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शेखावाटी के किसान आंदोलन का ऐतिहासिक अध्ययन | |||||||
Peasant Movement Historical Study of Shekhawati | |||||||
Paper Id :
16243 Submission Date :
2022-07-06 Acceptance Date :
2022-07-13 Publication Date :
2022-07-25
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सारांश |
शेखावाटी में आने वाले सीकर व झुंझुनू जिलों के ठिकानों के अत्याचारों व शोषण से परेशान जाट किसानों द्वारा किया गया आंदोलन २०वी सदी में अपने आप में महत्वपूर्ण रखता है। उस समय के किसान शोषित हो रहे थे क्योंकि उनको प्रेरणा व मार्गदर्शन की आवश्यकता थी ‚ जिसका अभाव था लेकिन जब अभाव को ‚उनके अंदर की शक्ति के जागृत होकर पूर्ण किया और आंदोलन की ज्वाला चारों तरफ फैलने लगी। इसके उत्प्रेरक तत्व मूल्यत: बाहरी थे‚ जिनका संसर्ग स्थानीय शक्तियों से हुआ और आन्दोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ। जिसमें सैनिकों के योगदान ‚अर्थ समाज का प्रभाव ‚जाट महासभा की भूमिका बाहरी नेताओं की सक्रियता तथा समाचार पत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण योगदान के रूप में गिनायी जा सकती है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The movement by Jat farmers, troubled by the atrocities and exploitation of the bases of Sikar and Jhunjhunu districts in Shekhawati, holds significance in the 20th century itself. The farmers of that time were getting exploited because they needed inspiration and guidance which was lacking but when the need was filled by awakening the power within them and the flame of the movement started spreading all around. Its catalytic elements were mostly external, which came into contact with local forces and paved the way for the movement. In which the contribution of soldiers, the impact of the society, the role of the Jat Mahasabha, the activism of external leaders and the role of newspapers can be counted as an important contribution. | ||||||
मुख्य शब्द | शेखावाटी के किसान आंदोलन का ऐतिहासिक अध्ययन, महत्वपूर्ण योगदान, प्रेरणा। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Farmers Movement of Shekhawati Historical Study, Important Contribution, Inspiration. | ||||||
प्रस्तावना |
जयपुर रिसासत के पश्चिमी भाग में शेखावाटी क्षेत्र स्थित था। राजस्थान के झुंझुनू और सीकर जिले पूर्णतया शेखावाटी अंचल में आते है। शेखावाटी में शेखावतों के विभिन्न ठिकाने अथवा पाने थे। 20वीं सदी के आरम्भ में यहाँ दो प्रमुख ठिकाने थे। इनमे सीकर एक बड़ा ठिकाना। यहाँ का जागीरदार रावराजा कहलाता था। सीकर के अधीन अनेक छोटे ठिकाने थे। दूसरी ओर झुंझुनू ठिकाना पंचपानों (नवलगढ़, डूंडलोद, मंडावा, बिसाऊ, मलसीसर) में विभक्त था। शेखावाटी क्षेत्र में जाट किसानों की अधिक आबादी के कारण यहाँ के किसान आंदोलनों को जाट किसान आंदोलन कहा जाता है। 20वीं सदी में शेखावटी का किसान टिकानें के अत्याचारों व शोषण से परेशान था और अंततः आंदोलन करने को मजबूर हो गया।
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अध्ययन का उद्देश्य | शेखावाटी के किसान आंदोलन के अध्ययन के पीछे कई कारण या उद्देश्य बताएं जा सकते हैं जिसमें प्रमुख रुप से किसानों पर किए जाने वाले अत्याचारों के बारे में बताना तथा किसानों द्वारा प्रत्युत्तर में मांगे मंगवा कर किस प्रकार सरकार से घुटने टिकाने में सफल रहे। इसमें यह भी बताने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार उस जमाने में इस प्रकार संगठित आंदोलन का संचालन भी किया जा सकता है इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आंदोलन में न केवल पुरुषों ने अपितु महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर भाग लिया है इसके साथ ही यह भी प्रयास रहा है कि किस प्रकार के सैनिकों ने इसमें अपनी आहुति दी तथा किस प्रकार की स्थानीय जाट महासभा ने अपना योगदान देकर आंदोलन को सफलता की ओर मोड़ दिया इसके अलावा इसमें वह नेतृत्व के योगदान की सार्थकता का भी विश्लेषण देखने को मिलता है 20वी सदी के समाचार पत्रों के किस प्रकार जनता में जागृति पैदा करने का कार्य किया जिसके परिणाम स्वरूप आंदोलन अपने चरम पर पहुँच सका। |
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साहित्यावलोकन | (क) पेशाराम की पुस्तक एग्रेसियन मूवमेंट इन राजस्थान में सन १९००से १९४९के बीच उत्पीड़न की अत्यधिक सशक्त सामंतवादी ताकतों से मुक्ति पाने के लिए राजस्थान के कृषक वर्ग द्वारा किए गए कठोर संघर्ष का अध्ययन है। (ख) राजेंद्र कस्बा की कृति ‘मेरा गांव मेरा देश’ वाया शेखावाटी में शेखावाटी जन आंदोलन से पूर्व की स्थिति का सटीक विश्लेषण किया गया है और अन्नाहजारे के आंदोलन पर गहन चिंतन करते हुए लगभग एक सौ ग्यारह वर्ष का इतिहास जन आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है। (ग) ब्रजकिशोर शर्मा की पुस्तक पीजेंट मूवमेंट्स इन राजस्थान (1920 से 1949 )में 1920 से लेकर 1949 तक राजस्थान में होने वाले कृषक आंदोलन के विस्तृत ब्योरा दिया गया है इसके अंतर्गत जयपुर जोधपुर अलवर मातपुर व उदयपुर राज्यों में होने वाले कृषक आंदोलन के साथ साथ मील आंदोलन के बारे में भी जानकारी दी गई है। |
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मुख्य पाठ |
उत्प्रेरक तत्व- किसी आंदोलन की ऊर्जा एवं आवश्यक अवयव तो स्थानीय मिट्टी व माहौल में मौजूद रहते हैं परन्तु कभी-कभी ये अवयव लम्बे समय तक सुषुप्त अवस्था में पड़े रहते हैं। जब इन्हें आवश्यक प्रेरणा व पथ-प्रदर्शन मिलता है तो पहले से ही खुदबुदा रहा माहौल उत्प्रेरकों के कारण एक निश्चित दिशा पा जाता है और किसी बड़े आंदोलन को जन्म देता है। ऐसा ही शेखावाटी के आंदोलन में घटित हुआ। दीर्घकाल से सुषुप्त पड़ी हुई वहाँ की स्वाभाविक किसान शक्ति, जो एक व्यवस्था के अंतर्गत आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक बदहाली एवं शोषण की शिकार हो रही थी, उसमें भी कुछ प्रेरक शक्तियों का समावेश हुआ। ये उत्प्रेरक तत्व मूलतः बाहरी थे, जिनका संसर्ग स्थानीय शक्तियों से हुआ और एक महान आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस आंदोलन के प्रमुख उत्प्रेरक तत्व निम्नलिखित थे- सैनिकों का योगदान- शेखावाटी की देहाती प्रजा का बाहरी दुनिया से प्रथम संसर्ग यहाँ के किसान पुत्रों का ब्रिटिश सेना में भर्ती होने के कारण हुआ। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर जब ये सैनिक वापस अपने वतन को लौटे तो वे अपने साथ एक नई विचारधारा और आत्म-सम्मान का भाव लेकर लौटे। उनका शिक्षा के प्रति रूझान बढ़ गया और उन्होंने अपने बच्चों को कस्बों में चल रही पाठशालाओं में प्रवेश दिलाया। ब्रिटिश सेना के पेंशनधारी सैनिक होने से इनकी समाज में भी साख बन गयी। छोटे-छोटे जागीरदार इन सैनिकों से घबराने लगे। आगे चलकर इन सैनिकों ने शिक्षा, समाज-सेवा व जातीय संगठनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस कारण शोषण से दबे कुचले किसानों में एक नव स्फूर्ति और चेतना आई। आर्य समाज का प्रभाव- 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में आर्य समाज ने एक सामाजिक क्रांति को जन्म दिया। वस्तुतः आर्य समाज पाखण्डवाद, ब्राह्मणवाद, अज्ञानता, ऊँच-नीच और अशिक्षा के विरुद्ध एक सामाजिक व सांस्कृतिक आंदोलन था। शोखावाटी में सर्वप्रथम रामगढ़ में छोटे से रूप में आर्य समाज की गतिविधियाँ आरम्भ हुई। आगे चलकर सेठ देवीबक्स सर्राफ के प्रयत्नों से आर्यसमाज की बड़े स्तर पर गतिविधियां मंडावा में शुरू हुई। चौधरी गोविन्दराम एवं सेठ देवीबक्स की प्रेरणा से हरलाल सिंह ने आर्यसमाज के सिद्धांतों का गाँवों में जोर-शोर से प्रचार किया। अनेक रूढ़ियों से ग्रसित हिन्दू समाज को आर्यसमाज ने उन्नति की एक नई दिशा दी। शेखावाटी के जन-आंदोलन में आर्यसमाज के भजनोपदेशकों का बड़ा योगदान रहा। जाट महासभा- जातीय सभायें आर्य समाज की ही देन थी। इनका प्रादुर्भाव 20वीं सदी के शुरूआत में हुआ। सर्वप्रथम 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह की अध्यक्षता में इसका जलसा हुआ। इसमें शेखावाटी के किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इससे किसानों में एक नवीन चेतना व जागृति का संचार हुआ। 1925 में बगड़ में जाट सभा की स्थापना की गई। ठाकुर देशराज के प्रयासों से 1931 ई. में राजस्थान जाट क्षेत्रीय महासभा का गठन किया गया। 1932 ई. में झुंझुनू में अखिल भारतीय जाट महासभा का अधिवेशन हुआ। किसानों पर अत्याचार- इस समय जागीरदारों द्वारा किसानों से अत्यधिक भू-राजस्व की वसूली की जाती थी। भू-राजस्व के अतिरिक्त कई प्रकार की लाग-बाग व बेगार ली जाती थी। लाटा-कूंता पद्धति के विरुद्ध भी किसानों में असंतोष व्याप्त था। किसानों के साथ जातीय भेदभाव भी किया जाता था। इससे किसानों को संगठित होकर आंदोलन करने की प्रेरणा मिली।
बाह्य नेतृत्व से संसर्ग- कुछ बाह्य नेताओं ने शेखावाटी के किसान आंदोलन को गति प्रदान की। इन नेताओं में ठाकुर देशराज सिंह, कुंवर रतनसिंह, मास्टर रतनसिंह, विजसिंह पथिक, सर छोटूराम, मास्टर प्यारेलाल गुप्ता, मास्टर चंद्रभान इत्यादि प्रमुख थे। भरतपुर रियासत के ठाकुर देशराज ने शेखावाटी के किसानों को संगठित एवं जागृत किया। कुंवर रतनसिंह भी भरतपुर रिसासत से थे परन्तु इनकी कर्मस्थली सीकर रियासत का क्षेत्र रहा और सीकर के किसानों का संगठन इनके दिशा-निर्देशन में हुआ। ये पुष्कर महोत्सव में ‘अखिल भारतीय जाट विद्यार्थी कॉन्फ्रेंस’ के स्वागताध्यक्ष व राजस्थान क्षेत्रीय जाट महासभा के प्रेसीडेंट रहे। रोहतक जिले के निवासी मास्टर रतनसिंह पिलानी के बिड़ला कॉलेज में प्राध्यापक थे। उन्होंने 1925 में जाट सभा की नींव बगड़ कस्बे में डाली और ठिकानेदारों के शोषण के विरुद्ध किसानों को संगठित किया। विजयसिंह पथिक का हालांकि सीधा संबंध शेखावाटी के किसान आंदोलन से नहीं रहा। इन्होंने किसान आंदोलन को व्यवस्थित रूप देने हेतु सीकर का दौरा किया और किसानों को मार्गदर्शन दिया। सर छोटूराम ने भी शेखावाटी के किसानों की जागृति में बड़ा योगदान दिया। इसी प्रकार मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ने चिड़ावा को अपनी कर्मस्थली बनाया और यहाँ अमर सेवा समिति की स्थापना की। समाचार-पत्रों की भूमिका 20वीं सदी के शुरू में राजपूताने में अजमेर को छोड़कर कहीं भी अखबारों का प्रकाशन नहीं होता था, ना ही अखबारों के पढ़ने व जनहित की खबरें छापने का माहौल था। शेखावाटी के किसान आंदोलन की खबरें देश के हिन्दी व अंग्रेजी के बड़े अखबारों में छपती थी। ठाकुर देशराज ने आगरा से प्रकाशित अपने अखबार ‘जाटवीर’ के जरिये शेखावाटी में किसानों के शोषण व दमन पर एक लेखमाला प्रकाशित की। पं. ताड़केश्वर शर्मा ने 1929 ई. में हस्तलिखित अखबार ‘ग्राम समाचार’ आरम्भ किया। इसके अलावा दी नेशनलकाल, लोकमान्य और वीर अर्जुन ने जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर किसान आंदोलन को प्रचारित किया, वहीं दी स्टेट्समैन और हिन्दुस्तान टाइम्स ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक शेखावाटी के किसानों और ठिकानेदारों की जंग को पहुँचा दिया। प्रमुख घटनाक्रम- शेखावाटी के किसान आंदोलन का आरम्भ सीकर आंदोलन से माना जाता है। 1922 ई. में माधव सिंह की मृत्यु के बाद उसका भतीजा कल्याण सिंह ठिकानेदार बना। कल्याणसिंह ने करों में अत्यधिक वृद्धि कर दी। इसके विरोध में किसानों ने लगान देना बंद कर दिया। किसानों ने आंदोलन करना शुरू कर दिया। राजस्थान सेवा संघ के तत्कालीन सचिव रामनारायण चौधरी ने आंदोलन का नेतृत्व किया और ‘तरूण राजस्थान’ नामक समाचार-पत्र के माध्यम से आंदोलन का प्रचार-प्रसार किया। सीकर ठिकाने ने रामनारायण चौधरी को निष्कासित कर दिया और तरूण राजस्थान पर प्रतिबंध लगा दिया। रामनारायण चौधरी के प्रयासों से इस आंदोलन की खबरें लंदन के डेली हेराल्ड नामक समाचार-पत्र में प्रकाशित हुई। साथ ही पैट्रिक लारेंस ने हॉउस ऑफ कॉमंस में आन्दोलन का मुद्दा उठाया। 1932 ई. में बसंत पंचमी के अवसर पर झुंझुनू में जाट महासभा का सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में शेखावाटी के किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। यह अधिवेशन शेखावाटी के किसानों विशेषकर जाटों के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में परिवर्तकारी साबित हुआ। इस सम्मेलन की तर्ज पर सीकर के किसानों ने ठाकुर देशराज के नेतृत्व में 1934 ई. में सीकर मे जाट प्रजापति महायज्ञ आरम्भ किया। इस यज्ञ के उपरान्त सीकर के जागीरदार ने जाट नेताओं व किसानों पर भारी अत्याचार किया। मास्टर चंद्रभान सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। पीड़ित किसानों ने बधाला की ढ़ाणी में विशाल आमसभा की। इसी दौरान सिहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा महिलाओं के साथ बदसलूकी के विरोध में 1934 ई. में कटराथल गाँव में किशोरी देवी के नेतृत्व में विशाल महिला सभा का आयोजन किया गया। आगे दीनबंधु सर छोटूराम और रतनसिंह (भरतपुर) के प्रयासों से किसानों व सामंत के बीच 1935 में एक समझौता हो गया। इस समझौते के 5 दिन बाद ही 20 मार्च, 1935 ई. में एक बारात को लेकर खूड़ी हत्याकांड की घटना हो गयी। सीकर के कूदन गाँव में धापी देवी के कहने पर किसानों ने लगान देने से मना कर दिया तो कैप्टन वेब ने 25 अप्रैल, 1935 को फायरिंग करवा दी जिसमें चेतराम, तुलसीराम, टीकूराम और आशाराम नामक 4 किसान शहीद हो गए। इस घटना को कूदन हत्याकांड कहा जाता है। कूदन कांड के पश्चात कैप्टन वेब ने गोठड़ा व पलथाना में भी क्रूरता का तांडव मचाया। जब ब्रिटिश का दमन चक्र कम नहीं हुआ तो सीकर के किसानों ने जयपुर में सत्याग्रह का निर्णय किया। अंततः सरकार को झुकना पड़ा। सरकार के हस्तक्षेप के उपरांत 1935 में सीकर के जागीरदार ने अंतिम समझौता किया। इसके तहत किसानों की बकाया लगान राशि को माफ किया गया। सीकर के किसानों पर अत्याचार समाप्त हो गए और लगान भी काफी कम कर दिया गया। इस प्रकार शेखावाटी के किसान आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अध्याय भारी सफलता के साथ समाप्त हो गया। |
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निष्कर्ष |
इस प्रकार हम देखते है कि शेखावाटी का किसान आंदोलन अत्यधिक संगठित आंदोलन था। स्थानीय नेताओं के योग्य नेतृत्व ने इस आंदोलन को सफल बनाया। इस आंदोलन में न केवल पुरुषों ने अपितु महिलाओं ने भी बढ़़-चढ़कर भाग लिया। किसानों के संगठित प्रयासों के फलस्वरूप अंततः सरकार को घुटने टेकने पड़े और उनकी उचित मांगों को मानने के लिये बाध्य होना पड़ा। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. पेमाराम – एग्रेसियन मूवमेंट्स इन राजस्थान 1913-1947 ए.डी. पंचशील प्रकाशन जयपुर 1986
2. पेमाराम - शेखावादी के किसान आंदोलन का इतिहास जसनगर जालौर, 1990
3. सिंह हरफूल– शेखावादी के ठिकानों का इतिहास एवं योगदान पंचशील प्रकाशन जयपुर 1987
4. कसवा ,राजेंद्र– मेरा गांव मेरा देश (वाया शेखावादी) कल्पना पब्लिकेशन जयपुर 2012
5. सिंह मोहन– शेखावादी के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास झुंझुनू 1990
6. शर्मा ब्रजकिशोर– पीजेंट मूवमेंट्स इन राजस्थान (1920– 1949) पॉइंटेड पब्लिशेन्स जयपुर ,1990 |