P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- II October  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
भारत में स्वयं सहायता समूहों का विकास (ग्रामीण महिला सशक्तिकरण के सन्दर्भ में)
Development of Self Help Groups in India (With Reference to Rural Women Empowerment)
Paper Id :  16628   Submission Date :  03/10/2022   Acceptance Date :  21/10/2022   Publication Date :  25/10/2022
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अनामिका गुप्ता
शोध छात्रा
समाजशास्त्र विभाग
श्री वार्ष्णेय महाविद्यालय
(संबद्ध डॉ0 भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा) ,अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत
कृष्णा अग्रवाल
प्रोफेसर
समाजशास्त्र विभाग
श्री वार्ष्णेय महाविद्यालय
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश जनगणना 2011 के अनुसार भारत में लगभग 40.56 करोड़ ग्रामीण महिलायें हैं, इनमें से अधिकांश महिलाओं की स्थिति प्राचीन समय से ही दयनीय रही है परन्तु स्वयं सहायता समूह ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरे हैं। स्वयं सहायता समूह गरीब ग्रामीण महिलाओं को आजीविका के विभिन्न अवसर उपलब्ध करा के उनके सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। प्रस्तुत शोध पत्र में द्वितीयक स्रोतों के आधार पर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत संचालित स्वयं सहायता समूहों का वर्ष 2014-15 से 2021-22 तक विकास, वृद्धिदर तथा उसके माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण की स्थिति को दर्शाया गया है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद According to Census 2011, there are about 40.56 crore rural women in India, the condition of most of these women has been pathetic since ancient times, but self-help groups have emerged as a powerful medium to improve the socio-economic condition of rural women. Self-help groups are contributing significantly in the empowerment of poor rural women by providing them various livelihood opportunities. In the presented research paper, on the basis of secondary sources, the development, growth rate of self-help groups operated under the National Rural Livelihood Mission from the year 2014-15 to 2021-22 and the status of empowerment of rural women through it has been shown.
मुख्य शब्द स्वयं सहायता समूह, वृद्धिदर, ग्रामीण महिला, सशक्तिकरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Self-help Groups, Growth Rate, Rural Women, Empowerment.
प्रस्तावना
जनगणना 2011 के अनुसार भारत में कुल ग्रामीण जनसंख्या (83.30 करोड़) का 48.69 प्रतिशत भाग महिलाओं का है[1] जिसमें अधिकांश महिलाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय है। एक ग्रामीण महिला प्रतिदिन 16-18 घण्टे विभिन्न कार्य जैसे - बच्चों का पालन-पोषण, मीलों दूर से पानी भरना, कृषि कार्य, गृहस्थी के कार्य, पशुपालन, उपले बनाना आदि करती है। महिला द्वारा किये गये श्रम को समाज द्वारा पारिवारिक उत्तरदायित्व की दृष्टि से देखा जाता है, जिसका उसे कोई पारिश्रमिक प्राप्त नहीं होता। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की रिपोर्ट (2020-21) के अनुसार 121.8 मिलियन महिलायें ग्रामीण क्षेत्रो में कार्यरत हैं[2] जबकि NFHS-5 के अनुसार कुल कार्यरत महिलाओं में से 25.6 प्रतिशत ही नकद वेतन प्राप्त करती हैं।[3] निरन्तर वेतनहीन कार्य करने से इन महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में गिरावट हुई है। इसके अतिरिक्त अशिक्षा एवं जागरूकता के अभाव में ग्रामीण महिलाओं को अन्य समस्याओं जैसे - घरेलू हिंसा, बाल-विवाह, एनीमिया, कुपोषण, खुले में शौच, असुरक्षित प्रसव आदि का भी सामना करना पड़ता है जो कि महिला सशक्तिकरण एवं विकास में बाधा उत्पन्न करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात महिलाओं के उत्थान के लिए किये गये प्रयासों में एक बात अस्तित्व में आई कि ग्रामीण महिलाओं की आय, कृषि तथा शिक्षा में सहभागिता बढाकर उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाया जा सकता है। अतः अर्थोपार्जन की दृष्टि से सरकार द्वारा ग्रामीण समाजों में स्वयं सहायता समूह गठित करने की पहल की गई। स्वयं सहायता समूह एवं ग्रामीण महिलायें- स्वयं सहायता समूह एक वैश्विक अवधारणा है जिसे 1970 के दशक में प्रो0 मोहम्मद यूनुस द्वारा ‘बांग्लादेश ग्रामीण बैंक’ के रूप में शुरू किया गया था।[4] भारत में सर्वप्रथम दक्षिण क्षेत्र में ड्वाकरा के अन्तर्गत 300 स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया। इसके पश्चात 1991-1992 में नाबार्ड के द्वारा स्वयं सहायता समूह को जोड़कर ऋण सम्बन्धी प्रक्रिया से जोड़ा गया।[5] स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना की शुरूआत 1999 में हुई, जिसे 2011 में ‘‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’’ के नाम से परिवर्तित किया गया जिसके अन्तर्गत स्वयं सहायता समूहों को विशेष संरक्षण प्राप्त हुआ। इस मिशन का लक्ष्य 8-9 करोड़ निर्धन परिवारों तक पहुँचकर प्रत्येक परिवार से एक महिला सदस्य को लेकर स्वयं सहायता समूह का गठन करना है। यह समाज के कमजोर वर्गों में 50% अल्पसंख्यकों तथा 3%विकलांग व्यक्तियों को शामिल करता है।[6] राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन भारत के 28 राज्यों तथा 6 केन्द्र शासित प्रदेशों मे स्वयं सहायता समूहों का सफल संचालन कर रहा है। स्वयं सहायता समूह समान सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले 10-20 लोगों का ऐसा संगठन है जो स्वेच्छा से अपनी गरीबी दूर करने हेतु व्यक्तिगत रूप से अपनी आमदनी से थोड़ी-थोड़ी बचत करके सामूहिक पूँजी के रूप में एकत्रित करते हैं। इस बचत के माध्यम से बैंक से जुड़कर सूक्ष्मऋण प्राप्त कर सामूहिक रूप से सूक्ष्म उद्योग स्थापित कर अपने जीवन की दशा को सुधारने का प्रयास करते हैं। स्वयं सहायता समूह समानता सहयोग एवं बन्धुत्व के सिद्धान्त पर कार्य करते है ताकि ग्रामीण महिलाएँ स्वयं आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार के साथ-साथ गाँव के विकास में भी भागीदार बन सकें। Zee Bussiness हिन्दी पत्रिका की रिपोर्ट (2020) के अनुसार केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्री नरेन्द्र सिंह तौमर ने कहा कि देशभर में 60.8 लाख स्वयं सहायता समूहों के साथ 6.73 करोड़ से अधिक महिलायें जुड़ी हैं। महिलाओं को आजीविका पाने में अधिक सूक्ष्म बनाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय की वर्ष 2022 तक कुल 75 लाख स्वयं सहायता समूह बनाने की योजना है।[7] एन.आर.एल.एम. की वेबसाईट से प्राप्त तथ्यों से स्पष्ट है कि वर्ष 2022 में मई माह तक 75 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह गठित किये जा चुके हैं।[8]
अध्ययन का उद्देश्य 1. भारत में स्वयं सहायता समूह का विकास तथा वृद्वि दर ज्ञात करना। 2. स्वयं सहायता समूह के द्वारा ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण का अध्ययन करना। 3. भारत के सापेक्ष उत्तर प्रदेश तथा अलीगढ़ में कार्यरत स्वयं सहायता समूहों की वृद्धि दर व महिला सदस्यों की संख्या का विश्लेषण करना।
साहित्यावलोकन

1. Ramanujam Veluchamy & U. Homiga (2014) ने मैसूर जिले के 30 स्वयं सहायता समूहों के 150 सदस्यों का अध्ययन प्राथमिक स्रोतों के माध्यम से किया और पाया कि महिलाएँ गैर-सरकारी संगठनों और स्वयं सेवी संगठनों का  मार्गदर्शन प्राप्त कर सूक्ष्म उद्योग शुरू कर रही हैं जिससे वे अपने जीवन स्तर को उच्च बनाने के साथ ही घरेलू खर्चों को भी वहन कर रही हैं। अध्ययन में महिला उद्यमियों की कमजोरियों जैसे- निम्न शैक्षणिक स्तर, सामाजिक स्वतंत्रता की कमी, मशीन को नियन्त्रित करने में भय, बिक्री में झिझक तथा क्षमता की कमी को दर्शाया गया है।

2. Anbuoli Parthasarathy (2015) ने द्वितीयक स्रोतों पर उपलब्ध आँकडों का अध्ययन कर पाया कि भारत में स्वयं सहायता समूह के विकास का विचार नाबार्ड द्वारा वर्ष 1992 में बैंक लिंकेज कार्यक्रम के शुभारम्भ के साथ किया गया। अब न केवल वित्तीय संस्थाओं बल्कि सरकार द्वारा भी स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। नाबार्ड, अन्य संगठन जैसे - राष्ट्रीय महिला कोष तथा विभिन्न ट्रस्ट भी स्वयं सहायता समूह के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

3. Arjun Y. Pangannavar (2014) ने द्वितीयक स्रोतों पर उपलब्ध आँकडों के माध्यम से बेलगाम के स्वयं सहायता समूहों का अध्ययन कर पाया कि पुरूष आधिपत्य समाज में महिलाओं के व्यक्तिगत खर्चों के लिए आय का कोई स्रोत न होने तथा व्यक्तिगत खर्चों के लिए आय का कोई निश्चित श्रोत न होने तथा महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त करने के लिए ज्यादातर महिलाओं को स्वयं सहायता समूह आन्दोलन से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। अध्ययन में जिले के स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों द्वारा की गई बचत तथा वितरित निधि की धीमी दर यह दर्शाती है कि बेलगाम में महिला स्वयं सहायता समूहों का विकास बहुत मन्द गति से हो रहा है। अतः सरकार, गैर-सरकारी समूहों के विकास में प्रेरक प्रयास करने चाहिए।

4. Lakhwinder Kaur et al (2017) ने पंजाब राज्य के जालन्धर जिले में छळव् द्वारा संचालित दो स्वयं सहायता समूहों का अध्ययन वैयक्तिक अध्ययन विधि के द्वारा किया और पाया कि समूह के द्वारा महिलाओं के साथ-साथ उनके परिवार के अन्य सदस्यों के जीवन में भी बदलाव हुए हैं। समूह के सदस्यों ने रोजगार के विभिन्न माध्यमों जैसे - मोमबत्ती व सर्फ बनाना, अचार बनाना, सब्जी और फलों का प्रसंस्करण आदि को अपना कर परिवार की आय को बढ़ाया है।

5. Abhijit Mohanty & Satya Prakash Mishra (2018) ने उड़ीसा राज्य के खोरधा जिले के स्वयं सहायता समूहों के 180 महिला सदस्यों का अध्ययन कर यह पाया कि उन पर समूह से जुड़ने का सामाजिक, आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक रूप् से सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। महिलाओं में मुख्य रूप से  आत्मविश्वास साक्षरता, कौशल विकास, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के प्रति जागरूकता, आदि में पूर्व की अपेक्षा बढ़ोत्तरी हुई है। अधिकांश महलाएँ आर्थिक गतिविधियों जैसे - लघु वन उत्पाद के संग्रह और विपणन, बैग बनाना, मशरूम उगाना, मछली पालन आदि में संलग्न पाई गई।
6. Alka Gupta & Lalit Chaudhary (2020) ने प्राथमिक तथा द्वितीयक आँकड़ों के माध्यम से जौनपुर के 90 स्वयं सहायता समूहों का अध्ययन किया और पाया कि जौनपुर में स्वयं सहायता समूहों की संख्या में वृद्धि हुई है। स्वयं सहायता समूह से महिलाओं तथा अन्य कमजोर वर्गों को जोड़कर उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में उत्थान, सामाजिक कार्यों में सहभागिता, गतिशीलता, जागरूकता आदि को बढ़ाया जा सकता है।
7.S. Balamurugan (2019) ने प्राथमिक तथा द्वितीयक 
स्रोतों के माध्यम से तमिलनाडू राज्य के थलाईउदैवर कोविल पाथू गाँव के 6 स्वयं सहायता समूहों की 62 महिला सदस्यों का अध्ययन किया और पाया कि इन महिलाओं के समूह से जुड़ने का मुख्य कारण लोन प्राप्त करना है, जिसका उपयोग पालतू जानवरों को खरीदने और घरेलू खर्चों में किया गया। अध्ययन में स्पष्ट हुआ कि समूह में महिलाओं को प्रषिक्षित करने के लिए कोई प्रोग्राम नहीं चलाये जाते फिर भी ज्यादातर उत्तरदाता इस बात से सहमत हैं कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के पश्चात व सामाजिक-आर्थिक रूप से सशक्त होने के साथ-साथ जगरूक भी हुई है।
8.Harish Tigari & R. Aishwarya (2020) ने प्राथमिक एवं द्वितीयक 
स्रोतों के माध्यम से कर्नाटक के हरिहर के स्वयं सहायता समूहों की 30 महिला सदस्यों का अध्ययन किया और पाया कि स्वयं सहायता समूह गरीब महिलाओं को स्वाबलम्बी जीवन प्रदान करने सहायक सिद्ध हुए हैं। समूह से जुड़कर महिलाओं को रोजगार के विभिन्न अवसर उपलब्ध होते हैं जिससे वे न केवल आर्थिक अपितु सामाजिक, राजनैतिक व शैक्षिक रूप से भी सशक्त होती है।

9. Pankaj Sinha & Nitin Navin (2021) ने द्वितीयक स्रोतों पर उपलब्ध आँकड़ों का अध्ययन कर पाया कि स्वयं सहायता समूहों का देश के अलग-अलग हिस्सों में तेजी से प्रसार हो रहा है परन्तु इनकी सफलता दर असमान है। भारत के दक्षिणी तथा पूर्वी क्षेत्रों में समूहों का प्रदर्शन केन्द्रीय तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों से बेहतर रहा है। अध्ययन में स्पष्ट हुआ कि ऋण के लेन-देन में भी समूहों को कुछ क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

मुख्य पाठ

भारत में स्वयं सहायता समूह


भारत की औसत वृद्धि दर -      14.01 प्रतिशत
0प्र0 की औसत वृद्धि दर -      37.82 प्रतिशत
अलीगढ़ की औसत वृद्धि दर -     35.52 प्रतिशत

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत संचालित स्वयं सहायता समूहों में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। आंकड़ों से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वृद्धि दर वर्ष 2017-18 में 21.22 प्रतिशत तथा न्यूनतम वृद्धि दर वर्ष 2021-22 में 9.08 प्रतिशत रही है। उ0प्र0 में सर्वाधिक वृद्धि दर वर्ष 2016-17 में 49.32 प्रतिशत तथा न्यूनतम वृद्धि दर वर्ष 2021-22 में 36.54 प्रतिशत रही है। उ0प्र0 राज्य के जनपद अलीगढ़ में सर्वाधिक वृद्धि दर वर्ष 2019-20 में 58.71 प्रतिशत तथा न्यूनतम वृद्धि दर वर्ष 2021-22 में 23.16 प्रतिशत रही है। आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2021-22 में भारत, 0प्र0 तथा अलीगढ़ तीनों ही स्थानों पर स्वयं सहायता समूहों की संख्या में वृद्धिदर न्यूनतम रही। भारत में औसत वृद्धिदर 14.01 प्रतिशत, 0प्र0 में 37.82 प्रतिशत तथा अलीगढ़ में 35.52 प्रतिशत रही।

तालिका सं0 2
वर्तमान समय में स्वयं सहायता समूह (एन.आर.एल.एम. के अन्तर्गत)

वर्ममान समय में भारत में लगभग 26 लाख स्वयं सहायता समूह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत कार्यरत हैं, जिसमें 8.30 करोड़ सदस्य जुड़े हैं, इन कार्यरत सदस्यों में सर्वाधिक 55.09 प्रतिशत अर्थात् 4.57 करोड़ अन्य वर्ग तथा न्यूनतम 9.01 प्रतिशत अर्थात् 74.86 लाख अल्पसंख्यक वर्ग का है। उ0प्र0 में कुल कार्यरत 6.03 लाख स्वयं सहायता समूहों से 63.67 लाख सदस्य जुड़े हैं, इन कार्यरत सदस्यों में सर्वाधिक 57.71 प्रतिशत अर्थात् 36.86 लाख अन्य वर्ग के सदस्य तथा न्यूनतम 1.07 प्रतिशत अर्थात् 68.06 हजार अनु0जनजाति वर्ग के सदस्यों का है। उ0प्र0 के जनपद अलीगढ़ में कुल कार्यरत 13586 स्वयं सहायता समूह से 1.48 लाख सदस्य जुड़े हैं, जिसमें सर्वाधिक 71.39 प्रतिशत अर्थात् 1.05 लाख अन्य वर्ग के सदस्य तथा न्यूनतम 0.13 प्रतिशत अर्थात् 192 सदस्य अनु0जनजाति वर्ग के है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत, उ0प्र0 तथा अलीगढ़ में कार्यरत स्वयं सहायता समूहों से अन्य वर्ग के सदस्य अधिक संख्या में जुड़े हैं जबकि न्यूनतम सदस्य संख्या भारत में अल्पसंख्यक वर्ग तथा उ0प्र0 व अलीगढ़ मेअनु0जनजातियों की है।
भारत में संचालित कुल 76.25 लाख स्वयं सहायता समूहों में से लगभग 7.91 प्रतिशत अर्थात् 6.03 लाख स्वयं सहायता समूह उ0प्र0 में संचालित हैं जिसमें भारत के स्वयं सहायता समूहों की कुल 8.30 करोड़ महिला सदस्यों का 7.67 प्रतिशत अर्थात् 63.66 लाख महिलायें जुड़ी हुई हैं। उ0प्र0 में संचालित कुल 6.03 लाख स्वयं सहायता समूहों का लगभग 2.25 प्रतिशत अर्थात् 13.58 हजार जनपद अलीगढ़ में है जिसमें उ0प्र0 के स्वयं सहायता समूहों की कुल महिला सदस्यों 63.67 लाख का 2.32 प्रतिशत अर्थात् 1.47 लाख सदस्य जुड़े हुए हैं।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध पत्र की प्रकृति वर्णनात्मक है, जिसमें ग्रामीण महिला सशक्तिकरण के लिए भारत में स्वयं सहायता समूहों के विकास की स्थिति का विश्लेषण द्वितीयक स्रोतों के आधार पर किया गया है।
निष्कर्ष हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत कार्यरत स्वयं सहायता समूह ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए एक बेहतर मंच प्रदान करते हैं। समूहों के प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में गठन से स्पष्ट है कि इनसे जुड़कर महिलायें आजीविका के विभिन्न माध्यमों को अपनाकर अपने जीवन की दशा को सुधारने के लिए अग्रसर हो रही हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. Balamurugan S. (2019) Contribution of Self Help Groups (SHG’S) on Socio Economic Empowerment of Rural Women, Nagapattinam District, Tamilnadu, India JOURNAL OF COMPOSITION THEORY. Volume XII Issue VIII, ISSSN-0731-6755. 2. Gupta A. & Chaudhary L. (2020) Study on Rural Women empowerment Through Self Help Groups International Journal of Scientific Progress And Research Vol. 69, Issue 169, ISSN – 2349-4689 3. Kaur L., Sachan D. & Sulibhavinath A. (2017) – Women Empowerment through Self Help Groups : Case Study in Jalandhar District of Punjab. 4. International Journal of Bio-resource and Stress Management. 5. Mohanty A. & Mishra S.P. (2018) Self-Help Groups and women Empowerment – A Study of Khordha District in Odisha. International Journal of Engineering Research & Technology Vol. 7. Issue 06 ISSN – 2278-0181 6. Pangannavar A. Y. (2014). A Research Study on Development of Self Help Groups in Belgaum District PRAGATI Journal of Indian Economy. 7. Parthasarathy A. (2015) A Study on Origin And Growth of Self Help Groups In India. International Conference on Inter Disciplinary Research in Engineering and Technology. Vol.-1, ISBN-978-81-989742-5-5 8. Tigari H. & Aishwarya R. (2020) Self Help Groups : An Effective Approach towards Women Empowerment Shantax International Journal of Economics. Vol 8. 9. Ramanujam V. Homiga U. (2014) A. Study on the Performance of Self Help Groups In Mysore District. International Jaournal of Business and Administration Research Review Vol.-3, Issue 6 Impact Factor-0.314 ISSN-2348-0653 10. Sinha P. & Nawin N. (2021) – Performance of Self Help Groups in India. Economic and Political weekly Vol. LVI No. 5
अंत टिप्पणी
1.Census 2011
2.Ministry of Labour & Employment Report (2020-21) PP (112)
3. NFHS-5 Report
4.uohu dqekj & lkekftd ifjorZu esa Lo;a lgk;rk lewg dh Hkwfedk ist ua03
5. Self Help Groups (SHGs) in India (2014) Ethiopian Delegation New Delhi 9/8/2014 PP(2)
6. Bharat 2020 PP (482)
7.Zeebiz.com (ZEE BUSINESS) March 09, 2020
8.www.nrlm. gov.in