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संगीत कला का स्वर्णिम गुप्त काल: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन | |||||||
The Golden Gupta Age of Music: An Analytical Study | |||||||
Paper Id :
16564 Submission Date :
2022-10-17 Acceptance Date :
2022-10-22 Publication Date :
2022-10-25
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सारांश |
किसी भी वस्तु के इतिहास का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है, चाहे वह किसी सभ्यता या संस्कृति का हो, या किसी देश की कलाओं के क्रमिक विकास का हो इसके लिये यह आवश्यक है कि हम उसके सम्पूर्ण इतिहास का ज्ञान प्राप्त करें, क्योंकि इतिहास से हीें वर्तमान की दिशा प्राप्त होती है और भविष्य की नीतियाँ भी इतिहास के द्वारा ही संशोधित की जाती हैं। संगीत कला के क्षेत्र का इतिहास भी अत्यन्त व्यापक और प्राचीन है। यदि यह कहा जाय कि ‘अति प्राचीन काल’ से ही संगीत का अस्तित्व विद्यमान है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि सृष्टि की रचना के साथ-साथ संगीत की उत्पत्ति हो चुकी थी। जिस प्रकार से किसी भी क्षेत्र के इतिहास की उन्नति और अवनति साथ-साथ चलती है, उसी प्रकार संगीत के क्षेत्र में भी यह स्थिति रही। प्राचीन काल में ही ‘गुप्तकाल’ युग का आगमन हुआ जो संगीत के ‘स्वर्णयुग‘ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अतः यह लेख प्राचीन संगीत के स्वर्णयुग यानी गुप्तकाल के शासकों का संगीत के प्रति प्रेम तथा सम्पूर्ण राज्य के सांगीतिक वातावरण को दर्शाने का प्रयास है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | It is very important to have knowledge of the history of anything whether it is of any civilization or culture, or the gradual development of the arts of a country. For this purpose, it is necessary that we should get the knowledge of its entire history, because history gives the direction of the present and the policies of the future. The history of the field of musical art is also very extensive and ancient. It will not be an exaggeration if it is said that the existence of music has existed since 'very ancient times' because along with the creation of the universe, music was born. Just as the progress and decline of the history of any field go hand in hand, similarly it was the situation in the field of music too. The 'Gupta period' era arrived in ancient times, became famous as 'Golden Age' of music. Therefore, this article is an attempt to show the golden age of ancient music i.e. the love for music of the rulers of the Gupta period and the musical environment of the entire state. | ||||||
मुख्य शब्द | संगीत कला, स्वर्णयुग, गुप्तकाल। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Musical art, Golden age, Gupta age | ||||||
प्रस्तावना |
संगीत एक साधना है, एक तपस्या है जो तपस्वी सा तप करने को विवश कर देती है। संगीत के इतिहास में अनेकों महान ‘संगीतज्ञ’ उत्पन्न हुए। प्रत्येक युग अपने आप में महत्वपूर्ण है। इतिहास शब्द इति़ह़आस से बना है। ‘इति’ शब्द का अर्थ है ‘ऐसा’ए ‘ह’ का अर्थ है ‘निश्चय- पूर्वक’, ‘आस’ का अर्थ है ‘था’ अर्थात ‘इतिहास‘ का अर्थ हुआ ‘निश्चयपूर्वक ऐसा था’ (भारतीय संगीत का इतिहास स्व० डा० ठाकुर जयदेव सिंह- पृष्ठ-5) । जीवन का प्रथम स्पर्श ही संगीत के साथ होता है । सृष्टि के प्रारम्भ में मानव पशु के समान अपना जीवन व्यतीत करता था । धीरे-धीरे जब भाषा का ज्ञान हुआ, तब संगीत का विकास प्रारम्भ हुआ। जैसे-जैसे मानव में ज्ञान का प्रकाश फैलता जा रहा था वैसे ही वैसे संगीत का कलात्मक विकास होता जा रहा था। सिन्धु घाटी की सभ्यता से लेकर आर्यों का जब भारत आगमन हुआ, उस काल में संगीत धर्म के बन्धनों से युक्त था। तदुपरान्त वैदिक काल के संगीत का आगमन हुआ। पौराणिक युग में संगीत की पावनता‘ वैदिक काल के समान नहीं थी। रामायण काल तथा महाभारत काल में पुनः संगीत की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया । बौद्ध युग का संगीत अवश्य ही आध्यात्म से युक्त था। इस युग में संगीत के अनेक सुन्दर ग्रन्थों की रचना हुई। मौर्यकाल में बौद्ध एवम् जैन धर्मों ने बड़ी उन्नति की। मौर्य वंश का राजा चन्द्रगुप्त महान संगीत प्रिय था। चन्द्रगुप्त के उपरान्त उनके पुत्र बिन्दुसार ने शासन का कार्य भार संभाला तद्उपरान्त सम्राट अशोक का काल, कनिष्क काल का आगमन हुआ। कनिष्क काल में अश्वघोष ने ‘बुद्धचरित‘ और सौन्दरानन्द‘ इन दो काव्यों की रचना की। तदुपरान्त नाग युग का जन्म हुआ। इस युग की सबसे बड़ी यह उपलब्धि थी कि, इस युग में ‘नाट्यशास्त्र‘ जैसे महान ग्रन्थ की रचना हुई। भरत द्वारा लिखित यह ग्रन्थ प्राचीन कला का एक सुन्दर उदाहरण है। यह गुप्त वंश के संगीत इतिहास से पूर्व के संगीत इतिहास की संक्षिप्त रुप रेखा थी। गुप्त वंश का भारतीय संगीत के प्रति बहुत बड़ा योगदान था। गुप्त वंश संगीत के स्वर्णिम काल के रुप में जाना जाता है। इस आलेख का उद्देश्य यह है कि संगीत के प्राचीन इतिहास की विशेषताओं के अलावा किस शासक के शासन काल में संगीत की उन्नति हुई और शासकों के संगीत प्रेम ने भी उन्हें सराहनीय कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया इस बात पर चर्चा और विश्लेषण करना है। कहने का तात्पर्य यह है कि इतिहास के पन्नों में गुप्त काल सम्पूर्ण कलाओं की सर्वांगीण उन्नति का काल था जिसे युगों-युगों तक भारतीय संगीत का इतिहास भुला नहीं सकता।
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अध्ययन का उद्देश्य | यह लेख गुप्त वंश के संगीत के विषय में यथासम्भव प्रकाश डालने का प्रयत्न है। |
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साहित्यावलोकन | भारतीय इतिहास में गुप्तकाल को स्वर्णयुग के रूप में जाना जाता है। गुप्तकाल में भारत की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का विकास तीव्रता से हुआ। मौर्य काल का शासक चन्द्रगुप्त मौर्य अत्यंत संगीत प्रेमी था। वह अपने दरबार में नित्य कलाकारों को आमंत्रित करता था। इस युग में संगीत गृह तथा नाट्य शालायें थीं। चन्द्रगुप्त अपने दरबार में संगीत समारोहों का आयोजन करता था और वहाँ, वह सब प्रकार के संगीतज्ञों को अपनी कला के प्रदर्शन हेतु आमन्त्रित करता था। जिस किसी के भी कला प्रदर्शन से वह प्रभावित होता तो उसे पुरुस्कृत करता था। इसी काल में संगीत समारोहों का दरबारी स्वरूप क्या होता है, इसकी आधारशिला निश्चित हो चुकी थी। इसका लाभ यह हुआ कि आने वाले काल में संगीत के विकास और प्रचार के लिये एक सशक्त माध्यम बन गया। भरत कृत नाट्यशास्त्र इसी युग की देन है और इसे प्राचीन भारतीय रंगमंच का ज्ञानकोष कहना सर्वथा उचित ही है। नाट्यशास्त्र को पाँचवा वेद भी कहा जाता है, इसमे नाट्यकला से सम्बद्ध विबिध- रंग- वस्तु अभिनय नाट्य विधाओं संगीत रंगमंच आदि का निरूपण किया गया है (भारत का इतिहास, ग्रि०म० बोगर्दविन, पृष्ठ-२२, History of Indian music and musicians, Ram Avtar Veer, Page- 30)। |
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मुख्य पाठ |
विश्वविख्यात नाटक ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’
तथा कालिदास द्वारा रचित महाकाव्य ‘रघुवंश‘
शूद्रक लेखक द्वारा रचित, ‘मृच्छकटिकम्‘
विशाखदत्त द्वारा लिखा नाटक ‘मुद्राराक्षस’,
इन सब विभूतियों का जन्म गुप्त काल में हुआ। अनेक कलाकारों ने इस
युग में जन्म लिया जिन्होंने मी सम्पूर्ण ललित कलाओं की उन्नति में सहयोग देकर
विश्व के इतिहास में भारतीय कलाओं को सम्मानित स्थान दिया। चन्द्रगुप्त प्रथम एवम् चन्द्रगुप्त द्वितीय के मध्य
समुद्रगुप्त ने इस युग में जन्म लिया। समुद्रगुप्त एक कुशल शासक और साहसी राजा
होने के साथ एक संगीतकार और कवि थे। समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त
प्रथम के ही पुत्र थे। समुद्रगुप्त को भारत का ‘नेपोलियन’
कहा जाता था। यह विद्वानों तथा कलाकारों का बहुत आदर करता था। उसके दरबार में हरिषेण नामक महान कवि था जिसने अपने राजा के
साथ मिलकर संगीत की उन्नति के लिये विशेष सहयोग दिया। समुद्रगुप्त एक बहादुर और
साहसी योद्धा होने के साथ ही साथ महान वीणा वादक भी थे। वह न केवल एक प्रतिष्ठित सैनिक, राजनेता और प्रशासक थे, बल्कि कविता और
संगीत के एक मजबूत जुनून के साथ एक जानकार व्यक्ति भी थे। उनके समय के कई सिक्कों
में उन्हें वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। वह एक कुशल संगीतकार थे जो भारतीय
शास्त्रीय संगीत और नृत्य की बहुत प्रशंसा करते थे (History of Indian
music and musicians- Ram Avtar Veer, Page 27)। ऐसा कहा जाता है कि समुद्रगुप्त को संगीत की कला अपनी माता की ओर से
विरासत में मिली थी क्योंकि उनकी माता महारानी कुमारा देवी संगीत की कला और
विज्ञान में पारंगत थीं (A History of Indian Music, Swami
Prajnanananda- Page 144-145)। समुद्रगुप्त के उपरान्त उनके
पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शासन की बागडोर सम्भाली। चन्द्रगुप्त द्वितीय के
सिंहासनारूण होते ही संगीत कला का सर्वांगीण विकास होना प्रारम्भ हो गया इसके समय
में देश तो क्या विदेशों में भी भारतीय संगीत के गीत गूँजने लगे। कालिदास जैसे
महान नाटककार एवं कवि ने अपनी रचनाओं से जन-मानस के अन्तःकरण को भाव विह्वल कर
दिया। नाटककार भास को भी संगीत कला को निखारने का श्रेय जाता है। इन्होंने अपने
उत्कृष्ट नाटकों से समाज को एक नवीन प्रेरणा प्रदान की। चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय
गुप्त, नाग, कदम्ब आदि
भारतीय एवं शक, हूण, कुषाण आदि विदेशी
सभ्यता व संस्कृतियों का मिलन संगीत में भी हुआ जिसके परिणामस्वरूप संगीत में कई
नवीन दिशाओं का सूत्रपात हुआ। ‘महाराज विक्रमादित्य’
(चन्द्रगुप्त द्वितीय इतिहास में इस नाम से जाने जाते हैं) शिक्षा,
शिल्प व संस्कृति के विशेष पृष्ठ- पोषक थे एवं उन्होंने वृहत
नाट्यशाला व संगीतशाला का निर्माण किया (भारतीय तालों का शास्त्रीय विवेचन ‘डा० अरूण कुमार सेन, पृष्ठ-19)। अनेकों सांस्कृतिक
उत्सवों का आयोजन होता था, जिससे साधारण जनता भी संगीत के
महत्व के समझने लगी थी। महाराज विक्रमादित्य का साम्राज्य अनेकों विद्वानों,
संगीतकारों, कवियों इत्यादि कलाकारों से
परिपूर्ण था। इसका कारण यह था कि समुद्रगुप्त स्वयं भी कला मर्मज्ञ थे। गुप्त काल भारतीय कला के विकास
का युग कहा जाय तो अविश्योक्ति न होगी। यहां संगीत, नृत्य और अभिनय
कला का भी विकास हुआ। वात्स्यायन ने संगीत का ज्ञान प्रत्येक नागरिक के लिये
आवश्यक बताया है। मालविकाग्निमित्र से ज्ञात होता है कि नगरों में संगीत की शिक्षा
के लिये कला भवन होते थे तथा नृत्य की शिक्षा के लिए भी नगरों में आचार्य होते थे।
मालविकाग्निमित्र में गणदास को संगीत व नृत्य का आचार्य बताया गया है जिन्के
द्वारा उच्च वर्ग की कन्यायों को नृत्य की शिक्षा दी जाती थी (प्राचीन भारत का
इतिहास, द्विजेन्द्र नारायण झा एवं कृष्ण मोहन श्रीमाली, पृष्ठ-328)। चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल में
गायन- वादन नृत्य तीनों का ही प्रचलन प्रचुरता से हुआ। यह भी अपने पिता की भांति
संगीत का बड़ा मर्मज्ञ था। योरोपीय देशों से व्यापारिक सम्बन्ध हाने के कारण भारतीय
संगीत योरोप में भी पहुँचा जिससे वहाँ के लोगों पर भारतीय संगीत की गहरी छाप पड़ी। कवि कालिदास की महान कृतियों
तथा अन्य अनेकों कवि एवम् नाटककार की इन कृतियों से संगीत के क्षेत्र में एक नवीन
क्रान्ति हुई (मध्यकाल के पश्चात से संगीत के पुनरोत्थान व विकास में संगीतकारों
का योगदान, एक विवेचनात्मक अध्ययन, स्मृति श्रीवास्तव, पृष्ठ. 38-40) कालिदास के नाटक व संगीत का
बार-बार उल्लेख करते हैं और जाहिर है कि उस समय के राजाओं के पास नियमित संगीतकार
अपने दरबार से जुड़े होते थे। मालविकाग्निमित्र में समय के लिए एक गीत का उल्लेख
दो संगीतकारों के बीच एक प्रतियोगिता में किए गए एक महान उपलब्धि के रूप में किया
गया है। कालिदास के बाद नाटक के विकास के साथ-साथ, समस्त भारतीय
संगीत का विकास भी होता रहा। मंदिर और मंच भारतीय संगीत के महान विद्यालय थे (The music of India– H. A. Popley, Page-12)। कालिदास के अतरिक्त नाटककार भास, शूद्रक, विशाखदत्त तथा भारीव इत्यादि ने भी अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से संगीत के
क्षेत्र में अनेकों सराहनीय कार्य किये। इनके समी नाटक संगीन प्रधान हैं। |
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निष्कर्ष |
गुप्त वंश का प्रथम शासक चन्द्रगुप्त प्रथम से लेकर समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) इन सभी शासकों ने सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। यह सभी कुशल प्रशासक के साथ ही साथ कला एवम् साहित्य के संरक्षक भी थे। समुद्रगुप्त का शासनकाल राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दोनों रुप से ही गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष का काल थे। गुप्त वंश के सभी शासकों ने वैदिक धर्म की परम्पराओं के अनुसार अपना शासन किया। इसीलिये संगीत कला का भी अपना एक उत्कृष्ट स्थान था। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक देश का शासक यदि चाहे कि उसके शासन काल में सर्वत्र शान्ति, प्रेम, सौहार्दता का वातावरण हो तो यह आवश्यक हो जाता है उसमें कुशल शासक के सम्पूर्ण गुण हों । गुप्त वंश के सभी शासक कर्मठ, वीर, विद्वान एवं विद्वानों के आश्रयदाता, साहित्य तथा अनेकों कलाओं में निपुण थे तभी गुप्त काल को ‘संगीत’ का भी स्वर्णकाल कहा जाता है। इसीलिये गुप्त वंश की प्रजा भी संगीत की कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत थी। उनका ज्ञान इतना परिष्कृत हो चुका था उन्होंने व्याभिचारिकता को छोड़ दिया और जीवन को अत्यन्त शान्ति तथा निर्मलता से जीने का प्रयत्न किया। साधारण से साधारण जनता भी संगीत के गुणगान को समझने लगी थी। इसलिये यह कहावत भी सत्य है कि, ‘यथा राजा तथा प्रजा‘। इस प्रकार, गुप्त काल सम्पूर्ण कलाओं की सर्वांगीण उन्नति का काल था, जिसे युगों- युगों तक भारतीय संगीत का इतिहास भुला नहीं सकता। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. भारतीय संगीत का इतिहास- डा० ठाकुर जयदेव सिंह, पृष्ठ- 5
2. भारत का इतिहास, ग्रि०म०- बोंगर्द लेविन, पृष्ठ- 221
3. History of Indian Music and Musicians- Ram Avtar Veer, Page- 30
4. भारतीय तालों का तात्विक विवेचन- डा० अरुण कुमार सेन, पृष्ठ-19
5. प्राचीन भारत का इतिहास- द्विजेन्द्र नारायण झा एवम कृष्ण मोहन श्रीमाली, पृष्ठ- 328
6. A History of Indian Music- Swami Prajnanananda- Page -144-145
7. The Music of India- H. A. Popley, Page- 12
8. मध्यकाल के पश्चाiत से संगीत के पुनरोत्थाgन व विकास में संगीतकारों का योगदानरू एक विवेचनात्म-क अध्य.यन- स्मृति श्रीवास्तवए, पृष्ठ- 38- 40 |