ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VI , ISSUE- XI February  - 2022
Anthology The Research
विज्ञापन की दुनिया
World of Advertisement
Paper Id :  15738   Submission Date :  12/02/2022   Acceptance Date :  20/02/2022   Publication Date :  25/02/2022
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रेणुका रानी
शोध छात्रा
चित्रकला विभाग
श्री कुन्द कुन्द जैन स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
खतौली, मुजफ्फरनगर, ,उत्तर प्रदेश, भारत
नीतू वशिष्ठ
एसोसिएट प्रोफेसर एंव अध्यक्षा
चित्रकला विभाग
श्री कुन्द कुन्द जैन स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
खतौली, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश हम विज्ञापन और जीवन के बीच के सम्बन्ध को समझे इससे पूर्व हमे जानना होगा कि विज्ञापन का अर्थ क्या है। दरसअल यह एक प्रचार माध्यम है जो वस्तु या सेवा को अधिक से अधिक उपभोक्ताओ को आकर्षित करता है। हम विज्ञापन की होड की ऐसी दुनिया मे जी रहे है, जहाँ से घर से निकलने के बाद हमारे आकर्षण के पूरे बदोबस्त किये होते है। बोर्ड, होडिंग, बैनर से पूरा बाजार विज्ञापनो से अटा पडा नजर आता है। विज्ञापन के लिये आज शब्द बहुतायत उपयोग होता है जो लैटिन भाषा के ऐडवरटेरे से बना है। जिसका आशय होता है दिमाग का आकर्षित होना, इसे सरल शब्दों में समझे तो वह वस्तु प्रचार का ऐसा सरल माध्यम है जिसके जरिये उपभोक्ताओ के मष्तिष्क कोे आकर्षित किया जाता है। हिन्दी के दो शब्दो वि और ज्ञापन से विज्ञापन बना है। वि का अर्थ होता है विशेष जबकि ज्ञापन का आशय सूचना अथवा ज्ञान है अर्थात् किसी ज्ञान या जानकारी को देना विज्ञापन कहलाता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Before we understand the relationship between advertising and life, we need to know what is the meaning of advertising. Actually it is a promotional medium which attracts more and more consumers to the goods or services. We are living in such a world of advertising competition, from where after leaving the house, our charms are fully arranged. Boards, hoardings, banners, the entire market seems to be littered with advertisements. The word for advertising today is used extensively, which is derived from the Latin language advertere. Which means attracting the mind, understand it in simple words, then that item is such a simple medium of promotion through which the mind of the consumers is attracted.
मुख्य शब्द विज्ञापन की दुनिया, विज्ञापन एवं समाज।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Advertising World, Advertising & Society.
प्रस्तावना
वस्तु की गुणवत्ता, दोष से इसका कोई सम्बन्ध नही होता है इसलिये कहा जाता है जो दिखता है वही बिकता है। आज लोग गुणवत्ता की परख को छोडकर विज्ञापन की हस्ती के कथानुसार ही खरीद करते नजर आ रहे है। विज्ञापन ही बाजार की मांग का निर्धारण कर रहे है। आज के भड़कीले और चमक-दमक वाले ऐड आम आदमी को मूर्ख बनाने की होड मे लगे है, जो जितने अधिक लोगो को मूर्ख बना सकता है वही अधिक माल कमाता है। खासकर अपरिपक्व बच्चों के दिमाग के साथ खेलना इन्हे बेहद पसन्द होता है, आमतौर पर विज्ञापन को इस तरह से तैयार किया जाता है जिससे महिला व बच्चों को अधिक आकर्षित किया जा सके। एक व्यक्ति के जन्म से मरण तक आवश्यक समस्त वस्तु आज विज्ञापन के जरिये प्रसारित की जाती है, जिसमें खाने-पीने की चीजें पहनावें के वस्त्र जूते, सरकारी योजनायें, अभियान, रैलियाँ, कार्यक्रम, विवाह, नौकरी, खरीद व बिक्री से जुडे लुभावने विज्ञापन बनाये जाते है। सभी आयु वर्ग की सीमा को लाघकर यह सार्वजनिक प्रचार किया जाता है। पान-मसालें से लेकर सोने-चाॅदी के प्रसार होते है। विज्ञापन का सीधा सम्बन्ध लोगो के भविष्य के सपनो, आशाओं, इच्छायें और जरूरतों के साथ-साथ उनके जीवन जगत की संस्कृति-मूल्य धर्म, रिवाज व परम्पराओ से भी है, निश्चित रूप से विज्ञापन एक कला है। विज्ञापन की भाषा बहुत ही सरल व लच्छेदार होती है, ताकि मनुष्य के मन-मष्तिष्क पर सीधा असर कर सके। विज्ञापन का स्वरूप व्यवसायिक व रचनात्मक दोनो ही है। व्यवसायिक उद्देश्यो को वहन करते हुये भी अपनी संरचना और प्रस्तुति मे विज्ञापन सर्जनात्मक माध्यम है।
अध्ययन का उद्देश्य किसी उत्पाद अथवा ब्रांड के अधिकतम प्रसार और प्रचार के लिये सार्वजनिक माध्यम का उपयोग किया जाता है। उसे हम विज्ञापन कहते है। इसके उद्देश्य सम्बन्धित वस्तु उत्पाद सेवा का उपभोक्ताओ तक फैलाना होता है। इसके मूल मे आर्थिक लाभ व्यापार, ब्रांड व कम्पनी की लोकप्रियता मे वृद्धि करना होता है। विज्ञापन का सामाजिक जीव पर प्रभाव विज्ञापन की मायावी दुनिया का मूल लक्ष्य सम्बन्धित सेवा की लोकप्रियता मे वृद्धि करना होता है। उपभोक्ताओ तक पहॅुचाना होता है।
साहित्यावलोकन
1. डाॅ0 रेखा सेठी, विज्ञापन काॅय 2. अशोक महाजन, विज्ञापन
मुख्य पाठ

जीवन को प्रभावित करने मे विज्ञापनों की भूमिका

आज की प्रतिस्पर्धा के युग में बाजार एक ही उत्पाद के सैकडों ब्रांड से भरे पड़े है, ग्राहक अपनी आवश्यकता की वस्तु किसी ब्रांड की खरीद उनके इस निर्णय मे विज्ञापन की अहम भूमिका है। यदि व्यक्ति को नहाने का साबुन चाहिये, दूध,घी आटा चाहिये तो वह लक्स, अमूल, पंतजलि के उत्पाद को ही खरीदता है क्योंकि यह उन्हीं के बारे मे विज्ञापनो से पाया है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज के बाजार मे विज्ञापन एक अहम स्तम्भ के रूप मे स्थापित हो चुका है। आमतौर पर देखा गया है, गलत सूचनाओं एंव भ्रामक प्रसार के जरिये दूषित और गुणवत्ताहीन वस्तुओं को बेचा जाने लगा है, कोका-कोला, पेप्सी, थम्सअप ये पदार्थ मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है, मगर इस पहलू को छिपाकर हस्तियां इसके प्रोत्साहन के विज्ञापन करती है।


सरकार एंव समाज को चाहिये कि लोगों को गलत भ्रामक संदेश के जरिये बेवकूफ बनाने वाली कम्पनी व लोगों को सबक सिखाया जाये।

विज्ञापन एवं समाज

विज्ञापन समाज एवं व्यापार जगत में होने वाले परिवर्तन को प्रदर्शित करने वाला उद्दोग है जो बदलते समय के सांचे मे तेजी से ढल जाता है, ऐसा भारत मे ऐड गुरू के नाम से विख्यात प्रसुन जोशी का मानना है। आज हमारे चारों तरफ संचार का जाल सा बिछा है एक ओर हमारे जीवन मे पुस्तके, पत्रिकायें और समाचार-पत्र जैसे प्रिट मीडिया के साधनो की भरमार है। तो दूसरी ओर हम घर से बाहर तक रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, कम्प्यूटर, मोबाईल जैसे इलैक्ट्राॅनिक मीडिया के अत्याधिक साधनो से घिरे हुये है। किन्तु यदि हम कहे कि मीडिया के इन सारे साधनो पर सर्वाधिक प्रभाव विज्ञापन का है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नही होगी क्येाकि विज्ञापन न केवल इनकी आय का मुख्य स्त्रोत है, वरन् पूरे संचार तन्त्र पर अपना गहरा प्रभाव भी छोड़ता है तभी तो मार्शल मैकलुहन ने इसे बीसवीं सदी के सर्वोतम कला-विधान की संज्ञा दी। सचमुच एक छोटा सा विज्ञापन क्या नही कर सकता। हिट हो जाये तो वह एक सामान्य से उत्पाद को आसमान की बुलन्दियों तक पहुँचा सकता है। विज्ञापन की बानगी देखिये- ‘‘दो बूंद जिन्दगी की’’ (पोलियो उन्मूलन) ‘‘ जागो रे’’ (टाटा चाय) ‘‘दाग अच्छे है’’ (सर्फ एक्सेल) अथवा ‘‘ नो उल्लू बनाईग’’ ( आईडिया मोबाईल) जैसे विज्ञापन इतने प्रचलित हुये कि सहज ही लोगो की जुबान पर चढ गये।



भारत मे विज्ञापन कला का विकास

भारत मे विज्ञापन का अस्तित्व आरम्भ से किसी न किसी रूप मे माना जाता है। प्राचीन ग्रंथो मे भी एसे उदाहरण देखने को मिलते है।  हमारे प्राचीन ग्रंथो में रामायण और महाभारत मे भी कई ऐसे दृश्य का वर्णन किया गया हैजिनमे विज्ञापन के स्वरूप देखने को मिलता है। मुख्य रूप से ढोल बजाकरचिल्लाकरडुग्डुगी बजाकर घोषणा करायी जाती है। अश्वमेघ यज्ञ और राजाज्ञाओ के प्रचार की प्रथा थी । वर्तमान मे विज्ञापन का ही आंरम्भिक स्वरूप है। रामायण मेे सीता का स्वयंवर की घोषण का उल्लेख मिलता है। जिसमें सभी राज्यो मे सीता के स्वंयवर की घोषणा करायी गयी थी। यह भी विज्ञापन का एक रूप था।

भारतीय ऐतिहासिक काल की चित्रकला का अध्यन्न करे तो कई ऐसे उदाहरण प्राप्त होते हैजिनमे विज्ञापन कला के पल्लवित होने के प्रमाण मिलते है। इंसाके लगभग 3000 वर्ष पूर्व विद्यमान हडम्पा और मोहनजोदडो नगरो के उपलब्ध अवशेष इस बात की पुष्टि करते है कि भारत मे अनके किस्मो की कला का बोलबाला था।2

सिन्धु घाटी के नगरो से कुछ मोहरे प्राप्त हुए है जिसमे पशु आकृतियों को बनाया गया हैसिन्धु घाटी मे हजारों संख्याओ मे मोहरे प्राप्त हुई हैजिनमें मानववृक्ष व पशु आदि की आकृतियां बनी हैइन्ही मोहरो के ठीक ऊपर किसी लिपि मे चित्राअक्षर लेख लिखे जिसे पढा नही जा सकता। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह सभी चित्राअक्षर लिखो मे सभ्वतः व्यक्ति-व्यापारियों अथवा देवताओं के नाम है। 

विज्ञापन का आरम्भ भारत से ही माना जाता है भारत मे ही संसार का सबसे पहला विज्ञापन निर्मित हुआ था। भारत मे प्रथम प्रवेश अर्थात मध्य प्रदेश के मंदसौर (गुप्तकालीन दशपुर) के सूर्य मंदिर से प्राप्त होता है। इस विज्ञापन को आज से लगभग डेढ हजार वर्ष पूर्व भारतीय बुनकर व्यापारी संघ प्राचीन कालीन दशपुर नगर मे स्थित सूर्य मंदिर की दीवारों पर लगवाया गया था यह विज्ञापन मूलतः संस्कृत को निम्नवत था।

तारूण्य कान्यु पचितो पि सुवर्ण हार,

ताम्वुल पुष्प विधिाना समल को पि।

नारी जनः प्रिय भूपेति न तावदस्या,

यावत्र पट्टमय वस्त्र युगनि निधते।[3]

चीन और यूनान मे भी लिपि के जन्म से पहले सूचनाओं की जानकारी नगर उद्घोषणाओ द्वारा दी जाती थी। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ है वैसे ही विज्ञापन का उपयोग व विस्तार होता गया। अमेरिका ओर इंग्लैड मे विज्ञापन की दुनिया सर्वोपरि है। विज्ञापन का विकास आंरम्भिक काल से ही इंग्लैड और अमेरिका मे तीव्र गति से ही रहा है।

प्राचीन शहर पोम्पई मे मिले अवशेषो से पता चलता है कि समान वाले जगह के बाहर दीवारों पर चिन्ह अंकित किये जाते थे जिसे राह चलते लोगो को यह आसानी से पता लग जाता है कि इस स्थान पर कौन-सी वस्तु उपलब्ध है।

सन् 770 तक चीन मे रिलिफ प्रिटिंग का बहुत अधिक विकास हो चुका था। डायमण्ड सूत्र वर्तमान मे विधान सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि मानी जाती है। जो सात कागजो को चिपकाकर एक गोल लपेटे हुये कागज के रूप मे है। जिसकी लम्बाई 16 फिट और चैडाई 12 इंच है। डायमण्ड सूत्र भारत के संस्कृत ग्रंथ ‘‘ब्रजछेदित प्रज्ञापारयिता’’ का भाग मे अनुवाद है। जिसका मुद्रण 8680 मे किया गया था।[4]

विज्ञापन कला का विस्तार इतना हो गया था कि अब हर दिन इसे नई चुनौतियों का सामना करना पडता था। उत्पादकर्ता को बेचने की चिन्ता थी, वही विज्ञापन एजेन्सियो की बढती तादाद मे विज्ञापन संस्थानो को अपने ग्राहको की जो कि उत्पादनकर्ता होते थे उन्हे संतुष्ट करना मुख्य ध्येय हो गया था जिससे कि उपभोक्ता उत्पादन की और खीचे चले आये और इसी कारण विज्ञापन मे नित नये प्रयोग किये जा रहे है। पीयर्स साबुन एसे ही प्रयोग का उदाहरण है। इस साबुन ने हर पक्ष को उजागर किया है।

सन् 1887 मे मिलियस की पेटिंग को सर्वप्रथम पोस्टर के रूप मे प्रयोग किया गया इससे पहले Giovanni Focaratis के द्वारा बना मूर्ति का प्रयोग इस विज्ञापन के लिये किया गया चित्र। जिस मूर्ति का नाम ल्वन कपतजल डवल रखा था इसी के साथ कलाकारों के लिये कला के नये आयाम खुल गये। इस मुर्ति का प्रयोग विज्ञापन के रूप मे समाचार पत्रों मे किया गया।

निष्कर्ष एक ओपेरा संगीतकार के द्वारा भी पीयर्स का विज्ञापन मिलता है। विज्ञापन मे मुख्यतः ऐसे शब्द का प्रयोग किया जाता है कि उपभोक्ता स्वतः ही प्रभावित हो जाता है तथा वह शब्द धीरे-धीरे प्रतीक अर्थ मे प्ररिवर्तित होकर उपभोक्ता के दिलो-दिमाग पर छा जाता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डाॅ0 रेखा सेठी, विज्ञापन काॅय, पृष्ठ सं0 16 2. अशोक महाजन, विज्ञापन, पृष्ठ सं0 16 3. कुमुद शर्मा, विज्ञापन की दुनिया, पृष्ठ सं0 17-18 4. नरेन्द्र सिंह यादव, ग्राफिक डिजाईन, पृष्ठ सं0 54 5. मन्सौर मे भित्ति पर मिला भारत का पहला विज्ञापन