ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- III June  - 2022
Anthology The Research
निमाड़ी भाषा का स्वरूप एवं क्षेत्र
Nature and Scope of Nimari Language
Paper Id :  16155   Submission Date :  07/06/2022   Acceptance Date :  18/06/2022   Publication Date :  25/06/2022
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गायत्री चौहान
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कॉलेज
खरगोन ,मध्य प्रदेश, भारत
सारांश संस्कृति और सामाजिक जीवन की इंद्रधनुषी छटा शोभायमान है लोक भाषाएं सहायक नदी की तरह होती है लोग जीवन से आत्मसात होने के कारण ही अपने साथ मूल किनारों पर बसने वाली जनता की सभ्यता संस्कृति गीत कथा कहावत और विपुल शब्द संपदा से राष्ट्रभाषा को समृद्ध करती आई है यह स्पष्ट है कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में जितनी अच्छी तरह से व्यक्त हो सकता है दीदार भाषा में नहीं क्योंकि वह वातावरण परिवेश और स्थिति के यथार्थ से जुड़ा होता है निमाड़ी भाषा प्रदेश अनेक भाषाओं से घिरा एक क्षेत्र है इसके उत्तर में मालवी भाषा क्षेत्र है दक्षिण में इसकी पूर्व पश्चिम सीमा खानदेशी का क्षेत्र है पश्चिम में भीली भाषा क्षेत्र है। इस प्रदेश में नींम के अधिक वृक्ष देखकर इसके नामकरण के संबंध में यह अनुमान लगाया जाता है कि 11वीं शताब्दी में अरब यात्री अबलारूजी ने अपने यात्रा वर्णन में इस प्रदेश का नाम निमाड़ प्रांत लिखा है आधुनिकता की बिहड में लोक भाषा सभ्यता और संस्कृति की तलाश कहां की जाए? संस्कृति मूल्य गत एहसासों की निरंतर सूखते वृक्ष के हरेपन को कैसे रोका जाए, ? लोक भाषाएं, समाज की वह जड़े हैं जो सभ्यता के पेड़ को अपनी भूमि पर खड़ा रखती है और उसे हरापन भी देती है, निमाड़ी लोक भाषा निमाड़ अंचल के अधिकांश लोगों की मातृभाषा है साथ ही इस भू-भाग के ग्रामीण क्षेत्र की संपर्क भाषा भी है भारतीय भाषा के मानचित्र में निमाड़ी लोक भाषा को पूर्ण दर्जा प्राप्त हो चुका है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The rainbow shade of culture and social life is beautiful, people languages ​​are like tributaries, due to people being assimilated from life, the civilization of the people living on the original banks along with them, culture has been enriching the national language with songs, stories, proverbs and abundant word wealth. It is clear that a person can express well in his mother tongue and not in Didar language because that environment is related to the realities of the environment and the situation. In its east-west border is the area of ​​Khandeshi, in the west is the Bhili language area.
Seeing more neem trees in this region, it is estimated in relation to its naming that in the 11th century Arab traveler Abalaruji in his travel description has written the name of this region as the province of Nimar. How to stop the greenness of the ever-drying tree of culture, values ​​and feelings? Folk languages ​​are the roots of society which keep the tree of civilization standing on its land and also give it greenness.
Nimari folk language is the mother tongue of most of the people of Nimar region, as well as the contact language of the rural area of ​​this region, Nimadi folk language has got full status in the map of Indian language.
मुख्य शब्द चितेरे, विपुल, सिंगाजी, निमाड़ी, विंध्या।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Chitere, Vipul, Singaji, Nimadi, Vindhya.
प्रस्तावना
विध्य और सतपुड़ा की गोद में लेटे हुए जिस भु-भाग पर मॉ नर्मदा की लाल लहरे कल-कल नाद की कल्लौल करती हों। ओंकार भगवान की जय-जयकार करती हों चौपालो पर झाँझ और मृदंग की ताल पर संत सिंगाजी की अमरवाणी गूजंती हो, उस भूखण्ड अर्थात् निमाड की लोक भाषा निमाडी काम.प्र. की लोक भाषाओ मे महत्वपूर्ण स्थान है। इसमे कम से कम शब्दों मे अधिक से अधिक बात कह जाने की क्षमता हैं। इसमे हमारी सभ्यता- संस्कृति और सामाजिक जीवन की इन्द्रधनुषीय छठा शोभायमान हैं।
अध्ययन का उद्देश्य इस शोधपत्र का उद्देश्य निमाड़ अंचल में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा निमाड़ी का चित्रण करना है जो सदियों से इस अंचल में अभिव्यक्ति का माध्यम बनी हुई है निमाड़ी भाषा का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है वैसे ही इसका सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश भी विशाल है देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली निमाड़ी एक समर्थ एवं स्वतंत्र भाषा हैं। आशा है निमाड़ एवं निमाड़ी भाषा क्षेत्र के जन समूह के लिए यह शोध पत्र उपयोगी सिद्ध होगा।
साहित्यावलोकन

लोक भाषाएँ सहायक नदी की तरह होती हैं। लोक जीवन से आत्मसात् होने के कारण ही अपने साथ अपने मूल किनारो पर बसने वाली जनता की सभ्यता-संस्कृति, गीत, कथा, कहावत और विपुल शब्द संपदा से राष्ट्रभाषा को समृद्ध करती आयी हैं। लोक जीवन के चितेरे को उपमा / अलंकार कही से उधार नहीं लेने पड़ते हैं वरन् वह तो अपने आस-पास की धरती प्रकृति और जन-जीवन की उपमाएँ चुनकर अपनी कल्पना से सिंगार, सूझ और समझ के पंखो पर बैठकर नये लोक-जीवन की सृष्टि करता आया हैं। भाषा अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम होती हैं। भाषा में व्यक्ति व्यक्त होता है। और व्यक्ति में भाषा की परवरिश होती हैं। यह स्पष्ट हैं कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में जितनी अच्छी तरह से व्यक्त हो सकता है दीदार भाषा मे नहीं क्योंकि वह वातावरण, परिवेश, और स्थितिगत यथार्थ से जुड़ा होता है, वह उसमें रचता-बसता है।

मुख्य पाठ

निमाड़ी का क्षेत्र

निमाड़ी भाषा प्रदेश अनेक भाषाओं से घिरा एक क्षेत्र हैं। इसके उत्तर में मालवी भाषी क्षेत्र हैं जो इसकी लगभग 150 मील पूर्व पश्चिम परिधि से आरंभ होता हैं। दक्षिण में इसकी पूर्व पश्चिम लगभग 160 मील लम्बी परिधि को छूता हुआ मराठी तथा उसकी एक बोली खानदेशी का क्षेत्र आरंभ होता है लगभग 60 मील उत्तर-दक्षिण परिधि से संपर्कित निमाडी प्रभावित बुंदेली तथा पश्चिम में लगभग इतनी ही विस्तार परिधि में भीली भाषी क्षेत्र आरंभ होती हैं।
निमाड़ी नामकरण
इस भू-भाग का नाम निमाड़ी फारसी के "नीम" शब्द से निमाड़ी होना बताया गया है। फारसी में "नीम" का अर्थ "आघा" है। इस भू-भाग मे नर्मदा नदी का आधा भाग अपने आँचल मे छिपा रखा हैं इसलिये इसे निमाड़ कहते हैं। यह नर्मदा के उदगम स्थान की अपेक्षा मुख से अधिक निकट हैं, लेकिन "नीम" शब्द के आगे "आड" प्रत्यय लगा है। अतः उक्त मत स्पष्ट नहीं हैं। डॉफोर्सिथ "निमाड" शब्द फारसी के स्थान पर हिन्दू (हिन्दी) शब्द मानते है (1) कुछ लोगों का मत हैं कि निमाड़ में प्रवेश करने वाला प्रथम मुसलमान शासक अलाउदीन खिलजी थाजो सन् 1291 मे यहाँ आया था। यदि निमाड़ मुसलमानी नाम हो तो इस भू-भाग का यह नाम सन् 2191 के पश्चात् ही पड़ना चाहिए जबकि 11 वीं शताब्दी में आने वाले अरब यात्री अबलारूजी ने भी अपने यात्रा वर्णन में इस प्रदेश का नाम "निमाड प्रान्त" लिखा हैं। (2) कुछ लोग इसका पूर्ण नाम "निमवाड" बतलाते हैंजिसका अर्थ हैं- "नीम" (एक वृक्ष) का प्रदेश।
इस प्रदेश में नीम के अधिक वृक्ष देखकर इसके नामकरण से संबंध में यह अनुमान लगाया जाता है यद्यपि यह तर्क से अधिक पुष्ट है, लेकिन फिर भी संतोषजनक नहीं जान पड़ता है (3) इस संबंध मे युवमुती कृत उत्तररामचितकी कुछ पंक्तियाँ विचारणीय हैं। विन्ध्या समीप आने पर लक्ष्मण ने सीता से कहा- "एश विन्ध्याखी मुखे विराधसरोध अर्थात् यह विन्ध्य की पत्यका हैं जहाँ हमें विराध ने अवरोध किया था विराध का स्मरण आते ही सीताजी के कोमल हृदय पर आघात हुआजिसे देख कर राम ने कहा-
"एतनि तनि गिरि निमीरिणी तरपुवैखान साक्षित तरूचि तपोवनामि ।
ये एवतियेय परमाः यमिनो भजन्ते नीवारमुपिरपचमा गृहिणी ग्रहणि।।"
उक्त श्लोक की अंतिम पंक्ति में प्रयुक्त "नीवार" शब्द से तात्पर्य हैं जंगल मे उत्पन्न होने वाले एक प्रकार के चावल से जिसे अरण्य में वास करने वाले ऋषि-मुनि सेवन करते थे। इस भाग में उत्पन्न "नीवार" शब्द कुछ समय पश्चात् "निमाड़" कहलाने लगा हो, ऐसा माना जाता है।
निमाड मालवा का दक्षिण भाग हैं जिसे हम निम्न भाग ही कह सकते हैं "वाड" का अर्थ हैं- "स्थान"। जैसे मारवाड, मेवाडकठियावाड आदि नाम हैं। पूर्व मे "निम्बाड" होना चाहिए। इस भाग से लगे भाग की मालवी भाषा में निम्न भाषा को "निमानीकहते हैं। अतः "निम्बाड" से ही निमाड नाम पड़ने की अधिक संभावना जान पड़ती है।
निमाड की सीमावर्ती भाषाएँ
उत्तर में मालवी, पश्चिम में गुजरातीदक्षिण मे खानदेशी और पूर्व में होशंगाबाद शब्दों के आदान-प्रदान मे भी उसकी सीमावर्ती भाषाओं का प्रभाव रहा हैं।
निमाड़ी भाषी प्रदेश
निमाड़ी में स्थित मुख्यतः दो जिलों की भाषा है 21.4 और 22.5 उत्तर अक्षांश तथा 74.4 और 77.3 पुर्व देशान्तर के बीच स्थित हैं। इस भू-भाग के उत्तर मे मध्यप्रदेश के धार इन्दौरदेवास जिले दक्षिण मे खानदेश तथा विदर्भ के बुलढाना और अमरावती जिलेपूर्व में होशंगाबाद और बैतूल जिले और पश्चिम में मुम्बई प्रात हैं। विन्ध्याचल इस भू-भाग की उत्तरी सीमा पर संतपुडादक्षिण सीमा पर इसके अंगिन प्रहरी है। दोनो जिले पूर्वी निमाड़ - खण्डवा तथा पश्चिमी निमाड़ खरगोनजिनकी भाषा के अतिरिक्त रहन-सहनधार्मिक विश्वाससामाजिकताऔर भौगोलिक स्थिति में कोई अन्तर नहीं है। इन दोनों जिलों में निवासरत सभी निमाड़ी भाषी नहीं हैं किन्तु फिर भी अधिकांश लोगों में निमाड़ी ही बोली हैं। उत्तर मे विशाल विन्ध्याचल और दक्षिण में अपनी सात शाखाओं वाला सतपुड़ा पर्वत के बीच बसा निमाड़ी भाषी भू-भाग हैं। दोनो पर्वतों के बीच इतना सकरा स्थान हैं कि जिसे हिरण भी छलांग मारकर पार सकता है। इसलिए यह स्थान 'हिरणफाल" के नाम से जाता जाता हैं। डॉ आर.ठही. रसेल ने इस निमाड़ की पूर्वी सीमा बतलायी हैं।

निष्कर्ष आज अत्यंत चिन्तनीय प्रश्न हैं कि आधुनिकता की बीहड़ में लोक भाषा, सभ्यता और संस्कृति की तलाश कहाँ की जाय और संस्कृति मूल्यगत अहसासों कि निरन्तर सूखते वृक्ष के हरेपन को कैसे रोका जाय ? बंदलते परिवेश और मानसिकता के परिप्रेक्ष में लोकभाषा और संस्कृति की अन्तर्निहित मूल्यगत यात्रा चाहे संतोषजनक एवं सुखद नहीं हैं, लेकिन ये तमाम विसंगतियों का दुखभोग संवैदनिक अहसास जरूर है। अतः लोक- भाषाएँ समाज की वे जड़ें हैं जो सभ्यता के पेड़ को अपनी भूमि पर खड़ा रखती हैं और उसे हरापन भी देती हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डॉ. फोसिंथ- निमाड डिस्ट्रिक गजेटियर, पृ.23-29 2. माउंट स्टुअर्स एलफिस्टोन हिस्टोरी ऑफ इंण्डिया (1889) पृ.396 3. सेवयुस अबलारानी इण्डिया (1880) भाग, पृ. 203 4. डॉ. आर. व्ही. रसेल-निमाड डिस्ट्रिक गजीटर भाग (1908). पृ.20 5. डॉ. कृष्णलाल हंस-निमाड़ी और उसका साहित्य। 6. निमाड़ी की धार्मिक लोक कथाएं- डॉ मीना साकलले