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राजस्थान की औद्योगिक नगरी नीमराणा में औद्योगिक विकास एवं उसका प्रभाव | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Industrial Development and Its Impact in Neemrana, the Industrial City of Rajasthan | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
16115 Submission Date :
2022-05-06 Acceptance Date :
2022-05-20 Publication Date :
2022-05-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
औद्योगिक विकास को आर्थिक विकास का मापदंड के रूप में उपयोग किया जाता है। विश्व के सभी विकसित देशो में औद्योगिक क्षेत्र अत्यंत विकसित और विविधिकृत होता है। भारत में औद्योगिक विकास के लिए सभी आवश्यक दशाये विद्यमान है। विशाल एवं विविध प्राकृतिक संसाधनो के साथ इसकी विशाल जनसंख्या जो सस्ता श्रम सुलभ कराती है तथा विशाल बाजार भी प्रदान करती है।
भारत में औद्योगिक विकास की शुरुआत सन् 1854 में भारतीय पूंजी और उद्यम से मुम्बई में सूती वस्त्र बनाने के कारखाने की स्थापना से हुई। पहली जूट मिल 1885 में कोलकाता के निकट रिसरा में स्काँटिश कम्पनी ने लगाई थी। कोयले का खनन भी लगभग उसी समय शुरू हुआ । इसके बाद कागज के कारखाने व रासायनिक उद्योग भी स्थापित किये गये। सन् 1875 में कुल्टी में कच्चा लोहा बनाने का कारखाना खोला गया। 1907 में जमशेदपुर में टिस्को की स्थापना के बाद से भारत के औद्योगिक इतिहास का नया अध्याय प्रारंभ हुआ।
स्वतंत्रता के समय भारत का औद्योगिक विकास मुख्य रूप से उपभोक्ता वस्तुओं तक ही सीमित था। मुख्य उद्योग सूतीवस्त्र, चीनी, नमक, साबुन, चमड़े की वस्तुऐं तथा कागज थे। पूंजीगत वस्तुऐ बनाने वाले उद्योग बहुत ही पिछड़े हुये थे। 1948 में एक औद्योगिक नीति घोषित की गई जिसमें औद्योगिक नीति की रुपरेखा को स्पष्ट किया गया था। इसके अनुसार उद्यमी व सत्ता दोनो रूपो में राज्य की भूमिका निर्धारित की गई।
भारत में इसकी शुरुआत आर्थिक उदारीकरण की पहल के साथ 1990 के दशक में हुई थी जो भारत के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है क्योंकि इसके माध्यम से भारत के बुनियादी ढांचा परिवहन प्रौद्योगिकी सेवाएं और सकल घरेलू उत्पाद तथा मानव विकास सूचकांक में वृद्धि संभव हो पाई है यह पत्र नीमराणा में औद्योगिक विकास तथा भारत के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की भूमिका के बारे में विशेष रुप से अध्ययन करता है यहां शोधकर्ता ने अनुमान लगाया है औद्योगिक विकास में अधिकतम विदेशी प्रत्यक्ष निवेश इसे और अधिक विकसित करेगा तथा मेक इन इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार सृजन भी अधिक होगा।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Industrial development is used as a measure of economic development. The industrial sector is highly developed and diversified in all the developed countries of the world. All necessary conditions exist for industrial development in India. Its huge population with vast and varied natural resources which provides cheap labor and also provides huge market. Industrial development in India began with the establishment of a cotton textile factory in Mumbai in 1854 with Indian capital and enterprise. The first jute mill was set up by the Scottish Company in 1885 at Risra near Kolkata. Mining of coal also started around the same time. After this paper factories and chemical industries were also established. In 1875, a cast iron factory was opened at Kulti. After the establishment of TISCO in Jamshedpur in 1907, a new chapter in the industrial history of India began. India's industrial development at the time of independence was mainly confined to consumer goods. The main industries were cotton, sugar, salt, soap, leather goods and paper. The industries producing capital goods were very backward. An industrial policy was announced in 1948, in which the outline of the industrial policy was clarified. Accordingly, the role of the state was determined both in the form of entrepreneur and power. It started in the 1990s with the initiative of economic liberalization in India, which plays an important role in India's economic development because through this it is possible to increase India's infrastructure, transport technology services and GDP and Human Development Index. This paper specifically studies about the role of foreign direct investment in industrial development in Neemrana and India's economic development, here the researcher has estimated that maximum foreign direct investment in industrial development will develop it further and make in India program will get a boost and employment generation will also increase. |
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मुख्य शब्द | औधोगिकरण, विकास, पर्यावरण विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, डीएमआईसी(DMIC), मेक इन इंडिया, मेक इन राजस्थान, स्मार्ट सिटी। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Industrialization, Development, Environment, Fdi, Dmic, Make In Rajasthan, Smart City. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
औधोगिकरण देश के समग्र विकास को प्रोत्साहित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक माना जाता है भारत में मेक इन इंडिया की तर्ज पर राजस्थान में मेक इन राजस्थान औद्योगिक अभिवृद्धि का एक प्रयास है रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने, राजस्व सृजन और राज्य घरेलू उत्पाद में उद्योग क्षेत्र के योगदान को बढ़ाने के लिए राज्य का उद्योग क्षेत्र प्रतिबद है ! नीमराना भारत के सबसे तेजी से बढ़ते औधोगिक केंद्रों में से एक है जिसके विकास का प्रमुख कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से निकटता और राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 48 (पुराना 8) पर स्थित होना तथा डीएमआईसी के निकट स्थित होना।
भारत विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक केंद्र के रुप में रहा है जिसके माध्यम से निर्माण क्षेत्र का विकास हो पाया है बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट, हाई स्पीड ट्रेन तथा स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में निवेश की अधिक संभावनाएं हैं विनिर्माण के मामले में भारत दुनिया का चौथा बड़ा देश है वर्तमान भारत सरकार ने अपने गठन के साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अधिक बढ़ावा देने के लिए कार्य किया है भारत विश्व का दूसरा बड़ा जनसंख्या वाला देश है जिसके लिए रोजगार पैदा करना बिना विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के संभव नहीं है नीमराना उसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
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अध्ययन का उद्देश्य | अध्ययन का मुख्य उद्देश राजस्थान का मिनी जापान कहे जाने वाला नीमराना औद्योगिक क्षेत्र में औधोगिकरण की प्रवृत्ति को जानना और भारत में पड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की भूमिका का मूल्यांकन करना-
1 औद्योगिक विकास के कारणों का अध्ययन करना
2 दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा का यहां पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना
3 राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रभाव का अध्ययन
4 भारत में एफडीआई के कारणों की पहचान करना
5 विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई की प्रवृत्ति एवं वर्तमान में एफडीआई की भूमिका को जांचना
6. विकास और पर्यावरण पर प्रभाव का अध्ययन। |
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साहित्यावलोकन | उर्मिला महलावत (1999) नें अपने शोध " Industrial Growth Centres of Alwar District: A Comparative
Analysis” मे औद्योगिक इकाइयों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है तथा
औद्योगिक विकास की गति को भी समझाया है। रश्मि माथुर (2002) द्वारा प्रस्तुत अपने शोध " An Industrial Analysis of Export oriented Units in Jaipur and
Bhiwadi” में निर्यात इकाईयां एवं उनकी उत्पादन क्षमता का वर्णन किया है।
प्रस्तुत शोध में जयपुर व भिवाड़ी की निर्यात इकाईयो का तुलनात्मक अध्ययन भी दिखाई
देता है। अर्चना अग्रवाल (2003) के शोध " Industrial Sickness in Rajasthan: A case study of large scale
units financed by RIICO” में राजस्थान की औद्योगिक इकाइयों की
समस्याओ पर प्रकाश डाला है। रीको द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त इकाईयो की कमजोरी
को दूर करने के उपाय भी सुझाये गये है। आशीष शुक्ला (2009) द्वारा किये गये शोध "Industrial in National Capital Region of Alwar District” में राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र के अलवर जिले में औद्योगिकरण को परिभाषित किया गया है। राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र में उद्योगो को प्राप्त सुविधाओ एवं लाभो के साथ औद्योगिक विकास
की वृद्धि भी स्पष्ट की गयी है। |
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मुख्य पाठ |
भारत में औद्योगिक विकास की शुरुआत सन 1854
मुंबई में सूती वस्त्र की मिल के साथ हुई तथा स्वतंत्रता के समय भारत का
औद्योगिक विकास मुख्य रूप से उपभोक्ता वस्तुओं तक सीमित था सूती वस्त्र, चीनी, नमक, साबुन
बनाने की वस्तुएं और कागज थी 1948 में प्रथम औद्योगिक नीति घोषित की गई जिसमें
उद्योगों की रूपरेखा को स्पष्ट किया गया द्वितीय पंचवर्षीय योजना और पांचवी
पंचवर्षीय योजना में उद्योगों पर अधिक बल दिया गया।
रीको औद्योगिक क्षेत्र : नीमराणा एवं शाहजहांपुर राज्य में औद्योगिक विकास के लिए उद्योग एवं वाणिज्य विभाग के नेतृत्व में कई संस्थानों के माध्यम से सार्वजनिक नीतियां एवं सुधार क्रियान्वित किए जाते हैं । यह राज्य में उद्योगों एवं हस्तशिल्प के प्रोत्साहन तथा औद्योगिक गतिविधियों के संचालन हेतु आवश्यक मार्गदर्शन, सहायता एवं सुविधाएं प्रदान करने के लिए नोडल विभाग है। वर्तमान में, उद्यमियों को इनपुट तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु 36 जिला उद्योग एवं वाणिज्य केंद्र तथा 8 उप केंद्र कार्यरत हैं। उद्यमियों की सुविधा हेतु सभी जिला उद्योग एवं वाणिज्य केंद्रों में एमएसएमई निवेशक सुविधा केंद्र की स्थापनाउद्यमियों, ताकि उद्यमियों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जा सके । राज्य में आने वाले निवेश को प्रोत्साहित करने व नव उद्यम स्थापना में आने वाली कठिनाइयों का निराकरण हेतु जिला स्तर पर जिला कलेक्टर तथा राज्य स्तर पर मुख्य सचिव महोदय की अध्यक्षता में विवाद एवं निवारण तंत्र (डी.आर.एम.) के रूप में समिति का गठन किया गया है, जिसके निर्णय सभी विभागों पर बाध्यकारी है । इसके तहत वित्तीय वर्ष 2021 के दौरान दिसंबर 2021 तक 114 बैठक आयोजित की गई । मिशन निर्यातक बनो : राजकीय निर्यात क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए दिनांक 29 जुलाई 2021 को एक अनूठी पहल मिशन निर्यातक बनो प्रारंभ की गई। राज्य के विभिन्न जिलों में स्थिति के आधार पर नवीन निर्यातक बनाने हेतु आवंटित किए गए हैं। कुल 22,731 नवीन निर्यातक बनाने का लक्ष्य जिलों को आवंटित किया गया है। दिसंबर 2021 तक राज्य में 5433 उद्यमियों को आयात- निर्यात कोड जारी किए गए हैं और निर्यात संबंधी प्रक्रिया एवं दस्तावेजीकरण के संबंध में उनके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। सभी संभागीय मुख्यालय पर दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य से नवीन निर्यातकों को प्रथम निर्यात निर्गम तक की पूर्ण सहायता प्रदान की जाएगी जिसमें नीमराना एक प्रमुख है । मुख्यमंत्री लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना (M.L.U.P.Y.) : राज्य में विनिर्माण, सेवा एवं व्यापार क्षेत्र में नए उद्यम स्थापित करने तथा वर्तमान उद्यमों के विस्तार, आधुनिकीकरण, विविधीकरण के लिए वित्तीय संस्थानों के माध्यम से 10 करोड़ तक का ऋण उपलब्ध कराए जाने हेतु मुख्यमंत्री लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना को अधिसूचित कर 13 दिसंबर, 2019 से प्रारंभ कर दी गई है। इस योजना अंतर्गत उद्यमियों को 2500000 रुपए तक के ऋण पर 8%, 5 करोड तक के ऋण पर 6% तथा 10 करोड़ तक के ऋण पर 5% ब्याज अनुदान उपलब्ध कराया जा रहा है। राजस्थान उद्योग विकास नीति- 2019 राजस्थान निवेश प्रोत्साहन योजना-2019 राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं विनियोजन निगम लिमिटेड रीको राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं विनियोजन निगम लिमिटेड अधिक विकास को गति देने वाली शीर्ष संस्था है । रीको का मुख्य उद्देश राजस्थान का योजनाबद्ध तीव्र आर्थिक विकास करना है। यह राज्य में निवेश को आकर्षित करने के लिए और आधारभूत सुविधाओं को विकसित करने के लिए सहायता प्रदान करने में मदद करता है। रीको राज्य औद्योगिक विकास लघु विकास केंद्र रीको द्वारा कुछ विशेष पार्क बनाए गए हैं जैसे एग्रो फूड पार्क, जापानी जॉन, विशेष आर्थिक क्षेत्र । दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर(DMIC) दादरी (उत्तर प्रदेश) और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (मुंबई) के बीच की एक डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण किया जा रहा है, जिसकी कुल लंबाई 1483 किलोमीटर है । जिसका लगभग 38% भाग राजस्थान से होकर गुजरता है। दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर परियोजना भारत की सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य नए औद्योगिक शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना एवं आधारभूत ढांचे को अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकी के रूप में परिवर्तित करना है । फ्रेट कॉरीडोर के दोनों तरफ लगभग 150 किलोमीटर के प्रभाव क्षेत्र को दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के रूप में विकसित किए जाने हेतु चयन किया गया है । प्रथम चरण में खुशखेड़ा-भिवाड़ी-नीमराणा निवेश क्षेत्र (के. बी.एन.आई.आर.) एवं जोधपुर-पाली-मारवाड़ क्षेत्र (जे.पी.एम. आई.ए.) को विकसित किया जा रहा है। रीको एवं नेशनल इंडस्ट्रियल कॉरिडोर डेवलपमेंट एंड इंप्लीमेंटेशन ट्रस्ट द्वारा 29 सितंबर, 2021 को स्टेट सपोर्ट एग्रीमेंट (एस.एस.ए.) एवं शेयर होल्डर एग्रीमेंट (एस.एच.ए.) पर हस्ताक्षर किए गए हैं । इन नोट्स के लिए एक संयुक्त एस.पी.बी.( स्पेशल परपज व्हीकल ) बनाए जाने का कार्य प्रक्रियाधीन है। खुशखेड़ा-भिवाड़ी-नीमराणा निवेश क्षेत्र : खुशखेड़ा-भिवाड़ी-नीमराणा निवेश क्षेत्र लगभग 165 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है और इसमें अलवर जिले के 42 गांव सम्मिलित है । उसके लिए विकास योजना तैयार कर अंतिम रूप दिया गया है । इसके प्रथम चरण में 532.30 हेक्टेयर भूमि एवं 60 मीटर चौड़ी एप्रोच रोड हेतु आवश्यक 26.65 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है । परियोजना प्रभावित व्यक्तियों को अब तक 82.46 करोड़ का मुआवजा वितरित किया जा चुका है । रीको द्वारा मुआवजे की शेष राशि के भुगतान के लिए रीको बोर्ड को मंजूरी दे दी गई है । रीको ने मुआवजे के भुगतान के लिए भूमि अधिग्रहण अधिकारी को 62 करोड़ की पहली किस्त जारी की गई है । भारत में निवेश वैसे देखा जाए तो भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कोई नई संकल्पना नहीं है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद से ही उद्योगों का विकास विदेशी सहयोग से हुआ जैसे द्वितीय पंचवर्षीय योजना में तीन नए लौह इस्पात कारखाने स्थापित किए गए भिलाई रूस के सहयोग से दुर्गापुर ब्रिटेन के सहयोग से राउरकेला पश्चिम जर्मनी के सहयोग से तृतीय पंचवर्षीय योजना में बोकारो रूस के सहयोग से भारत के कई परमाणु ऊर्जा संयंत्र भी विदेश के सहयोग से स्थापित किए गए हैं वर्तमान में हाई स्पीड ट्रेन पर कार्य भी और बुलेट ट्रेन पर कार्य क्रमशः चीन और जापान के सहयोग से चल रहा है और स्मार्ट सिटी कार्यक्रम मैं भी हम विदेश का सहयोग ले रहे हैं विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की भूमिका भारत में प्रभावी रही है भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सर्वाधिक भूमिका टैक्स हैवन देशों का रहा है अप्रैल 2000 से दिसंबर 2017 तक भारत में निवेश करने वाले शीर्ष पांच देशों में प्रथम स्थान पर मॉरीशस इसका कुल निवेश उक्त अवधि में 124985. 94 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जो भारत में कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का 33. 94% रहा द्वितीय स्थान सिंगापुर का 63830. 31 कुल का 17. 34 प्रतिशत रहा तृतीय स्थान पर जापान जिसका निवेश 26938. 34 जो कुल का 7. 32% चौथे स्थान ब्रिटेन का 6.88% और पांचवें स्थान नीदरलैंड का 6. 27% रहा इन 5 देशों का ही भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में लगभग 71% हिस्सा है भारत में 1995 से लेकर जनवरी 2018 तक औसतन प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 1284. 13 मिलियन अमरीकी डॉलर रहा तालिका 3
तालिका4 भारत में एफडीआई का प्रवाह(वित्त वर्ष 2017 - 18 में)
उच्चतम एफडीआई प्राप्त करने वाले क्षेत्र( 2000 से दिसंबर 2017 तक) उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कुछ क्षेत्रों में ज्यादा हुआ है कुछ क्षेत्रों में कम हुआ है तथा यह क्षेत्र विश्व के क्षेत्रों के समकक्ष हुआ हैं जैसे धातु एवं खनन क्षेत्र, ऑटोमोबाइल क्षेत्र, बाहरी इंजीनियरिंग एवं निर्माण उद्योग, रासायनिक उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र, सीमेंट कारखाने तथा कृषि उत्पादन में भी तीव्र वृद्धि हुई है जो एफडीआई का परिणाम है लेकिन एफडीआई से कुछ असमानता में वृद्धि हुई है क्योंकि एफडीआई विकसित क्षेत्रों में अधिक हुआ है जैसे मुंबई में एफडीआई का प्रभाव सबसे अधिक द्वितीय स्थान पर दिल्ली और तृतीय स्थान पर बेंगलुरु में हुआ है जो की समानता का परिचायक है जबकि पिछड़े क्षेत्र आज भी इससे वंचित हैं और विकास की धारा से नहीं जुड़ पाए हैं आज भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश मैं बुनियादी ढांचा जैसे बिजली, तेल, गैस, ऑटोमोबाइल, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी परियोजना में एफडीआई प्रभावी भूमिका निभा सकता है विकास का पर्यावरण पर प्रभाव प्रकृति सृष्टि की जननी है। प्रकृति एक स्थिर एवं स्थायी पारिस्थितिक तंत्र है। मानव प्रकृति की गोद में जन्मा व पला है।मानव जीवन अस्थिर एवं गतिमान होता है। मानव अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए प्रकृति पर निर्भर रहता है। मानव की दैनिक आवश्यकताएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। और उसका आर्थिक विकास भी तेजी से हो रहा है।बिगत कुछ वर्षो से मानव के आर्थिक विकास में तीव्र वृद्धि के परिणामस्वरूप प्राकृतिक संसाधनो का दोहन तीव्र गति से होने लगा है।जिससे प्राकृतिक असंतुलन बढ़ने लगा है। तथा प्राकृतिक असंतुलन का प्रत्यक्ष प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है।प्रकृतिमें असंतुलन का तात्पर्य है पर्यावरणीय गुणो में ह्रास।अर्थात संसाधनो के दोहन के उपयोग से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर्यावरणीय अधिप्रभाव कहलाता है। मनुष्य की महत्वकांक्षाए अधिक है, जिस कारण मनुष्य को प्राकृतिक तत्वो के साथ संघर्ष करना पड़ता है।क्योंकि उसकी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व जैविक आवश्यकताएं उसे ऐसा करनें के लिए विवश करतीहै।वर्तमान में आर्थिक विकास के फलस्वरूप औद्योगीकरण, नगरीकरण, वनो का विनाश एवं प्राकृतिक संसाधनो का अंधाधुंध दोहन हो रहा है।जिसके परिणामस्वरुप मानव एवं प्रकृति के मध्य सामंजस्य भंग हो गया है। जिस कारण अनेकाने क पर्यावरणीय समस्याओ का जन्म हुआ है।जिनमें पर्यावरण प्रदूषण प्रमुख है। आधुनिक विकास एवं सभ्यता की अंधी दौड़ में वर्तमान सभ्य समाज नें कुछ ऐसे कार्य किये है जो मनुष्य की दृष्टि में आर्थिक-सामाजिक विकास के प्रतीक है, लेकिन इसमे लिये गये निर्णय आत्मघाती सिद्ध हुए है जो पर्यावरण की गुणवत्ता मेंह्रास के प्रमुख कारण है।मनुष्य भूमि प्राप्ति के लिए वनो का विनाश कर रहा है।विकास के लिए उद्योगो कीअधिक स्थापना की जाती है उद्योग खनिज प्राप्ति के क्षेत्रो मे लगाये जाते है।वही फिर नगरी करण होने लगता है।नगरो में उद्योग व परिवहन से विभिन्न प्रकार के प्रदूषण जन्म लेते है नगरो में कूड़ा करकट, मलमूत्र व ठोस अवशिष्ट का निस्तारण भी जटिलहोता जा रहा है।ये सब मानव के आर्थिक विकास के परिणाम स्वरूप समस्याएं उत्पन्न हुई है, जो पर्यावरण का ह्रास कर उसे प्रदूषित कर देती है। औद्योगिक विकास
का पर्यावरण पर प्रभाव आर्थिक विकास का आधार औद्योगीकरण है आर्थिक प्रगति के लिए औद्योगीकरण आवश्यक है औद्योगीकरण से वांछित उत्पादन के अतिरिक्त हानिकारक अवशिष्ट पदार्थ, प्रदूषित जल, जहरीली व ध्वनि प्रदूषण गैसे, रासायनिक अवशेष, धूल, राख, धुँआ, आदि निकलते है।औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषक जल, वायु, मिट्टी में मिल कर मिट्टी को प्रदूषित करते है। तथा पर्यावरण को असंतुलित कर देते है। 1. औद्योगिक क्रांति से पहले वायुमण्डल में CO2 की मात्रा .029 % थी जो वर्तमान में .0379 % या 379 PPM हो गया है।जो औद्योगिक क्रांति के पूर्व CO2 के स्तर मे 25% वृद्धि का द्योतक है। जिससे ओजोन परत में कमी आ रही है। 2. औद्योगिक क्षेत्र के विस्तार से सफल प्रारूप मे परिवर्तन हुआ है। अत्याधिक भूजल दोहन हुआ है। जिससे भूमिगत जल स्तर में गिरावट आयी है।औद्योगिक विकास के लिए अवसंरचनात्मक कार्य अधिक कराये जाते है जिससे सतह के नीचे स्थित शैलो में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। 3. सेल्युलर फोन क्षतिकारक डां० एस. आर. रामास्वामी के अनुसार सेल्युलर फोन का अधिक दिनो तक प्रयोग मानव मस्तिष्क को काफी क्षति पहुँचा सकता है।इनसे उच्च आवर्ति के विद्युत चुम्बकीय विकिरण निकलते है जोकि पेसमेकर धारी हृदय मरीज के लिए प्राण घातक हो सकता है क्योंकि इससे भी उच्च आवृति की विद्युत चुम्बकीय तरंगे निकलती है जो कि नाड़ी की गति को तेज कर सकती है और जिससे मरीज की मृत्यु हो सकती है। कम्प्युटर मानीटर से अलफा और बीटा किरणे उत्सर्जित होती है जो कम्प्यूटर पर लगातार काम करने वाले व्यक्ति की कार्निया को हानि पहुँचा सकता है। 4.M.C.Saxena के अनुसार, प्रतिवर्ष मनुष्य द्वारा रसायनो का पर्यावरण में निष्काlन किया जाता है ये जहरीले तत्व महिलाओ की गर्भनली से होते हुए उनके गर्भाशय में पनपते हुए भ्रूण तक पहुँच जाते है जिस कारण महिलाओका गर्भपात व समय से पहले प्रसव हो जाता है।औद्योगिक विस्तार के कारण क्लोरीन सल्फेट, बाई कार्बोनेट, नाईट्रेट, सोडियम, मेग्नेशियम, फास्फेट आदि के आयन निकलते है। औद्योगिक विस्तार तथा भूमि में परिवर्तनो के कारण मौसम तथा जलवायु में परिवर्तन होते है। 5. इन सभी परिणामों से नीमराणा अछूता नहीं है जो एक गंभीर समस्या की ओर इंगित करता है। क्योंकि नीमराना राजस्थान का एक प्रमुख निवेश जोन और एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है। |
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निष्कर्ष |
अतः प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जहां जितना अधिक होता है वहां देश में व्यवसायिक गतिविधियां उतनी ही अधिक होती हैं। क्योंकि निवेश धन ही नहीं लाता है बल्कि साथ में तकनीकी भी लाता है जो बढ़ती जनसंख्या के लिए रोजगार प्राप्ति के लिए एक आर्थिक वरदान के रूप में होता है तथा भारत सरकार को भी समय-समय पर इस के संदर्भ में नई नीतियों के साथ उपयोगी बनाया जाना चाहिए जिससे इसके नकारात्मक प्रभाव ना पड़े और विकास में समानता लाई जा सके क्योंकि आर्थिक स्तर को बढ़ाने में एफडीआई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा देश की भविष्य की जरूरतों को भी पूरा करने में मदद करता है
इस अध्ययन से पता चलता है कि औद्योगिक विकास एक महत्वपूर्ण कारक है जो देश के आर्थिक विकास को मजबूत करता है |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. आर्थिक समीक्षा (2020-21), भारत सरकार, नई दिल्ली
2. आर्थिक समीक्षा (2021-22) , राजस्थान सरकार, जयपुर
3. आर्थिक समीक्षा (2020-21) राजस्थान सरकार, जयपुर
4 नाथूराम का, एल. एन. (2019) राजस्थान की अर्थव्यवस्था, कॉलेज बुक हाउस, जयपुर
5. पेस जे (2014) भारत में सेवा क्षेत्र की वृद्धि और संरचना
6. पापोला टीएस (2013) आर्थिक विकास और रोजगार के संबंध
7. भट्ट टीपी (2013) भारतीय उद्योग में विकास और संरचनात्मक परिवर्तन : संगठित क्षेत्र
8. पापोला टीएस (2012) भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन नंबर : उभरते प्रतिरूप और प्रभाव
9. जिला दर्शन (2008), उदीयमान राजस्थान, सूचना व जनसंपर्क कार्यालय, अलवर
10. अलवर हौसले की उड़ान (2007) सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय, अलवर
11. भल्ला एल. आर. (2008) राजस्थान का भूगोल, कुलदीप पब्लिकेशन, नई दिल्ली
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