ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- IV July  - 2022
Anthology The Research
लिंग भेद के आधार पर डी.एल.एड. प्रशिक्षार्थी की सांवेगिक परिपक्वता का तुलनात्मक अध्ययन
D.L.Ed on The Basis of Gender Difference Comparative Study of Emotional Maturity of Trainee
Paper Id :  16181   Submission Date :  17/07/2022   Acceptance Date :  21/07/2022   Publication Date :  25/07/2022
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भुनेश्वर प्रसाद जायसवाल
सहायक प्राध्यापक
शिक्षाशास्त्र विभाग
डी.पी. विप्र शिक्षा महाविद्यालय
बिरकोना, बिलासपुर ,छत्तीसगढ़, भारत
सारांश ईश्वर की सर्वोत्तम कृति में मानव सर्वश्रेष्ठ रचना है। उसकी सर्व श्रेष्ठता उसमें निहित संवेगों के कारण है। इन संवेगों के कारण ही एक व्यक्ति सुख-दुःख, क्रोध-भय, कुष्ठा, प्रसन्नता एवं हर्ष इत्यादि भावनाओं का अनुभव करता है तथा उसी के अनुरूप वह अपने व्यवहार का परिचालन करता है। प्रस्तुत शोध अध्ययन का उद्देश्य लिंग भेद के आधार पर डी.एल.एड. कक्षा में अध्ययनरत प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता एवं उसके घटक सांवेगिक अस्थिरता एवं सामाजिक कुसमायोजन में सार्थक अंतर पाया जाता है या नहीं यही देखन के लिए शोध किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप पाया गया कि डी.एल.एड. कक्षा के पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों का लिंग भेद के आधार पर सांवेगिक परिपक्वतामें सार्थक अंतर नहीं पाया गया। वहीं सांवेगिक परिपक्वता के घटक सांवेगिक अस्थिर एवं सामाजिक कुसमायोजन में सार्थक अंतर नहीं पाया गया। इसका कारण यह है कि इस मानसिक स्तर पर पहुँचकर डी.एल.एड. कक्षा के पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थी सांवेगिक रूप से परिपक्व हो जाते है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Man is the best creation of God's best creation. All his superiority is due to the emotions inherent in him. Due to these emotions, a person experiences emotions like happiness-sadness, anger-fear, frustration, happiness and joy etc. and accordingly he conducts his behavior. The purpose of the present research study was to provide D.L.Ed. on the basis of gender differences. Research was done to see whether there is a significant difference in the emotional maturity of the trainees studying in the class and its components, emotional instability and social maladjustment, as a result of which it was found that D.L.Ed. No significant difference was found in the emotional maturity of the male and female trainees of the class on the basis of gender difference. On the other hand, there was no significant difference between the components of emotional maturity, emotional instability and social maladjustment. The reason for this is that after reaching this mental level, D.L.Ed. The male and female trainees of the class become emotionally mature.
मुख्य शब्द सांवेगिक परिपक्वता, सांवेगिक अस्थिरता, सामाजिक कुसमायोजन, लिंग भेद, डी.एल.एड. प्रशिक्षार्थी, तुलनात्मक अध्ययन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Emotional Maturity, Emotional Instability, Social Maladjustment, Gender Discrimination, D.L.Ed. Trainees, Comparative Studies.
प्रस्तावना
स्वतंत्र भारत में जनतांत्रिक आदर्शो के अनुसार देश में शिक्षा का पुर्नसंगठन और विस्तार करके सभी नागरिकों को शिक्षा का समान अवसर प्रदान किये जाने का प्रयास किया जा रहा है। आज भारत में शिक्षा एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय है जिसकी समस्याओं पर देश के नेताओं और शिक्षाविदो द्वारा गंभीर चिन्तन एवं विचार विमर्श किया जा रहा है। ईश्वर की सर्वोत्तम कृति में मानव सर्वश्रेष्ठ रचना है। उसकी सर्वश्रेष्ठता उसमें निहित संवेगों के कारण है, इन संवेगों के कारण ही एक व्यक्ति सुख-दुःख, क्रोध, भय, कुण्ठा, प्रसन्नता, हर्ष इत्यादि भावनाओं का अनुभव करता है तथा उसी के अनुरूप अपने व्यवहार का परिचालन करता है। “भावना एक अहसास है जो सागर के समान गहरा है तथा इसमे डूबने वाला व्यक्ति डूबते ही चला जाता है, भावना को ही हम संवेग के नाम से जानते हैं” “शिक्षा वह प्रकाश पुंज है जो एक व्यक्ति को अलौकिक करता है तथा उसके दुर्गुणो को सगुणो में परिवर्तित करता है” विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों नें शिक्षा को निम्नानुसार परिभाषित किया है- जाँन लॉक के अनुसार - “पौधो का विकास कृषि द्वारा और मनुष्य का विकास शिक्षा द्वारा होता है।” डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार - “शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का जन्मजात गुणो की खोज करना और प्रशिक्षण के द्वारा विकास करना है।”
अध्ययन का उद्देश्य 1. लिंग भेद के आधार पर डी.एल.एड. प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता का अध्ययन करना। 2. लिंग भेद के आधार पर डी.एल.एड. प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सांवेगिक अस्थिरता का अध्ययन करना। 3. लिंग भेद के आधार पर डी.एल.एड. प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सामाजिक कुसमायोजन का अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

1.साइनी रीता (2012)- कैरियर मैच्यूरिटी  एडोल्सेन्स इन रिलेशन टू देयर इमोशनल मैच्यूरिटी में अध्ययन किया।

निष्कर्ष - निष्कर्ष में पाया कि किशोरियों की अपेक्षा किशोरो में अधिक सांवेगिक परिपक्व होते है। 
2. एम.कुर (2001)  स्टडी  इमोशनल मैच्यूरटी ऑ एजेल्सेंस इन रिलेशन टू इन्टेलीजेन्सी ऐकेडमीक एचीवमेंट और इनवायरमेंट

निष्कर्ष - बुद्धिसमान्य बुद्धि और सांवेगिक परिपक्वता के मध्य सकरात्मक सह संबन्ध है।
3. गाखर (2003)- “इमोशनल मैच्चूरिटी  स्अूडेन्ट एट सेकेण्डरी स्टेज का अध्ययन
निष्कर्ष - इन्होने यह पाया कि जिस छात्र में बुद्धि ज्यादा होती है वह सांवेगिक रूप से अधिक परिपक्व होता हैक्योकि उसमें नियंत्रण करने की शक्ति अधिक होती है तथा लड़की से अधिक लड़कियां सांवेगिक परिपक्व होती है।

मुख्य पाठ

संवेग का अर्थ -
मनुष्य अपनी रोजाना की जिन्दगी में सुख, दुःख, भय, क्रोध, प्रेम, ईर्ष्या, घृणा आदि का अनुभव करता है वह ऐसा व्यवहार किसी उत्तेजनावश करता है यह अवस्था संवेग कहलाती है।
संवेगका अंग्रेजी शब्द है Emotion इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Emoverer (इमोस्टर) से हुई है, जिसका अर्थ है उत्तेजित होना, इस प्रकार संवेग की व्यक्ति का उत्तेजित दशा कहते है।
संवेग की परिभाषा -
1. वुडवर्थ के अनुसार-
संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।
2. क्रो व क्रो के अनुसार-
संवेग गतिशील आंतरिक समायोजन है, जो व्यक्ति के संतोष सुरक्षा और कल्याण के लिए कार्य करता है।
संवेग की विशेषताएँ-
 
साहित्यकारो की रचना में अनुभवात्मक शारीरिक स्थिति में परिवर्तन एवं शारीरिक क्रिया के प्रति अनुक्रिया करना व्यवहारात्मक पक्ष है ये सभी पक्ष संवेग की इन विशेषताओं से प्रकट होती है।

संवेगात्मक परिपक्वता-
स्वास्थ्य संवेगात्मक विकास का एक परिणाम बढ़ती हुई संवेगात्मक परिपक्वता होती है, संवेगात्मक परिपक्वता का प्रभाव मानव के सम्पूर्ण जीवन पर उसके संवेगात्मक व्यवहार को एक ही दिशा एवं व्यवस्था देने के रूप में पड़ता है, व्यक्ति अपनी बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक अनेक संवेगो से रूबरू होता है। किन्तु वास्तविक जीवन की परेशानियों एवं कठिनाइयों के समक्ष स्वयं को बहुत ही असहाय महसूस करने लगता हैं किसी भी प्रकार का संवेग जैसे- दुःख, सुख, घृणा, तनाव, चिन्ता, क्रोध उस पर अपना प्रभाव बहुत तीव्र गति से डालते है जिसमे व्यक्ति एकदम से उसके वशीभूत हो दुःख, घृणा आदि से व्यथित हो जाता है।
किशोरावस्था में बालक का संवेग परिपक्व होने लगता है, वह अपने परिवारिक सम्बंधों समाज द्वारा आपेक्षित व्यवहार तथा स्वयं के लाभ हानि के प्रति अधिक जागरूक रहता हैं वह सामाजिक बन्धन परिवार की सीमाओ आर्थिक कठिनाईयों तथा अपनी योग्यताओं और कमजोरियों को समझने लगता है, इन सब बातो का प्रभाव उसके संवेग प्रदर्शन तथा नियंत्रण पर अवश्य पड़ता है।
अध्ययन की आवश्यकता-
मानव समाज के उत्थान एवं राष्ट्र निर्माण के लिए मानव संसाधन का विकास शिक्षकों पर निर्भर करता है, ये सच्चे मित्र, दार्शनिक एवं पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाते है, शैक्षिक कार्य में इनका योगदान विशेषकर उत्तम, कुशल और गुणवान बालकों के विकास में महत्वपूर्ण और निर्णायक है। क्योकि किशोर की आत्मसम्प्रत्यय एवं सांवेगिक परिपक्वता शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है, क्योकि इसके बिना दी गयी शिक्षा अधूरी रह जायेगी और सफल नहीं होगी। अतः इस अभिप्रेरणा ने डी.एल.एड. प्रशिक्षार्थियों के सांवेगिक परिपक्वता का अध्ययन करने हेतु प्रेरित किया।

न्यादर्ष

प्रतिदर्श एक विस्तृत समूह का लघु अंश होता है, जिसमें समूह की सभी विशेषतायें या गुण विद्यमान होते है प्रतिदर्श में किसी सम्पूर्ण समूह का अध्ययन करने के स्थान पर उसके एक उपयोगी भाग का अध्ययन किया जाता है।
एक प्रतिदर्श जैसा कि इसके नाम से प्रकट है विस्तृत समूह का लघु प्रतिनिधि है।-गुडे और हाट
प्रस्तुत लघुशोध अध्ययन में बिलासपुर शहर के 04 डी.एल.एड. महाविद्यालयों से कुल 200 प्रशिक्षार्थियों को लिया गया है जिसमें 100 पुरूष प्रशिक्षार्थी और 100 महिला प्रशिक्षार्थी का चयन न्यादर्श के रूप में लिया गया है।
अध्ययन के चरांक -
वैज्ञानिक शोध कार्यो में चरों का अत्यधिक महत्व है, चरो की प्रकृति गुणात्मक न होकर परिभाषात्मक होते है, जिनमें किसी एक आयाम पर परिवर्तन होते रहते है।
c. करलिंगर के अनुसार-
चर एक प्रतीक है, जो कि अंको या मूल्यों के निश्चय है।इस प्रकार चर की प्रकृति परिवर्तनशील होती है।
1. स्वतंत्र चर -
प्रयोगकर्ता जिस कारक के प्रभाव का अध्ययन करना चाहता है और प्रयोग पर जिसका नियंत्रण रखता है उसे स्वतंत्र चर कहते है।
2. आश्रित चर -
आश्रित चर वे होते है। जिन पर स्वतंत्र चर का प्रभाव पड़ता है। अर्थात चर में परिवर्तन होने पर वे प्रभावित होते है।
       स्वतंत्र चर -    01. महिला प्रशिक्षार्थी
                     02. पुरूष प्रशिक्षार्थी
       आश्रित चर -    01. सांवेगिक परिपक्वता

प्रयुक्त उपकरण प्रस्तुत अध्ययन में उपकरण के रूप में EMS (Emational Maturity Scale) का प्रयोग किया गया है जिसे डॉ. यशवीर सिंह तथा डॉ. महेश भार्गव द्वारा 1990 ई. में निर्मित किया है इसमें विद्यार्थियों के सांवेगिक परिपक्वता के स्तर की जॉच होती है।
परिणाम

Ho1 - डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की लिंग भेद के आधार पर सांवेगिक परिपक्वता में कोई सार्थक अन्तर नही पाया जायेगा।


व्याख्या-
उपरोक्त सारणी 4.1 के विश्लेषण से स्पष्ट है कि पुरूष प्रशिक्षार्थियों के प्राप्तांकों का मध्यमान 173.23 एवं प्रमाणिक विचलन 17.69 तथा महिला प्रशिक्षार्थियों के प्राप्तांकों का मध्यमान 170.08 एवं प्रमाणिक विचलन 14.89 है। जिसकी सार्थकता के परीक्षण हेतु क्रांतिक अनुपात (CR) की गणना की गयी, जिसका मान 1.362 है। जो कि स्वतंत्र कोटि 198 के आपेक्षित मान 0.01 स्तर पर अपेक्षित मान 2.60 से कम है। अतः प्राप्त CR का मान असार्थक है।
परिणाम- Ho1 परिकल्पना स्वीकृत हुई।
निष्कर्ष-
प्राप्त परिणाम से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की लिंग भेद के आधार पर सांवेगिक परिपक्वता में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है। इसका कायण यह हो सकता है कि इस मानसिक स्तर पर पहुँच कर दानों ही सांवेगिक रूप से परिपक्व हो जाते है।
Ho2 - डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सांवेगिक अस्थिरता में कोई सार्थक अन्तर नही पाया जायेगा।

व्याख्या-
उपरोक्त सारणी 4.2 के विश्लेषण से स्पष्ट है कि पुरूष प्रशिक्षार्थियों के प्राप्तांकों का मध्यमान 53.84 एवं प्रमाणिक विचलन 8.4 तथा महिला प्रशिक्षार्थियों के प्राप्तांकों का मध्यमान 50.97 एवं प्रमाणिक विचलन 8.5 है। जिसकी सार्थकता के परीक्षण हेतु क्रांतिक अनुपात (CR) की गणना की गयी, जिसका मान 2.39 है। जो कि स्वतंत्र कोटि 198 के आपेक्षित मान 0.01 स्तर पर अपेक्षित मान 2.60 से कम है। अतः प्राप्त CR का मान असार्थक है।
परिणाम- Ho2 परिकल्पना स्वीकृत हुई।
निष्कर्ष-
प्राप्त परिणाम से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सांवेगिक अस्थिरता में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है।
Ho3 - डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक समाजिक कुसमायोजन में कोई सार्थक अन्तर नही पाया जायेगा।

व्याख्या-
उपरोक्त सारणी 4.3 के विश्लेषण से स्पष्ट है कि पुरूष प्रशिक्षार्थियों के प्राप्तांकों का मध्यमान 52.67 एवं प्रमाणिक विचलन 9.09 तथा महिला प्रशिक्षार्थियों के प्राप्तांकों का मध्यमान 51.93 एवं प्रमाणिक विचलन 9.95 है। जिसकी सार्थकता के परीक्षण हेतु क्रांतिक अनुपात (ब्त्) की गणना की गयी, जिसका मान 0.55 है। जो कि स्वतंत्र कोटि 198 के आपेक्षित मान 0.01 स्तर पर अपेक्षित मान 2.60 से कम है। अतः प्राप्त ब्त् का मान असार्थक है।
परिणाम- Ho3 परिकल्पना स्वीकृत हुई।
निष्कर्ष-
प्राप्त परिणाम से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक समाजिक कुसमायोजन में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है।
परिकल्पना के परीक्षण से प्राप्त परिणाम एवं निष्कर्ष
Ho1   डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की लिंग भेद के आधार पर सांवेगिक परिपक्वता में कोई सार्थक अन्तर नही पाया जायेगा।
परिणाम- Ho1 परिकल्पना स्वीकृत हुई।
निष्कर्ष- डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की लिंग भेद के आधार पर सांवेगिक परिपक्वता में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है।
Ho2 - डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सांवेगिक अस्थिरता में कोई सार्थक अन्तर नही पाया जायेगा।
परिणाम- Ho2 परिकल्पना स्वीकृत हुई।
निष्कर्ष- डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सांवेगिक अस्थिरता में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है।
Ho3 - डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सामाजिक कुसमायोजन में कोई सार्थक अन्तर नही पाया जायेगा।
परिणाम- Ho3 परिकल्पना स्वीकृत हुई।
निष्कर्ष- डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सामाजिक कुसमायोजन में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है। 

निष्कर्ष 1. डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की लिंग भेद के आधार पर सांवेगिक परिपक्वता में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है। 2. डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक सांवेगिक अस्थिरता में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है। 3. डी.एल.एड. पुरूष व महिला प्रशिक्षार्थियों की सांवेगिक परिपक्वता के घटक समाजिक कुसमायोजन में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया है।
अध्ययन की सीमा प्रस्तुत शोध अध्ययन निर्धारित समय सीमा को ध्यान में रखते हुए परिसीमन किया गया है जो निम्न है-
a. यह अध्ययन वर्तमान सत्र 2018-2020 में छ.ग. माध्यमिक शिक्षा मण्डल द्वारा मान्यता प्राप्त डी.एल.एड. महाविद्यालय तक सीमित है।
b. यह अध्ययन छ.ग. राज्य के बिलासपुर शहर के डी.एल.एड. महाविद्यालय तक ही सीमित है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. अस्थाना डॉ. विपिन, श्रीवास्तव, विजया, अस्थाना निधि (2012-13)- “शैक्षिक अनुसंधान एवं सांख्यिकी“, अग्रवाल पब्लिकेशन्स, आगरा, उ.प्र. पृष्ठ 183-190, 669-670 2. एम.कुर (2001)- “ए स्टडी ऑफ इमोशनल मैच्यूरटी आॅफ एजेल्सेंस इन रिलेशन टू इन्टेलीजेन्सी ऐकेडमीक एचीवमेंट और इनवायरमेंट” कम्पेरेटिव एजूकेशन रिव्यू, टवस.2ए च्.12 3. कपिल, डॉ. एच.के. (2010)- “अनुसंधान विधियों”, भार्गव बुक हाऊस, आगरा, उ.प्र., 66-69 4. कौल लोकेश (2009)- “शैक्षिक अनुसंधान की कार्यप्रणाली”, विकास पब्लिसिंग हाउस प्रा.लि नई दिल्ली 94-97 5. पाठक, पी.डी. (2011) - “शिक्षा मनोविज्ञान“, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, उ.प्र. पृष्ठ 509, 510, 541 6. भट्नागर, सुरेश (2007) - शिक्षा अनुसंधान, आर. लाल बुक डिपो, मेरठ, पृष्ठ 47-55 7. शर्मा आर.ए. (2007) - “शिक्षा अनुसंधान”, आर. लाल बुक डिपो, मेरठ, उ.प्र. पृष्ठ 75, 80