन है। उच्चशिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण की प्रकिया औपचारिक रूप से काफी समय पश्चात प्राप्त की गई परन्तु इसके लिये समुचित मात्रा मे बजट उपलब्ध कराने के सम्बन्ध मे सरकारी विचार मे परिवर्तन के स्पष्ट संकेत 80 के दशक मे मिलने लगे थे। जिसकी परिणति राजीव गाँधी जी की नई शिक्षा नीति 1986 के रूप मे प्रस्तुत हुई। [4] इसमे उच्चशिक्षा संस्थानों के उचित संचालन के लिये चन्दा एकत्र करना और इमारतो के रख रखाव एवं दैनिक जीवन की आवश्यकता सम्बन्धी वस्तुओ की पूर्ति में स्थानीय लोगो की सहायता प्राप्त करना एवं उच्च शिक्षा संस्थानों में फीस बढ़ाना जैसे मानक निर्धारण पर बल दिया था। जिससे सरकार की उच्च शिक्षा से अपनी निवृत्ति प्राप्त करने की इच्छा परिलक्षित होती है। इसी बीच विश्व बैंक द्धारा विकासशील देशो मे शिक्षा खर्च के पैटर्न पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई कि वे जिसमे विकासशील देशो को यह सलाह दी गई कि आर्थिक संसाधनो की तंगी को दृष्टिगत करते हुए शिक्षा पर आने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा अभिवावको को वहन करने को कहे।
मुख्य पाठ

उदारीकरण की प्रक्रिया का उच्च शिक्षा पर प्रभाव काफी समय पहले प्रारम्भ हो चुका था परन्तु वर्ष 1991 से यह प्रमाणित होने लगा। अतः यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि उच्चशिक्षा को विश्वबैंक के अनुरूप विकसित किया जायेगा। उसी समय खाड़ी संकट के कारण यू0जी0सीद्धारा उच्चशिक्षा बजट मे 35 प्रतिशत की कमी की गई और विश्वविद्यालयो को निर्देश किये गये कि वो आत्मनिर्भर बने। केन्द्र सरकार के निर्देश पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के० पुन्नैया कि अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन हुआ जिसने अपने प्रतिवेदन मे यह मत व्यक्त किया "कोई भी समाज जो गरीबी और गैर बराबरी से जूझ रहा हो विश्वविद्यालयों में हो रही फिजूलखर्ची के सबसिडीकरण का समर्थन नहीं कर सकता अथवा सम्पन्न वर्गो को उच्चशिक्षा पर हो रहे खर्च के भुगतान से बचे रहने कि इजाजत नहीं दे सकता। इसलिये उच्चशिक्षा पर हो रहे व्यय का बड़ा हिस्सा उनसे वसूल किया जाना चाहिये।

उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि समिति ने उच्चशिक्षा के निजीकरण का पक्ष प्रस्तुत किया है। उच्च शिक्षा के विविध विषयो संम्बन्धी संसाधनजनसंख्या विस्फोट एवं प्राथमिक विद्यालयों की कार्यशैली मे समन्वय स्थापित नही हो पा रहा है, 1990 के दशके में शुरूआत मे प्रति वर्ष जन्म लेने वाले बच्चो की संख्या लगभग 2.4 दशमलव 4 करोड़ हो चुकी थी और यदि भारत को अमेरिका जापान और चीन जैसे विकसित देशों का मुकाबला करना है तो इसमे से कम से कम 25 प्रतिशत बच्चो को कालेज की पढ़ाई करनी ही चाहिये। इसका आशय यह है कि 2010 में कालेजों में लगभग साठ लाख सीटो होनी चाहिये थी इसके विपरीत कुल सीटो की संख्या 40 लाख से कम है और इनमें गुणवत्ता तथा भौगोलिक क्लस्टर को उपेक्षणीय मानकर सभी सीटों को सम्मिलित किया गया है। यदि सरकार ने शिक्षा क्षेत्र को तत्काल उदार नहीं बनाया और इस क्षेत्र मे भारी मात्रा में सरकारी और निजी निवेश नहीं किया गया तो देश मे दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी अशिक्षित रहने को विवश होगी। पाठ्यक्रम मे समयानुकूल संशोधन की महती आवश्यकता है। इसके लिये प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् अनुभवी चिन्तको तथा विषय विशेषज्ञों को एक जुटता का परिचय देने की आवश्यता है। [5]

24 अप्रैल 2000 को अम्बानी- बिडला रिपोर्ट भी सरकार को सौपी गई इस रिपोर्ट को मुकेश अम्बानी तथा कुमार मंगलम बिड़ला द्धारा वर्ष 2015 के भारत की शैक्षिक आवश्यकताओं को ध्यान मे रखकर तैयार किया गया है " ए पालिसी फ्रेमवर्क फार रिफर्स इन एजुकेशननाम से तैयार इस रिपोर्ट मे प्रेक्षेपित किया गया है कि वर्ष 2015 में देश की आबादी 125 करोड़ होगी। जिसमे 5 से 24 वर्ष वय वर्ग के व्यक्तियों की संख्या लगभग 45 करोड़ होगी। इनमे से 5 से 19 वर्ष वय वर्ग के लगभग 34 करोड़ लोगो के लिये कक्षा 1 से 12 तक की शिक्षा अनिवार्य करनी होगी और अवशेष 11 करोड़ लोगो मे से 20 प्रतिशत अर्थात 2.2 करोड़ उच्च शिक्षा प्राप्ति के योग्य लोगों के लिये उच्चशिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। उच्चशिक्षा के लिये अतिरिक्त 27 हजार 471 कालेज विश्वविद्यालय होगे जबकि प्राथमिक स्तर की शिक्षा हेतु अतिरिक्त लाख 31 हजार 667 प्राथमिक स्कूल तथा 23 हजार 556 माध्यमिक विद्यालय स्थापित करने होगे। इस हेतु रिपोर्ट मे अगले 15 वर्ष हेतु सरकारी और निजी क्षेत्र के लिये अलग-अलग निवेश के आंकलन भी प्रस्तुत किये गये। रिपोर्ट मे दिये गये आकड़ों के विश्लेषण से यह पता चलता है कि 2015 तक उच्चशिक्षा पर आने वाला व्यय 42 हजार करोड़ रूपये वार्षिक हो जायेगा। इसके अलावा उच्चशिक्षा संस्थानो के निर्माण पर आने वाले 15 वर्षा मे लगभग 11 हजार रूपये व्यय करने होगे। सरकार को इतना व्यय उठापाना सम्भव नही लगा। अतः उच्चशिक्षा के क्षेत्र मे सरकारी निवेश को 40 प्रतिशत तक सीमित रखने की बात की गई थी। शेष 60 प्रतिशत निवेश निजी क्षेत्रों के लिये छोड़ दिया गया। लेकिन सरकार के इस कदम से उच्चशिक्षा केवल समाज के धनी वर्गो तक ही सिमट कर रह जायेगी। अम्बानी बिड़ला रिपोर्ट के कुछ अन्य सुझाव इस प्रकार है।

1. शिक्षा मे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी जाती है। प्रारम्भ इसे विज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा तक सीमित किया जाये। 

2.  भारतीय विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों में विदेशी विद्यार्थियों को प्रवेशी विद्यार्थियों को प्रवेश हेतु प्रोत्साहित किया जाए। प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति वाले संस्थानों में अन्तर्राष्ट्रीय विद्यालय स्थापित किये जाये।

3.  सभी राजनैतिक पार्टियों के बीच इस बात की सहमति बनायी जाये कि वे विश्वविद्यालयो और शिक्षण संस्थानो से दूर रहेगें।

4.  स्नातक स्तर और उससे ऊपर हर क्षेत्र मे शोध को प्रोत्साहित किया जाये।

5.  अर्थव्यवस्था को नियन्त्रण मुक्त किया जाये ताकि शिक्षा के लिये बाजार का विकास हो।

6. विश्वविद्यालयो को दी जाने वाली वित्तीय सहायता कम की जाये तथा उन्हे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया जाये।

7. उच्चशिक्षा हेतु सरल कार की भूमिका उच्चशिक्षा संस्थानो की मदद करनेकोष प्रदान करनाविद्यार्थियों को कर्ज दिलाने मेंवित्तीय गारन्टी देने मेंपाठ्य कम तथा उनकी गुणवत्ता मे एकरूपता लाने तथा शैक्षिक विकास योजना बनाने वाले तक सीमित रखी जाये।

8.  शिक्षण संस्थानो के पाठ्यक्रम एवं सुविधाओं को समयानुकूल तथा बाजारोन्मुखी बनाया जाये।

9. व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये "सेट" "जीआरईएवं "जीमैटके अनुरूप राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षाएं आयोजित की जाये तथा एक संस्थान मे दूसरे संस्थान से स्थानान्तरण का आधार इनमे प्राप्त अंको को बनाया जाये। 

10.  शिक्षकों के लिये सतत प्रशिक्षण तथा गुणवत्ता विकास के लिये कानून बनाया जाये। 

11.  विश्वविद्यालयकालेजों संस्थानों तथा स्कूलोंके स्तर को निर्धारित करने के लिये स्वतन्त्र ऐजेन्सियों द्धारा समय समय पर उनकी रेटिंग कराया जाये।

12. कम सरकारी सहायता पाने वाले या नहीं पाने शिक्षण संस्थानो को संचालन तथा पाठयक्रम चयन मे कल्पनाशीलता को स्वतन्त्रता दी जाये।

13. विज्ञान तकनीकी प्रबन्धन तथा वित्तीय क्षेत्रों में पढ़ाई के लिये नये निजी विश्वविद्यालय खोलने के लिये "निजी विश्वविद्यालय अधिनियम बनाये जाये। इस रिपोर्ट के सुझावो का सार संक्षेप यही है कि इसमे शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर तो सरकार की अधिकतम भूमिका चाही गयी है। लेकिन उच्चशिक्षा के स्तर पर इसे न्यूनतम करने का विचार प्रस्तुत किया गया है। समिति के विचार से उच्चशिक्षा का उपयोग करने वाले ही उसकी कीमत चुकाएं और इस रिपोर्ट मे उच्चशिक्षा के निजीकरण की खुलकर बात की गई है। वैसे अम्बानी बिड़ला समिति की सिफारिशो पर सरकार ने व्यावहारिक रूप से अमल करना शुरू कर दिया है। क्योंकि 2001-02 के बजट में सरकार ने मेधावी छात्रो को उच्चशिक्षा के लिये बैक द्धारा ऋण प्रदान करने की घोषणा की थी।

जिसके द्वारा उच्चशिक्षा के लिये स्वदेश मे 7-5 लाख तक तथा विदेशो हेतु 15 लाख रूपये तक सस्ती ब्याज दरो पर ऋण उपलब्ध कराने का प्रवधान है।  सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको द्धारा इस क्षेत्र मे ऋण उपलब्ध कराये जाने का कार्य प्रारम्भ हो चुका है

निष्कर्ष उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष सरलता से प्राप्त किया जा सकता है कि वर्तमान समय मे यदि पूर्व निर्मित संस्थान दिशाहीनता, असमर्थता, पथभ्रष्टता, कट्टर पंथी पाठ्यक्रम, गुटबन्दी, नियुक्ति मे अपारदर्शिता तथा वित्तीय अनियमिताओं से पूर्ण है तो दूसरी तरफ निजी संस्थान औद्योगिक कार्यशैली अपनाते हुए निवेश के बदले धन प्राप्ति व्यापार एवं धन लोलुपता की बलवती भावना से संचालित हो रहे है। इस प्रकार दोनो ही क्षेत्रो मे दोष व्याप्त है जिन का निराकरण करके ही उच्चशिक्षा को समुन्नत किया जा सकता है तथा उचित दिशा मे अग्रसर किया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. कुरूक्षेत्र सितम्बर 2010 प्रष्ठ 5 2. कुमार नरेश 1999 : शिक्षा की आवश्यकताएं, विक्रम प्रकाशन पृष्ठ 87, 89 | 3. कुरूक्षेत्र सितम्बर 201पृष्ठ 5। 4. नेशनल पालिसी आन एजुकेशन, 1986 | 5. चौधरी एम0पी0: भारत मे उच्चशिक्षा और समस्याएं, ग्रन्थ शिल्पी प्रकाशन, नई दिल्ली पृष्ठ-381 | 6. उच्च शिक्षा, ए.पी.एच. पब्लिशिंग ओझा दीप्ति 2014 कारपोरेशन नई दिल्ली