P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- VI , ISSUE- XI February  - 2022
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
शासकीय और अशासकीय माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों में सामंजस्य क्षमता का अध्ययन आदतों पर प्रभाव का अध्ययन
Study of Cohesion Ability in Government and Non-Government Secondary Level Students, Study of Effect on Habits
Paper Id :  16144   Submission Date :  19/02/2022   Acceptance Date :  21/02/2022   Publication Date :  25/02/2022
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गरिमा शर्मा
शोधार्थी
शिक्षाशास्त्र विभाग
श्री जगदीश प्रसाद झाबरमल टिबडे़वाला विश्वविद्यालय,
झुंझुनू,राजस्थान, भारत
रतन लाल भोजक
निर्देशक
शिक्षाशास्त्र विभाग
श्री जगदीश प्रसाद झाबरमल टिबड़ेवाला विश्वविद्यालय,
झुंझुनू,राजस्थान, भारत
सारांश वातावरण से तालमेंल की आदत सामंजस्य क्षमता का संवर्द्धन करती है। सामंजस्य जीवन कौशल का आधार है। जो विभिन्न आयामों में सफलता के लिये परम आवश्यक है। सामंजस्य के महत्व में परिवार, विद्यालय, समाज के अतिरिक्त स्वास्थ्य और भावनात्मक सामंजस्य के स्तर को माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों में निम्न स्तरीय सहसम्बन्ध पाया गया है। वातावरण और तालमेंल की क्षमता आदतों के निर्माण में सहायक होती है। आदतें व्यवहार का अंग बन जाती है। विद्यार्थी जीवन में अध्ययन की आदत महत्वपूर्ण होती है। आधुनिक वातावरण में शिक्षण की अध्ययन अध्यापन पद्धति में व्यापक परिवर्तन हुयें है। अध्ययन के प्रति माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों का क्या दृष्टिकोण है एवं अध्ययन आदतों के स्तर में अत्यन्त निम्न ऋणात्मक सहसम्बन्ध पाया गया है। लक्ष्य के प्रति स्पष्टता से अध्ययन के प्रति गम्भीरता बढ़ती है उचित आदतें एवं सामंजस्य पूर्ण व्यवहार से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The habit of adjusting to the environment enhances the ability to harmonize. Harmony is the basis of life skills. Which is absolutely necessary for success in various dimensions. The importance of cohesion, in addition to the level of health and emotional cohesion in the family, school, society, has been found to be low-level among the secondary level students.
The environment and the ability to adjust helps in the formation of habits. Habits become part of behavior. Study habits are important in student life. In the modern environment, there has been a lot of change in the teaching method. Very low negative correlation has been found between the attitude of secondary school students towards study and the level of study habits. With clarity towards the goal, seriousness towards study increases, with proper habits and harmonious behavior, positive results are obtained.
मुख्य शब्द सामंजस्य क्षमता, अध्ययन आदत।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Cohesion Ability, Study Habit.
प्रस्तावना
मनुष्य अन्य जीवों से श्रेष्ठ है उसकी श्रेष्ठता का आधार उसकी विवेक क्षमता है शिक्षा ही व्यक्ति में विवेक का ज्ञान प्रदान करती है। किशोरावस्था बालक के जन्म के बाद की तीसरी अवस्था है। जो बाल्यावस्था के उतरार्द्ध में प्रारंभ होती है और युवावस्था के प्रारम्भ होने तक चलती है वास्तव में यह अवस्था बाल्यावस्था और युवावस्था का संधिकाल है शिक्षा विकास का वह क्रम है जो बाल्यावस्था से परिपक्वता तक चलता है और जिससे मनुष्य अपने आपको आवश्यकतानुसार धीरे- धीरे भौतिक वातावरण, सामाजिक वातावरण और आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है। किशोरावस्था बालकों के भावी जीवन की व व्यक्तित्व निर्माण की महत्वपूर्ण अवस्था है। मनुष्य की इच्छाओं और आवश्यकताओं के बीच जीवन को व्यवस्थित करने का कार्य समायोजन कहलाता है। छात्र जीवन में व्यक्तित्व के विकास के लिये कई बार परिस्थितियों के साथ तालमेंल बैठाना पड़ता है। विभिन्न क्षेत्रों में समय-समय पर उत्पन्न समस्यात्मक परिस्थितियों में सहजता से सामंजस्य स्थापित कर सकने की क्षमता सामंजस्य या समायोजन या अनुकूलन क्षमता कहलाती है। बालक की बाहय और आन्तरिक परिस्थितियों के साथ सामंजस्य की प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है। बालक के जीवन में सामंजस्य के विभिन्न आयामों का प्रभाव पड़ता है। और एक सन्तुलित व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. शासकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत शिक्षार्थियों की सामंजस्य का उनकी अध्ययन आदतों पर प्रभाव का अध्ययन। 2. शासकीय माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत् शिक्षार्थियों की सामंजस्य का उनकी अध्ययन आदतों पर प्रभाव का अध्ययन। 3. अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत शिक्षार्थियो की सामंजस्य का उनकी अध्ययन आदतों पर प्रभाव का अध्ययन।
साहित्यावलोकन
1. जैन और भट्ट (2020) ने अध्ययन में पाया कि माता-पिता का सहयोग व साथ बच्चों में सुरक्षा और संरक्षण एवं संतुलित विकास का निर्माण करता है किसी एक अभिभावक या दोनों अभिभावकों की अनुपस्थिति में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है जो उनकी शिक्षा के प्रति अभिवृत्ति पर भी प्रभाव डालता है। 2. चौरसिया, वन्दना (2019) अध्ययन की अच्छी आदतें और रवैया में कभी-2 पाया गया कि छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि अंको के आधार पर उच्च हो सकती है किन्तु इसके लिये यह आवश्यक नही कि उसकी अध्ययन आदते उच्च स्तर की हो। उपलब्धि का दूसरा मापदण्ड विषय का पर्याप्त ज्ञान और सक्षम होना भी आवश्यक है। शिक्षार्थी चाहे किसी भी बोर्ड में अध्ययन करे अभिभावको की अपेक्षाये, प्रेरणा सभी छात्रो के लिए समान करती है। 3. प्रजापति, हीरल. (2019) ने संयुक्त परिवार छात्रो में समायोजन की अधिक संभावनाए पायी गई। संयुक्त परिवारों का सौहार्द्र पूर्ण वातावरण बालकों में सामंजस्य क्षमता और मानवीय मूल्यों में वृद्धि करता है संयुक्त परिवारों में सभी सदस्य एक-दूसरे की साथ तारतम्य बैठाना सीख जाते है। 4. वाधवान, कोमपाल (2018) ने पाया कि जिन परिवारों में स्नेह व प्रेम का वातावरण होता है, वहां के बच्चे अधिक समायोजित होते है। संवेगात्मक स्थिरता और शैक्षिक समायोजन का आपस में महत्वपूर्ण संबंध है शैक्षिक समायोजन विद्यार्थियों की अध्ययन आदतों में सहायता करता हैं किशोरावस्था जीवन कौशल प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण काल है। 5. पाठक एवं अन्य (2018) किशोरावस्था बालकों के मानसिक, शारीरिक एवं भावनात्मक परिपक्वता की अवस्था है सामंजस्य की क्षमता का विकास अपने आस-पास के व्यक्तियों एवं परिस्थितियों के साथ सकारात्मक संबंध की स्थापना करना है। शारीरिक और सामाजिक आवश्यकतों के अनुरूप संतुलन की स्थापना सामंजस्यपूर्ण व्यवहार कहलाता है। 6. बोरो, विरीना (2017) अध्ययन में पाया कि जिन परिवारों में विद्यार्थियों को विचारों को व्यक्त करने की आजादी होती है। वहाँ उनकी सामंजस्य क्षमता उत्तम होती है। सामाजिक समायोजन की क्षमता छात्राओं से अधिक होती है शैक्षिक समायोजन में छात्र एवं छात्राओं दोनो को समान रूप से समायोजन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लिंग के आधार पर छात्रायें शैक्षिक समायोजन में छात्रों से आगे रहती है। 7. सिंह, अंशुबाला (2017) शोध में पाया कि परीक्षा के समय छात्रों में चिन्ता और तनाव का स्तर बढ़ जाता है। इसलिए पारम्परिक शिक्षा प्रणाली की जगह आधुनिक एवं प्रमाणिक मूल्यांकन पद्धति का विकास किया जाना चाहिए। जो छात्रों के साथ न्याय कर सकें। 8. शेखर एवं लॉरेंस (2016) शोध अध्ययन विद्यार्थियों के संवेगात्मक, सामाजिक एवं शैक्षिक समायोजन में तालमेंल के लिये अध्यापकों एवं अभिभावकों के समय समय पर निर्देशन उपलब्ध कराना चाहियें। किशोरावस्था में मनोवैज्ञानिक सहयोग बालको के विकास में सन्तुलित वृद्धि करता है। 9. नरहारी और तिवारी (2015) ने अध्ययन में किशोर छात्र-छात्राओं में उच्च अध्ययन आदतों के लिये निर्देशन और मार्गदर्शन प्रक्रिया को आवश्यक किया जाने का सुझाव दिया। 10. सेल्वी, बी तामिल एंव राजगुरु, एस (2010) अध्ययन में पाया गया कि छात्र घर, शिक्षा, समाज और भावनाओं का समायोजन उनकी शैक्षणिक उपलब्धि को प्रभावित करता है। शोध में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ - सामंजस्य- सांमजस्यपूर्ण व्यवहार का विकास मात्र शिक्षा के द्वारा ही किया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति अपने वातावरण और परिस्थितियों के साथ सांमजस्य करना सीखता है शिक्षा न केवल सांमजस्य सिखाती है वरन सामंजस्य शक्ति के वद्धन भी करती है। सामंजस्य का आधार गृह, स्वास्थ्य, विद्यालय, संवेगात्मक एवं सामाजिक आयाम के आधार पर देखा गया है। अध्ययन आदत - व्यक्ति द्वारा जीवन में जो भी व्यवहार किया जाता हेै तो उसका आधार आदत ही होती है व्यक्ति जब किसी कार्य को बार-बार करता है, तो उस क्रिया में स्थायित्व आ जाता है, और वह काम आदत में बदल जाता है। आदत व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करती है व्यक्ति द्वारा कार्यो का निष्पादन आदत द्वारा ही किया जाता है।
मुख्य पाठ

गृह आयाम- किशोरवय बालक-बालिकाओं के परिवार की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति उनके बाल्यविकास पर स्पष्ट प्रभाव डालती है।

स्वास्थ्य आयाम- शक्ति से सामर्थ्य का विकास होता है। ऊर्जावान व्यक्ति आलस्य का प्रबल विरोधी और शारीरिक स्वास्थ्य का प्रबल समर्थक होता है।

विद्यालय आयाम- किशोर बालक-बालिकाओं के मानसिक विकास में उनका विद्यालय विशेष कारक का कार्य करता है विद्यालय में पाठ्यक्रम उनकी रूचि और आवश्यकता के अनुरूप होना चाहिए एवं विद्यालय में होने वाली पाठ्य सहगामी क्रियायें उनके मानसिक गुणों को प्रभावित करती है

संवेगात्मक आयाम- किशोर बालक-बालिकाओं मनः स्थिति अस्थिर होती है। संवेगो में अत्यधिक विभिन्नतायें होती है। कभी वे खिन्न और कभी उल्लास से परिपूर्ण होते है। किशोरो का स्वास्थ्य उनके व्यवहार को प्रभावित करता है। किशोरावस्था के आगमन का मुख्य चिन्ह संवेगात्मक क्रियाओं में तीव्र परिवर्तन है।

सामाजिक आयाम- किशोरावस्था में सामाजिक विकास का क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। किशोर बालक-बालिकायें सामाजिक परिस्थतियों में अपने को व्यवस्थित करने का प्रयास करते है निम्न स्वरूप सामाजिक विकास में दिखाई देता है

अध्ययन आदत- जब बालक वातावरण के सम्पर्क में आता है। तो कुछ क्रियाओं को वह बिना प्रयास के ही सीख जाता है एवं कुछ आदतों को दूसरे व्यक्ति बालक के जीवन में डालते है। अच्छी आदतों को अपने व्यवहार का अंग अभ्यास से ही बनाया जा सकता है। आदतें अपने आप पड़ जाती है। आदत के निर्माण में घर का वातावरण अत्यधिक योग देता है बाल्यावस्था में दूसरों की नकल करने की प्रवृत्ति होती है और यह प्रवृत्ति उसे बहुत सी आदतें सिखा देती है। किशोरवय बालक-बालिकाओं में बाल्यकाल से ही नियमित दिनचर्या की आदत डालनी चाहिए। उनके सोने, पढ़ने, खेलने एवं दैनिक क्रियाओं का समय निश्चित होना चाहिए। किशोरावस्था तक आते-आते नियमित आदतें व्यवहार का रूप धारण कर लेती है। नियमित दिनचर्या का संतुलित विकास पर सकारात्मक प्रभाव दिखाई देता है।
जब शिक्षा को प्रगतिशाील जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है तो शिक्षा के अभिकरण केे रूप में अनेक संस्थाओं को समन्वित किया जाता है जिनमें व्यक्ति जीवनपर्यन्त रहता है एवं जिनसे बालक उपयोगी और अनुपयोगी ज्ञान प्राप्त करता है। ये संस्थायें शिक्षा के अभिकरण या साधन कहलाते है। बाहृय अभिकरण के रूप में विद्यालय सर्वप्रथम बालक के सर्म्पक में आता है। प्रस्तुत शोध में सरकारी और गैर सरकारी माध्यमिक विद्यालयों को सम्मलित किया गया है।

शोध का महत्व -

सांमजस्य पूर्ण रूप से समायोजित व्यक्ति ही राष्ट्र और समाज के कल्याण में सहायक हो सकता है। आज के विद्यार्थी भविष्य की समस्याओं का विश्वसनीय पुर्वानुमान नही कर सकतें। आज समाज में बहुत तीव्रगति से परिवर्तन हो रहें है। भावी समस्याओं का अनुमान लगाकर उनसे सांमजस्य स्थापित करने की क्षमता आज के शिक्षार्थियों में उत्पन्न करनी होगी। कि जिन बच्चो के अभिभावक अपने पाल्यों के प्रशिक्षण और शैक्षिक आचरण के प्रति गंभीर रहते है। उनकी शिक्षा को महत्व देते है। उनको बच्चों मे उच्च आत्मविश्वास, उच्च समायोजन क्षमता उच्च एवं आत्म प्रेरणा से भरे होते हैं। जब तक घर-परिवार, विद्यालय एवं समाज के बीच घनिष्ठ सम्बंध नही होगा। तब तक छात्र-छात्राओ मे सरकार, मूल्य एंव उचित करणीय-अकरणीय कर्तव्यों की सीख नही दी जा सकती। बालको के व्यक्तित्व विकास मे संतुलित जीवन और बहुआयामी सामंजस्य की स्थापना में परिवार व विद्यालय और समाज का सहयोग रहता है।

मनुष्य के जीवन में आदतो का महत्वपूर्ण स्थान है। वह जन्मजात मूल प्रवत्तियो से प्रेरित होकर आचरण व्यवहार करता है। और अलग-अलग प्रकार के वातावरण सम्पर्क मे आकर बहुत सी नई आदतों को सीखता है। व्यक्ति मे दो प्रकार की प्रवत्तियाँ पाई जाती है। एक तो जन्मजात प्रवत्तियाँ- जो उसके  जन्म से ही उपस्थित रहती है। वातावरण के सम्पर्क मे आकर उनका विकास होता है। दूसरी प्रवत्ति अर्जित होती है। अर्जित प्रवत्तियाँ एक प्रकार का व्यवहार होता है। जिसे व्यक्ति बार-2 दोहराकर उसे अपने स्थायी आचरण का भाग बना लेता है। जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा मे आदत कहा जाता है। ये आदतें धीरे-2 व्यक्ति के स्वभाव का अंग बन जाती है। आदत एक स्वचालित व्यवहार है। जिसे मनोवैज्ञानिक जेम्स नेमनुष्य का दूसरा स्वभावकहा है। अध्ययन मे अभिभावको की सहायता न मिलने और कठिन विषयों की समस्याओं का समाधान समय पर न होने के कारण छात्र अध्ययन के प्रति गंभीर नही हो पाते है।

प्रस्तुत अध्ययन छात्र- छात्राओें में सामंजस्य एवं अध्ययन आदतों के बीच सम्बन्ध को जानने के प्रयास से किया गया गया है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रयुक्त शोध में न्यादर्श में झाँसी शहर के सरकारी और गैर सरकारी माध्यमिक स्तर के विद्यालयों में अध्ययनरत 600 शिक्षार्थी (300बालक एवं 300 बालिकाएं) लिए गये है। आकंडों का चयन में विद्यालयों का चयन यादृच्छिक विधि द्वारा एवं न्यादर्श को सुविधा चयन विधि से चयनित किया है। शोध उपकरण में सामंजस्य क्षमता के मापन के लिए डा0 ए0 के0 सिंह एवं डा0.ए0 सेन गुप्ता (HSAI) द्वारा रचित हाईस्कूल सामंजस्य अनुसूची एवं अध्ययन आदतों के मापन के लिए डिम्पल रानी एवं एम. एल. जायका द्वारा रचित अध्ययन आदत स्केल (SHS-DRJ) को लिया गया है। शोध में स्वतन्त्र चर सरकारी और गैर सरकारी माध्यमिक विद्यालय है एवं आश्रित चर कक्षा नौ एवं दस में अध्ययन कर रहे शिक्षार्थी है। आकड़ों का विश्लेषण में प्रोडक्ट मूंवमेन्ट सहंसंबध गुणांक का प्रयोग किया है। सारणी मूल्य को सार्थकता स्तर .05 पर सहसंबंध गुणांक के मान के साथ मापन किया गया है।
विश्लेषण

सारणी सं0 01 शासकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत शिक्षार्थियों की सामंजस्य का उनकी अध्ययन आदत परीक्षण सारणी

सारणी सं0 01

उपरोक्त परिगणित विश्लेषण सारणी से स्पष्ट है, कि माध्यमिक स्तर के शासकीय और अशासकीय शिक्षार्थियोें के सामंजस्य क्षमता एवं अध्ययन आदत के बीच पिर्यसन सहसंबंध गुणांक मान -0.168 प्राप्त हुआ है। जों df (598)  के .05 सार्थकता स्तर पर सारणी मूल्य 0.88 से अत्यधिक कम है। शासकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालय के शिक्षार्थियों की सामंजस्य क्षमता और अध्ययन आदत के मध्य अत्यन्त निम्न ऋणात्मक सह-सम्बन्ध प्राप्त हुआ है।

सहसंबंध आरेख 01

परिणाम

सारणी 0 02

शासकीय माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत  शिक्षार्थियों के सामंजस्य क्षमता एवं अध्ययन आदत परीक्षण सारणी

उपरोक्त परिगणित विश्लेषण सारणी 02 से स्पष्ट है कि माध्यमिक स्तर के शासकीय शिक्षार्थियोें के सामंजस्य क्षमता एवं अध्ययन आदत के बीच पिर्यसन सहसंबंध गुणांक का मान -0.219  प्राप्त हुआ है। जों  df(598) के .05 सार्थकता स्तर पर सारणी मूल्य 0.88 से अत्यधिक कम है। जिसके आधार पर शून्य परिकल्पना स्वीकृत हो जाती हैअंतः स्पष्ट है कि शासकीय माध्यमिक विद्यालय के शिक्षार्थियों की सामंजस्य क्षमता और अध्ययन आदत एक दूसरे से निम्न ऋणात्मक सहसंबंध रखती है।

सहसंबंध आरेख 02

सारणी सं0 03  अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत  शिक्षार्थियों के सामंजस्य क्षमता एवं अध्ययन आदत परीक्षण सारणी

सारणी संख्या 03

उपरोक्त परिगणित विश्लेषण सारणी 03 से स्पष्ट है कि माध्यमिक स्तर के अशासकीय शिक्षार्थियोें के सामंजस्य क्षमता एवं अध्ययन आदत के बीच पिर्यसन सहसंबंध गुणांक का मान -0.092 प्राप्त हुआ है। जों df(598) के .05 सार्थकता स्तर पर सारणी मूल्य 0.088 से अत्यधिक कम है। जिसके आधार पर शून्य परिकल्पना स्वीकृत हो जाती हैअतंः यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षार्थियों के सामंजस्य क्षमता और अध्ययन आदत एक दूसरे को प्रभावित करती है एवं एक दूसरे से अत्यन्त निम्न ऋणात्मक सहसंबंध रखती है।

सहसंबंध आरेख सं0 03

निष्कर्ष 1. शासकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयोें में अध्ययनरत शिक्षार्थियों की सामंजस्य क्षमता और अध्ययन आदतों में निम्न स्तरीय ऋणात्मक सहसंबंध पाया गया है संभवतः सामंजस्य क्षमता के स्तर में परिवारिक की सामाजिक-आर्थिक स्तर, अभिभावकों का शिक्षार्थियों के साथ अनुकूलन का स्तर, अध्यापकों का व्यवहार, विद्यालय का वातावरण, पाठयसहगामी क्रियाओं में शिक्षार्थियों की सहभागिता का स्तर, मित्र समूह के साथ संबंध आदि कारक प्रभावी हो सकते है। जो अध्ययन के प्रति लापरवाही अथवा नियमित अध्ययन नही कर पाते। 2. शासकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयोें में अध्ययनरत शिक्षार्थियों की वैचारिक स्वतन्त्रता का स्तर, सांवेगिक परिपक्वता का स्तर, भौतिक संसाधनों की उपलब्धता, बोल-चाल की भाषा, समस्याओं को हल करने की परिवार स्तर, अध्ययन के समय थकान आदि कारण प्रभावी हो सकते है। अध्ययन में संसाधनों की उपलब्धता सकारात्मक प्रभाव डालती है। 3. शासकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयोें में अध्ययनरत शिक्षार्थियों का अध्ययन करने का समय, अध्ययन का तरीका, नोटस बनाने की आदत, कठिन विषयों को हल करने में आने वाली समस्याओं के प्रति अभिवृत्ति , पाठ के अभ्यास का तरीका, विद्यालय में शिक्षकों का व्यवहार, शैक्षिक अभिप्रेरणा आदि कारक प्रभावी हो सकते है। 4. शासकीय और अशासकीय माध्यमिक विद्यालयोें में अध्ययनरत शिक्षार्थियों का मानसिक स्तर, स्वास्थ्य का स्तर, प्राथमिक कक्षाओं में विषयों के प्रति अभिवृत्ति , अध्ययन का लक्ष्य विहिन होना, नियमित अध्ययन न करने की आदत, विद्यालय और अध्यापकों द्वारा पर्याप्त ध्यान न दिया जाना, विषय में कमजोरी से कुंठा, तनाव और चिन्ता का होना आदि कारक प्रभावी हो सकते है।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव शिक्षार्थियों को उत्तर में अध्ययन आदतों के विकास के लिए अध्ययन की पूर्व योजना का निर्धारण कर लेना चाहिए। समय एवं परिस्थिति अनुसार उसमें परिवर्तन किया जा सकता है। अध्ययन का समय निर्धारित होना आवश्यक है क्योकि मानसिक और सांवेगिक जैविक घड़ी के अनुसार समय पर किये कार्य का सकारात्मक उत्पादन होता है शिक्षार्थियों द्वारा लक्ष्य निर्धारित करके किये गया कार्य प्रभावी परिणाम प्राप्ति में सहायक होता है। कठिन विषयों को प्रारम्भिक स्तर पर करने से संचित ऊर्जा और शक्ति द्वारा सकारात्मक परिणाम प्राप्त किया जा सकता है अध्ययन के संक्षिप्त नोटस को बनाना, प्रत्येक विषय को समय देना, अध्ययन के उपरान्त नियत समय पर अभ्यास करना, अध्ययन में आने वाली समस्याओं को अध्ययन के समय नोट करते जाना एवं अंत में अध्यापक से समस्याओं का निराकरण कर लेना आवश्यक होता है अध्ययन आदतों में रटने की आदत के बजाय दक्षता प्राप्ति पर ध्यान देना चाहिए।
आभार यह शोधपत्र "रिमार्किंग एन अनलाइजेशन" जर्नल के जनवरी अंक में प्रकाशित हो चुका है कुछ संशोधन के साथ इसे इसी शोधपत्रिका के फरवरी अंक में प्रकाशित किया जा रहा है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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