ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- III June  - 2022
Anthology The Research
विन्ध्य क्षेत्र की प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानी
Prominent Women Freedom Fighters of Vindhya Region
Paper Id :  16157   Submission Date :  18/06/2022   Acceptance Date :  22/06/2022   Publication Date :  25/06/2022
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महेंद्र मणिमणि द्विवेदी
प्राध्यापक
इतिहास विभाग
शासकीय कन्या महाविद्यालय
रीवा,मध्य प्रदेश, भारत
पूनम उपाध्याय
शोधार्थी
इतिहास विभाग
शासकीय कन्या महाविद्यालय
रीवा, मध्य प्रदेश, भारत
सारांश मध्यप्रदेश का विन्ध्य क्षेत्र राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत रीवा में जनजाग्रति तीव्रगति से हुई। रीवा क्षेत्र से लोगों ने 1857 से 1942 तक स्वाधीनता आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया।अंग्रेजों ने भारत का आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक शोषण किया उनके अत्याचार तथा अपमानजनक स्थिति चरम सीमा पर पहुँच गई और भारतीय जनता अंग्रेजों से मुकाबला करने को तैयार हो गई पराधीनता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए सन् 1857 में पहली बार भारतीयों ने खुलकर अंग्रेजों से मुकाबला किया। अतः सन् 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया। हालांकि इतिहासकारों के मत भिन्न -भिन्न है। फिर भी भारत में अधिकांश क्षेत्रों के सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया। सन् 1857 से सन् 1947 तक भारतीय आंदोलन की ज्वाला में असंख्य देशभक्त महिला-पुरुषों ने अपनी कुर्बानियाँ दीं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Vindhya region of Madhya Pradesh has been the center of political activities. Under this area, public awareness took place at a rapid pace in Rewa. People from Rewa region actively participated in the freedom movement from 1857 to 1942. The British exploited India economically, socially, religiously and politically, their atrocities and humiliating situation reached the climax and the Indian people were ready to face the British. In 1857, for the first time, Indians openly fought with the British to get freedom from the suzerainty. Therefore, the revolt of 1857 was called the first freedom struggle. However, the opinions of historians differ. Yet in India all sections of people from most regions participated. In the flames of the Indian movement from 1857 to 1947, innumerable patriotic men and women made their sacrifices.
मुख्य शब्द विन्ध्य क्षेत्र, महिला स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रीय आंदोलन, सामाजिक, धार्मिक , राजनैतिक शोषण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Vindhya Region, Women Freedom Fighters, National Movement, Social, Religious, Political Exploitation.
प्रस्तावना
भारत अंग्रेजों की कुटिल उपनिवेशवादी नीतियों के कारण दीर्घ समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। विदेशी शासन की साम्राज्यवादी नीति के कारण भारतीय जनमानस उद्वेलित हुआ। अंग्रेजों ने भारत का आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक शोषण किया उनके अत्याचार तथा अपमानजनक स्थिति चरम सीमा पर पहुँच गई और भारतीय जनता अंग्रेजों से मुकाबला करने को तैयार हो गई पराधीनता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए सन् 1857 में पहली बार भारतीयों ने खुलकर अंग्रेजों से मुकाबला किया। अतः सन् 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया। हालांकि इतिहासकारों के मत भिन्न -भिन्न है। फिर भी भारत में अधिकांश क्षेत्रों के सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया। सन् 1857 से सन् 1947 तक भारतीय आंदोलन की ज्वाला में असंख्य देशभक्त महिला-पुरुषों ने अपनी कुर्बानियाँ दीं। सन् 1857 से सन् 1947 की स्वाधीनता की दास्तान उन वीरांगनाओं के बिना अधूरी है, जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में अंग्रेजों को लोहे के चने चबा दिये थे। सन् 1857 की क्रांति में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को देखकर अंग्रेज हैरान थे। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी में ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर दी थी। वीरतापूर्वक युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुई। उनकी मृत्यु हो जाने के बाद जनरल ह्यूरोज ने कहा था कि- ‘‘यहाँ वह औरत सोई है जो विद्रोहियों में एक मात्र मर्द थी।’’ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में जहाँ पुरुषों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया, वहीं भारतीय नारियों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन किया। स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वाली नारियाँ अधिकांश नारियाँ सामान्य घरों की थी किसी राजवंश की उपज नहीं, किन्तु अपनी बहादुरी से वे इस मुकाम तक पहुँच पायी थी। भारतीय आंदोलन का भारत के कोने-कोने में प्रभाव पड़ा। भारत के प्रत्येक प्रांत की नारियों ने अपना सहयोग प्रदान किया। इसी तारतम्य में विन्ध्य प्रदेश की नारियों ने भी अपनी घर गृहस्थी त्याग कर आजादी की इस लड़ाई में कूद पड़ी। ग्रामीण क्षेत्र तथा शहरी क्षेत्रों से नारियों ने स्वाधीनता आंदोलन में अमूल्य योगदान दिया भारत के विंध्य क्षेत्र से अनेक नारियों ने सन् 1857 से 1947 के बीच स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई सन् 1857 की क्रांति में जैतपुऱ की रानी राजमणि का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
अध्ययन का उद्देश्य 1. राष्ट्रीय आंदोलन में विन्ध्य क्षेत्र की नारियों द्वारा किए गये सहयोग व बलिदान का अध्ययन करना। 2. प्रत्येक आन्दोलनों का गहन अध्ययन करके विन्ध्य क्षेत्र की महिला स्वतंत्रतासेनानियों से सम्बन्धित तथ्यों को उजागर करना।
साहित्यावलोकन

मध्यप्रदेश में विंध्य क्षेत्र राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र की नारियों में राष्ट्रीय जागृति तीव्र गति से उत्पन्न हुई। रीवा क्षेत्र की नारियों ने भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। जिसमें श्रीमती राजकुमारी देवी ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार किया जिससे उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। फिर वो देश की आजादी के लिए संघर्षरत रहीं। श्रीमती तारादेवी मिश्रा सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर, जुलूसों का नेतृत्व किया इस कारण इन्हें आठ माह कारावार की सजा भुगतनी पड़ी। इसी क्रम में श्रीमती चम्पादेवी, शिवराजकुमारी, श्रीमती सावित्री देवी, गुजरिया बाई तथा श्रीमती उर्मिला देवी ने गांधीजी के द्वारा चलाये आंदोलन में भाग लेकर विशेष योगदान दिया।

मुख्य पाठ

विंध्य प्रदेश की प्रमुख नारियों का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान -
रानी राजमणि -
सन् 1842 में बुन्देलखण्ड की रियासत जैतपुर को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया था। अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ जैतपुर के राजा परीक्षित ने अंग्रेजी शासन को समाप्ति करने हेतु युद्ध किया था।
किंतु अंग्रेजी सेना से उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। राजा परीक्षित को जैतपुर छोड़ना पड़ा बड़ा सदमा पहुँचने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। राजा परीक्षित की मृत्यु के पश्चात् रानी राजमणि ने बदला लेने की ठान ली थी 1857 में सामने आयी। अपने खोये हुए राज्य को प्राप्त करने के लिए रानी की प्रतिज्ञा कर ली थी। तथा अंग्रेजों से संघर्ष प्रारंभ कर दिया सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला किया। रानी राजमणि पूरे साहस के साथ अंग्रेजों से युद्ध कर रही थी। परन्तु उनके कुछ सहयोगी अंग्रेज भक्त थे। चरखारी के राजा ने हमेशा अंग्रेजों का साथ दिया। उसने अंग्रेजों के साथ मिलकर रानी के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ कर दिया। जिसमें रानी के कई सहयोगी युद्ध में मारे गये रानी अंग्रेजी सेना के बीच घिर चुकी थी। फिर भी रानी निरंतर युद्ध करती रहीं। रानी ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से वीरता के साथ युद्ध किया।
श्रीमती राजकुमारी देवी-
राजकुमारी देवी की शिक्षा माध्यमिक स्तर तक ही हो पायी थी। इसके पश्चात इनका विवाह श्री मुंशीसिंह के साथ हो गया। श्रीमती  राजकुमारी देवी ने सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। महिला संगठन का कार्य किया। राष्ट्रीय भावना इनके अंदर विद्यमान थी जिससे इन्होंने राष्ट्रीयता का खूब प्रचार-प्रसार किया तथा निरंतर गतिविधियों का संचालन करती रही। इस कारण इन्हें कई बार जेल की सजा काटनी पड़ी। किन्तु वे देश की आजादी के लिये संघर्ष करती रहीं। इस प्रकार विन्ध्यप्रदेश की नारियों ने अपनी घर-गृहस्थी त्याग कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर आंदोलन को और अधिक मजबूत बनाने में अपना पूरा योगदान दिया।
श्रीमती तारादेवी मिश्रा-
रीवा क्षेत्र प्रारंभ से राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। रीवा क्षेत्र के पुरुषों का स्वाधीनता आंदोलन महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वहीं महिलाएँ भी पीछे नहीं रही। पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेकर विन्ध्यप्रदेश का गौरव बढ़ाया है।
रीवा की श्रीमती तारादेवी मिश्रा का योगदान भी कम नहीं था। इन्होंने रीवा क्षेत्र में जनजाग्रति तथा महिलाओं में उत्साह का संचार किया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया। अंग्रेजी शासन के खिलाफ जुलूस तथा फेरियाँ निकाल कर महिलाओं को संगठित किया। इस क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आंदोलन अधिक तीव्र हो गया था। गांधीजी के द्वारा चलाये गयेराष्ट्रीय आंदोलन में रीवा क्षेत्र की महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लेकर अपना योगदान दिया। श्रीमती तारादेवी मिश्रा ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का पश्चात् महिलाओं को निरंतर जाग्रत करती रहीं। जेल की सजा काटने के पश्चात भी वे अपने कार्यों से पीछे नहीं हटीं और देशकार्यों में संलग्न रहकर आंदोलन को नई दिशा प्रदान करती रहीं। इस प्रकार श्रीमती तारादेवी अन्य महिलाओं के लिये प्रेरणा का कार्य की। रीवा क्षेत्र की अन्य महिलाएँश्रीमती कृष्णा कुमारीचंपादेवीसावित्री देवी तथा श्रीमती शिवराज कुमार का योगदान भी उल्लेखनीय है। देशप्रेम में लीन होकर भारत की महिलाओं की वीरता को देखकर विन्ध्यक्षेत्र की इन महिलाओं ने भी अंग्रेजों संघर्ष किया। ये दिखा दिया नारी अबला नहीं है। कितने ही अत्याचार सहीं किन्तु अपने कर्तव्य को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विन्ध्यप्रदेश की इन महिलाओं ने सब कुछ त्यागकर स्वतंत्रता की लड़ाई में पूर्ण सहयोग प्रदान किया।
चम्पादेवी एवं श्रीमती शिवराज कुमारी-
मध्यप्रदेश के रीवा रियासत में भी 1957 की क्रांति आग की भाँति फैल गयी थी। जिसमें इस क्षेत्र के अनेक महिला एवं पुरुषों ने सक्रिय भाग लिया। मनकहरी के ठाकुर रणमत सिंह ने 1857 की क्रांति भाग लेकर अंग्रेजों के होश उड़ा दिये। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को पूर्ण सहयोग प्रदान किया तथा तात्याटोपे के साथ मिलकर क्रांतिकार गतिविधियों को संचालित करते रहे। रीवा क्षेत्र से ही कैप्टन अवधेव प्रताप सिंह का भी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख योगदान रहा है। गांधीजी द्वारा चलाये गये असहयोग आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर लोगों को जागृत किया। राष्ट्रीय आंदोलन में वे अग्रणी थे।
इस प्रकार भारत के विंध्यप्रदेश रीवा क्षेत्र की महिलाओं का योगदान भी कम नहीं था। जिसमें चम्पादेवी एवं श्रीमती शिवराज कुमारी ने भी स्वाधीनता आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया। पुरुषों के साथ-साथ इन महिलाओं ने भी अपना सहयोग प्रदान किया। रीवा के सिरमौर की चम्पादेवी ने इस क्षेत्र की महिलाओं को जाग्रत किया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर सभाओं का आयोजन किया एवं जुलूस निकाला इस कारण इन्हें कारावास की सजा भुगतनी पड़ी। चार माह का कारावास तथा 500 रुपये का अर्थ दंड मिलने के बाद भी चम्पादेवी ने भारत छोडों आंदोलन में भाग लेकर अन्य महिलाओं को प्रेरित किया। जेल की सजा काटने के पश्चात् भी चंपादेवी ने जन-जागरण का कार्य करना बंद नहीं किया। वे महिलाओं को आजादी की इस लड़ाई के लिये निरंतर जाग्रत करती रहीं। इसी प्रकार रीवा की श्रीमती शिवराज कुमारी का योगदान भी  कम नहीं था। रीवा क्षेत्र के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन की गांधीजी ने वापस ले लिया तत्पश्चात् 1934 में प्रमुख नेता अवधेश प्रतापसिंहयादवेन्दु सिंहवंशपति सिंह आदि को रिहा कर दिया गया था। इसके बाद रीवा क्षेत्र में राष्ट्रीय आंदोलनों को गति मिली और महिलाओं ने पूर्ण सहयोग दिया। श्रीमती शिवकुमारी ने भी स्वाधीनता आंदोलन में निरंतर योगदान दिया सन् 1930 से 1942 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेती रहीं। गांधीजी के चरखे का प्रचार किया। चरखे के प्रचार करने के कारण श्रीमती शिवराजकुमारी की संपत्ति जप्त कर ली गई। अंग्रेजी शासन का दमन चक्र चलता रहा किंतु भारतीय जनता नेे डटकर सामना किया। रीवा क्षेत्र में राष्ट्रीय आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया था। महिलाएँ घर की चार दीवारी से बाहर आकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गई। रीवा निवासी श्रीमती विष्णुकांत देवी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। इस कारण उन्हें तीन साल तथा आठ महीने की सजा काटनी पड़ी। इस प्रकार मध्यप्रदेश की सभी क्षेत्र की महिलाओं ने स्वाधीनता आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर इतिहास में अमर हो गयीं।
श्रीमती सावित्री देवी-
मध्यप्रदेश का रीवा रियासत भी राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलनों में जनजागृति का केन्द्र रहा है। रीवा क्षेत्र के ठाकुर रणमत सिंह ने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए झांसी की रानी लक्ष्मीबाईतात्याटोपे का साथ देकर अंग्रेजों के होश उड़ा दिये थे। इस क्षेत्र से पुरुषों ने ही नहीं वरन् महिलाओं ने भी स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग प्रदान किया है। श्रीमती सावित्री देवी जिनका जन्म 8 जनवरी सन् 1926 को हुआ था। उनका विवाह श्री यादवेन्द्र सिंह के साथ हुआ। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों से वे भलीभांति परिचित थीं। अतः देश में चल रहे प्रत्येक आंदोलन में भाग लेने की रुचि बढ़ती गई और रीवा क्षेत्र की अन्य महिलाओं की भांति इन्होंने भी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में रीवा से महिला मोर्चा संभाला। जुलूसों को नेतृत्व प्रदान किया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर दिया। आंदोलन में नेतृत्व करने के कारण इन्हें भी कारावास का दण्ड भुगतना पड़ा। लेकिन सावित्री देवी का उत्साह कम नहीं हुआ और महिला संगठन के कार्य को निरंतरता प्रदान की। अब उन्हें अंग्रेजों के किसी भी प्रकार के दंड को कोई भय नहीं था। देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना ही इनका एकमात्र उद्देश्य रह गया। उनकी प्रेरणा से महिलापुरुषछात्रबच्चों ने भी आंदोलन में सहयोग दिया। रीवा क्षेत्र से ही सिरमौर की चम्पादेवी ने तारादेवी मिश्राकृष्ण कुमारी ने भी विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर विरोध प्रदर्शन किया और आंदोलन को गति प्रदान की। इस प्रकार स्वाधीनता आंदोलन में मध्यप्रदेश की महिलाओं ने भी आगे आकर अपना बलिदान दिया।
श्रीमती गुजरिया बाई-
श्रीमती गुजरिया बाई का जन्म 1894 में विन्ध्यप्रदेश के जिले सतनामरजूबा नामक गांव में हुआ था। पिता श्री बाबादीन उमराव थे। गुजरिया बाई प्राथमिक शिक्षा भी पूर्ण नहीं कर पायी थी। किंतु वह बुद्धिमान थी। राष्ट्र प्रेम की भावना उनके हृदय में कूट-कूट कर भरी हुई थी। राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन मे उन्होंने अपना योगदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम के कार्यों में अत्यधिक रुचि लेती थी। मध्यप्रदेश की गुजरिया बाई ने भारत छोड़ों आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। शराब की दुकानों पर धरना दियाविदेशी वस्त्रों की होली जलायी। अंग्रेजों के अत्याचार भी सहे। परन्तु वे अपने कार्यों को गति प्रदान करती रहीं।
श्रीमती उर्मिला देवी-
विन्ध्यप्रदेश के सतना जिला से श्रीमती उर्मिला देवी ने स्वाधीनता आंदोलन में सहभागिता की। राष्ट्रीय आंदोलनों में लगातार भाग लेती रहीं। उर्मिला देवी ने गांधी के असहयोग आंदोलनसविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ों आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। सतना में रघुवंश प्रताप सिंह के द्वारा पूर्ण स्वाधीनता दिवस का आयोजन किया। ग्राम पिण्डारा में 1929 में गुरुकुल की स्थापना की गईजिसका उद्देश्य नवयुवकों में राजनैतिक चेतना को जागृत करना था। किंतु अंग्रेजों ने 1930 में इस संस्था को बंद कर दिया था। श्रीमती उर्मिला देवी ने संस्था के संस्थापक के साथ मिलकर अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कार्य का विरोध किया। इस कारण उर्मिला देवी को नागौद जेल में डाल दिया गया था। नागौद रियासत में सन् 1946 में प्रजामण्डल की स्थापना की गई। जिसमें उर्मिला देवी सचिव के रूप में कार्यरत् थीं। जेल में रहकर भी उर्मिला देवी ने अंग्रेजी शासन की नीति का विरोध किया और अनशन आरंभ कर दिया।
श्रीमती तुलसी बाई-
श्रीमती तुलसीबाई का जन्म सन् 1890 में कटनी मध्यप्रदेश में हुआ था। श्री रामकृष्ण दुबे से इनका विवाह सम्पन्न हुआ। मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में श्रीमती तुलसीबाई ने भी अपनी महती भूमिका निभाई। स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने हेतु उनके पति श्री रामकृष्ण दुबे ने सहयोग किया मध्यप्रदेश की श्रीमती तुलसीबाई ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया गांधीजी द्वारा चलाये गये भारत छोड़ो आंदोलन में अपना योगदान दिया विदेशी वस्त्रों की होली जलाईशराब की दुकानों में धरना दिया। पुलिस की लाठियाँ भी खानी पड़ी फिर भी वे अपने कर्तव्य पर अडिग रहकर अन्य महिलाओं को स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए प्रेरित करती रहीं।

निष्कर्ष मध्यप्रदेश का विन्ध्य क्षेत्र राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत रीवा में जनजाग्रति तीव्रगति से हुई। रीवा क्षेत्र से लोगों ने 1857 से 1942 तक स्वाधीनता आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया। जिसमें ठाकुर रणमत सिंह, कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह का नाम उल्लेखनीय है। श्री ब्रजसिंह तिवारी, गोविन्द नारायण, राजा शमशेर सिंह सूर्यप्रसाद सिंह, कमलेश्वर सिंह, तथा दिनेश प्रसाद पाण्डे का भी बहुत बड़ा सहयोग रहा है जिसमें श्रीमती कृष्णा कुमारी चम्पादेवी, तारादेवी मिश्रा, सावित्री देवी, उर्मिला सिंह आदि महिलाओं में भी श्रीमती राजकुमारी देवी का नाम भी उल्लेखीय है। इन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भाग लिया तथा महिला जन जागरण हेतु प्रयासरत रहीं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. भगवानदास, बघेलखण्ड में स्वाधीनता आंदोलन 2. मिश्र द्वारका प्रसाद, मध्यप्रदेश में स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास, स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन 2002 3. प्यास डॉ. हंसा, मध्यप्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम 1857-1947 4. भारत की स्वतंत्रता में मध्यप्रदेश का योगदान, स्वतंत्रता सेनानी सलाहकार समिति-भोपाल - 1997 5. राधेशरण डॉ. विन्ध्यप्रदेश का इतिहास हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल 6. शापित डॉ. मुरारीलाल, स्वतंत्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारी नारिया ममता प्रकाशन दिल्ली संस्करण -2005