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मध्यप्रदेश राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की समस्याएँ | |||||||
Problems of small and marginal farmers in Dhar district of Madhya Pradesh state | |||||||
Paper Id :
16416 Submission Date :
2022-08-12 Acceptance Date :
2022-08-20 Publication Date :
2022-08-24
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सारांश |
भारत एक कृषि प्रधान देश हैं। यहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं। देश की कुल आबादी का 70 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं। किसान हमारे देश का अन्नदाता हैं, जो सम्पूर्ण देश के लिए खाद्यान्न, दलहन, तिलहन व उद्योगों को प्रतिवर्ष कच्चा माल उपलब्ध कराता हैं। राष्ट्रीय आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 20.2 प्रतिशत रहा हैं। वर्ष 2010-11 की कृषि जनगणना के अनुसार भारत में किसानो की कुल जनसंख्या में 67.04 प्रतिशत सीमान्त किसान परिवार हैं तथा 17.93 प्रतिशत लघु किसान परिवार हैं। इस प्रकार देश में 85 प्रतिशत कृषक लघु एवं सीमान्त श्रेणी में आते हैं। लघु किसान वे किसान होते हैं जिनके पास अपनी कृषि करने योग्य भूमि एक से दो हैक्टेयर तक होती हैं।
सीमान्त कृषक वे होते हैं जिनकी अधिकतम कृषि योग्य भूमि एक हैक्टेयर तक होती हैं। हमारे देश में सीमान्त किसानों की बढ़ती हुई संख्या व प्रतिवर्ष उनकी कम होती हुई आय एक ज्वलंत समस्या हैं।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | India is an agricultural country. The economy here is mainly dependent on the agricultural sector. About 70 percent of the total population of the country is dependent on the agriculture sector. Farmers are the food providers of our country, who provide food grains, pulses, oilseeds and raw material to industries every year for the whole country. According to the report of the National Economic Survey for the year 2020-21, the contribution of the agriculture sector to the total GDP of the country has been 20.2 percent. According to the 2010-11 Agriculture Census, 67.04 percent of the total population of farmers in India are marginal farmer families and 17.93 percent are small farmer families. Thus, 85 percent of the farmers in the country fall in the small and marginal category. Small farmers are those farmers who have their cultivable land ranging from one to two hectares. Marginal farmers are those whose maximum cultivable land is up to one hectare. The increasing number of marginal farmers and their decreasing income every year is a burning problem in our country. |
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मुख्य शब्द | लघु कृषक, सीमान्त कृषक, धार जिला, निम्न आय। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Small Farmers, Marginal Farmers, Dhar District, Low Income. | ||||||
प्रस्तावना |
मध्यप्रदेश राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की अनेको समस्याएं हैं उनमें से मुख्य समस्याएं हैं -
कृषि जोतों का छोटा होना, कृषि वित्त की समस्या होना, कृषि उपकरणों की कमी, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, कृषकों की निरक्षरता, वैज्ञानिक ढंग से कृषि कार्य नहीं किया जाना, वर्षा की अनिश्चितता, विद्युत कटौती, पलायन कर जाना, कृषि उत्पाद में कमी, कृषि उपजों का उचित मूल्य नहीं मिलना, अधिक कृषि उत्पादन लागत, सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाना, रिश्तेदारी/नातेदारी निभाने में अधिक व्यय, गैर वित्तीय संस्थाओं से ऊँची ब्याज दरों पर कृषि ऋणां का मिलना, ऋणग्रस्तता, मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी, बंजर कृषि भूमि इत्यादि।
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अध्ययन का उद्देश्य | इस शोध अध्ययन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
1.लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा कृषि क्रियाएँ सम्पन्न करने में आने वाली समस्याओं का अध्ययन करना।
2. लघु एवं सीमान्त कृषकों को कृषि वित्त की समस्या का अध्ययन करना।
3. लघु एवं सीमान्त कृषकों के कृषि उपकरणों की समस्या का अध्ययन करना।
4. लघु एवं सीमान्त कृषकों की सिंचाई समस्याओं का अध्ययन करना।
5. लघु एवं सीमान्त कृषकों की कम आय व निम्न कृषि उत्पादकता के कारणों का अध्ययन करना।
6. लघु एवं सीमान्त कृषकों को ऋण ग्रस्तता का अध्ययन करना।
7.शासन की किसान हितैषी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | डॉ. एस. बी. मामोरिया ने प्राब्लम ऑफ एग्रीकल्चर इन इंडिया
में कृषि क्षेत्र से संबंधित समस्याओं का विश्लेषण किया है, प्रो. के. सी. पाथी ने कमर्शियल बैंक्स एण्ड रुरल डेवलपमेंट में ग्रामीण
विकास के क्षेत्र में बैंकों द्वारा की गई भूमिका का विश्लेषण किया है।कृषि
संचालनालय, भोपाल तथा उप संचालक कृषि कार्यालय धार द्वारा
कृषकों को प्रदान की जाने वाली शासन की योजनाओं के सम्बन्ध में साहित्य का प्रकाशन
किया है, किंतु म.प्र. राज्य के धार जिले में लघु एवं
सीमान्त कृषकों की समस्याओं के सम्बन्ध में अभी तक साहित्य का प्रकाशन नहीं हुआ है।
इस दिशा में यह प्रथम प्रयास है। |
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मुख्य पाठ |
मध्यप्रदेश
राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की समस्याएँ- शोध अध्ययन के आधार पर
म0प्र0 राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की प्रमुख समस्याएँ
निम्नलिखित हैं - ऊँची ब्याज दरों
पर ऋण प्राप्त करना- जिन किसानों ने गैर वित्तीय
संस्थानों से ऋण लिया हुआ हैं/लेते हैं, ऐसे ऋणों पर न्यूनतम 36% वार्षिक व अधिकतम 60% व इससे भी अधिक दरों से ब्याज
वसूला जाता हैं। ऊँची ब्याज दरें छोटे किसानों के आर्धिक विकास में बाधक हैं। ऋणग्रस्तता- एक कहावत हैं “भारतीय किसान ऋण में जन्म लेता हैं, ऋण में जीता हैं और ऋण में ही मर जाता हैं।’’ जिले के 47% छोटे किसान विगत कई वर्षो से बड़े
भू-स्वामियों/साहूकारों/व्यापारियों/ संबंधियों इत्यादि के ऋणी बने हुए हैं।
पुराने ऋणों का नवीनीकरण और नये ऋण लेकर छोटे किसान ऋणग्रस्तता से ग्रसित हैं। कृषि वित्त की
कमी- जो किसान बैंकिंग व गैर
बैंकिंग संस्थानों से ऋण लेकर डिफाल्टर/अतिदेय हो गये हैं और वर्षों से ऋण लिये
हुए ऋण व ब्याज की रकम का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं, उन्हे पुनः कृषि वित्त प्राप्त करने में कठिनाईयों का सामना
करना पड़ रहा हैं। कम आय- प्रमाणित बीज, रासायनिक उर्वरक, कृषि यंत्रों को क्रय करने तथा सिंचाई व्यवस्था करने में लघु एवं सीमान्त
कृषकों के पास आवश्यक कृषि वित्त की कमी हैं। छोटे किसानों की कृषि भूमि का औसत रकबा
0.62 हैक्टेयर हैं। कृषि भूमि का रकबा कम होने व असिंचित भूमि होने से फसलों का
उत्पादन कम होता हैं। खाद्यान्न व दलहनी फसलों की उपज को छोटे किसानों के स्वयं के
परिवारों द्वारा उपभोग कर लेने से विक्रय योग्य उपज की मात्रा कम हो जाती हैं इस
कारण उनकी आय में भी कमी हो जाती हैं। बचत प्रवृत्ति
का अभाव- जीवन निर्वाह योग्य
उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्यों में तथा कृषि लागत में वृद्धि हो जाने एवं छोटे किसानों
की आय में कमी होने से उनकी बचत नहीं हो पाती हैं। छोटे किसानों के आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर
नहीं होने के कारण उन्हैं कृषि क्रियाएं संपन्न करने के लिये प्रतिवर्ष नये ऋण
लेने की आवश्यकता होती रहती हैं। अतः छोटे किसान बचत नहीं कर पा रहे हैं। कृषि उपकरणों की
कमी- जिले के 42% छोटे किसानों
के यहाँ छोटे-छोटे कृषि उपकरण जैसे हल, बक्खर, कोलपा/डोरा, त्रिफन, स्प्रेयर बैल एवं बैल - गाड़ी उपलब्ध नहीं हैं।
छोटे किसानों के पास कृषि उपकरणों की समस्या बनी हुई हैं। सिंचाई के
स्त्रोतों व साधनों का आभाव- जिले के 71% छोटे किसानों
की भूमि असिंचित हैं। जिन कृषकों के यहॉ सिंचाई हेतु जल उपलब्ध हैं, उनमें से 50% लघु एवं सीमान्त कृषकों के पास विद्युत पंप व
पाइप लाईन की व्यवस्था नहीं हैं। छोटे किसानों के यहॉ सिंचाई की समस्या बनी हुई
हैं। पक्के मार्गो का
नहीं होना- गाँवों से विकासखण्ड व
तहसील मुख्यालय तक पहुँचने के लिए पक्के मार्ग बने हुए नहीं हैं। कच्चे मार्ग से
आने-जाने के लिए कृषकों को अनेकों कष्ट भोगने पड़ते हैं। वर्षा ऋतु में कच्चे
मार्गो पर घुटनों तक कीचड़ जमा हो जाने/नालों पर पुलिया नहीं बनने से आवागमन में
कठिनाई होती हैं। ग्रीष्म ऋतु में भी कच्चे मार्गों पर नुकीले कंकड़-पत्थर गड़े रहने
से खेती तक पहुँचने में व्यवधान होता हैं। छोटे किसानों को अपनी दिन-प्रतिदिन की
घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए इन मार्गों से पैदल स्थानीय बाजारों तक
आना-जाना पड़ता हैं। दूर-दराज के गाँवों के लिए कच्चे मार्गो की समस्या बनी हुई
हैं। परिवहन समस्या- दूर-दराज के व दुर्गम
स्थलों पर बसे ग्रामों तक पहुँचने के लिए बस/ट्रक सेवा उपलब्ध नहीं हैं। किसानों
को अपनी कृषि उपज को स्थानीय बाजारों तक विक्रय के लिए लाने हेतु बैल-गाड़ी ही परिवहन
का मुख्य साधन बनी हुई हैं। जिन किसानों के यहॉ बैल-गाड़ी उपलब्ध नहीं हैं, वे अपने सिर पर उपज का बोझा ढोते हुए पैदल विकासखण्ड/तहसील
मुख्यालय तक पहुँचतें हैं। यह दूरी 1 से 25 किलोमीटर तक हो सकती हैं। इस प्रकार
उनको अपनी उपज विक्रय करने में अधिक समय व श्रम लगाना होता हैं। अतः गॉवों में
परिवहन समस्या बनी हुई हैं। शासकीय योजनाओं
की जानकारी नहीं होना- अधिकांश छोटे किसानों को
केन्द्रीय व राज्य सरकार की कृषि संबंधी जन कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी नहीं
हैं, इससे वे इनका समुचित लाभ नहीं ले पाते हैं। कृषि संबंधी
योजनाओं के नियमों व प्रक्रियाओं की जटिलता- योजनाओं का लाभ लेने के लिए
अनेकों नियमों का पालन करना होता हैं तथा कई जटिल प्रक्रियाओं की पूर्ति करनी होती
हैं। कहाँ जाना हैं? किससे सम्पर्क करना हैं? निर्धारित आवेदन-पत्र कौन देगा? आवेदन पत्र के साथ और कौन-कौन से प्रपत्र संलग्न करना
पड़ेंगे? उन प्रपत्रों को कौन अधिकृत करेगा? प्रकरण स्वीकृत करने के लिए कौन-कौन अधिकारी अधिकृत हैं? जनप्रतिनिधियों की बैठक में प्रस्ताव पास करवाना, बजट में राशि को देखना, अंतिम स्वीकृति जारी करना और उसे हितग्राहियों के लिए लागू करवाना इत्यादि
प्रक्रिया को पूर्ण करने में ग्रामीण कृषकों को अनेकों परेशानियों को सहन करना होता
हैं। राजनीतिक दबाव- हितग्राहियों को लाभ देने
के लिए निर्धारित लक्ष्यों की कमी, बजट आवंटन में राशि की कमी इत्यादि प्रावधानों के कारण सभी कृषकों को सरकारी
योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता हैं। राजनीतिक दबाव होने से जनप्रतिनिधियों के निकट
के संबंधियों को प्रतिवर्ष योजनाओं का लाभ शीघ्र प्राप्त हो जाता हैं। जो किसान
राजनीतिक पकड़ से दूर हैं और वे अपनी पहचान अधिकारी/कर्मचारी से नहीं बना पाते हैं
तथा आवश्यक प्रपत्रों की पूर्ति नहीं कर पाते हैं, समय पर योजनाओं की प्रक्रिया पूर्ण नहीं कर पाने से वे योजनाओं के लाभ से
वंचित हो जाते हैं। वैज्ञानिक ढंग
से कृषि कार्य नहीं करना- लघु एवं सीमान्त कृषकों
द्वारा भूमि को सही ढंग से तैयार नहीं करने, गोबर खाद व जैविक उर्वरकों का उपयोग नहीं करने, प्रमाणित बीज का प्रयोग नहीं करने, उचित मात्रा में रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करने तथा उचित फसल चक्रों को
लागू नहीं करने एवं समय पर कीट/व्याधियों का निवारण नहीं करने से कृषिगत उत्पादन
में कमी हो जाती हैं। उनके द्वारा वैज्ञानिक ढंग से कृषि क्रियाएं संपन्न नहीं की
जा रही हैं। कृषकों द्वारा वैज्ञानिक तरीके से कृषि नहीं करना भी एक समस्या हैं। धीमी गति- अधिकारियों के दौरे पर चले
जाने, बैठक/प्रशिक्षण में उपस्थित होने, कर्मचारियों के अवकाश पर चले जाने, कार्यलयों में समय पर उपस्थित नहीं होने, एक टेबल से दूसरी टेबल तक फाईलों को पहुँचने में कई दिन लग
जाने, टाल-मटौल रवैया होना, असंवेदनशीलता इत्यादि कारणों से कृषक हितग्राहियों को शासन
की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता हैं। विद्युत कटौती- जिन किसानों के यहॉ सिंचाई
व्यवस्था हैं उन्हैं बार-बार विद्युत कटौती का सामना करना पड़ता हैं। बैंकिंग/वित्तीय
संस्थाओं के सदस्य नहीं बन पाना - जो किसान बैंक शाखाओं से 7
कि.मी. की दूरी से अधिक पर निवास करते हैं उनमें से 30 प्रतिशत कृषकों में अभी भी
किसी भी बैंक शाखा में अपना खाता नहीं खुलवाया हैं। खाता नहीं खुलवाने से उन्हे कृषि
ऋण भी प्राप्त नहीं हो पाता हैं। निरक्षरता- जिले में 45% छोटे कृषक
अशिक्षित हैं। निरक्षरता के कारण उन्हैं बैंकिंग व्यवहारों को करने में कठिनाई
होती हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं। अंधविश्वास व सामाजिक बुराईयों
में फंसे हुए हैं। नकली बीज, उर्वरको का प्रयोग- छोटे किसान पंजीकृत बीज
विक्रेताओं से बीज, उर्वरक को क्रय न करते हुए स्थानीय(अपंजीकृत) बीज
विक्रेताओं से कृषि बीज क्रय कर लेते हैं, जिससे उपज में कमी हो जाती हैं। वाद/विवादों से
घिरे रहना - कृषि भूमि के
नामांतरण/बंटवारा करने में अनियमितता होने, खेती का सीमांकन करते समय भूमि का कम-ज्यादा हो जाने, सम्मिलित कुएॅ से पानी का उपयोग करने, खेती तक पहुँच मार्ग में कमी होने, दूसरों के खेत में पशु चरा देने, अन्य कृषकों के खेतों से होकर पाईप-लाईन निकालने, दूसरे कृषकों के वृक्षों से लकड़ी काट लेने, फलदार वृक्षों से फलों/रसों को चूरा लेने, एकजुटता व असहयोग की भावना होने, इत्यादि कारणों से कृषकों में आपस में मन-मुटाव व अभद्र
व्यवहार होता रहता हैं। धीरे-धीरे ये विवाद इतने गंभीर हो जाते हैं कि उनका प्रभाव
विपक्षियों के अंग-भंग कर देने, उनकी हत्या कर
देने तक हो जाता हैं। इस कारण वे पुलिस थाने, तहसील व न्यायालय के चक्कर लगाते रहते हैं। इनका विपरीत प्रभाव कृषि कार्यो पर
होता हैं। मुख्य व्यक्ति
का कृषि कार्य से हट जाना- कृषक परिवार का मुख्य
व्यक्ति बीमारी, वृद्धावस्था, दुर्घटना का शिकार हो जाना, जेलों में बंदी
हो जाना, विधवा/विधुर हो जाना आदि कारणों में से किसी एक
से पीड़ित हो जाता हैं तो वह अपनी कृषि व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित नहीं कर
सकता हैं। जीवन निर्वाह
हेतु पलायन कर जाना- गाँवों में पर्याप्त रोजगार
नहीं मिल पाने के कारण एवं खेती से उदर पूर्ति नहीं होने से कुछ छोटे वर्ग के कृषक
परिवार शहरों में पलायन कर जाते हैं, फलतः उनकी कृषि प्रभावित होती हैं। अप्रशिक्षित
किसान- ग्रामीण कृषकों के निरक्षर
होने से वे कृषि - साहित्य का अध्ययन नहीं कर पाते हैं, जिससे वे वैज्ञानिक ढंग से कृषि कार्य नहीं कर पा रहे हैं।
यद्यपि शासन कृषक प्रशिक्षण शालाओं का आयोजन करती हैं, किन्तु इसका लाभ सभी कृषक नहीं उठा पाते हैं। विवाह/मृतक भोज
के आयोजन व रिश्तेदारी/नातेदारी निभाने में अधिक व्यय कर देना- समाज मे अपनी प्रतिष्ठा
बनाये रखने के लिए छोटे कृषकों को भी उनके पुत्र/पुत्रियों के विवाह अवसर पर कपड़े, आभूषण, दहेज, विवाह भोज तथा मृत्यु अवसर पर मृतक भोज एवं
रिश्तेदारी/नातेदारी निभाने के लिए संबंधियों को उपहार/भेंट देने में अधिक व्यय
करने होते हैं। निर्धन किसान ऊँची ब्याज दरों पर ऋण लेकर उन सामाजिक दायित्वों का
निवार्ह करता हैं, इससे उनकी खेती के लिए आवश्यक धन की कमी हो जाती
हैं। बड़ा परिवार - बड़े कृषक परिवारों में सभी
सदस्यों को खेती में रोजगार नहीं मिल पाता हैं। बेरोजगारी के कारण उनकी निर्धनता
बढ़ती जाती हैं। शराबी प्रवृत्ति- जिले में 30% लघु एंव
सीमान्त कृषकों के परिवारों में देशी/विदेशी शराब के सेवन करने की प्रवृत्ति अनुभव
की गई हैं। अत्यधिक मदिरा का सेवन करने से उन्हे आर्थिक व शारीरिक क्षति उठानी पड़ रही
हैं। शराबी व्यक्ति परिवार के सदस्यों के साथ मार-पीट व अभद्र व्यवहार करते रहते
हैं, जिससे उनके परिवारों में अशांति व गृह कलह बढ़ता
जाता हैं, इसका विपरीत प्रभाव कृषि कार्यो पर भी पड़ता हैं। जुँआ खेलना- फुरसत के क्षणों में कुछ
किसान मनोरंजन के लिए जुँआ खेलकर अपना कीमती समय नष्ट करते रहते हैं। दीपावली व
गणगौर आदि उत्सवों के अवसर पर ये रूपयों से भी जुआ खेलते हैं, जिससे उनकी आय कम हो जाती हैं। कर्ज लेने के कारण ऐसे
कृषकों को अपनी कृषि भूमि गिरवी तक रख देनी पड़ती हैं। कृषि उपकरण/उपज
आदि का चोरी हो जाना- जिन कृषकों की खेती गॉव से
दूर होती हैं रात्रि में सुरक्षा/गश्त के अभाव में उनके खेतों में रखे कृषि उपकरण
जैसे विद्युत पंप, पाईप आदि तथा पकी हुई फसलें चोरी हो जाती हैं।
उनके यहाँ कृषि शेडो के नहीं होने से कभी कभी घरों से भी कृषि उपज/उपकरण व नकदी की
चोरी हो जाती हैं, इससे उनका आर्थिक विकास रूक जाता हैं। बड़े भू-स्वामियों
के यहॉ खेती गिरवी रख देना- ऐसे लघु एवं सीमान्त कृषक
जिनके पास अपनी खेती करने के लिए कृषि उपकरण नहीं हैं। कृषि क्रियाएं संपन्न करने
के लिए उनके पास बीज, खाद उर्वरक की व्यवस्था नहीं हैं। उन्हैं शासन
की योजनाओं का लाभ नहीं मिला हैं तथा न ही किसी बैंकिंग संस्थान से ऋण मिला हैं।
उन्होंने अपने जीवन निर्वाह करने, सामाजिक
दायित्वों का पालन करने के लिए ऊँची ब्याज दरों पर बड़े भू-स्वामियों से ऋण लेकर
अपनी खेती को गिरवी रख दिया हैं। यद्यपि ऐसी कृषि भूमि पर भू-स्वामित्व तो छोटे
कृषकों का हैं, किन्तु उन पर कब्जा व उसका उपयोग बड़े भू-स्वामी
कर रहे हैं। इसका प्रभाव यह हो रहा हैं कि लघु एवं सीमान्त कृषक खेतीहर मजदूर के
श्रेणी में सम्मिलित हो रहे हैं और उनके परिवार गरीबी रेखा के नीचे
अभावों/असुविधाओं में जीवन निर्वाह कर रहे हैं। |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध अध्ययन में अनुसंधान की दैव निदर्शन पद्धति, सविचार तथा अवलोकन व सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर संकलित प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों का उपयोग किया गया। प्राथमिक समंकों व तथ्यों को प्राप्त करने के लिए मध्यप्रदेश राज्य के धार जिले के 10 विकासखण्डों से पर्याप्त प्रतिनिधित्व के अनुसार चयनित 100 सीमान्त कृषक व 100 लघु कृषक कुल 200 कृषकों का साक्षात्कार करके प्रश्नावली के अनुसार सर्वेक्षण कार्य किया गया। |
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निष्कर्ष |
म. प्र. राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमांत कृषकों को अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन छोटे थी के किसानों के यहां कृषि उपकरणों की कमी हैं, जिससे वे अपनी खेती की तैयारी समय पर नहीं कर पाते हैं।इन्हें समय पर कृषि ऋण नहीं उपलब्ध हो पाता है, इस कारण ये छोटे किसान समय पर खाद बीज नहीं क्रय कर पाते हैं। इन किसानों के यहां सिंचाई सुविधाएं नहीं है, इससे वे रबी की फसल नहीं ले पाते हैं। इन किसानों के यहाँ कम उत्पादन होता है,इस कारण इनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है। शासन को इन लघु एवं सीमांत कृषकों आर्थिक उन्नयन के लिए इनकी गंभीर समस्याओं को ध्यान में रख कर और अधिक योजनाओं को लागू करना चाहिए। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. साक्षात्कार प्रश्नावली सूची
2. कृषि जगत पत्रिकाएँ
3. स्थानीय समाचार - पत्र-पत्रिकाएं
4. उपसंचालक कृषि कार्यालय धार (म.प्र.)
5. कृषि संचालनालय - भोपाल
6. कृषि अनुसंधान कार्यालय - धार |