ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- II May  - 2022
Anthology The Research
बंजारा समुदाय से सम्बन्धित लोककला व संस्कृति
Folk Art and Culture Related to Banjara Community
Paper Id :  16092   Submission Date :  2022-05-12   Acceptance Date :  2022-05-17   Publication Date :  2022-05-25
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शेरिल गुप्ता
शोध छात्रा
चित्रकला विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर,राजस्थान, भारत
सारांश
बंजारा शब्द ही स्वयं में एक पूरी जीवनशैली और संस्कृति समेटे हुए है। बंजारा राजस्थान का ऐसा धुमन्तु समुदाय है जो अन्य क्षेत्रों में भी पहुँचकर अपनी परम्परा को सुरक्षित रखे हुए है। यह शब्द सुनते ही एक ऐसे समुदाय की तस्वीर मस्तिष्क में उभरती है जो कि धुमक्कड़, अस्थाई, डेरा लगाने वाले रंगीन चमकीले कपड़े और चांदी के भारी आभूषण पहनने वाले होते है। बंजारों को गोर-लम्बाड़ी नाम से भी जाना जाता है। बंजारा समाज देश के अनेक राज्यों में निवास करता है। राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात, तथा मध्यप्रदेश में बंजारा समाज की जनसंख्या सर्वाधिक है। बंजारा समुदाय को कला प्रेमी माना जाता है तथा उन्हें संगीत, नृत्य, चित्रकारी, गोदना, रंगोली आदि कलाओं के लिए जाना जाता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The word Banjara itself encompasses a whole lifestyle and culture. Banjara is such a nomadic community of Rajasthan, which is keeping its tradition safe by reaching other areas as well. On hearing this word, a picture of a community emerges in the mind which is smokeless, temporary, camping, wearing colorful bright clothes and heavy silver ornaments. Banjaras are also known by the name Gor-Lambadi. Banjara society resides in many states of the country. Rajasthan, Maharashtra, Karnataka, Andhra Pradesh, Uttar Pradesh, Gujarat, and Madhya Pradesh have the largest population of Banjara community. The Banjara community is considered to be an art lover and is known for the arts of music, dance, painting, tattooing, rangoli, etc.
मुख्य शब्द बंजारा समुदाय, धुमन्तु जाति, लोककला, संस्कृति।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Banjara Community, Ghumantu Cast, Folk Art , Culture.
प्रस्तावना
बंजारा जाति विश्व की जनजातियों में से एक जाति रही है। जिसका सम्बन्ध मध्यकालीन इतिहास के सूत्रों से बंधा है। इसलिए इनकी संस्कृति एवं इतिहास प्राचीन रहा है। बंजारा समाज भारत वर्ष के घुमन्तु प्रकृति के समुदाय से है जिसमें इनकी अनोखी वेश-भूषा और रंग-रूप के कारण आज भी यह बंजारे अपने अस्तित्व को अनेक जातियों से पृथक करते हैं। आज सम्पूर्ण भारत में बंजारा समाज दिखाई देता है। बंजारा समाज के लोग भारत के सभी राज्यों में पाए जाते है तथा उनकी कार्यशैली अलग-अलग प्रांतों में भिन्न-भिन्न है। बंजारा जाति की एक विशेषता है कि ये लोग पहाड़ों, जंगलों और वनों में भी रहते थे। राजस्थान से निकलकर सम्पूर्ण देश में भ्रमण करते हुए बंजारा समुदाय विभिन्न राज्यों में बस गए है। जैसे राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र आदि। एक अलग संस्कृति में जीने वाले इस समाज को अपनी विशिष्ट पहचान के लिए ही जाना जाता है। ये अन्य क्षेत्रों में भी पहुँचकर अपनी परम्परा को बहुत कुछ सुरक्षित रखे हुए है। बंजारों की वीरता की गाथा और सांस्कृतिक विरासत भारतीय इतिहास में उल्लेखनीय है। जिस प्रकार लोक संस्कृति के अंन्तर्गत लोक साहित्य, लोक परम्परा, लोक कलाएँ, लोक संगीत, लोक नृत्य आदि सभी कलाएँ आती है उसी प्रकार लोककला में लोक शब्द आते ही मस्तिष्क में अनेक प्रकार की लोककला कृतियों की छवियाँ उभरती है। इसी प्रकार हमारे देश में विभिन्न लोक संस्कृतियाँ है जिसमें से एक लोक संस्कृति ’’बंजारा समुदाय'' की है। बंजारा वह व्यक्ति है जो जीवन भर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता रहता है, इनका न कोई मूल ठिकाना होता है और न ही इनका घर द्वार होता है। किसी भी एक स्थान से इनका कोई लगाव नहीं होता है जहां पर जाते हैं अपने बैल, बैलगाड़ी, और, गधे, घोड़े तथा अपने रहन-सहन के सामान को साथ ले जाते है और जहाँ का वातावरण इनके लिए अनुकूल होता है वहीं पर अपना पड़ाव डाल देते है इसी कारण इनका नाम ‘घुमन्तू’पड़ा है।
अध्ययन का उद्देश्य
इस शोध पत्र में बंजारा घुमन्तु समुदाय की संस्कृति, व्यापार, कार्यशैली, वेशभूषा और कला आदि पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
साहित्यावलोकन
शिव सिंह चौहान के द्वारा बताया गया है कि बंजारा समाज में व्यापारिक गतिविधियों को एक सूत्र में कैसे बाँधना है। इसके अलावा डॉ. टीकमणि पटवारी ने बताया है कि बंजारा संस्कृति, परम्परा एवं उसका इतिहास किस प्रकार का था तथा उन्होंने मध्यप्रदेश के बंजारा समुदाय का अध्ययन कर वर्णन किया है।
मुख्य पाठ

संस्कृति
बंजारों को कला और संस्कृति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाला भी कहा जा सकता है। बंजारा समुदाय का एक अंनूठा सांस्कृतिक जीवन है जो इन्हें दूसरे समुदाय से अलग करता है। इनके खान-पान, रहन-सहन, भाषा, कला, संगीत, नृत्य, तीज-त्यौहार आदि से इनकी संस्कृति को पहचाना जा सकता है। इनकी संस्कृति अन्य जातियों से अलग है। बंजारों की संस्कृति राजस्थान से होने के कारण इनकी वेषभूषा, रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि राजस्थानी संस्कृति से मिलते है। (प्लेट 1 और 2)
बंजारा समुदाय की भाषा को गोमती या गोर बोली कहा जाता है। गोर बंजारों की अपनी मातृभाषा गोर बोलीहै जो कि पूरे भारत में बंजारा समुदाय द्वारा बोली जाती है, इनकी भाषा को भी अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे लम्बाड़ी, लम्बानी, लमानी, गवरिया, सुगली आदि। बंजारा बोली को गौरमाटी बोली  कहा जाता है। जो राजस्थानी बोलियों से काफी मिलती है। मेवाती, जयपुरी, मारवाड़ी बोली की तरह ही गौरमाटी बोली में भी कठोर वर्णो का प्रयोग अधिक होता है।
नृत्य और संगीत
बंजारा समुदाय के लोग पुरानी परम्पराओं और लोक कलाओं के अनुसार अपनी जीवन-शैली चलाते है। इन्हें कला और संस्कृति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाला भी कहा जाता है। इस जाति के समुदाय में मानव जीवन और कला का गहरा सम्बन्ध पाया जाता है। इस समुदाय के पुरूष और महिलाएँ तीज त्यौहार पर संगीत और नृत्य का आनन्द भी उठाते है। (प्लेट 3)
कला
रंगोली बनानाकपड़ों पर कढ़ाई करनागोदनाचित्रकला का निर्माण आदि बंजारा समुदाय में अधिक प्रचलित है।
बंजारा समुदाय की वेशभूषा
प्रत्येक जाति की अपनी ही सांस्कृतिक व्यवस्था होती है जिससे उनकी पहचान के साथ-साथ उनकी वेशभूषा, आहार तथा संस्कृति को जाना जाता है। बंजारा जाति की वेशभूषा राजस्थान की वेशभूषा से मिलती जुलती पाई जाती है।
स्त्रियों की वेशभूषा तथा आभूषण
बंजारा जाति की महिलायें लाल रंग को विशेष पसन्द करती हैं यह अपने लिए घाघरा बनाती है तथा उसको विचित्र सजावटी कपड़ों से सजाती हैं इस घाघरे को फेटिया कहते हैं। स्त्रियां चोली को भी विशेष रूप से तीन-चार रंगों से सजाती हैं। चोली में कांच लगाये जाते हैं इसे बंजारा स्त्री मंडाव कहती हैं इसे कौड़ी लगाकर भी सजाया जाता है। लुगड़ी या ओढ़नी पर कशीदाकारी कर घुघरू, कौड़ी, सीप और कांच के चोकोर व गोल टुकड़ो सजावटी मोतियों, सितारों और सिक्कों को डिजाइन के रूप में लगाकर पहनती है।
बंजारा समाज की महिलाएं बालों की फलिया गूंथकर उन्हें धागों में पिरोकर चोटी बांध लेती है। अन्य महिलाओं की अपेक्षा बंजारा समुदाय की महिलायें अधिक गहने सिर से पैर तक पहनती है। इस समुदाय की महिलायें आभूषणों में गले में दोहड़ा, हाथों में चूड़ा, नाक में नथ, पैरों में कड़िया, पैरों की अंगुलियों में बिछिया, कमर में करधनी, हाथों में बाजूबंद, अंगुलियों में अंगूठियां, पैरों में घूघरू आदि पहनती है। इस समाज की महिलाएं दोनों हाथों में हाथी दांत की चूड़िया पहनती है ये चूड़ियाँ उन्हें शादी के बाद पहनाई जाती है जो कि सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है।
पुरूषों की वेशभूषा
बंजारा समुदाय के पुरूष कमीज पहनते हैं जिसे अंग्रेजी में शर्ट और लमाणी में झगला कहते है। पुरूषधोती पहनते हैं तथा सिर पर पगड़ी बांधते है। यह पगड़ी अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न रंगों की होती है। लमाणी समाज में पगड़ी का महत्व है उसे इज्जत की दृष्टि से देखा जाता है।पुरूषों को हाथ में कड़ा व कानों में मुरकियाँ पहनने का भी चलन रहा है अधिकतर पुरूषों के हाथों में लाठी होती है।
खानपान
बंजारा समुदाय का खान.पान राजस्थानी वासियों से भिन्न नहीं है। अलग.अलग राज्यों में बंजारा समुदाय का खान-पान भिन्न-भिन्न होता है, जैसे राजस्थान में शीत ऋतु में यह लोग बाजरा तथा बाजरे से बनी खिंचडी को पसन्द करते हैं, उत्सव व तीज-त्यौहार पर यह लोग गेहूं की रोटी अधिक पसन्द करते हैं। ज्वार, बाजरे तथा मक्का की ये बाटी बनाते हैं। इसके अतिरिक्त बंजारों का प्रिय खाना गलवाणी है। गलवाणी बनाते समय पहले एक बर्तन में गुड़ को पानी में अच्छी तरह घोलते है। एक चूल्हे पर गुड़ का पानी गर्म होता है व दूसरे चूल्हे पर आटा सेकते है। आटा जब अच्छी तरह सिक जाता है तो गुड़ का पानी उसमें डाल देते हैं इसे शीरा कहा जाता है। जब गलवाणी तैयार हो जाती है तो उसमें इलायची और खोपरा डालते है। इसके अलावा बंजारों को राबड़ीनामक खाद्य पदार्थ पसंद है जिसे गर्मी के दिनों में सभी परिवार वाले नाश्ते में खाते हैं। राबड़ी को बाजरे, गेहूं और जौ के आटे से बनाते हैं।
बंजारा समुदाय के लोग बकरे ओर भेड़ के मांस को अधिक पसन्द करते है। धार्मिक समारोह पर बकरे की बली चढ़ाते हैं। मांसाहारी देवी-देवताओं के लिए मसालेदार मांस पकाते हैं उसे नारेंजा कहते हैं। देवी-देवताओं का भोग लगाने के पश्चात् नारेंजा प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, इसके अलावा यह लोग मांस के दुकड़ों को घी में भूनकर उन पर मसाले डालते हैं इस प्रकार बने पकवान को बोटी  कहते हैं।
पेय
बंजारा समाज के लोग मदिरा पीना पंसद करते है, इनके द्वारा धार्मिक प्रयोजनार्थ किया जाने वाला कार्य बिना मदिरा तथा मांस के सम्पन्न नहीं होता है। इसके अलावा इस समुदाय के लोग विवाह समारोह में भांग का प्रयोग भी करते है।
जन्म संस्कार
जन्म संस्कार पर बंजारा समाज में लड़के हो या लड़की उन्हें अलग रखा जाता है। जिस झोपड़ी में गर्भवती महिला को रखा जाता है उसमें परिवार का हर कोई सदस्य प्रवेश नहीं करता है। जो भी स्त्री-पुरूष बच्चे के जन्म दिन पर मिलने आते है वे सभी परिवार के सदस्यों के साथ नाच-गान करते हैं। भेंट स्वरूप सभी स्त्री-पुरूषों को खीर खिलाते है और कच्चा नारियल उनके परिवार तक घर पहुँचाते हैं। जन्म के पाँच दिन बाद झोपड़ी को शुद्ध किया जाता है।
जलवा संस्कार
बंजारा समुदाय के लोग बालक के जन्म पर जलवा संस्कार भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।
मुंडन संस्कार
बंजारा समाज में बालक के जब पहली बार सिर के बाल उतारे जाते हैं, उसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। यह मुंडन संस्कार परिवार में होने वाली शादी विवाह के समय या दूसरे बच्चे के जन्मोत्सव पर किया जाता है।
विवाह संस्कार
विवाह की परम्परा बंजारा समुदाय में अब समय के साथ परिवर्तित हो रही है। पूर्व में जब बेटों के अनुपात में बेटियों की संख्या कम थी, उस समय विवाह की शर्त होती थी कि वर पक्ष जब तक वधू पक्ष को ओखली (धान कूटने वाली ओखली) भर रूपये नहीं देंगें तब तक विवाह नहीं हो सकता था। इस समुदाय में विवाह कम उम्र में तय हो जाते है, विवाह के समय बंजारे जाति, उपजाति, कुल, पाड़ा आदि का बहुत ध्यान रखते है विवाह योग्य लड़के तथा लड़कियों एवं उनके अभिभावकों का पता लगाकर दोनों पक्षों के लोगों को गाँव के बीच किसी खेत में छायादार वृक्ष के नीचे बैठाकर बैठक करते है। इसमें वर वधू के पिता, बिरादरी के कुछ लोग एवं सम्मानित पंचों को आमंत्रित किया जाता है। बंजारा समाज के मुखिया जिसे नाईककहा जाता है की अनुमति से चर्चा आरम्भ होती है। आपसी संबंधों की स्वीकृति जब दोनों पक्षों द्वारा पंचों के समक्ष हो जाती है, तब इस नये संबंध की घोषणा की जाती है। सगाई का यह कार्य पूर्ण हो जाने पर उपस्थित सभी लोगों के स्वागत सम्मान में भांग पीसकर पीने तथा पिलाने का कार्यक्रम होता है। भांग के कार्यक्रम के बाद हुक्का, चिलम का कार्यक्रम किया जाता है व सभी को पान दिये जाते है। इसके बाद शराब पीने का आयोजन कर वधू के पिता की ओर से वर के पिता तथा उसके सभी पधारे सम्बन्धियों को भोजन कराया जाता है। इसके बाद सगाई को सामाजिक मान्यता दी जाती है। सगाई करने के दो साल में विवाह किया जाता है। सगाई के इस कार्य को बंजारा समाज में गुलपान’ (गोलपाणी) कहा जाता है बारात के स्वागत में बरातियों को कचौडियां, नाश्ता, गुड़ और रोटी का चूरमा, लड्डू भी परोसा जाता है। मदिरा और भांग का प्रयोग भी विवाह उत्सव पर किया जाता है।
व्यवसाय
बंजारा समुदाय घोड़े, बैल, गधे, ऊंट आदि मवेशियों को साधन हेतु रखते हैं। ये इन्हें सामान ढोने में काम में लेते है तथा मवेशियों का व्यापार भी करते है। इसी कारण बंजारा समाज को गोर समाज भी कहा जाता है। पहले बंजारा समुदाय का मुख्य व्यवसाय नमक रहा है। इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सूचनाओं के आदान-प्रदान में भी योगदान दिया था। जिससे अंग्रेजों ने बंजारा समाज को कमजोर करने के लिए 31 दिसम्बर 1859 को नमक विधेयक कानून बनाया। उस समय इस समुदाय के लोग नमक का व्यापार बड़े स्तर पर करते थे। अंग्रेजों के इस कानून के कारण बंजारा समाज को बहुत नुकसान हुआ। जिससे इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गयी और इनको अपना व्यवसाय बदलना पड़ा था।

बंजारा समाज की महिला- पुरूष गोंद, चारपाई, सैंधा नमक, मुल्तानी मिट्टी आदि का व्यापार करते रहे हैं। इस समाज के लोग सामान्य और विशिष्ट दोनों तरह की वस्तुओं का व्यापार करते हैं। सामान्य वस्तुओं के अन्तर्गत ये तिलहन, गन्ना, अफीम, फल, वन उत्पाद, महुआ, तम्बाकू आदि का व्यापार भी करते रहे है।

इस समुदाय के बहुत से लोगों को अब शहरों का रूख करना पड़ा है। ये लोग अब शहरों में सड़कों के किनारे खाली जगहों पर अपनी झोपड़ी बनाकर रहते है। लोहे की चद्दर से घर के कार्यो में आने वाले औजार जैसे झर, चलनी, चालना, तवा, चिमटा, लोहे से बनने वाले घर के बगीचों और खेतों में काम आने वाले औजार जैसे खुरपी, फावड़ा आदि मकानों के बनाने में प्रयुक्त होने वाले औजार जैसे करनी, हथौड़ा, टांकी, सम्बल आदि बनाते है व औजारों पर धार लगाना आदि कार्य कर अपने परिवार का पालन-पोषण मेहनत के साथ करते है।
बंजारा समाज का सामाजिक उत्थान में योगदान
बंजारा समाज के बाबा लक्खीशाह बंजारा एक माने हुए व्यापारी थे, इन्होंने प्रत्येक 10 किलोमीटर के दायरे में कुओं, तालाबों का निर्माण, व्यापारिक मार्ग पर जानवरों व अन्य लोगों को पानी उपलब्ध हेतु तथा राहगीरों के विश्राम के लिए सराय का निर्माण भी कराया था। लोहागढ़ किले के निर्माण में भी बाबा लक्खीशाह बंजारा ने खाद्य् व निर्माण सामग्री का योगदान किया था तथा सिखों के द्वारा बनाये गये किलों के निर्माण में भी बाबा लक्खीशाह बंजारा ने काफी सहयोग किया था। इस समुदाय के लोग सूरजऔर अग्नि देव की पूजा करते आये है तथा हिन्दुओं के सभी देवताओं की आराधना करते रहे हैं।
तीज-त्यौहार
बंजारा समाज में तीज के व्रत को जवाराकहते हैं, इस समाज में भाद्रपद कृष्ण आष्टमी को भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा दशहरा, दिवाली व होली के त्यौहार भी धूमधाम से मनाएं जाते है।  (प्लेट 4)
विश्व बंजारा दिवस
8 अप्रैल का दिन विश्व बंजारा दिवस’’ के रूप में मनाया जाता है क्योंकि 8 अप्रैल 1981 में जर्मनी में बंजारों का एक विश्व स्तरीय सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में भारत के "बंजारों के गाँधी" रणजीत नाईक साहब और पद्मश्री रामसिंह भानावत जी शामिल हुए थे, इसलिए सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि प्रतिवर्ष 8 अप्रैल को ‘‘विश्व बंजारा दिवस’’ के रूप में मनाया जाएगा।

प्लेट-1:  बंजारा महिला

प्लेट-2:  घुमन्तु समुदाय का सफर

प्लेट-3: बंजारो की महिला-पुरूष द्वारा नृत्य  

प्लेट-4: बंजारा समुदाय के त्यौहार

निष्कर्ष
बंजारा समाज भारत का प्राचीनतम समुदाय है। बंजारा समाज अपनी संस्कृति व स्वतंत्रता को बरकरार रखे हुए है। यह समाज अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने आपको परिवर्तित करता रहा है। बंजारा समुदाय में बच्चे को जन्म संस्कार विवाह संस्कार आदि सभी संस्कार प्राचीनतम रूप से मनाएं जाते हैं इसलिए इनकी संस्कृति तथा संस्कार की यह पद्धति काफी पुरानी सी प्रतीत होती है। इस शोध पत्र में बंजारा समाज की ऐतिहासिक स्थिति, संस्कृति, संस्कार, भक्ति-भावना तथा त्यौहार आदि का परिचय देने का प्रयास किया गया है ताकि यह समाज एवं समूह की विशेषताओं को सिद्ध करने में सहायता मिल सकें।
आभार लेखिका इस शोध कार्य के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली द्वारा अवार्ड जूनियर रिसर्च फैलोशिप हेतु अपना आभार व्यक्त करती है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. गोविन्द राठौर (2014), बंजारा समाज का इतिहास सदियों पुराना है, 5 सितम्बर। 2. डा. टीकमणि पटवारी (2021), बंजारा संस्कृति और परम्परा। बंजारा संस्कृति एवं उसका इतिहास, एम.पी. ट्राइब्स एण्ड कल्चर, 21 सितम्बर। 3. बंजारे कहां से आए, कैसे जीते है जीवन, क्या जानते है आप? https://hindi.news18.com/photogallery/bangare-ghumantu-nomadic-people-rajasthan-tribe-community-banjara-commuinity-437009.html 4. बंजारा समाज-व्यापारिक गतिविधियों से देश को एक सूत्र में बांधने वाला समाज। https://www.hktbharat.com/banjara-samaj-history-in-hindi % 20.html 5. बंजारा इतिहास देखे अर्थ और सामग्री। https://www.hmoob.in/wiki/sugali. 6. शिवेन्द्र सिंह चौहान (2020) बंजारा समाज - व्यापारिक गतिविधियों से देश को एक सूत्र में बाँधने वाला समाज।