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भूमंडलीकरण और आधुनिक नारी | |||||||
Globalization and the Modern Woman | |||||||
Paper Id :
16238 Submission Date :
2022-07-06 Acceptance Date :
2022-07-13 Publication Date :
2022-07-25
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सारांश |
प्रकृति ने स्त्री को जो ताकत दी , जिसके कारण वहां नया सुखन कर पाती है, शायद उसी के कारण उसका अंतर्मन शुद्ध और शांत रह पाता है मगर पुरुषों के चक्रव्यूह में उसी को स्त्री का सबसे कमजोर पक्ष बना दिया है । आज स्त्री का नया उभरता हुआ व्यक्तित्व अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की तरफ ध्यान देना है। यौन भिन्नता और अभिव्यक्ति स्त्री की निजी जरूरतों के रूप में स्थगित होती जा रही है। स्त्री की भूमिकाओं की पुनः परिभाषा आज के भूलमंडली समाज की सबसे बड़ी जरूरत है । जहाँ एक स्त्री नए सिरे से अपने जीवन का मुहावरा करने को आतुर है। स्त्री को तलाश है एक बेहतरीन दुनिया की जहाँ वहाँ अपने भीतर से पैदा उर्जा को नया क्षितिज दिला सके। जहाँ स्त्री– पुरुष के समानाधिकारो से लैस रूप मनुष्यवादी व्यवस्था कायम रख सके।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The strength that nature has given to the woman, due to which she is able to make new happiness there, perhaps because of that her inner being is able to remain pure and calm, but in the maze of men, she has made her the weakest side of the woman. Today the new emerging personality of a woman is to pay attention to her personal needs. Vaginal differentiation and expression are becoming postponed as the personal needs of the woman. The redefinition of the roles of women is the biggest need of today's global society. Where a woman is eager to renew the phrase of her life. The woman is looking for a better world where she can give a new horizon to the energy born from within. Where men and women can maintain the humanistic system equipped with the samadhikaros. | ||||||
मुख्य शब्द | स्त्री विमर्श, भूमंडलीकरण और आधुनिक नारी। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Feminism, Globalization and Modern Women. | ||||||
प्रस्तावना |
स्त्री की आजादी का प्रश्न हमारी सारी बहस उसका मुख्य मुद्दा है। हमारे यहां वर्षों से जब भी स्त्री की आंवला स्वतंत्र या स्थिति की बात उठती है तो एक ओर कहा जाता है कि स्त्री "यत्र नार्युत पूजयंते रमंते तत्र देवता" तो दूसरी ओर तुलसीदास कहते हैं कि "ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी यह तब तारण के अधिकारी अर्थात कभी स्त्री के प्रति लिखकर भाव नगला उसे शोषित किया कुचला या कभी उससे पूज्यभाव से सराहा, मंदिरों की सीढ़ियां चढ़ाई किंतु, उसे कभी भी हाल में मानवीय नहीं बनाने दिया, यही उसकी विडंबना है। स्त्री ना देवी है ना दासी है वहां निरांत मानव है ,शुद्ध रूप से व्यक्ति है
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अध्ययन का उद्देश्य | आधुनिकता की आंधी में नारी मुक्ति का आंदोलन जिन मूल्य उद्देश्यों तथा सिद्धांतो को लेकर शुरू हुआ था वहां वह अपने मूल उद्देश्यों से भटक गया है या विकृति– ग्रस्त होकर प्रकृति के ही विरुद्ध चल पड़ा है। यह दिखाएं दिखावा ही उस अध्ययन का उद्देश्य निश्चित रूप से भूमंडलीकरण ने पिछले 15 वर्ष में ऐसी औरतों से बेहद सफलता से दृश्यमान बनाया है। यह औरत "पावन वूमेन" है अधिकार और संस्कृति से सम्यक। यह ,l"पावर वूमेन" अपने भाव नगद में कम से कम इतनी सुरक्षित तो होगी ही अगर उसका प्रेम संबंध या वैवाहिक संबंध टूट जाए तो वह आंसुओं में डूब कर हताश ना हो जाए या आत्महत्या ना कर ले। |
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मुख्य पाठ |
भूमंडलीकरण और आधुनिक नारी– प्रकृति ने स्त्री को जो ताकत दी है जिसके कारण वह नया कुछ कर पाती है, शायद उसी स्त्री के कारण उसका अंतर्मन शुद्ध और शांत रह पाता है। मगर पुरुषों के चक्रव्यूह ने उसी को स्त्री का सबसे कमजोर पक्ष बना दिया आज स्त्री का नया उन्मत फुआ काली तन सामने आ रहा है। जो अधिक जटिल असुरक्षित एवं लचीला है। स्त्री अपनी व्यक्तिगत अवस्था की तरफ ध्यान देने लगी हैं। यौन मिलता और अभिव्यक्ति स्त्री की निजी जरूर दें के रूप में स्थिति होती जा रही है। की डी भूमिकाओं को पुनः परिभाषित करना आज के भूमंडलीय समाज की सबसे बड़ी जरूरत है। बेशक अधिक आजादी से इतनी उम्मीद तो थी कि स्त्री चेतना के संघर्ष को प्राथमिक जमीन मिलेगी कम से कम वह उतनी आज़ादी और अनीता के पक्ष में कुछ तो जिरह करेगी । लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद स्त्री कोई मुख्य तस्वीर नहीं बना पा रही। आएगी जैसे शीशे पर पांव धरो तो जितनी किरचे उतनी ही तरह के बिंब मगर एक मुसीबत नहीं । अंत प्रश्न प्रश्न यह है कि क्या स्त्री का अपने जीवन पर कोई होता भी है।
कमाऊ स्त्री एवं अपने समानधिकारो और लोकतांत्रिक वैज्ञानिक नजरिए की अंतर्गत पर जिरह करती हैं या बदलाव की क्रांतिकारी मुहिन छोड़ने लगती हैं तो उसके रास्ते में तमाम बाधाएं खड़ी कर दी जाती हैं। आज अपने बूते अर्जित जमीन पर अपने सुमीते से पैर टेक कर, स्त्री आपस राग, द्वेष और ईर्ष्या से परे हटकर उस बेहतरीन बेहतर दुनिया की तलाश में हैं, जहाँ एक स्त्री नीचे सिरे से अपने जीवन का मुहावरा गढ़ने को आतुर है। स्त्री को तलाश है एक बेहतर दुनिया की जहाँ वहाँ अपने भीतर से पैदा ऊर्जा और नया क्षितिज दिला सके। जहाँ स्त्री पुरुष समान अधिकारो के से लैस ट्रक मुहावरे जलवा कायम रख सके। बीसवीं शताब्दी के इतिहास के प्रमुख घटनाओं में सर्वोपरि है– भूमंडलीकरण जो घटना। बाजार आधारित भूमंडलीकरण व्यवस्था में करोड़ों लोग खिंचते चले गए ।औद्योगिक दौर की स्त्री छवि उत्तर औद्योगिक दौर में स्थानातरित हो रही है। उसकी जगह आपस आत्म– सज्जा अपनी छवि के प्रति सचेत स्त्री आ रही हैं। नई अर्थव्यवस्था नेहरूवादी दौर की स्त्री को बदल रही हैं ।वह जिस औरतों को बना रही हैं वहां नहीं सूचना
क्रांति के क्षेत्र में बन रही है। यह साइबर स्पेस में है और उसके द्वारा बनायी जा रही हैं। यहां पोस्ट मैडोना या कहें तो फॉरमिनिस्ट छवि है जो साइबरस्पेस में बन रही है। साइबर स्पेस में उसकी छवि इंटरनेट चतुर और कुशल औरत की है। ऑनलाइन औरत का चेहरा नया चेहरा है जो नईं इक्नॉमी ने उसे बनाया है। इंटरनेट पर आकर लिंग भेद का महत्व लगभग खत्म होने लगता है। साइबर स्पेस सक्रिय औरत दिमाग के बीच दिमाग बन जाती है। आंखों के बीच आंख बन जाती है। वह किसी भी वेबसाइट हो तो सकती है। इतिहास में पहली बार वह अपने विचारों के बिना किसी बंधन या मयके कह सकती है। तस्वीर का दूसरा पहलू भी है परोन्नती के लिए महिलाओं के बीच अपने शरीर का इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति को भूमंडलीकरण कार्यस्थल निरंतर प्रोत्साहित कर रहा है।[1] भूमंडलीकरण के दौर में बाजार घर में घुस आता है और बाजार में घर बिकते हैं।[2] देह अब उत्पादों की उपभोक्ता ही नहीं उत्पादों का लक्ष्य ही नहीं , उत्पादों का उत्पादों को उपभोक्ता तक पहुंचाने का वाहक बना दी गई।[3] आधुनिक बाजार में तमाम शक्तिशाली तंत्रों ने मिलकर ग्राम में को उपयोग ही नहीं उपभोग की वस्तु में भी बदला है[4] अपने 'आत्म' की पहचान के लिए स्त्री को मालूम है कि बाहर निकलना जरूरी है । यह बाहर निकलना वापस लौटने के लिए नहीं है।[5] अर्थ जगत मैं जगह बनाती इस स्त्री को रास्ता पुरुषों द्वारा पटकनी गॉट शॉट से हुए है। महत्वपूर्ण यह है कि यदि स्त्री ने देह से बाहर आकर बौद्धिक क्षमता के बल पर भी कहीं कोशिश की है। तो भी उसे गिराने के लिए हथियार देह के लिए ही इस्तेमाल किए गए हैं।[6] सेक्स शोषण का उत्पादन बनी रही। कुछ रूप बदलकर आ रही स्त्री ने समझा कि क्या यह शोषण घर में नहीं है। घर में मरने से तो बेहतर है बाहर मुकाबला किया जाए। उसे उसकी उतनी भीड़ है कि एक दिन बाजार की संरचना से मुक्त हो जाएगी।उसने सेक्स के लिए मुक्ति से बात की।[7] तो संस्कृति ने उसका रूप बताना शुरू किया यदि स्त्रियों को ही अपने सौंदर्य के मानक चुनने का अधिकार होता तो स्त्री छवि संवतह: वैसी ना होती जैसी की दिखती है। यह पूंजीवाद या चित्रकला का पड़ मनु है मनोरंजन, प्रसाधन, सेवा, छवि मीडिया, और सांस्कृतिक उद्योग की संपूर्ण अर्थव्यवस्था पुरुषों के ही नियंत्रित में है। विज्ञापन मॉडलिंग फैशन सिनेमा और टी.वी. से लेकर पोर्नोग्राफी व्यवसाय तक में ही तो स्त्री चाहिए। सिर्फ सुनर स्त्री कमेटी, स्त्री आजाद स्त्री, ऐसी सुंदर और स्वतंत्र स्त्री जो राष्ट्रीय बहुराष्ट्रीय निगमों का मॉल, ब्रांड और उपभोक्ता सामग्री बेच सके और मालिकों के लिए ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा कर दे सके भले ही इसके लिए यश में उसमें चौराहे पर निर्वस्त्र होना पड़े। स्त्री की नई छवि बनाने वालों ने स्त्री को अतिरिक्त मूल्य पैदा करने वाली बनाया है। उसकी नई छवि धन उपार्जित करती है यह समूची अर्थव्यवस्था के गति देने वाली है। वह अब एक उद्योग है– अर्थ क्षेत्र में सक्रिय होने के बाद स्त्री के अर्थ बदल जाते हैं.......लेकिन क्या केवल स्त्री के अर्थ ही बदलते हैं। अर्थ के साथ स्थित (आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक) क्यों नहीं बदल रही स्त्री छवियों की महत्वपूर्ण भूमिका जो मीडिया बना रहा है, वही उसे खतरनाक औरत और सेक्सी औरत और खराब या गंदी लड़कियां भी कर रहा हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आधी दुनिया तो देह के चौराहे पर सिर्फ सेक्स, बाद गोश्त जानवर और मर्दों के मनोरंजन का साधन बनने का एक ऐसा षड्यंत्र है जो पूंजी कमाने के सबसे असान तरीके समझ में आने लगे है और लेकिन समय सफल रहते अगर इसे कहीं नहीं रोका गया तो निश्चित रूप से अंततः इसके नजीजे विषघाटक सिद्ध होंगे।[8]
भूमंडलीकरण के कारण महिलाओं की स्थिति में कुछ सकारात्मक परिवर्तन भी अवश्य दृष्टिगोचर हुए हैं। नौकरियों के आग्रह के कारण उनकी विवाह योग्य उम्र में बढ़ोतरी हुई है और पैदा किए जाने वाले बच्चों की खैरात संख्या में भी कमी आई है। भारतीय मध्यवर्ग और लड़कियों की शिक्षा में पहले की अपेक्षा अधिक निवेश करने लगा है। भूमंडलीकरण में औरत एक उच्च पदस्थ आई. ए. राम या आई.एफ.अफसर भी हो सकती है और किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की मैनेजर भी। उसकी चपल उंगलियां उसे बेहतरीन कंप्यूटर प्रोग्राम बना सकती है और उसकी शहद भरी आवाज उसे किसी विदेशी बैंक में पार्सल फाइनेंस अधिकार की पदवी भी दिला सकती है। हुनर स्मार्ट ,आंधी की तरह अंग्रेजी बोलने वाली उच्च और उच्चवर्ग की यह स्त्री भूमंडलीकरण के गर्भ से निकली कम तनख्वाह पाने वाली और गंदी बातो में रहने वाली औरत से भिन्न है। वह पुरुषों पर हुक्म चला सकती है और उसका वेतन केवल इसलिए कम नहीं है कि वह जैविक रूप से पुरुष नहीं है वाली है। वह अब एक उद्योग है – अर्थ क्षेत्र में सक्रिय होने के बाद स्त्री के अर्थ बदल जाते हैं.......लेकिन क्या केवल स्त्री के अर्थ ही बदलते हैं । अर्थ के साथ स्थित (आर्थिक , सामाजिक और राजनीतिक) क्यों नहीं बदल रही स्त्री छवियों की महत्वपूर्ण भूमिका जो मीडिया बना रहा है, वही उसे खतरनाक औरत और सेक्सी औरत और खराब या गंदी लड़कियां भी कर रहा हैं। |
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निष्कर्ष |
वर्तमान समय में नारी को पुरुषों के समान सभी संवैधानिक व्यक्तिगत एवं सामाजिक अधिकार प्राप्त है लेकिन यह सब दिखावा है । नारी की स्थिति जैसे पहले थी वैसी आज भी है। उस में बहुत अंतर नहीं आया है ।आधुनिकता की आंधी में नदी मुक्ति का आंदोलन जिन मूल उद्देश्यो तथा सिद्धांतों को लेकर शुरू हुआ था वह अपने मूल उद्देश्यों से भटक गया है । यहां विकृति ग्रस्त होकर प्रकृति के ही विरुद्ध चल पड़ा है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1.प्रभा एनान, बाजार के बिच, बाजार के खिलाफ है 11-12
2. अरविंद जैन पूर्वोक्ति देव से हथियार नहीं अधिकार है स्त्री का (लो.) पृष्ठ 538
3. वही रेवा कस्तवार हथेली स्त्री पृष्ठ
4. वही 109
5. वही 111
6. अरविन्द जैन, पुर्वोक्ति, देह हथियार नही अधिकार है स्त्री का (लेख) पृष्ठ 534
7. वही क्स्ताबर, अकेली स्त्री, पृष्ट 112
8. राजेंद्र यादव: प्रभा खेतान: अनु कु. दुबे, पित्सज्जा के नए रूप , सुधीर पंचोरी एक अधतुला क्षड़ सौंदर्य मिलकर की इंद्रभक्रत (ले.)39
9. अरविंद जैन लीलाधार स्त्री मुक्ति का संपन्न अरविंद जैन देह हथियार नहीं अधिकार है स्त्री का (लेख) 522 – 526
10. राजेंद्र यादव : प्रभा खेतान वही पृष्ठ 77-78
11. डॉक्टर संयम त्यागी नारी, मुक्ति की अवधात्मक पृष्ठ 257 |