ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- IV July  - 2022
Anthology The Research
स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर का अध्ययन
Study of Anxiety Level of Students Studying in Undergraduate Classes
Paper Id :  16183   Submission Date :  06/07/2022   Acceptance Date :  17/07/2022   Publication Date :  23/07/2022
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अनीता रानी गुप्ता
विभागाध्यक्षा
शिक्षक शिक्षा स्नातकोत्तर विभाग
आई0पी0(पी0जी0) कॉलेज, द्वितीय परिसर,
बुलन्दशहर,उत्तर-प्रदेश, भारत
सुशील कुमार गुप्ता
प्रधानाचार्य
समाज-शास्त्र
विवेकानन्द इन्टर कॉलेज, ऊचाँगाँव
बुलन्दशहर, उत्तर-प्रदेश, भारत
सारांश चिन्ता एक ऐसी अप्रिय सांवेगिक अवस्था है, जिससे व्यक्ति में डर, आशंकाये, परेशानी आदि की प्रधानता रहती है। चिन्ता में व्यक्ति इतना अधिक डर जाता है एवं आशंकित हो जाता है कि व्यक्ति में किसी भी परिस्थिति के साथ निपटने की क्षमता लगभग समाप्त हो जाती है और वह स्वयं को बेसहारा महसूस करता है। चिन्ता मानसिक तनाव से उत्पन्न एक संवेग है। चिन्ता की स्थिति में व्यक्ति के मन मस्तिष्क में इतना तनाव रहता है कि उसका किसी भी कार्य में मन नही लगता है। चिन्ता एक परेशानी व आशंका की भावना है, जो किसी अनदेखे खतरे के कारण होती है। यह वास्तव में बहुत दुखदायी स्थिति होती है, क्योंकि यह व्यक्ति के कार्यो का विघटन कर देती है। जब व्यक्ति में चिन्ता अत्यधिक बढ़ जाती है, तो वह स्वयं को असहाय महसूस करने लगता है, उसका किसी कार्य में मन नही लगता और तंग आकर कोई गलत कदम उठाने से भी वह नही घबराता है। ऐसा नही है कि चिन्ता सिर्फ व्यस्कों में पायी जाती है, बल्कि यह बालकों, किशोरों, महिलाओं, प्रौढ़ो आदि में भी पाई जाती है, परन्तु सभी में चिन्ता की मात्रा सभी में अलग-अलग होती है। प्रस्तुत शोध कार्य स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर का पता लगाने हेतु किया गया है। इस कार्य हेतु सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया है। न्यादर्श हेतु यादृच्छिक प्रतिचयन विधि का प्रयोग किया गया है। प्रदत्तों के संकलन हेतु सिन्हा एवं सिन्हा का सिन्हा काम्प्रिहैन्सिव एंग्जायटी स्केल प्रयोग किया गया है। प्रदत्तों के विश्लेषण हेतु सांख्यिकीय विधियों मध्यमान, मानक विचलन एवं क्रान्तिक अनुपात का प्रयोग किया गया है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Anxiety is such an unpleasant emotional state, due to which fear, apprehension, trouble etc. In anxiety, the person becomes so much afraid and apprehensive that the ability of the person to deal with any situation is almost lost and he feels helpless. Anxiety is an emotion caused by mental stress. In the state of anxiety, there is so much tension in the mind of a person that he does not feel like doing any work. Anxiety is a feeling of discomfort and apprehension caused by some unseen danger. This is really a very sad situation, because it disrupts the work of the person.
When a person's anxiety increases excessively, then he starts feeling helpless, he does not feel like doing any work and he is not afraid to take any wrong step even after getting fed up. It is not that anxiety is found only in adults, but it is also found in children, adolescents, women, adults etc., but the amount of worry is different in everyone. The present research work has been done to find out the anxiety level of the students studying in the undergraduate classes. Survey method has been used for this work. Random sampling method has been used for sampling. Sinha and Sinha's Sinha Comprehensive Anxiety Scale was used to collect the data. Statistical methods mean, standard deviation and critical ratio were used to analyze the data.
मुख्य शब्द स्नातक कक्षाएं, अध्ययनरत् छात्र-छात्राऐं, चिन्ता।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Under-graduate Classes, Students Studying, Anxiety.
प्रस्तावना
चिन्ता एक स्थिर मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जो आन्तरिक संघर्ष से उत्पन्न होती है। चिन्ता सदा ही कार्य में विघ्न डालती है। चिन्ता से पीड़ित व्यक्ति किसी भी कार्य को मन लगाकर नहीं करता है। यही कारण है कि इसे सीखने की प्रक्रिया में बाधा स्वरूप माना जाता है। चिन्ता का यदि सही रूप में प्रयोग किया जाये तो यह कार्य में सहायक भी सिद्ध हो सकती है। क्योंकि यदि एक आवश्यक सीमा तक प्राणी में कार्य के लिए चिन्ता उत्पन्न कर दी जाये, तो इससे सीखने की प्रक्रिया में सहायता मिलेगी। बुलेस्की ने जिज्ञासा को भी चिन्ता का ही रूप माना है। जिज्ञासा का लक्ष्य यह है कि विद्यार्थियों में पाठ के प्रति जिज्ञासा और कुछ सीमा तक चिन्ता जाग्रत करना, जिससे विद्यार्थी अपने कार्य को मन लगाकर कर सके। जब कभी बालक डर से चिन्तित होता तब अपनी सुरक्षा के बारे में सोचेगा है, इस चिन्ता से बालक कार्य का सीमित प्रत्यक्षीकरण कर पाता है। सीमित प्रत्यक्षीकरण के कारण उसके कार्य में बाधा आती है। बालकों में चिन्ता की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है, जिसका प्रभाव उनकी बुद्धि पर पड़ता है। इनमें परीक्षण चिन्ता भी बहुत अत्यधिक पाई जाती है। परीक्षा देने से पूर्व परीक्षा देते समय व परीक्षा के बाद भी चिन्ता समाप्त नहीं होती है। परीक्षा देने से पूर्व बालकों में परीक्षा में आने वाले प्रश्नों की चिन्ता रहती है, जिसके कारण परीक्षा देते भी बालक चिन्ता से ही ग्रस्त रहते है। तत्पश्चात् परिणाम आने के बाद अपने भविष्य के प्रति चिन्तित हो जाते है। सामान्य तौर पर परीक्षा की चिन्ता सभी छात्र-छात्राओं में पाई जाती है। चिन्ता के कारण उच्च बुद्धि लब्धि के विद्यार्थी भी कम अंक प्राप्त करते सकते हैं, जबकि एक सामान्य बुद्धि लब्धि का विद्यार्थी जो चिन्तित नहीं होता अच्छे अंक प्राप्त कर लेता है। चिन्ता के कारण विद्यार्थी की मानसिक स्थिति में कई बदलाव हो जाते हैं, जैसे चिन्ता के कारण विद्यार्थी अशान्त हो जाता है और वह विद्यालयी कार्यो में अपना मन नहीं लगा पाता। साथ ही अपनी बौखलाहट के कारण पढ़ाई गयी सभी बातों को सकारात्मक दृष्टिकोण व शान्त मन से नहीं देखता है और कम उपलब्धि अर्जित करता है, जबकि चिन्ता रहित विद्यार्थी पढ़ाई गयी सभी बातों को सकारात्मक एवं शान्त मन से देखता है और अधिक उपलब्धि प्राप्त करता है। चिन्ता की प्रवृत्ति युवाओं में भी बहुत अधिक पायी जाती है, जिसका प्रभाव उनकी बुद्धि व्यक्तित्व एवं उपलब्धि पर बहुत अधिक पड़ता है। प्रस्तुत अध्ययन में शोधकर्ती ने स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों की चिन्ता के स्तर को जानने का प्रयास किया है। क्योंकि इस स्तर पर चिन्ता सर्वाधिक पायी जाती है। शोधकर्ती ने यह भी जानने का प्रयास किया है कि चिन्ता छात्राओं में अधिक पायी जाती है या छात्रों में। ग्रामीण एवं शहरी छात्र-छात्राओं में चिन्ता के स्तर में क्या अन्तर होता है ? क्या यह अलग होता है या समान होता है ? समस्या कथन प्रस्तुत शोध अध्ययन का समस्या कथन निम्नवत् है- “स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर का अध्ययन” अध्ययन में प्रयुक्त शब्दों का परिभाषीकरण अध्ययन में प्रयुक्त शब्दों का परिभाषीकरण निम्नलिखित है:- स्नातक कक्षाऐं शोध अध्ययन में स्नातक कक्षाओं से तात्पर्य महाविद्यालयों में दी जाने वाली बी0ए0, बी0कॉम0, बी0एस-सी0, बी0बी0ए0, बी0सी0ए0 आदि पाठ्यक्रमों की शिक्षा से है। अध्ययनरत् छात्र-छात्राऐं अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं से तत्पर्य उन छात्र-छात्राओं से है, जो महाविद्यालय की स्नातक कक्षाओं में अध्ययन कर रहे हैं। चिन्ता चिन्ता शब्द से तात्पर्य शक्तिहीनता, असहायता की भावना एवं तनाव की अवस्था से है। यह एक दुखदायी मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जो आन्तरिक संघर्ष से उत्पन्न होती है।
अध्ययन का उद्देश्य शोध के उद्देश्य निम्नवत् है- 1. स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र व छात्राओं की चिन्ता के स्तर का पता करना। 2. स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् ग्रामीण व शहरी छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर का पता करना।
साहित्यावलोकन
एस. कुमार (2011) ने अपने शोध कार्य “रोल ऑफ इमोशनल इंटेलीजेंस इन मैनेजिंग स्ट्रेस एट वर्कप्लेस में पाया कि भावात्मक बृद्धि का तनाव एवं चिन्ता के साथ ऋणात्मक सम्बन्ध होता है। किसी भी व्यक्ति में तनाव एवं चिन्ता के द्वारा भावात्मक बुद्धि की परख की जा सकती है। जी0 गर्ग (2011) ने अपने शोध कार्य “एकेडेमिक एंग्जायटी एण्ड लाइफ स्किल ऑफ सेकेन्डरी स्कूल चिल्ड्रन” में पाया कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के जीवन में कौशल एवं शैक्षणिक चिन्तन के मध्य सार्थक अन्तर नही है। वी0 श्री देवी (2013) ने अपने शोध अध्ययन “ए स्टडी ऑफ रिलेशनशिप एमंग जनरल एग्ंजायटी, टैस्ट एग्ंजायटी एण्ड एकेडेमिक एचीमेन्ट ऑफ हायर सैकेन्डरी स्टूडैन्स” में पाया कि सामान्य चिन्ता एवं परीक्षा चिन्ता में धनात्मक सम्बन्ध होता है। छात्राओं एव ग्रामीण छात्रओं में छात्रों की अपेक्षा सामान्य चिन्ता एवं परीक्षा चिन्ता अधिक होती है। आर0शुक्ला (2016) ने अपने अध्ययन “मैथ एग्ंजायटी, दी पुअर प्रोब्लम सोल्विंग फेक्टर इन स्कूल मैथमैटेक्सि” में पाया कि अगर गणितीय समस्याओं का समाधान विद्यार्थियों को मिल जाये तो उनमें समझ उत्पन्न होती है, जो उनकी गणितीय चिन्ता के स्तर को कम कर देती है। पूनम देवी, अजीत सिंह एवं महक सिंह (2017) ने अपने अध्ययन “जनपद सहारनुपर के स्ववित्तपोषित बी0एड0 प्रशिक्षण संस्थानों में कार्यरत अध्यापक, अध्यापिकाओं की कृत्य चिन्ता स्तर का तुलनात्मक अध्ययन” में पाया कि स्वत्तिपोषित उक्त संस्थानों में कार्यरत् अध्यापक एवं अध्यापिकाओं में कृत्य चिन्ता का स्तर कम होता है। परन्तु कहीं-कहीं पर कुछ अध्यापिकाओं की कृत्य चिन्ता का स्तर अधिक भी पाया गया, परन्तु यह सार्थक नही था। श्रीमती रीता सिंह एवं डॉ0 पार्वती यादव (2019) ने अपने शोध अध्ययन “छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मण्डल एवं केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मण्डल के विद्यार्थियों में अभिभावक सहभागिता एवं परीक्षा दुश्चिंता का शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन” में पाया कि उक्त दोनों मण्डलों के अन्तर्गत आने वाले विद्यालयों के विद्यार्थियों के अभिभावक परीक्षा के समय विद्यार्थियों को समय नही दे पाते हैं, जिससे उनमें डर, भय, दुश्चिंता एवं चिड़चिड़ापन आ जाता है। परीक्षा दुश्चिन्ता के कारण विद्यार्थी तनाव में आ जाता है। जिसका प्रभाव उसकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है। यदि अभिभावक विद्यार्थियों को समय दे तो इस दुश्चिंता को कम किया जा सकता है।
परिकल्पना अध्ययन की परिकल्पनाएं निम्नलिखित है-
1. स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र व छात्राओं की चिन्ता के स्तर में कोई अन्तर नहीं है।
2. स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् ग्रामीण व शहरी छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर में कोई अन्तर नहीं है।
सामग्री और क्रियाविधि
शोध अध्ययन के उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत अध्ययन हेतु सर्वेक्षण शोध विधि का प्रयोग किया गया है।
न्यादर्ष

शोधकर्ती द्वारा शोध अध्ययन हेतु शोधकर्ती द्वारा शोध अध्ययन हेतु जनपद बुलन्दशहर के महाविद्यालयों की स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत समस्त विद्यार्थियों को जनसंख्या के रूप में लिया गया है।
जनपद बुलन्दशहर के ग्रामीण एवं शहरी विद्यार्थियों 50 + 50 = 100 को न्यादर्श के रूप लिया गया है। जिमसें 02 महाविद्यालयों से 25 ग्रामीण व 25 शहरी छात्राओं एंव 25 ग्रामीण व 25 शहरी छात्रों को न्यादर्श के रूप में लिया गया है। चयन हेतु यादृच्छिक प्रतिचयन न्यादर्श प्रविधि का प्रयोग किया गया है।

प्रयुक्त उपकरण अध्ययन हेतु ए0के0पी0 सिन्हा एवं एल0एन0के0 सिन्हा का मानकीकृत परीक्षण सिन्हा कम्प्रैहैन्सिव एग्ंजायटी स्केल का प्रयोग किया गया ळें यह परीक्षण हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। इस परीक्षण में 90 पद है।
अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी

शोध अध्ययन हेतु शोधकर्ती ने प्रस्तुत अनुसन्धान में निम्नलिखित सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया है।
1.  मध्यमान
2.  मानक विचलन
3. क्रान्तिक अनुपात

विश्लेषण

प्रदत्तों का विश्लेषण एवं अर्थापन निम्नवत् है:-

सारणी क्रमांक 1

स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता के स्तर के

सम्बन्ध में मध्यमान अंक

क्रमांक

न्यादर्श का प्रकार

विद्यार्थियों की संख्या

मध्यमान

मानक विचलन

क्रान्तिक अनुपात

 

1

छात्र

50

34.00

10.11

 

      3.15*

2

छात्रा

50

28.01

8.90

0.01 सार्थकता स्तर का मान=2.63

सारणी क्रमांक 1 के अनुसार स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता के स्तर से सम्बन्धित मध्यमान क्रमशः 34.00 एवं 28.01 एवं मानक विचलन 10.11 एवं 8.90 है। क्रान्तिक अनुपात का मान 3.15 प्राप्त हुआजो कि 0.01 सार्थकता स्तर के मान 2.68 से अधिक है।

अतः शून्य परिकल्पना स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता के स्तर में सार्थक अन्तर नही है”, अस्वीकार की जाती है।

उपर्युक्त सारणी से यह स्पष्ट है कि छात्रों की अपेक्षा छात्राओं में चिन्ता अधिक है। छात्राओं में अधिक चिन्ता का कारण उनका अपने भविष्य प्रति में अधिक संवेदनशील होना हो सकता है। साथ ही समाज में भी छात्राओं के प्रति कम सकारात्मकता पायी जाती  है। छात्र चूंकि भविष्य के बारे में कम सोचते हैं, समाज की सोच भी उनके प्रति सकारात्मक होती है, इसलिए उनमें चिन्ता कम पायी जाती है। छात्राओं की चिन्ता के स्तर को कम करने हेतु छात्राओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए एवं समाज में उनके प्रति सकारात्मक सोच विकसित करनी चाहिए।







सारणी क्रमांक 2

स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् ग्रामीण एवं शहरी छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता के स्तर के सम्बन्ध में मध्यमान अंक

क्रमांक

न्यादर्श का प्रकार

विद्यार्थियों की संख्या

मध्यमान

मानक विचलन

क्रान्तिक अनुपात

 

1

ग्रामीण

छात्र-छात्राएं

50

33.50

9.00

 

      3.11*

2

शहरी

छात्र-छात्राएं

50

27.51

10.25

0.01 सार्थकता स्तर का मान = 2.63

सारणी क्रमांक 2 के अनुसार स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् ग्रामीण एवं शहरी छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता के स्तर से सम्बन्धित माध्यमान क्रमशः 33.50 एवं 27.51 एवं मानक विचलन 9.00 एवं 10.25 है। क्रान्तिक अनुपात का मान 3.11 प्राप्त हुआजो कि 0.01 सार्थकता स्तर के मान 2.63 से अधिक है।

अतः शून्य परिकल्पना स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् ग्रामीण व शहरी छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता के स्तर में सार्थक अन्तर नही है”, अस्वीकार की जाती है।

उपर्युक्त सारणी से यह स्पष्ट है कि स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत शहरी छात्र-छात्राओं की अपेक्षा ग्रामीण छात्र-छात्राओं में चिन्ता अधिक पायी गयी है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि ग्रामीण छात्र-छात्राएं शहरी छात्र-छात्राओें की अपेक्षा कम जागरूक होते हैं। साथ ही समस्याओं का समाधान भी तुरन्त नही कर पाते है। ऐसी स्थिति में आवश्यकता है कि ग्रामीण छात्र-छात्राओं को नवीन ज्ञान को सीखने हेतु प्रोत्साहित किया जाए, नये वातावरण से परिचित कराया जाएं एवं नयी तकनीकी का ज्ञान कराया जाए। इस प्रकार से ग्रामीण छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर को कम किया जा सकता है।

परिणाम
  1. स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर में सार्थक अन्तर है। छात्रों की तुलना में छात्राओं में अधिक चिन्ता पायी गयी।
  2. स्नातक कक्षाओं में अध्ययनरत् ग्रामीण एवं शहरी छात्र-छात्राओं की चिन्ता के स्तर में सार्थक अन्तर है। शहरी छात्र-छात्राओ की तुलना में ग्रामीण छात्र-छात्राओं में अधिक चिन्ता पायी गयी।
निष्कर्ष शोध अध्ययन पूर्ण होने के पश्चात् शोधकर्ती ने पाया कि चिन्ता सभी में पायी जाती है, चाहे वे छात्र हो या छात्राएं, शहरी हो या ग्रामीण। परन्तु उनमें इसकी मात्रा में अन्तर पाया जाता है। यह केवल लिंग अथवा क्षेत्र के आधार पर ही नही बल्कि व्यक्ति से व्यक्ति में भी भिन्न हो सकती है। शोध अध्ययन से प्राप्त परिणामों से स्पष्ट है कि छात्राओं में छात्रों की अपेक्षा चिन्ता अधिक है साथ ही ग्रामीण छात्र एवं छात्राओं दोनों ही में चिन्ता का स्तर अधिक है। इसलिए छात्राओं एवं ग्रामीण क्षेत्र के छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता को दूर करने के लिए शिक्षकों, माता-पिता एवं समाज को इन छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहित करना चाहिए। इनकी सोच विकसित करने हेतु विशेष परिस्तिथियां प्रदान की जानी चाहिए। शोध अध्ययन के शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित है:- 1. प्रस्तुत शोध निष्कर्षो के आधार पर अध्यापक छात्र एवं छात्राओं की चिन्ता के बारे में जानकारी प्राप्त कर अपनी शिक्षण योजनाओं में परिवर्तन करते हुए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सुधार कर सकते हैं। 2. प्रस्तुत शोध निष्कर्षो के आधार पर अभिभावकों को अपने बच्चों के चिन्ता स्तर के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है, जिससे अभिभावक बच्चों के लिए घर के वातावरण में सुधार कर बच्चों को सहयोग दे सकते हैं। 3. विद्यार्थियों की चिन्ता कम करने हेतु उन्हें परामर्श एवं निर्देशन प्राप्त किया जा सकता है। 4. विद्यार्थियों की चिन्ता कम करने हेतु विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को चलाया जा सकता है, जिससे विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि में वृद्धि की जा सकती है। 5. विद्यार्थियों की चिन्ता को कम करने के लिए सम्बन्घित व्यक्ति जागरूक होकर विद्यार्थियों की सहायता कर सकते हैं।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव शोध अध्ययनों के लिए सुझाव निम्नखित है:-
1. चिन्ता के अध्ययन के लिए अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विद्यार्थियों को लिया जा सकता है।
2. चिन्ता के अध्ययन के लिए सामान्य जाति तथा पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं को चुना जा सकता है।
3. चिन्ता के अध्ययन के लिए अलग-अलग जनपदों के विद्यार्थियों का चुनाव किया जा सकता है।
4. चिन्ता के अध्ययन के लिए विभिन्न आयु के विद्यार्थियों को चुना जा सकता है।
5. चिन्ता का विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन किया जा सकता है।
6. चिन्ता के अध्ययन के लिए छात्रों के अनेक मनोवैज्ञानिक प़क्षों (बुद्धि, व्यक्तित्व आदि) को चुना जा सकता है।
7. शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों के अभिभावकों एवं ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों के अभिभावकों की चिन्ता का अध्ययन किया जा सकता है।
8. विज्ञान संकाय के शिक्षकों एवं कला संकाय के शिक्षकों की चिन्ता का अध्ययन किया जा सकता है।
9. ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के अध्यापकों की चिन्ता का अध्ययन किया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. कपिल, एच0के0 (2015) सांख्यिकी के मूल तत्व, अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा। 2. गुप्ता, डॉ0 एस0पी0, गुप्ता डॉ0 अलका (2008) सांख्यिकीय विधियॉ, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद। 3. पाठक, पी0डी0 (2005) शिक्षा मनोविज्ञान, विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा। 4. माथुर, डॉ0 एस0 एस0 (2009) शिक्षा मनोविज्ञान, अग्रवाल पब्लिकेशन, आगरा। 5. सिंह, अरूण कुमार (2015) शिक्षा मनोविज्ञान, भारती भवन पब्लिेकेशन एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, पटना। 6. श्रीमती रीता, यादव डॉ0 पार्वती (2019) छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मण्डल एवं केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मण्डल के विद्यार्थियों के अभिभावक सहभागिता एवं परीक्षा दुश्चिंता का शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन, रीव्यू ऑफ रिसर्च, जर्नल फॉर आल सब्जेक्ट्स। 7. http://oldisaj.lbp.world