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आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका | |||||||
Role of Women in Economic Development | |||||||
Paper Id :
16195 Submission Date :
2022-07-14 Acceptance Date :
2022-08-22 Publication Date :
2022-08-25
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सारांश |
आज भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान पुरूषों से कम नही है। जिस महिला को कुछ समय पूर्व तक अबला, निम्न स्तर माना जाता था। आज वही महिला पुरूषों से सम्बन्धित क्षेत्रों में उनसे आगे निकल गयी है। नारियों का देश की अर्थव्यवस्था में प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में योगदान रहा है। प्राचीन काल में महिलायें बाहर नही जाती थी परन्तु घर पर ही रहकर विभिन्न कार्य करती थी जैसे अनाज साफ करना, काटना एवं छानना आदि प्रमुख थे। इसके साथ ही साथ जैसे जैसे समय बदला महिलाओं के कार्यो में परिवर्तन शुरू हो गया जैसे कपड़ा बुनना, मिटटी के वर्तन बनाना, टोकरियां बनाना, कूटना पीसना आदि। वर्तमान परिवेश में देश के आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की समान और प्रत्यक्ष भागीदारी के बगैर देश की जी. डी. पी. को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डालर तक पहुँचाने के लक्ष्य को प्राप्त करना बहुत ही कठिन होगा। देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी से सम्बन्धित प्रमुख चुनौतियों और इसके समाधान की आवश्यकता है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Today, the contribution of women in the Indian economy is helpless and not less than that of men. A woman who until recently was considered abla, low status. Today the same women have overtaken them in the fields related to men. Women have contributed in various ways in the country's economy since ancient times. In ancient times, women did not go out, but stayed at home and used to do various tasks such as cleaning, cutting and filtering grains were the main ones. Simultaneously, as the time changed, changes started in the work of women Like weaving cloth, making pottery, making baskets, grinding and grinding etc. In the current Scenario, the role of women in the economic development of the country is important. Without equal and direct participation of women in the Indian economy, the target of taking country's G.D.P. to US$ 5 trillion will be very difficult to achieve. The major challenges related to the participation of women in the country's economy and the need for its solutions. | ||||||
मुख्य शब्द | महिलाओं की आर्थिक विकास में भागीदारी, चुनौतियां एवं समाधान। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Women's participation in economic development, challenges and solutions. | ||||||
प्रस्तावना |
महिलाओं के सशक्तीकरण की शुरूआत जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी भागीदारी से ही चाहिये। सशक्तीकरण प्राप्त करने के लिए आधुनिक समाज में महिलाओं को उनके अधिकारों और विशेषाधिकारों के प्रति जागरूक होेने के लिए शिक्षित किया जाना आवश्यक है। यह शिक्षा उनके साथ हुये भेदभाव के बारे में जागरूकता ला सकती है। इसके अलावा, आर्थिक स्वतंत्रता एक प्रमुख कारक है जो महिलाओं को सशक्त बनाने में योगदान दे सकता है।
अर्थव्यवस्था को प्रगति करने में महिलायें हमेशा सहयोग देती रही है लेकिन यह लैंगिक पूर्वाग्रह है जो अभी भी हर सामाजिक स्तर पर मौजूद है, शिक्षित और विकसित समाज भी महिलाओं की अग्रणिता सहन नही कर पाता है। पुरूष प्रधान समाज महिलाओं की भूमिका को कम कर देता है। यद्यपि इस पुरूष प्रधान सोच में धीरे धीरे कमी आ रही है परन्तु पूर्णतः समाप्त नही हुयी है।
किसी भी राष्टं के निर्माण में उस राष्टं की आधी आबादी (स्त्री)की भूमिका की महत्ता से इनकार नही किया जा सकता लेकिन भारतीय समाज में उत्तर वैदिक काल से ही महिलाओं की स्थिति निम्न होती गयी और मध्यकाल तक आते आते समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों ने स्त्रियों की स्थिति बदल कर रख दी।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. भारत में महिला सशक्तीकरण की जागरूकता का आंकलन करना।
2. समाज में लैंगिक भेदभाव को समझना।
3. महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को प्रभावित करने वाले कारको का विश्लेषण करना।
4. महिलाओं को अपने स्वयं के व्यक्तिगत विकास की जिम्मेदारी लेने का अधिकार देना।
5. महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। |
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साहित्यावलोकन | महिला सशक्तीकरण को कई तरह से परिभाषित किया जा सकता है।
जिस में महिलाओं के दृष्टिकोण को स्वीकार करना या उन्हें खोजने का प्रयास करना, शिक्षा, जागरूकता, साक्षरता और प्रशिक्षण के
माध्यम से महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाना शामिल है। महिला सशक्तीकरण महिलाओं के
आत्म सम्मान और समाज के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। महिलाओं को अधिकार देने से वे
शिक्षा, समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीतिक में एक
श्रेष्ठतम आयाम प्रस्तुत कर सकता है। महिलायें समाज में शामिल हो सकती है क्योंकि उन्हें
अपनी धार्मिक, भाषा, कार्य और अन्य गतिविधियों को
चुनने में खुशी होती है। महिला सशक्तीकरण विकास और अर्थशास्त्र में चर्चा का
महत्वपूर्ण विषय बन गया है। आर्थिक सशक्तीकरण महिलाओं को संसाधनों संपत्तियों' और आय
को नियंत्रित करने और उनका लाभ उठाने की अनुमति देता है। यह जोखिम को प्रतिबंधित करने
और महिलाओं की भलाई में सुधार करन े की क्षमता में भी सहायता करता है। महिला
सशक्तीकरण साक्षरता, शिक्षा, प्रशिक्षण और जागरूकता निर्माण
के माध्यम से महिलाओं की राजनीतिक जीवन विकल्प चुनने की क्षमता उत्पन्न करता है।
महिलाओं का सशक्तीकरण विकास के लिए उपलब्ध मानव संसाधनों की गुणवत्ता और मात्रा को
बढ़ाता है। एक सशक्त महिला एक साधन है। वह अपने जीवन के उददेश्य की खोज के लिए कदम
उठाती है और खुद को उस तरह से जीने के लिए समर्पित करती है जो उसके लिए संरेखित है।
वह जानती हो कि उसके उद्देश्य को जीने से उसके अपने जीवन में अर्थ और पूर्ति आयेगी
जबकि उसके आस पास के लोगों के जीवन में सुधार होगा। |
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मुख्य पाठ |
आधुनिकता आधुनिकता के आगमन एवं शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं की
स्थिति में सुधार लाना प्रारम्भ किया। आधुनिक युग में स्वाधीनता संग्राम के दौरान
रानी लक्ष्मीबाई, विजया लक्ष्मी पण्डित, सरोजनी नायडू, कमला नेहरू आदि जैसी महिलायें पूरी क्षमता एवं जोश के साथ सेवा के कार्यो में
भाग लिया। श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा राष्ट्र को दिये जाने वाले योगदान महत्वपूर्ण
है जिन्होंने कि लम्बे समय तक देश की प्रधानमंत्री रहकर देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण
येागदान दिया। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने कहा भी था कि ‘‘मै किसी समुदाय का विकास महिलाओं द्वारा की गयी प्रगति से मापता हूँ।
निःसन्देह घर ग्रहस्थी का निर्माण हो या राष्टं का निर्मा ण नारी के योगदान के
बिना केाई भी पूर्ण नही हो सकता। वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार- भारत में कुल लगभग 40
करोड़ कार्यशील व्यक्ति है, जिनमें 12.5 करोड़ से अधिक महिलायें है। भारत की कुल
जनसंख्या में लगभग 39 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या है। जिसमें लगभग एक चौथाई
महिलायें है। भारत वर्ष में कृषि कार्यो में सक्रिय भूमिका निभाती हुयी स्त्रियां
प्रारम्भ से ही अर्थव्यवस्था का आधार रही है। पिछले कुछ दिनों में वित्त मंत्री ने
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास हेतु भारतीय रिजर्व बैंक से केन्द्र को 1.96 लाख
करोड़ रूपये के हस्तान्तरण से लेकर कई व्यापक कदम उठाये हैं। इसके बावजूद भी कार्यो
को सृजनकर्ताओं की सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त नही हो सकी। भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्तमान
परिदश्य- 1. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जी0डी0पी0 की
वृद्वि दर घटकर 5 प्रतिशत रह गयी है जो सबसे निम्न स्तर पर है। 2. पिछले 14-15 महीनों में विनिर्मा ण का विस्तार
अपनी सबसे सुस्त गति से हुआ। 3. बाजार विदेशी पोर्टफ़ोलियों निवेशको के पलायन की
आशंका बता रहे हैं। 4. डालर के मुकाबले रूपये के मूल्य में तेजी से
गिरावट। विकास को बढावा देने के लिए जिन सुधारों की घोषणा की
गयी है, है लक्ष्य प्राप्त करने में विफल रही है। इसका प्रमुख
कारण यह है कि अधिकांश सुधार वास्तव में अतीत की कुछ गलतियों में किया गया सुधार है। चुनौतियाँ- 1. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं जैसे आकर्षक नारे के
बावजूद जनसांख्यिकीय लाभांश के सबसे बड़े घटक महिलाओं को अभी तक अधिकांशतः उपेक्षित
ही रखा गया है। 2. सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं के योगदान के मामले
में वैश्विक औसत 39 प्रतिशत की तुलना में भारत में महिलाओं का योगदान मात्र 17
प्रतिशत है। 3. केवल 14 प्रतिशत भारतीय व्यवसाय महिलाओं द्वारा
संचालित है। भारत में महिलाओं द्वारा किये गये 51 प्रतिशत से अधिक कार्य अवैतनिक है
और 95 प्रतिशत कार्य असंगठित है। 4. कृषि श्रम में महिला कृषकों की संख्या 38.89
प्रतिशत है और अभी तक केवल 9 प्रतिशत भूमि पर उनका नियंत्रण है। 5. कम वेतन के साथ कार्य का अत्यधिक बोझ। 6. संसाधनों और आधुनिक उपकरणों का अभाव 7. भूमि पर स्वामित्व का अभाव 8. महिलाओं की कुल जनसंख्या का मात्र 13 प्रतिशत ही
बाहर काम करने के लिए जाता है और उनमें से भी प्रति 10 महिलाओं में से 9 महिलायें
असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। समाधान- 1. महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता लम्बे समय से उन्हें
दी गयी अधीनस्थ स्थिति से उत्पन्न होती है। महिलाओं के सशक्तीकरण की शुरूआत जीवन
के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी भागीदारी से होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में शिक्षा एक
महान निर्धारक है। 2. एक वृहत आय हस्तान्तरण योजना की शुरूआत की जाये। 3. उपभोक्ता को गम्भीरता से प्रोत्साहित किया जाये। 4. अल्पकालीन सुधारों के स्थान पर दीर्घकालीन समाधानों
पर ध्यान देना चाहिए। जिससे विकास के स्तर में स्थायी और निरन्तर वृद्धि हो सके। 5. महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित कर उन्हें सक्षम
बनाने वाले नीतिगत ढांचे का निर्माण किया जाना चाहिए। 6. यदि महिलायें आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर हो तो
इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते है। 7. महिलाओं की कौशल विकास प्रणाली में सुधार की
आवश्यकता है। सकल घरेलू उत्पाद के 19 प्रतिशत पर भारतीय महिलाओं का आर्थिक योगदान वैश्विक
औसत के आधे से भी कम है और उदाहरण के लिए चीन में 40 प्रतिशत के प्रतिकूल है। भारत
अपनी वृद्धि को 1.5 प्रतिशत अंक बढाकर 9 प्रतिवर्ष कर सकता है। यदि लगभग 50
प्रतिशत महिलायें कार्य बल मे शामिल हो सकती है। महिला परिवार में पत्नी, साथी, आयोजक, प्रशासक, निदेशक, पुनर्रचनाकर्ता, संवितरणकर्ता अर्थशास्त्री, स्वास्थ्य में अधिकारी आदि की भूमिका एक साथ निभाती है और समाज के सामाजिक
आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है आज महिलायें कपड़े, तम्बाकू, आटा, मिलें, तेल तथा काजू आदि के कारखानों में
लगी है। कोयला, इस्पात, पत्थर, अमुक इस्पात आदि स्थानों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है। आज समाज में
नृत्य संगीत तथा कला की काफी महत्व दिया जाने लगा है। इसलिए इस क्षेत्र में महिलाओं
का प्रवेश सम्मानीय हो गया है। आजकल महिलायें विभिन्न क्षेत्र एवं कूटनीतिक क्षेत्रों
में भी कार्य कर रही है। महिलायें ग्रामीण क्षेत्र सम्बन्धी कार्य, एवं सार्वजनिक, निर्माण विभाग के कार्य भी सफलता पूर्वक कर रही है।
आज महिलायें बैंक से ऋण प्राप्त कर स्वयं केन्द्रों का संचालन कर रही है। अतः आज
भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान पुरुषों से कम नही है। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार कार्य स्थलों पर महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि से कई सामाजिक और आर्थिक लाभ देखने को मिल रहे है। शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि से महिलाओं में अपने स्वास्थ्य तथा विकास के प्रति जागरूकता के बढाने के साथ-साथ अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है। महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता देने के क्रम में वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर अवसर प्रदान करने के प्रयास किये है जो सुरक्षा के पांच पहलू हैं- माँ एवं शिशु की स्वास्थय सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय सुरक्षा, शैक्षणिक, एवं वित्तीय कार्यक्रमों के माध्यम से भविष्य की सुरक्षा तथा महिलाओं की सलामती है। इस प्रकार हम पाते हैं कि जब राष्ट्र सशक्त करने की बात आती है तो महिला सशक्तीकरण को अनदेखा नही कर सकते हैं। महिलाओं के समक्ष विद्यमान निराशाजनक आर्थिक असमानता के परिदृश्य में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। भारत की महिलाओं की क्षमताओं को उजागर किये जाने से ही भारत की आर्थिक क्षमता को पूर्ण रूप से साकार किया जा सकता है। वर्तमान समय में भारतीय सरकार द्वारा महिलाओं के
उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रम एवं योजनाओं का संचालन तो किया जा रहा है लेकिन इन योजनाओं
का क्रियान्वन निचले स्तर तक उचित ढंग से न पहुँच सकने के कारण स्त्रियों को
अपेक्षित लाभ नही मिल पा रहा है। यह सत्य कि वर्तमान समय में स्त्रियों की स्थिति में
काफी बदलाव आये है लेकिन फिर भी वह अनेक स्थानों पर पुरूष प्रधान मानसिकता से पीड़ित हो रही है। इस सन्दर्भ में युगनात्मक एवं राष्ट्र निर्माता स्वामी विवेकानन्द
का यह कथन उल्लेखनीय है ‘‘किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्म थर्मा मीटर है
वहाँ की महिलाओं की स्थिति।’’ भारतीय नारियां संसार की अन्य किन्ही भी नारियों की भांति समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती है। आवश्यकता उन्हें अवसर देने की है। इसी आधार पर भारत के उज्जवल भविष्य की सम्भावनायें सन्निहित है। 20वीं सदी के उत्तराद्ध में अब 21वीं सदी के प्रारम्भ में बराबरी व्यवहार वाले जोड़े बनने लगे है। नौकरी वाली नारी के साथ पुरूष की मानसिकता में बदलाव आया है। स्त्री स्वातय में अर्थशास्त्र का योगदान अद्भुत है। स्त्रियां धन कमाने लगी है तो पुरूष की मानसिकता में भी परिवर्तन आया है। आर्थिक दृष्टि से नारी अर्थचक्र के केन्द्र की ओर बढ़ रही है। विज्ञापन की दुनियां में नारियां बहुत आगे है। लेकिन विज्ञापन की अश्लीलता चिन्तन का विषय है। इससे समाज में विकृतियां भी बढ़ रही है। अर्थशास्त्र ने समाजशास्त्र को बौना बना दिया है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | यह पेपर मूलरूप से वर्णात्मक और विश्लेषणात्मक प्रकृति का है। इस पत्र में एक प्रयास किया गया है कि भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण से आर्थिक सशक्तीकरण पर होने वाले प्रभावों का। इसमें प्रयुक्त आंकड़े विशुद्ध रूप से द्वितीयक स्रोतों से हैं। इस अध्ययन की आवश्यकता अनुसार भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति, उनके पुरूष के बराबर होना समकक्ष अभी भी भारतीय महिलाओं के लिये दूर की कौड़ी है। |
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निष्कर्ष |
वर्तमान में महिलाओ के सशक्तिकरण पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा हे और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का प्रभावशाली तरीके से प्रचार एवं प्रसार किया जा रहा है परिणामतः महिलाओ के सशक्तिकरण को और अधिक बल मिल रहा है |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. एडीटोरियल (भारतीय अर्थव्यवस्था दृष्टि) (डेली अपडेट भारतीय समाज)
2. समर एजुकेशन
3. गूगल डाॅट काम
4. यू-टयूब ।
5 “Women empowerment in India – Author Dr. Vipin Kumar
6. महिला सशक्तीकरण ‘‘तीसरी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य का एक महत्वपूर्ण विश्लेषण’’
7. जेण्डर और महिला सशक्तीकरण प्रकाशक हिमांशु प्रकाशन । |