P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- IX May  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
रायबरेली जनपद के सई नदी बेसिन का अपवाह तन्त्र तथा उसके प्रभाव
Drainage System of Sai River Basin of Rae Bareli District and Its Effects
Paper Id :  16046   Submission Date :  15/05/2022   Acceptance Date :  20/05/2022   Publication Date :  25/05/2022
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प्रीती श्रीवास्तव
शोध छात्रा
भूगोल विभाग
सहकारी पीजी कालेज
जौनपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश मानव संस्कृति व सभ्यता के विकास में अपवाह प्रणाली का एक महत्वपूर्ण स्थान है। अध्ययन क्षेत्र का सामान्य मन्द ढाल उ0प0 से द0पू0 की ओर है। नदियाँ उच्चावच स्वरूप के ढाल का अनुसरण करती हुई समानान्तर प्रवाह का अनुसरण करती है। प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र उ0प्र0 के रायबरेली जनपद का सई नदी बेसिन का क्षेत्र है। इसका अक्षांशीय विस्तार 25°57’ उ0 अक्षांश से 26°37’ उत्तरी अक्षांश है तथा देशान्तरीय विस्तार 80°52’ पूर्वी देशान्तर से 80°30’ पूर्वी देशान्तर है। मानचित्र निर्माण के लिए टोपोशीट सं063B/14, 63F/2, 63F/6, 63B/15, 63F/3, 63F/7, 63F/11, 63F/4, 63F/8, 63F/12, 63G/5, 63G/9 का प्रयोग किया गया है। इसके साथी Arc GIS के द्वारा सेटेलाइट इमेजरी का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन रायबरेली जनपद के सई नदी बेसिन के अपवाह तन्त्र के महत्व को दृष्टिपात करने के लिए प्रस्तुत किया गया है। जल अपवाह प्रणाली नदी क्रम द्वारा निर्मित योजना विशेष की परिचय कराती है। इस योजना द्वारा हम आसानी से नदी धारा की प्रणाली एवं उसके स्थानिक सम्बन्धों का ज्ञान कर सकते हैं। जल अपवाह प्रणाली जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। सुव्यवस्थित अपवाह तन्त्र जल संसाधन को उपलब्ध कराने के साथ-साथ क्षेत्र विशेष की मृदा उर्वरता को भी प्रभावित करती है । सई नदी की अन्य सहायक नदियाँ सततवाहिनी नहीं है, इन्हें ‘नैया’ नदियाँ कहते हैं। इसके जल सतह सामान्य धारातल से काफी नीचे होने के कारण इसके जल का उपयोग सिंचाई की पूर्ति करती है। जल अपवाह प्रणाली अनेकानेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है तथा यह स्वंय अनेक स्थानिक, सामजिक अभियुक्तताओं को भी प्रभावित करती है। ये कारक प्राकृतिक स्वरूपों की व्याख्या करने में अधिक सहायक होते हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Drainage system has an important place in the development of human culture and civilization. The general slope of the study area is from north to east. Rivers follow a parallel flow following the slope of the relief form. The present study area is the area of ​​Sai river basin of Rae Bareli district of Uttar Pradesh. Its latitudinal range is from 25°57'N latitude to 26°37'N latitude and the longitude range is 80°52'E longitude to 80°30'E longitude. Toposheet No.063B/14, 63F/2, 63F/6, 63B/15, 63F/3, 63F/7, 63F/11, 63F/4, 63F/8, 63F/12, 63G/5, 63G for Map Making /9 is used. Satellite imagery has been used by its partner Arc GIS. The present study has been presented to see the importance of drainage system of Sai river basin of Rae Bareli district. Water drainage system introduces a particular plan made by river sequence. Through this scheme, we can easily know the system of river stream and its spatial relations. Water drainage system is the major source of water supply. A well-organized drainage system, along with providing water resources, also affects the soil fertility of a particular area. The other tributaries of the Sai River are not continuous, they are called 'Naiya' rivers. Due to its water surface being much below the normal stream level, its water is used for irrigation. The water drainage system is influenced by many factors and it itself affects many spatial, social characteristics. These factors are more helpful in explaining the physiographic forms.
मुख्य शब्द अपवाह, उच्चावच. अनुसरण, आपूर्ति, सतत वाहिनी।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Drainage , Relief. Follow, Supply, Continuous Duct.
प्रस्तावना
मानव सभ्यता व संस्कृति के विकास में प्रवाह प्रणालियां महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अपवाह तन्त्र नदियों के भौगोलिक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। ‘अपवाह’ का सामान्य अर्थ किसी क्षेत्र , प्रदेश या देश में नदियों के प्रवाह स्वरूप से है। इसके अन्तर्गत किसी नदी विशेष तथा उसकी प्रवाह प्रणाली का अध्ययन किया जाता है जो नदी के उद्गम स्रोत, जल ग्राह्य क्षेत्र, प्रवाह मार्ग, सहायक नदियों के प्रवाह स्वरूप एवं विकास, अपवाह प्रतिरूप आदि से सम्बन्धित होता है। ‘अपवाह तन्त्र’ से अभिप्राय नदी के तंत्र जाल से है जिससे धरातलीय जल प्रवाहित होता है। अपवाह तन्त्र क्षेत्र के प्राकृतिक भूदृश्य के विकास में न केवल योगदान देता है बल्कि वहां के लोगों की आर्थिक क्रियाओं विशेषतः कृषि और स्थानीय क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में सहायक है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत अध्ययन रायबरेली जनपद के सई नदी बेसिन के अपवाह तन्त्र के स्वरूप तथा प्रवाह प्रणाली का अध्ययन शोध क्षेत्र पर प्रभाव का अध्ययन किया गया है।
साहित्यावलोकन
प्राचीन भूगोलवेत्ताओं में हेरोडोटस ने नदी डेल्टा एवं सागर तल के बारे में, अरस्तू ने नदियों का आविर्भाव जल स्रोतों से एवं सागर तल के बार में बताया। रेनू श्रीवास्तव नें अपवाह बेसिन पर शोध प्रबन्ध (1976, बेलन नदी की अपवाह बेसिन की विशेषताएं) प्रस्तुत किया। सविन्द्र सिंह 1978, राँची पठार की लघु अपवाह बेसिनों का भ्वाकृतिक अध्ययन प्रकाशित हो चुकी है। इस क्षेत्र में सविन्द्र सिंह (1981) द्वारा अपवाह गठन के आधार पर अपवाह घनत्व के परिकलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दुबे, एस. दत्त(2005) में बनारस बेसिन का एक भ्वाकृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया जिसमें नदी उच्चावच्च स्वरूप एवं जल प्रवाह प्रणाली की अध्ययन किया है। अंजनी कुमार त्रिपाठी(2012) ने सुल्तनापुर जनपद उ0प्र0 में जलधाराओं एवं भूमि अवनयन एक भौगोलिक अध्ययन में जलभराव जनित भूमि अवनयन एवं अपवाह तन्त्र का विश्लेषण किया है। कुमार एम. दिनेश(2018) और रंजन ए.(2019) ने वाटर मैनेजमेंट और रिवर वॉटर डिस्प्यूट्स पर शोधकार्य किये। इसके अतिरिक्त, अनेक क्षेत्रों में अपवाह तन्त्र तथा उनके प्रभाव पर शोध कार्य किये तथा किए जा रहे हैं।
मुख्य पाठ

प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र उ0प्र0 के रायबरेली जनपद का सई नदी बेसिन का क्षेत्र है। इसका अक्षांशीय विस्तार 25°57’ उ0 अक्षांश से 26°37’ उत्तरी अक्षांश है तथा देशान्तरीय विस्तार 80°52’ पूर्वी देशान्तर से 80°30’ पूर्वी देशान्तर है। उत्तर  में यह जनपद लखनऊ, बाराबंकी द्वारा दक्षिण में जिला फतेहपुर और द0पू0 में प्रतापगढ, पूर्व में अमेठी और पश्चिम में उन्नाव जिला स्थित है। 
सई नदी गोमती नदी की सहायक नदी है जो हरदोई जिले के भिजवान झील से निकलकर लखनऊ उन्नाव की सीमाओं का निर्माण करती हुई रायबरेली जनपद के उत्तरी पश्चिमी भाग में स्थित रामपुर सुधौली ग्राम के पास रायबरेली की सीमा में प्रवेश करती है। जनपद में प्रवेश कर उत्तर पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर विसर्पण आकार में प्रवाहित होती है। नदी उच्चावच स्वरूप के ढाल का अनुसरण करती हुई समानान्तर प्रवाह का अनुसरण करती है।अध्ययन क्षेत्र का सामान्य मन्द ढाल उ0प0 से द0पू0 की ओर है। जल अपवाह प्रणाली जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। सई नदी रायबरेली जिल 151 कि.मी. बहती है यह पूर कन्दूरी, जमुनिया घाट, मलिकमऊ चौबारा से होते हुए सलालपुर, रायबरेली नगर, फखरूल हुसैनशेख, बेहटापुल, भूई मऊ, खोरहती होते हुए प्रतापगढ जनपद में प्रवेश कर जाती है। शारदा सहायक नहर बेहटापुल के पास से सई नदी को पार करती है।
सुव्यवस्थित अपवाह तन्त्र जल संसाधन को उपलब्ध कराने के साथ ही क्षेत्र की मृदा उर्वरता को भी प्रभावित करती है। यहां का अपवाह तन्त्र सई नदी तथा उसकी सहायक नदियों यथा केथवारा नैया, महराजगंज नैया, नसीराबाद नैया व सेमरौता नैया से निर्मित है। सई नदी की अन्य सहायक छोटी नदियाँ सततवाहिनी नहीं है, इन्हें ‘नैया’ नदियां कहते हैं। नैया नाम से पहले स्थान आदि का नाम लगाया जाता है यथा केथवारा नैया, महराजगंज नैया, सेमरौता नैया आदि।
नहर एवं नाला
अध्ययन क्षेत्र में प्रमुख शारदा सहायक नहर है जो देवीपुर, बाबूगंज, सिकन्दरगंज, आहलादपुर, मलिकमऊआइमा, नवाबगंज, मनोहरगंज तथा जगतपुर के पाससे गुजरती है। इसमें कई  नाले भी है जिसमें सरूही नाला, बेगी नाला, सरही नाला, बसहा नाला, गुलेहरता नाला प्रमुख है।
जल प्रवाह प्रणाली सामान्यतः प्रारम्भिक ढाल, शैल कठोरता में असमानता, नवीन भू-रचना एवं जल प्रवाह बेसिन के भ्वाकृतिक इतिहास जैसे कारकों के प्रवाह को उजागर करती है,क्योंकि जल प्रवाह प्रणाली कई कारकों द्वारा प्रभावित होती है तथा यह स्वयं अनेक स्थानिक, सामाजिक अभियुक्तताओं को भी प्रभावित करती है। ये कारक भू आकृतिक स्वरूपों की व्याख्या करने में सहायक होते है। जल की उपलब्धता एवं मृदा उर्वरता की सीधा सम्बन्ध कृषि उपजों एवं उत्पादकता से है। उपर्युक्त दोनों महत्वपूर्ण कारकों की न्यूनता होने पर शुद्ध कृषित भूमि के क्षेत्र में बढोत्तरी संभव नहीं है जबकि सर्वाधिक जनसंख्या इसी पर निर्भर है।
सई नदी तथा इसकी सहायक नदियों के कगार ऊंचे व कटे-फटे है। सामान्य़ रूप से इसकी जल सतह सामान्य धरातल से काफी नीचे है जिससे इसके जल का उपयोग सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाया है। यह केवल समीपवर्ती तटीय भागों की सिंचाई सम्बन्धी आवश्यकता की कम मात्रा में पूर्ति करती है। सदावाहिनी नदी होने के कारण यह नौकागम्य है इसकी सहायक नदियां बहुत ही छोटी तथा मौसमी है जो शीतकाल एवं ग्रीष्मकाल में सूख जाती है और वर्षाकाल में पर्याप्त मात्रा में जल प्रवाहित करती है। सई नदी का तल ज्यादा छिछला है, इसके घाटी एवं  अपवाह क्षेत्र में बीहड बने है। अधिक वर्षा के समय कभी-कभी सई नदी के तटीय क्षेत्र में बाढ का प्रभाव भी देखने को मिलता है। सई नदी पूर्णरूपेण जलोढ जलधारा है। जलोढ जलधारा होने के कारण इसमें जलोढ सरिता की स्थलाकृतियाँ भी पायी जाती है जैसे नदी विसर्प गोखुर झील, कुण्ड आदि है, इनमें कालिक परिवर्तन होता रहता है। सई नदी कहीं सरल रेखीय,कहीं वक्रीय, कहीं विसर्पी एवं कहीं गुंफित जलधारा की रचना करती है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र के मानचित्र निर्माण के लिए टोपोशीट संख्या- 63B/14, 63F/2, 63F/6, 63B/15, 63F/3, 63F/7, 63F/11, 63F/4, 63F/8, 63F/12, 63G/5, 63G/9 का प्रयोग किया गया है। इसके साथी Arc GIS के द्वारा सेटेलाइट इमेजरी का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में प्रत्यक्ष अवलोकन अनुभवात्मक विधि का प्रयोग किया गया है। भूपत्रक से ग्रिड प्रणाली द्वारा प्राप्त विभिन्न आंकडों को व्यवस्थित एवं सत्यापित कर उनका विश्लेषण किया गया है।
निष्कर्ष रायबरेली जनपद में सई नदी बेसिन मृदा उर्वरता को बनाए रखने में सहायक है। सई नदी पर्याप्त जल के कारण नौकायन के लिए उपयुक्त है। सई नदी के जल का उपयोग सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाया है। यह केवल समीपवर्ती तटीय भाग की सिंचाई की आवश्यकता की पूर्ति करती है। अतः ‘रायबरेली जनपद के सई नदी बेसिन का अपवाह तन्त्र तथा उसके प्रभाव का अध्ययन’ महत्वपूर्ण है
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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