ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- V August  - 2022
Anthology The Research
ग्रामीण महिला आर्थिक सशक्तिकरण एवं महिला स्वयं सहायता समूह: एक अध्ययन
Rural Women Economic Empowerment and Women Self Help Groups: A Study
Paper Id :  16375   Submission Date :  09/08/2022   Acceptance Date :  21/08/2022   Publication Date :  25/08/2022
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पूनम यादव
असिस्टेंट प्रोफेसर
अर्थशास्त्र विभाग
मदन मोहन मालवीय पी.जी. कॉलेज
भाटपाररानी, देवरिया,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश विगत कुछ वर्षों से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को प्राथमिकता के संदर्भ में विश्व के अनेक देश गरीबों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए उन्हें संगठित करके विकास के लिए प्रेरित कर रहें हैं। गरीबों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास की इसी अवधारणा से स्वयं सहायता समूह के द्वारा सूक्ष्म वित्त का जन्म हुआ। भारत मे भी यह अनुभव किया गया कि व्यक्तिगत वित्त पोषण की तुलना में सामूहिक हित चिंतन अधिक प्रभावी माध्यम हो सकता है एवं इसी के फलस्वरूप स्वयं सहायता समूह (SHG) की अवधारणा विकसित हुई। महिला स्वयं सहायता समूह ने देश की ग्रामीण महिलाओं को संगठित करके इन्हे स्वरोजगार हेतु प्रेरित कर इनके आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान दे रहे हैं। समूह के माध्यम से महिलायें आर्थिक संसाधनों के अपने अधिकार एवं निर्णय लेने की शक्ति मे वृद्धि कर रही हैँ, जिससे उनके स्वाभिमान, गौरव व आत्मनिर्भरता में वृद्धि होती हैं आज भारत विश्व मे महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों के क्षेत्र मे सर्वोपरि स्थान रखता है किन्तु देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, राजनैतिक व आर्थिक परिस्थितियां महिला समूहों की गतिशीलता, व्यवहार्यता व साध्यता में अनेक चुनौतियों के रूप में खड़ी होती हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद For the past few years, in the context of prioritizing rural development and poverty alleviation programs at the national and international level, many countries of the world are motivating them for development by organizing them for the social and economic upliftment of the poor. From this concept of social and economic development of the poor, micro finance through self-help groups was born. In India also it was felt that group thinking can be a more effective medium than individual financing and as a result the concept of Self Help Group (SHG) developed. Women Self Help Groups are contributing to their economic empowerment by organizing rural women of the country and motivating them for self-employment. Through the group, women are increasing their rights of economic resources and decision-making power, which increases their self-respect, pride and self-reliance, today India occupies a paramount position in the field of self-help groups run by women in the world. The social, cultural, administrative, political and economic conditions of the country pose many challenges to the mobility, feasibility and feasibility of women's groups.
मुख्य शब्द ग्रामीण महिलायें ,महिला स्वयं सहायता समूह, आर्थिक सशक्तिकरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rural Women, Women Self Help Groups, Economic Empowerment.
प्रस्तावना
भारतीय अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास मे ग्रामीण विकास का महत्वपूर्ण स्थान है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसख्या का 69% भाग अर्थात 83 करोड़ जनसंख्या गांवों मे निवास करती है और लगभग 70% भाग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। अर्थव्यवस्था मे महिला श्रम एवं उसकी सहभागिता अत्यंत महत्वपूर्ण है। देश के कुल राष्ट्रीय उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा महिलाओं की बदौलत ही उत्पादित होता है। उत्पादन के सभी क्षेत्रों मे महिलाओं का रेखांकित करने योग्य योगदान है। हम कृषि एवं ग्रामीण रोजगार की बात करे या महानगरों में आधारभूत ढांचे की ,ग्रामीण महिलायें अपने मेहनत के बल पर आर्थिक विकास में योगदान दे रही हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार एक ग्रामीण महिला घर व बाहर के कार्यों को मिलाकर 19 घंटे कम करती है। महिला श्रम के इतना महत्वपूर्ण होने के बाद भी जी. डी. पी. मे इसकी गणना नहीं की जाती। उसकी गतिविधियां अधिकतर गैर -आर्थिक समझी जाती हैं। वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों में 80% महिलायें बुनियादी तौर पर कृषि,पशुपालन आदि गैर -संगठित कार्यों से जुड़ी हैं। भारतीय अर्थव्ययवस्था मे महिला श्रमिकों को मिलने वाले रोजगार की श्रेणी सीमांत कार्यों की है। इन्हें छोटी अवधियों के लिए कार्य मिलता है । विशेषकर महिला कृषि श्रमिकों के पास न तो स्वयं की जमीन होती है और न ही बेहतर काम, थोड़ी बहुत पूंजी ही होती है। ऐसी विकल्प एवं साधनहीन महिलाओं के पास दूसरों के खेत व कृषि से संबंधित कार्य नियोक्ता की शर्तों पर करने के सिवाय कुछ नहीं होता। ग्रामीण महिलायें घरेलू कार्य करने के साथ खेती मे निराई -गुड़ाई से लेकर कटाई तक के कार्य ,लकड़ियाँ लाना आदि अनेक कार्य करती हैं। परंतु इन महिलाओं के प्रति घर मे उपेक्षा का भाव रहता है। ईंट के भट्टों जैसे असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं का अनुपात भी कुछ कम नहीं है। भारत की कुल कार्यशील जनसंख्या का अनुपात मात्र 39.1 ही है। इसमे भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का अनुपात बहुत कम है। कुल कार्यशील महिलाओं मे से अधिकांश प्राथमिक क्षेत्र मे श्रमिकों के रूप मे कार्यरत हैं, जहां उन्हें बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में कार्य करना पड़ता है। वस्तुतः देखा जाय तो कोख से कब्र तक ग्रामीण महिलाओं के हिस्से में सिर्फ तिरस्कार ही आता है। आर्थिक व सामाजिक विकास की बयार से अधिकांश ग्रामीण महिलायें आज भी अछूती हैं। महिलाओं को विकास की मुख्यधारा मे जोड़ें बिना किसी समाज,राज्य व देश के आर्थिक,सामाजिक,व राजनीतिक विकास की कल्पना बेमानी है। दुनिया मे ऐसा कोई देश नहीं है जहां महिलाओं को हाशिए पर रखकर विकास संभव हुआ हो।
अध्ययन का उद्देश्य इस अध्ययन द्वारा महिला आर्थिक सशक्तिकरण की अवधारणा का विश्लेषण और ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में महिला स्वयं सहायता की भूमिका को देखना है। महिला स्वयं सहायता समूह किस प्रकार ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना रहे हैं साथ ही इनके समक्ष आने वाली चुनौतियों को भी देखना हैं। भारत की कुल आबादी का आधा हिस्सा महिलाओं का हैं। इन्हें, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं को सशक्त किए बिना सुदृढ़ भारत का सपना पूरा नहीं किया जा सकता। सशक्तिकरण की चर्चा जब महिलाओं के संदर्भ मे की जाती हैं तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता हैं की महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास करना केवल महिलाओं के लिए ही नहीं अपितु समाज के समग्र विकास के लिए भी उपयोगी व महत्वपूर्ण प्रमाणित होगा। सशक्तिकरण की प्रक्रिया की सहायता से महिला स्वयं को इस प्रकार संगठित कर सकती है जिससे कि वह आत्मनिर्भरता मे वृद्धि कर सके तथा विकल्पों के चयन व संसाधनों पर नियंत्रण के संबंध मे अपने स्वतंत्र अधिकार पर बल दे सके। इस प्रकार महिलाओं को उस स्थिति मे सशक्त कहा जा सकता है जब वे भौतिक, मानवीय, बौद्धिक (ज्ञान, सूचना, विचार आदि ) व साथ ही वित्तीय संसाधनों पर अधिकतम भागीदारी प्राप्त कर सके तथा घरेलू, सामुदायिक एवं राष्ट्रीय जीवन के संदर्भ मे भी अपनी सहभागिता रखें।
साहित्यावलोकन

1. यादव चंद्रभान (2013) के अनुसार, महिला सशक्तिकरण का सीधा सा अर्थ हैं महिलाओं को सशक्तिशाली बनाना, महिलाओं के हाथ मे अधिकार देना तथा उन्हे स्वावलंबी बनाना।

2. विजयलक्ष्मी (2008) के अध्ययन के अनुसार, विश्व की कुल जनसंख्या मे आधी जनसंख्या महिलाओं की हैं। वे कार्यकारी घंटों में दो तिहाई का योगदान करती हैं, लेकिन विश्व आय का केवल दसवां हिस्सा ही प्राप्त कर पाती हैं और उन्हें विश्व संपत्ति में सौवें से भी कम हिस्सा प्राप्त हैं। यद्यपि रोजगार मे महिलाओं की संख्या मे वृद्धि हो रही हैं लेकिन उन्हें कम वेतन मिल रहा है और उनके कार्य की परिस्थितियां असंतोष जनक हैं।

3. डॉ. पाठक इंदु (2010) के अध्ययन के अनुसार महिलाओं में भी ग्रामीण महिलाओं की स्थिति अधिक कमजोर देखी गई हैं। विकास के कार्यक्रमों व नीतियों तक उनकी पहुँच अपेक्षाकृत कम रही है तथा साथ ही सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं का दबाव भी उन्हें अधिक झेलना पड़ता हैं।

4. सिंह प्रदीप कुमार (2010) ने अपने अध्ययन मे बताया है कि स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलायें स्वरोजगार सृजन में पुरुषों से ज्यादा सक्रिय हैं। चूंकि महिला स्वरोजगारी विभिन्न प्रकार के छोटेछोटे व्यवसाय करके अपनी स्थिति परिवार और समाज मे धीरेधीरे सुदृढ़ कर रही हैं, अतः समय के साथ साथ महिलाओं के सामाजिक जीवन एवं आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा हैं, और वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन अधिक कुशलता के साथ कर पा रहीं हैं।

5. महिला सशक्तिकरण के केंद्र मे सत्ता व उसका बंटवारा होता है सत्ताहीन वर्गों/समुदायों अथवा लिंगों का सत्ता पर नियंत्रण और उसके न्याय पूर्ण बंटवारे की प्रक्रिया से ही सशक्तिकरण संभव है। यहां सत्ता को सिर्फ राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक संदर्भों मे ही नहीं बल्कि भौतिक (संसाधन) व व्यक्तिगत संदर्भों मे भी समझना आवश्यक है। महिला सशक्तिकरण के संदर्भों मे देखे तो जेन्डर की सामाजिक समझ, परिभाषा व भूमिकाएं लगभग सभी पितृसत्तात्मक समाज द्वारा तय की गई है व सत्ता भी उन्ही के हाथों में हैं। अतः सशक्तिकरण की प्रक्रिया मे निहित है जेन्डर की सामाजिक समझ और इनको चुनौती देकर ही महिलाओं के जीवन में मूलभूत बदलाव लाया जा सकता है। (द्विवेदी अर्चना 2008)

मुख्य पाठ

महिला आर्थिक सशक्तिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा महिलाये आर्थिक संसाधनों के अपने अधिकार एवं निर्णय लेने की में शक्ति मे वृद्धि करती हैं, जिससे उन्हें, उनके परिवार तथा उनके समुदायों को लाभ होता है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में निवेश से निर्धनता को कम करने तथा पुरुषों एवं महिलाओं के मध्य समानता का मार्ग प्रशस्त होता हैं। ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन को प्राथमिकता देने के संदर्भ मे विश्व के अनेक देश गरीबों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए उन्हें संगठित कर विकास के लिए प्रेरित करने के क्रम मे स्वयं सहायता समूह के द्वारा लघुवित्त का प्रादुर्भाव हुआ। बांग्लादेश जैसे अल्प विकसित देश मे इस कार्यक्रम की सफलता ने सम्पूर्ण विश्व मे क्रांति पैदा कर दी। भारत जैसे कृषि एवं ग्रामीण प्रधान देश मे लघुवित्त की महत्ता के संदर्भ मे स्वयं सहायता समूह” (SHG) की अवधारणा विकसित हुई। स्वयं सहायता समूह निर्धनों की पहुँच ऋण तक सुनिश्चित करने का एक कारगर एवं अपव्ययी बचत की आदत के विकास का एक तरीका है। स्वयं सहायता समूह का लक्ष्य निर्धनों मे नेतृत्व क्षमता का विकास करना व उन्हें सामर्थ्यवान बनाना हैं। स्वयं सहायता समूह गरीब व्यक्तियों के छोटे-छोटे समूह होते हैं। ये व्यक्ति सामान्यतया एक जैसी परिस्थितियों मे रहने वाले होते हैं। ये समूह अपने सदस्यों को छोटी-छोटी बचत के लिए प्रेरित करते हैं। इस बचत की राशि मे से सदस्यों को छोटे-छोटे ऋण प्रदान किए जाते हैं। शेष राशि स्वयं सहायता समूह के नाम से खाता खोलकर बैंक में जमा की जाती है। ग्रामीण विकास के लिए आर्थिक मदद तथा सामाजिक परिवर्तन दोनों ही महत्वपूर्ण है, केवल किसी वर्ग विशेष को आर्थिक सहायता पहुँचाकर उसके आर्थिक विकास के आँकड़े दावेदारी सिद्ध नहीं कर सकते क्योंकि उसके साथ वैचारिक परिवर्तन की बात भी जुड़ी हुई हैं। अत: स्वयं सहायता समूह इसलिए आवश्यक है ताकि गरीब वर्ग के लोग संगठित होकर सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में स्वयं के प्रयासों से कुछ कर सके। महिला स्वयं सहायता समूह महिला स्वयं सहायता समूह समान स्तर की 10 से 20 महिलाओं का वह समूह है, जिसके सदस्य स्वेच्छा से इसकी सदस्यता प्राप्त कर पारस्परिक सहयोग व एकता जैसे सिद्धांतों के आधार पर बचत व साख जैसी आर्थिक गतिवधियों की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न समूहों के अध्ययन से एक विशेष तथ्य सामने आया है की महिलाओं के समूह अथवा ऐसे समूह जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक हैं, अधिक सफल व निरंतर कार्यशील रहे है इसी तथ्य को ध्यान मे रख कर समूह में महिलाओं की अधिक भागीदारी की सिफारिश की जाती है। वैसे भी महिलाओं में बचत की प्रवृत्ति विशेष रूप में गुप्त बचतकी प्रवृत्ति अधिक होती है।

महिला स्वयं सहायता समूह एक प्रभावी शक्ति पर आधारित महिलाओं का औपचारिक समूह है जो जीवन से जुड़े ज्ञान व कौशल का व्यवस्थित तरीके से उपयोग कर महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण मे योगदान देते हैं। सशक्तिकरण से महिलाओं को अधिकार मिलते हैं और इन अधिकारों का उपयोग कर वे स्वयं निर्णय ले सकती हैं। आर्थिक स्वावलंबन ने महिलाओं को शोषण व उत्पीड़न से मुक्त कराया है। भारत में लगभग 30 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों को सरकारी व गैर-सरकारी स्रोतों से वित्त पोषित किया जा चुका है, फलस्वरूप देश के लगभग 329.8 लाख परिवारों को सूक्ष्म वित्त की क्रांति से लाभान्वित किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि भारत में गठित कुल स्वयं सहायता समूहों मे 90% से अधिक समूह महिला समूह हैं। लगभग 43% स्वयं सहायता समूह देश के दक्षिण प्रांत मे गठित किए गए हैं। भारत के विभिन्न राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना इत्यादि में महिला स्वयं सहायता समूह विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य कर रहे है। स्वयं सहायता समूह का महिलाओं के जीवन प्रभाव स्वयं सहायता समूह से जुड़कर महिलाओं विशेष कर ग्रामीण महिलाओं के आत्मविश्वास, स्वाभिमान, आत्मगौरव इत्यादि मे वृद्धि होती हैं साथ ही साथ उनमे निम्नलिखित क्षमताओं का विकास होता है-

आर्थिक आत्मनिर्भरता- स्वयं सहायता समूह के सदस्य के रूप मे महिलायें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं जिससे परिवार मे उनकी स्थिति मे सुधार हुआ है तथा इस प्रकार उपलब्ध धन का इस्तेमाल वे अपने निजी आवश्यकता अथवा बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य इत्यादि मे करती हैं। एक अध्ययन के अनुसार आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के मामलों मे कमी आई है।

कौशल विकास- ग्रामीण महिलायें प्रायः सिलाई, कढ़ाई, पापड़ व अचार बनाने जैसे कई कार्य करती हैं, किन्तु इन्हीं कार्यों को स्वयं सहायता समूह के माध्यम से बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक आधार पर किया जाता है। इन समूहों को सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा कौशल प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिससे महिलाओं की व्यक्तिगत व सामूहिक शक्ति बेहतर करने के लिए कौशल सीखने की क्षमता का विकास होता है।

वित्तीय क्षेत्र मे भागीदारी- भारत में 82% से अधिक स्वयं सहायता समूह महिलाओं से सम्बद्ध हैं जिनमें भुगतान दर 95 फीसदी के आसपास है तथा गैर-निष्पादक परिसम्पत्तियों का प्रतिशत बहुत कम है।

स्वयं निर्णय की शक्ति का विकास- महिलाओं द्वारा बैंको के साथ लेन -देन, कागजी कार्यवाही इत्यादि करने से उनमें आत्मसम्मान व आत्मविश्वास के साथ स्वयं निर्णय की क्षमता का विकास होता है।

जागरूकता तथा संसाधनों की उपलब्धता समूह के सदस्य के रूप मे महिलाओं की गतिशीलता बढ़ जाती है। समूहों के माध्यम से विभिन्न सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं, विभिन्न गोष्ठियों व कार्यक्रमों के संपर्क मे आने के कारण इनमें जागरूकता तथा संसाधनों की उपलब्धता मे वृद्धि होती है जो इन्हें सशक्त करती है। यद्यपि महिलाओं के स्वयं सहायता समूह द्वारा काफी अच्छा किया जा रहा है किन्तु भारतीय परिप्रेक्ष्य मे महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है

चुनौतियां

1. भारत मे पुरुष प्रधान समाज के कारण महिलाओं के घर के बाहर जाकर स्वयं समूहों के रूप मे संगठित होने की स्थिति मे इन पर अनेक प्रकार की सामाजिक बाधाए होती हैं।

2. परम्परागत रूप से बैंकों मे पुरुष ग्राहक ही अधिक संख्या मे होते है तथा महिलायें एक तरह से बैंकिंग सेवाओं से वंचित रही हैं । समूह के सदस्य के रूप मे जब महिलायें बैंकों से ऋण इत्यादि के लिए संपर्क करती हैं तो पूर्व अनुभव के अभाव मे इनकी जिज्ञासाए व शंकाएं अधिक होती हैं। किन्तु बैंकर्स की तरफ से इस स्थिति के प्रति सकारात्मक सहनुभूतिपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता जिससे महिला समूहों का मनोबल कम होता है।

3. भारतीय समाज मे महिलाओं के रहन-सहन, काम- काज, रोजगार इत्यादि पर अनेक सामाजिक एवं पारंपरिक रीति-रिवाज भी बाधा के रूप मे काम करते हैं। महिला स्वयं सहायता समूहों को स्वयं के उद्यम के उत्पादों का प्रचार करने व उनको शहरों तक पहुँचानें के लिए पुरुषों की सहायता लेनी पड़ती है ऐसी स्थिति मे महिलायें स्वयं मे पूर्ण विश्वास नहीं कर पाती तथा पुरुषों पर निर्भरता को अपने जीवन का यथार्थ मानने लगती हैं। ऐसी स्थिति में सशक्तिकरण केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का ही रूप ले पाता है और इनका मनोवैज्ञानिक विकास नहीं हो पाता हैं।

4. सरकारी संस्थाओं से संपर्क साधने मे महिला समूहों को प्रशासनिक रुढ़िताओं, जटिलताओं, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, पूंजीवादी मानसिकता इत्यादि के कारण अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

निष्कर्ष प्रस्तुत अध्ययन से स्पष्ट है की ग्रामीण महिलायें जो एक समय अशिक्षित एवं अज्ञानी थी, स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के पश्चात अपने स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा, भोजन की पौष्टिकता तथा परिवार नियोजन के प्रति जागरूक हो रही है एड्स शिक्षा, साफ-सफाई तथा अन्य सामाजिक मुद्दों के प्रति अधिक संवेदनशील हुई हैं। विभिन्न शासकीय कार्यक्रमों के दखल के कारण वे अपनी शक्ति के प्रति जागरूक हुई हैं। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर ग्रामीण महिलायें रोजगार प्राप्तकर परवार की आय व आर्थिक विकास मे बराबर की भागीदार बनती जा रही हैं। विभिन्न बाधाओं के बावजूद महिलायें समूह से जुड़कर अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो रही है इन बाधाओं को कम करने मे महिला संगठनों, समाजसेवी संस्थाओ, गैर-सरकारी संगठनों, सरकारी एजेंसिओ इत्यादि द्वारा कार्य किया जा रहा है। अंत मे हम यह कह सकते है की यदि स्वयं सहायता समूह को महिला सशक्तिकरण का वास्तविक माध्यम बनाना है व महिलाओं को इससे लंबे समय के लिए जोड़े रखना है तो इन समूहों मे शिक्षा, साक्षरता व क्षमता निर्माण प्रक्रियाओं पर सबसे ज्यादा जोर देना होगा तभी यह समूह सही मायनों मे इससे जुडने वाली सभी महिलाओं विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण एवं गरीबी उन्मूलन का सशक्त माध्यम बना रह सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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