ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- VI September  - 2022
Anthology The Research
मध्यप्रदेश राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव
Suggestions for Solving The Problems of Small and Marginal Farmers in Dhar District of Madhya Pradesh
Paper Id :  16418   Submission Date :  12/09/2022   Acceptance Date :  15/09/2022   Publication Date :  25/09/2022
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सीताराम सोलंकी
सहायक प्राध्यापक
वाणिज्य विभाग
एस. बी. एन. शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बड़वानी,मध्य प्रदेश, भारत
सारांश कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। अनेक उद्योगों को कच्चा माल कृषि से ही उपलब्ध होता हैं। देश की 125 करोड़ जनसंख्या के लिए खाद्यान्न, दलहन, खाद्य तेल तथा अन्य घरेलू उपभोग की आवश्यकताओं की पूर्ति कृषि से ही होती हैं। देश की कार्यशील जनसंख्या के 65 प्रतिशत व्यक्ति कृषि एवं कृषि से संबंधित क्षेत्रों में कार्यरत हैं। वर्तमान में कृषि ने एक वाणिज्यिक स्वरूप धारण कर लिया हैं। म.प्र. राज्य के धार जिले में वर्ष 2021 की स्थिति में लघु एवं सीमान्त कृषकों की संख्या 1,28,930 हैं, तथा इनके कृषि क्षेत्रफल का रकबा 1,31,714 हैंक्टेयर हैं, जो जिले की कुल कृषि योग्य भूमि का 24.7 प्रतिशत हैं। इस जिले के लघु एवं सीमांत कृषकों को अनेको समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न हो रहा हैं। जिले के लघु एवं सीमांत कृषकों की समस्याओं का समाधान करना अत्यन्त आवश्यक हो गया हैं। मध्यप्रदेश राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की अनेको समस्याएं हैं उनमें से मुख्य समस्याएं हैं- - सिंचाई सुविधाओं का अभाव। - कृषि वित्त प्राप्त करने की समस्या होना। - ऋणग्रस्तता। - गैर वित्तीय संस्थाओं से ऊँची ब्याज दरों पर कृषि ऋण प्राप्त करना । - किसान कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाना । - अधिक कृषि उत्पादन लागत। - कृषि उपकरणों की कमी। - कृषकों की निरक्षरता। - सामाजिक दायित्वों को निभाने में अधिक व्यय। - वाद विवादों से घिरे रहना। - निम्न जीवन स्तर। - कृषि उत्पादन में कमी। - वैज्ञानिक ढंग से कृषि कार्य नहीं किया जाना । लघु एवम् सीमांत कृषकों की समस्याओं के समाधान के लिए शासन द्वारा किए जा रहें मुख्य प्रयास निम्नानुसार हैं – 1. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत पात्र हितग्राही किसानों को प्रतिवर्ष तीन किश्तों में 6000/– ( छः हजार रूपए ) प्रदान किए जा रहे हैं। 2. केंद्र सरकार द्वारा खादन्य व दलहनी फसलों के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की जा रही है। 3. केंद्र सरकार द्वारा यूरिया उर्वरक पर अनुदान राशि उपलब्ध करवाई जा रहीं है। 4. राज्य शासन द्वारा पात्र छोटे तबके के किसानों को कृषि उपकरण, ड्रिप सिंचाई, नए तालाब, ट्यूबवेल खनन के लिए आर्थिक अनुदान उपलब्ध कराया जा रहा है। 5. राज्य शासन केंद्रीय सहकारी बैंकों द्वारा पात्र किसानों को रियायती ब्याज दरों पर कृषि ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। 6. राज्य शासन द्वारा चयनित किसानों के लिए भ्रमण व कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Agriculture is the pivot of the Indian economy. Raw materials for many industries are available from agriculture only. The requirements of food grains, pulses, edible oil and other domestic consumption for the country's 125 crore population are met by agriculture only. 65 percent of the country's working population is employed in agriculture and agriculture related sectors. Presently agriculture has taken a commercial form. M.P. In Dhar district of the state, the number of small and marginal farmers is 1,28,930 in the year 2021, and their agricultural area is 1,31,714 hectares, which is 24.7 percent of the total cultivable land of the district. Small and marginal farmers of this district are facing many problems, due to which their economic condition is getting adversely affected. It has become very necessary to solve the problems of small and marginal farmers of the district.
There are many problems of small and marginal farmers in Dhar district of Madhya Pradesh state, among them the main problems are-
Lack of irrigation facilities.
Having problems getting agricultural finance.
Indebtedness.
- Obtaining agricultural loans from non-financial institutions at higher interest rates.
Farmers not getting the benefit of welfare schemes.
- Higher agricultural production cost.
Shortage of farm equipment.
- Illiteracy of farmers.
- More expenditure in fulfilling social obligations.
Being surrounded by controversies.
- Low standard of living.
Decrease in agricultural production.
Agricultural work not being done scientifically.
The main efforts being made by the government to solve the problems of small and marginal farmers are as follows –
1. Under the Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi Yojana, 6000/- (Rupees six thousand) is being provided annually in three installments to the eligible beneficiary farmers.
2. The Central Government is announcing the minimum support prices for food and pulse crops every year.
3. Subsidy amount is being made available on Urea fertilizer by the Central Government.
4. Economic subsidy is being made available to the eligible small section farmers by the state government for agricultural equipment, drip irrigation, new ponds, tube well mining.
5. State Government Central Cooperative Banks are providing agricultural loans to the eligible farmers on concessional interest rates.
6. Tour and farmer training programs are being organized for the selected farmers by the state government.
मुख्य शब्द धार जिला, सीमांत कृषक, कृषकों की समस्या व समाधान ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Dhar District, Marginal Farmers, Problems and Solutions of Farmers.
प्रस्तावना
म0प्र0 राज्य के धार जिले में सीमान्त कृषको के पास 1 हैक्टेयर से कम तथा लघु कृषको के पास 2 हैक्टेयर से कम कृषि भूमि हैं। कृषि जोतों का आकार कम होने, कृषि वित्त की कमी होने, लागत अधिक होने, कृषि साधनों व सिंचाई सुविधाओं की कमी होने से, कृषि उपज में कमी होने से, इन कृषकों की आय में कमी होने के कारण ये छोटे तबके के किसान गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
अध्ययन का उद्देश्य इस शोध अध्ययन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है- 1. लघु एवं सीमान्त कृषकों को वैज्ञानिक ढंग से कृषि क्रियाएँ सम्पन्न करने हेतु प्रेरित करना। 2. लघु एवं सीमान्त कृषकों की कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने हेतु उपाय सुझाना। 3. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा उपयुक्त सिंचाई प्रबन्ध करना। 4. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा उचित ब्याज दरों पर बैंकिंग संस्थानों से कृषि वित्त प्राप्त करना। 5. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा आय में वृद्धि करने हेतु अन्य व्यावसायिक गातिविधियों को संचालित करना। 6. लघु एवं सीमान्त कृषकों के सामाजिक व्ययों में मितव्ययता लाना। 7. लघु एवं सीमान्त कृषकों के हित में शासन की कृषक योजनाओं का सुचारू रूप से क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
साहित्यावलोकन
डॉ. एस. बी. मामोरिया ने प्राब्लम ऑफ एग्रीकल्चर इन इंडिया में कृषि क्षेत्र से संबंधित सुझावों का विश्लेषण किया है, प्रो. के. सी. पाथी ने कमर्शियल बैंक्स एण्ड रुरल डेवलपमेंट में ग्रामीण विकास के क्षेत्र में बैंकों द्वारा की गई भूमिका का विश्लेषण किया है।
कृषि संचालनालय, भोपाल तथा उप संचालक कृषि कार्यालय धार द्वारा कृषकों को प्रदान की जाने वाली शासन को योजनाओं के सम्बन्ध में साहित्य का प्रकाशन हुआ है, किंतु म.प्र. राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की समस्याओं के समाधान के सम्बन्ध में अभी तक साहित्य का प्रकाशन नहीं हुआ है। इस दिशा में यह प्रथम प्रयास है।
मुख्य पाठ

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध अध्ययन में अनुसंधान की दैव निदर्शन पद्धति, सविचार व अवलोकन एवं सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर संकलित प्राथमिक एवं द्वितीयक संमको का उपयोग किया गया। प्राथमिक समंको को प्राप्त करने के लिए धार जिले के 10 विकासखण्डो से पर्याप्त प्रतिनिधित्व के अनुसार चयनित 100 सीमान्त कृषक व 100 लघु कृषक कुल 200 कृषकों का साक्षात्कार करके प्रश्नावली के अनुसार सर्वेक्षण कार्य किया गया।
विश्लेषण
लघु एवं सीमान्त कृषकों को रियायती ब्याज दरों पर कृषि ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिससे ये छोटे तबके के किसान समय पर खाद-बीज, भूमि की तैयारी व सिंचाई सुविधाओं की व्यवस्था कर सके। सरकारी कृषि कार्यालयों द्वारा केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की किसान कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जिले के सभी किसानों को उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।लघु एवं सीमान्त कृषकों की कृषि उपज तथा उनकी आय में वृद्धि करने के प्रभावी उपायों का कार्यान्वयन किया जाना अत्यावश्यक हो गया हैं।
म.प्र. राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की प्रमुख समस्याएं है –
1. इस जिले के 40% कृषकों के पास पर्याप्त कृषि उपकरण उपलब्ध नहीं है, इससे उनकी कृषि क्रियाएँ प्रतिकुल रुप से प्रभावित हो रही है।
2. इस जिले के 68% किसानों के पास पर्याप्त सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, इसलिए वे केवल वर्षा ऋतु में खरीफ की एक ही फसल का उत्पादन कर पाते हैं। 
3. गैर वित्तीय संस्थानों से ऊंची ब्याज दरों पर ऋण प्राप्त करने के कारण इस जिले के कृषक ऋणग्रस्त बने हुए है तथा ऋणग्रस्तता के कारण उन्हें नया कृषि ऋण प्राप्त करने में कठिनाईयां उत्पन्न हो रही है।
4. बीज उर्वरक, विद्युत दरें कृषि यंत्र व उपकरण तथा डीजल के मूल्यों में वृद्धि हो जाने के कारण इन कृषकों की कृषि लागत में वृद्धि हो रही है।
5.  सीमान्त कृषकों की कृषि भूमि 1 हेक्टेयर से कम होने के कारण फसल उत्पादन भी कम होता है। 
6. इस जिले के 58% कृषक निरक्षर है, इस कारण वे वैज्ञानिक ढंग से कृषि क्रियाएँ सम्पन्न नही कर पा रहे हैं।
7. इस जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में शासन की किसान कल्याणकारी योजनाओं का पर्याप्त प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण लघु एवं सीमान्त कृषक शासन की किसान हितैषी योजनाओं का पर्याप्त लाभ नहीं ले पा रहे है।
म0प्र0 राज्य के लघु एवं सीमान्त कृषकों की समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव 
म0प्र0 राज्य के धार जिले में लघु एवं सीमान्त कृषकों की समस्याओं के समाधान हेतु शोध अध्ययन के आधार पर प्रभावी उपाय निम्नानुसार हैं -
आधुनिक कृषि उपकरणों को जुटाना 
कृषि कार्यों को करने के लिए कृषकों को कई उपकरणों की आवश्यकता होती हैं। जिन कृषकों के पास कृषि उपकरण उपलब्ध नहीं हैं, आवश्यकता पड़ने पर कृषि यंत्रों की कमी नहीं रहे। ये उपकरण शासन की विभिन्न कृषि योजनाओं के तहत, बैंकिंग संस्थानों से ऋण लेकर क्रय किये जा सकते हैं।
कृषि भूमि को सुधारना 
कृषकों को अपने स्वामित्व व कब्जे की कृषि भूमि की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, उसे उत्तम ढंग से तैयार कर लेना चाहिए। भूमि से अनावश्यक कंकड़-पत्थर हटा दिये जावे। जल निकास उचित रूप से हो। मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा बनी रहे। गोबर व जैविक खाद प्रतिवर्ष मृदा में डालते रहे, इस प्रकार कृषकों को चाहिए कि प्रत्येक खरीफ, रबी व जायद फसलों को लेने के लिए खेती को उचित रूप से तैयार करते रहना चाहिए।
प्रमाणित बीजों का उपयोग करना 
फसल उत्पादन में वृद्धि करने के लिए मृदा की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए चयनित प्रमाणित बीजों का उपयोग करना चाहिए।
सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था करना 
रबी, जायद व खरीफ फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए सभी किसानों को सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था कर लेनी चाहिए। नए कुँओं की खुदाई, पुराने कुँओं का गहरीकरण, उनमें से गाद निकालना, नलकूपों की खुदाई, तालाब, नदियों नहरों से (जो भी स्त्रोत हों) सिंचाई व्यवस्था करनी चाहिए। वर्षा जल को जल स्त्रोतों में रि-चार्ज करते रहना चाहिए। विद्युत पंप - पाईप लाईन आदि की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। फसलों को समय पर उनकी आवश्यकतानुसार ही सिंचित करना चाहिए, जहाँ तक हो सके स्प्रिंकलर व फव्वारा सिंचाई पद्धति को अपनाना चाहिए।
पर्याप्त विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना 
विद्युत मण्डलों को चाहिए कि लघु एवं सीमान्त कृषकों की फसलों के लिए समय पर पर्याप्त विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करे।
दलहन, शाक-सब्जी, मसाला व औषधीय फसलों का उत्पादन करना 
इन फसलों का कम भूमि पर अधिक उत्पादन होने तथा इनका विक्रय मूल्य अधिक होने से लघु एवं सीमान्त कृषकों को दलहनी फसलों में - मूंग, उड़द, अरहर, चना, सब्जियों में - गिलकी, भिण्डी, ग्वारफली, बैंगन, लौकी, पालक, आलू, गोभी, मैथी, टिण्डा, करेला, मसाला फसलों में - मिर्च, लहसून, धनिया, हल्दी, औषधियों में - मुलेठी, अजवायन, आंवला, सफेद मूसली, इत्यादि फसलों के उत्पादन पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
फसलों की सुरक्षा करना 
फसलों के पक आने के समय पर कृषकों को रात्रि में फसलों की चोरी से सुरक्षा करनी चाहिए।
उपज का भण्डारण समुचित रूप से करना 
पकी हुई उपज को कीटाणुओं/जीव जन्तुओं से नष्ट करने व सड़ने से बचाने के लिए उपयुक्त भण्डारण व्यवस्था करनी चाहिए।
सब्जियों/कंद मुलों के विक्रय हेतु स्थल आरक्षित करना 
विकासखण्ड/तहसील मुख्यालयों पर सब्जी-मण्डियों व सब्जी विक्रय स्थलों पर लघु एवं सीमान्त कृषकों को अपनी उपज विक्रय करने हेतु उनके लिए ग्राम पंचायतों/नगरीय निकायों द्वारा स्थल आरक्षित करना चाहिए।
कृषिगत मसाला उपज को विक्रय करने में व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाना 
मिर्च, धनिया, हल्दी, चना इत्यादि फसलों को पिसवाकर उन्हे उचित मात्रा में पैकेटों में भरकर किराणा व्यवसायियों/होटलो के मालिकों को उनके व्यवसाय स्थल पर जाकर विक्रय करें, ताकि लघु एवं सीमान्त कृषकों को उन मसाला पैकेटों का उचित विक्रय मूल्य प्राप्त हो सके।
समर्थन मूल्य वाली उपजों को कृषि उपज मण्डियों में विक्रय करना 
शासन ने जिन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिया हैं, उन फसलों के उत्पादन को निर्धारित कृषि उपज मण्डी में ही विक्रय करें, जिससे कृषकों को सही तौल पर उचित विक्रय मूल्य समय पर प्राप्त हो ।
वृक्षारोपण करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को अपनी खाली पड़ी जमीन पर फलदार वृक्षों में - आम, चिकू, ईमारती लकड़ी के लिए सागौन, शिशम, अंजन, बांस, छायादार वृक्षों में बड़, पीपल, नीम, अशोक इत्यादि पौधों को रोपण कर उनका संरक्षण व संवर्धन करना चाहिए। जो वृक्ष पहले से हैं उन्हें काटे नहीं तथा न ही दूसरों को काटने दे।
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषक शिविरों का आयोजन करना 
कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में केन्द्रीय और राज्य सरकार की कृषिगत योजनाओं की जानकारी कृषकों को समझाने के लिए कृषक शिविरों का आयोजन किया जाना चाहिए। इनमें कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उन्नत तरीकों से की जाने वाली खेती के उपायों को कृषको को अवगत कराया जाना चाहिए।
कृषक प्रशिक्षण शालाओं में उपस्थित होना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को कृषि विभाग द्वारा आयोजित किये जाने वाले प्रशिक्षणों में उपस्थित होकर प्रशिक्षण गंभिरतापूर्वक प्राप्त करना चाहिए तथा इसका उपयोग अपनी खेती करने मे करना चाहिए।
कृषिगत योजनाओं की प्रक्रिया सरल करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को लाभ देने के लिए बनायी गयी शासकीय योजनाओं की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए ताकि निरक्षर कृषक भी उन योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सके। उनको उपकरण, बीज, उर्वरक की सुविधाएं और अनुदान उपलब्ध कराने में कृषि विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को सकारात्मक व्यवहार अपनाना चाहिए।
शासकीय योजनाओं का लाभ लेना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को स्वयं आगे आकर अपने क्षेत्र के पटवारी, ग्राम सचिव, सहायक कृषि विस्तार अधिकारी, उपसंचालक कृषि इत्यादि अधिकारियों/कर्मचारियों के सम्पर्क में रहना चाहिए। उन्हें स्वयं जागरूक होकर योजनाओं की जानकारी, उपलब्ध आंबटन राशि, आवेदन-पत्र व इनके साथ संलग्न किये जाने वाले आवश्यक दस्तावेज, स्वीकृति प्रक्रिया आदि बातों की सूचनाएं प्राप्त करनी चाहए तथा कृषिगत सरकारी योजनाओं का लाभ लेना चाहिए।
ऊँची ब्याज दरों पर ऋण नहीं लेना 
साहूकारों/व्यापारियों/बड़े भू-स्वामियों द्वारा कृषि ऋणों पर 36ः से लेकर 60ः वार्षिक की दर से ब्याज लिया जाता हैं। अतः लघु एवं सीमान्त कृषकों को ऐसे गैर वित्तीय संस्थानों से ऊँची ब्याज दरों पर ऋण नहीं लेना चाहिए।
बैंक में खाता खुलवाना 
जिन कृषकों ने किसी भी बैंक शाखा में बचत खाता नहीं खुलवाया हैं, उन्हे बैंक में खाता शीघ्र खुलवा लेना चाहिए। बैंकिंग व्यवहार विश्वसनीय होते हैं।
छोटी-छोटी बचतों को बैंक में जमा करवाना 
बैंक अपने ग्राहकों के जमा धन को सुरक्षित रखते हैं तथा उन पर प्रतिफल स्वरूप उचित दरों से समयानुसार ब्याज भी प्रदान करते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर न्यूनतम ब्याज दरों पर आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं। सभी लघु एवं सीमान्त कृषकों को अपनी आय का कुछ हिस्सा बचाना चाहिए तथा अपनी छोटी-छोटी बचतों को बैंक में जमा करवाना चाहिए।
स्वयं सहायता समूह के सदस्य बनना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को स्वयं सहायता समूहों को निर्मित करना चाहिए तथा आपस में अपनी छोटी-छोटी बचतों को एकत्रित करके स्वयं सहायता समूह के रूप में बैंक शाखा में जमा करवाना चाहिए। बैंक इस जमा धन राशि पर ब्याज के साथ सदस्यों को नियमानुसार अनुदान भी उपलब्ध कराती हैं।
बैंकिंग संस्थानों से ही कृषि वित्त प्राप्त करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को अपने क्षेत्र में स्थित बैंक शाखा से ही कृषि क्रियाओं को संपन्न करने के लिए कृषि ऋण प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि इन ऋणों पर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दरों से ब्याज लिया जाता हैं। ब्याज की दर प्रायः कम ही रहती हैं जो 5ः से लेकर 12ः वार्षिक रहती हैं।
ऋण का सदुपयोग करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा लिये गये ऋणों का सदुपयोग करना चाहिए। जिन कृषि गतिविधियों के लिए ऋण लिया हैं उसका उपयोग उन्हीं कार्यों को संपन्न करने में करना चाहिए। ऋण राशि का उपयोग उपभोग करने व सामाजिक दायित्वो की पूर्ति करने में नहीं करना चाहिए। ऋण बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता हैं। इसका महत्व समझना चाहिए। ऋण राशि का उपयोग कृषि आय बढ़ाने में करना चाहिए।
ऋण राशि को जमा करवाना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को उनके द्वारा लिये गये ऋणों की राशि को समय पर ऋणदाताओं के यहाँ जमा करवा देना चाहिए। प्राप्त की गयी ऋण राशि व इसके ब्याज को समय पर जमा करवा दिये जाने से व्यवहार बना रहता हैं तथा पुनः ऋण प्राप्त करने में सुविधा रहती हैं। प्राप्त की गयी ऋण राशि को समय पर जमा नहीं करवाये जाने से प्रतिकूल व्यवहार/विवाद उत्पन्न होते हैं तथा नये ऋण प्राप्त करने में कठिनाईयां आती हैं। अतः ऋण राशि को समय पर जमा करवा दिया जाना चाहिए।
मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को देशी विदेशी मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। जहाँ तक हो सके इससे दूर ही रहना चाहिए। मदिरा क्षणिक उत्तेजना को बढ़ाती हैं तथा उत्तेजित व्यक्ति परिवार/समाज में अनुचित व्यवहारों में लिप्त हो जाता हैं, इससे अनेक विवाद उत्पन्न होने लगते हैं। कठिन परिश्रम से अर्जित की हुई आय शराब को क्रय करने में खर्च हो जाती हैं। आदतन शराबी व्यक्ति का स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरने लगता हैं, स्वास्थ्य ठीक करने में बड़ी धनराशि खर्च हो जाती हैं। आदतन मदिरापान करने वाले व्यक्ति कई अपराध करने लग जाते हैं, उनके विरूद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज हो जाने से शेष रही धन राशि मुकदमों/दावों का निपटारा करने में व्यय हो जाती हैं। शराबी व्यक्ति परिवारों में अंशाति उत्पन्न करते हैं, जिससे परिवार के सदस्य अपना दिन-प्रतिदिन का कार्य भी मानसिक संतुलन बिगड़ने के कारण ठीक ढंग से संपन्न नहीं कर पाते हैं। धीरे-धीरे आदतन मदिरापान करने वाले व्यक्ति के परिवार का आर्थिक विकास अवरूद्ध हो जाता हैं।
विवादों का निपटारा शांतिपूर्वक करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों के साथ अन्य पक्षकारों द्वारा उत्पन्न हुए आर्थिक, सामाजिक व न्यायालयीन विवादों का निवारण संवैधानिक व शांतिपूर्ण ढंग से करना चाहिए। न्यायालयीन विवादों को लोक अदालत के माध्यम से समझौता विधि से समाप्त कर देना चाहिए।
विवाह/रिश्तेदारी/नातेदारी के व्ययों में मितव्ययता लाना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को अपनी आय कम होने के कारण सामाजिक आयोजनों में होने वाले व्ययों को अपनी हैसियत के अनुसार ही खर्च करने चाहिए। लघु एवं सीमान्त कृषकों को उनके पुत्र/पुत्रियों के विवाह आयोजनों में वस्त्र/आभूषण/दहेज वस्तुएं/विवाह भोज इत्यादि में होने वाले व्ययों में मितव्ययता बरतनी चाहिए, इस हेतु उन्हें ऊँची दरों पर ऋण नहीं लेना चाहिए। जहाँ तक हो सके सामूहिक विवाह आयोजनों में भागीदार बनना चाहिए। रिश्तेदारी/नातेदारी निभाने में उपहार स्वरूप नकद/वस्तुएं भेंट करनी होती हैं, इनमें भी उन्हें फिजूलखर्ची से बचना चाहिए।
पशु पालन करना 
गाय, बैल, भैंस व बछड़ों के लिए पानी, घास-भूसा व चारे की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए। दुग्ध व दुग्ध से बने उत्पादों को विक्रय कर आय से वृद्धि करनी चाहिए। लघु एवं सीमान्त कृषकों को चाहिए कि वे अपने पशुधन में वृद्धि करें।
स्वरोजगार स्थापित करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों के बड़े परिवारों में रह रहे सदस्यों को अपनी योग्यता/कौशल व वित्त को ध्यान में रखते हुए छोटे-छोटे स्वरोजगार जैसे- वस्त्र सिलाई कार्य, दुग्ध व दुग्ध से बने पदार्थों का विक्रय करना, ड्राईविंग कार्य, टू-व्हीलर/विद्युत पंप मरम्मत कार्य, विद्युत फिटिंग, भवन निर्माण कारीगरी कार्य, किराना व्यवसाय इत्यादि में से चयनित स्वरोजगारों को स्थापित कर संचालित करते हुए आमदनी में वृद्धि करना चाहिए।
छोटा परिवार 
पति/पत्नि व दो बच्चों से मिलकर बनने वाले परिवार को छोटा परिवार कहा जाता हैं। इस प्रकार ‘‘हम दो हमारे दो’’ के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
बजट में पर्याप्त राशि का प्रावधान करना 
केन्द्रीय व राज्य शासन के प्रतिवर्ष पारित होने वाले बजट में लघु एवं सीमान्त कृषकों की संख्या को ध्यान में रखते हुए उनका आर्थिक विकास करने के लिए पर्याप्त राशि का प्रावधान किया जाना चाहिए, ताकि सभी छोटे किसानों को लाभ प्राप्त हो सके। छोटे किसानों का आर्थिक कल्याण करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में भी आर्थिक प्रावधान किये जाने चाहिए।
अनुचित व्यवहारों को नियंत्रित करना 
लघु एवं सीमान्त कृषकों को ऊँची ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करने वालों, उनके स्वामित्व की गिरवी रखी हुई कृषि भूमि को लम्बे समय तक दूसरे काश्तकारों द्वारा लम्बे समय तक उपयोग में लाने वालों, शासन द्वारा प्रदत्त कृषि उपकरणो को गिरवी रख लेने वालों, जुआँ व सट्टे के अवैध कारोबार में संलग्न रहने वालों के विरूद्ध कार्यवाही करते हुए जिला प्रशासन द्वारा ऐसे अनुचित व्यवहारों को शीघ्र नियंत्रित किया जाना चाहिए।
दुर्लभ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए परिवहन सेवा प्रारम्भ करना 
शासन द्वारा कच्चे मार्गो वाले ग्रामीण क्षेत्रों को चिन्हित कर उन्हे पक्के सड़क मार्गो में परिवर्तित करना चाहिए तथा वहाँ शीघ्र परिवहन सेवा प्रारम्भ करनी चाहिए ताकि वहाँ के ग्रामीण कृषक अपने कृषि उत्पादनों को शहरों में आसानी से विक्रय कर सके।
कृषि शीत गृहों का निर्माण करना 
विकासखण्ड/तहसील मुख्यालयों पर सहकारी स्तर पर कृषि शीत गृहों का निर्माण किया जाना चाहिए। कृषिगत उत्पादन को शीतगृहों में समुचित रूप से भण्डारण करने पर उन्हें सड़ने/गलने से बचाया जा सकता हैं तथा समय पर उनकी आपूर्ति मॉग वाले बाजारों में सुनिश्चित की जा सकती हैं।
कृषि उपकरणों/यंत्रों को रियायती दरों से किराये पर लेना 
सहकारी स्तर पर कृषि उपकरणों को रियायती दरों से किराये पर देने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि जिन कृषकों के पास अपनी खेती क्रियाएं सम्पन्न करने के लिए कृषि यंत्र उपलब्ध नहीं हैं, वे उन्हें उचित किराये पर लेकर अपनी कृषि क्रियाएं समय पर पूर्ण कर कृषि उपज का उत्पादन कर सके।
लघु एवं सीमान्त कृषक कार्ड योजना बनाना 
लघु एवं सीमान्त कृषकां का आर्थिक विकास करने के लिए शासन द्वारा कृषक कार्ड योजना बनायी जानी चाहिए, ताकि जिन कृषकों को सरकारी योजना का लाभ अभी तक प्राप्त नहीं हुआ हैं उनकी पहचान सुनिश्चित करते हुए उन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ पहुॅचाने में प्राथमिकता दी जावे। इस हेतु लघु एवं सीमान्त कृषक कार्ड योजना शासन स्तर पर बनायी जाना चाहिए।
जनप्रतिनिधियों द्वारा सहयोग करना 
ग्राम पंचायत/नगरीय निकायों/विधानसभा/लोकसभा/राज्य सभा के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्वारा शासकीय योजनाओं का लाभ पहुॅचाने के लिये सभी लघु एवं सीमान्त कृषकों को आवश्यक सहयोग प्रदान करना चाहिए।
निष्कर्ष इस जिले के लघु एवं सीमान्त किसानों को अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित उपायों का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए — 1. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा अपनी कृषि भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए गोवर व कम्पोस्ट खाद का उपयोग प्रतिवर्ष किया जाना चाहिए। 2. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा सिंचाई सुविधाओं व कृषि उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। 3. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा प्रमाणित बीजों का उपयोग किया जाना चाहिए। 4. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा खरीफ व रबी के मौसम में खाद्यान्न, दलहन, सब्जी, औषधीय व मसाला फसलों का उत्पादन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 5. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा राष्ट्रीयकृत व केन्द्रीय तथा जिला सहकारी बैंकों की शाखाओं से कृषि ऋण प्राप्त कर इस राशि का उपयोग कृषि कार्यों के लिए ही करना चाहिए। 6. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा अपनी कृषि उपज का विक्रय न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर कृषि उपज मण्डियों में ही किया जाना चाहिए। 7. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा शासन की किसान कल्याणकारी योजनाओं से लाभ प्राप्त किया जाना चाहिए। देश के 766 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में 12.6 करोड लघु एवं सीमान्त कृषक निवासरत होकर अपनी कृषि क्रियाएँ सम्पन्न कर अपना जीवन निर्वहन कर रहे हैं। देश के लघु एवं सीमान्त कृषकों की समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें आर्थिक सहायता व उन्हें कृषि सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र व राज्यों के सरकारी तंत्र द्वारा सघन राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों का आयोजन समय-समय पर किया जाना चाहिए।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. जिला सांख्यिकी पुस्तिका - कलेक्टर कार्यालय धार 2. साक्षात्कार प्रश्नावली सूची 3.कृषिजगत पत्रिका - भोपाल 4. स्थानीय समाचार - पत्र-पत्रिकाएँ 5. उपसंचालक कृषि कार्यालय, धार 6. कृषि अनुसंधान संस्थान - धार 7.संचालनालय कृषि - भोपाल