ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- V August  - 2022
Anthology The Research
महिला उत्पीड़न: जिम्मेदार कौन
Women Harassment: Who is Responsible
Paper Id :  15890   Submission Date :  01/08/2022   Acceptance Date :  11/08/2022   Publication Date :  17/08/2022
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शशि बाला रावत/पंवार
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिन्दी विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
अगस्त्यमुनि, रूद्रप्रयाग,उत्तराखंड, भारत
सारांश 21वीं सदी के आते ही व समाज के कल्याणकारी कार्य के चलते भले ही नारी आज घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर अपना समाज में अस्तित्व बना रही है परन्तु अभी भी उसे समाज में पुरूष ललचाई नजरों से निगलने को तैयार रहते हैं व उसे मात्र भोग की वस्तु समझता है। वह प्रकृति की सुन्दर संरचना व प्रभु की कृति है परन्तु उसकी सुन्दरता को अश्लीलता का चोला पहनाकर एक वस्तु की भाँति प्रस्तुतीकरण में पुरूष के हाथ की कठपुतली बनाई जाती है, जहाँ अपनी अलग छवि बनाने की होड़ में पुरूष की इच्छाशक्ति द्वारा ही उसे नचाया जाता है। नारी को आज चाहिए कि वह नारी समाज में एक आदर्श स्थापित करे वह पुरूषों से बराबरी कर सके।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद With the coming of the 21st century and due to the welfare work of the society, even though women today are making their existence out of the four walls of the house, but still men in the society are ready to swallow them with greedy eyes and enjoy them only. It is a beautiful structure of nature and the work of God, but its beauty is made into a puppet of a man's hand in the presentation like an object by wearing a cloak of obscenity, where it is danced by the will of man in the competition to make his own image. A woman needs today that she should establish an ideal in the society so that she can be at par with men.
मुख्य शब्द महिला उत्पीड़न, अस्तित्व, आदर्श।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Female Oppression, Existence, Ideal.
प्रस्तावना
कहा भी गया है कि नारी तेरी यही कहानी आँचल में दूध और आँखों में पानी यह हमारे नारी समाज की विडम्बना ही तो है, जो इस रीति को मनाने के लिए बाध्य है कि जिस पति द्वारा वह मात्र दहेज की रकम न मिलने पर जलाई एवं प्रताड़ित की जाती है जो कि बेहद अमानवीय व घिनौना कार्य है। अर्थात नारी को जानवरों की श्रेणी में रखकर मात्र प्रताड़ित कर रखने वाले मूक पशु से सम्बंधित किया गया है। नारी पर हुये इन अत्याचारों के पीछे नारी का भी हाथ है। एक नारी से दूसरी नारी की शत्रु बन बैठती है। वह यह भूल जाती है कि वह भी एक नारी है। दहेज के लालच में वह उसे प्रताड़ित करती है जब तक नारी स्वयं समाज में व्याप्त इस अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठायेगी तब तक वह इससे उबर नहीं पायेगी। समाज का दायित्व है कि वह आज समाज में नारी पतन व उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाए। कैसी समाज में विडम्बना है कि जिस नारी को देवी का और घर का पर्याय कहा जाता है। वही आज पूरी दुनिया घर से बाहर व अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा घर के भीतर दी जाने वाली यातनाओं से ग्रस्त नजर आ रही है। पहले यह माना जाता था कि महिलाओं के साथ केवल घर के बाहर ही उत्पीड़न किया जाता है व अनपढ़-जाहिल ही महिलाओं पर हाथ उठाया जाता है परन्तु आज महिलायें सड़कों से अधिक घर के भीतर ही असुरक्षित महसूस करती हैं। उनके विचारों व अधिकारों का हनन किया जा रहा है। अतः महिलाओं का इतना असुरक्षित हो जाना पूरे मानवीय समाज के टूटने का कारण बन सकता है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य महिला उत्पीड़न और उसके लिए जिम्मेदार सामाजिक तत्वों का अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन
महिलाओं को इस हिंसा व उत्पीड़न से बचाने के लिए कई कानून बनाये गये हैं और 14 सितम्बर को एक नया कानून लागू किया गया जिसमें इस तरह की हिंसा के विरूद्ध सुनवाई के हक को मानवाधिकार के मुद्दे से जोड़ा गया है लेकिन महिला शोषण के खिलाफ बने कानून मात्र कागजी सिद्ध होकर रह जाते है। क्योंकि इनको लागू करने की जिम्मेदारी जिस समाज पर निर्भर रहती हैवह मूलत प्रधान है और जिसकी मानसिकता पुरूष वर्चस्व पर आधारित रह जाती है।
मुख्य पाठ

परंपरा की आड़ में सदैव महिलाओं का ही मानसिक यौन, शारीरिक व भावनात्मक शोषण होता रहता है। नारी को अगर एक औरत वंश बढ़ाने व परिवार, बच्चों की जिम्मेदारी उठाने मात्र का जरिया नहीं बल्कि एक मानव को सामाजिक दर्जा दिया जाना चाहिए तो तब पुरूषों के समकक्ष ही उसकी भावनायें व समस्याओं को समझा जा सकेगा। आज भी परिवार में लड़कियों को वो सारी स्वतंत्रता तथा अधिकार नहीं मिलते जो लड़कों को मिल जाते हैं। अगर किसी कारण अपनी इच्छानुसार स्वतंत्रता मिल भी जाये तो समाज में उपस्थित भेड़ियों व असामाजिक तत्वों द्वारा उन्हें इतना प्रताड़ित व शोषित किया जाता है कि मजबूरन उन्हें उसी परिवेश में वापस जाना पड़ता है।

अतः हमारा समाज व बाजार दोनों ही पूर्णतया महिलाओं पर आश्रित होते हैं। महिलाओं के बिना एक कदम भी भविष्य की ओर बढ़ना सम्भव नहीं है। उस समाज की कल्पना मात्र से ही अन्तर्मन हिल जाता है। जहाँ स्त्री का कोई अस्तित्व ना हो या उस समाज की स्थिति क्या होती है, जहाँ स्त्री ना हो।

यहाँ यह सवाल भी अहम है कि महिलाओं के साथ हो रहे शोषण व उत्पीड़न का जिम्मेदार कौन है। पुरूष प्रधान है की मानसिकता या हो रहे उत्पीड़न। शोषण की जिम्मेदार स्वयं महिलाएं ही हैं, क्योकि समाज में जो दबता है उसे दबाओजैसी मानसिकता उत्पन्न होती जा रही है। ये शोषण व अत्याचार तब तक होते रहेंगे जब तक इनका विकृत प्रतिफल हिंसा का रूप न ले ले। महिलाओं को ही कानून, अधिकारों के सहारे आवाज उठाने और आज समाज द्वारा इनके पालत की सामाजिक चेतना जगानी होगी। अगर घर में महिला अपने अधिकारों व ताकत का उपयोग करे तो वह एक पुरूष तो क्या पूरें समाज का नजरिया बदल सकती है। वह किसी के सहारे का इंतजार न करे और किसी पर निर्भर न रहे और अपने हौसले बुलन्द करते जाये। आत्म-विश्वास, यह शब्द सुनने में पहचाना सा लगता है। जब हम अपने मन में यह जगाने का प्रयास करते है कि मैं एक लड़की हूँ और यह शब्द कहते हुए मुझे गर्व महसूस होता है। आज के समाज में लड़की एक नई दिशा लेकर आयी है। जो अपने परिवार की इज्जत और मान को बढ़ाती है। परन्तु पुराने समय में लड़कियों को वे अधिकार प्राप्त नहीं थे। छोटी उम्र में विवाह कर दिया जाता था। उस परिवार में उसका हक तो था, मगर सबका जिम्मेदार उसे नहीं माना जाता था। इन सब में जिम्मेदार कुछ पुरूष भी थे क्योंकि उन्होंने समाज में रहकर एक ऐसा वातावरण बना रखा था। जहाँ सांस लेना तो दूर वह अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं कर पाती थी।

प्राचीन काल में नारी के हक में लड़ने वाला कोई नहीं था। इसका महत्वपूर्ण कारण यही था कि अशिक्षा का होना, अगर नारी में शिक्षा के प्रति अनुभव होता तो वह उसके आत्मविश्वास की नींव होती। आज तो आधुनिक युग का समय है, जहाँ हम आज 21वीं सदी में जी रहे हैं। जहाँ पर हमें कुछ हद तक स्वतन्त्रता प्राप्त है, जिसमें नारी आत्मविश्वासी बनकर समाज में जीने का प्रयास कर सकती है। जो हमारे ऊपर कमजार नारी का धब्बा लगा हुआ है, और हमें बार-बार कुछ करने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन आज यह शब्द इतिहास बन कर रह गया है। पहले तो हमें मौका नहीं मिलता था पर जब हम इस मंजिल पर पहुँच चुकी हैं, तो क्यों नहीं ऐसा कर दिखाएँ जिससे समाज में हम पुरूषों के बराबर अपनी पहचान बना सकें सरकार ने हमें सभी समान अधिकार दिये हैं। हमें इन अधिकारों का सही ढंग से प्रयोग करना है। और मंजिल पर सफलता प्राप्त करना है। जहाँ हमें पुरूष दया का पात्र समझे। और यह महसूस हो जाये कि समाज में हम नारियाँ पुरूष से भी आगे खड़ी होकर समाज में आगे आना होगा। सामाजिक कार्यो में हिस्सेदारी निभानी होगी। हमें खुद से लड़ना होगा वह हर काम करना होगा जिससे प्रत्येक नारी गर्व से बोले मैं एक लड़की हूँ परिवार समाज और देश के निर्माण में मैं-भी सहायक हूँ।

इन कारणों का निदान अत्यधिक कठिन नहीं है क्योंकि समाज में जागरूकता शिक्षा से ही आ सकती है। इसलिए हमें सर्व-प्रथम प्रयास स्त्री -शिक्षा में वृद्धि करनी होगी। समाज में इस भावना पर जोर देना होगा कि प्राचीन काल से ही नरियाँ ज्ञान-विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में भी आगे रही हैं। अशिक्षितों तथा आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गो को यह समझाना होगा कि आज राजनीति, प्रशासन, उद्दोग शिक्षा-विज्ञान, परिवहन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में महिलायें सक्षम होती जा रही है, जितने पुरूष हो सकते हैं।

निष्कर्ष अतः यही हमारा लक्ष्य होगा कि आने वाले समाज की संतुलित संरचना के लिए जहाँ महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है, वहीं उससे भी पहले कन्या-भ्रूण-हत्या के कलंक को मिटाने की सबसे बड़ी जरूरत हमारे भारतवर्ष को है। आओ हम सब यह संकल्प ले कि हम सब मिलकर देश से इस कलंक को देश से अवश्य मिटायेंगे। ताकि स्त्री-पुरूष अनुपात में बढ़ते अन्तर की खाई को पाट-कर सशक्त समाज का निर्माण किया जा सके। यथा- ”लक्ष्य न ओझल होने पाए कदम मिलाकर चलना है” कामयाबी हमारी कदम चूमेगी आज नहीं तो कल।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. महिला सशक्तिकरण की भूमिका- डॉ० प्रभात कुमार 2. पृष्ठ सं०- 46 3. लोक नीति सिद्धान्त- जे० एस० मीना। 4. पृष्ठ सं०- 22 5. समाज में महिला सशक्तिकरण की संरचना- पवन कुमार मिश्रा 6. पृष्ठ सं०- 42