ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- VIII November  - 2022
Anthology The Research
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कृति यामा
Kriti Yama awarded with Jnanpith Award
Paper Id :  16703   Submission Date :  2022-11-18   Acceptance Date :  2022-11-22   Publication Date :  2022-11-25
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शम्भू लाल मीणा
एसोसिएट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
स्व.पी.एन.के.एस. गवर्नमेंट पी.जी. कॉलेज
दौसा ,राजस्थान, भारत
सारांश
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कृति 'यामा'- छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के बचपन की श्रेष्ठ साहित्यिक कृति है। इस कृति पर महादेवी वर्मा को साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार 1982 में मिला था। 'यामा' 'चार कविता संग्रह 'नीहार, रश्मि ,नीरजाऔर सांध्य गीत का संयुक्त रूप है। 'नीहार' का तात्पर्य कुहरे से है, जो धुंधले विषादपूर्ण वातावरण का प्रतीक है और 'रश्मि' का तात्पर्य किरण से है जो जीवन में उल्लास और प्रकाश का प्रतीक है। 'नीरजा' का तात्पर्य कमलिनी से है जो ताप सहती है और जीवन में खुशहाली लाती है और 'सांध्यगीत' का तात्पर्य संध्या के गीतों से है जो विश्राम की आशा लेकर आते हैं ।'यामा' संग्रह एक पुस्तक ही नहीं उसमें महादेवी का पूरा काव्य व्यक्तित्व है । महादेवी वर्मा का मानना है कि विरह में ही जीवन है, तृप्ति में नहीं। महादेवी वर्मा का साहित्य कला और भाव पक्ष की दृष्टि से समृद्ध है। उनकी अभिव्यक्ति में संवेदनात्मक तीव्रता और वेदना दिखाई पड़ती है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The Jnanpith Award-winning work 'Yama' - is the best literary work of the childhood of Chhayavadi poetess Mahadevi Verma. Mahadevi Verma received the highest Jnanpith award for literature on this work in 1982. 'Yama' is a combined form of 'four poetry collections' Nihar, Rashmi, Neerja and Sandhya Geet. 'Nihar' refers to the fog, which symbolizes the hazy gloomy atmosphere and 'Rashmi' refers to the ray which symbolizes the gaiety and light in life. 'Neerja' refers to Kamalini who bears the heat and brings happiness in life and 'Sandhyageet' refers to the evening songs that bring hope of rest. is personality. Mahadevi Verma believes that there is life in separation, not in satisfaction. Mahadevi Verma's literature is rich in terms of art and emotion. Sensational intensity and pain are visible in his expression.
मुख्य शब्द नीहार (कुहरा), रश्मि (किरण), नीरजा (कमलिनी), सांध्य गीत (संध्या के गीत), वाग्देवी (सरस्वती), आह्लाद (प्रेम और आनंद)।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Neehar (Fog), Rashmi (Kiran), Neerja (Kamalini), Sandhya Geet (Songs of the Evening), Vagdevi (Saraswati), Aahlad (Love and Bliss).
प्रस्तावना
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रसिद्ध कवयित्री है जिसे आधुनिक युग की मीरा के रूप में जाना जाता है। 'यामा' महादेवी वर्मा द्वारा रचित अद्भुत काव्य संग्रह है। हिंदी खड़ी बोली को कोमलता और मिठास के साथ अपनी रचनाओं में महादेवी जी ने प्रस्तुत किया है। कहते हैं जब अनुभूतियों का घड़ा भर जाता है तो कवि के हृदय से ऐसे उद्गार निकलते हैं जिन्हें वह कविता का रूप देता है। महादेवी वर्मा ने अपने मन में बसी इन्हीं अनुभूतियों को अपने काव्य में बड़ी मर्मस्पर्शी और गंभीरता से व्यक्त किया है। उनकी अभिव्यक्ति में संवेदनात्मक तीव्रता और वेदना स्पष्ट दिखाई पड़ती है। भारतीय साहित्य में अच्छी कृतियों को प्रोत्साहन देने के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाता है इसका लक्ष्य उपेक्षित ज्ञान को उद्घाटित करना, उत्तम साहित्य को पुरस्कृत करना और नूतन प्रतिभा को दिशा प्रदान करना होता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय भाषाओं में दिया जाने वाला सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है। इस सम्मान से साहित्यकार की प्रतिष्ठा बढ़ती है। ज्ञान पीठ की स्थापना 1944 में हुई व 1965 से पुरस्कार दिया जाता है। भारतीय भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ कृति के चयन के पश्चात~ पुरस्कार दिया जाता है। वर्तमान में ज्ञानपीठ पुरस्कार में 11 लाख की नकद राशि,कांस्य की 'वाग्देवी' की प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।
अध्ययन का उद्देश्य
'यामा' के माध्यम से लेखक महादेवी वर्मा के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालना चाहता है। इस लेख के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि महादेवी वर्मा ने 'यामा' कविता संग्रह में दिन के चार यामों के माध्यम से संपूर्ण जीवन चक्र को समझाने का प्रयास किया है। दिन के पहले याम 'नीरजा' (कुहरा) के माध्यम से जीवन के प्रारंभिक काल(बचपन) को समझाने का प्रयास किया है जो अंधकार और अज्ञान से युक्त होता है। इसके पश्चात् दिन के दूसरे याम ज्ञान रूपी 'रश्मि' के माध्यम से जीवन में उल्लास और प्रसन्नता आती है। दिन के तीसरे याम को 'नीरजा'(कमलिनी) के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। इससे जीवन में कठिनाई सहन करने की मानसिक क्षमता आती है। कवयित्री सुख-दु:ख, बंधन-मुक्ति, आंसू-वेदना, मिलन-विरह, आशा-निराशा में समन्वय करने को कहती है। दिन के चतुर्थ याम को 'सांध्यगीत' के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। जिसमें मनुष्य को जीवन के अंतिम चरण में विश्राम की आवश्यकता होती है। महादेवी वर्मा का मानना है कि विरह की पीड़ा में ही आनंद की अनुभूति है।
साहित्यावलोकन

महादेवी वर्मा से पूर्व 17 साहित्यकारों को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है, महादेवी वर्मा को 'यामा' संग्रह पर 27 अप्रैल 1982 को साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला।'यामा'में नीहार (1929), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936) इन चार कविता संग्रहों में 185 गीतों का संग्रह है । इसके अलावा  दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (1960), हिमालय (1963), संधिनी (1965), बंगदर्शन (1934 -1944)का संकलन आदि रचनाएं की है । इस 'यामा' काव्य  संकलन में महादेवी वर्मा का पूरा व्यक्तित्व समाहित है। इस संग्रह में महादेवी वर्मा अपनी बात में यह निश्चय नहीं कर पाई थी कि ये याम दिन के हैं अथवा रात के।  किंतु नाम क्रम और दीपशिखा के प्रकाशन से यह स्पष्ट हो गया है कि वे दिन के ही भाव है ।भाव की दृष्टि से यही सिद्ध होता है।'[1] 'नीहार' धुंधले विषादपूर्ण वातावरण का प्रतीक है और 'रश्मि' उल्लास और प्रकाश का प्रतीक है। 'नीरजा' ताप सहती है और 'संध्या' विश्राम की आशा लेकर आती है। 'निहार' में न तो साधना का मार्ग स्पष्ट हो पाया है न कवयित्री के भाव 'रश्मि' में आह्लाद, उल्लास और आशा के साथ ही हृदय के भाव स्पष्ट हो गए है। 'नीरजा' के गीतों में तीव्र स्नेह ताप है और 'सांध्यगीत' के साथ जटिल क्षणों में  विश्राम दायिनी स्निग्ध  शीतलता आ गई है ।'[2] 'यामा' संग्रह में संकलित कविताओं का परिचय निम्नानुसार है- (1)नीहार-यह 1930 में प्रकाशित 47 कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में महादेवी वर्मा ने प्रकृति चित्रण के साथ एक अज्ञात सत्ता की अनुभूति को व्यक्त किया है । विरह मिलन और करुणा के साथ-साथ राष्ट्रीय जागरण उनकी कविता में मिलता है ।उन्होंने अपने काव्य लोक में एक ऐसी अवस्था बनाई है जहां संघर्ष, कसक, विरह और विदग्धता है।[3] 'निहार 'की रचना महादेवी वर्मा के मिडिल कक्षा के अध्ययन के समय की है। श्रद्धेय टंडन जी की प्रेरणा से साहित्य भवन के मैनेजर ने इन्हें प्रकाशित करवाया था। महादेवी वर्मा कहती है "वह प्रथम प्रकाशन इतना शुभ हुआ कि तब से आज तक प्रकाशकों ने मुझे खोजा है। पर मैंने कभी प्रकाशक को नहीं खोजा।"[4] नीहार के भावों में दीपक की लौ की सजलता तथा सरिता के प्रभाव की शीतलता का अनुभव करते हैं। महादेवी वर्मा ने स्वयं कहा है- 'नीहार' के रचनाकाल में मेरी अनुभूतियों मे वैसी ही कौतुहल मिश्रित वेदना उमड़ आती थी जैसे बालक के मन में दूर दिखाई देने वाली अप्राप्त सुनहरी उषा और स्पर्श सजल मेघ के प्रथम दर्शन से उत्पन्न हो जाती है। "नीहार" धुंधले विषादपूर्ण कवयित्री का शिशु मन कोतुहल और जिज्ञासा से आछन्न है।5 महादेवी वर्मा के काव्य में प्रकृति के सब पदार्थ और रूप प्रेम अथवा करुणा की विविध भंगिमाओं के रूप में व्यक्त हुए हैं। सारी प्रकृति को महादेवी वर्मा प्रेरक मानती है। इसमें किसी मतवाद पर बल नहीं दिया है। इसमें जहां एक ओर प्रेम, आनंद, उल्लास, उन्माद है वहीं दूसरी ओर विषाद, अवसाद  आदि का जिक्र भी किया गया है। "नीहार" में हम महादेवी वर्मा की दुःख परक साधना का आरंभ देख सकते हैं। आत्म संयम का व्रत लिए उन्होंने जिस लौकिक प्रेम को ठुकरा कर पीड़ा को गले लगाया, वह कालांतर में आंतरिक शीतलता से कुछ कम हो गया। कवयित्री अपनी संपूर्ण सत्ता का विनाश करके भी आध्यात्मिक मिलन यथोचित समझती है।[6]

मुख्य पाठ

नीहार

'नीहारकी कविताएं उनके बाल मन का प्रयास है यह मूलत: अनुभूति प्रदान कृति है। इसमें चिंतन का कहीं भी दर्शन नहीं होता है। वह प्रकृति को प्रियतम मानती है तो कभी उसकी नश्वरता का उल्लेख करती है। महादेवी वर्मा का काव्य कला का विकास ही नहीं बल्कि ह्रदय की सच्चाई की झलक है इसलिए उनका काव्य अन्य छायावादी कवियों से अधिक आकर्षक है। नीहाररश्मिनीरजा और सांध्यगीत कृतियों का एक संकलन 'यामाके रूप में प्रचलित है। कवयित्री की रचना में दिवस क्रम को जीवन क्रम के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनकी 'यामाअपना सार्थक रहस्य रखती है। शाब्दिक अर्थ में 'यामाका तात्पर्य रात्रि है। कवयित्री का कहना है "यामा" में मेरे अंतर् जगत के चार यामों का छायाचित्र है। ये याम दिन के या रात केयह कहना मेरे लिए असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। यदि ये दिन के हैं तो इन्होंने अंधकार में मेरे विश्वास को खोने नहीं दिया। अत:मेरे निकट इनका मूल्य समान है और समान ही रहेगा।"[8] "यामा" एक पुस्तक संग्रह ही नहीं उसमें महादेवी वर्मा का पूरा काव्य व्यक्तित्व है। नीहार में प्रतीकात्मक रूप के अनुरूप ही एक धूमिल विषादपूर्ण वातावरण की सृष्टि लोक आह्वान है। डॉ .विमल कुमार के शब्दों में- "नीहार" से तात्पर्य कुहरे से है, 'रश्मिसे किरण, 'नीरजासे कमलिनी और 'सांध्यगीतसे संध्या के गीत है।"[9] 'नीहारकी रचनाओं में महादेवी की वैराग्य भावना व्यक्त होती है। वे संसार को त्याग कर असीम की शरण लेती है। उसे प्रियतम मानकर उससे अपना अटूट संबंध जोड़ लेती है।

रश्मि

'रश्मिकी अधिकांश रचनाओं में ईश्वरजीव और प्रकृति का संबंध बताते हुए अद्वैत की पूर्णत: प्रतिष्ठा की गई है। यह उनकी प्रौढ़ कृति है।इसका प्रकाशन सन 1932 में  हुआ था। इसमें 35 गीत है ।इसे वेदना प्रधान काव्य कहा जा सकता है। चिंतन की अधिकता के कारण रश्मि में दार्शनिकता आ गयी है ।जैसे -"मेरे छोटे जीवन में ,देना न तृपि्त का कर्ण भर रहने दो प्यासी आंखें ,भरती आं¡सू के सागर ।"[10'रश्मि'के विषय में स्वयं कवयित्री ने  लिखा है कि- "रश्मि को उस समय आकार मिला जब मुझे अनुभूति से अधिक उसका चिंतन प्रिय था ।"[11] महादेवी ने मीरा के प्रेमकृष्ण के संगीत तथा बुद्ध की करुणा को अपने जीवन में स्वीकार किया। 'रश्मि'काव्य पर उपनिषद, वेदांत और बौद्ध दर्शन का भाव परिलक्षित होता है ।प्रकृति उनकी जीवन सहचरी है ।उन्होंने प्रकृति के विभिन्न उपकरणों से ही एक-एक सरल संसार का निर्माण किया है जो शाश्वत है।'[12] 'रश्मि 'के आगमन से तितलियों में नई स्फूर्ति जागी हैऔर कवयित्री के हृदय को एक नवीन चेतना मिली है।'[13] वे कहती हैं-

  "अमरता है जीवन का हास    

मृत्यु जीवन का चरम विकास।"[14]

रश्मिमें  वे मृत्यु का अभिनंदन करती है ,मृत्यु में जीवन का विकास देखती है। 'रश्मिकी कविताओं पर उपनिषद और गीता के सर्ववादी दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है। रहस्यात्मकता एवं वेदनानुभूति उनके काव्य में देखने को मिलती है ।इस काव्य में निराशावादी मन:स्थिति नहीं है। इसमें सामूहिक चेतना की भी उद् भावना है। गीति तत्वों के आधार पर 'रश्मिउनकी उत्कृष्ट काव्य  कृति है।"[15]

नीरजा

इस कृति में रसानुभूति के उत्कर्ष के साथ अभिव्यंजना का विकास भी हुआ है। सुख और दु:ख दोनों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना ही जीवन है। इस कविता में वे दीपक की भांति जलने में ही जीवन की सार्थकता का अनुभव करती है। 'नीरजामें महादेवी वर्मा का हृदय अत्यंत उदार और व्यापक हो जाता है। उनका मन प्राणियों के दु:ख निवारण के लिए मचल उठता है। उनकी विचारधारा स्व से पर की ओर अग्रसर होती है। कवयित्री कहती है-

"तुम मुझमें प्रियफिर परिचय क्या

तेरा मुख सहास अरुणोदय

परछाई रजनी विषादमय

यह जागृति वह नींद स्वपनमय।"[16]

उपनिषद में परमात्मा के बारे में कहा गया है- "वह दूर भी है निकट भीमूर्त भी है अमूर्त भीहस्व भी है दीर्घ भीसगुण भी है निर्गुण भी।" महादेवी के काव्य में भी यह सब बातें देखने को मिलती है। महादेवी के काव्य में विरह मिलन और आत्म समर्पण का द्वन्द्व देखा जा सकता है। इस काव्य में उन्होंने रहस्यवाद के साथ-साथ प्रयत्नवाद का भी परिचय दिया है। रहस्यवाद के अनुसार सांसारिक जीवन चरम लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक है। महादेवी जी वैरागी थी और उनका वैराग्य विलक्षण हैवे दुःख को सहर्ष स्वीकार करती है, 'नीरजामें आकर ही पूजा अर्चना के प्रति उनका भाव व्यक्त होता है।

'नीरजामहादेवी की प्रौढ़ कृति है। आत्मा का परमात्मा के प्रति आकुल प्रणय निवेदन नीरजा में लक्षित होता है। डॉ. विजेंद्र स्नातक के शब्दों में "स्वानुभूति के उत्कर्ष के साथ-साथ अभिव्यंजना का क्रमिक विकास नीरजा में स्पष्ट परिलक्षित होता है कल्पना का प्राधान्य अब क्षीणतर होकर चिंतन और अनुभूति के रूप में परिवर्तित हो गया है।"[17] 'नीरजाकी प्रमुख प्रवृत्ति सुख-दुख के समन्वय की है। 'नीरजाकाव्य कौशल की विविधता लिए है। इसमें लोकगीतों और उर्दू शैली के रूपांतर के साथ गीति शैली की अद्भुत सफलता है। छंदलयतालसंगीतध्वनि की दृष्टि से 'नीरजाछायावादी युग की सब विशेषताओं को समेटे हैं। 'नीरजामें कवयित्री ध्वंस को निर्माण और जलने को शुभ का कारण मानने लगी है।जैसे-                   

"जलना ही प्रकाश उसमें सुख

बुझना ही तम है तम में दुःख

तुझ में चिर दुःख मुझ में चिर सुख

कैसे होगा प्यार

ओ पागल संसार।"[18]

सांध्यगीत

1934 से 1936 तक महादेवी वर्मा ने 'सांध्यगीतकाव्य संग्रह की रचना की। इसमें उन्होंने विषादमय गौरव अर्थात सुख-दुःखध्वंस- निर्माण और बंधन -मुक्ति जैसे परस्पर विरोधी तत्त्वों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। कवयित्री ने 'सांध्यगीतके प्रतिपाद्य के लिए कहा है -

"आज चलें सुख-दुख विग्रह,

तम पौंछ रहा मेरा अग- जग,

छिप चला आज वह चित्रित मग

उतरा अब पलकों में पाहुन

प्रिय सांध्य गगन मेरा जीवन।"

साधना की परिपक्वता भी 'सांध्यगीतमें यत्र तत्र देखने को मिल जाती है। साधनात्मक संकल्प की यह दृढ़ता आधुनिक काव्य में किसी भी रहस्यवादी कवि में नहीं पाई जाती। सारी प्रकृति सारे विश्व के सो जाने पर अपने प्रिय को निहारती है और उनका ह्रदय कह उठता है -

"मैं क्षितिज भृकुटी पर घिर

धूमिल चिंता का भार बनी

अविरल  रज कण पर

जल कण हो बरसी

नव जीवन अंकुर बन निकली।

मैं नीर भरी दुख की बदली।"[19]

'सांध्यगीतविरह काव्य है,इस विरह मिलन में विरह की घड़ियां मधु से रिक्त जान पड़ती है। महादेवी वर्मा का कथन है कि- "विरह में ही जीवन है तृप्ति में नहीं।" सांध्य गीत के गीत महत्त्वपूर्ण है। भावाभिव्यक्ति का प्राधान्य होते हुए भी कला पक्ष अत्यंत समृद बन पड़ा है ।इन गीतों ने हिंदी कविता को वह लोक साहित्य प्रदान किया हैजिससे वह संगीतमय हो उठा है। "सांध्यगीत" में उनकी साधना की गहराई और मंथन का परिचय प्राप्त होता है । सांध्यगीत महादेवी की अब तक की रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ कृति है।'[20]

निष्कर्ष
महादेवी वर्मा का मानना है कि विरह में ही जीवन है तृप्ति में नहीं । महादेवी वर्मा का साहित्य कला और भाव पक्ष की दृष्टि से समृद्ध है। उनकी अभिव्यक्ति में संवेदनात्मक तीव्रता और वेदना दिखाई पड़ती है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डॉ. कृष्ण देव शर्मा, डॉ. माया अग्रवाल- 'यामा' एक विवेचन पृ. 26 2. वही पृष्ठ 26 3. महादेवी वर्मा 'नीहार' पृष्ठ 5 4. महादेवी वर्मा 'यामा' अपनी बात पृष्ठ VII,VIII 5. डॉ.कृष्ण देव शर्मा ,डॉ.माया अग्रवाल -यामा एक विवेचन पृ.1920 6. महादेवी वर्मा -'यामा' पृ.19,43 7. डॉ.कृष्ण देव शर्मा, डॉ.माया अग्रवाल -यामा एक विवेचन पृष्ठ 20 -21 8. वही -पृष्ठ 26 9. वही -पृष्ठ 27 10. वही- पृष्ठ 21 11. महादेवी वर्मा- 'यामा' पृष्ठ 83,96 12. डॉ. कृष्ण देव शर्मा, डॉ.माया अग्रवाल- यामा एक विवेचन पृष्ठ 83 13. वही- पृष्ठ 21 14. वही- पृष्ठ 22 15. गंगा प्रसाद पांडे -महयसी महादेवी पृष्ठ 258 16. महादेवी वर्मा- 'यामा' पृष्ठ 133 17. डॉ.कृष्ण देव शर्मा, डॉ माया अग्रवाल -यामा एक विवेचन पृष्ठ 22 18. वही- पृष्ठ 22 19. वही- पृष्ठ 23 20. वही -पृष्ठ 23 -24