P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- VI February  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
कामकाजी महिलाओं की घरेलू समस्याएं: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
Domestic Problems of Working Women: A Sociological Study
Paper Id :  15829   Submission Date :  03/02/2022   Acceptance Date :  12/02/2022   Publication Date :  23/02/2022
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जीतेश्वर खरते
असिस्टेंट प्रोफेसर
समाज शास्त्र विभाग
गवर्नमेंट पी जी कॉलेज, सेंधा,
निवाली, ,मध्य प्रदेश,
भारत
सारांश भारतीय संस्कृति की पावन परंपरा में नारी को सदैव सम्माननीय स्थान प्राप्त हुआ है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति व अवनति वहाँ के नारी समाज पर अवलंबित है। जिस देश की नारी सशक्त, जाग्रत एवं शिक्षित हो, वह देश संसार में सबसे उन्नत माना जाता है। ‘मनुस्मृति‘ में भी कहा गया है “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता” नारी नर की खान है। वह पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए गौरव और विश्व के लिए करूणा संजोने वाली महाकृति है। नारी का मानव की सृष्टि में ही नहीं, वरण समाज निर्माण में भी महत्वपूर्ण स्थान है। नारी और पुरूष मिलकर परिवार का निर्माण करते है। अनेक परिवारों से समुदाय और अनेक समुदायों से मिलकर एक समाज निर्मित होता है। यदि हम विश्व इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें यह पता चलता है कि संस्कृति की नींव डालने का श्रेय सर्वप्रथम नारी को ही दिया जाता है। परन्तु नारी की प्रस्थिति सभी समाजों में एक-समान नहीं है। जिस तरह परिवार में नारी व पुरूष के कार्य व स्थान भिन्न-भिन्न होते है, उसी तरह समाज में भी नारी और पुरूष के कार्यो व स्थान में भिन्नता पाई जाती है। भारतीय नारी की सामाजिक प्रस्थिति और समस्याओं का अध्ययन अपने में एक बड़ा कठिन विषय है। वर्तमान में महिलाओं के प्रति अनेक प्रकार के अपराध हो रहे है। ‘अपराध‘ कानूनी रूप से परिभाषित शब्द ही नहीं है, अपितु सामाजिक दृष्टि से भी परिभाषित शब्द है। महिलाओं को शारीरिक व मानसिक यातनाएं देना, उसके साथ मार-पीट करना, उसका शोषण करना, नारीत्व को निवस्त्र करना, भूखा-प्यासा रखना, जहर आदि देकर दहेज की बलि चढ़ा देना आदि महिलाओं के प्रति अपराध ही कहें जाएंगे। इस प्रकार से सम्पूर्ण देश में महिलाओं के प्रति अपराधों एवं हिंसक घटनाओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति सदियों से दयनीय रही है, उनका हर स्तर पर शोषण और अपमान होता रहा है। पुरूष प्रधान समाज होने के कारण सभी नियम, कायदे पुरूषों के हिंतो को ध्यान में रख कर बनाये जाते रहें। खेलने और शिक्षा ग्रहण करने की आयु में बेटियों की शादी कर देना उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित होता रहा है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Women have always got an honorable place in the sacred tradition of Indian culture. The progress and downfall of any nation is dependent on the women society there. The country whose women are strong, awake and educated, that country is considered to be the most advanced in the world. It is also said in 'Manusmriti' "Yatra Naryastu Pujyante, Ramante Tatra Devta" Woman is the mine of male. She is the epitome of character for husband, love for children, pride for society and compassion for the world. Women have an important place not only in the creation of man, but also in the formation of society. Women and men together make up the family. A community is made up of many families and a society is made up of many communities. If we look at the history of the world, then we come to know that the first credit for laying the foundation of culture is given to women. But the status of women is not the same in all societies. Just as the work and place of men and women are different in the family, similarly there is a difference in the work and place of women and men in the society. The study of the social status and problems of Indian women is a very difficult subject in itself. At present, many types of crimes are being committed against women. 'Crime' is not only a legally defined term, but also a socially defined term. Giving women physical and mental torture, beating her, exploiting her, stripping womanhood, keeping her hungry and thirsty, sacrificing dowry by giving poison etc. will be called crimes against women. In this way, there has been a huge increase in the number of crimes and violent incidents against women all over the country. The condition of women in Indian society has been pathetic for centuries, they have been exploited and humiliated at every level. Being a male dominated society, all the rules and regulations should be made keeping in mind the interests of men. Getting daughters married at the age of playing and taking education has been proving to be dangerous for their mental and physical health.
मुख्य शब्द भारतीय, नारी, समाज, कामकाजी महिला, घरेलू हिंसा, पुरूष, शोषण आदि।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Indian Woman, Society, Working Woman, Domestic Violence, Man, Exploitation etc.
प्रस्तावना
2012 में प्राप्त आंकड़ो के अनुसार कामकाजी महिलओं की कुल भागीदारी मात्र 27 प्रतिशत है, अर्थात इतना सब कुछ होने के बाद आज भी महिलाओं की स्थिति में बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता है, अधिकतर महिलाओं को यह आभास भी नहीं हैं कि वे शोषण का शिकार हो रही हैं और स्वयं एक अन्य महिला का शोषण करने में पुरूष समाज को सहयोग कर रही है। वर्तमान समय में आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण एवं आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया में महिलाओं के साथ बढ़ रहे अत्याचारों में घरेलू हिंसा भी एक गम्भीर समस्या के रूप में रूपान्तरित हो रही है। पिछले कुछ वर्षो में काफी वृद्धि हुई है, तथा यह समाज के नीति-निर्धारकों, समाज-सुधारकों व अन्य सभी के लिए एक गहन चिन्ता का विषय बना हुआ है। यह सत्य भी है की महिला की सुरक्षा व सुख प्रदान करने के बदले पुरूषों ने महिला को तिरस्कृत किया है। हमारे देश की आबादी का लगभग आधा भाग महिलाएं है। संविधान में इन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए हैं किन्तु अनेक पूर्वाग्रह और लिंग-भेद के परिणाम स्वरूप अनेक असमानताओं का सामना करना पड़ता है। लगभग सभी महिलाओं को शोषण व हिंसा का शिकार होना पड़ता है। जहाँ तक उच्च शिक्षित परिवारों की महिलाओं की बात की जाए तो उन परिवारों में महिलाएं अपेक्षाकृत हमेशा से ही सम्मान प्राप्त रही है, परन्तु मजदूर वर्ग में षिक्षा के अभाव में रूढ़िवादी समाज के कारण आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी अपमानित होती रहती थी और आज भी विशेष बदलाव नहीं हो पाया है। भारतीय सरकार के ग्रह मंत्रालय के अन्तर्गत ‘नेशनल क्राइम रिकार्डस् ब्यूरो‘ के अनुसार प्रति वर्ष भारत में अपराध सम्बन्धी आंकड़ों का प्रकाशन करता है। इसी संगठन द्वारा प्रकाशित विभिन्न वर्षो के आंकड़े जो ‘क्राइम इन इण्डिया‘ में प्रकाशित किये जाते है, उनके अनुसार भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा में वर्ष दर वर्ष वृद्धि होती जा रही है। अनेक अध्ययनों से यह प्रमाणित होता है कि कार्यरत महिलाओं के सामने मुख्य समस्या भूमिका सघंर्ष की है वे अपने आप को परिवार व कार्यालय के अनुसार कैसे समायोजित करती है। कामकाजी महिलाएँ आज भी आर्थिक रूप से पुरूषों से मुक्त नहीं है क्योंकि जो महिलाएँ अपने परिवार की अर्थव्यवस्था में योगदान करती है वे अपनी आय को अपनी इच्छानुसार व्यय करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। एक कामकाजी महिला को अपने कार्यरत जीवन तथा माँ के रूप में दोहरी भूमिकाओं के सघंर्ष का सामना करना पड़ता है। एक तरफ अपने कार्यालय का कार्यभार और दूसरी और माँ के रूप में संतानों की देखभाल करना। इन सभी रिश्तों को निभाने के बाद भी वह पूरी शक्ति से नौकरी करती है ताकि अपना परिवार का और देश का भविष्य उज्जवल बना सके। इसका सीधा अर्थ यही है कि महिला का योगदान हर जगह है। महिला की क्षमता को नजरअंदाज करके समाज की कल्पना करना व्यर्थ है। इस प्रकार एक कामकाजी महिला अपने कार्य के साथ-साथ घर और परिवार की भी देखभाल करती है, फिर भी सघंर्ष उत्पन्न होता है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. कामकाजी महिलाओं की घरेलू हिंसा का वर्तमान संदर्भ में अवधारणात्मक निरूपण करना। 2. कामकाजी महिलाओं की समस्या से अवगत होना। 3. कामकाजी महिलाओं की शारीरिक स्थिति का उनके जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाना।
साहित्यावलोकन
सत्यशील अग्रवाल (2016) “भारतीय कामकाजी महिलाओं की समस्याएँ” ने बताया कि भारत में महिलाओं में शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के कारण प्रसव के दौरान, उन्हें जीवन गवाना पड़ता है, अर्थात महिलाओं की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है। रचनाकार (2015) “भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति की सामाजिक विवेचना” ने अपने लेख में महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक स्थिति के मुख्य धारा में लाने के लिए उनकी सोच में मूलभूत परिवर्तन, आत्म-निर्भरता की आवश्यकता है। परमजीत कौर (2011) “असंगठित क्षेत्र में महिलाएँ: घरेलू कार्यशील महिलाओं की केस स्टडी” में घरेलू कार्य सर्वाधिक अशिक्षित 83 प्रतिशत महिलाएँ अंशकालीन से अविकसित पाई गई। घरेलू नौकरी में अधिकांश अपने परिवार की देखभाल के कारण रोजगार से नही उभर पाई है।
मुख्य पाठ

घरेलू हिंसा महिलाओं के प्रति- महिलाओं के प्रति हिंसा की समस्या कोई नई नहीं है। भारतीय समाज में महिलाएँ एक लम्बे काल से अवमानना, यातना और शोषण का शिकार रही है, जितने भी हमारे पास सामाजिक संगठन एवं पारिवारिक जीवन के लिखित प्रमाण उपलब्ध है। वर्तमान में शनैः शनैः महिलाओं को पुरूषों के जीवन में महत्वपूर्ण प्रभावशाली और अर्थपूर्ण सहयोग माना जाने लगा है। परन्तु कुछ दशक पहले तक उनकी स्थिति दयनीय थी। परम्परागत रिवाजों और समाज में प्रचलित प्रतिमानों ने उनके उत्पीड़न में काफी योगदान दिया है। इनमें से कुछ व्यावहारिक रिवाज वर्तमान में भी पनप रहे है। समाज में महिलाओं के समर्थन में बने कानूनों, शिक्षा के फेलाव और बढ़ती हुई आर्थिक स्वतंत्रता के बाद भी असंख्य महिलाएँ आज भी हिंसा का शिकार हो रही है।   

1. दहेज हत्याएं- भारतीय समाज में नारी के लिए विवाह में दहेज अनिवार्य है। इसलिए दहेज की समस्या एक भयंकर समस्या बनती जा रही है। आए दिन दहेज की शिकार अभागी नारियों को जलाने की घटनाओं का विवरण समाचार-पत्रों में छपा होता है। इसके विरूद्ध कठोर कानून भी बनाए गए हैं फिर भी पिछले कुछ वर्षो में ऐसी घटनाओं का प्रतिषत बढ़ता ही जा रहा है। 

2. भावात्मक दुर्व्यवहार- भावात्मक एवं लैगिंक दुर्व्यवहार को घरेलू हिंसा का प्रमुख कारण है। यदि पति अन्य लोगों की उपस्थिति में पत्नी का अपमान करता है, उसे सारे दिन में किए कार्यो का विवरण देने हेतु विवश करता है। या अन्य किसी पुरूष के साथ सम्बन्ध के सन्देह में उसकी अवमानना करता है, इस प्रकार से महिलाओं के साथ भावात्मक दुर्व्यवहार किया जाता है। 

3. पत्नी को पीटना- भारतीय समाज में पत्नी को पीटने की घटनाओं में निरन्तर वृद्धि हो रही है। कई बार ऐसी घटनाएं पति नशे में ही अधिकतर करते हैं, और महिलाएं अत्याचार चुपचाप सहन करती है। इस प्रकार से वह अपने भाग्य को कोसती रहती है। 

4. विधवाओं पर अत्याचार- यह नारी के लिए सबसे भयानक शब्द है उसका सबसे बड़ा सौभाग्य सुहागिन बनना है, परन्तु सूनी मांग मृत्यु से भी ज्यादा भयानक होती है। समाज में उच्च जातियों में विधवा पुनर्विवाह की परम्परा नहीं थी। विधवा से बड़े संयमी एवं तपस्वी जीवन की आशा की जाती थी। 

हिंसा रोकने के उपाय-  महिलाओं के साथ सभी प्रकार की हिंसा की घटनाओं, चाहे शारीरिक हिंसा हो या मानसिक हिंसा, चाहे घर में हो या समाज में, इन घटनाओं को रोकने लिए कारगर उपाय किए जाने चाहिए। 

5. महिला के अधिकार- समाज में महिलाओं के साथ सभी प्रकार के भेदभाव और उनके अधिकारों के उल्लंघन को निवारक एवं दण्डात्मक दोनों प्रकार के उपाय से समाप्त किया जा सकता है। ये उपाय विशिष्ट रूप से भ्रूण-हत्या, बालिका शिशु-हत्या, बाल-विवाह, बाल-शोषण तथा वैश्यावृत्ति आदि प्रथाओं के विरूद्ध कानूनों के प्रवर्तन से होंगे। 

6. जन संचार माध्यम- महिलाओं की मानव गरिमा के अनुरूप छवि प्रदर्शित करने के लिए जन-प्रचार माध्यमों को प्रयोग किया जाएगा। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं की समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सभी स्तरों पर निजी क्षेत्र के भागीदारी तथा प्रचार माध्यम को शामिल किया जाएगा। 

7. संगठनों के साथ भागीदारी- शिक्षा प्रशिक्षण एवं अनुसंधान से सम्बन्धित संगठनों, संघो, फेडरेशनों, व्यापार संघो, गैर सरकारी संगठनों, महिला संगठनों तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाली सभी नीतियों और कार्यक्रमों के निरूपण और समीक्षा में भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।  

     भारत का सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्य कामकाजी महिलाओं को उचित व्यवसायिक वातावरण उपलब्ध नहीं कराता। कामकाजी महिलाओं की स्थिति में गुणात्मक सुधार क्रियान्वित करने की दिशा में अनेक प्रयास करने चाहिए, जैसे प्रत्येक क्षेत्र में उनकी हिस्सेदारी व महिलाओं की नेतृत्वकारी भूमिका में वृद्धि करना। महिलाओं पर हो रही किसी भी प्रकार की हिंसा, उसका अंत कर उन्हे शान्ति के प्रत्येक पहलू और सूरक्षा सम्बन्धी प्रक्रियाओं में सम्मिलित करना। 

कामकाजी महिलाओं के कानूनी अधिकार- भारतीय संविधान महिलाओं को पूर्ण समानता प्रदान करता है। संविधान के भाग 3 के अन्तर्गत मूल अधिकारोंके रूप में भी महिलाओं को मानव अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 14 में प्रत्येक नागरिक महिला एवं पुरूष की विविध के समक्ष संरक्षक, अनुच्छेद 16 के आधार पर महिलाओं को लोक नियोजन में समान अवसर प्राप्त है। अनुच्छेद 39 में जीविकोपार्जन के समान अधिकार तथा समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है। अनुच्छेद 325 एवं 326 में सभी नागरिकों महिला एवं पुरूष दोनों की व्यवस्क मताधिकार में लिंग भेद का निषेध करते है। मातृत्व लाभ अधिनियम 1956 (संषोधित 2017) के अनुसार प्रत्येक महिला श्रमिक काल में 22 सप्ताह तक संवैधानिक अवकाश प्राप्त की अधिकारिणी है। प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 के अन्तर्गत संगठित क्षेत्र में नियोक्ता द्वारा गर्भधारण के चिकित्सीय सत्यापन, नसबन्दी तथा गर्भधारण के कारण होने वाली बीमारी की स्थिति में अवकाश का प्रावधान है। समान परिश्रम 1976 के तहत महिला कामकारों को समान कार्य के लिए पुरूषों के समान वेतन दिए जाने का प्रावधान है। 

निष्कर्ष भारतीय कामकाजी महिला की स्थिति दो पाटो में फँसे धुन के समान हो गई है। उसे कार्यालय एवं घर दोनो जगह की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। यदि वह दोनो में संतुलन स्थापित करने में असमर्थ होती है, तो उसे भारी निंदा का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार से प्रत्येक कामकाजी महिला का घरेलू जीवन दयनीय होता है। महिलाओं के विकास के लिए उनका सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना अत्यंत आवश्यक है। 2001 में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत 25.26 था जो 2012 में बढ़कर 28.12 हो गया है। प्रायः देखा जाता है कि कामकाजी महिलाओं को घर एवं बाहर दोनों स्थलों पर सामंजस्य बैठाना पड़ता है। इस कारण से वे तनावग्रस्त हो जाती है। किन्तु परिवार की धुरी होने के कारण घर-परिवार की चिन्ता उसे करनी पड़ती है। फलस्वरूप अनावश्यक भाग दौड़ के कारण वह मानसिक एवं शारीरिक थकान व तनाव से गुजरने लगती है। अतः स्पष्ट है कि पारिवारिक समस्या कहीं न कहीं कार्य स्थल में भी महिला को प्रभावित करती है इसलिए कामकाजी महिलाओं को दोहरी भूमिका निभाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यद्यपि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्राचीन काल से महिलाएँ प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं और कृषि कार्य में संलग्न रही है। आधुनिक युग में महिलाएं कामकाजी होने के साथ-साथ सफल गृहणियाँ भी सिद्ध हो रही है। हमारे समाज में नारी वह धुरी है, जिससे जीवन का पहिया अबाध रूप से आगे बढ़ता है। समाज में नारी और पुरूष दोनों ही अपनी सीमाओं में प्रतिबंधित हैं। स्त्री और पुरूष अपनी मर्यादा में रहते हुए एक दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ेंगे तो राष्ट्र और समाज का उत्थान अवश्य संभव है। वस्तुतः यदि महिलाएँ अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, निर्णय क्षमता और उज्जवल चरित्र के साथ सादा जीवन और उच्च विचार के सूत्र को अंगीकार करते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करेंगी तो निष्चय ही देश को एक सूत्र में बांधकर रख सकती हैं तथा देष व समाज को प्रगति पथ पर अग्रसर करने में सफलता अर्जित कर सकेंगी। वर्तमान में महिलाएँ सयुक्त परिवारों से निकलकर, एकांकी परिवार में रहना चाहती है। वे एकांकी परिवारों की स्थापना कर स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना और पारिवारिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहती है। संक्षिप्त रूप से कहा जा सकता है कि महिलाओं का स्थान पुरूषों के समान महत्वपूर्ण है, अतः उनकी प्रत्येक क्षेत्र में उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि ‘स्त्रियों की अवस्था में सुधार न होने तक विश्व में कल्याण का कोई मार्ग नहीं है।‘
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. आहूजा राम - 2009 भारतीय सामाजिक व्यवस्था, रावत पब्लिकेषन, जयपुर। 2. शर्मा अनुपम - 2013, इक्कीसवीं शताब्दी में महिला समस्याएं एवं संभावनाएं, अल्फा प. नई दिल्ली। 3. कपूर डॉ. प्रमिला - 2009 कामकाजी भारतीय नारी, राजपाल एंड सन्स, दिल्ली। 4. परमार दुर्गा - 1982 श्रमजीवी महिलाएं और समकालीन पारिवारिक संगठन, साहित्य भवन आगरा। 5. गुप्ता सुभाषचन्द्र - 2004 कार्यषील महिलाएँ एवं भारतीय समाज, अर्जुन प. हाउस, नई दिल्ली। 6. गुप्ता पंकज - 2014 मानवाधिकार और महिलाएँ, साहित्यागार प्रकाषन, जयपुर। 7- https://www.patrika.com 8- http://ignited.in 9- https://m.jagran.com 10- https://www.saicarefoundation.com