ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VI , ISSUE- VI September  (Part-1) - 2021
Anthology The Research
1920 के दशक में क्रांतिकारी आतंकवाद
Revolutionary Terrorism in the 1920
Paper Id :  16300   Submission Date :  10/09/2021   Acceptance Date :  17/09/2021   Publication Date :  25/09/2021
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सुरेश कुमार सान्दू
सहायक आचार्य
इतिहास
राजकीय महाविद्यालय
,पुष्कर, राजस्थान, भारत
सारांश असहयोग आंदोलन की अचानक वापसी ने कई लोगों का मोहभंग कर दिया, उन्होनें राष्ट्रवादी नेतृत्व की बुनीयादी रणनीति पर सवाल उठाना शुरू कर दिया, चूंकि ये युवा राष्ट्रवादी स्वराजवादीयों के संसदीय कार्य या नो-चेंजर्स के धैर्यवान, नाटकीय, रचनात्मक कार्यां के प्रति आकर्षित थे, वे इस विचार के प्रति आकर्षित थे कि केवल हिंसक तरीके ही भारत को मुक्त करेगा। इस प्रकार क्रान्तिकारी आंतकवाद को पुनर्जीवित किया गया था।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The sudden withdrawal of the non-cooperation movement left many disillusioned, they began to question the basic strategy of the nationalist leadership, as these young nationalists were attracted to the parliamentary work of the Swarajists or the patient, dramatic, constructive work of the no-changers, He was attracted to the idea that only violent means would liberate India. Thus revolutionary terrorism was revived.
मुख्य शब्द क्रांन्तिकारी, आतंकवाद, राष्ट्रवाद, असहयोग आन्दोलन, स्वराजवाद, एच.आर.ए., औपनिवेशक संघीय गणराज्य, HSRA, साईमन कमिशन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Revolutionary, Terrorism, Nationalism, Non-cooperation Movement, Swarajism, HRA, Colonial Federal Republic, HSRA, Simon Commission.
प्रस्तावना
प्रथम विश्व युद्व के दौरान आंदोलनकारियों को बुरी तरह कुचल दिया गया,लेकिन मांटेग्मु-चेम्सफोर्ड सुधारों को लागु करने के लिये सद्भावनापूर्ण माहौल बनाने के उद्धेश्य से सरकार ने 1920 के शुरू में क्रांतिकारी आंतकवादीयों को जेल से रिहा कर दिया । गाँधीजी, सी.आर.दास. व अन्य नेताओं की अपील पर जेल से रिहा क्रांतिकारी आंतकवादीयों ने आंतकवाद का रास्ता छोड़ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। लेकिन असहयोग आंदोलन के एकाएक वापस ले लिये जाने से उत्साही युवकों ने मान लिया कि सिर्फ हिंसात्मक तरीकों से ही आजादी हासिल की जा सकती है। घीरे-धीरे क्रांतिकारी आंतकवाद की दो धाराएँ विकसित हुई - एक पंजाब, उत्तरप्रदेश और बिहार में तथा दूसरी बंगाल में। यह आदोंलन अब समाजवादी मोड़़ ले रहा था।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य 1920 के दशक में क्रांतिकारी आतंकवाद का अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन
सचिन सान्याल द्वारा ‘‘बंदी जीवन‘‘ और शरतचंद्र चटर्जी द्वारा ‘‘पाथेर डाबी‘‘ जैसे उपन्यासों और पुस्तकों ने भी क्रान्तिकारी आंतकवाद बढ़ाया। इस अवधि के दौरान क्रान्तिकारी आतंकवादी समूहों के दो अलग-अलग पहलू उभरे -
1. एक-पंजाब-यू.पी. बिहार में संचालित.
2. दूसरी-बंगाल में .
मुख्य पाठ

उत्तर भारत में क्रांतिकारी
सबसे पहले भारत के क्रांतिकारी संगठित होने लगे एवं पुरानी गुप्त संस्थाओं को पुनर्जीवित किया गया। इन क्रांतिकारीयों में रामप्रसाद बिस्मिलयोगेश चटर्जी और शचीन्द्रनाथ सान्याल प्रमुख थे। शंचीद्रनाथ सान्याल की पुस्तक बंदी जीवन तो कांतिकारी आंदोलन के लिये पाठ्यपुस्तक ही बन गई थी। इसका अनेक भाषओं में अनुवाद किया गया।
इस बार एक नई विशेषता यह थी कि एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी संगठन की आवश्यकता महसूस की गई जो विभिन्न भागों में क्रांति का  संचालन उचित ढंग से कर सकें। इसी उद्धेश्य से अक्टूबर 1924 में देश के प्रमुख क्रांतिकारियों का एक सम्मेलन कानपुर में हुआ। जिसमें शचीन्द्रनाथ सान्यालरामप्रसाद बिस्मिलभगत सिंहसुखदेवभगवतीचरण वर्माचन्द्रशेखर आजाद आदि ने भाग लिया। इसके फलस्वरूप 1928 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकेशन एसोसिएसन की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना और एक संघीय गणतंत्र ‘‘संयुक्त राज्य भारत‘‘ (युनाईटेड स्टेट्स ऑफ इण्डिया) की स्थापना करना था।
संघर्ष छेड़ने से पहले प्रचारप्रशिक्षण एवं हथियार जुटाने के लिये पैसे की जरूरत थी। हिन्दुस्तान रिपब्लिकेशन आर्मी (एच.आर.ए.) ने इस उद्देश्य के लिये पहली बड़ी कार्यवाही काकोरी में की।
काकोरी काण्ड
अगस्त 1925 को दस व्यक्तियों ने लखनऊ के पास एक गाँव काकोरी में 8 डाउन टेªन को रोक लिया और रेल विभाग का खजाना लूट लिया। सरकारी खजाना लूटने की यह घटना काकोरी काण्ड के नाम से मशहूर है। इन व्यक्तियों को गिरफ्तार कर काकोरी षंडयत्र का मुकदमा 1925 में चलाया गया। अशफाकउल्ला खाँरामप्रसाद बिस्मिलरोशन सिंह और राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी दे दी गई। चार को आजीवन कारावास देकर अंडमान जेल भेज दिया गया और 17 अन्य लोगों को लंबी सजा सुनाई गई। चन्द्रशेखर आजाद फरार हो गए। उत्तरप्रदेश में विजय कुमार सिन्हाशिव वर्मा और जयदेव कपूर तथा पंजाब में भगत सिंहभगवतीचरण बोहरासुखदेव ने चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व मे एच.आर.ए. को फिर से संगठित करने का काम किया।
और 10 सितम्बर 1928 को फिरोजशाह कोटला मैदान  (दिल्ली) मे उत्तर भारत के युवा क्रांतिकारियों की एक बैठक हुई । इन क्रांतिकारियों ने सामूहिक नेतृत्व को स्वीकारा और समाजवाद की स्थापना को अपना लक्ष्य निर्धारित किया । संगठन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशललिस्ट रिपब्लिकेशन एसोसिएशन (एच.एस.आर.ए.) रखा गया।
सौडंर्स हत्याकाण्ड
17 दिसम्बर 1928 को भगत सिंहचन्द्रशेखर आजाद और राजगुरू ने लाहौर मे लाला लाजपतराय पर लाठी बरसाने वाले एक पुलिस अधिकारी सौंडर्स की हत्या कर दी। (यहाँ यह बतादें कि 30 अक्टुम्बर 1928 को लाहौर में साईमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपतराय पर बर्बर लाठी चार्ज मे मौत हो गई थी।)
केन्द्रीय विधानसभा मे बम फेंकना
सरकार द्वारा जनताविशेषकर मजदूरों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने के मकसद से दो विधेयक पब्लिक सेफ्टी बिल और टेªड डिस्प्यूटस बिल पास करने की तैयारी में थी। इसके प्रति विरोध जताने के लिये भगत सिंह और  बहुकेश्वर दत्त ने अप्रैल 1929 में दिल्ली की केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंका। बम फेंकने का उद्वेश्य किसी की हत्या करना नहींबल्कि सत्ता के बहरे कानों में विरोध की आवाज पहुँचाना था। बम फेंकने का उद्देश्य अपनी गिरफ्तारी देना और अदालत को अपनी विचारधारा के प्रचार का माध्यम बनाना था। लाहौर षड़यत्र अथवा सौडंर्स हत्याकांड के तहत् 23 मार्च 1931 को भगत सिंहसुखदेव एवं राजगुरू को  फाँसी  दे दी गई ।
क्रांतिकारी जेल की अमानवीय दशाओं में सुधार के लिये एवं जेल मे बंद क्रांतिकारियों के राजनैतिक कैदी का दर्जा प्राप्त करने के लिये अनशन कर रहे थे। अनशन मे 64 वें दिन 13 सितम्बर को जतिनदास की मृत्यु हो गई।
चटगांव विदो्रह
बंगाल के विद्रोही संगठनों में सबसे सक्रिय था-चटगांव क्रांतिकारीयों का गुटजिसका नेता थे सूर्य सेनजिन्हें लोग प्यार से मास्टर दा कहते थे। ये रवीन्द्रनाथ ठाकुर और काजी नजरूल इस्लाम के प्रंशसक थें।
18 अप्रैल 1930 की रात के दस बजे गणेशघोष के नेतृत्व में छः क्रांतिकारियों ने पुलिस शस्त्रगार पर कब्जा कर लिया। दूसरी और लोकीनाथ बाऊल के नेतृत्व में दस युवा क्रांतिकारियों ने सैनिक शास्त्रागार पर कब्जा कर लिया। हथियार तो मिल गयेलेकिन गोला बारूद पाने में असफल रहे।
यह कार्यवाही इंडियन रिपब्लिकेशन आर्मी चटगांव शाखा के नाम तले की गई थी और 65 क्रंातिकारी शामिल थे। सूर्य सेन ने काम चलाऊ क्रंातिकारी सरकार के गठन कि घोषणा की। सेना 22 अप्रैल को जलालाबाद की पहाड़ियों में विद्रोहियों को घेर लियाजिसमें 12 क्रांतिकारी मारे गये। दिनांक 16 फरवरी 1933 को सूर्य सेन गिरफ्तार कर लिये गय। मुकदमा चला और 12 जनवरी 1934 को उन्हें फांसी पर लटका दिया। बंगाल में नया आंतकवादी आंदोलन शुरू हुआ। इसकी प्रमुख विशेषता बडे़ पैमाने पर युवतियों की भागीदारी थी।
प्रीतीलता वाडेदार ने पहाड़तली (चटगांव) में रेलवे इन्स्टीट्यूट पर छापा मारा और इसी दौरान मारी गईजबकि कल्पना दत्त (जोशी) को सूर्य सेन के साथ गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा दी गई।
दिसम्बर 1931 में कोमिल्ला की दो स्कूली छात्राओं शांति घोष और सुनीति चौधरी ने एक जिलाधिकारी को गोली मारकर हत्या कर दीफरवरी 1922 में बीनादास ने दीक्षांत समारोह में उपाधिग्रहण करते समये समय बहुत नजदीक से गवर्नर पर गोली चला दी।
नौजवान सभा
1926 में भगत सिंहछबीलदासयशपाल आदि नवयुवकों ने पंजाब में नौजवान सभा की स्थापना की।
सत्ता के दमन ने धीरे-धीरे क्रांतिकारियों का पराभव कर दिया। फरवरी 1931 में इलाहबाद के अल्फ््रेड पार्क में मुठभेड़ के दौरान चन्द्रशेखर आजाद के मारे जाने के बाद पंजाबयू.पी. और बिहार में आंतकवादी आंदोलन खत्म हो गया। सूर्य सैन की शहादत से बंगाल में क्रांतिकारी आंतकवाद का एक लंबा और गौरव पूर्ण अघ्याय समाप्त हो गया। अधिकांश क्रांतिकारी मार्क्सवादी हो गएकुछ कम्यूनिस्टकुछ सोशलिस्टवामंपथी। बहुत से लोग गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हो गए।
अन्य क्षेत्र में क्रांतिकारी 
पेशावर में चन्द्रसिंह गढ़वालीं की अपील पर गढ़वालियों ने पठानों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया।
नागा विद्रोहियों में गाईडिलिउ के नेतृत्व में ब्रिटिश अधिकारियों का सुख-चैन छिन लिया। वह पकड़ी गई और आजीवन कारावास की सजा दी गई। आजादी के बाद इस विरांगन को रिहा किया गया।
असफलता के कारण
सबसे बड़ा कारण था कि क्रांतिकारियों को जनसमर्थन प्राप्त नहीं हो सका। आंतकवादीयों का संगठन कमजोर थासाधन सीमित थेधनहथियार एवं संपर्क साधनों का अभाव था। महात्मा गाँधी की अंहिसा नीति के प्रचार से भी आंतकवादीयों का प्रभाव जनसमुदाय दर से कम होने लगा। फलतः धीरे-धीरे क्रांतिकारी आंतकवाद समाप्त हो गया।

निष्कर्ष लेकिन इन सबके बावजूद राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष में इनका योगदान अमुल्य है। इनका अनन्य राष्ट्र प्रेम, अदम्य साहस, अटूट प्रतिबद्वता और गौरवमय बलिदान भारतीय जनता के लिये प्रेरणा स्त्रोत बने। इन्होंने देश में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। उत्तर भारत में समाजवादी विचारधारा के प्रचार प्रसार में इनका योगदान अमूल्य एवं अतुलनीय है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (2011) -क्रांन्तिकारी आंतकवाद 2. पायनियर 1 दिसम्बर 2018 क्रांन्तिकारी आंतकवाद 3. आधुनिक भारत का इतिहास-डॉ. यशपाल ग्रोवर 4. आधुनिक भारत (NCERT) कक्षा12 5. सज्जन आंतकवादी - राजनीतिक हिंसक और भारत में औपनिवेशिक राज्य(1919) से 1947-दुर्वाघोष 6. भारत के क्रांतिकारी - मनमथनाथ गुप्ता 7. आधुनिक भारत-विपिनचन्द