ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- III June  - 2022
Anthology The Research
क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद का हिन्दी उपन्यासों में ऐतिहासिक अनुशीलन
Historical Perusal of Revolutionary Nationalism in Hindi Novels
Paper Id :  16185   Submission Date :  05/06/2022   Acceptance Date :  17/06/2022   Publication Date :  25/06/2022
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अंकित कुमार
शोधार्थी
इतिहास विभाग
दयानन्द गर्ल्स (पी0 जी0) कालेज
कानपुर ,उ0प्र0 ,भारत
सारांश क्रान्तिकारी चेतना ने राष्ट्रीय आन्दोलन के सम्पूर्ण चरित्र को बड़ी ही गहराई से प्रभावित किया। सशस्त्र क्रान्ति के जरिये क्रान्तिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कड़ी चुनौती दी। बंगाल विभाजन के पूर्व से ही उत्साही युवाओं ने अन्याय, अपमान व शोषण के विरुद्ध हथियार उठाने प्रारम्भ कर दिये थे। क्रान्तिकारी आन्दोलन दो चरणों में संचालित हुआ। प्रथम दौर के क्रान्तिकारियों ने व्यक्तिगत प्रयासों से औपनिवेशिक सरकार को आतंकित किया और क्षेत्रीय स्तर पर खुद को संगठित किया। तो वही दूसरे दौर के क्रान्तिकारियों ने सामूहिक कार्यवाहियां की और खुद को अखिल भारतीय स्तर पर संगठित करने के प्रयास किये। इस क्रान्तिकारी धारा ने तत्कालीन हिन्दी उपन्यास साहित्य को भी प्रभावित किया। कुछ उपन्यासकार जहाँ प्रत्यक्ष रुप से क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रिय रहे और क्रान्तिकारियों की विचारधारा, कार्यपद्धति, उद्देश्यों व गतिविधियों को अपनी लेखनी में ढाल जनमानस तक प्रभावी ढंग से पहुंचाया। तो वहीं कुछ ने परोक्ष रुप से अपने उपन्यासों में क्रान्तिकारी नायको के त्याग, बलिदान, साहस व शौर्य का यशगान कर आमजनमानस को क्रान्तिकारी धारा से जुड़ने और स्वाधीनता के हवन कुंड में अपने प्राणों की आहुति देने को प्रेरित किया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The revolutionary consciousness deeply influenced the entire character of the national movement. Through armed revolution, the revolutionaries gave a tough challenge to British imperialism. Even before the partition of Bengal, enthusiastic youth had started taking up arms against injustice, humiliation and exploitation. The revolutionary movement was conducted in two phases. The revolutionaries of the first round terrorized the colonial government through individual efforts and organized themselves at the regional level. So the revolutionaries of the same second round took collective actions and tried to organize themselves on an all-India level. This revolutionary current also influenced the then Hindi novel literature. Some of the novelists were directly active in the revolutionary movement and effectively conveyed the ideology, methodology, objectives and activities of the revolutionaries in their writings to the masses. So the same, few-were indirectly inspired the common man to join the revolutionary stream and sacrifice their lives in the freedom movement. Through their novels by glorifying the sacrifice, sacrifice, courage and valor of the revolutionary heroes.
मुख्य शब्द ब्रिटिश सरकार, क्रान्ति, क्रान्तिकारी, उपन्यास, कृत्रिम पात्र, चित्रण, आन्दोलन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद British Government, Revolution, Revolutionary, Novel, Artificial character, Illustration, Movement
प्रस्तावना
क्रान्ति व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तनों की अपेक्षा रखती है। भारतीय क्रान्तिकारी इसी व्यवस्था परिवर्तन को लेकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद से निरन्तर संघर्षरत रहे। दूसरी ओर अंग्रेजी सरकार का निरन्तर यह प्रयास रहा कि वह क्रान्तिरूपी इस ज्वार को बढ़ने से रोके। ऐसे में सरकार ने क्रान्तिकारियों के विरुद्ध व्यापक दुष्प्रचार किया। किन्तु जागरूक उपन्यासकारों ने अपनी लेखनी के जरिये अंग्रेजी दुष्प्रचार के बावजूद क्रान्तिकारी दर्शन व विचारधारा को जनमानस तक पहुँचाने के प्रयास किये। हिन्दी के बहुत सारे उपन्यासों में क्रान्तिकारी आन्दोलन के उभार उनके कार्यक्रमों गुप्त संगठनों, नीतियों व अदभुत शौर्य ,बलिदान व राष्ट्रप्रेम को कृत्रिम पात्रो के जरिये जीवन्त करने का प्रयास किया गया। कई जगहो पर उन्हे भटके हुए उत्साही युवा जिनके पास भविष्य की कोई योजना नही थी, जो केवल उपद्रव को आधार बना आजादी की उम्मीद लगाये हुये थे के तौर पर भी प्रदर्शित किया गया।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तावित शोधपत्र में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद और हिन्दी उपन्यासों में उसकी अभिव्यक्ति का सम्यक अध्ययन किया गया है।
साहित्यावलोकन

मन्मनाथ गुप्त द्वारा लिखित ‘‘क्रान्तिकारी आन्दोलन का वैचारिक इतिहास’’ ग्रन्थ में बीसवीं सदी के क्रान्तिकारी आन्दोलन का वैचारिक इतिहास प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रन्थ राष्ट्रीय आन्दोलन के उन कोणो को उजागर करता है जो जानबूझ कर या तो उपेक्षित कर दिये गये या फिर पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण के चलते इतिहास में अपना सम्मानजनक स्थान नही प्राप्त कर सके।
डा0 देवीदत्त तिवारी द्वारा लिखित हिन्दी उपन्यास: "स्वतन्त्रता संघर्ष के विविध आयाम’’ ग्रन्थ में स्वतन्त्रता आन्दोलन के विविध राजनैतिक चरणों की हिन्दी उपन्यास साहित्य में अभिव्यक्ति को दर्शाया गया है। इस ग्रन्थ में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरूद्ध अग्रिम मोर्चे के तौर पर प्रदर्शित किया गया है। हाँलाकि राष्ट्रीय आन्दोलन की पराकाष्ठा में गांधीवादी पक्ष पर लेखक का अधिक जोर रहा है।
डा0 ईश्वर जौहर द्वारा लिखित ‘‘हिन्दी उपन्यास साहित्य में राजनैतिक एवं राष्ट्रीय चेतना (स्वाधीनता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में)’’ ग्रन्थ में क्रान्तिकारी आन्दोलन सहित विविध आयामों की उपन्यास साहित्य में बहुआयामी प्रस्तुति की गयी है।

मुख्य पाठ

दुर्गाप्रसाद खत्री ऐसे पहले उपन्यासकार हैं जिन्होने क्रान्तिकारी भावना और उदेश्यों को अपने विभिन्न उपन्यासों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। अपनेप्रतिशोधउपन्यास में वह क्रान्तिकारी दाँव-पेचों, गुप्त संगठनो कार्यकलापो का यथार्थ चित्रण करने में सफल हुये। अंग्रेजों की फूट डालो राज करो नीति का भी उपन्यास में मार्मिक चित्रण देखने को मिलता है। क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद का सर्मथन करते हुएप्रतिशोधउपन्यास का कृत्रिम पात्र कहता है-यह कोई नही देखता कि बड़ी- बड़ी गाड़ियों से घूमने वाले नेताओं से कितना अधिक त्याग वह क्रान्तिकारी कर रहे है। जिनकी आवाज पिस्तौल की गोली है और सवारी अर्थी है।क्रान्तिकारी हिंसक रास्ता इसलिये इख्तियार करता है क्योकि वह अपनी मातृभूमि को पराधीन नही देख सकता। इसलिये वह आतताई का संघार करता है।प्रतिशोधकी यह भावना उनके अगले उपन्यास रक्तमण्डल’/ मृत्युकिरणमें जाकर स्पष्ट होती है।रक्तमण्डलका नागेन्द्र सिंह पात्र क्रान्तिकारियों का मुख्य नेता है। पर्चे बाटना, जनसामान्य को अपने उदेश्यों से परिचित करवाना, खजाना लूटना, अंग्रेज अफसरों की हत्या करना जैसे कार्यरक्तमण्डलके विभिन्न पात्र करते है।रक्तमण्डलमें भयानक चार की संकल्पना प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल, चन्द्रशेखर आजाद भगत सिंह से प्रेरित प्रतीत होती है। प्रत्येक क्रान्तिकारी अपने जीवन को राष्ट्र से एकाएक कर देता है।रक्तमण्डलके द्वितीय खण्ड में क्रान्तिकारी उदेश्य को स्पष्ट करते हुए एक कृत्रिम पात्र कहता है कि स्वाधीनता की अपनी कीमत होती है और वह कीमत है  अपने प्रणों की आहुतिइसी प्रकार की भाववृत्ति उनकेसुफेद शैतानउपन्यास में देखने को मिलती है। इस उपन्यास में चन्द्रशेखर आजाद द्वारा भगत सिंह को कैद से मुक्त कराने हेतु किये गये प्रयासों का भी यथार्थ चित्रण किया गया है।
    आचार्य चतुरसेन शास्त्री नेआत्मदाहउपन्यास में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पंजाब, बंगाल महाराष्ट्र में सक्रिय हुए क्रान्तिकारी संगठनो के उभार को दर्शाया है। क्रान्तिकारी आन्दोलन को बंगाल से गति मिली। यही से यह उत्तर भारत में फैलाबाबा बटेसरनाथउपन्यास में नागार्जुन इसी कथानक को दुहराते हुए कहते है कि नौजवानो का गांधी जी की अहिंसा से मोहभंग हो गया है। वह दुश्मन के विरुद्ध हर तरीका आजमाना चाहते है।कर्मभूमिउपन्यास के रचनाकाल तक बंगाल मेंतरुण समितिसंगठित हो चुकी थी। प्रेमचन्द्र ने शान्तिकुमार नामक कृत्रिम पात्र के जरिये इसी युवक सत्याग्रह पर प्रकाश डाला है। रघुवीर शरण मित्र इसी प्रकार के एक अन्य संगठन की चर्चा अपनेबलिदानउपन्यास में करते है। आजाद सभा नामक यह संगठन विभिन्न प्रान्तों में अपने गुप्त कार्यालय स्थापित करने, गुप्त संगठनो क्रान्तिकारियों की सूचीं जारी करने का उद्मम करता है।बलिदानउपन्यास का शेखर नामक काल्पनिक पात्र कहता है कि - ‘‘अहिंसा के कारण ही आज कितनी विभूतियां जेलों में सड़ रही है। इसलिये मेरा विश्वास अहिंसा पर से उठ चुका है। मै गोरिल्ला युद्ध की योजना बना चुका हूँ। कलकत्ता, दिल्ली, कानपुर, मेरठ आदि में आजाद सभा के गुप्त कार्यालय बनाये जा चुके है। प्रताप नारायण मिश्र काबयालीसउपन्यास भी क्रान्तिकारी चेतना के इसी प्रसार को चित्रित करता है।
    क्रान्तिकारियों द्वारा उदेश्य प्राप्ति में बाधक सरकारी मुलाजिमों क्रूर अफसरों की हत्या एक सामान्य बात थी। खुदीराम बोस को पकड़वाने में एक दरोगा का हाथ था। प्रतिशोधात्मक कार्यवाई करते हुये प्रफुल्ल चाकी ने दरोगा नन्दकुमार की हत्या का असफल प्रयास किया। कालान्तर में क्रान्तिकारियों द्वारा कलकत्ता में उसकी हत्या कर दी गई। प्रेमचन्द्र केरंगभूमिउपन्यास में सोफिया नामक कृत्रिम पात्र के जरिये इसी परिघटना को चरित्रार्थ किया गया। इसी प्रकार उमाशंकर नेभारत जाग उठाउपन्यास में क्रान्तिकारी युवक हरिकिशन द्वारा पंजाब के गवर्नर को गोली मार देना जब वह पंजाब विश्वविद्यालय के दीक्षांत-समारोह से वापस लौट रहे थे। यह यथार्थरूप में ग्रहण किया गया है। दुर्गाप्रसाद खत्री ने अपनेरक्तमण्डलऔर आचार्य चतुरसेन शास्त्री नेआत्मदाहउपन्यास में गदर आन्दोलन के उदेश्यों कार्यकलापों को चित्रित किया है।रक्तमण्डलका पात्र अमर कहता है कि देश में जितनी सैन्य छावनियां है इन्हें उड़ाना है।तो वही एक और पात्र गोपाल कहता है कि ‘‘जिस समय सारे देश में मौजूद सैन्य छावनियां नष्ट कर दी जाएगीं, तब लाटों की कोठियों, अफसरों के मकान दफ्तरों तथा कचहरियों की बारी आयेगी।इस प्रकार शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा।
    असहयोग आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने बढ-चढ कर भाग लिया। किन्तु आन्दोलन की एकाएक वापसी से क्रान्तिकारी वर्ग का अहिंसक मार्ग से मोहभंग हो गया। फलतः क्रान्तिकारियों ने सदा के लिये अपनी अलग राह बना ली। उन्होने पृथक क्रान्तिकारी संगठनो की स्थापना करना प्रारम्भ किया। श्री गुरूदत्त ने अपनेस्वाधीनता के पथउपन्यास में क्रान्तिकारियों के इस विचलन को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।निदेशकउपन्यास क्रान्तिकारी गतिविधियों के साथ प्रारम्भ होता है। इसमें असहयोग से लेकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन तक की क्रान्तिकारी परिघटनाओं को बखूबी चित्रित किया गया है। जैनेन्द्र अपनेकल्याणीउपन्यास में क्रान्तिकारी चेतना को राष्ट्रीय जागरण हेतु आवश्यक मानते हुये इसे युद्ध के अग्रिम मोर्चे के रुप में उद्घाटित करते है। अंचल भी अपनेनई इमारतउपन्यास में क्रान्तिकारी मार्ग से स्वराज के लक्ष्य तक पहुचने की वकालत करते है। वृन्दावन लाल वर्मा अपनेअमरबेलउपन्यास में जहाँ एक ओर गांधीवाद पर व्यंगात्मक प्रहार करते है तो वही दूसरी ओर क्रान्तिकारियों का गुणगान करते है।पैरोलउपन्यास में ब्रजेन्द्र गौड़ गांधीवाद की आलोचना करते हुये क्रान्तिकारी भावना को इन शब्दो में व्यक्त करते है। ‘‘आजादी के सपने देखने वाले परतन्त्र देश के यात्री को जीवन भर विश्राम नही है। उसके सामने खत्म होने वाला रास्ता पड़ा है। -सिर्फ खत्म होने वाला, वह रास्ता है- क्रान्ति
    आर्थिक संसाधनो के अभाव में क्रान्ति हेतु संसाधन जुटाने ब्रिटिश शासन को आतंकित करने हेतु क्रान्तिकारियों द्वारा राजनैतिक डकैतियां डाली जाती थी। हिन्दी के बहुत सारे उपन्यासों में इनका मार्मिक चित्रण मिलता है। गुरूदत्त कास्वाधीनता के पथजैनेन्द्र कासुनीतादुर्गाप्रसाद खत्री कारक्तमण्डलमन्मथनाथ गुप्त कारैन अंधेरीऐसे ही कुछ उपन्यास है। प्रेमचन्द्र केरंगभूमिउपन्यास का कृत्रिम पात्र वीरपाल सरकारी खजाना लूटता है और अपना मनतव्य स्पष्ट करते हुए कहता है कि आपको इन लोगो की करतूतें मालूम नही है। ये लोग जनता को दोनों हाथों से लूट रहे है। इनमें दया है ही इनका कोई धर्म है।मन्मथनाथ गुप्त अपनेरैन अंधेरीउपन्यास में काकोरी ट्रेन डकैती का यथार्थ रुप में चित्रण करते है। वह स्वयम् इस मामले में अभियुक्त थे। एक छोटे से स्टेशन पर गाड़ी रोकने से लेकर, झूठे गवाह खड़े करने, अभियुक्तों की सजा तथा चन्द्रशेखर आजाद का सजा से बच निकलना जैसी घटनायेंरैन अंधेरीउपन्यास में यथार्थ रुप में उल्लिखित की गई।रैन अंधेरीका युसुफ और कोई नही प्रसिद्ध क्रान्तिकारी असफाक उल्ला खाँ है। इसी प्रकारज्वालामुखीउपन्यास का पात्र अभय कुमार रामप्रसाद बिस्मिल का प्रतिरुप प्रतीत होता है। उपन्यास में बताया गया कि जब उन्हें सुबह फांसी दी जाने वाली थी। उन्होनें उठकर गीता पाठ किया। रामप्रसाद बिस्मिल हमेशा गीता पाठ करते थे। गीता केब्रम्हण्याधाय कर्माणि............निवाम्भसाश्लोक का उन पर विशेष प्रभाव था।
    इलाचन्द्र जोशी लिखितमुक्तिपथउपन्यास में साइमन कमीशन के विरोध स्वरूप क्रान्तिकारी गतिविधियों में आयी तीव्रता को इंगित किया गया है। साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लाला जी को गम्भीर चोटे आई जिससे उनका अन्ततः देहावसान हो गया। लाला लाजपत राय की मृत्यु के पश्चात् क्रान्तिकारी विचारधारा की ओर युवा वर्ग के आकर्षण कोमुक्तिपथमें बड़ी ही जीवन्तता से चित्रित किया गया है। चतुरसेन शास्त्री केआत्मदाहउपन्यास में लाला जी की शहादत हेतु उत्तरदायी स्काट नामक अधिकारी की जगह पर गलती से सान्डर्स को गोली मार दिये जाने का प्रसंग बड़ी ही मार्मिकता से चित्रित किया है। सान्डर्स की हत्या के पश्चात् भगत सिंह ने दुर्गादेवी जो कि क्रान्तिकारियों में दुर्गा भाभी के नाम से प्रसिद्ध थी उनके साथ छद्मभेष में कलकत्ता की यात्रा की। मन्मथनाथ गुप्त अपनेजिचउपन्यास में तारा पात्र के जरिये इस परिघटना को चित्रित करते है। तारा कहती है- ‘‘जब पहली बार मुझसे कहा गया कि मै एक प्रसिद्ध फरार की बनावटी पत्नी बनकर रेल यात्रा करु तो मुझे कुछ झिझक मालूम हुई। इन महाशय का नाम तो कुछ और था किन्तु ट्रेन में हम लोग इन्द्रकुमार और उनकी पत्नी सरला के नाम से यात्रा कर रहे थे।
    मन्मथनाथ गुप्त ने अपनेरैन अंधेरीउपन्यास में भगत सिंह की गिरफ्तारी लाहौर षड़यत्र मामले में अभियुक्त बनाये जाने तक की घटनाओं को यथार्थ रुप में प्रस्तुत किया है। वह लिखते है कि केन्द्रीय विधान सभा ने बहुमत की उपेक्षा करते हुए ‘‘सार्वजनिक सुरक्षा’’ और ‘‘औद्योगिक विवाद’’ बिल पारित कर दिये। प्रतिक्रिया स्वरूप क्रान्तिकारियों ने बहरे कानों तक जनता की आवाज पहुचानें हेतु असेम्बली में बम फोड़ने की योजना को कार्यरुप में परिणत किया। भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त को इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। इसी दौरान क्रान्तिकारी जतिनदास जेल में कैदियों हेतु बुनियादी सुविधाओं की माँग उठाते हुये 64 दिन के आमरण अनशन के पश्चात् शहीद हो गए।रैन अंधेरीके साथ-साथ संतोष नाटियाल केहरिजनउपन्यास में भी इस घटना का चित्रण मिलता है।रैन अंधेरीउपन्यास में ही मन्मथनाथ गुप्त द्वारा गांधी-इरविन समझौते से असंतुष्ट क्रान्तिकारियों द्वारा वायसराय की ट्रेन उड़ाने की योजना का भी उल्लेख किया है। इसमे इरविन तो बच गया किन्तु उसका एक परिचारक मारा गया। अपनेजययात्राउपन्यास में भगत सिंह की फांसी रूकवा पाने के चलते कानपुर में भड़के हिंसक दंगो का उल्लेख भी मन्मथनाथ गुप्त ने किया है। इन दंगो में गणेश शंकर विद्यार्थी को अपने प्राण गवाने पड़े थे।
    मन्मथनाथ गुप्त और यशपाल प्रत्यक्ष तौर पर क्रान्तिकारी आन्दोलन से समबद्ध थे। उन्होने अपने उपन्यासों में कई प्रसंग क्रान्तिकारी आन्दोलन से यथावत ग्रहण किये है।चटगांव शस्त्रागार लूटक्रान्तिकारी इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। मन्मथनाथ गुप्त ने अपनेअपराजितउपन्यास में शस्त्रागार लूट से जुड़ेअसनुल्ला हत्याकाण्डका यथावत वर्णन किया है। असनुल्ला चटगांव शस्त्रागार काण्ड के जाँच अधिकारी थे जिसकी हत्या खेल के मैदान में हरिपद नामक क्रान्तिकारी युवक ने कर दी थी। क्रान्तिकारी दल में अनुशासन बनाये रखने हेतु प्रायः गैर जिम्मेदार संदेहास्पद कार्यकर्ताओ को कठोर दण्ड दिया जाता था। यहाँ तक कि सरकार हेतु मुखबिरी करने का अन्देशा होने भर से क्रान्तिकारी अपने ही साथी को गोली मारने तक से भी नही हिचकते थे। यशपाल उनके मित्र वीरभद्र तिवारी पर क्रान्तिकारियों को संदेह था। ऐसी ही एक आपबीती का यशपाल नेदादा कामरेडउपन्यास में जिक्र किया है। दरसल चन्द्रशेखर आजाद यशपाल के बीच मतभेद तब पैदा हो गये जब यशपाल का क्रान्तिकारी दल की ही महिला सदस्या प्रकाशवती से प्रेम सम्बन्ध स्थापित हुआ। आजाद को यशपाल के विलासी मुखबिर हो जाने का भय था। अतः उन्होने यशपाल को गोली मारने का निणर्य लिया। किन्तु यशपाल के मित्र वीरभद्र तिवारी ने उन्हे सूचना दे दी।दादा कामरेडउपन्यास में दादा और कोई नही चन्द्रशेखर आजाद ही है। जबकि वी0एम0 हरीश का कृत्रिम पात्र स्वयं यशपाल है।बुझते दीपउपन्यास में भी नीलिमा और सुधीर बाबू के पात्र प्रकाशवती यशपाल से ही प्रेरित है।
    बहरी सरकार तक आवाज पहुचानें हेतु क्रान्तिकारी बम फोड़ते थे। कई उपन्यासों में बम बनाने वाले क्रान्तिकारियों से लेकर इसकी रसायनिक प्रक्रिया तक का वर्णन मिलता है। गोविन्द वल्लभ पन्त कामुक्ति के बन्धन’ ,रघुवीर शरण मिश्र काबलिदान’ ,संतोषनारायण नाटियाल काहरिजन ऐसे ही कुछ उपन्यास है। इन उपन्यासों में किसी किसी रुप में बम का दर्शन उद्धत है।
    क्रान्तिकारी आन्दोलन के द्वितीय चरण में गुप्त दलो को संगठित करने हेतु चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह ने गुप्त बैठकें प्रारम्भ की। ब्रिटिश दमनचक्र से बचने हेतु क्रान्तिकारी प्रायः गुप्त रुप से ही कार्य करते थे। राहुल सांकृत्यायन ने अपनेजीने के लियेउपन्यास में ऐसे ही प्रसंगो को जगह दी है। वह मोहनलाल नामक काल्पनिक पात्र के माध्यम से इसे जीवन्त बनाते है। गोविन्द वल्वभ पन्त कामुक्ति के बन्धनउपन्यास प्रथम विश्व युद्ध से लेकर स्वतन्त्रता प्राप्ति तक की घटनाओं को चित्रित करता है। इसमें गुप्त बैठको सहित, सरकार द्वारा क्रान्तिकारियों को पकड़ने हेतु इनाम की घोषड़ा उनके इश्तिहार समाचार पत्रों दीवारों पर चश्पा करवाने के प्रसंग उद्धत किये गये है। गुप्त संगठनों बैठकों के अतिरिक्त क्रान्तिकारियों द्वारा छद्मभेष धारण करने का प्रसंग भी कई उपन्यासों में देखने को मिलता है। यशपाल कासिंहावलोकनजैनेन्द्र कासुखदाकल्याणीतथा रघुवीर शरण मिश्र काबलिदानऐसे ही कुछ उपन्यास है। बलिदान का शेखर नामक कृत्रिम पात्र पुलिस से बचने हेतु छद्मभेष धारण करता है।
    उदयशंकर भट्ट द्वारा रचितडा0 शेफालीऔरशेष-अशेषउपन्यास भी क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद को पृष्ठभूमि बनाकर लिखे गये। जहाँडा0 शेफालीउपन्यास में दर्शाया गया कि क्रान्तिकारी गतिविधियों में नवयुवतियों ने भी बढ-चढ कर हिस्सा लिया और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दाँत खट्टे किये। तो वहीशेष-अशेषउपन्यास में क्रान्तिकारियों के विरुद्ध चले सरकारी दमनचक्र और क्रान्तिकारी आन्दोलन के अवसान को प्रदर्शित किया गया है। पंडित जवाहरलाल नेहरु मेंमेरी कहानीमें लिखा है कि जब चन्द्रशेखर आजाद की उनसे भेंट हुयी तो उन्होंने कहा किमुझे और मेरे साथियों को यह विश्वास हो चला है कि हिंसक मार्ग से आजादी संभव नही लगती। किन्तु वह यह मानने को तैयार नही थे कि शान्तिमय साधनों से आजादी प्राप्त हो सकती है।‘‘राहुल सांकृत्यायन काजीने के लियेउपन्यास मोहन दा नामक कृत्रिम पात्र भी ऐसे ही भाव व्यक्त करता है। वह कहता है कि ‘‘देश की आजादी कौन नही पसन्द करेगा। किन्तु पिस्तौल बम चलाकर लुक-छिपकर किसी को मार देना मेरी नजर में उतना लाभकर नही है’’रक्तमण्डलउपन्यास का नरेन्द्र सिंह नामक काल्पनिक पात्र इसी प्रकार के भाव व्यक्त करता है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तावित शोधपत्र में अन्तरअनुशासनात्मक व विश्लेषणात्मक पद्धति का प्रयोग किया गया है। दत्त सामग्री का संकलन प्राथमिक व द्वितीयक दोनों ही स्रोतों से किया गया है।
निष्कर्ष विदेशी शासन से राष्ट्र को मुक्त कराने का क्रान्तिकारियों का संकल्प निश्चित ही साहसिक था। जब पराधीनता में जीवन मूल्यों का पतन हो रहा हो, राष्ट्रीय संस्कारो की हत्या हो रही हो, प्रगति की गति शून्य हो जाये, नैतिक साहस के अभाव में आवाज न बुलंद हो रही हो, ऐसे में स्वाधीनता हेतु कुछ युवको का अपने भविष्य की चिन्ता छोड़ आवेश में आना लाजमी है। सशस्त्र क्रान्ति करने के इरादे से निकले यह देशप्रेमी युवा निश्चित तौर पर स्वाधीनता हेतु प्राणों की बाजी लगाने वाले निर्मोही थे। उन्हे अपने भविष्य से ज्यादा वर्तमान राष्ट्र की दुर्दशा की चिन्ता थी। अपने अदम्य शौर्य, साहस, त्याग व बलिदान के जरिये वह तत्कालीन राजव्यवस्था को आतंकित कर न्याय की स्थापना करना चाहते थे। ऐसे में हिन्दी उपन्यास विधा का विषय क्रान्तिकारी चेतना न होता तो अवश्य ही आश्चर्य होता। उपन्यासकारों ने जब कभी भी क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद को उपन्यास की विषयवस्तु बनाया उन्होने क्रान्तिकारी आन्दोलन की विविध विशेषताओं व दुर्बलताओं को उजागर किया। इन उपन्यासों में क्रान्तिकारियों की कार्यपद्धति, गतिविधियों, उदेश्यों तथा अन्तरविरोधों को कई कृत्रिम पात्रो के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। कई जगहो पर क्रान्तिकारियों की हिंसक कार्यवाहियों की आलोचना की गई तो कई जगहों पर उनके त्याग व बलिदान के लिये वह प्रशंसा के पात्र भी बने। इसके अतिरिक्त क्रान्तिकारियों पर पड़ रहे अहिंसक आन्दोलन के दबाव तथा काग्रेंस नेतृत्व से उनकी मतभिन्नता को भी दर्शाया गया। जनसामान्य का क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रति दृष्टिकोण और अंग्रेज सरकार पर पड़ रहे इसके प्रभाव तथा किस प्रकार ब्रिटिश हुकूमत क्रान्तिकारी आन्दोलन के भय से विचलित थी और क्रान्तिकारियों के दमन पर उतारू थी। इसका भी विवेचन हिन्दी उपन्यासों में देखने को मिलता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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