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जल सम्भरण विकास कार्यक्रम के उद्देश्य (भरतपुर जिले के सन्दर्भ में) | |||||||
Objectives of Water Supply Development Program (With Reference to Bharatpur District) | |||||||
Paper Id :
16319 Submission Date :
2022-08-04 Acceptance Date :
2022-08-22 Publication Date :
2022-09-25
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सारांश |
जल सम्भरण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत जल संचयन, जल के सदुपयोग आदि पर विशेष जोर दिया जाता है । जल की कमी वाले क्षेत्रों में इस प्रकार के कार्यक्रम सम्पूर्ण विकास में सहायक सिद्ध हो रहे हैं । प्रस्तुत शोध पत्र में भरतपुर जिले में विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत संचालित जल सम्भरण विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत निर्धारित पारिस्थितिक सन्तुलन, मृदा संरक्षण, वर्षा जल संचय, भू-गर्भ जल का पुनः सम्भरण, कृषि विकास, पशु पालन, वृक्षारोपरण, वानिकी, स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि, मृदा अपरदन को रोकना, कृषि उत्पादन में वृद्धि, चारागाह विकास आदि उद्देश्यों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है । जल सम्भरण विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में मानचित्र एवं दूरसंवेदी तकनीकी के प्रयोग के बढ़ने से इन कार्यक्रमों की सार्थकता और बढ़ गयी है । आधुनिक तकनीकी के उपयोग से कृषि पद्धति, सामाजिक वानिकी, मृदा संरक्षण तथा जल संरक्षण की योजनाऐं बनाई जा रही हैं क्योंकि अलग - अलग भोगौलिक परिस्थिति के अनुसार विधि तंत्र अपनाकर योजना तैयार की जाती है। ताकि अधिकतम उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके ।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Under the watershed development program, special emphasis is laid on water harvesting, efficient use of water etc. In areas with water scarcity, such programs are proving to be helpful in the overall development. In the present research paper, in Bharatpur district, under various schemes, the ecological balance, soil conservation, rainwater harvesting, recharge of ground water, agricultural development, animal husbandry, plantation, forestry, local people's welfare, etc. Efforts have been made to clarify the objectives of increasing income, preventing soil erosion, increasing agricultural production, pasture development, etc. With the increase in the use of maps and remote sensing technology in the implementation of watershed development programs, the significance of these programs has increased further. With the use of modern technology, plans are being made for agricultural system, social forestry, soil conservation and water conservation, because according to different geographical conditions, the plan is prepared by adopting the legal system. so that maximum objectives can be achieved. | ||||||
मुख्य शब्द | जल सम्भरण, संसाधन, संरक्षण, अनूकूलतम उपयोग, अवधारणा, वारानी क्षेत्र, सूखा सम्भाव्य, आश्वासित रोजगार, यूजर्स कमेटी, क्रियान्वयन, स्वयं सहायता समूह । | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Water Supply, Resources, Conservation, Optimum Use, Concept, Rainfed Area, Drought Prone, Assured Employment, Users Committee, Implementation, Self-Help Groups. | ||||||
प्रस्तावना |
तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या एवं सीमित संसाधनों के मध्य असन्तुलन बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि संसाधन गतिकीय दर से एवं जनसंख्या ज्यामितीय गति से बढ़ती जा रही है राजस्थान का पूर्वी द्वार कहा जाने वाले भरतपुर जिले में भी यह असन्तुलन स्पष्ट देखा जा सकता है । अतः वर्तमान समय के उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं संतुलित उपयोग की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है । इसी क्रम में प्रमुख प्राकृतिक संसाधन भूमि एवं जल के उचित प्रबन्धन एवं अनुकूलतम उपयोग के तरीके प्रयोग में लाये जाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। यद्यपि इस दिशा में अनेक प्रयास प्रारम्भ हुए लेकिन अस्सी के दशक में राष्ट्र स्तर पर विकसित जल संभरण विकास की विचार धारा इस दिशा में एक सार्थक पहल रही जिसके अन्तर्गत एक सीमित क्षेत्र में वर्षा के जल को एकत्रित कर इसके उचित प्रबन्धन से भूमि एवं जल का संरक्षण करना प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किया गया भारत में 1949 में दामोदर धारी निगम द्वारा जल संम्भरण के आधार पर समन्वित उपचार करके की अवधारण विकसित हुई लेकिन छोटे-छोटे बांधों के द्वारा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा के जल को संरक्षित करने की शुरूआत 1986-87 में राष्ट्रीय जल संभरण विकास कार्यक्रम के दौरान हुई।
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोध पत्र के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
1. जल संभरण विकास कार्यक्रम का परिचय,
2. विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत संचालित जल संभरण विकास कार्यक्रमों की पहचान,
3. जल संभरण विकास कार्यक्रमों के उद्देश्यों का प्रसार,
4. जल संभरण विकास कार्यक्रम की उपलब्धियों की पहचान। |
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मुख्य पाठ |
राजस्थान में इस प्रकार के कार्यक्रम 1990-91 भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा प्रारम्भ किये गये यह कार्यक्रम राजस्थान के श्री गंगानगर जिले के अलावा शेष सभी जिलों की उस समय की 234 पंचायत समितियों जहाँ 30 प्रतिशत से कम सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों मे प्रारम्भ किये गये इसी क्रम में भरतपुर जिले की रूपवास वैर एवं डीग तहसीलों में भी विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत जल संभरण विकास कार्यक्रम प्रारम्भ हुए ये प्रमुख योजनाएं निम्न प्रकार है। 1. वर्षा आधारित क्षेत्रों की जलग्रहण विकास परियोजना (National Watershed Development Project for Rain fed Areas) 2. सूखा सम्भाभ्य क्षेत्रों में जल सम्भरण विकास कार्यक्रम (Watershed Development Programme in Draught Prone Areas) 3. आश्वासित रोजगार योजना (National Watershed Development Project for Rain fed Areas) वर्षा आधारित क्षेत्रों की जलग्रहण विकास परियोजना प्रदेश में जल संसाधनों की कमी एवं अर्थव्यवस्था मानसूनी वर्षा के जल पर आधारित है। सिंचित क्षेत्र के कृषि उत्पादन द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पा रही थी तो असिंचित क्षेत्र की ओर ध्यान आकर्षित हुआ इसी उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जल ग्रहण विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत वर्षा के जल का समुचित उपयोग एवं असिंचित क्षेत्रों में कृषकों के आर्थिक विकास को केन्द्र में रखा गया National Watershed Development Project for Rain fed Areas केन्द्र सरकार द्वारा संचालित है। 1991-92 में यह परियोजना राजस्थान के 30 अन्य जिलों के साथ भरतपुर में भी प्रारम्भ हुई। इस योजना में जलग्रहण क्षेत्रों के विकास के लिए भूजल संग्रहण के साथ-साथ कृषि, पशुपालन, उद्यान कृषि कृषिवानिकी चारागाह विकास आदि को भी शामिल किया गया है। इस परियोजना में अर्न्तगत भरतपुर जिलों में निम्न तीव्र प्रमुख जलग्रहण क्षेत्र अध्ययन हेतु चुने गये हैं । भरतपुर जिले में वारानी क्षेत्रों की राष्ट्रीय जल संभरण विकास परियोजना के अन्तर्गत संचालित परियोजनाऐं
स्रोत:- जल ग्रहण विकास एवं भूसंरक्षण विभाग, भरतपुर सूखा सम्भाभ्य क्षेत्रों में जल सम्भरण विकास कार्यक्रम सूखा संभावित क्षेंत्रों में जल संभरण विकास कार्यक्रम अन्तर्गत क्षेत्र के विकास की नीति पर 1980 के दशक में ज्यादा बल दिया गया क्योंकि सूखा संभावित क्षेत्रों में अकाल, कुपोषण, महामारी, प्रवास, आर्थिक अस्थिरता, जनहानि आदि समानताएं देखी जा सकती हैं मानव के साथ-साथ पशु-पक्षी भी अनेक असमानताओं से ग्रसित रहते है। इन समस्याओं के निवारण हेतु यह योजना राज्य एवं केन्द्र सरकार के बीच 50-50 प्रतिशत वित्तीय व्यवस्था के आधार पर प्रारम्भ की गई है। भरतपुर जिलों में इस योजना के अन्तर्गत निम्नालिखित परियोजनाऐं संचालित है। सूखा सम्भावित विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत संचालित जल ग्रहण विकास कार्यक्रम
स्त्रोत:- जल ग्रहण विकास एवं भूसंरक्षण विभाग, भरतपुर आश्वासित रोजगार योजना इस योजना की शुरूआत 1993-94 में हुई। किसी भी परियोजना के सफल क्रियान्वयन में आम एवं स्थानीय लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी विचारधारा को ध्यान में रखते हुए जलग्रहण विकास कार्यक्रम में स्थानीय निवासियों की भागीदारी बढ़ाने एवं स्थानीय समस्यों की पहचान कर उनके निवारण के उपायों को ध्यान में रखते हुए इस योजना का खाका तैयार हुआ एवं विशेष क्षेत्रों की पहचान कर इस योजना को प्रारम्भ किया गया इसके अन्तर्गत भरतपुर जिलों में निम्न जलग्रहण क्षेत्र संचालित पाये गये । आश्वासित रोजगार योजना विकास कार्यक्रम अन्तर्गत संचालित जल संभरण क्षेत्र
स्त्रोत:- जल ग्रहण विकास एवं भूसंरक्षण विभाग, भरतपुर जल संभरण विकास कार्यक्रम के उद्देश्य जल संभरण विकास कार्यक्रम का मुख्य उददेश्य संसाधन एवं जनसंख्या के मध्य संतुलन स्थापित करना हैं ताकि सभी के लिए जीवन निर्वाह के अवसर उपलब्ध हो सके अर्थात विकास की ऐसी योजना बनाने की आवश्यकता है जिसके द्वारा अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों ही प्रकार के उददेश्यों की पूर्ती हो सके। संक्षेप में जल संभरण विकास कार्यक्रम के उददेश्यों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत रखा जा सकता है। 1. भू संरक्षण का प्रयास 2. नमी एवं मृदा संरक्षण 3. भूमि उपयोग बढ़ाना 4. शस्य गहनता को बढ़ाना 5. वर्षा पोषित एवं असिंचित क्षेत्रों के बीच की असमानता को कम करना 6. असिंचित क्षेत्रों में मृदा अपरदन रोकना 7. मृदा अपरदन को रोकने के नये तरीके खोजना 8. जल संरक्षण विधियों को बढ़ाना 9. वर्षा जल को रोकने की व्यवस्था करना 10. भूमिगत जल स्तर में वृद्धि 11. जल द्वारा अपरदन को रोकना 12. वर्षा जल को रोकने सिंचाई हेतु प्रयोग बढ़ाना 13. पारिस्थितिकी सन्तुलन को पुनः स्थापित करना 14. बागवानी को बढ़ावा देना 15. चारागाह विकास एवं सामाजिक वानिकी का विकास 16. स्थानीय निवासियों की आय में वृद्धि 17. स्थानीय निवासियों की भोजन लकड़ी एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ती। 18. पशुपालन विकास 19. मत्स्य पालन को बढ़ावा 20. सामाजिक आर्थिक स्तर में सुधार 21. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करना 22. कृषि आधारित लघु उद्दोगों की स्थापना 23. सभी विकासात्मक कार्यों में जन भागीदारी को बढ़ावा देना। |
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निष्कर्ष |
उपरोक्त विवेचन के आधार पर स्पष्ट है कि जल संभरण विकास कार्यक्रम जल एवं भूमि संसाधन के उचित प्रबन्धन के साथ-साथ जनसंख्या के सभी वर्गों को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास करते है। भरतपुर जिलों में विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत संचालित जल संभरण विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत स्थानीय निवासियों एवं दशाओं के अनुसार निर्धारित उददेश्यों को प्राप्त कर रहे है । ये कार्यक्रम मुख्य रूप से वैर, डीग, बयाना, एवं कामा तहसीलों में संचालित है जहां इनके उचित प्रबन्धन हेतु यूजर्स कमेटी गठित की गई है । उददेश्यों की प्राप्ति हेतु प्रत्येक जल संभरण विकास क्षेंत्र में स्थानीय निवासियों को जागरूक कर सभी कार्यों में भागीदार बनाया जाता है। यूजर्स कमेटी प्रत्येक माह कम से कम एक बैठक अवश्य आयोजित करती है। और योजना के सफल क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी प्रकार जलग्रहण विकास दल, स्वयं सहायता समूह, जल ग्रहण संस्था, जलग्रहण समिति, जल विकास एसोसिएशन वारानी चेतना केन्द्र आदि के सम्मिलित प्रयासों के द्वारा उददेश्यों की पूर्ति सम्भव हो रही है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. जल संभरण विकास कार्यक्रम में कार्यरत यूजर्स समितियों की निर्देशिका (2015 - 16) जल ग्रहण विकास एवं मृदा संरक्षण निदेशालय जयपुर (1-7 )
2. एकीकृत ग्रामीण विकास योजनाओं के अधीन जलग्रहण क्षेत्र विकास दिशा-निर्देशन 2007 विशिष्ट योजनाएं एवं एकीकृत ग्रामीण विकास विभाग राजस्थान सरकार जयपुर (पृ.3-7)
3. Technical Manual for Watershed Development, Watershed Development & Soil Conservation Department, Govt. Of Rajasthan, Jaipur.
4. Rao, Hanumanth (1994): Guidelines for Watershed Development, Ministry of Rural
Development & Govt. of India, New Delhi.
5. Karan, S.K. 1995 : Utilization of Barani Chetna Kendra, State Level Workshop on NWDPRA, Jaipur P8.
6. जाट विरधीचन्द (2000): राजस्थान में जलग्रहण प्रबन्धन के पोषणीय विकास के लिए समस्याऐं एवं सम्भावनाऐं
7. जलग्रहण क्षेत्र विकास पुस्तिका, स्वच्छता जल एवं सामुदायिक परियोजना, उदयपुर |