P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- XI July  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
सुशासन और गैर सरकारी संगठन
Good Governance and NGOs
Paper Id :  16230   Submission Date :  14/07/2022   Acceptance Date :  21/07/2022   Publication Date :  24/07/2022
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/shinkhlala.php#8
मंजू लाडला
सह - आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
एस.के. गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज
सीकर,राजस्थान, भारत
सारांश भारतीय संस्कृति में दान, सेवा, नैतिकता एवं परोपकार की भावनाएं व्याप्त है। जीव-जन्तु , पशु-पक्षियों, दीन-हीन, अतिथियों तथा संकट में पड़े मनुष्य की सेवा करना पुण्य का कार्य माना जाता है। मानवता की सेवा और दान की भावना के परिणामस्वरूप ही हमारे यहां अनेकों स्वयंसेवी संगठनों का विकास हुआ है। मध्यकालीन युग में ही सांस्कृतिक, शिक्षा, स्वास्थ्य और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत पहुंचाने वाले अनेक स्वयंसेवी संगठन सक्रिय थे। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में राष्ट्रीय चेतना का विस्तार भारत के कोने-कोने में जा पहुंचा और सामाजिक -राजनीतिक आंदोलनों में स्वयंसेवा के माध्यम से अपने को स्थापित करने का रास्ता अपनाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इन स्वैच्छिक संगठनों की संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी और वर्तमान में देश में लगभग 31 लाख स्वैच्छिक संगठन है। प्रस्तुत शोध पत्र में इन्हीं स्वैच्छिक संगठनों की सुशासन में भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया गया है साथ ही सुधार के सुझाव भी प्रस्तुत किए गए हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The feelings of charity, service, morality and philanthropy are prevalent in Indian culture. Serving animals and birds, the poor, the guests and the people in distress is considered an act of virtue. As a result of the service of humanity and the spirit of charity, many voluntary organizations have developed here. Many voluntary organizations were active in the medieval era, providing relief during cultural, education, health and natural disasters. In the second half of the nineteenth century, the national consciousness spread to every nook and corner of India and took the path of establishing itself through volunteerism in socio-political movements. After independence, the number of these voluntary organizations started increasing rapidly and at present there are about 31 lakh voluntary organizations in the country. In the present research paper, the role of these voluntary organizations in good governance has been critically evaluated and suggestions for improvement have also been presented.
मुख्य शब्द भारतीय संस्कृति, नैतिकता, परोपकार, मानवता, स्वैच्छिक संगठन, राष्ट्रीय चेतनाl
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Indian Culture, Ethics, Philanthropy, Humanity, Voluntary Organization, National Consciousness.
प्रस्तावना
स्वंय की इच्छा से निर्मित ऐसे संगठन जो समाज सेवा का कार्य करते हैं स्वैच्छिक संगठन कहलाते हैं। यह संगठन कुछ व्यक्तियों द्वारा निर्मित किए जाते हैं, और मानव सेवा तथा सामाजिक विकास का ध्येय रखते हैं। लोगों के दु:ख-दर्द दूर करने, निर्धनों का हित संर्वद्धन करने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएं प्रदान करने, मानवाधिकारों की रक्षा तथा सामाजिक न्याय के विकास के लिए गतिविधियां चलाते हैं।भारत सरकार द्वारा घोषित ’’राष्ट्रीय स्वैच्छिक संगठन नीति 2007 (1) के अनुसार इन स्वैच्छिक संगठनों को कानून या अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत करवाया जाना अनिवार्य है। भारत में केंद्रीय स्तर पर सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 (2 ) भारतीय न्यास अधिनियम 1882, (3) सहकारी समिति अधिनियम 1964 (4) तथा भारतीय कम्पनी अधिनियम 1956 (सेक्षन 25) के अंतर्गत Charitable Company इत्यादि (5 )के अन्तर्गत इनका पंजीयन किया जाता है। राज्य स्तरीय कानूनों जैसे राजस्थान संस्थाएं पंजीकरण अधिनियम 1965 (6) तथा राजस्थान सहकारी समितियां अधिनियम 2002 के अंतर्गत इनका पंजीयन हो सकता हैं।(7) यह किसी क्षेत्र या विषय विशेष अथवा समस्या विशेष पर ध्यान केंद्रित रखते हैं। यह समाज की समस्याओं के मूलभूत कारणों की जड़ों से पता लगाने और विशेष रूप से गरीब, पीड़ित, सामाजिक स्तर से नीचे के स्तर के लोगों, वे चाहे शहरी हो या ग्रामीण इलाकों में हो, के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के प्रति वचनबद्ध हैं अर्थात यह समाज विकास प्रेरित संगठन होते हैं। जो समाज को सशक्त और समर्थ बनाने में सहयोग देते हैं। (8) इनकी वित्तीय व्यवस्था सरकारी अनुदान तथा जनता से दान दोनों के द्वारा पूरी होती हैं। इनका किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ाव नहीं होता हैं। आमतौर पर जन समुदाय को मदद देने, उनके विकास और कल्याण के कार्यो से जुड़े होते हैं। इन संगठनों की कार्यप्रणाली स्वायत्त, लचीली तथा परिवर्तनशील होती है। समय तथा आवश्यकतानुसार परिवर्तन आसानी से कर लेते हैं। साथ ही निर्णय भी त्वरित गति से ले लेते हैं। नौकरशाही तथा कानून कायदों की पाबंदी से मुक्त, यह संगठन अपनी कार्य संस्कृति को आवश्यकतानुसार परिवर्तित कर सकते हैं। दूसरी तरफ आधुनिक सरकारों का प्रमुख लक्ष्य सुशासन प्रदान करना होता जा रहा हैl सुशासन का शाब्दिक अभिप्राय ऐसी सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था से हैं जिसमे समाज के सभी वर्गो का सर्वागींण विकास हो भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, निष्पक्ष व त्वरित न्याय सबकी शिक्षा, रोजगार एवं सुरक्षा,समानता,स्वतंत्रता,संतुलित भोजन स्वच्छ,आवास सहित सभी आवश्यक सुविधाएँ नागरिको को मिलेl देश का प्रत्येक नागरिक तनाव मुक्त जीवन व्यापन करे l(9) भारतीय पृष्ठभूमि और परिप्रेक्ष्य में ही सुशासन रहा है लेकिन 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में विश्वव्यापी आर्थिक परिवर्तनों से दुनिया विचलित हो उठीl विकास के नाम पर नाना विकार पैदा होने लगेl लोक प्रशासन विफल होने लगाl शासन के माध्यम से अंतराष्ट्रीय मानकों या पैरामीटरस को नापकर सुशासन स्थापित करने के प्रयास होने लगेंl स्वैच्छिक संगठनों का उद्देश्यों भी लोक कल्याण ही होता है और सरकार भी लोक कल्याण के माध्यम से सुशासन स्थापित करने का प्रयास करती हैंl इस तरह सुशासन में इन स्वैच्छिक संगठनों की भी सकारात्मक भूमिका होती हैl
अध्ययन का उद्देश्य 1. स्वैच्छिक संगठनों एवं इनकी कार्यप्रणाली के बारे में अध्ययन करना। 2. सुशासन एवं विकास में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका का अध्ययन करना। 3. स्वैच्छिक संगठनों की आवश्यकता को प्रतिपादित करना। 4. स्वैच्छिक संगठनों के बारे में आमजन को जागृत करना। 5. स्वैच्छिक संगठनों की कार्यप्रणाली में उत्पन्न दोष एवं बुराइयों का पता लगाना। 6. स्वैच्छिक संगठनों की कार्यप्रणाली एवं संगठन में सुधार के सुझाव प्रस्तुत करना।
साहित्यावलोकन

डॉ नूरजहाँ:- नॉन गवर्नमेंटल ऑर्गेनाइजेशन इन डेवलपमेंट,, थ्थोरी एण्ड प्रैक्टिस, कनिष्क पब्लिशर्स नई दिल्ली 1997, उक्त पुस्तक में विकास में एनजीओज की सैदान्तिक एंव व्यावहारिक स्थिति की विवेचना की गई हैl

धर्मराजन शिवानी:- एनजीओज एज प्राइम मूर्वस: सेक्टोरल एक्शन फार सोशल डेवलपमेंट कनिष्क पब्लिशर्स नई दिल्ली 2001, उक्त पुस्तक में सामाजिक विकास में एनजीओज की भूमिका को बताया गया हैl

धेर्मेंद्र मिश्रा:- पार्टीसिपेटरी गवर्नमेंट थ्रू एनजीओज- आलेख पब्लिशर्स जयपुर 2005- लचीलापन एमव संवेदनशीलता के कारण आधुनिक विकास प्रशासन के क्षेत्र में सिविल सोसाइटी निर्णायक भूमिका निभा सकती हैl

जैन नाभि कुमार:- गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए ज्ञानकोष -नाभि प्रकाशन, नई दिल्ली 2012- इस कोष में स्वयंसेवी सस्थाओं के सगंठन एंव कार्य प्रणाली से संबधित शब्दावली के अर्थ स्पष्ट किये गए हैl

डॉ ओम प्रकाश देव:- एनजीओज अनुदान एवं प्रबंधन, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल डेवलपमेंट 2019- एनजीओज को प्राप्त वित्तीय अनुदान एवं उनके उचित प्रबधन करने के तरीके बताये गये हैंl

रामदत्त शर्मा:- फोमेसन मैनेजमेंट टेक्शेसन ऑफ़ चेरीटेबल एण्ड रिलेजियश ट्रस्ट एवं इंस्टीट्यूट, कार्माशियल ला पब्लिशर्स पब्लिशर्स 2020, स्वैच्छिक संगठनों के गठन, प्रबधन, आय एवं करों के बारे में नियमों को स्पष्ट किया गया हैंl

भव्य कुमार सहानी:- इंट्रोडक्शन टू एनजीओज मैनेजमेंट, श्री चक्रधर पब्लिकेशंस 2022 ,पुस्तक में एनजीओ के कुशल प्रबधन के गुर बताय गये हैंl

परिकल्पना 1 स्वैच्छिक संगठन सुशासन एवं जन सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं l
2 स्वैच्छिक संगठनों के बारे में केवल शिक्षित वर्ग को ही जानकारी हैं l
3 ज्यादातर स्वैच्छिक संगठन केवल सरकारी अनुदान तक ही सीमित रहते हैं l
4 स्वैच्छिक संगठनों की कार्यप्रणाली में दोष/ बुराईया उत्पन्न हो रही हैं l
5 स्वैच्छिक संगठनों में सुधार की अति आवश्यकता हैं l
सामग्री और क्रियाविधि
शेखावाटी क्षेत्र के प्रमुख स्वैच्छिक संगठनों से व्यक्तिश: मिलकर तथ्य एकत्रित किये गए हैं। सर्वसुलभ लोगों से भी बातचीत करके स्वैच्छिक संगठनों के बारे में उनके विचार एवं धारणाओं का पता लगाया गया है। व्यक्तिश: कार्यालय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग सीकर से भी संपर्क कर जानकारी प्राप्त की गई है। इसके अतिरिक्त उपलब्ध साहित्य एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से भी अध्ययन सामग्री एकत्रित की गई है। इस तरह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही स्रोतों से प्राप्त सामग्री का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले गए हैं।
विश्लेषण

सुशासन में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका

भारत एक विशाल  क्षेत्रफल एवम् अधिक जनसंख्या वाला देश हैं। ऐसे में सरकार के लिए सभी गतिविधियों की देखभाल करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। अतः देश को सभी गतिविधियों की देखभाल के लिए तथा सुशासन स्थापित करने के लिए  स्वैच्छिक संगठनों की सहायता की आवश्यकता है। यह संगठन समाज कल्याण सुशासन  एवं विकास में निम्नलिखित भूमिका निभाते हैं-

1. जन कल्याण- स्वैच्छिक सेवा भावना से ओत-प्रोत व्यक्तियों द्वारा इनका निर्माण होने के कारण यह समाज सेवा करना अपना परम धर्म समझते हैं। यह रोगियोंअनाथ बालकोंविधवा महिलाओंभिखारियोंश्रमिकोंनिःशक्त जनों की सेवा करके समाज कल्याण का कार्य करते हैं।

2. सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन- सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने में स्वैच्छिक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सभी कार्यक्रम तथा नीतियों को स्वैच्छिक संगठन ही व्यवहारिक स्वरूप प्रदान कर रहे हैं।(10) अनुसूचित जाति तथा जनजाति विकासनिःशक्तजन कल्याणअल्पसंख्यकों की सुरक्षामहिला एवं बाल विकासअपराधी परिवीक्षा तथा सुधारबाल श्रमिक उदारअस्पृश्यता  निवारणनिराश्रितों को सहारा तथा भिक्षावृत्ति उन्मूलन में अनेक राष्ट्रीय तथा स्थानीय संगठन प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं।(11)

3. सामाजिक परिवर्तन- सामाजिक परिवर्तन को एक सुनिश्चित गति तथा सकारात्मक दिशा देने में यह संगठन निर्णायक भूमिका अदा कर रहे हैं। जब इनके कार्यकर्ता स्वंय दीन-हीन की सेवा तथा रोगी की देखभाल करते हैं तो अन्य व्यक्तियों को भी प्रेरणा प्राप्त होती हैं। इन संगठनों के पास व्यावहारिक अनुभव होता हैं इस अनुभव का सरकारी नीतियों के साथ सामंजस्य बैठाते हुए सामाजिक परिवर्तनों को भली-भांति नियंत्रित करने की रूपरेखा तैयार की जा सकती हैं।

4. उत्तरदायित्व का बोध- वृद्ध मां-बाप की सेवाअपाहिजरिश्तेदार की सहायता तथा पिछड़ी जाति को समानता का अधिकार देने में जब एक सामान्य व्यक्ति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करता है तो यह स्वैच्छिक संगठन आगे आते हैं। इनके कार्यों से प्रभावित होकर बहुत से व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व के प्रति सजग तथा संवेदनशील हो जाते हैं। इन संगठनों के कार्यकर्ताओं के मृदुशालीन तथा संयमशील सेवाभावी व्यवहार से समाज प्रभावित होता हैं और इनकी परोपकारी भावना देखकर अन्य लोग भी अपना उत्तरदायित्व समझने लगते हैं।

5. सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करना- सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने तथा सामाजिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रकार से नियम बनाए जाते हैं। इन नियमों/विधानों की सफल क्रियान्विती हेतु जन जागृति एवं जन सहयोग अति आवश्यक होता है,जो यह संगठन ही संभव बनाते हैं। यह संगठन इन सामाजिक कानूनों को जन-जन तक पहुंचाने तकउनके प्रति जनता में विश्वास पैदा करने तथा रूढ़ियों में परिवर्तन लाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सामाजिक समस्या के प्रकार तथा गंभीरता को देखकर यह संगठन उनके प्रति जनमत तैयार करते हैं तथा सरकार को नया विधान बनाने हेतु बाध्य करने की भूमिका भी निभाते हैं। परिवर्तित कानून में संशोधन तथा इन्हें व्यवहारिक बनाने के सुझाव देने में भी स्वैच्छिक संगठनों की अहम भूमिका रहती हैं।

6. सामाजिक अनुसंधान- सामाजिक सर्वेक्षणों के अतिरिक्त यह संगठन सरकारी कार्यक्रमों के मूल्यांकन तथा अन्य सामाजिक अनुसंधान कार्य भी करवाते हैं। इन सर्वेक्षणों तथा अनुसंधानों से प्राप्त निष्कर्षों पर सामाजिक नियोजन तथा सामाजिक नीति निर्भर करती हैं। विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों की उपादेयताउनकी न्यूनताओंक्रियान्वयन में बाधाओं तथा वास्तविकताओं की जानकारी यह संगठन ही उपलब्ध कराते हैं।

7. जन सहभागिता-  लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं में विकास कार्यक्रमों के निर्माण तथा उनके क्रियान्वयन में जनसहभागिता का विशिष्ट योगदान होता हैं।स्वैच्छिक संगठन चूंकि जनता के दु:ख दर्द में भागीदार रहते हैं तथा उन्हें सामुदायिक सहयोग प्राप्त होता है अतः वे इस प्रवृत्ति में और वृद्धि करवा सकते हैं।

8. जन जागृति- किसी समस्या विशेष पर जनता में जागृति पैदा करने तथा उनके पक्ष या विपक्ष में जनमत का निर्माण करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बालश्रम,बाल विवाहदहेज प्रथा तथा महिला अत्याचारों को रोकने के क्रम में इन संगठनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहती हैं।

9. जीवन स्तर में सुधार- लोगों के जीवन स्तर में सुधार की आवश्यकता को देखते हुए देश में अनेक स्वैच्छिक संगठन विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। जैसे ’इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ और आवाज जैसे संगठन भ्रष्टाचार के विरुद्ध ’सेंटर फॉर सोशल रिसर्च ’महिलाओं एवं बालिकाओं के कल्याण के लिए ’कज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेन्टर’ उपभोक्ताओं के हितो एवं अधिकारों के लिए ’ऑल इंडिया हुमन राइट्स एसोसिएशन’ मानव अधिकारों के लिए कार्य कर रहे हैं। इन संगठनों द्वारा चलाई जा रहे  कल्याणकारी कार्यक्रमों से निश्चित तौर पर लोगों के जीवन शैली में सुधार हो रहा हैं।

10. नेतृत्व की शिक्षा- सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय भाग लेने से नेतृत्व का गुण भी विकसित होता है। जिससे भविष्य में देश को योग्य एवं समाजसेवी नेतृत्व भी मिल सकता है।

11. प्राकृतिक आपदाओं में सहायता- स्वैच्छिक संगठन बाढ़सूखाभूकंप और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बाद राहत और पुनर्वास के कार्यो में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। अभी कोरोना महामारी में भी इन स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण रही हैं।

इस तरह से ये संगठन अनेक तरह की गतिविधियां चला कर लोगों को लाभान्वित कर रहे हैं।यह स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी कार्यप्रणाली में लचीलापन लाकर विकास में बेहतर मदद कर रहे हैं।

स्वैच्छिक संगठनों की कार्यप्रणाली में दोष/बाधायें/चुनौतियां

सामाजिक कल्याण के प्रति समर्पित स्वैच्छिक संगठन स्वयं निम्नलिखित समस्याओं से ग्रसित है। इससे इनकी प्रभावशीलता में कमी आ रही हैं और कार्यकुशलता प्रभावित हो रही हैं।

1.दिखावा संस्कृति- बहुत से संगठन दिखावा संस्कृति के शिकार हो रहे हैं। अपने वास्तविक कार्यक्षेत्र एवं उद्देश्य की ओर ध्यान देने की बजाय समारोह के माध्यम से तड़क-भड़क प्रदर्शन करते हैं।

2. प्रशिक्षित कार्मिकों का अभाव- इन संगठनों के ज्यादातर कार्मिक प्रशिक्षित नहीं होते हैं। नौकरी की असुरक्षाअल्पवेतनपदोन्नति तथा अन्य अनुषांगिक लाभों के  अभाव में कुशल कार्मिक यहाँ  बने रहना नहीं चाहते हैं। फलतः कार्य विपरित रूप से प्रभावित होता हैं।(12)

3. जन सहयोग में कमी- परिवर्तित होते सामाजिक आर्थिक परिवेश में जन सहयोग में भी कमी आ रही हैं। पहले लोग समाजसेवी संस्थाओं को तनमनतथा धन से सहायता देना पुण्य का कार्य समझते थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल रही हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं के बारे में अशोभनीय तथा आपत्तिजनक समाचार सुनने को मिलते हैंतो बहुत से दयालु व्यक्ति चाहकर भी सहायता नहीं कर पाते हैं। साथ ही एन.जी.ओ.से जुड़ना भी पसंद नहीं करते हैं।(13)

4. स्वार्थ पूर्ति- स्वैच्छिक संगठनों की आड़ में कई बार स्वार्थपूर्ति भी की जाती हैं। किसी विशेष धर्मसंप्रदायजाति या राजनीतिक मान्यताओं का प्रचार भी इन संगठनों के माध्यम से किया जाता है। धार्मिक प्रवचन तथा ज्ञान ज्योति के प्रचार के नाम पर इन संगठनों के माध्यम से देश की जड़े खोखली की जा रही हैं।

5. सुदृढ़ नेतृत्व का अभाव- सरकारी तंत्र की कमियां गिनाकर सरकार से धन प्राप्त करने वाले यह संगठन व्यवहार में नितांत अनुत्तरदायी तथा निधियों के रिसाव से ग्रस्त हैैं। इनमें न तो प्रभावी एवं सशक्त नेतृत्व होता है और न हीं सुदृढ़ संगठनात्मक आधार पर यह संगठन टिके होते हैं। अधिकांश संगठन न तो आम सभा की वार्षिक बैठक बुलाते हैंऔर नहीं सनदी लेखाकार से अंकेक्षण करवाते हैं और नहीं रजिस्ट्रार के कार्यालय में वार्षिक विवरण प्रस्तुत करते हैं।(14)

6. भ्रष्टाचार- बहुत से राजनेतासेवानिवृत्त नौकरशाह तथा कतिपय व्यापारियों के लिए ये संगठन लाभ कमाने का माध्यम बन गए हैं। जयपुर की विख्यात स्वैच्छिक संस्था ’बाल रश्मिमें व्याप्त भ्रष्टाचार तथा अनैतिक कृत्यों का मामला सर्वउजागर हैं। ऐसे स्वार्थी तत्वों ने स्वैच्छिक संगठनों को घृणास्पद बना दिया हैं। ये सरकारी धन का दुरुपयोग करके अपनी स्वयं की सेवा का पर्याय बन गये हैं। ये स्वैच्छिक सेवा का स्वरूप छोड़कर व्यवसायिक संगठन बनते जा रहे हैं।

7. कमजोर  आर्थिक स्थिति- सरकार द्वारा दिए जाने वाले अनुदान तथा सहायता राशि की दरें काफी समय तक नहीं बढ़ाई जाती हैं। ऐसी स्थिति में वित्तीय ढांचा चरमरा जाने के कारण सशक्त संगठनों को छोड़कर शेष मृतप्राय अथवा शिथिल हो जाते हैं। कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण संगठन अपने कार्यकर्ताओं को पर्याप्त वेतन व सुविधाएं भी नहीं दे पाते हैं।(15)

8. समाज कण्टकों का सामना- समाज कल्याण के क्षेत्र में कार्यशील स्वैच्छिक संगठनों को समाज कण्टको का शिकार भी होना पड़ता हैं। बाल विवाहमहिला अत्याचारबाल श्रमपिछड़े वर्गों के शोषण के विरुद्धवेश्यावृत्ति के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाले स्वैच्छिक संगठनों को समाज की रूढ़िवादी मानसिकता से जूझना पड़ता हैं। ऐसे में अधिकांश संगठन या तो अपना कार्यक्रम बदल लेते हैं अथवा स्वयं को सामाजिक परिवेश में डाल लेते हैं।(16)

9. कागजों तक सीमित- अनेक स्वयंसेवी संगठन कागजों में ही चल रहे हैं। बहुत से बेरोजगार युवक केवल अनुदान प्राप्त करने हेतु किसी संगठन का निर्माण करते हैं तथा अनुदान प्राप्त होते ही उस संगठन का कहीं पता नहीं चलता हैं। फर्जी संस्थाओं की बढ़ती संख्या चिंता का विषय हैं।

10. विदेशी सहायता का दुरुपयोग- अपने देश में और और देश के लिए काम करने वाले स्वैच्छिक संगठनों को विदेशी सहायता लेना अनुचित एवं अपमानजनक हैं। (17) साथ ही विदेशी अनुदान नियमिन अधिनियम (एफ.सी.आर.) का भी उल्लंघन कर रहे हैं। कुछ विदेशी पैसा अन्य अवैध माध्यमों से भी आता हैं। आई.बी. की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में विदेशी सहायता प्राप्त स्वैच्छिक संगठन देश में अलगाववादमाओवाद तथा धर्मांतरण को हवा दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वैच्छिक संगठनों का इस्तेमाल जासूसी के लिए भी किया जाता हैं।(18)

11. सेवा की गुणवत्ता कमजोर- स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा प्रदत सेवाओं की गुणवता ज्यादा अच्छी नहीं होती हैं। विशेषकर प्रशिक्षण प्रोग्रामों में यह गुणवता साफ दिखाई दे रही हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम में दक्ष प्रशिक्षक नहीं होते हैं। बजट प्राप्त करने हेतु फर्जी उपस्थिति दिखाई जाती हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति प्रशिक्षण के उपरान्त स्वंय का कार्य करने की स्थिति में नहीं होते हैं।

12. पक्षपात का आरोप- एनजीओ प्रभावशाली लोगों द्वारा संचालित होते हैं और प्रभावशाली लोगों को ही फायदा पहुंचा रहे हैं अर्थात लाभान्वितों में पक्षपात के आरोप भी इन संगठनों पर लगाए जा रहे हैं।

13. रिकॉर्ड का संधारण समुचित नहीं- संगठनों के कार्यालयपताकर्मचारीगण तथा रिकार्ड का संधारण भी समुचित ढंग से नहीं किया जाता हैं। इससें जनसंख्या में बहुत बड़े भाग को इनकी जानकारी ही नहीं रहती हैं।

स्वैच्छिक संगठनों में सुधार

स्वैच्छिक संगठनों की कार्यप्रणाली में निम्नलिखित सुधार लाना एक तत्कालिक आवश्यकता हैं।क्योंकि आज लोक या सभ्य समाज के पर्याय के रूप में इन संगठनों की एक विशिष्ट भूमिका बनी हुई हैं -

1.एक ऐसी नेटवर्क प्रणाली की आवश्यकता है जो क्षेत्र विशेष जैसे -शिक्षास्वास्थ्यमानव अधिकार,पर्यावरणविकासजन चेतनासूचना का अधिकार तथा महिला विकास इत्यादि में कार्यरत सभी स्वैच्छिक संगठनों की विश्वसनीय जानकारी दे सके।

2. सरकारी अनुदान समय पर मिले तथा उसमें समयबद्ध रूप से वृद्धि की जाती रहनी चाहिए।

3.स्वैच्छिक संगठनों को जनता का विश्वास  अर्जित किया जाना चाहिए। इसके लिए इन्हें अपनी सामाजिक छवि सुधारनी होगी। विश्वास के बिना लक्ष्य तक पहुंचना संभव नहीं है।

4. स्वैच्छिक संगठनों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता एवं नैतिकता का समावेश होना चाहिए। सामाजिक अंकेक्षण की ठोस प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।

5. स्वैच्छिक क्षेत्र सम्बधी राष्ट्रीय नीति का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ ही समय-समय पर नीति की समीक्षा करके अव्यावहारिक/अनुपयोगी प्रावधानों में सुधार किया जाना चाहिए।

6. आज निजी प्रशासन एवं लोक प्रशासन का अंतर कम होता जा रहा है। ऐसे में सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के संबंध सहयोगी होने चाहिए तथा नीतियों व योजनाओं को लागू करने में समन्वय व सामंजस्य होना चाहिए।

7. इन संगठनों की सहायतार्थ एक राष्ट्रीय कोष स्थापित किया जा सकता है जिसमें बजट की राशि एवं जन सहयोग से प्राप्त राशि रखी जा सकती हैं।

8. सभी गैर सरकारी संगठनों का विवरणसंगठनफंडिंग वह लेनदेन तथा किये जाने वाले कार्यों इत्यादि की जानकारी हेतु वेबसाइट एवं उनका अपडेट होना चाहिए।

9. श्रेष्ठतम प्रदर्शित वाले स्वैच्छिक संगठनों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। इन संगठनों की ग्रेडिंग की जानी चाहिए। ग्रेडिंग का तरीका निष्पक्षसुदृढ एवं पारदर्शी होना चाहिए।

10. विदेशी सहायता से प्राप्त राशि में पारदर्शिता होनी चाहिए। साथ ही ये धन राष्ट्रीय हित एवं  जनहित में खर्च करें। देश के लिए घातक गतिविधियों में खर्च नहीं करेंइनकी समुचित व्यवस्था होनी चाहियें।

11. जो स्वैच्छिक संगठन गलत गतिविधियों में लिप्त पायें जाते हैं उनके विरूद्ध कठोर दण्डात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाना चाहियें। केवल ब्लैक लिस्टड करना काफी नहीं हैं।

12. इन संगठनों में प्रशिक्षित कार्मिकों हो  जिससे वे समस्याओं को समझकर,जन सहयोग से समाधान निकाल सके।

13. स्वैच्छिक संगठनों में महिलाओं की सहभागिता में वृद्धि होनी चाहियें। उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहियें।

14. संगठनों के मूल्यांकन और इनकी सूक्ष्म निगरानी के लिए एक प्रभावी और पारदर्शी तंत्र विकसित किया जाये। समय-समय पर इसकी निगरानीमूल्यांकन व सतत सुधार करके ही इनकी उपादेयता को बढ़ाया जा सकता हैं।

15. इन संगठनों एवं इनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों का प्रचार -प्रसार होना चाहिए ताकि जनता को जानकारी मिलती रहे। इनकी नियमित बैठक होनी चाहिए। बैठक में सरकारी प्रतिनिधिजनप्रतिनिधितथा महिला प्रतिनिधि को शामिल किया जाना चाहिए।

16. कई एन.जी.ओ. ने माइक्रो फाइनेंस कंपनिया भी चला रही रखी है जो जनता की मेहनत की कमाई प्रलोभन देकर एकत्रित करते रहते हैं और मौका देख कर भाग जाते हैं। फिर ऐसे लोगों पर कार्यवाही भी नहीं हो पाती है।(19)

17. स्वैच्छिक संगठनों को स्वयं भी अपना मूल्यांकन करते रहना चाहिए और अपनी कमियों/दोषों को दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए

निष्कर्ष उपर्युक्त सुझावों के द्वारा स्वयंसेवी संगठनों, उनकी नीतियों एवं कार्यप्रणाली में सुधार किया जा सकता हैं तथा विकास को गति प्रदान की जा सकती हैं। सुशासन में एन.जी.ओ.की महत्ती भूमिका हो सकती है यदि इनमें व्याप्त दोषों और बुराइयों को दूर किया जा सके। लोककल्याण के निमित्त व्यापक दायित्वों की पूर्ति मात्र राज्य के प्रयासों से ही संभव नहीं है बल्कि स्वैच्छिक संगठन इस कार्य में सार्थक भूमिका निर्वाह कर रहे हैं। ये सामाजिक कल्याणकारी संगठन लोकतंत्र के आधार स्तम्भों से ही एक है। मृदुला सिन्हा ने विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका व प्रेस के साथ स्वैच्छिक संगठनों को लोकतंत्र का पांचवा स्तम्भ कहा हैं। (20) प्रजातंत्र और सिविल सोसायटी एक दुसरे के पूरक हैं l प्रजातंत्र को गति शील करने, सरकारीतन्त्र को अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार बना कर सुशासन स्थापित कने में सिविल सोसायटी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैl लेकिन इन स्वैच्छिक संगठनों के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु इनका मजबूत आधार, पर्याप्त वित्तीय संसाधन, परिश्रमी एवं प्रशिक्षित कार्मिक, स्थानीय जन-सहयोग, सरकारी विभागों से समन्वय, कुशल सुदृढ़ नेतृत्व तथा कार्य की सामाजिक उपादेयता अति आवश्यक हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डॉ सुरेंद्र कटारिया: सामाजिक प्रशासन, आर.बी.एस.पब्लिशर्स जयपुर,। पृष्ठ संख्या 326 2. सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 भारत सरकार। 3. भारत न्यास अधिनियम 1882 भारत सरकार। 4. सहकारी समिति अधिनियम 1904 भारत सरकार। 5. भारतीय कम्पनी अधिनियम 1956 भारत सरकार। 6. राजस्थान संस्थायें पंजीकरण अधिनियम 1965 राजस्थान सरकार । 7. राजस्थान सहकारी समिति अधिनियम 2002 राजस्थान सरकार। 8. जैन नाभि कुमार: गैर सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए ज्ञानकोष -नाभि प्रकाशन, नई दिल्ली पृष्ठ संख्या 2 से 3 9 डॉ श्यामलाल पांडेय- प्राचीन भारत के विचारक एमव संसथान दिल्ली 1982 पृष्ठ संख्या 108 10. कार्यालय: सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग जयपुर व सीकर। 11. कार्यालय: महिला एवं बाल विकास विभाग जयपुर व सीकर। 12. डॉ सुरेंद्र कटारिया: सामाजिक प्रशासन आर.बी.एस. पब्लिशर्स जयपुर,पृ. संख्या 340 से 342 13. वहीं 14. वहीं 15. वहीं 16. विदेशी अंशदान (विनियम) अधिनियम 2010, गृह मंत्रालय भारत सरकार। 17. प्रो.मधु पूर्णिमा किश्वर संस्थापक मानुषी, लेख राजस्थान पत्रिका दिनांक 11 मई 2015(सीकर संस्करण) 18. श्री अरुण भगत,: पूर्व निदेशक आई.बी.लेख राजस्थान पत्रिका दिनांक 26 जून 2015 (सीकर संस्करण) 19. मुमताज मसीह:अध्यक्ष स्वैच्छिक क्षेत्र विकास केंद्र, लेख राजस्थान पत्रिका दिनांक 18 जून 2022 (सीकर संस्करण) 20. डॉ. मृदुला सिन्हा: पांचवा स्तम्भ मासिक पत्रिका, अंक अगस्त 2014, 21. राष्ट्रीय स्वैच्छिक संगठन नीति- 2007 भारत सरकार । 22. वार्षिक प्रतिवेदन- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, जयपुर। 23. कार्यालय- जिला कलेक्टर सीकर तथा महिला एवं अधिकारिता विभाग सीकर। 24. प्रमुख स्वैच्छिक संगठन- सीकर क्षेत्र। 25. पत्रिकाएं -सोशल वेलफेयर, राजस्थान विकास पांचवा स्तम्भ, इंडिया टुडे प्रतियोगिता दर्पण इत्यादि। 26. समाचार पत्र- दी हिंदुस्तान टाइम्स, नवभारतटाइम्स, राजस्थान पत्रिका तथा दैनिक भास्कर। 27. विभिन्न ई-संदर्भ । www.sje.rajasthan.gov.in www.krishi.rajasthan.gov.in www ngo.india.govt.in www rajswasthya.nic.in http::// statistics.rajasthan.gov.in http::://doitc.rajasthan.gov.in etc.