P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- XII August  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
ओडिशा राज्य संग्रहालय में संग्रहीत चित्रित ताड़पत्र की गीतगोविन्द पोथियों का तुलनात्मक अध्ययन (16वीं शताब्दी Ext- 334 एवं 18वीं शताब्दी Ext- 98)
Comparative Study of Gitagovinda Pothis of Painted Palm Leaves Stored in Odisha State Museum (16th Century Ext-334 and 18th Century Ext- 98)
Paper Id :  16320   Submission Date :  17/08/2022   Acceptance Date :  20/08/2022   Publication Date :  25/08/2022
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/shinkhlala.php#8
शिवानी भदौरिया
शोधार्थी
चित्रकला विभाग
दयालबाग शिक्षण संस्थान
आगरा,उत्तर प्रदेश, भारत
नमिता त्यागी
असिस्टेंट प्रोफेसर
चित्रकला विभाग
दयालबाग शिक्षण संस्थान
आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश ताड़पत्र पर चित्रण ओडिशा के हस्तशिल्प खजाने में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। हम सभी जानते है कि ताड़पत्र की पोथी में विशेष रूप से सचित्र पोथी, अन्य राज्यों की अपेक्षा ओडिशा देश का एक गौरवपूर्ण स्थान रहा है। ओडिशा में ताड़पत्र सचित्र पोथी एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, यदि कोई इन सचित्र पोथी को बारीकी से देखता है, तो वह पूरी तरह से आश्वस्त हो जाएगा कि यह कला ओडिशा के लोगों के प्यार की वजह से पूर्णता और उत्कृष्टता तक पहुँच पायी है। इन सचित्र पोथी ने एक पाठक को पाठ और कला को समझने और उसकी सराहना करने में प्राचीन साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ओडिशा की पोथियों पर आधे-अधूरे ढंग से आकृतियो को चित्रित नहीं किया गया बल्कि उनके चित्रों में पाठ का सही वर्णन किया जाता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The depiction on palm leaves holds an important place in the handicraft treasures of Odisha. We all know that especially illustrated in the palm leaf pot, Odisha has been a proud place of the country as compared to other states. Palm leaf illustrated pothi is an important part in Odisha, if one looks closely at these illustrated pothi, one will be completely convinced that this art has reached perfection and excellence because of the love of the people of Odisha. These illustrated books have played an important role in ancient literature in helping a reader understand and appreciate text and art. The pothis of Odisha are not depicted half-heartedly, but the text is accurately described in their paintings.
मुख्य शब्द पोथी, ओडिशा, गीतगोविन्द, चित्रित, पन्ने।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Pothi, Odisha, Gitagovinda, Painted, Pages.
प्रस्तावना
ओडिशा में 15-16वीं शताब्दी में अपभंश के चित्रों में वैष्णव ग्रन्थ गीतगोविन्द का खूब बोलबाला था। अन्य माध्यम के साथ-साथ ताड़पत्र पर गीतगोविन्द की पोथियों का संग्रह ओडिशा राज्य संग्रहालय की शान है। इन पोथियों पर काव्यात्मक भावनाओं का चित्रांकन किया है, जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता ही सामने आयी है। ओडिशा के इन चित्रशैली के चित्रों में एक ओर ऐश्वर्य की अभिव्यक्ति और श्रृंगार भावना की व्याख्या हुई है, तो दूसरी ओर वैष्णव सम्प्रदाय की राधा-कृष्ण माधुर्य भावना की भी अभिव्यक्ति की गई है। इन चित्रों में चित्रकार ने पशु-पक्षियों के प्रतीकात्मक अंकन के द्वारा विषय के सम्पूर्ण भावों को चित्र में स्पष्ट करने का प्रयत्न भी किया है। यहाँ हम इन पोथी के महत्त्व को स्पष्ट करने के लिए संग्रहालय में संग्रहीत ताड़पत्र पर निर्मित गीतगोविन्द की दो पोथियों का तुलनात्मक अध्ययन करेगें। पोथी के चित्रण एक होने पर भी इनकी अपनी कुछ भिन्न विशेषताएं है यहाँ इन्हीं को उजागर करने के लिए Ext- 334 व Ext- 98 गीतगोविन्द पोथी का तुलनात्मक अध्ययन किया है। जिससे हमें इन पोथी में विभिन्नता में भी विशिष्टता ज्ञात होती है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. मुख्य उद्देश्य गीतगोविन्द काव्य पर आधारित ताड़पत्र पर लिखी उड़िया शैली की रचनात्मक, दृश्यात्मक और अभिव्यक्ति का सौन्दर्यात्मक विश्लेषण। 2. गीतगोविन्द चित्रित पोथी के अध्ययन से साहित्य व दृश्य कला के रचनात्मक समन्वय को समझना। 3. चित्रित पोथियों का कलात्मक पहलुओं के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करना। 4. ताड़पत्रीय गीतगोविन्द चित्रित पोथी का सर्वेक्षणात्मक अध्ययन।
साहित्यावलोकन

गीतगोविन्द काव्य पर आधारित ताड़पत्रीय पोथी चित्रण के उड़िया शैली में अनेक चित्र श्रंखलाए निर्मित की गई जो सदैव शोध का विषय रहीं। साहित्य समीक्षा के फलस्वरूप विभिन्न शोधो एवं पुस्तकों का अध्ययन किया, जिसमें ताड़पत्रीय चित्रण की विशेषताएं, उनका संरक्षण व कलात्मक तत्वों के सम्बन्ध में चर्चा समाहित है। इन अध्ययनों में से इस विषय पर आगे कार्य करने में सहायता मिली। जिनमें Dr, Jharana Rani Tripathi के शोधपत्र Palm leaf manuscripts inheritance of Odisha: A history survey, 2019 जिसके अध्ययन के अन्तर्गत लेखिका ने ताड़पत्र लघुचित्रण को जाना जिन्हें ताड़पत्रों पर बनाया गया है। दूसरी K.C. Santosh,  Nibaran Das, Sk Md Odaidullah, Teresa Goncalves, Kaushik Roy dh iqLrd Document processing Using Machine Learning, 2019 द्वारा ताड़पत्र पोथियों को digitize करने की प्रक्रिया को जाना। तीसरी पुस्तक Dr. Debi Prasanna Nanda के शोधपत्र The Tradition Palm Leaf Writing in Odisha, 2020 में से ओडिशा राज्य संग्रहालय में संग्रहीत ताड़पत्र पोथियों के बारे में जाना। चतुर्थ Anasuya Moharana ds “kks/ki= Illustrations on palm leaf manuscript A Unique art of Odisha, 2021 से ताड़पत्र पर चित्रण की प्रतिष्ठा का ज्ञात हुआ।

मुख्य पाठ

गीतगोविन्द पोथियों का परिचय व तुलनात्मक अध्ययन

यह ताड़पत्रीय पोथी ओडिशा से प्राप्त ‘गीतगोविन्द‘ काव्य के आधार पर चित्रित प्राचीनतम प्रतियों में से एक है। यह ओडिशा के भुवनेश्वर राज्य संग्रहालय में उपस्थित रजिस्टर के अनुसार क्रम संख्या इ एक्स टी-334 है। इस पोथी की दशा काफी दयनीय हैक्योंकि अधिक प्राचीन होने तथा लोगों के हाथ लगने के कारण इसके रंग व पन्नों का आकार काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त हो गया है। इस पोथी में आवरण सहित पन्नों की संख्या 42 व चित्रित फलक की संख्या 36 है तथा यह पोथी 16वीं शताब्दी की है। पोथी ओडिशा के ‘जाजपुर‘ (ओडिशा) नामक स्थान से प्राप्त की गई है व इसमें उपस्थित कोलोफॉन के अनुसार यह महाराजा ‘श्री हरि देवो गजापति‘ के समय पर ‘श्री वासुदेव शरण‘ द्वारा लिखित है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई क्रमशः 12.5 इंच तथा 1.9 इंचव लिपि देवनागरी तथा भाषा उड़िया है। इसके ऊपरी भाग में दो लकड़ी के आवरणजिसमें पहले आवरण पर कुछ धुंधले टिमटिमाते हुए चित्रण निर्माण प्रतीत होता हैतीसराचतुर्थ व चालीसवां पन्ना खाली वहीं इक्तालीसवां व व्यालीसवां संख्या अन्तिम लकड़ी के दो आवरण है। पोथी पर लिखाई काली स्याही से की गई हैजो अधिकांशतः पन्नों में बायीं तरफ ही है तथा दाहिनी तरफ चित्रों का निर्माण किया गया है।

पोथी के किसी-किसी पन्ने परकही-कही पूरे पन्ने पर ही लिखाई की गई है तथा कभी-कभी किसी पन्ने पर सिर्फ चित्र ही बने हैं। पोथी नीचे-ऊपर डिजाइनों से मंण्डित है। बंदनवार युक्त लताकुंजों मेंजिनमें विविध प्रकार के वृक्ष अपने फूल-पत्तियों से संयुक्त हैंऐसे वातावरण में लता-कुंज के बीच में चित्रकार ने राधा और कृष्ण की प्रतिष्ठा बड़े ही अलंकारिक ढंग से की है। पोथी में अलंकरणों व डिजाइनों के लिए पीलेलालहरे व नीले रंग का प्रयोग किया गया है। नदी के प्रदर्शन में उसमें गहराई दिखाने के लिए काले रंग का प्रयोग किया गया है तथा जल के जीवों (मछलियोंकछुआ) को उसमें तैरते हुए चित्रित किया है। चित्र में प्राकृतिक चित्रण के प्रदर्शन में वृक्षोंलता-कुंजों तथा दौड़ते हुए मृगों का निरूपण उल्लेखनीय है।

दूसरी पोथी भी इस समय ओडिशा के भुवनेश्वर राज्य संग्रहालय में संग्रहीत हैइस पोथी का संग्रहालय के रजिस्टर में क्रम संख्या इ एक्स टी- 98 है। पोथी हल्के पीले रंग के ताड़पत्र पर चित्रित है जो जिला पुरी के रतनपुर क्षेत्र से प्राप्त की गई है। यह पोथी 18वीं शताब्दी की जान पड़ती है। इसमें कुल 46 फलक है,  जिसमें फलक संख्या न. 1,2 और 45, 46 लकड़ी के आवरण और 44 पन्ना संख्या खाली है। वैसे तो अगर सामान्य रूप से देखा जाये तो पोथी के हर पन्ने पर कुछ ना कुछ चित्रण है चाहे वह हाशियें रूप में ही क्यों न हो किन्तु मुख्य रूप से इसमें चित्रित फलक की संख्या 29 है तथा सभी चित्र काले रंग से चित्रित किये गए हैं इसमें अन्य किसी रंग का प्रयोग नहीं किया गया हैबाकी के पन्नों पर गीतगोविन्द श्लोक लिखे हुए है। इस पोथी की माप 12.2 इंच लम्बी तथा 1.7 इंच चौड़ी है।इस पोथी के दोनों ही तरफ चित्रों का निर्माण किया गया है। खाली स्थानों की पूर्तिउड़िया भाषा में ‘गीतगोविन्द‘ के श्लोकों को लिखकर की गई है। पोथी में पंचहोल को भी अलंकृत किया गया है। पंचहोल के स्थान को फूलों के अलंकरणों तथा ज्यामितीय डिजाइन द्वारा सजाया गया है। पोथी में चित्रण की परम्परा अन्य पोथी-चित्रों की ही तरह है। वही चापाकृति तोरणाकृति में वृक्षों को अलंकृत करके राधा-कृष्ण की प्रतिष्ठा चित्रकार ने बड़ी बारीकी के साथ की है। राधा-कृष्ण के चित्रांकन में उनके वस्त्रोंआभूषणों तथा राधा या उसकी सखी के स्तन-मण्डलों आदि को काली स्याही से गाढ़ा करके चित्रित किया गया तथा राधा की चोटियोंजूड़ों को भी काली स्याही से ही चित्रित किया गया है।

पोथी के फलक में नारियों के अंकन को चित्रकार ने बड़े सफल ढंग से निरूपित किया है। वातावरण के चित्रांकन में चित्रकार ने हस्तमुद्राओं और चेहरे की भाव-भंगिमाओं द्वारा प्रस्तुतिकरण बड़े मार्मिक ढंग से किया है। चित्र की रेखाएँ सशक्त एवं सावलीन हैं। पोथी में गणेशसंरस्वतीव दशावतार अंकन के पश्चात् राधा-कृष्ण व सखियों द्वारा पूरे काव्य को सुन्दर रूप में निरूपित किया गया है। कृष्ण राधा के वियोग और राधा की सखी कृष्ण से राधा की विरह-दशाओं के चित्रण द्वारा काव्य की रूपरेखा प्रस्तुत की जा रही है। नीचे के शेष सभी पन्नों में प्राकृतिक दृश्यों का अंकन तथा राधा-कृष्ण को आपस में मिलते हुए दिखाया गया है। पोथी में विरह-सन्तप्तता में नारी को सम्पूर्ण रूप से विवश दिखाया गया है। नारी का बड़ा ही आकर्षक चित्रण चित्रकार ने प्रस्तुत किया है। चित्र में कृष्ण को मूछों से भी युक्त चित्रित किया गया है।

ताड़पत्र पोथियों पर सांस्कृतिक ज्ञान का रिकार्ड होता आ रहा है जो स्मृति और सांस्कृतिक स्थिरता के लिए सामूहिक रूप से महत्त्वपूर्ण है । गीतगोविन्द Ext- 334, 98 दोनों ही ताडपत्र पर चित्रित ग्रन्थ हैंपरन्तु फिर भी दोनों के अध्ययन करने से पर्याप्त अन्तर स्पष्ट होता है।-

काल के दुष्प्रभाव के कारण आज वर्तमान अवस्था में दोनों ही पोथी जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैपोथी संरक्षण अभियानों द्वारा समय-समय पर पोथियों के संरक्षण का निरन्तर प्रयास किया जाता आ रहा है जिससे उन पोथियों को पाठकों के द्वारा पढ़ा जा सके।  पोथियों की संग्रहालय द्वारा स्केन कॉपी भी करवायी गयी तथा सी.डी. में पोथियों की अमूल्य धरोहर को सजोकर रखा गया है।

गीतगोविन्द पोथियों का कलात्मक तत्त्वों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन-

प्रयुक्त भाषा- अगर दोनों पोथी में भाषा के आकार प्रकार की बात करे तो दोनो ही पोथी पर गीतगोविन्द काव्य देवनागरी लिपि में उड़िया भाषा में लिखा है। यह ताड़पत्र पर लेखनी द्वारा उत्कीर्ण होने के कारण इसमें पर्याप्त कोणीयतालयात्मकता तथा चित्रों में ओजस्विता और जीवंतता की भावना विद्यमान है।  गीतगोविन्द Ext- 334 में काव्य को दूसरी पोथी की अपेक्षा ज्यादा घने रूप में लिखा गयायहां फलक पर कम से कम 9 और अधिक से अधिक 11 पक्तिंयों में श्लोकों को लिखा गयावहीं दूसरी पोथी Ext-98 में कम से कम 6 और अधिक से अधिक 8 पक्तियों में श्लोंको को लिखा गया हैजो कि पहली पोथी की अपेक्षा कम है।

संयोजन- अगर संयोजन की बात करे तो दोनों पोथियों को देखने पर वह समान प्रतीत होगी। किन्तु बारीकी से देखने पर उनमें कुछ आंशिक अन्तर दिखाई देता है। Ext- 334 पोथी में पत्र पर प्रायः एक समान संयोजन है जो कि क्रमशः एक ही पत्र पर अनेक भागों में विभाजित है। यहां काव्य को एक-एक फलक पर अलग दृश्यों द्वारा विभाजित किया गयाएक ही पत्र पर 2, 3 अथवा कहीं-कहीं 6 भागों में दृश्य विभाजित कर चित्रों का चित्रण किया गया है। ऐसा ही Ext- 98 पोथी में है। बस दोनों पोथियों में दृश्य विभाजन का तरीका जैसे हाशियेतोरणाकृति व लताकंुज द्वारा ये विभाजन अलग प्रकार से किया गया है।

रूप- दोनों पोथियों का कथानक एक होने पर भी इनके चित्रों में विभिन्न प्रकार का अन्तर है। चित्र रचना में सजीवता होते हुए भी सरलता है। इन चित्रों में बादलोंवृक्षोंतोरणाकृति आदि को जिन रूपाकारों में चित्रित किया है वे उन रूपाकारों के संक्षिप्त रूप है। Ext- 334 में चित्रकार ने आकृतियों में जो वेशभूषा का अंकन किया है उसमें दो प्रकार प्राप्त होते है एक में तो बिन्दुओंचौकोर खानों द्वारा कपडे़ पर डिजाइन दिखाई दिया और एक में धारियाँरंगअंलकार आदि का प्रयोग किया गया। साथ ही सपाट धरातल पर इसमें चित्रण कार्य निहित हैयद्यपि इन पोथी के चित्रो में रेखीय अंकन की तकनीक का उपयोग हुआ है तथापि इनके चित्र भावाव्यक्तिपूर्ण है। Ext- 98 में चित्रों में सघनता और अधिक बारीकी से चित्रण किया गया पहली पोथी की अपेक्षा। वेशभूषा में फूल-पत्तियाँरेखाबिन्दू आदि द्वारा व सपाट धरातल पर चित्रण कार्य किया गया है। पहली पोथी की अपेक्षा इसमें रेखाओं और कोणीय अंकन पर अधिक बल दिया गया है।

वर्ण- यहाँ वर्ण का अर्थ रंग से है दोनों ही चित्रों में प्राथमिक रंगों को ही प्रधानता दी गयी है जो परस्पर तुलनीय हैइन पोथी चित्र शैली ने रेखांकन में परिष्कृत उपलब्धियों को प्राप्त कर लिया था अतः चित्र संयोजन में अधिक जटिलता में सूक्ष्मता दृष्टिगोचर होती है। पहली पोथी के अधिकांश पन्नों में चित्रों का निर्माण स्याह कलम से किया गया हैवैसे पोथी में चित्र निर्माण के लिए कालेपीलेलाल व हरे रंगों का भी प्रयोग हुआ है। काले रंगों का प्रयोग चित्रकार ने पोथी की लिखाईराधा के मुख-मण्डलोंवृक्षों की डालियोंतनोंराधा-कृष्ण के बालोंचोटियों तथा बादलों के प्रदर्शन के लिए किया है। कृष्ण के वस्त्रोंअलंकरणों और शरीर के प्रदर्शन के लिए पीले व लाल रंगों का प्रयोग किया गया है। वृक्षों के प्रदर्शन में उनके फूलों को लालपत्तियों को हरा तथा तनों व जड़ों को काले रंगों के माध्यम से निरूपित किया गया है। कृष्ण व राधा के शरीर के लिए अधिकांश चित्रों में पीले रंगों का प्रयोग है। राधा को लाल साड़ी से युक्त दिखाया गया है। नदी का प्रदर्शन काली रेखाओं के माध्यम से किया गया हैउसके किनारे उगी हुई घासों व वृक्षों को लाल फूलों व हरी पत्तियों से सजाया गया है। पोथी में पीले रंग का प्रयोग खुल कर किया गया है तथा पोथी का पन्ना भी हल्का पीला है। परन्तु दूसरी पोथी में केवल काले रंग का ही प्रयोग किया गया राधा-कृष्ण के चित्रांकन में उनके वस्त्रोंआभूषणों तथा राधा या उसकी सखी के मुख-मण्डलों आदि को काली स्याही से गाढ़ा करके चित्रित किया गया तथा राधा की चोटियोंजूड़ों को भी काली स्याही से ही चित्रित किया गया है। इसमें काली स्याही हो ही कहीं गाढ़ा या कहीं हल्के रूप में प्रयोग करके चित्रण कार्य किया गया है।

तान- रंगों का हल्कापन व गहरापन ही तान कहलाता हैजो कि दोनों पोथियों के ही चित्रों में देखने को मिलता है। इनमें गहरे रंग की रंगत तथा हल्की रंगत दोनों ही दृष्टिगोचर होती है।

अन्तराल- एक निश्चित चित्र सतहजिस पर हम चित्र बनाते हैं अंतराल कहलाता है। दोनों ही पोथियों में अन्तराल सपाट व द्वि-आयामी है। पोथी में चित्रित चित्र सपाट अन्तराल पर ही चित्रित है। चित्रों में चित्ररचना समतल धरातल के साथ इसमें फलक को पृष्ठभूमि व अग्रभूमि में विभाजित नहीं किया गया बल्कि कथावस्तु के विभिन्न दृश्यों को चित्रित करने के उद्देश्य से अन्तराल को कुछ भागों में विभक्त किया गया है।


फलक में हाशियें- Ext- 334 में हाशियें के लिए सपाटसाधारण व द्वि-धारी लम्बवत् रेखाओं का अंकन है। तो Ext- 98 में हाशिये बहुत सुन्दर अलंकारिक रूप में हाशियें अंकित किएजिनमें ज्यामितीय आकार भी देखने को मिलता है।

नर एवं नारी आकृति- इन पोथी अंकन में कोणीयताएकचश्मीय चेहरेमाथे तक जाते हुए नेत्रचपटा सिर, सुती हुई नासिकामुड़ी हुयी गर्दनआदि अपभंरश शैली में है। पहली पोथी में पात्रों के लिए प्रारम्भ में दशावतारों व राधा-कृष्ण व सखी का अंकन है तो वहीं दूसरी पोथी के फलकों में गणेशसरस्वती फिर दशावतार व राधा-कृष्णसखी और पण्डित जयदेव का अंकन किया गया है।

वेशभूषा- वस्त्रों में नुकीले छोरों वाले कोणीय प्रभाव से युक्त धोतीलहंगा आदि में आलेखन हेतु खड़ी रेखाओं के साथ अंकन व साड़ी में निकाले गए घूम है। कोणीय दुपट्टा तथा उस पर खड़ी रेखाओं व बिन्दुओं का अंकनसभी आकृतियों में शरीर से चिपकी चोलीउनपर आभूषण शोभनीय है।

स्थापत्य- स्थापत्य के लिए चित्रकार ने पोथी न. 334 में अलंकारिक खम्बेतोरणाकृति युक्त स्थापत्य के बीच में पात्रों का अंकन बहुत ही सुन्दर रूप में किया है। पोथी न. 98 में अलंकारिक खम्बेतोरणाकृति स्थापत्य के साथ प्राकृतिक तोरणाकृति का भी अंकन किया गया है।

पशु-पक्षी- पोथी न. 334 में पशु-पक्षी का अंकन सुन्दर रूप में किया गयाजिसमें मृगसूकरबत्तखमछली आदि का अंकन है। ऐसे ही पोथी न. 98 में पक्षीमोरसूकरमृगभवरेआदि को सुन्दर उपवन में काल्पनिक रूप से चित्रित किया जैसे इस पोथी में वृक्षों को उनके तनों से लिपटी हुयी लताओं के साथ वृक्षों के पत्तों के मध्य पक्षियों या बंदरों को बैठे चित्रित किया गया है।

प्रकृति- पोथी न. 334 में प्रकृति चित्रण में चित्रकार ने कठोर रेखाओं का प्रयोग किया हैयहाँ प्रकृति में लयात्मकता कम देखने को मिलती है। दूसरी पोथी की अपेक्षा इस पोथी में प्रकृति का अंकन लघु रूप में हुआ है। पोथी न. 98 में पहली पोथी की अपेक्षा प्रकृति के अंकन में ज्यादा लयात्मकता उत्पन्न की गई हैइसमें चित्रकार के हर फलक पर प्रकृति का चित्रण किया है चाहे वह पंचहोल को ही अंलकृत क्यों न करना हो। लहराते वृक्ष इस पोथी की शान है व जो इसे पहली पोथी से भिन्न भी बनाते है।

निष्कर्ष निष्कर्ष स्वरूप हम कह सकते है कि दोनों ही पोथियों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर अनुभव होता हकि इन दोनों पोथी में विभिन्नताओं के बावजूद भी यह स्त्रोताओं का बराबर मात्रा में अध्ययन का कारण है। इन पोथी में भिन्नता के साथ समानता भी देखने को मिलता है जैसे- दोनों पोथियों का संरक्षण केन्द्र एक ही है, श्लोकों का वर्णन दोनों पोथियों में एक समान है, दोनों में लेखन के लिए काली स्याही प्रयुक्त की गई, दोनों ही पोथियों में काव्य के साथ चित्रण हैं आदि। चित्रकारों ने कलाकृतियों को अपने अनुसार ग्रहण किया जिनके द्वारा इनकी दिन प्रतिदिन प्रतिलिपियाँ तैयार की जाती आ रही है। जिसमें वह इन चित्रों से प्रेरणा लेकर अपने स्वज्ञान को अपनाते हुए चित्रों की रचना करते हैं। निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि इन दोनों पोथी चित्रकार की दृष्टि इतनी परिपक्व थी कि दोनों पोथियों में समय अन्तर के बावजूद भी कला शैली में फीकापन नही आया व यह अपने चित्रण के महत्व को आज भी सुन्दर रूप में बरकरार रखे हुए है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. https://odishamuseum.nic.in/?q=node/576 2. https://odishamuseum.nic.in/?q=node/588 3. dwedi, P. (1988). Bhartiya laghu chitro me geetgovind. Varansi: Kala Prakashan, Kashi Hindu Viswa Vidyalaya. p. 51. 4. Katrine Mallan, E. G. (2006). Is digitization sufficient for collective remembering? Access to and use of cultural heritage collections. Canadian Journal of Information and Library Science . 5. David, D. (1968). The Alphabet. 3rd ed., London: Hutchinson & co. p. 287. 6. Malla, Bhagyalipi. (2008). Flora and Fauna in Palmleaf Panorama. Bhubaneswar: Odisha State Museum.