P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- XI July  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामः उसके निहितार्थ एवं भविष्य की राह
Assembly Election Results of Five States: Its Implications and Future Path
Paper Id :  16260   Submission Date :  03/07/2022   Acceptance Date :  17/07/2022   Publication Date :  25/07/2022
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विकास कुमार शर्मा
सहायक आचार्य
राजनीति विज्ञान
राजकीय महाविद्यालय
बूंदी,राजस्थान, भारत
सारांश इस समय संपूर्ण देश में अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम की चर्चा जोरों पर है। अभी हाल ही में भारतीय चुनाव आयोग ने 10 मार्च, 2022 को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर सहित गोवा में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों की वैधानिक घोषणा की है। ये चुनाव परिणाम चुनाव पूर्व लगाए गए उन तमाम एग्जिट पोल, जन अनुमानों एवं उम्मीदों के विरुद्ध बहुत चौंकाने वाले रहे। इन चुनाव परिणामों ने चुनाव पूर्व लगाए गए राजनीतिक दलों के सभी कयासों एवं सभी जन उम्मीदों को सिरे से खारिज कर दिया है। जैसे ही चुनाव आयोग ने चुनाव परिणामों की घोषणा की उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ पुनः सत्ता प्राप्त की है, वही पंजाब में आम आदमी पार्टी ने लगभग दो तिहाई बहुमत से सत्ता प्राप्त कर एक नया रिकॉर्ड बना दिया है। इन चुनाव परिणामों से अब यह भी तय है कि, ये चुनाव केंद्र की राजनीति पर भी व्यापक असर डालेंगे। इन चुनाव परिणामों से नए सियासी बदलाव सामने आएंगे। केंद्र सरकार के फैसले, राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के चयन, राज्यसभा चुनाव, आगामी राज्यों के विधानसभा के चुनाव एवं लोकसभा चुनाव- 2024 समेत कई राष्ट्रीय मुद्दों पर इन चुनावी नतीजों की गूंज एवं प्रभाव साफ महसूस किया जा सकेगा। उत्तर प्रदेश में 37 वर्ष बाद किसी दल की सरकार पुनः सत्ता में लौटी है। स्वतंत्रता के बाद यह पहली बार हुआ है कि, भाजपा को सत्ता में वापसी कराने वाले योगी आदित्यनाथ लगातार दूसरी बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने है, वहीं उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार किसी दल की सरकार बनी है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद At this time, the discussion of the results of the recent assembly elections of five states is in full swing all over the country. More recently, the Election Commission of India has made a statutory declaration of the assembly election results of five states including Uttar Pradesh, Uttarakhand, Punjab, Manipur and Goa on March 10, 2022. These election results should be very shocking against all those exit polls, public projections and expectations done before the election. These election results have completely rejected all the speculations and all the public hopes made by the political parties before the election. As soon as the Election Commission announced the election results, in the assembly elections of Uttar Pradesh, Uttarakhand, Goa and Manipur, the BJP regained power with a thumping majority, while in Punjab the Aam Aadmi Party won a new one by winning almost two-thirds majority. Record has been made. It is now also certain from these election results that, these elections will have a huge impact on the politics of the Center as well. New political changes will emerge from these election results. The echo and impact of these election results can be clearly felt on many national issues including the decisions of the central government, the selection of the President-Vice President, Rajya Sabha elections, the upcoming state assembly elections and the Lok Sabha elections - 2024. After 37 years in Uttar Pradesh, the government of any party has returned to power. This is the first time after independence that Yogi Adityanath, who brought the BJP back to power, has become the Chief Minister of Uttar Pradesh for the second time in a row, while in Uttarakhand, for the second time in a row, a party has formed the government.
मुख्य शब्द भारतीय चुनाव आयोग, पूर्वोत्तर, पश्चिमी तटीय राज्य, आम आदमी पार्टी, सीमावर्ती एवं संवेदनशील, क्षेत्रीय दल, उत्तर प्रदेश, पूर्ण बहुमत।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Election Commission of India, Northeast, West Coast States, Aam Aadmi Party, Frontier, Sensitive, Regional Parties, Uttar Pradesh, Absolute Majority.
प्रस्तावना
पूर्वोत्तर में मणिपुर और पश्चिमी तटीय राज्य गोवा में भी भाजपा की सत्ता में वापसी हुई है। दूसरी ओर सीमावर्ती और संवेदनशील राज्य पंजाब में आम आदमी पार्टी की पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार सामने आई है। आदमी पार्टी आम आदमी पार्टी ऐसा क्षेत्रीय दल बन गया है जो दिल्ली से आगे निकल कर दूसरे राज्य पंजाब में भी सरकार बनाने में सफल हुआ है। इस लेख के माध्यम से हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि, क्या आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त कर सकती है एवं इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की आगामी राजनीति पर क्या दूरगामी प्रभाव डालेंगे।
अध्ययन का उद्देश्य 1. इस शोध पत्र इस बात पर बल दिया गया है कि, अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम सभी पूर्व अनुमानों को खारिज करते हुए बहुत चौंकाने वाले रहे। इनसे राष्ट्र की आगामी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, राज्यसभा एवं राष्ट्रपति के चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा। 2. केंद्रीय चुनावों के बाद राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती हुई भूमिका का अध्ययन करना। 3. उत्तर प्रदेश में लगभग 37 वर्षों बाद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में किसी एक दल की दोबारा पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने के पीछे के मूलभूत कारकों का अध्ययन करना। 4. दिल्ली के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी के बढ़ते हुए वर्चस्व का अध्ययन करना। क्या यह पार्टी राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त कर पाएगी।
साहित्यावलोकन

1. प्रणव राय, दोराब आर सोपारीवाला, (2019) भारतीय जनादेश चुनाव का विश्लेषण। इस पुस्तक में यह बताया गया है कि, वे कौन से मुख्य कारक हैं, जो भारत में चुनाव जीतने या हारने की वजह बनते हैं। इस पुस्तक में उन सभी विषयों पर प्रकाश डाला गया है, जो चुनावी गतिविधियों से संबंधित होते हैं। जैसे- सत्ता विरोधी युग का अंत है, चुनावों के ओपिनियन पोल एवं एक्ज़िट पोल की विश्वसनीयता, भारतीय महिलाओं के मत का महत्व, चुनावों में उम्मीदवारों के चयन का चुनावी नतीजों पर प्रभाव, इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के साथ छेड़छाड़ का संदेह आदि विषयों पर विश्लेषणात्मक टिप्पणी की गई है।

2. शिव शंकर सिंह, (2019) हाउ टू विन इंडियन इलेक्शन। इस पुस्तक में लेखक द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि, चुनाव अभियानों में राजनीतिक सलाहकार क्या भूमिका निभाते हैं, राजनीतिक दल प्रभावी, सूक्ष्म-लक्षित अभियानों के निर्माण के लिए डेटा विश्लेषण, सर्वेक्षण, वैकल्पिक मीडिया जैसे तकनीकी उपकरणों का उपयोग कैसे कर रहे हैं। धन का उपयोग चुनाव परिणामों को कैसे प्रभावित करता है? विभाजनकारी प्रचार फर्जी खबरों के व्यापक प्रसार में कैसे मदद करता है? वर्तमान में भारत में चुनाव जीतने के लिए क्या करना होगा तथा देश की आगामी राजनीति का भविष्य क्या होगा आदि।

3. प्रशांत झा, अनुवादक अनूप कुमार भटनागर, (2017) कैसे जीतती है भाजपा। इस पुस्तक में यह बताया गया है कि, नोटबंदी और जीएसटी के सवाल के बावजूद भी भाजपा को चुनावों में नुकसान क्यों नहीं हुआ? इस पुस्तक में भाजपा की जीतने की कहानी नहीं, बल्कि हर उस पहलू पर चर्चा है, जिससे प्रधानमंत्री मोदी का व्यक्तित्व इतना बड़ा बना है। भाजपा के चुनावी प्रबंधन, लगभग 30 वर्षों बाद केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार से लेकर मोदी की हर उस रणनीति की चर्चा की गयी है, जिससे भाजपा चुनावों में अपनी सफलता बनाए हुए है।

4. प्रणव राय, दोराब आर सोपारी वाला, (2019) द वर्डिक्ट: डिकोडिंग इंडियाज इलेक्शन। लेखक विगत चार दशक से भारत में चुनावी विश्लेषण को समझने और समझाने के काम में जुटे हुए हैं। दोराब आर. सुपारीवाला के साथ लिखी गई उनकी यह किताब "द वर्डिक्ट, डिकोडिंग इंडियाज इलेक्शन" भारत के चुनावी इतिहास की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसके माध्यम से मतदाताओं के साथ ही राजनीतिक दलों के व्यवहार को समझने में मदद मिलती है। पांच खंडों की यह पुस्तक एक तरह से भारत का संक्षिप्त चुनावी इतिहास है, जिसमें पहले आम चुनाव से लेकर अभी तक हुए लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनावों का आंकड़ों और ग्राफ के साथ विश्लेषण किया गया है।

मुख्य पाठ

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम

भारतीय चुनाव आयोग द्वारा 8 जनवरी, 2022 को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के लिए मतदान कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई। इस बार विधानसभा चुनावों पर कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने शुरुआती दिनों में रैलियों, जनसभाओं, रोड शो तथा मोटरसाइकिल रैलियों पर रोक लगाई थी। इसके बाद धीरे-धीरे चुनाव प्रचार के साथ-साथ मतदान की प्रक्रिया शुरू हुई।

उत्तर प्रदेश का चुनाव कार्यक्रम

भारतीय चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश की अधिक आबादी एवं राजनीतिक अहमियत को ध्यान में रखते हुए सात चरणों मे चुनाव कराने का फैसला किया था। भारत की लगभग 16.17 प्रतिशत आबादी अकेले इस राज्य में रहती है, वहीं भारत का 7.3 प्रतिशत भू-भाग इस राज्य के अंतर्गत आता है। उत्तर प्रदेश से 80 लोकसभा सदस्य, 31 राज्यसभा सदस्य, 403 विधानसभा सदस्यों सहित 100 विधान परिषद सदस्य भी चुने जाते हैं। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी से लेकर कांग्रेस, सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी आदि के शीर्ष नेताओं ने रैलियां कर जीत के लिए अपना पूरा जोर लगाया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 7 चरणों में आयोजित किए गए, जो निम्न प्रकार है-

1. पहले चरण का मतदान 10 फरवरी, 2022
2. दूसरे चरण का मतदान 14 फरवरी, 2022
3. तीसरे चरण का मतदान 20 फरवरी, 2022
4. चौथे चरण का मतदान 23 फरवरी, 2022
5. पांचवे चरण का मतदान 27 फरवरी, 2022
6. छठवें चरण का मतदान 3 मार्च, 2022

7. सातवें चरण का मतदान 7 मार्च, 2022

इन सात चरणों में राज्य की कुल 403 सीटों के लिए शांति पूर्ण मतदान किया गया है। जिसके चुनाव परिणामों में 273 सीटों पर जीत दर्ज कर भाजपा गठबंधन ने सत्ता में दोबारा अपनी सफलता हासिल की है। चुनाव आयोग के मुताबिक, प्रदेश की सभी 403 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 255 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसके अलावा, भाजपा के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 12 सीटों पर तथा निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) ने 6 सीटों पर जीत हासिल की है।

राज्य की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) ने 111 सीटों पर जीत दर्ज कर दूसरे स्थान पर रही। सपा के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल ने 8 और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके साथ ही 2 सीटें जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के खाते में गईं। 

प्रमुख राष्ट्रीय दल कांग्रेस मात्र दो सीटें ही जीत पाई है, जबकि कभी उत्तर प्रदेश की एक बड़ी सियासी ताकत रही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मात्र एक सीट पर ही जीत हासिल कर सकी। इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 4,442 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें 560 महिलाएं थीं। इनमें से 33 महिला उम्मीदवार जीत का परचम लहराने में सफल रहीं। सबसे अधिक 25 महिलाएं भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीतीं। वहीं, समाजवादी पार्टी की 6 और कांग्रेस की एक महिला प्रत्याशी जीती। वही, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में 38 महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 में विभिन्न दलों को प्राप्त सीटें एवं मत प्रतिशत निम्न प्रकार है-


उत्तराखंड का चुनाव कार्यक्रम

उत्तराखंड पहाड़ी अंचल में समाया हुआ एक सीमावर्ती राज्य हैं, जो लम्बे समय से उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा रहा है। केन्द्रीय चुनाव आयोग ने उत्तराखंड की सभी 70 सीटों पर एक ही चरण में 14 मार्च, 2022 को विधानसभा चुनाव कराने का फैसला किया। उत्तराखंड के चुनाव परिणाम भी अभूतपूर्व रहे हैं, इसके चुनाव परिणामों में एक बार पुनः भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करके एक रिकॉर्ड बनाया है। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव-2022 में विभिन्न दलों को प्राप्त सीटें एवं मत प्रतिशत निम्न प्रकार है-


पंजाब का चुनाव कार्यक्रम

केन्द्रीय चुनाव आयोग ने पंजाब में सिर्फ एक चरण में मतदान कराने का फैसला किया। चुनाव आयोग के इस फैसले पर राजनीतिक दलों की ओर से सवाल भी उठाया गया। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने पहले 14 फरवरी, 2022 को पंजाब में मतदान कराने का फैसला किया था लेकिन चुनाव आयोग ने तारीख आगे बढ़ाने का फैसला किया। इसके बाद पंजाब की सभी 117 सीटों पर 20 फरवरी, 2022 को मत डाले गए। पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार भगवंत मान, मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू के बयान काफी चर्चा में रहें। पंजाब की सभी 117 विधानसभा सीटों पर हुए मतदान के परिणामों के अनुसार आम आदमी पार्टी ने कुल 92 सीटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। पंजाब विधानसभा चुनाव-2022 में विभिन्न दलों को प्राप्त सीटें एवं मत प्रतिशत निम्न प्रकार है-


गोवा का चुनाव कार्यक्रम

गोवा एक छोटा सा तटवर्ती राज्य हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। केन्द्रीय चुनाव आयोग ने गोवा में एक चरण में मतदान कराने का फैसला किया। इसके बाद 14 फरवरी, 2022 को गोवा की सभी 40 सीटों पर मतदान किया गया, जिसके चुनाव परिणामों में भाजपा को जीत प्राप्त हुई। गोवा विधानसभा चुनाव-2022 में विभिन्न दलों को प्राप्त सीटें एवं मत प्रतिशत निम्न प्रकार है-


मणिपुर का चुनाव कार्यक्रम

पूर्वोत्तर के सात बहनों वाले प्रदेश में मणिपुर एक महत्वपूर्ण राज्य हैं। भारतीय चुनाव आयोग ने मणिपुर विधानसभा चुनाव की सभी 60 सीटों पर दो चरणों में 27 फरवरी और 3 मार्च, 2022 को मतदान कराने का फैसला किया। इसके बाद नियत तिथि को मणिपुर की सभी 60 सीटों पर मत डाले गए। जिसके नतीजों में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। मणिपुर विधानसभा चुनाव-2022 में विभिन्न दलों को प्राप्त सीटें एवं मत प्रतिशत निम्न प्रकार है-


इन पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत और हार किसी भी दल की हो लेकिन आने वाले दिनों में इन चुनाव परिणामों की छाप भारतीय राजनीतिक घटनाक्रमों के लिए कई मायनों में अहम साबित होंगी।

परिणाम

पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव के निहितार्थ

अभी हाल ही में संपन्न हुए पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव-2022 के नतीजों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की सत्ता में भाजपा ने वापसी कर सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) के सभी दावों को खारिज कर दिया। वहीं, पंजाब में आम आदमी पार्टी  ने सभी को चौंकाते हुए राष्ट्रीय कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल जैसे पुराने और स्थापित दलों को राजनीतिक रूप से हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि, अरविंद केजरीवाल का ‘‘दिल्ली मॉडल‘‘ अब पंजाब में भी स्थापित होने की राह पर आगे बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश में कई दिग्गज राजनेताओं की चुनावी हार-जीत के बीच भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत दर्ज की है, तो वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने 117 में से 92 सीटें जीतकर सभी पुराने राजनीतिक दलों को क्लीन स्वीप कर दिया है। ध्यान रहें केंद्रीय चुनावों एवं राज्यों के चुनावों में मुख्य केंद्रीय दल राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार घटता जा रहा है। कांग्रेस के सीमित होते जा रहें चुनावी प्रदर्शन से केन्द्र एवं राज्यों में मजबूत विपक्ष की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। कांग्रेस के निरंतर सीमित हो रहे जनादेश के कारण आने वाला समय और भी मुश्किल भरा होने वाला है। इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के निहितार्थ निम्न प्रकार हैं-

1. किसान आंदोलन खारिज

देश में कृषि कानूनों के विरुद्ध डेढ़ वर्ष से भी अधिक समय से किसान आंदोलन चल रहा था। जिसका प्रभाव मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा एवं दिल्ली की सीमा से लगते हुए राज्यों में अधिक रहा। केंद्र सरकार ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव आचार संहिता लगने से पूर्व ही विवादित तीनों कृषि कानूनों को वापस लेकर किसान आंदोलन को समाप्त कर दिया है। किसान आंदोलन को लेकर सियासी माहौल बनाने में किसान नेता राकेश टिकैत समेत कई किसान नेताओं ने कोई कोताही नहीं छोड़ी थी। इन चुनावों में किसान आंदोलन की वजह से जाट समुदाय के भी भाजपा से दूरी बनाने का दावा किया जा रहा था। इसी को भांपते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जाट नेता और आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन भी कर लिया था। अखिलेश यादव को भरोसा था कि, मुस्लिम वोट पहले से ही समाजवादी पार्टी के साथ है। यदि इसमें जाट समुदाय के वोट और जुड़ जाए तो वो जीत के करीब पहुंच जाएंगे। यह किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं में कोई विशेष प्रभाव बनाने में कामयाब नहीं हो सका। किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान होने की संभावना जताई गई थी, किन्तु वहां यह मुद्दा बेअसर ही रहा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 136 विधानसभा सीटों में से 93 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की है। वहीं, समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन को मात्र 43 सीटें ही मिलीं है। इतना ही नहीं, लखीमपुर खीरी की उन 8 विधानसभा सीटों पर भी भाजपा ने क्लीन स्वीप किया, जो आंदोलन के दौरान किसानों के कुचले जाने की घटना के बाद से पार्टी के लिए सिरदर्द मानी जा रही थीं।

पंजाब से शुरू हुए किसान आंदोलन को तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुलकर समर्थन दिया था। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के लाल किला पर अराजकता फैलाने के दोषियों को कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब सरकार ने वकील तक उपलब्ध करवाए थे। यदि वास्तव में देखा जाए, तो किसान आंदोलन को खाद-पानी देने में पंजाब की कांग्रेस सरकार का ही हाथ था। लेकिन, पंजाब चुनाव नतीजों पर नजर डालें, तो किसान आंदोलन का समर्थन भी कांग्रेस के काम नहीं आया। इस बार पंजाब में भाजपा को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं हुआ लेकिन पिछले चुनाव में भी भाजपा यहाँ कोई बहुत बड़ी पार्टी नहीं थी। पंजाब में इस बार के विधानसभा चुनाव में कई किसान संगठनों ने भी विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन, किसान आंदोलन का फायदा इन किसान नेताओं को भी नहीं मिल सका। यदि आसान शब्दों में कहा जाए, तो पंजाब से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक किसान आंदोलन को मतदाताओं ने मुद्दा मानने से ही इनकार कर दिया। वैसे, चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेते समय कहा था कि,- ‘‘कृषि कानूनों के संबंध में कुछ लोगों को हम समझाने में नाकाम रहें।‘‘ इससे ऐसा माना जा सकता है कि, प्रधानमंत्री मोदी के इस कथन ने बहुसंख्यक छोटी जोत वाले किसानों का गुस्सा कम कर दिया था।

2. जातीय समीकरण खारिज

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा को फंसाने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल तक जातीय समीकरणों का चक्रव्यूह रचा था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के साथ गठबंधन कर जाट समुदाय को साधने की कोशिश की। इसके साथ ही ओमप्रकाश राजभर के सुभासपा, कृष्णा पटेल के अपना दल (कमेरावादी) समेत कई छोटे दलों से गठबंधन कर गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं को भी साधने की कोशिश की। इतना ही नहीं, योगी सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं और विधायकों को यूपी विधानसभा चुनाव- 2022 से ठीक पहले समाजवादी पार्टी में शामिल कर मुस्लिम-यादव गठजोड़ के साथ एससी, ओबीसी मतदाताओं की ताकत को जोड़ने की कोशिश की। लेकिन, इन तमाम राजनीतिक समीकरणों के बावजूद अखिलेश यादव को जीत हासिल नहीं हो सकी। हालांकि, समाजवादी पार्टी का वोट शेयर पिछले चुनाव की तुलना में यूपी विधानसभा चुनाव- 2022 में बढ़ा है। लेकिन, ये इतना नहीं रहा कि अखिलेश यादव को सीएम की कुर्सी तक पहुंचा सकें।

3. सपा का आंतरिक क्लेश

अखिलेश यादव ने यूपी में भाजपा के खिलाफ बढ़त लेने की भरपूर कोशिश की। जिन माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की बुलडोजर नीति की तारीफ हो रही थी। जबकि समाजवादी पार्टी ने कुछ माफियाओं और अपराधियों को गठबंधन के अन्य दलों के जरिये बैकडोर से एंट्री कराने की कोशिश की। जातीय समीकरणों और मुस्लिम-यादव गठजोड़ के भरोसे पूरा यूपी विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने की कोशिश कर रहे अखिलेश यादव अति उत्साह में जमीनी रणनीति बनाने में नाकाम रहें। इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी पर गुंडई और दबंगई जैसे आरोपों को दूर करने की जगह अखिलेश यादव की भाषा में भी आक्रामकता नजर आने लगी। साथ ही समाजवादी पार्टी का आंतरिक क्लेश एवं स्वयं अखिलेश यादव के परिवार का आंतरिक क्लेश भी उसकी हार का मुख्य कारण रहा। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गयी थी

4. आम आदमी पार्टी का बढ़ता प्रभाव

यदि समीक्षात्मक दृष्टि से देखा जाए तो आम आदमी पार्टी सहित अन्य क्षेत्रीय दलों का बढ़ता प्रभाव न केवल अपना जनाधार बढ़ा रहा है, अपितु कांग्रेस के लिए भी खतरे की घंटी साबित हो रहा है। गोवा और मणिपुर में कांग्रेस लगातार सिमटती जा रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास वैसे भी कुछ खास करने को नहीं बचा था। लेकिन, यहाँ भी वह अपनी दुर्गति होने से नहीं रोक सकी और मात्र दो सीटों पर ही सिमट गई। पंजाब की बात करें, तो कांग्रेस के पास सत्ता में आने का मौका था। लेकिन, अपने आंतरिक मनमुटाव, गलत फैसलों और कमजोर रणनीतियों की वजह से पंजाब में कांग्रेस दोबारा सत्ता में वापसी करने में कामयाब नहीं हो सकी। पंजाब में आम आदमी पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में ही अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुकी थी। लेकिन, कांग्रेसी खेमे में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सालों तक चली खींचतान, नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस आलाकमान को धमकी, चरणजीत सिंह चन्नी को दलितों में पैंठ रखने वाला चेहरा मानने की गलती, हिंदू मतदाताओं पर प्रभाव रखने वाले सुनील जाखड़ को साइडलाइन किए जाने जैसी कई गलतियों से बने ‘‘राजनीतिक अंतराल‘‘ में आम आदमी पार्टी पूरी तरह से फिट हो गई और पंजाब की कुल 117 सीटों में से 92 सीटों पर एक तरफा जीत हासिल कर सत्ता प्राप्त करने में कामयाब हो गयी।

पंजाब में आप दल की रिकॉर्ड जीत के बाद अरविंद केजरीवाल अब आम आदमी पार्टी को हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जो सीधे तौर पर कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। वहीं, गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड में भाजपा ने कांग्रेस को पूरी तरह से राजनीतिक हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है। बीते कुछ चुनावों पर नजर डालें, तो इन पांचों चुनावी राज्यों में कांग्रेस का वोट शेयर बहुत तेजी से कम हुआ है। उत्तर प्रदेश में तो यह लगभग समाप्ति की ओर ही है। इस स्थिति में कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव-2024 में रायबरेली सीट बचाना भी मुश्किल हो जाएगा, जहाँ से सोनिया गांधी सांसद हैं। बीते कुछ वर्षों में कांग्रेस के कई नेता पार्टी से किनारा कर चुके हैं। भविष्य में ये संख्या और भी बढ़ सकती है। वहीं, जी-23 नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार के खिलाफ ही मोर्चा खोल रखा है। देखा जाए, तो कांग्रेस अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में हैं। लेकिन, हालात ऐसे ही रहे, तो भविष्य में अरविंद केजरीवाल और भाजपा इन राज्यों में भी कांग्रेस के लिए खतरा बन सकते हैं।

5. प्रधानमंत्री मोदी का प्रभाव

आज एक मजबूत राजनीतिक दल के तौर पर भाजपा का अपना व्यापक जनाधार है। साथ ही भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक कल्टके तौर पर स्थापित हो चुके हैं। भाजपा के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा केवल उनके नाम की वजह से ही भाजपा के साथ जुड़ा हुआ है। भाजपा ने वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 325 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता प्राप्त की है। भाजपा ने यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा था। चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने और उन्होंने भी अपने नाम पर एक मजबूत वोट बैंक तैयार किया। इस बार के विधानसभा चुनावों में भी मोदी मैजिक ही रहा, जिसने भाजपा को पांच राज्यों के चुनावों में 4-1 से सत्ता प्राप्त करने में मदद की है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावों के दौरान पांचों राज्यों में लगभग 12 वर्चुअल, 32 भौतिक रैलियां की। जिनमें से 19 भौतिक रैलियां तो केवल उत्तर प्रदेश में की गई थीं। चुनाव प्रचार के लिहाज से देखें, तो प्रधानमंत्री मोदी ने इन 19 रैलियों के जरिये 192 विधानसभा सीटों तक अपनी पहुँच बनाई और इन सीटों में से 134 विधानसभा सीटें भाजपा के खाते में आईं। यह कहना गलत नहीं होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी का नाम आते ही चुनाव में सारे सियासी और जातीय समीकरण ध्वस्त हो जाते हैं।

6. विकासवादी चुनावी एजेंडा

इन पांचों राज्यों के चुनावों में विकास एकमात्र कॉमन मुद्दा कहा जा सकता है। इनमें से चार राज्यों में विकास के मुद्दे पर जनता ने अपनी मुहर भी लगाई है। वहीं, पंजाब में भाजपा सत्ता में नहीं थी न ही पंजाब में कभी मोदी लहर का असर दिखाई दिया, तो इस बार भी राज्य में भाजपा दो सीटें ही जीत सकी। हालांकि, उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक के राज्यों में भाजपा की लोक कल्याणकारी योजनाओं का जमकर प्रभाव नजर आया।  मुफ्त राशन, मुफ्त टीकाकरण, पीएम आवास योजना, गरीबों को मुफ्त बिजली, मुफ्त शौचालय, कोविड टीकाकरण एवं कोविड-19 महामारी के दौरान प्रबंधन जैसी योजनाओं के जरिये भाजपा ने एक लाभार्थी वोट बैंक खड़ा कर दिया है। जो जाति, वर्ग आदि के सियासी समीकरणों से ऊपर उठकर भाजपा के लिए वोट करते हैं।

7. प्रशासनिक शक्तिकरण

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में माफियाओं, भ्रष्टाचारियों एवं गुंडागर्दी करने वाले लोगों पर शिकंजा कसना, सुरक्षित कानून व्यवस्था, महिला सुरक्षा और दंगाइयों पर कड़ी कार्रवाई करना पूरे चुनावों के दौरान भाजपा और सीएम योगी आदित्यनाथ के नाम के साथ फ्लैगशिप की तरह नजर आए। वास्तव में योगी सरकार के प्रथम कार्यकाल के दौरान किसी की संपत्ति का हरण नहीं होना, एक भी दंगा नहीं होना एवं आम गरीब व्यक्ति का भी अपने आपको सुरक्षित महसूस करना इस बात को दर्शाता है कि, योगी प्रशासन ‘‘आम आदमी में विश्वास एवं अपराधियों में भय‘‘ के आधार पर काम कर रहा है।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों का प्रभाव

चुनावों की तारीख घोषित होने से पहले ही यह स्पष्ट था कि, इन चुनावों के नतीजों पर क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ बीजेपी, कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों का बहुत कुछ दांव पर लगा है। इस वजह से ये जानना अहम हो जाता है कि, इन राज्यों में हुए चुनावों का असर किन पर एवं कैसे पड़ेगा।

अभी हाल ही में हुए इन राज्यों के  विधानसभा चुनाव परिणामों का प्रभाव केंद्र सरकार के अनेकों फैसलों पर पड़ेगा। जैसे- राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के चुनाव, अन्य राज्यों के आगामी चुनाव, लोकसभा चुनाव-2024, केंद्र सरकार के कड़े फैसलों एवं प्रक्रियाधीन अनेकों विधायकों समेत कई मुद्दों पर देश भर में इन चुनावी नतीजों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देगा।

1. राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा चुनावों पर प्रभाव

इन विधानसभा चुनाव परिणामों का असर आगामी राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनावों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा। इस वर्ष संसद के उच्च सदन राज्यसभा की 70 सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। जिसमें भाजपा को 5 सीटों का नुकसान होते हुए दिखाई दे रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में भाजपा के स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने से कुछ हद तक इस नुकसान की भरपाई हो सकेगी। इसमें से यूपी की 11, पंजाब की सात और उत्तराखंड की एक सीट पर चुनाव होने वाले हैं। यूपी एवं उत्तराखंड में बीजेपी की दो से तीन सीटें बढ़ सकती हैं। वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से राज्यसभा में 6 सीटों का फायदा हो सकता है, वर्तमान में राज्यसभा में आप के पास 3 सीटें हैं। इस चुनाव में कांग्रेस को बहुत सी सीटों की क्षति होगी तथा आम आदमी पार्टी राज्यसभा में अपने मजबूत प्रभाव के साथ उभरकर सामने आएगी।


2. यह चुनाव कांग्रेस के लिए दुर्भाग्यपूर्ण

अब तक के लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐसी कमजोर स्थिति कभी भी नहीं रही, जैसी इस बार देखी गई है। इन चुनाव परिणामों के नतीजों के आधार पर अब राष्ट्रीय कांग्रेस की सत्ता मात्र 2 राज्यों राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ तक ही सिमट कर रह गई है। देखा जाए तो इन चुनावों में सबसे अधिक झटका देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को ही लगा है। पांच साल की सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) के बावजूद भी कांग्रेस उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में सरकार नहीं बना पाई। जबकि इन राज्यों में कांग्रेस दूसरी सबसे पड़ी पार्टी थी। कांग्रेस का कमजोर होना भारतीय लोकतंत्र एवं भारतीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका की दृष्टि से भी बहुत बड़ा नुकसान है।

3. उत्तर प्रदेश का मॉडल अन्य राज्यों पर भी लागू हो सकेगा

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने यह चुनाव अपने विकास के मुद्दे, जन कल्याणकारी योजनाओं, आमजन की सुरक्षा, माफियाओं, दंगाइयों एवं भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही एवं हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ा है। जिसमें उन्होंने स्पष्ट बहुमत से जीत दर्ज कर उत्तर प्रदेश में 37 साल बाद पुनः सत्ता प्राप्त की है। आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि, अपनी पार्टी को सत्ता में वापसी कराने वाले योगी आदित्यनाथ लगातार दूसरी बार सीएम बने हैं। अब उत्तर प्रदेश के इस मॉडल के आधार पर भारतीय जनता पार्टी अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ेंगी।

4. भाजपा का देश में चहूँ ओर प्रभाव

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार किसी पार्टी की सरकार बनी है। पूर्वोत्तर में मणिपुर और पश्चिमी तटीय राज्य गोवा में भी बीजेपी की सरकार में वापसी हुई है। दूसरी और सीमावर्ती एवं संवेदनशील राज्य पंजाब में आम आदमी पार्टी की पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार सत्ता में आई है। आप पहली ऐसी क्षेत्रीय पार्टी बन गई है, जो दिल्ली से आगे बढ़कर दूसरे राज्य पंजाब में भी सरकार बना पायी है। कांग्रेस जहां-जहां अपना प्रभाव खोती जा रही है, वहां-वहां आम आदमी पार्टी का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। अब आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है।

5. भाजपा के लिए बंगाल की चोट कम होगी

भाजपा द्वारा चार राज्यों में अपनी सत्ता बरकरार रख पाने से जो नुकसान उसे पश्चिम बंगाल के चुनाव में हुआ है, उससे कुछ हद तक निजात मिल सकेगी। आमजन में इस राजनीतिक धारणा को फिर से बल मिलेगा कि, भाजपा मजबूत दल है और उसको हराना बहुत मुश्किल है। इसके अलावा बिहार जैसे राज्यों में जहां भाजपा की गठबंधन सरकार है, वहां भी सहयोगी दलों में उठापटक कम होगी और शांति बढ़ेगी। वहीं भाजपा को कई राज्यों में नए सहयोगी दल मिलने में भी आसानी होगी। खासकर, अब तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में क्षेत्रीय दल बीजेपी के करीब आने में नहीं झिझकेंगे। महाराष्ट्र की राजनीति में भी प्रमुख विपक्षी दल भाजपा अपने मुद्दों को लेकर ज्यादा आक्रामक हो सकती है।


6. अन्य राज्यों के चुनाव पर प्रभाव

इस वर्ष के अंत में गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में होने वाले चुनावों में भाजपा को इसका तुरंत  बड़ा फायदा मिल सकेगा। वहीं वर्ष 2023 में अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों में भी भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा। इस वर्ष हिमाचल प्रदेश की 68 और गुजरात की 182 सीटों पर चुनाव होंगे। यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव में जीत से भाजपा को इन राज्यों में आक्रामक प्रचार का अवसर मिलेगा। वर्ष 2023 में कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और तेलंगाना में चुनाव होने वाले हैं। यदि राजनीतिक विश्लेषण की दृष्टि से देखा जाए तो भाजपा को यहां भी लाभ मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। भाजपा के रणनीतिकारों को पता है कि, लोगों के बीच उनके कई मुद्दों पर नाराजगी है, लेकिन उनके पास मजबूत विकल्प बनने के लिए भाजपा जैसी अन्य पार्टी मोजूद नहीं है।

7. लोकसभा चुनाव-2024 पर प्रभाव

भाजपा को चार राज्यों में मिली जीत से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी ताकत मिली है। उत्तर प्रदेश चुनाव को आम चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है। वर्ष 2017 में यूपी विजय से 2019 में भाजपा को काफी फायदा मिला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए इस बात की चर्चा भी की थी। उन्होंने कहा है कि, 2022 विजय से 2024 की राह आसान होने में मदद मिलेगी। पीएम मोदी ने कहा है कि, भाजपा के पक्ष में इन चुनाव परिणामों से आगामी योजनाओं के तीव्र गति से नियोजन में भी लाभ होगा।

8. कई विधेयकों के संबंध में कड़े फैसले लेने में आसानी

अभी अनेक राष्ट्रीय मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर चुनावी संवेदनशीलता के चलते केंद्र सरकार कड़े फैसले नहीं ले पा रही थी। इन विधानसभा चुनावों में मिली जीत से केन्द्र सरकार को कई मुद्दों पर कड़े फैसले लेने में मदद मिलेगी। अब कई चर्चित विधायकों को लेकर केंद्र सरकार आत्मविश्वास के साथ आगे कदम बढ़ाएगी। इनमें प्रमुख हैं, समान नागरिक संहिता, सीएए-एनआरसी पर अमल, जनसंख्या नियंत्रण कानून, इतिहास के पुनर्लेखन जैसे कई मुद्दों पर केन्द्र सरकार अब कड़े फैसले ले सकेगी।

निष्कर्ष इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, अभी हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हो जाता है कि, यह चुनाव परिणाम आगामी भारतीय राजनीति के लिए अभूतपूर्व एवं मील का पत्थर साबित होंगे। जहाँ एक और इन 5 राज्यों के चुनाव परिणामों में चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने पुनः पूर्ण बहुमत प्राप्त कर सत्ता प्राप्त हासिल की है। वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वर्चस्व को समाप्त करते हुए वहाँ दो तिहाई से भी अधिक सीटों के साथ सत्ता प्राप्त कर अपने जनाधार को बढ़ाया है। भारत के सबसे प्राचीन एवं महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजनीतिक दल राष्ट्रीय कांग्रेस ने पंजाब में अपनी सत्ता को गंवा कर मात्र दो राज्यों राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ तक ही अपने वर्चस्व को सीमित कर लिया है। लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में उत्तरोत्तर कमजोर होती राष्ट्रीय कांग्रेस भारतीय लोकतंत्र के समक्ष भी एक चुनौती है क्योंकि जब तक मजबूत विपक्ष नहीं होता तब तक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के मूलभूत लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव आने वाले समय में लोकसभा के चुनाव परिणामों को भी बहुत प्रभावित करेगा, साथ ही किसी राजनीतिक दल का राज्यसभा में बहुमत भी इन चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा। इन चुनाव परिणामों से जहां एक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है, वहीं आम आदमी पार्टी को कांग्रेस का विकल्प माना जा रहा है। अब देखना यह होगा कि, आम आदमी पार्टी आगामी चुनाव में अपनी भूमिका को किस प्रकार प्रदर्शित करती हैं, जिससे कि वह राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा प्राप्त कर सकें। इन चुनाव प्रचारों के दौरान यह भी देखने को मिला कि लगभग सभी राजनीतिक दलों का न केवल लोकतांत्रिक एजेंडा सीमित हो रहा है, वहीं उनका आंतरिक लोकतंत्र भी खत्म हो रहा है। इन चुनावों ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि, हमें जाति एवं सांप्रदायिक सदभाव तथा राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को नवीन चश्मे से देखना होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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