ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- VI September  - 2022
Anthology The Research
पर्यावरण में जन जागृति की आवश्यकता
The Need for Public Awareness in The Environment
Paper Id :  16460   Submission Date :  06/09/2022   Acceptance Date :  21/09/2022   Publication Date :  25/09/2022
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सुधा सिंह
सहायक प्रोफेसर
शिक्षा विभाग
राधारमण मिश्रा पीजी कॉलेज
प्रयागराज,यूपी, भारत
सारांश पर्यावरण के प्रति जनता जागरूक हो सके इसके लिए विश्व में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। जैसे-सन् 1972 में 5 जून को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित हुआ तथा ब्राजील के रियो डि जेनरो शहर में संस्था द्वारा पृथ्वी शिखर सम्मेलन सन् 1992 में 3 जून से 14 जून तक आयोजित हुआ ।उच्च शिक्षा प्राप्त करनेवाला व्यक्ति वास्तविक अर्थों में व्यावसायिकता तथा सामाजिकता की भावना समझनेवाला होता है । इसलिए वह पर्यावरण जागरूकता के क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव ला सकता है।मूल रूप से शिक्षा जीवनपर्यन्त चलनेवाली प्रक्रिया है। यह अर्थ महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक है क्योंकि मानवीय ज्ञान वृद्धि तथा विकास तेजी से हो रहा है क्योंकि ज्ञान 10 वर्ष में दोगुना होता है और जनसंख्या 25 वर्षों में दोगुनी होती है। प्रत्येक क्षेत्र में ज्ञान का आविष्कार और विकास होते रहते हैं। इसलिए देश की प्रगति एवं समृद्धि के लिए आवश्यक है कि देश के नागरिकों को अपने स्वास्थ्य एवं सम्पन्नता की समझ तभी आ सकती है जब अपने प्राणपण से पर्यावरण की रक्षा करे।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Many programs are organized in the world to make the public aware of the environment. For example, in 1972, the Earth Summit was held in Stockholm, the capital of Sweden, on June 5, and in Rio de Janeiro, Brazil, the Earth Summit was organized by the organization from June 3 to June 14, 1992. One who understands the feeling of sociality. Therefore, it can bring a revolutionary change in the field of environmental awareness. Basically, education is a lifelong process. This meaning is important and meaningful because human knowledge growth and development is happening fast because knowledge doubles in 10 years and population doubles in 25 years. Knowledge is invented and developed in every field. That's why it is necessary for the progress and prosperity of the country that the citizens of the country can understand their health and prosperity only when they protect the environment with their lives.
मुख्य शब्द शांति, जन जागरूकता, पर्यावरण उत्पादन, उत्पादन प्रदूषण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Peace, Public Awareness, Environmental Production, Production Pollution.
प्रस्तावना
शिक्षा के विभिन्न पहलुओं के माध्यम से हमें पर्यावरण की मौलिक जानकारी प्राथमिक शिक्षा में शामिल करके विशेष महत्त्व देना चाहिए सिर्फ किताबी ज्ञान ही पर्यावरण के लिए पर्याप्त नहीं है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. विषाक्त धुआँ विसर्जित करनेवाले वाहनों पर रोक लगाकर जनता को जागरूक करना। 2. पर्यावरण सुरक्षा के विषय में जनता को मीटिंग करके बतलाना। 3. वन विनाश की समस्या से निपटना, भू-क्षरण, मरुस्थलीकरण तथा सूखे के बचावों के प्रस्तावों को जनता के समक्ष रखना। 4. जैव विविधता को संरक्षण प्रदान करके जनता को जागरूक करना। 5. जलीय संसाधनों की सुरक्षा के उपाय करके जनता को जागरूक करना। 6. समुद्र तथा तटीय क्षेत्रों की रक्षा करना । 7. अपमार्जक पदार्थों के प्रयोग का सुझाव देना 8. पौधे लगाने तथा पेड़ों को सुरक्षित करने के विषय में विस्तार से बताना। 9. वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण से बचाव के उपाय बताना।
साहित्यावलोकन

देश-विदेश में-ऐसे विचारक हैं, जिन्होंने वेद और वेदान्त में पर्यावरणीय महत्व, उद्देश्य तथा जागरूकता को विस्तार देने के लिए अथक प्रयास किये। उन्हीं का प्रयास बूदों या बौछारों के माध्यम से जन जागरूकता अभियान में सहायता प्रदान कर रहा है। राजीव सिन्हा ने अपनी पुस्तक (Human Ecology) में लिखा है। ‘‘प्राकृतिक संसाधन वह ईश्वर द्वारा प्रदत्त वस्तुएँ है, जिनमें कोई न कोई लाभ होता है। यह पृथ्वी जीवमण्डल और वायुमण्डल से प्राप्त होती है तथा मानव क्रिया में स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रहती है।’’

वर्तमान समय में विभिन्न विचारों की एकरूपता है। 

‘‘ई. डब्ल्यू जिमरमेन’’ ने पर्यावरणीय के लक्षण को मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, उनका कहना है कि मानवकी क्षमताओं तथा इच्छाओं के अनुरूप जिन्हें उपयोगिता प्रदान की जाती है। 

पर्यावरणविद मैकनाल का यह कहना है कि पर्यावरणीय संसाधन उन संसाधनों को कहते हैं, जा प्रकृति द्वारा प्रदान किये जाते हैं और मनुष्य के लिए उपयोगी होते हैं।

मुख्य पाठ

शिक्षा के द्वारा पर्यावरणीय जागरूकता(Environmental awareness through Education)

शिक्षा के विभिन्न पहलुओं के माध्यम से हमें पर्यावरण की मौलिक जानकारी प्राथमिक शिक्षा में शामिल करके विशेष महत्व देना चाहिए सिर्फ किताबी ज्ञान ही पर्यावरण के लिए पर्याप्त नहीं है।प्राथमिक स्तर से पर्यावरण के पाठ्य वस्तु को शामिल करके औपचारिक शिक्षा का विकास किया जा रहा है। अध्यापक-शिक्षा के कार्यक्रम में पर्यावरण- शिक्षा की पाठ्य-वस्तु को सम्मिलित किया जा रहा है जिससे सेवारत तथा पूर्व स्तर के अभ्यर्थियों के शिक्षकों में सचेतना बोग, कौशल तथा मूल्यों का विकास किया जा सके।पर्यावरण जागरूकता के विषय में बच्चों को रुचिकर वातावरण मिलना चाहिए, जैसे- बच्चे अपने जन्मदिन पर तथा कक्षोन्नति होने पर पौधे जरूर लगायें तथा अध्यापक इस बात की देखभाल करें।

माध्यमिक स्तर से पर्यावरण की जागरूकता- भारत में पर्यावरण जन-जागृति पर एक बड़े पैमाने पर विभिन्न कार्यक्रम, आन्दोलन, पुरस्कार दिवस, फेलोशिप कल्याण बोर्ड आदि के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास जारी है। पर्यावरण की जागरूकता को आज विश्व में महत्त्व दिया जा रहा है। इसलिए मानव प्रकृति का संरक्षण करने में निरन्तर प्रयासरत है ताकि प्रकृति को हम अपने अनुकुल बना सकें जिसके लिए राष्ट्रीय आन्दोलन की आवश्यकता है, लेकिन शिक्षा के माध्यम से जन-जागरूकता तभी सम्भव है जब प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर की शिक्षा बच्चे ग्रहण करें, जो कार्य प्रौढ़ शिक्षा को सौंपा जा चुका है वह निम्न है जैसे-

1. माध्यमिक स्कूल दूर पर्यावरणीय योजनाएँ

2. दिल्ली कृषि दर्शन परियोजना कृषि दर्शन 

3. पोस्ट साइट परियोजना

4. इण्डियन नेशनल सेटेलाइट (इनसेट)

5. पर्यावरण जागरूकता तथा सतत शिक्षा

6. पर्यावरण जागरूकता तथा सामाजिक वानिकी

मुख्य उद्देश्य- शिक्षा के उच्चस्तर पर भी कार्यक्रम चलाये जा रहे है जिसका नाम है-'हापर एजूकेशन द्वादर्शन परियोजना' (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) तथा पर्यावरण की जागरूकता को और विभिन्न तरीकों एवं आयामों से समझ सकते हैं, जैसे- सामाजिक स्तर, राष्ट्रीय स्तर, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर

1. सामाजिक स्तर- सामाजिक स्तर पर सभी योजनाओं को सामाजिक वानिकी में बदल दिया गया है इसलिए अधिक प्रचलित हुआ है। जन समाज का सामाजिक वानिकी से आध्यात्मिक एवं भावनात्मक लगाव है इसके उपयोग से जानवरों को चारा प्राप्त होता है। लकड़ी ईंधन के लिए तथा ऑक्सीजन जीवन के लिए प्राप्त होती है। पर्यावरण की गुणवत्ता भी बनी रहती है। सामाजिक वानिकी कोई नया विषय नहीं है। इसका प्रयोग वैदिक काल से लगभग 2500 ई. पू. से चला आ रहा है। पर्यावरण प्रदूषण में इसका महत्त्व अधिक बढ़ गया है।

2. राष्ट्रीय स्तर- केन्द्र की सरकार ने सभी आयु वर्ग के नागरिकों के लिए पर्यावरण की शिक्षा का महत्व बताया तथा सन् 1986 में पर्यावरण शिक्षा केन्द्र अहमदाबाद ने सम्पूर्ण देश में पर्यावरणीय जागरूकता अभियान चलाया। सिर्फ एक वर्ष में राज्यों में तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में 45 केन्द्रों पर 6000 शिक्षकों की नियुक्तियाँ की गयीं। इसके बाद जिला, उपजिला, तहसील तथा उससे भी नीचे के शिक्षकों को पर्यावरणीय शिक्षा का प्रशिक्षण दिया गया। देश में जागरूकता फैलाने के लिए यह अपने-आपमें क्रान्तिकारी परिवर्तन था। पर्यावरण मन्त्रालय ने जुलाई, 1986 में राष्ट्रीय चेतना कार्यक्रम को प्रस्तुत किया जिसका मुख्य उद्देश्य जन-जागृति था। इसी उद्देश्य के माध्यम से प्रत्येक वर्ष केन्द्रीय पर्यावरण विभाग ने राष्ट्रीय पर्यावरण के अन्तर्गत एक बहुत ही ठोस एवं देशव्यापी कार्यक्रम बनाया, जिसमें 19 नवम्बर से 18 दिसम्बर के एक माह की अवधि को पर्यावरण माह का नाम दिया। इसी अभियान में छात्रों, युवाओं, अध्यापकों, महिलाओं, जनजातियों, प्रशासकों, व्यवसायियों, विद्यालयों तथा औद्योगिक श्रमिकों, सशस्त्र एवं जनसामान्य सभी शामिल होते हैं, जिसमें पर्यावरण के विषय में विभिन्न जानकारियाँ दी जाती हैं तथा और अधिक प्रचार एवं प्रसार के लिए दूरदर्शन, आकाशवाणी अपने-अपने तरीके से कार्यक्रम को प्रसारित करते हैं तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर से सेमिनार, प्रतियोगिताएँ, प्रदर्शनी, संगोष्ठी, वाद-विवाद, स्थल आदि आयोजित किये जा रहे हैं। अत्यधिक जागरूकता के लिए राष्ट्रीय स्तर से पुरस्कार भी दिये जाते हैं। जैसे- महावृक्ष पुरस्कार, वृक्षमित्र पुरस्कार

3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर- समय-समय पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर से विभिन्न संस्थाएँ क्रियान्वित की गयीं, जैसे-- संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि के सहयोग से विश्वव्यापी जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।मानव पर्यावरणपर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कॉन्फ्रेन्स में 26 सूत्रीय कार्यक्रम का अनुमोदन हुआ जिसमें पर्यावरण के विषय में निम्नलिखित प्रारूप तैयार किये गये तथा 5 जून को सम्पूर्ण विश्व में विश्व पर्यावरण दिवसमनाया गया जिसका मुख्य उद्देश्य प्रत्यक्ष एवं परोक्ष तरीके से लोगों को जागरूक करना था। फलस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण को शामिल किया गया। भारत के विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने के उद्देश्यों में एक नयी क्रान्ति आयीइसके अतिरिक्त भी सम्पूर्ण देश में 10 सूचना केन्द्र स्थापित किये गये। सूचना केन्द्र की स्थापना 5 दिसम्बर, 1982 में की गयी। विश्व सूचना कार्यक्रमद्वारा राष्ट्रीय सूचना केन्द्र को मान्यता दी गयी। ये केन्द्र निम्नलिखित जानकारियाँ एवं सूचनाएँ एकत्रित करते हैं, जैसे- पारितन्त्र, पर्यावरण तकनीकी, विष विज्ञान, जहरीले रसायन, तटीय एवं अतटीय पारिस्थितिकी, प्रदूषण नियन्त्रण, पर्यावरण शिक्षा एवं व्यवस्था, जैविकी एवं अजैविकी इसके अतिरिक्त जागरूकता को व्यापक रूप में प्रसार के लिए निम्न  आन्दोलनों को प्रसारित किया गया।

निष्कर्ष प्राकृतिक संसाधन के प्राकृतिक दैवीय गुणों से ही प्रस्फुटित हो सकते हैंए भौतिक वस्तुओं या रासायनिक उपकरणो से कदापि नहीं केवल प्राकृतिक दैवीय गुण ही मानव की रक्षा कर सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. Brock, T.D. (1967): The Ecosystem and Study of State; Bioscience Vol. 1,pp. 166-9. 2. Dassaman, R.D.; (1976): Environmental Conservation; Wiley, New York. 3. Embleton, C. (1988): Natural Hazards and Global Change, ITC Journal (1989) 3/4 pp. 169-178. 4. Goudie, A. (1984): The Nature of the Environment; Basil Blackwell Publisher Ltd., 331 pp.