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बिहार राज्य के गोपालगंज जिला में कृषि की स्थिति एवं विकासः एक भौगोलिक अध्ययन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Status and Development of Agriculture in Gopalganj District of Bihar State: A Geographical Study | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
16312 Submission Date :
2022-09-14 Acceptance Date :
2022-09-20 Publication Date :
2022-09-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
आदि काल से कृषि मनुष्यों द्वारा किया जा रहा महत्वपूर्ण व्यवसाय है। इसके द्वारा अपनी आवश्यक भोजन की आपूर्ति करता था। धीर-धीरे कृषि हमारी संस्कृति बन गयी। सभ्य मानव की जीवन पद्धति कृषि के अनुरुप ढलती गयी। आज कृषि न केवल खाद्यान्न का आपूर्ति करता है बल्कि देश के अर्थव्यवस्था का रीढ़ एवं उद्योगों के लिए कच्चा माल भी तैयार करता है। कृषि शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के कृष् धातु से हुआ है, जिसका अर्थ भूमि को जोतना है। इसे अंगे्रजी में Agriculture कहा जाता है, जिसका तात्पर्य भूमि को जोत कर फसल उगाना है। इस प्रकार कृषि के अन्तर्गत उन तमाम क्रियाओं को शामिल किया जाता है, जिसकी सहायता से खाद्यान्न एवं कच्चे माल की प्राप्ति के लिए भूमि का उपयोग किया जाता है। बिहार के उत्तरी मैदान में स्थित गोपालगंज एक कृषि प्रधान जिला है। यहाँ धान, गेहूँ, मक्का, ईख, आलू, हरी सब्जियाँ और तिलहन का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। हाल के वर्षों में वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग, एच॰वाई॰वी॰ बीज, सिंचाई की सुविधा, रासायनिक एवं जैविक उर्वरकों के प्रयोग के बाद यहाँ के कृषि में फसलों के उत्पादन में काफी वृद्धि हुयी है। दूसरी हरित क्रांति के शुरुआत के बाद इसमें और वृद्धि होगी। आवश्यकता उत्पादन वृद्धि को सतत् कृषि विकास कार्यक्रम से जोड़ने की है, जिसमें कृषि के विकास के साथ-साथ पर्यावरण की भी सुरक्षा निहायत आवश्यक है।
गोपालगंज, घाघर, गंडक, झरही, इत्यादि नदियों द्वारा निपेक्षित मलवे के जमाव से निर्मित भूमि काफी उपजाऊ है। फलत: यहाँ वृहत् पैमाने पर कृषि कार्य किया जा रहा है। खाद्यान्नं के अलावा यहाँ ईख, तिलहन और हरी सब्जियों एवं फल के उत्पाकन में उतरोत्तर वृद्धि दर्ज की जा रहा है। उपरोक्त फसलों के अलावा पशुपालन एवं मतस्य पालन को भी कृषि कार्य में सम्मिलित कर कृषि को इन्द्र धनुषी छटा बिखेरने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रकार गोपालगंज के कृषि का भविष्य सुनहरा है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agriculture is an important occupation carried on by humans since time immemorial. Through this he used to supply his necessary food. Gradually agriculture became our culture. The way of life of civilized man got adapted to agriculture. Today, agriculture not only supplies food grains but also forms the backbone of the country's economy and raw material for industries. The word agriculture is derived from the Sanskrit root krisha, which means to cultivate the land. It is called agriculture in English, which means cultivating the land. In this way, all those activities are included under agriculture, with the help of which land is used for obtaining food grains and raw materials. Gopalganj is an agricultural district located in the northern plains of Bihar. Paddy, wheat, maize, sugarcane, potatoes, green vegetables and oilseeds are produced on a large scale here. In recent years, after the use of scientific equipment, HIV seeds, irrigation facilities, the use of chemical and organic fertilizers, the production of crops in agriculture has increased significantly. This will increase further after the start of the second green revolution. There is a need to link the production growth with the sustainable agricultural development program, in which along with the development of agriculture, the protection of the environment is also very important.The land formed by the accumulation of debris deposited by the Gopalganj, Ghaghar, Gandak, Jharhi, etc. rivers is quite fertile. As a result, agricultural work is being done on a large scale here. Apart from food grains, the production of sugarcane, oilseeds and green vegetables and fruits is registering a progressive increase. Apart from the above mentioned crops, efforts are being made to spread the rainbow shade to agriculture by including animal husbandry and fisheries in agricultural work. Thus the future of agriculture of Gopalganj is golden. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | कृषि, संस्कृति, तिलहन, वैज्ञानिक उपकरण, रासायनिक, हरित क्रांति एवं सतत् कृषि विकास। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agriculture, Culture, Oilseeds, Scientific Instruments, Chemical, Green Revolution and Sustainable Agricultural Development. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
गोपालगंज जिला बिहार राज्य ही नहीं, देश के महत्त्वपूर्ण कृषि क्षेत्र के रुप में जाना जाता है। यहाँ की भौगोलिक दशाएँ कृषि के उत्कृष्टता के लिए उपयुक्त है। इसकी उपजाऊ दोमट मिट्टी, गंडक नहर से मुकम्मल सिंचाई व्यवस्था, मजूदरों क पर्याप्त संख्या, यातायात सुविधा,विद्युत आपूर्ति की सुनिश्चित व्यवस्था, कृषि यंत्रों का व्यवहार, रासायनिक एवं जैविक उर्वरक व कीटनाशक दवाओं के संतुलित उपयोग के कारण वृह्त पैमाने पर धान, गेहूूँ, ईख, चना, मूंग, हरी सब्जियाँ इत्यादि का उत्पादन होता है। यहाँ फलों में आम, अमरूद, पपीता एवं नीबू इत्यादि के उत्पादन के साथ पशुपालन, मत्स्यपालन एवं मधुमक्खी पालन का कार्य भी किया जाता है। इन सभी मिश्रित कृषि व्यवस्थाओं के फलस्वरूप गोपालगंज जिला में कृषि की इन्द्रधनुषी छटा की आभा दिखाई पड़ती है। अत: अध्ययन क्षेत्र गोपालगंज जिला में कृषि का भविष्य सुनहरा है।
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अध्ययन का उद्देश्य | वर्तमान शोध पत्र का निम्नांकित उद्देश्य है -
1. गोपालगंज जिला के भूमि का अध्ययन करना।
2. इस जिला के फसल प्रतिरुप का अध्ययन करना।
3. इस जिला में कृषि के विकास के लिए आवश्यक आधारभूत संरचनाओं का अध्ययन करना।
4. इस जिला में मुद्रादायनी फसलों एवं औषधीय फसलों का अध्ययन करना।
5. इस जिला के ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण में कृषि के योगदान का अध्ययन करना। |
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सामग्री और क्रियाविधि | वर्तमान शोध कार्य में अवलोकनात्मक एवं विश्लेषणात्मक विधियों का प्रयोग करते हुए प्राथमिक एवं द्वितीयक आँकड़ों का संकलन किया गया है। प्राथमिक आँकड़े का चयन अध्ययन क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्र का परिभ्रमण कर वहाँ के लोगों से प्रश्नावली एवं प्रतिचयन के द्वारा आँकड़े का संकलन किया गया है। द्वितीयक आँकड़े का संग्रहण जिला के कृषि विभाग, सिंचाई विभाग के अभिलेखों से प्राप्त किया गया है। इनके अलावा पुस्तकों, शोधग्रंथों, पत्रिकाओं इत्यादि का भी सहयोग किया गया है। प्राथमिक एवं द्वितीयक प्राप्त आँकड़े को सांख्यिकीय विधि से सारणी बनाकर उसका विश्लेषण किया गया है। इस प्रकार शोधपत्र को कार्य रुप दिया गया है। |
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विश्लेषण |
अध्ययन क्षेत्रः- गोपालगंज
जिला 2 अक्टूबर 1973 ई॰ को सारण जिला से विभाजित होकर निर्मित हुआ है। इसका विस्तार 25012’
उत्तरी आक्षांश से 26039’
उत्तरी आक्षांश तक तथा 83054’
पूर्वी देशांतर से 85056‘
पूर्वी देशांतर तक है। इसका क्षेत्रफल 2033 वर्ग किलोमीटर है तथा 2011 के जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 2558037 है जिनमें 1269677 पुरुष एवं 1288360 महिलाएँ हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व 1258 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। यहाँ लिंगानुपात भी 1015 है अर्थात् प्रति 1000 पुरुष पर 1015 महिलाएँ हैं। इस प्रकार जनसंख्या के दृष्टिकोण
से यह बिहार का विशिष्ट जिला में जाना जाता है। इसके उत्तर में पश्चिमी एवं पूर्वी
चम्पारण जिला, दक्षिण में सिवान एवं सारण जिला, पूरब में पूर्वी चम्पारण जिला और पश्चिम में उत्तर प्रदेश
के देवरिया जिला इसके सीमा का निर्धारण करते हैं। यहाँ दो अनुमंडल और 14 प्रखंड है।
फसल प्रतिरुपः- गोपालगंज जिला में यों तो चार फसल प्रतिरुपों में फसलों का उत्पादन किया जाता है जो मौसम के अनुरुप होते हैं। यहाँ मुख्य फसल प्रतिरुपों में 1.खरीफ 2. रबी 3. गरमा है, परन्तु भदई फसल प्रतिरुप के रुप में केवल हरी शाक-सब्जियों का उत्पादन होता है। शेष फसल नहीं होते क्योंकि वर्षा के प्रभाव से भदई फसलें उपज नहीं पाते हैं। 1. खरीफ फसलें:- खरीफ फसलें जून माह में बोया जाता है तथा दिसम्बर जनवरी में इन फसलों की कटाई की जाती है। इस फसल प्रतिरुप के अन्तर्गत धान, मक्का, अरहर, उरद, मुंग अन्य दलहन तील, अरंडी, मरुआ इत्यादि फसलों का उत्पादन किया जाता है। निम्न तालिका में गोपालगंज जिला के खरीफ फसलों का आच्छादन क्षेत्र प्रदर्शित किया गया है। तालिका-1
स्रोत- जिला कृषि कार्यालय, गोपालगंज (2021-22) तालिका-1 से स्पष्ट होता है कि गोपालगंज जिला की सर्वाधिक महत्वपूर्ण खरीफ फसल चावल है, जो 75.53 प्रतिशत भूमि पर लगाया जाता है। इसका उत्पादन भी अधिक होता है और जिला का मुख्य खाद्यान्न है। दूसरा महत्वपूर्ण खरीफ फसल मक्का है, जिसका आच्छादन 13.45 प्रतिशत भूमि में किया जाता है। यहाँ 4.21 प्रतिशत भूमि पर अरहर का उत्पादन होता है। अन्य फसलें 3.91 प्रतिशत, अन्य दलहनी 1.13 प्रतिशत भूमि पर उत्पादन किया जाता है। शेष फसलें उरद 0.65 प्रतिशत, मुंग 0.87 प्रतिशत, तील 0.04 प्रतिशत, मरुआ 0.02 प्रतिशत और अरंडी 0.01 प्रतिशत भूमि में उत्पादन किया जाता है। रबी फसलः- रबी फसल गोपालगंज जिला की महत्वपूर्ण फसलें हैं। इसका बुवायी नवम्बर-दिसम्बर माह में किया जाता है और फरवरी-मार्च महीना में कटनी किया जाता है। रबी फसलों में गेहूँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण फसल है। इसमें दलहन, तेलहन का भी उत्पादन होता है, जिन्हीं हल्की वर्षा की आवश्यकता होती है। इन फसलों के लिए आधुनिक कृषि यंत्र, एच०वाई०भी०, बीज, कृषि मजदूर, गेहूँ में सिंचाई एवं उर्वरक की आवश्यकता होती है। इस मौसम के मुख्य फसलें निम्नांकित हैं:- तालिका-2 गोपालगंज जिला में रबी के आच्छादन क्षेत्र 2021-22
स्रोत- जिला कृषि कार्यालय, गोपालगंज (2021-22) तालिका 2 में गोपालगंज जिला में रबी फसल के आच्छादन क्षेत्र प्रदर्शित किया गया है। यहाँ गेहूँ 66.57 प्रतिशत क्षेत्र में, मक्का 5.68 प्रतिशत, चना 0.32 प्रतिशत, मसूर 0.46 प्रतिशत, मटर 0.54 प्रतिशत, राजमा 0.01 प्रतिशत, खेसारी 0.05 प्रतिशत, दलहन 1.38 प्रतिशत, राय/सरसों 2.60 प्रतिशत तीसी 0.52 प्रतिशत, सूर्यमुखी 0.01 प्रतिशत, तेलहन 3.13 प्रतिशत, जौ 0.31 प्रतिशत और ईख 18.43 प्रतिशत भूमि में आच्छादित किया जाता है। इस प्रकार यहाँ गेहूँ सर्वाधिक भूमि में लगाया जाता है और उत्पादन भी अधिक होता है और राजमा तथा सूर्यमुखी सबसे कम भूमि में उपजाया जाता है। गरमा फसलः- गरमा फसलों की बुवायी जनवरी-फरवरी माह में किया जाता है और इसका कटनी जून माह में किया जाता है। इस मौसम में वर्षा का अभाव होता है। इसके लिए सिंचाई व्यवस्था मुकम्मल किया जाता है। गोपालगंज जिला में निम्नांकित गरमा फसलों का उत्पादन किया जाता है तालिका-3 गोपालगंज जिला में गरमा फसलों का आच्छादन क्षेत्र 2021-22
स्रोत- जिला कृषि कार्यालय, गोपालगंज (2021-22) तालिका-3 में गोपालगंज जिला में गरमा फसलों का आच्छादन क्षेत्र प्रदर्शित किया गया है। यहाँ गरमा फसलों में मुंग 70.21 प्रतिशत, मक्का 29.60 प्रतिशत, तिल 0.16 प्रतिशत और सूर्यमुखी 0.03 प्रतिशत भूभाग में अच्छादन किया जाता है। उत्पादन भी मुंग का ही सर्वाधिक होता है। दूसरे स्थान पर इन्हीं दोनों फसलों का गरमा खेती 99.00% से अधिक क्षेत्र में किया जाता है। यहाँ भदई फसलों की खेती नगण्य होती है। कुछ सब्जियों एवं हरा चारा इत्यादि का उत्पादन ऊँच भूमि में वर्षा ऋतु में भदई फसल के रुप में किया जाता है। इस प्रकार सम्पूर्ण फसल प्रतिरुप को देखने से स्पष्ट होता है कि यहाँ के मुख्य फसल-चावल, गेहूँ, अरहर, चना, ईख, मूँग, दलहन और तेलहन है। कुछ हरी सब्जियों का भी उत्पादन किया जा रहा है। हरित क्रान्ति के प्रभाव से गोपालगंज जिला में चावल, गेहूँ एवं मक्का के आच्छादन क्षेत्र एवं उत्पादन में वृद्धि हुआ है। परन्तु अन्य फसलों पर इसका प्रभाव कम पड़ा है। अन्य फसलें दलहन, तिलहन, ईख इत्यादि का आच्छदान क्षेत्र के साथ उत्पादन में भी वृद्धि हुआ है। परन्तु वर्तमान परिवेश में यहाँ कृषि सम्बन्धी निम्नांकित सुधारात्मक कार्यों की आवश्यकता है। 1. सिंचाई का समुचित व्यवस्थाः-गोपालगंज जिला में वर्षा के अभाव में धान और रबी फसल में गेहूँ के लिए सिंचाई की नितान्त आवश्यकता है। सिंचाई के साधनों का विस्तार एवं विकास की आवश्यकता है। यहाँ की नदियों में बाँध बाँधकर नहरों का निर्माण करने की आवश्यकता है। साथ ही जल संचयन के लिए तालाबों का निर्माण और भूमि के जलस्तर को ठीक रखने के लिए Water Harvesting की जरूरत है। सिंचाई के नवीन तकनीक के रुप में Drip Irrigation को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। साथ ही जल को पुनर्संचरण की व्यवस्था सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। 2. भूमि के स्वास्थ्य की सुरक्षाः- अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान प्रचुर मात्रा में यूरिया का उपयोग अविवेकपूर्ण रुप से करते हैं। फलतः मिट्टी बंजर हो रही है। अतः मिट्टी जाँच करवाकर उपयुक्त रुप में रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करें। साथ हीं जैविक उर्वरक एवं वर्मी कल्चर तथा हरी खाद का पर्याप्त मात्रा में उपयोग करने की आवश्यकता है। इससे भूमि का सेहत भी ठीक होगा। साथ ही उत्पादन में भी वृद्धि होगी। 3. उन्नत बीज का प्रयोगः- अधिक उत्पादन के लिए ऊँच उत्पादन क्षमता वाले बीज का प्रयोग करने की आवश्यकता है। इससे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। 4. पारम्परिक बीजों की सुरक्षाः- उन्नत एवं शंकर बीज के कुछ दुष्प्रभाव भी होते हैं। ये बीज ज्यादा दिनों तक टिकाऊ नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में परम्परागत बीजों को भी संरक्षित रखने की आवश्यकता है। 5. आधुनिक कृषि विधि का प्रयोगः- फसलों के उत्पादन के कुछ विशेष विधि है जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। जैसे श्री विधि द्वारा धान एवं गेहूँ के फसलों का उत्पादन, कतार में फसलों को लगाने की विधि, जापानी विधि से धान का रोपन इत्यादि विधियों से खेती करने पर अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। अतः गोपालगंज जिला के किसानों को नवीन कृषि विधि का उपयोग करने की आवश्यकता है। 6. व्यापारिक फसलें, औषधीय पौधे, फूल एवं फलों की खेती को बढ़ावा देनाः- गोपालगंज जिला में खाद्यान्न फसलों का उत्पादन वृहत् रुप से होता है। धान, गेहूँ, मक्का, चना, अरहर, मुंग इत्यादि का उत्पादन करते हैं। यहाँ के किसानों को तेलहन, व्यापारिक फसल के रुप में ईख, फूलों की खेती के साथ ही फलों के उत्पादन को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है, ताकि अधिक लाभ मिल सके। 7. कृषि बाजार को सुदृढ़ करनाः- उत्पादित अनाज एवं साक, सब्जियों से अधिक लाभ कमाने के लिए सुदृढ़ बाजार की आवश्यकता होती है, जहाँ किसान समय पर उपयुक्त मूल्य पर फसल को बेचकर पर्याप्त लाभ कमा सके। 8. किसानों को क्रेडिट कार्ड एवं बैंक से आसान ब्याज पर कर्ज की आवश्यकता हैः- गोपालगंज जिला के किसानों को खेती के लिए पूँजी के लिए किसान क्रेडिट कार्ड तथा आसान ब्याज दर पर लोन देने का सुविधापूर्ण व्यवस्था की आवश्यकता है। इससे स्थानीय महाजनों और माफियाओं के चंगुल में किसान फँस नहीं पाएँगे। अतः इसकी आवश्यकता है। 9. रियायती दर पर अबाध गति से विद्युत आपूर्तिः- गोपालगंज जिला में कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों के विकास के लिए रियायत दर पर विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था आवश्यक है। इससे फसलों के उत्पादन के साथ किसानों को आधुनिक उपकरणों के उपयोग की सुविधा होगी। सिंचाई तथा कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था विद्युत आपूर्ति से कायम होगा और किसान लाभान्वित होंगे। कृषि आधारित उद्योगों का भी विकास होगा। 10. किसानों के लिए प्रशिक्षण, वर्कशॉप एवं सेमीनार की व्यवस्थाः- किसानों को अधिक कारगर बनाने के लिए प्रशिक्षण, वर्कशॉप एवं सेमिनार की व्यवस्था की आवश्यकता है। इससे किसानों में कृषि के प्रति रुचि होगी। वे अधिक जागरुक होंगे और उत्पादन में भी वृद्धि होगी। 11. खेतों की चकबन्दीः- वर्तमान समय में कास्तकारों के परिवार में विभाजन के फलस्वरुप खेत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गये हैं, जिससे खेती करना कठिन हो गया है। न तो सही ढंग से खेतों की जुताई, पटवन एवं निराई-बोवायी हो पाती हैं और न तो देखभाल। भूमि बंजर एवं परती हो जाती है। अतः गोपालगंज जिला के कृषि विकास के लिए भूमि की चकबन्दी नितांत आवश्यक है। |
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निष्कर्ष |
अतः निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि गोपालगंज की भूमि उर्वरा है। इसे समुचित सिंचाई, आधुनिक कृषि पद्धति, जैविक एवं हरी खाद, किसानों का प्रशिक्षण, मिट्टी की जोत, व्यापारिक कृषि को बढ़ावा, फूल एवं फलों के उत्पादन में वृद्धि, भूमि की चकबन्दी, बैंकों से सुलभ एवं सुगमतापूर्वक लोन, विद्युत की अबाध रुप से आपूर्ति, कृषि आधारित उद्योगों का विकास इत्यादि सुधारात्मक कार्यक्रमों के द्वारा गोपालगंज जिला के कृषि को विकास के रास्ते पर लाया जा सकता है। किसान स्वावलंबी होने के साथ अपने उत्पाद को निर्यात भी कर सकेंगे। आर्थिक लाभ होगा। चतुर्दिक विकास करेंगे। यहाँ के कृषि में क्रान्तिकारी परिवर्तन होगा। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. अहमद इनायत (1965) बिहार: ए फिजिकल, इकोनॉमिक एण्ड रीजनल ज्योग्राफी राँची, युनिविर्सटी प्रेस, राँची, पृ॰-20-30
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