ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- IV July  - 2022
Anthology The Research
पटना जिला के बिहटा प्रखण्ड में सिंचाई प्रबंधन का एक संक्षिप्त भौगोलिक अध्ययन
A Brief Geographical Study of Irrigation Management in Bihta Block of Patna District
Paper Id :  16253   Submission Date :  17/07/2022   Acceptance Date :  20/07/2022   Publication Date :  25/07/2022
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आदर्श कुमार विद्यार्थी
शोध छात्र
भूगोल विभाग
पाटिलपुत्र विश्वविद्यालय
पटना,बिहार, भारत
सारांश यह अध्ययन क्षेत्र पटना जिले के बिहटा प्रखण्ड के सिंचाई प्रबंधन से संबंधित हैI यह कृषि प्रधान प्रखण्ड है और किसान अनेक फसल उगाते हैं, कृषि प्राथिमक उद्यम है जो सदियों से सभ्य समाज के क्रिया कलापों का प्रतीक रहा हैI यह न केवल बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है बल्कि एक विशाल जनसँख्या की जीवन पद्यति भी है I अतः फसलों की सिंचाई सम्बंधित साधनों का विकास किया जाना आवश्यक हैI उचित सिंचाई प्रबंधन के द्वारा ही कृषि को उन्नत किया जा सकता है I
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद This study area is related to the irrigation management of Bihta block of Patna district. It is an agricultural block and farmers grow many crops, agriculture is the primary enterprise which has been a symbol of civil society activities for centuries. It is not only the backbone of the economy of Bihar. But it is also the lifestyle of a huge population. Therefore, it is necessary to develop the means related to irrigation of crops. Agriculture can be improved only with proper irrigation management.
मुख्य शब्द सिंचाई प्रबंधन, कुआँ, तालाब, नलकूप, पईन, आहरI
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Irrigation Management, Wells, Ponds, Tube Wells, Pine, Ahar.
प्रस्तावना
कृषि प्राचीन काल से ही सर्वोच्च पेशे के रूप में अपनाया गया है क्योंकि कृषि ही सभी मूलभूत आश्यकताओं की आपूर्ति का प्रमुख स्रोत रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर ही निर्भर हैI अतः कह सकते है की कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड हैI कुल जी०डी०पी का लगभग 17.4% आय कृषि से जुडी हुई है तथा जनसँख्या का दो तिहाई से अधिक भाग कृषि एवं इनसे जुड़ी गतिविधिओं से लगा हुआ हैI इसके बावजूद भारतीय कृषि विभिन्न समस्याओ से घिरा हुआ है यह अध्ययन क्षेत्र पटना जिला के बिहटा प्रखण्ड में सिंचाई प्रबंधन से सम्बंधित है I यहाँ कृषि की सफलता बहुत हद तक सिंचाई की समुचित व्यवस्था पर निर्भर है I इसलिए यहाँ सिंचाई के साधनों का विकास एवं उनका प्रबंधन अति आवश्यक है I हम जानते है की खेतों में कृत्रिम तरीकों को अपनाकर पानी पहुँचाने को सिंचाई कहते हैI कुओं तालाबों नहर आहर पईन तालाब सिंचाई के प्रमुख साधन है मानसून की सीमित अवधि तथा अनिश्चितता ने सिंचाई की आवश्यकता को बढ़ावा दिया है I यही कारण है की राष्ट्रीय स्तर पर सिंचाई के साधनों का विस्तार किया जा रहा हैI
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध कार्य का मुख्य उद्देश्य बिहटा प्रखण्ड में सिंचाई की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए सिंचाई के उचित साधनों के उपाय एवं प्रबंधन का पता लगाना एवं जल प्रबंधन का उचित व्यवस्था एवं जल आपूर्ति का समायोजित विकास के विधि तंत्रों को निश्चित करना हैI
साहित्यावलोकन

जल संसाधन एवं आधुनिक सिंचाई प्रबंधन अध्ययन में विभिन्न प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान से जुड़े विद्वानों की गहरी अभिरुचि रही है जल संसाधन के आकलन वितरण एवं प्रबंधन के क्षेत्र में भू वैज्ञानिकों जल वैज्ञानिकों मौसम विदो तथा भूगोल वेताओ के द्वारा अनेक शोध कार्य किए गए हैं तथा इसमें संबंधित ज्ञान एवं साहित्य को समृद्ध किया गया है प्रारंभिक अध्ययन में जहां ज्ञान एवं साहित्य जल संसाधन के आकलन विवरण एवं कृषि में सिंचाई प्रबंधन को अधिक महत्व दिया गया है। आज वर्तमान समय में जल संसाधन से संबंधित समस्याओं विशेषकर जल की उपलब्धता की कमी और प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए विगत कुछ दशकों से शोध अध्ययनो में जल संसाधन के आकलन एवं वितरण एवं सिंचाई प्रबंधन के साथ उसके संरक्षण एवं उचित प्रबंधन से संबंधित पहलुओं पर विशेष बल दिया जा रहा है ।

जल संसाधन की उपलब्धता आकलन वितरण एवं सिंचाई प्रबंधन पर कई भारतीय विद्वानों ने शोध कार्य किया है कि इसमें आर. सी. श्रीवास्तव का सरयूपार का मैदान उत्तर प्रदेश के जल और उसकी उपयोगिता का अध्ययन आर. एन. माथुर द्वारा मेरठ जनपद में भूमिगत जल का अध्ययन डी. के. रोड " General water hydrology" (1959) ई. ई. फास्टर "rain fall and run off"के एल. राव की indian's  water wealth"(1973) जल संसाधन के क्षेत्र में मील के पत्थर हैं ।

शोध कार्य एवं पुस्तकों के अलावा कई प्रकाशित प्रकाशित रिपोर्टों का भी जल संसाधन विषयक अध्ययन के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है।

 एम. एल. श्रीवास्तव की  अप्रकाशित रिपोर्ट (1974)"Hydrological condition in banda district U.P. तथा बी. एन. सक्सेना एवं एस.के. गर्ग की "Gernal water studies in Bundelkhand" विशेष रूप से उल्लेखनीय है एवं Anandiv (2016) पूर्वोत्तर बिहारी की मिट्टी एवं  जल संसाधन के उपयोग एवं प्रबंध  भौगोलिक अध्ययन  पृष्ठ –१८  बी. एन. Mondal University madhepura एवं कई अंतरराष्ट्रीय संगठन जो जल विज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं । American water Resource Association E.S.C.A.P. (1982) कृषि मंत्रालय द्वारा प्रकाशित हेडबुक ऑफ हाइड्रोलॉजी योजना द्वारा   टास्क फोर्स ऑन ग्राउंडवाटर रिसोर्सेस केंद्रीय जल बोर्ड तथा विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों द्वारा किए  गए कार्य का अध्ययन एवं विश्लेषण महत्वपूर्ण है।

मुख्य पाठ

प्रखण्ड में सिंचाई की आवश्यकता के प्रमुख कारण-

1-जलवायु मानसूनी होने के कारण वर्षा का समय पर न होना अर्थात वर्षा का समय पर होना अनिश्चित है जिसके कारण कृषि कार्य सिंचाई के साधनों पर ही निर्भर है।

2-अल्पकालीन मानसून- यहाँ वर्षा ऋतु अल्पकालीन है जो जुलाई अगस्त सितम्बर तक सीमित है। इनमें कभी-कभी वर्षा काल के बीच कई सप्ताह तक वर्षा नहीं होती है एवं फसल मरने लगती है। कृषि फसल के नुकसान से किसानों की हालत दयनीय हो जाती है अतः कृषि की सफलता के लिए सिंचाई प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है।

3-अतिवृष्टि- वर्षा ऋतु मानसून आने पर कभी-कभी मूसलाधार वर्षा होती है जिसके कारण धान की कृषि तो अच्छी होती है लेकिन अन्य फसलें प्रभावित होती है, वर्षा जल का संचयन न होने के कारण जल का भूमिगत संग्रह नहीं हो पाता एंव अन्य मार्गों के द्वारा बह जाता है अतः वर्षा होने पर भी सिंचाई आवश्यक हो जाता है।

4-अल्पवृष्टि- वर्षा की मात्रा की अपर्याप्तता के कारण फसलों में सिंचाई आवश्यक हो जाती है। धान चूँकि मानसूनी जलवायु उपज है लेकिन अल्पवृष्टि के कारण सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है इसके अलावे ईख,प्याज,आलू एवं सब्जियों की फसलों के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है चूँकि वैज्ञानिक खेती के लिए सिंचाई ही प्रमुख है क्योंकि आवश्यकता अनुसार सिंचाई वर्षा द्वारा संभव नहीं है।

5-शरद ऋतु में मानसून का अभाव- भारतीय मानसून ग्रीष्मकालीन है जिसके कारण बिहटा प्रखण्ड में शरद ऋतु में वर्षा का अभाव रहता है जाड़े की फसल उगाने के लिए सिंचाई के साधनों का उपयोग आवश्यक हो जाता है।

6-सिंचाई के साधन- बिहटा सामुदायिक विकास प्रखण्ड में कृषक परम्परागत सिंचाई साधनों का उपयोग के अभाव में आधुनिक सिंचाई साधनों पर निर्भर होने लगे लेकिन गरीब कृषक अभी परम्परागत कृषि को ही आधार बनाने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, वे नहर कुंआ तालाब, नलकूप, आहर अन्य साधनों से सिंचाई कार्य पर निर्भर हैं।

1.कुंआ- कुंआ से प्रखण्ड का लगभग 2% ही भूमि पर सिंचाई है अतः जिसके कारण कुंआ की महत्वत्ता कम हो गया है, कुंआ द्वारा सब्जियों की खेती कुछ गाँवो में की जाती है।

2. नहर -बिहटा प्रखण्ड से होकर छोटी नहर गुजरती है यह नहर सोन नदी से निकलती हुई मनेर दियारा तक सीमित है इसमें प्रखण्ड के सभी गाँव लाभान्वित है। लेकिन समय पर पानी नहीं आने के कारण सिंचाई अन्य साधनों पर निर्भर हो जाता है।

3. तालाब -वर्षा जल का संचयन भूमि के रिक्त तालिकाओं में होने से जैसे भूमि का निचला स्तर, आहर, पईन, पोखर, तालाब इत्यादि बरसाती नदी में जल जमाव से झीलनुमा तालाब बन जाते हैं जिससे कृषि क्षेत्रों में सिंचाई करना बहुत ही आसान हो जाता है, ये प्राकृतिक तालाब कहे जाते है। इसके अलावे कृत्रिम तरीके से जमीन की खुदायी कर तालाब बनाए जाते है जिसके फलस्वरूप वर्षा जल का संचयन होता है इस प्रकार इन तालाबों से कृषि सिंचाई किया जाता है।

4.नलकूप- आधुनिक सिंचाई के लिए नलकूप का विस्तार एंव प्रबंधन आवश्यक है क्योंकि वैज्ञानिक कृषि के लिए नहर के बाद नलकूप ही दूसरा सिंचाई के प्रमुख साधन है इसके द्वारा प्रखंड के लगभग 58 % भाग पर सिंचाई की जाती है।

5.अन्य साधनों मे- पईन, आहर, पोखर प्रमुख सिंचाई के साधन हैं जो वर्षाजल पर निर्भर है लेकिन आज इन पोखर तालाबों आहर, पईन को भरकर भवन निर्माण के कारण वर्षा जल का संचयन नहीं हो पाता है जिसके कारण आधुनिक सिंचाई महत्वपूर्ण हो गया है।





कुल सिंचित भूमि का प्रतिशत

सिंचाई के साधन

2012-2013

2013-2014

2014-2015

2015-2016

नहर

37

39

41

41

नलकूप

36

37

39

39.77

तालाब

5

6

7

6

अन्य

2

3

4

4

स्रोत प्रखण्ड कार्यालय बिहटा

सिंचाई की समस्याएँ- बिहटा प्रखण्ड में नगरीकरण कृषि क्षेत्र में अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है।

1. प्राकृतिक तालाबों एवं आहरों का तेजी से भराव- चूंकि तालाबों में प्रतिवर्ष वर्षा जल के साथ बड़ी मात्रा में अवसाद जमा हो जाते हैं जिसके कारण वर्षा जल संचयन पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है। अतः तालाब शीघ्र सूख जाते हैं जिससे सिंचाई कार्य सीमित अवधि तक ही हो पाती है। इसके अलावे बहुत से तालाब कूड़े-कचड़े से भर जाने के कारण या उन तालाबों को भरकर भवन निर्माण के कारण वर्षा जल का संचयन नही हो पाता है।

2. सरकारी नलकूपों का सही ढंग से संचालन न होना- बिहटा प्रखण्ड में जो नलकूप पहले से हैं उनकी स्थिति अच्छी नहीं है क्योंकि उनका रख-रखाव सही ढंग से नहीं हो रहा है बहुत कम ही नलकूप सही अवस्था में है।

3. भूमिगत जल स्तर का गिरना- आधुनिक नलकूपों द्वारा भूमिगत जल का अधाधुंध प्रयोग द्वारा भूमिगत जल स्तर गिरता जा रहा है। कृषि की उपज बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाली उन्नत बीजों का प्रयोग किया जाता है इसके लिए भरपूर सिंचाई की आवश्यकता होती है। आधुनिक नलकूपों द्वारा भूमिगत जल के भण्डारों का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है जिसके कारण भू जल स्तर तेजी से गिर रहा है।

सामग्री और क्रियाविधि
शोध पत्र को तैयार करने के लिए प्रखण्ड के मानचित्रों का अध्ययन किया गया एवं प्राथमिक द्वितीयक आँकड़ो के द्वारा सूचनाओं को एकत्रित किया गया है प्रखंड कार्यालय लघु सिंचाई विभाग द्वारा सिंचाई संबंधित आँकड़ों को संग्रहीत किया गया है। प्रश्नावली तैयार कर सर्वेक्षण एंव पूछताछ के द्वारा विभिन्न सूचनाओं को संग्रहीत किया गया है।
परिणाम

सिंचाई समस्या के समाधान के उपाय-

1.परम्परागत सिंचाई साधनों का विकास करना अतिमहत्वपूर्ण है, परम्परागत सिंचाई के साधनों जैसे तालाब, कुआँ, पईन, नहर, आहर इत्यादि महत्वपूर्ण जल के तालिकाएं है जो प्राकृतिक स्रोत है जिससे वर्षा जल का संचयन होता है और सिंचाई के साथ-साथ भूमिगत जल का स्तर बना रहता है।

2.तकनीकी विकास- जल के दोहन को रोकने के लिए कृषि में सिंचाई के लिए ड्रीप सिंचाई लिफ्ट सिंचाई सूक्ष्म फुहारों से सिंचाई का अधिकाधिक प्रयोग होना चाहिए इस तकनीकी विकास के लिए उन उपक्रमों को उपलब्धता एवं उनका प्रबंधन आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। एवं सिंचाई के सही उपयोग हेतु पंचायती राज्य स्तर पर सरकारी स्तर पर गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा शिक्षित लोगों द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए एवं कृषि के तकनीकी विकास में आधुनिक सिंचाई वैज्ञानिक तरीके से करने की पहल पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

सिंचाई प्रबंधन का प्रभाव एवं सिंचाई क्षेत्रों में धारणीय विकास को बढ़ावा- सिंचाई प्रसार में कृषि अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है। सिंचाई व्यवस्था में सुधार होने से उपलब्ध बोये जाने वाले क्षेत्र का विस्तार हुआ है परती भूमि में कमी आयी है। प्रखण्ड में सतत् पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए कई उपायों पर अमल किया जा रहा है तथा जल प्रबंधन नीति को लागू किया जा रहा है। आधुनिक कृषि में सिंचाई प्रबंधन के कारण फसल उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है। ग्रीष्म ऋतु में जायद (गरमा) फसले खूब लगायी जाती हैं। मुख्य फसलों में मकई और सब्जियों खासकर खीरा, ककड़ी कद्दू भिंडी इत्यादि महत्वपूर्ण है।

सिंचाई प्रबंधन के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि होने से ग्रामीणों के जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है।

भूमिगत जल संसाधन (Ground Water Resources):- भारत 2020 के अनुसार देश की कुल वार्षिक परिपूरणीय भू-जल मात्रा 447 विलियन क्यूविक मीटर तथा कुल वार्षिक भू-जल उपलब्धता 399 बिलियन क्यूसिक मीटर है। वर्तमान में सभी उपयोगो के लिए मौजूदा सकल भू-जल उपयोग 231 बिलियन क्यूसिक मीटर प्रतिवर्ष है। भू-जल विकास 58 प्रतिशत प्रतिवर्ष पहुँच गया है। देश के विभिन्न क्षेत्रों एवं पंचायतों में भू-जल का विकास समान रूप से नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्रों में जैसे पंजाब, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि भू-जल स्तरों में बेहद गिरावट आयी है और तटवर्ती क्षेत्रों में समुद्री जल का अन्तः प्रवेश हुआ है।

भारत में प्रतिवर्श जल उपलब्धता 

वर्ष

जल उपलब्धता क्यूसिक मी0 में

2001

1820

2011

1545

2025

1340

2050

1140

स्रोतः- भारत 2019
समेकित जल संसाधन प्रबंधन के राष्ट्रीय आयोग (NCIWRD) की रिपोर्टानुसार देश में वर्षा के माध्यम से प्रतिवर्ष 4000 बिलियन क्यूसिक मीटर (BCM) जल प्राप्त होता है। वार्षिक तौर पर 1700 क्यूसिक मीटर्स से कम व्यक्ति जल उपलब्धता को कमी वाली स्थिति मानी जाती है।
योजना आयोग ने सिंचाई साधनों संबंधी योजनाओं को मुख्यतः तीन वर्गों में बाँटा है-
1.वृहत सिंचाई योजनाएँ- इस वर्ग में उन सिंचाई याजनाओं और कार्यक्रमों को सम्मिलित किया जाता है जिनकें अन्तर्गत 10 हजार से अधिक हेक्टेयर का कृषि योग्य क्षेत्र आता है इस वर्ग में नहरें एवं बहुउद्देशीय योजनाएँ सम्मिलित है।
2.माध्यम सिंचाई योजनाएँ- इस वर्ग में उन सिंचाई योजनाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनके अन्तर्गत कृषि योग्य क्षेत्र 2000 हेक्टेयर से अधिक किन्तु 10000 हेक्टेयर से कम हो। ये योजनाएँ मध्यम आकार की होती है। देश में विकसित छोटी नहरें इसी वर्ग की सिंचाई योजनाओं का उदाहरण है। बिहटा सामुदायिक विकास प्रखण्ड में भी सिंचाई योजनाएँ मध्यम सिंचाई योजनाओं से अन्तर्गत आता है। सोन नहर से छोटी नहर बिहटा प्रखण्ड की सिंचाई प्रबंधन में सहायक है।
3.लघु सिंचाई योजनाएँ- इस वर्ग में उन सिंचाई योजनाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनका कृषि योग्य क्षेत्र 2000 हेक्टेयर या उससे कम हो इस वर्ग की योजनाओं में कुएँ, तालब, ड्रिप सिंचाई, नलकूप पम्पसेट और छोटी-छोटी नहरों को सम्मिलित किया गया है। भारत की सिंचाई का 62% की आपूर्ति लघु सिंचाई योजनाओं से ही की जाती है। बिहटा प्रखण्ड में लघु सिंचाई विभाग के द्वारा इन योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाता है। राष्ट्रीय लघु सिंचाई मिशन द्वारा गठित कार्यबल द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर जनवरी 2006 में लघु सिंचाई पर केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना शुरू की गई थी। इन योजना को जून 2010 में राष्ट्रीय लघु सिंचाई मिशन नाम देकर मिशन में तब्दील किया गया। यह योजना कृषि में जल उपयोग की दक्षता को बढ़ाने के लिए लघु सिंचाई प्रौद्योगिकी के रूप में लोकप्रिय हुई है। नौंवी कृषि संगणना 2010-2011 के अनुसार देश में सिचाई का मुख्य स्रोत नलकूप (45.17 प्रतिशत) था इसके पश्चात क्रमशः नहर, कुआँ, तालाब थे। कृषि संगणना 2010-2011 के अनुसार- नहरों द्वारा 26.19 प्रतिशत क्षेत्र पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जाती थी। कुँओं द्वारा कुल 18.46 प्रतिशत क्षेत्र पर सिंचाई की जाती थी। इकोनामिक्स एंड स्टैटिकल मिनिस्ट्री आफ एग्रीकल्चर एण्ड फार्मर वेलफेयर 2018 के अनुसार वर्ष 2014-15 में देश के कुल सिंचित क्षेत्र का 46.21% नलकूपों 23.66% नहरों 16.60 % तालाबों तथा 10.99 % अन्य साधनों द्वारा प्राप्त होता है।

निष्कर्ष उपर्युक्त दिये गए विश्लेषण एवं आंकड़ो तथ्यों से ज्ञात होता है कि भारत में लघु सिंचाई मिशन द्वारा गठित कार्यो का क्रियान्वयन किया जा रहा है। एवं राज्य के जिले प्रखण्ड में उनका विस्तार किया जा रहा है। बिहटा सामुदायिक विकास प्रखण्ड में कृषि उत्पादन में सिंचाई प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका है प्रखण्ड में सिंचाई के विस्तार के कारण ही ग्रामीणों तथा किसानों के कृषि उत्पादन में काफी सुधार हुआ है जिसके फलस्वरूप उनके आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
अध्ययन की सीमा बिहटा प्रखण्ड पटना जिले के गंगा नदी के दक्षिणी भाग में स्थित है इसकी अक्षांशीय स्थिति 25° 33‘ 0“ और 84° 52‘ 0“ है, जिसकी कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 261427 है, एवं ग्रामीण जनसंख्या लगभग 20,54433 है बिहटा प्रखण्ड की सीमा उत्तर में मनेर (दियारा) दक्षिण में नौबतपुर अंचल पश्चिम में परेत एवं पूरब में दानापुर अंचल तक है। बिहटा प्रखण्ड का कुल क्षेत्रफल 71.32 वर्गमील है। कुल रकवा 18294.1 हेक्टेयर भूमि में 14635.28 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। स्थानीय सर्वे एवं गूगल अर्थ नक्शे के आधार पर इसकी बनावट दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर ढाल है और इसकी ऊँचाई समुद्र तल से 12 मी. है जो बिहटा स्टेशन पर बेंच मार्क किया हुआ है। भूगर्भिक संरचना होलोसीन युग के अवसादों के जमाव से हुआ है, यहाँ पर कुल मिलाकर सभी क्षेत्रों में बलुई एवं दोमट मिट्टी की प्रधानता है फसल में गेहूं धान मक्का आलू एवं हरी सब्जियों की खेती की जाती है। प्रखण्ड के लगभग 75 % लोग कृषि पर आश्रित हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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