ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VI , ISSUE- XI February  - 2022
Anthology The Research
प्रवासन और चुनावी व्यवहार
Migration and Electoral Behaviours
Paper Id :  15811   Submission Date :  12/02/2022   Acceptance Date :  18/02/2022   Publication Date :  24/02/2022
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गीता
शोध छात्रा
राजनीति शास्त्र विभाग
इग्नू यूनिवर्सिटी,
नयी दिल्ली, भारत ,
सारांश भारत में राष्ट्रीय सीमाओं के अंदर लोगों का कई कारणों से पलायन होता है। अंतर्राजीय व अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता का संबंध क्षेत्रीय विषमता से गहरा है। सामाजिक व आर्थिक विकास के कारण क्षेत्रीय विषमता उभरती हैं, जिसके कारण लोग उभरते हुए अवसरों का लाभ उठाने के लिए पलायन करते हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद People migrate within the national borders in India for many reasons. Inter-state and international mobility are closely related to regional disparity. Regional disparities emerge due to social and economic development, due to which people migrate to take advantage of emerging opportunities.
मुख्य शब्द राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, सामाजिक व आर्थिक, लोकसभा
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद National, International, Social and Economic, Lok Sabha
प्रस्तावना
De Haan (1999,p.3)व Chirag (1997,p.663) के अनुसार- “poverty and absence of opportunities are the major reasons for the out-migration.“ उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण के कारण प्रत्येक क्षेत्र में अवसरों में वृद्धि हुई हैं जिसके कारण लोगों का पलायन बढ़ा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान व मध्य प्रदेश जैसे अविकसित राज्यों से लोगों का पलायन बढ़ा है। 2011की जनगणना के अनुसार 50 मिलियन लोगो ने आर्थिक कारणों से व 3.7 मिलियन लोग अपने मूल क्षेत्र से उच्च शिक्षा हेतु पलायन किया (Tumbe 2018)आर्थिक कारणों से पलायन करने वाले लोगों में मुख्यतःअसंरचनात्मक क्षेत्र में काम करने वाले जैसे-रिक्शा चालक, हाथ से काम करने वाली श्रमिक, मजदूर व घरेलू सहायिका होते है। कृषि क्षेत्र में मौसमी बेरोजगारी के कारण ये लोग lean months में मौसमी श्रमिक होते हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र व कर्नाटक मुख्य गंतव्य स्थल होते हैं प्रवासी श्रमिक व छात्र आंतरिक प्रवास का मुख्य भाग होते हैं पलायन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगाता है साथ ही प्रवासियों की राजनीतिक भागीदारी पर भी। Does the movement of large chunk of internal migrants undermine the electoral system and Indian democracy at large? How does the Election Commission of India ensure the participation of these internal migrants in the election?
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य प्रवासन और चुनावी व्यवहार का अध्ययन करना है ।
साहित्यावलोकन
2019 के लोकसभा चुनावों में लगभग 35%प्रवासियों ने मतदान नहीं किया। चुनाव के समय ये प्रवासी पलायन कर जाते है या फिर अपने संसदीय क्षेत्र से अनुपस्थित रहते है। इस आर्टिकल का उद्देश्य देश में चुनाव में 100% मतदान के लिए सुझाव देना नहीं, बल्कि इस तथ्य की ओर संकेत करना है कि किस प्रकार Spatial distance लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनावी भागीदारी को प्रभावित करती हैं।
मुख्य पाठ

लोकतंत्र व भारतीय चुनावी ढाचाँ

लोकतांत्रिक व्यवस्था किसी समाज या देश को शासित करने के लिए एक सार्वभौमिक स्वीकृत ढांचा है। सरल शब्दों में लोकतंत्र ‘Rule by people' हैं। लोगों की सहमति ही किसी देश के शासन या लोकतांत्रिक व्यवस्था को वैधता प्रदान करती हैं। प्रश्न यह है कि यह सहमति किसकी जा सकती हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रश्न का उत्तर है निर्णय लेने में लोगों की भागीदारी। लोगों की भागीदारी के आधार पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को दो भागों में बांटा जा सकता है (1) प्रत्यक्ष लोकतंत्र (2) अप्रत्यक्ष लोकतंत्र। प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था एथेंस माडल पर आधारित है। जिसमें समस्त जनसंख्या निर्णय प्रक्रिया में भागीदार होती थी। चुनाव वह प्रक्रिया हैं जिसमें निश्चित अंतराल पर जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करतीं हैं। 18 वर्ष की आयु के सभी नागरिक मतदान प्रक्रिया में भाग लेते है। अतः लोकतांत्रिक व्यवस्था के समुचित संचालन के लिए सभी नागरिकों की सहमति जरूरी है। स्वतंत्रता पश्चात भारत में सभी नागरिकों को (स्त्री व पुरुष दोनों को)मताधिकार प्रदान किया गया है। यह ‘one person, one vote' पर आधारित हैं। मताधिकार एक कानूनी अधिकार हैं जिसे प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी जाति, रंग, लिंग या धर्म का हो इसलिए भारत में 26 जनवरी 1950 को भारत चुनाव आयोग की स्थापना की गई। 18 वर्ष के प्रत्येक नागरिक जो जिस क्षेत्र का निवासी हैं उसी विधानसभा क्षेत्र में मतदान करने का अधिकार होता है। ECI ने मतदाता के तीन प्रकार बताए है-

(1) सामान्य मतदाता (2) Overseas Electors (NRIs) (3) Service electors.

सामान्य मतदाता वे मतदाता है जो किसी निश्चित विधानसभा क्षेत्र में सामान्य मतदाता की तरह वोट डालते हैं। NRIs वे भारतीय है जो विदेश में रहते हैं परन्तु दूसरे देश की नागरिकता नहीं ली है। Service electors वे भारतीय है जो कि भारत सरकार के लिए विदेश में काम करते हैं (ECI, 2018)।आंतरिक प्रवासी, सामान्य मतदाता की श्रेणी में आते हैं जो कि चुनाव के समय अपने विधानसभा क्षेत्र में वोट डालते हैं। 40% जनसंख्या प्रवासियों की है जो कि मुख्य रूप से गरीब है। राजनीति वैज्ञानिकों के अनुसार प्रवासियों ने दिल्ली की कई विधानसभा चुनाव में वोटिंग पैटर्न को प्रभावित किया है। दिल्ली की द्वि- ध्रुवीय राजनीति सामाजिक- राजनीतिक आंदोलनों द्वारा प्रभावित रहीं है। दिल्ली,आपातकाल दौर(1975),मंडल आयोग विरोधी आंदोलन (1990) व वर्तमान में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (2012) का केन्द्र रहीं है। कांग्रेस का वोट शेयर 4.3% पर आ गया है जब कि भारतीय जनता पार्टी का वोट शेयर पिछले असेम्बली इलेक्शन 30% से अधिक रहा है। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 52%वोट प्राप्त हुए। इसे 48 में से 39 सीटें मिली जबकि जनसंघ को 32%वोट प्राप्त हुए। 1993 में विधानसभा के पुनर्गठन के बाद बीजेपी को 47%वोट प्राप्त हुए। इसे 70 में से 49 सीटें मिली। पहले दिल्ली की राजनीति द्वि-ध्रुवीय थी परन्तु पिछले तीन चुनावों में आम आदमी पार्टी एक तीसरा ध्रुव उभरकर आई है व इसने कांग्रेस का तो पत्ता हो काट दिया है। 2015 2020 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 90%से अधिक सीटें प्राप्त की पहले राजनीतिक दल प्रवासियों को वोट बैंक के रूप में गंभीरता से नहीं लेते थे क्योंकि उनकी संख्या कम थी। राजनीति वैज्ञानिक संजय कुमार के अनुसार पिछले कुछ दशकों से दृश्य बदल गया है। दिल्ली में 40%संख्या प्रवासियों की है। दिल्ली में बिहार व उत्तर प्रदेश के प्रवासियों को पूर्वांचली कहा जाता है। ये दिल्ली की 2 करोड़ जनसंख्या का एक -चौथाई हिस्सा है। दिल्ली में प्रवासियों को “crowd to the kingmakers “कहा जाता है। 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि दिल्ली बिहारियो के बिना नहीं चल सकती। वे दिल्ली की 70 में से 30 विधानसभा सीटों में निर्णायक भूमिका निभाते है। पूर्वांचली का मुख्य त्योहार छठ पूजा की तैयारियों के लिए दिल्ली सरकार ने 2017-18 के बजट में 20करोड़ की राशि का प्रावधान किया। अधिकतर प्रवासी कच्ची कालोनियों में रहते हैं। केंद्रीय सरकार ने इन कच्ची कालोनियों को मान्यता प्रदान करने का निर्णय लिया है। आम आदमी पार्टी ने जन स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों के आधार पर वोट की अपील की। जबकि कांग्रेस पार्टी ने शीला दीक्षित सरकार द्वारा किए गए कार्यों जैसे कि सीवर व वाटर पाइप लाइन व सड़क निर्माण कार्य के आधार पर वोट की अपील की। बीजेपी जो कि अब तक पंजाबी बनियों की पार्टी थी उसने भी अब इस पार्टी ने भी 2015 में हार के बाद प्रवासियों की ओर ध्यान दिया है। उत्तरी-पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी जो कि एक पूर्वांचल अभिनेता है को टिकट दिया। 2015 में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद प्रवासियों की ओर ध्यान दिया गया है।2011 की जनगणना के अनुसार भारत में प्रवासियों की संख्या 450 मिलियन है। इन प्रवासी महिलाओं के पलायन का मुख्य कारण आर्थिक व शैक्षिक है। अधिकतर प्रवासी महिलाएं अपने मताधिकार का प्रयोग अपने मूल स्थान पर ही करती हैं क्योंकि वे स्थाई रूप से पलायन नहीं करती। इन प्रवासी महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र में जाकर मतदान करे। इस आर्टिकल में बताया गया है कि स्थानिक दूरी के कारण प्रवासी महिलाएं चुनाव-प्रणाली में भागीदारी से दूर हो जाती है।

विधि

यह अध्ययन दिल्ली के बवाना ओघोगिक क्षेत्र की 100 प्रवासी महिलाओं पर गुणात्मक अध्ययन किया गया है। जिसमें प्रवासी महिलाओं का साक्षात्कार व क्षेत्र में अवलोकन विधि पर आधारित हैं। इस विधि द्वारा प्रवासी महिलाओं द्वारा चुनाव प्रक्रिया संबंधित समस्याओं, चुनाव से संबंधित उनकी समझ, चुनाव में भागीदारी, किस प्रकार वे चुनाव में भागीदारी सुनिश्चित करना चाहती हैं।

क्या प्रवासी महिलाएं मतदान करती है?

अध्ययन में पहला प्रश्न है कि क्या प्रवासी महिलाओं को मतदाता के रूप में गिना जाता है?भारत में प्रत्येक व्यक्ति को एक वोटर आई डी कार्ड दिया जाता है जिससे उसे मतदान का अधिकार प्राप्त होता है। वोटर आई डी कार्ड या फिर वोटर लिस्ट में नाम न होने पर व्यक्ति को वोट का अधिकार नहीं दिया जाता ।70% प्रवासी महिलाओं के पास वोटर आई डी कार्ड है व वोटर लिस्ट में नाम भी होता है। 58% महिलाओं ने कम से कम एक बार चुनावों में मतदान नहीं किया है क्योंकि वे अपने मूल स्थान से दूर होती हैं। 18% महिलाओं ने कभी वोट हीं किया। अधिकतर प्रवासी महिलाएं 15 16 की उम्र में पलायन कर जाती हैं। 18वर्ष की आयु में जब उन्हें वोटर आई डी कार्ड दिया जाता है, वे मूल निवास स्थान से दूर होती हैं। नए निवास स्थान पर उन्हें वोटर आई डी कार्ड बनवाने में मुश्किलो का सामना करना पड़ता है।

Realities of Voting among Migrant Workers

वर्तमान में चुनावों में मतदान करने के बाद राजनीतिज्ञों, क्रिकेट-खिलाडियों, उद्दोगपतियो व फिल्मी हस्तियों को स्याही लगी उंगली के साथ फोटो खिंचवाते देखा जाता है। सुशीला जो कि श्रमिक हैं, प्रतिदिन की तरह अपना कार्य शुरू करती है। वह बवाना ओघोगिक क्षेत्र की फैक्ट्री में श्रमिक का काम करती हैं। वह सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से है। उसने कहा-चुनावों को हमारे गावों में त्योहार की तरह मनाया जाता है। लोग समूह में बैठते हैं व चर्चा करते हैं। नेताओं के चुनावी दौरे के दौरान गाँव की किन समस्याओं के बारे में नेताओं को अवगत कराना है। राशन जो कि देर से वितरित किया जाता था, चुनाव के दौरान  समय पर व अधिक मात्रा में वितरित किया जाता है। सरपंच के द्वारा पूरे गांव को पूजा-अर्चना के बहाने या परिवार के सदस्य के जन्मदिन उत्सव  के बहाने भोज के लिए आमंत्रित किया जाता है। शराब भी  वितरित की जाती हैं। लोग फिर से विचारधारा व प्रलोभन के आधार पर बंट जाते हैं।

मताधिकार के प्रश्न पर उसने कहा

दिल्ली में होने के कारण मैं इस बार वोट नहीं डाल पाऊँगी। केवल मतदान के लिए मैं गाँव नहीं जाने वाली। मैं ₹ 200-300 प्रतिदिन कमाती हूँ। अगर मैं वोट डालती हूँ तो मुझे अपने काम से छुट्टी लेनी होगी। इसके अतिरिक्त हमें यात्रा पर खर्च करना होगा। परिवार के सदस्यों के लिए उपहार भी ले जाने होंगे। इस पर बहुत खर्चा आएगा।

नदीम, जो कि एक रिक्शा चलाने वाला है, वह सहरसा जिला,बिहार का रहने वाला है। वह बवाना औद्दोगिक क्षेत्र में रिक्शा चालक हैं। मतदान के दिन वह सामान्य दिनों की अपेक्षा चार व पांच चक्कर अधिक लगाता है। वोटिंग डे को वह ‘Additional Sunday ‘ समझता है। वह चुनावी प्रक्रिया से अच्छी तरह से वाकिफ हैं।

मैं केजरीवाल पार्टी (आम आदमी पार्टी) भारतीय जनता पार्टी महागठबंधन (समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी का गठबंधन)व प्रत्येक पार्टी से अवगत हूँ। मुझे पता है मुझे किसको वोट देना है। परन्तु मुझे अपना पेट भी भरना है। वोट डालने से मेरे पेट का पालन पोषण नहीं हो सकेगा। गाँव तक पहुँचने में मुझे  दो दिन का समय लग जाता है। अगर हम गए तो जल्द ही वापसी नहीं हो सकेगी। कुछ ऐसे समूह भी हैं जो गाँव में वोट डालने के लिए जाते हैं। आने-जाने का यात्रा  का किराया समूह के मुखिया  द्वारा  भुगतान किया जाता है।

विश्लेषण

भारत की तीन स्तरीय लोकतांत्रिक ढांचा व प्रवासी महिलाओं की राजनीतिक स्थिति

प्रवासी महिलाओं से पूछे गए प्रश्न क्या उन्होंने पिछले चुनाव में मतदान किया था?“ 66% महिलाओं ने बताया कि उन्होंने पंचायत चुनाव में मतदान किया था। लोकसभा चुनाव में यह आकड़े 48% था। पंचायत चुनाव से विधानसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव से लोकसभा चुनाव में मतदान की दर घटती जाती हैं। छोटी दूरी होने पर यह अंतर बढता जाता है।पंचायत चुनाव में यह दर 66% व लोकसभा चुनाव में यह दर 32% हो जाती हैं। अध्ययन में पूछा गया कि क्या उन्होंने कभी मूल स्थान पर चुनाव में मतदान हेतु विशेष यात्रा की है?” 52% महिलाओं ने native village में मतदान हेतु विशेष यात्रा की है। 66%महिलाओं ने पंचायत चुनाव में मतदान में मतदान हेतु विशेष यात्रा की है। पंचायत चुनाव में मतदान करने का मुख्य कारण सामाजिक दबाव है। चुनाव में पारिवारिक सदस्य या एक ही समुदाय का प्रत्याशी होने के कारण महिलाएं यात्रा करती हैं। पंचायत चुनाव में जीत का अंतर बहुत ही कम होता है इसलिए एक- एक वोट का महत्व होता है। अधिकतर प्रवासी महिलाओं ने बताया कि उनकी यात्रा का खर्च भी प्रत्याशी द्वारा ही उठाया जाता है। मूल स्थान पर राजनीतिक भागीदारी प्रश्न यह है कि प्रवासी महिलाएं अपने मूल स्थान पर राजनीतिक भागीदारी कैसे सुनिश्चित करती हैं। प्रवासी महिलाओं से जब पूछा गया कि क्या मतदान अधिकार न मिलने पर वे चिंतित होती हैं तो उन्होंने कहा कि चिंता का विषय तो है जिंदा आदमी को मार डालते हैं। मूल स्थान पर चुनाव में मतदान करने का मुख्य कारण राज्य सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाना है। राज्य सरकार व प्रवासियों के बीच “give and take relationship “का होता है। अगर वे अपने मूल स्थान पर वापिस नहीं आते हैं तो वे राज्य सरकार की ओर से प्रदत्त सुविधाओं से वंचित हो जाऐंगे। वोटर आई डी कार्ड व मनरेगा से संबंधित कोई भी समस्या होने पर प्रवासी महिलाएं सरपंच के पास समस्या समाधान हेतु जाती हैं न कि किसी सरकारी अधिकारी के पास।

Asserting political agency in the absence of voting rights “Because migrants are only entitled to vote in their home location, and not the location of migration, their political agency is limited and their concerns are rarely raised effectively at their destination” .Bird and Deshinkar (2009,p.5)

पलायन स्थान पर प्रवासी महिलाओं के पास राजनीतिक अधिकार न के बराबर होते हैं साथ ही राजनीतिक एजेंसी भी सीमित होती हैं। प्रवासी महिलाएं राजनीतिक भागीदारी पर जोर “political demand making “ के द्वारा करती हैं। Cornelius ने मैक्सिको शहर में किए गए अपने अध्ययन में “electoral participation and political demand making “में अंतर स्पष्ट किया। “electoral participation is a system through which citizens aim to influence resource allocation by replacing or retaining the incumbent authorities“. Political demand making which is defined as individual or collective activities aimed at extracting benefits from the political system by influencing the decisions of incumbent authorities ibid( p.1225)सभी आवश्यकताएं राजनीतिक मांग में रूपांतरित नहीं हो पाती ।मांग में रूपांतरित होने से पूर्व कई सारी शर्तो को पूरा करना होता है।

राजनीतिक मांग की उत्पत्ति के चरण

  1. आवश्यकताओं को परिभाषित करना।
  2. स्थिति  को सुधारने हेतु कार्यवाही।
  3. सरकारी कार्यवाही द्वारा जनता की आवश्यकताओं की संतुष्टि।
  4. सरकार के कार्यों को प्रभावित करने का एक चैनल।
  5. राजनीतिक मांगों की उत्पत्ति।

प्रवासी महिलाओं से उनकी मुख्य समस्याओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें मुख्य रूप से तीन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पुलिस द्वारा उत्पीड़न,निगम अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न व रोजगार की अनियमितता। कुछ महिलाओं ने आवास व पानी की भी समस्या बताया। बैंक खाते व आधार कार्ड न होने के कारण जनवितरण सुविधाओं तक पहुंच भी मुख्य समस्या है।

निष्कर्ष 2019 के आम चुनावों में लगभग 72000 NRIs वोट डालने के लिए पंजीकृत हुए थे (As reported by Akash Gulankar in news18.com on 19 March 2019) भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग द्वारा यह एक सराहनीय कदम था। परन्तु कई आंतरिक प्रवासी सामाजिक-आर्थिक व संस्थागत कमियों के कारण अपना मतदान नहीं डाल पाते। हालांकि भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को घूमने का (संचरण का अधिकार) प्रदान करता हैं। परन्तु दिल्ली में कार्यस्थल पर उनकी प्रतिबद्धता के कारण व कुछ प्रवासी मतदाता पहचान पत्र न होने के कारण मतदान नहीं कर पाते। अधिकांश प्रवासी न्यूनतम प्रतिदिन मजदूरी के आधार पर असंरचनात्मक क्षेत्र में मजदूरी करते हैं। वे मतदान करना चाहती है परन्तु उनकी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां बाधक बन जाती हैं। आर्थिक कारण व एक दिन की मजदूरी का नुकसान न हो इसलिए वे अपना मतदान नहीं कर पाती। आंतरिक प्रवासियों के अपने होमटाउन से अनुपस्थिति व पंजीकृत मतदान केन्द्र से अनुपस्थिति participatory democracy पर प्रश्न चिह्न लगाती है। लोकतंत्र केवल चुनाव का संचालन नहीं परन्तु नागरिकों की सहभागिता भी है लोकतंत्र के आदर्शो के पालन के लिए संस्थागत ढांचे को भी मजबूत करना होगा। चुनाव में सभी की भागीदारी के लिए जरूरी है कि प्रत्येक नागरिक आंतरिक प्रवासी भी मतदान में भाग ले।भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को ओर अधिक प्रतिभागी बनाने हेतु भारत सरकार को आंतरिक प्रवासियों के मतदान अधिकार हेतु नीतियाँ बनानी होगी।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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