ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- V August  - 2022
Anthology The Research
मलिन बस्तियों के बच्चों की शैक्षिक समस्यायें
Educational Problems of Slum Children
Paper Id :  16385   Submission Date :  2022-08-04   Acceptance Date :  2022-08-19   Publication Date :  2022-08-25
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गीता श्रीवास्तव
असिस्टेन्ट प्रोफेसर
बी0एड0 विभाग
डी0एस0एन0 पी0जी0 कॉलेज
उन्नाव, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश
विश्व में शिक्षा सम्भवतः सबसे पुराना विषय है। जबसे मानव ने इस ग्रह पर कदम रखा है तब से वह अपने आपको, दुनिया को समझने के लिए शिक्षा प्राप्त कर रहा है। इस शिक्षा के बलबूते पर ही वह अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर मुकाबला कर रहा है। शिक्षा एक बच्चे की सोच में व्यापक बदलाव लाकर उसकी समझ के दायरे को बढ़ाती है। जिससे वह मानव जाति की सेवा में अपना योगदान दे सके। अत्यधिक नगरीयकरण और औद्योगीकरण के प्रभाव के फलस्वरूप मलिन बस्तियों का विकास हुआ। मलिन बस्तियों के असंख्य दुष्परिणाम सामने आते हैं। मलिन बस्तियाँ वे स्थान हैं जहाँ असंख्य बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं, और सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती हैं। अशिक्षा और जागरूकता के अभाव में इन मलिन बस्तियों के बच्चों का विकास नहीं हो सकता है। मलिन बस्तियों के बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सारी समस्या उत्पन्न होती हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Education is probably the oldest subject in the world. Ever since man has set foot on this planet, he has been receiving education to understand himself. It is on the strength of this education that he is coping with the problems in his life at the physical, mental and emotional level. Education widens the scope of a child's understanding by bringing about a vast change in his thinking. So that he can make his contribution in the service of mankind.
The impact of excessive urbanization and industrialization led to the development of slums. There are innumerable ill effects of slums. Slums are the places where innumerable evils arise, and affect the entire society. In the absence of illiteracy and awareness, the children of these slums cannot develop. Many problems arise in the field of education of the children of slums.
मुख्य शब्द मलिन बस्तियों के बच्चों की शैक्षिक समस्यायें, अशिक्षा, जागरूकता।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Educational Problems, Illiteracy, Awareness of Slum Children.
प्रस्तावना
स्वतंत्रता के इतने वर्षों में भारत ने चहुमुखी प्रगति की हैं। जहाँ अल्प संख्या में कुछ व्यक्ति विलासी सुख-सुविधाओं का उपयोग करते हैं, वहीं इस देश की 52 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है।1 शहरों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले व्यक्ति अधिकांशतः मलिन बस्तियों में निवास करते हैं। एक छोटी-सी कोठरी, कच्चे मकान अथवा झोपड़ी में 10 से 15 व्यक्ति तक रहते हैं। यहाँ जल के निकास का कोई प्रबन्ध नहीं होता हैं। इन तंग, सकरी, मलिन बस्तियों में जीवन कम और बीमारियाँ अधिक होती हैं। पीले मुरझाये चेहरे, पिचके गाल, उभरती हड्डियाँ, फटे गन्दे कपड़े यहाँ का सौन्दर्य है। ये मलिन बस्तियाँ मानवता के पतन की पराकाष्ठा हैं।
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य मलिन बस्तियों के बच्चों की शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन करना है ।
साहित्यावलोकन
मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा के विकास के लिए सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा अनेक योजनाएं चलायी जा रहीं है। उसके बावजूद भी वहाँ की स्थितियों में विशेष सुधार नहीं दिखाई पड़ता है। मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में मुख्यतः कौन-कौन सी समस्याएं आती हैं। जिसके कारण उनकी शिक्षा में अवरोध उत्पन्न होता है और उनका शैक्षिक विकास नहीं हो पाता है।
मलिन बस्तियों से अभिप्राय
संयुक्त राष्ट्र संघ ने मलिन बस्तियों को परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘‘एक भवन या भवनों का समूह या क्षेत्र जिसमें निवास करने वालों की संख्या भीड़ युक्त होती है, जहाँ का वातावरण दूषित होता है या सुविधाओं का अभाव पाया जाता है। इस प्रकार की दशाओं में किसी भी प्रकार की दशा वहाँ रहने वाले व्यक्तियों व समूहों के लिए स्वास्थ्य, सुरक्षा व नैतिकता की दृष्टि से हानिकारक होती है, मलिन बस्ती कहलाती है।[2]
मलिन बस्तियों की सामान्य परिभाषा करना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति के अनुरूप ही मलिन बस्तियाँ स्थापित होती हैं। मलिन बस्तियाँ, झोपड़ी, सरांय, छोटी-छोटी कोठरियों, खपरैलों और बाँसो से बने हुये कच्चे, मकान, टीन के शेड से निर्मित मकान, लकड़ी के छोटे-छोटे केबिन आदि से स्थापित हो जाती हैं। एक स्थान पर अधिक संख्या में बने ऐसे मकान जो निर्धनता के कारण बनते हैं, मलिन बस्तियों का रूप धारण कर लेते हैं।
विस्तृत अर्थ में मलिन बस्तियाँ निर्धन व्यक्तियों के वे स्थान हैं जहाँ वे स्वयं झोपड़ी, अथवा लकड़ी के छोटे-छोटे मकान बनाकर रहते हैं। ये मकान उनके अपने भी होते हैं और इसमें किराये पर भी रहते हैं।  मलिन बस्तियों तथा अन्य मानवीय समूहों का अध्ययन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, मानव शास्त्रीय तथा विधिक आदि अनेक दृष्टिकोणों से किया गया है। समाज शास्त्रियों की मान्यता है कि ‘‘मलिन बस्तियाँ सामाजिक बुराइयों को उत्पन्न करने वाले क्षेत्र होते है।[3] मानवशास्त्री इन बस्तियों को जीवन का एक उपसंस्कृतीय भाग मानते हैं।[4] मलिन बस्तियों की आर्थिक दृष्टिकोण से व्याख्या करते हुए आस्कर लेविस ने इन्हें ‘निर्धनता की संस्कृति’ कहा है।[5] अर्थशास्त्रियों का यह विचार है कि जब पूँजीगत उत्पादन के फलस्वरूप औद्योगीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिलता है तब भी अनियन्त्रित नगरीयकरण होता है। जिसके फलस्वरूप ही मलिन बस्तियों का विकास होता है। मलिन बस्ती के संदर्भ में मुम्बई में हुए एक सेमीनार में यह स्पष्ट किया गया कि मलिन बस्ती एक संकीर्ण, अव्यवस्थित बसी हुई, साधारणतः उपेक्षित क्षेत्र है जिसकी सदस्य संख्या अत्यधिक है, तथा यहाँ की संरचना भीड़युक्त अस्वास्थ्यकारी व तिरस्कार पूर्ण होती है। सामान्यतः यहाँ सामाजिक सेवा तथा कल्याणकारी संस्थाओं का अभाव पाया जाता है जो कि उनमें रहने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य अल्प आय, रहन-सहन की निम्न दशायें, उनकी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक दशाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।[6] मलिन बस्तियाँ वे आवासीय अनाथालय है जहाँ जीवन की समस्त असुविधाओं के दर्शन एक साथ होते हैं।
मुख्य पाठ

मलिन बस्तियों के विकास के कारण
मलिन बस्तियाँ नगरीय क्षेत्रों में ही अधिक विकास करती हैं। वैसे इन बस्तियों के विकास के अनेक कारण हैं जिनमें मुख्यतः नगरीयकरण और औद्योगीकरण दोनों ही महत्वपूर्ण हैं तथा ये ग्रामीण उत्प्रवास के लिए विशेषकर उत्तरदायी हैं। अधिकांश नगरीय अप्रवासी इतने निर्धन होते हैं कि वे अपने लिए उचित संसाधन नहीं जुटा पाते। यहाँ भूमि अत्यन्त दुर्लभ होती है तथा मकान का भी मूल्य नगरीय क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों से बहुत अधिक होता है। जिसकी वजह से ये व्यक्ति मलिन बस्तियों में रहने के लिए बाध्य होते हैं। मलिन बस्तियों आने वाले अप्रवासी निर्धन व्यक्ति इनमें इसलिए भी निवास करते हैं, क्योंकि अनेक कारण उन्हें नगरीय क्षेत्रों में अच्छा जीवन बिताने के विषय में विचार करने को प्रेरित करते हैं। नगरीय क्षेत्रों की चकाचौंध बाह्य दशाओं की ऐसी प्रतिछाया प्रस्तुत करते हैं कि उन्हें लगता है कि ग्रामीण क्षेत्रों से यहाँ रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होंगे तथा अनेक प्रकार की नगरीय सुविधाएँ भी प्राप्त हो सकेंगी। नगरों में आ जाने से उन्हें न कोई रोजगार तो प्राप्त हो जाता है  किन्तु इन लोगों के सामने एक समस्या अपने निवास स्थान की आ जाती है क्योंकि कम आय की वजह से इन्हें निवास के लिए उचित स्थान नहीं मिल पाता है। फलस्वरूप वह किसी भी खाली पड़ी हुई भूमि में, रेलवे लाइन के किनारे, नालों के किनारे तथा सड़कों के किनारे वह झोपड़ी, कोठरी अथवा बाँस को छप्परों में निवास बनाकर रहने लगते हैं। ऐसे स्थानों पर आवास से बस्तियाँ पास-पड़ोस के वातावरण को भी बुरे ढंग से प्रभावित करती हैं। यह वे स्थान हैं जहाँ गन्दगी चिर स्थायी होती है।
मलिन बस्तियों के प्रकार
नगरीयकरण और औद्योगीकरण तथा अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि के कारण मलिन बस्तियों का निर्माण  हुआ है। इन बस्तियों को अनेक प्रकारों में बाँटा जा सकता है।
1. वे मलिन बस्तियाँ जिसको लोगों ने किराये पर उठा रखा है जिनका स्वामी कोई और व्यक्ति होता है।
2. सरकारी जमीन पर बसी दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी, चेन्नई की चेरी, मुम्बई की झोपड़ पट्टी तथा खोली।
3. मुम्बई तथा अहमदाबाद में स्थित मलिन बस्तियाँ जिसकी संरचना तथा पट्टा पूर्णतः अवैध होता है लेकिन वे कई इकाइयों में उपविभाजित होती है।
4. वे झुग्गी झोपड़ियाँ को राजनैतिक ढंग से नेताओं के प्रभाव से अचानक बन जाती हैं।
मलिन बस्तियों की समस्यायें
मलिन बस्तियों की समस्यायें निम्नलिखित हैं-
1. मलिन बस्तियों के विकास के असंख्य दुष्परिणाम सामने आते हैं। धरती का ये नर्क, सभ्य मानव जाति के लिए कलंक हैं। ये वे स्थान हैं, जहाँ असंख्य बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं और सम्पूर्ण समाज को प्रभावित करती हैं। मलिन बस्तियों में जहाँ बच्चों का भविष्य कुंठित होता है, वहीं बच्चों के अपराधी बनने की सम्भावनायें भी बढ़ जाती हैं।
2. मलिन बस्तियों में पर्याप्त स्थान की कमी पायी जाती है। जिसकी वजह से यहाँ गोपनीयता का नितान्त अभाव पाया जाता है एक कमरे में 10-15 व्यक्ति रहते हैं। इससे बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
3. गन्दगी से परिपूर्ण ये मलिन बस्तियाँ गम्भीर बीमारियों का केन्द्र होती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से ये मानव समाज के लिए नरक के समान होती हैं।
4. यहाँ चरस, भाँग, गाँजा, कच्ची शराब इत्यादि सभी कुछ आसानी से सुलभ होता है। जुआँ खेलने के अड्डे तथा अनैतिक यौन सम्बन्धों के केन्द्र भी होते हैं। चोर, डाकू, गिरहकट इत्यादि अपराधी यहाँ शरण प्राप्त करते हैं।
इन सभी कारणों के फलस्वरूप पारिवारिक विघटन होता है। ये वे स्थान हैं जहाँ सामाजिक आदर्श, मूल्य, नैतिकता, सहिष्णुता आदि के दर्शन नहीं होते हैं। शिक्षा विषयक विकास का यहाँ पूर्णतः अभाव होता है। यहाँ व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है। इन लाचार व्यक्तियों को खरीदकर कुछ भी कराया जा सकता है। अराजक तत्व यहाँ बनाए जाते हैं, इस प्रकार के कार्यों के फलस्वरूप सामाजिक विघटन होता है।
मलिन बस्तियों में शैक्षिक कार्यक्रम तथा समस्यायें-
विश्व में शिक्षा सम्भवतः सबसे पुराना विषय है जब से मानव ने इस ग्रह पर कदम रखा है, तब से वह अपने आपको, दुनिया को समझने के लिए शिक्षा प्राप्त कर रहा है। इस शिक्षा के बलबूते ही वह आने वाली समस्याओं का शारीरिक, मानसिक  और भावात्मक स्तर पर मुकाबला कर रहा है। वास्तव में जीवन की उत्पत्ति और मानव की शिक्षा का गहरा सम्बन्ध है, दोनों का विकास साथ-साथ ही हुआ है। हालांकि समय के साथ-साथ शिक्षा का उद्देश्य जरूर बदलता रहता है।
वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों आदि, में भी शिक्षा के महत्व को स्वीकारा गया है। स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, अरविन्द घोष आदि महान दार्शनिकों तक का मानना रहा है कि शिक्षा एक बच्चे की सोच में व्यापक बदलाव लाकर उसकी समझ के दायरे को बढ़ाती है, जिसके बलबूते वह मानव जाति की सेवा में अपना योगदान दे सकता है।
शिक्षा की यह  अवधारणा प्रत्येक देश में किसी न किसी समय अवश्य महसूस की गई है। 1966 में गठित भारतीय शिक्षा आयोग का भी कहना था कि शिक्षा जीवन की आशा है, शिक्षा व्यक्ति को सत्य और नैतिकता के मार्ग पर चलने का प्रशिक्षण देती है।
आज मलिन बस्तियों की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या निरक्षर है। आज जबकि शिक्षा सबके लिए आवश्यकता बनकर उभरी है। लिंग भेद, मंहगी शिक्षा और समाज के एक तबके ने विश्व की आधी जनसंख्या को विद्यालय से दूर रखा है। शिक्षा तक सबकी पहुँच न सिर्फ स्त्री-पुरुष बल्कि शहरी, ग्रामीण और अमीर-गरीब, सभी तबके के लागों में समान रूप से होनी चाहिए। क्योंकि शिक्षा ही वह प्रकाश है जो जीवन के समस्त अंधकार को दूर करके बालक में पवित्र संस्कारों, भावनाओं, निश्चित दृष्टिकोण और भावी विचार को जन्म देता है। शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है-
1. शिक्षा को मूल अधिकारों की पर्याप्त जानकारी देना।
2. बालक की भौतिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और नैतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर व्यक्तित्व का विकास।
3. बालक में देश-प्रेम , रीतिरिवाज, और संस्कृति के प्रति प्रेमभाव जागृत करके अच्छे नागरिक गुणों का सृजन करना।
4. बालक में अन्तर्राष्ट्रीय भावना और विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास।
5. वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करना।
6. श्रम के प्रति आदर की भावना उत्पन्न करना।
7. बालकों को सीखने के सिद्धांतों पर आधारित मौलिक शिक्षा प्रदान करना।
8. बालको को क्रियात्मक अध्ययन प्रदान करके भावी जीवन के लिए तैयार करना।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य शिक्षा की आवश्यकता निम्न उद्देश्यों के लिए होता है।
1. देश में चेतना लाने के लिए।
2. प्रजातन्त्र की सफलता के लिए।
3. व्यक्तित्व की सफलता के लिए।
4. निरक्षरता को मिटाने के लिए।
5. निर्धनता को हटाने के लिए।

निष्कर्ष
मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों की शैक्षिक स्थिति संन्तोषजनक नहीं हैं क्योंकि मलिन बस्तियों में सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं के द्वारा किये जा रहे शैक्षिक विकास के प्रयास पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहे हैं। मलिन बस्तियों में स्कूलों के होते हुए भी यहाँ पर रहने वाले सभी बच्चें स्कूल में प्रवेश नहीं लेते हैं, उनमें से एक चौथाई बच्चे ही प्रतिदिन स्कूल आते हैं। ज्यादातर बच्चे धनार्जन सम्बन्धी छोटे-मोटे कार्यों में लगे रहते हैं। इसी वजह से वे स्कूल न जाकर अपने काम पर चले जाते हैं। कुछ बच्चे ऐसे होते है जिनके माता-पिता दोनों ही काम पर चले जाते हैं किन्तु बच्चे स्कूल न जाकर वहीं पर अपने साथ के बच्चों के साथ खेलते रहते हैं। बहुत से अभिभावक शिक्षा के मूल्य को न समझकर सिर्फ इसलिए बच्चे को स्कूल में प्रवेश दिला देते हैं जिससे की उनके बच्चों को सरकार के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं (जैसे कि वजीफा, कॉपी-किताबें, ड्रेस तथा पुष्टाहार वगैरह) का लाभ मिलता है। मलिन बस्तियों, में स्थित स्कूलों की स्थिति भी अच्छी नहीं होती है, यहाँ पर झोपड़ी, कमरे या खुले स्थान पर सभी कक्षायें एक साथ लगती हैं तथा एक या दो अध्यापक हीे होते हैं। इन स्कूलों का वातावरण भी ऐसा नहीं होता है कि बच्चे स्वयं भी स्कूल आने के लिए आकर्षित हो सकें। जिन मलिन बस्तियों के आस-पास स्कूल नहीं है वहाँ पर रहने वाले लोगों के पास न तो इतना पैसा होता है कि वे अपने बच्चे को स्कूल पहुँचाने जा सकें तथा उसे पढ़ा सकें। निर्धनता की वजह से ही वे अपने बच्चों को ड्रेस, कॉपी-किताब इत्यादि खरीद कर नहीं दे पाते हैं, जिससे कि उनके बच्चे स्कूल जा सकें। यहाँ पर रहने वाले अधिकांश लोग अशिक्षित होते हैं। अशिक्षित होने की वजह से ही वे शिक्षा के महत्व को समझ ही नहीं पाते हैं तथा सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का ज्ञान न होने से वे उन योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। अशिक्षित होने की वजह से ही वे अपने बच्चों को पढ़ाने तथा स्कूल में मिले गृहकार्य को करवाने में असमर्थ रहते हैं जिससे कि उनके बच्चे स्कूल में पिछड़ जाते हैं और उनमें हीन भावना पनपने लगती हैं इससे उनकी शिक्षा में अवरोध उत्पन्न होता है। मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग जनसंख्या नियंत्रण की तरफ भी ध्यान नहीं देते हैं। परिवार में अधिक बच्चे होने की वजह से तथा निर्धनता की वजह से माँ-बाप दोनों ही काम पर चले जाते हैं तथा अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी किसी न किसी काम में लगा देते हैं। जो बच्चे घर पर रह जाते हैं, खासकर बालिकायें उनको अपने घर का काम तथा छोटे भाई-बहनों की देखभाल करनी पड़ती हैं और वे स्कूल नहीं जा पाती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि मलिन बस्तियों में शैक्षिक विकास में अवरोध के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं किन्तु सबसे बड़ा कारण निर्धनता, बालश्रम, अशिक्षा, प्रेरणा तथा प्रोत्साहन एवं जागरूकता का अभाव ही है। शिक्षा व्यवस्था की यह खामियाँ हांलाकि प्रत्यक्ष रूप से इतनी स्पष्ट नहीं हैं किन्तु समाज व अर्थव्यवस्था को भीतर ही भीतर खोखला बनाती जा रही हैं। मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग जबतक स्वयं जागरूक नहीं होंगे तथा शिक्षा के महत्व को स्वयं नहीं समझेंगे तब तक उनका पूर्णरूप से शैक्षिक विकास हो पाना सम्भव नहीं हैं।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव मलिन बस्तियों की स्थिति में सुधार तथा शैक्षिक विकास के लिए सुझाव-
नगरीय मलिन बस्तियों की स्थिति में सुधार की योजना पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना के रूप में प्रारम्भ हुई थी। किन्तु बाद में सन् 1974 में इसे राज्यों को हस्तांतरित कर दिया गया। इस योजना के अन्तर्गत नगरीय मलिन बस्तियों में पीने के पानी, के निकास के लिए नालियाँ, मौजूदा मार्गों की मरम्मत गलियों में प्रकाश व्यवस्था, सार्वजनिक स्नानघरों तथा शौचालयों व सामुदायिक सुविधाओं जैसी - बुनियादी सुविधायें उपलब्ध कराई जाती हैं।
अशिक्षा और जागरूकता के अभाव ने मलिन बस्तियों के विकास में वृद्धि की है। शिक्षा देश की विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। इसीलिए इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। मलिन बस्तियों में सरकारी तथा सामाजिक संस्थायें विभिन्न प्रकार के औपचारिक शैक्षिक, कार्यों को क्रियान्वित करती हैं, जिससे इन बस्तियों में प्राथमिक विद्यालयों, आंगनबाड़ी केन्द्रों, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों आदि को स्थापित किया गया है, जिससे शैक्षिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास भी तीव्रता से हो सके।
शिक्षा को व्यापक बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वर्ष 1979-80 में अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों को लागू किया गया। इसके अन्तर्गत ऐसे बच्चों को जो किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पाते हैं या जिनके इलाके में स्कूल नहीं है अथवा जिन्हें स्कूल छोड़ देना पड़ा हो, स्कूल न जा पाने वाली लड़कियाँ और कामकाजी बच्चों को औपचारिक शिक्षा के समतुल्य शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। वर्ष 1988 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (प्रौढ़ शिक्षा) चलाया गया। इसका उद्देश्य 15 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के 800 लाख प्रौढ़ निरक्षरों को साक्षर बनाना था।
इस प्रकार के अभियान मलिन बस्तियों में साक्षरता के साथ-साथ बच्चों को शिक्षा संस्थाओं में भर्ती कराने और शिक्षा के प्रति अभिरुचि बनाये रखने, मातृ संरक्षण, छोटे परिवार के आदर्श का प्रचार करने, प्रतिरक्षण, साम्प्रदायिक सौहार्द, पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता आदि को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. जगजीत सिंह, ‘‘गन्दी बस्तियों में सांस लेती घुटन भरी जिन्दगी’’ आज, कानपुर 6 दिसम्बर 1992। 2. यूनाइटेड नेशन्स सेक्रिटियेड, अर्बन लैण्ड पोली सेज, डाक्यूमेन्ट एस0टी/एस0सी0, व (न्यूयार्क, अप्रैल 1952) पेज - 200। 3. एम0बी0 क्लीनार्ड, स्लम एण्ड कम्यूनिटी डेवलेपमेण्ट न्यूयार्क द फ्री प्रेस, 1996 पेज नं0 17। 4. ए0एल0 कोचर एन्थ्रोपोलोजी, न्यू दिल्ली ऑक्सफोर्ड एण्ड आई0 बी0 एच0 पब्लिशिंग एण्ड कम्पनी, 1964 पेज नं0 - 274 5. ऑस्कर लेविस, द चिल्ड्रेन ऑफ सेन्चेसः न्यूयार्क रेण्डम हाउस, 1961 6. इण्डियन कान्फ्रेन्स ऑफ सोशल वर्क, रिपोर्ट ऑफ द सेमिनार ऑफ स्लम क्लियरेन्स बम्बई, मई 1957 पेज- 1631 7. अदावल सुबोध-‘‘शिक्षा की समस्यायें’’। 8. के0एल0 श्रीमाली- ‘‘प्राब्लम्स ऑफ एजुकेशन इन इण्डिया’’। 9. श्रीवास्तव गीता- ‘‘मलिन बस्तियों में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति तथा अवरोधों का अध्ययन’’। 10. भगवान प्रसाद- ’’शिक्षा का विकास’’( सस्ता साहित्य मण्डल प्रकाशन)।