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क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद का हिन्दी उपन्यासों में ऐतिहासिक अनुशीलन | |||||||
Historical Perusal of Revolutionary Nationalism in Hindi Novels | |||||||
Paper Id :
16185 Submission Date :
2022-06-05 Acceptance Date :
2022-06-17 Publication Date :
2022-06-25
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सारांश |
क्रान्तिकारी चेतना ने राष्ट्रीय आन्दोलन के सम्पूर्ण चरित्र को बड़ी ही गहराई से प्रभावित किया। सशस्त्र क्रान्ति के जरिये क्रान्तिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कड़ी चुनौती दी। बंगाल विभाजन के पूर्व से ही उत्साही युवाओं ने अन्याय, अपमान व शोषण के विरुद्ध हथियार उठाने प्रारम्भ कर दिये थे। क्रान्तिकारी आन्दोलन दो चरणों में संचालित हुआ। प्रथम दौर के क्रान्तिकारियों ने व्यक्तिगत प्रयासों से औपनिवेशिक सरकार को आतंकित किया और क्षेत्रीय स्तर पर खुद को संगठित किया। तो वही दूसरे दौर के क्रान्तिकारियों ने सामूहिक कार्यवाहियां की और खुद को अखिल भारतीय स्तर पर संगठित करने के प्रयास किये। इस क्रान्तिकारी धारा ने तत्कालीन हिन्दी उपन्यास साहित्य को भी प्रभावित किया। कुछ उपन्यासकार जहाँ प्रत्यक्ष रुप से क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रिय रहे और क्रान्तिकारियों की विचारधारा, कार्यपद्धति, उद्देश्यों व गतिविधियों को अपनी लेखनी में ढाल जनमानस तक प्रभावी ढंग से पहुंचाया। तो वहीं कुछ ने परोक्ष रुप से अपने उपन्यासों में क्रान्तिकारी नायको के त्याग, बलिदान, साहस व शौर्य का यशगान कर आमजनमानस को क्रान्तिकारी धारा से जुड़ने और स्वाधीनता के हवन कुंड में अपने प्राणों की आहुति देने को प्रेरित किया।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The revolutionary consciousness deeply influenced the entire character of the national movement. Through armed revolution, the revolutionaries gave a tough challenge to British imperialism. Even before the partition of Bengal, enthusiastic youth had started taking up arms against injustice, humiliation and exploitation. The revolutionary movement was conducted in two phases. The revolutionaries of the first round terrorized the colonial government through individual efforts and organized themselves at the regional level. So the revolutionaries of the same second round took collective actions and tried to organize themselves on an all-India level. This revolutionary current also influenced the then Hindi novel literature. Some of the novelists were directly active in the revolutionary movement and effectively conveyed the ideology, methodology, objectives and activities of the revolutionaries in their writings to the masses. So the same, few-were indirectly inspired the common man to join the revolutionary stream and sacrifice their lives in the freedom movement. Through their novels by glorifying the sacrifice, sacrifice, courage and valor of the revolutionary heroes. | ||||||
मुख्य शब्द | ब्रिटिश सरकार, क्रान्ति, क्रान्तिकारी, उपन्यास, कृत्रिम पात्र, चित्रण, आन्दोलन। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | British Government, Revolution, Revolutionary, Novel, Artificial character, Illustration, Movement | ||||||
प्रस्तावना |
क्रान्ति व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तनों की अपेक्षा रखती है। भारतीय क्रान्तिकारी इसी व्यवस्था परिवर्तन को लेकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद से निरन्तर संघर्षरत रहे। दूसरी ओर अंग्रेजी सरकार का निरन्तर यह प्रयास रहा कि वह क्रान्तिरूपी इस ज्वार को बढ़ने से रोके। ऐसे में सरकार ने क्रान्तिकारियों के विरुद्ध व्यापक दुष्प्रचार किया। किन्तु जागरूक उपन्यासकारों ने अपनी लेखनी के जरिये अंग्रेजी दुष्प्रचार के बावजूद क्रान्तिकारी दर्शन व विचारधारा को जनमानस तक पहुँचाने के प्रयास किये। हिन्दी के बहुत सारे उपन्यासों में क्रान्तिकारी आन्दोलन के उभार उनके कार्यक्रमों गुप्त संगठनों, नीतियों व अदभुत शौर्य ,बलिदान व राष्ट्रप्रेम को कृत्रिम पात्रो के जरिये जीवन्त करने का प्रयास किया गया। कई जगहो पर उन्हे भटके हुए उत्साही युवा जिनके पास भविष्य की कोई योजना नही थी, जो केवल उपद्रव को आधार बना आजादी की उम्मीद लगाये हुये थे के तौर पर भी प्रदर्शित किया गया।
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तावित शोधपत्र में क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद और हिन्दी उपन्यासों में उसकी अभिव्यक्ति का सम्यक अध्ययन किया गया है। |
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साहित्यावलोकन | मन्मनाथ गुप्त द्वारा लिखित ‘‘क्रान्तिकारी
आन्दोलन का वैचारिक इतिहास’’ ग्रन्थ में बीसवीं सदी के क्रान्तिकारी आन्दोलन का वैचारिक इतिहास प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रन्थ राष्ट्रीय आन्दोलन के उन कोणो को उजागर करता है जो जानबूझ कर या तो उपेक्षित कर दिये गये या फिर पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण के चलते इतिहास में अपना सम्मानजनक स्थान नही प्राप्त कर सके। |
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मुख्य पाठ |
दुर्गाप्रसाद खत्री ऐसे पहले उपन्यासकार हैं जिन्होने क्रान्तिकारी भावना और उदेश्यों को अपने विभिन्न उपन्यासों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। अपने ‘प्रतिशोध’ उपन्यास में वह क्रान्तिकारी
दाँव-पेचों, गुप्त संगठनो व कार्यकलापो का यथार्थ चित्रण करने में सफल हुये। अंग्रेजों की फूट डालो राज करो नीति का भी उपन्यास में मार्मिक चित्रण देखने को मिलता है। क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद का सर्मथन करते हुए ‘प्रतिशोध’ उपन्यास का कृत्रिम पात्र कहता है-
‘यह कोई नही देखता कि बड़ी- बड़ी गाड़ियों से घूमने वाले नेताओं से कितना अधिक त्याग वह क्रान्तिकारी
कर रहे है। जिनकी आवाज पिस्तौल की गोली है और सवारी अर्थी है।
‘क्रान्तिकारी हिंसक रास्ता इसलिये इख्तियार करता है क्योकि वह अपनी मातृभूमि को पराधीन नही देख सकता। इसलिये वह आतताई का संघार करता है। ‘प्रतिशोध’ की यह भावना उनके अगले उपन्यास ‘रक्तमण्डल’/ ‘मृत्युकिरण’ में जाकर स्पष्ट होती है। ‘रक्तमण्डल’ का नागेन्द्र सिंह पात्र क्रान्तिकारियों का मुख्य नेता है। पर्चे बाटना, जनसामान्य को अपने उदेश्यों से परिचित करवाना, खजाना लूटना, अंग्रेज अफसरों की हत्या करना जैसे कार्य ‘रक्तमण्डल’के विभिन्न पात्र करते है। ‘रक्तमण्डल’में भयानक चार की संकल्पना प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल, चन्द्रशेखर आजाद व भगत सिंह से प्रेरित प्रतीत होती है। प्रत्येक क्रान्तिकारी अपने जीवन को राष्ट्र से एकाएक कर देता है। ‘रक्तमण्डल’ के द्वितीय खण्ड में क्रान्तिकारी उदेश्य को स्पष्ट करते हुए एक कृत्रिम पात्र कहता है कि ‘स्वाधीनता की अपनी कीमत होती है और वह कीमत है अपने प्रणों की आहुति’ इसी प्रकार की भाववृत्ति उनके ‘सुफेद शैतान’ उपन्यास में देखने को मिलती है। इस उपन्यास में चन्द्रशेखर आजाद द्वारा भगत सिंह को कैद से मुक्त कराने हेतु किये गये प्रयासों का भी यथार्थ चित्रण किया गया है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तावित शोधपत्र में अन्तरअनुशासनात्मक व विश्लेषणात्मक पद्धति का प्रयोग किया गया है। दत्त सामग्री का संकलन प्राथमिक व द्वितीयक दोनों ही स्रोतों से किया गया है। |
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निष्कर्ष |
विदेशी शासन से राष्ट्र को मुक्त कराने का क्रान्तिकारियों का संकल्प निश्चित ही साहसिक था। जब पराधीनता में जीवन मूल्यों का पतन हो रहा हो, राष्ट्रीय संस्कारो की हत्या हो रही हो, प्रगति की गति शून्य हो जाये, नैतिक साहस के अभाव में आवाज न बुलंद हो रही हो, ऐसे में स्वाधीनता हेतु कुछ युवको का अपने भविष्य की चिन्ता छोड़ आवेश में आना लाजमी है। सशस्त्र क्रान्ति करने के इरादे से निकले यह देशप्रेमी युवा निश्चित तौर पर स्वाधीनता हेतु प्राणों की बाजी लगाने वाले निर्मोही थे। उन्हे अपने भविष्य से ज्यादा वर्तमान राष्ट्र की दुर्दशा की चिन्ता थी। अपने अदम्य शौर्य, साहस, त्याग व बलिदान के जरिये वह तत्कालीन राजव्यवस्था को आतंकित कर न्याय की स्थापना करना चाहते थे। ऐसे में हिन्दी उपन्यास विधा का विषय क्रान्तिकारी चेतना न होता तो अवश्य ही आश्चर्य होता। उपन्यासकारों ने जब कभी भी क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद को उपन्यास की विषयवस्तु बनाया उन्होने क्रान्तिकारी आन्दोलन की विविध विशेषताओं व दुर्बलताओं को उजागर किया। इन उपन्यासों में क्रान्तिकारियों की कार्यपद्धति, गतिविधियों, उदेश्यों तथा अन्तरविरोधों को कई कृत्रिम पात्रो के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। कई जगहो पर क्रान्तिकारियों की हिंसक कार्यवाहियों की आलोचना की गई तो कई जगहों पर उनके त्याग व बलिदान के लिये वह प्रशंसा के पात्र भी बने। इसके अतिरिक्त क्रान्तिकारियों पर पड़ रहे अहिंसक आन्दोलन के दबाव तथा काग्रेंस नेतृत्व से उनकी मतभिन्नता को भी दर्शाया गया। जनसामान्य का क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रति दृष्टिकोण और अंग्रेज सरकार पर पड़ रहे इसके प्रभाव तथा किस प्रकार ब्रिटिश हुकूमत क्रान्तिकारी आन्दोलन के भय से विचलित थी और क्रान्तिकारियों के दमन पर उतारू थी। इसका भी विवेचन हिन्दी उपन्यासों में देखने को मिलता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. मन्मथनाथ गुप्त, क्रन्तिकारी आन्दोलन का वैचारिक इतिहास, निधि प्रकाशन, कश्मीरी गेट, दिल्ली, प्रथम संस्करण, सन् 1980।
2. डा0 ईश्वर दास जौहर, हिन्दी उपन्यास साहित्य में राजनैतिक एवं राष्ट्रीय चेतना (स्वाधीनता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में), शारदा प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, सन् 2012।
3. डा0 देवीदत्त तिवारी, हिन्दी उपन्यास: स्वतन्त्रता आन्दोलन के विविध आयाम, तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, सन् 1985।
4. दुर्गाप्रसाद खत्री, प्रतिशोध, लहरी बुक डिपो, वाराणसी, नवां संस्करण, सन् 1965।
5. दुर्गाप्रसाद खत्री, रक्तमण्डल अथवा मृत्युकिरण, पहला एवं दूसरा खण्ड, लहरी बुक डिपो, वाराणसी, प्रथम संस्करण, सन् 1928।
6. मन्मथनाथ गुप्त, रैन अंधेरी, राजपाल एन्ड सन्स, दिल्ली, प्रथम संस्करण, सन् 1959।
7. मन्मथनाथ गुप्त, अपराजित, राजपाल एन्ड सन्स, दिल्ली, प्रथम संस्करण, सन् 1960।
8. मन्मथनाथ गुप्त, जययात्रा, किताब महल, इलाहाबाद, सन् 1946।
9. आचार्य चतुरसेन शास्त्री, आत्मदाह, हिन्दी साहित्य मण्डल, दिल्ली, सन् 1953।
10. यशपाएल, दादा कामरेड, विप्लव कार्यालय, लखनऊ, सन् 1953।
11. जैनेन्द्र, कल्याणी, हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, बम्बई, सन् 1958।
12. प्रेमचन्द, रंगभूमि, सरस्वती प्रेस, इलाहाबाद, सन् 1969।
13. इलाचन्द्र जोशी, मुक्तिपथ, हिन्दी भवन, इलाहाबाद, सन् 1950।
14. रघुवीर शरण ‘‘मित्र’’, बलिदान, राष्ट्रीय साहित्य प्रकाशन परिषद, मेरठ, सन् 2004।
15. राहुल सांकृत्यायन, जीने के लिए, किताब महल, इलाहाबाद, सन् 1959।
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