P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- VI February  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी की टोंस घाटी में महिलाओं के पारम्परिक परिधानों का अध्ययन
Study of Traditional Clothes of Women in Tons Valley of Uttarkashi District of Uttarakhand
Paper Id :  15827   Submission Date :  17/02/2022   Acceptance Date :  21/02/2022   Publication Date :  25/02/2022
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मधु शर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर एण्ड हैड
गृह विज्ञान
श्री गुरू राम राय विश्वविद्यालय,
,देहरादून, उत्तराखण्ड, भारत
रेवती राणा
रिसर्चर
गृह विज्ञान
श्री गुरू राम राय विश्वविद्यालय,
देहरादून, उत्तराखण्ड, भारत
सारांश प्रस्तुत शोध में ‘‘उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी की टोंस घाटी में महिलाओं के पारपंरिक परिधानों का अध्ययन किया गया है। न्यादर्श के रूप में जनपद उत्तरकाशी, टोंस घाटी की 50 महिलाओं को लिया गया है, शोधकत्र्ता ने अपने इस शोध कार्य में वर्णनात्मक सर्वेक्षण तथा साक्षात्कार विधि का प्रयोग किया है। हिमालय क्षेत्र में बसी टोंस घाटी के लोग भेड़, बकरी पालन का काम करते हैं। यहाँ लोग भेड़ की ऊन को निकालकर उससे वस्त्र बुनकर पहनते हैं। भेड़ की ऊन के वस्त्र पहनने का एक मात्र कारण यह है कि यहाँ वर्ष के ज्यादातर महीनों में बर्फ गिरती है। जिसके कारण यहाँ अत्यधिक ठण्ड होती है। यहाँ लोगों को ठण्ड से बचने के लिए भेड़ की ऊन से बने वस्त्र ज्यादा गरम लगते है, परम्परागत रूप से यहाँ की महिलाएँ फज्जी, सुतणी, तन्टी, लौकटी, पच्यूड़ी, ढ़ाँटूली, ढाँटूला आदि वस्त्र पहनती है। टोंस घाटी के लोग इन वस्त्रों की कताई, बुनाई, रंगाई तथा ड़िजाइनिंग अपने आप ही करते हैं। इस कारण इन्हें बाहर से वस्त्र खरीद कर नहीं लाने पड़ते जिससे इनको अप्रत्यक्ष आय प्राप्त होती है। आज के बदलते परिवेश में भी यहाँ के लोग अभी तक अपने हाथ से बनाए पारपंरिक वस्त्र ही पहनते है, टोंस घाटी में अभी तक पारपंरिक वस्त्र पहनने की परम्परा देखने को मिलती है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the present research, “Traditional clothing of women in Tons valley of Uttarkashi district of Uttarakhand has been studied. As a sample, 50 women of Uttarkashi district, Tons Valley have been taken, the researcher has used descriptive survey and interview method in this research work. The people of Tons Valley in the Himalayan region do sheep and goat rearing. Here people take out the wool of sheep and weave clothes out of it. The only reason to wear sheep's wool clothing is because it snows here for most months of the year. Due to which it is extremely cold here. People here find clothes made of sheep's wool more warm to avoid the cold, traditionally the women here wear clothes like fuzzy, sutni, tanti, gourd, pachudi, dhantuli, dhantula etc. The people of Tons Valley do the spinning, weaving, dyeing and designing of these fabrics on their own. Because of this, they do not have to buy clothes from outside, due to which they get indirect income.
Even in today's changing environment, people here still wear traditional clothes made by their own hands, the tradition of wearing traditional clothes is still seen in Tons Valley.
मुख्य शब्द टोंस घाटी की महिलाओं के पारपंरिक परिधान - फज्जी, सुतणी, तन्टी, लौकटी, पच्यूड़ी, ढ़ाँटूली, ढ़ाँटूला।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद The traditional clothes of the women of Tons Valley - Fajji, Sutni, Tanti, Laukti, Pachudi, Dhantuli, Dhandula.
प्रस्तावना
सुपिन नदी तथा रूपिन नदी के तट पर बसा है यहाँ के अधिकांश भौगोलिक भाग वर्ष के अधिक माहों में बर्फ से ढके रहते है। आज के युग में भी यह क्षेत्र बाहरी लोगों से अनछुआ है यहाँ फूलों की घाटियाँ, मखमली, बुग्याल, पुष्पीय पादप अमूल्य जड़ी -बुटियाँ, देवदार, केदारपात्री के वृक्ष है। सुगन्धित पुष्पों की महकती खुशबू से यहाँ नर-नारियां सुन्दर पुष्प के समान खिले हुए दिख्उत्तराखण्ड की भूमि देवभूमि के नाम से जानी जाती है यहाँ के कण-कण में भगवान का वास माना जाता है। उत्तराखण्ड के दूरस्थ क्षेत्र में जनपद उत्तरकाशी के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में बसा टोंस घाटी का क्षेत्र है। यह क्षेत्र उत्तरकाशी बंदरपूंछ पर्वत की उत्तरी ढाल पर स्वर्गरोहिनी ग्लेशियर से निकलने वाली दिखाई देते हैं। टोंस घाटी क्षेत्र में लोग काफी परिश्रमी तथा अपने कर्म पर विश्वास करने वाले हैं। यहाँं के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन है। यहाँ लोग रबी तथा खरीफ दो प्रकार की फसलें उगाते हैं ये लोग ज्यादातर आलू, मटर, टमाटर, राजमा, लाल चावल, चैलाई मडुवा, अखरोट जैसी प्रमुख नगदी फसलों का उत्पादन करते हैं, इसके अलावा यहाँ के अधिकतम क्षेत्रों में सेब के बड़े-बड़े बगीचे भी पाये जाते हैं, यहाँ के लोगों का पारम्परिक व्यवसाय भेड़ पालन हैं। यहाँ आदिकाल से भेड़ तथा बकरियां ही इनकी आर्थिकी का मुख्य आधार रही हैं। यहाँ के लोग भेड़ व बकरियों का प्रयोग ऊनी वस्त्रों को बनाने में भी करते हैं, क्योंकि यहाँ के क्षेत्र में अधिकांश माहों में बर्फ पड़ती है, इसलिए यहाँ ऊनी वस्त्र अत्यधिक ठंड रोकने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं। यहाँ के लोग ऊन से बने वस्त्रों को विभिन्न प्रकार के डिजाइन देकर पौराणिक मेले, जागरे में भी पहनते हैं इन ऊनी वस्त्रों को महिलाएँ व पुरूष स्वयं अपने हाथों से बनाते हैं। जैसे कि कहा गया है, कि व्यक्ति के परिधान उसकी सामाजिक संस्कृति, आचार व्यवहार का आईना होते हैं। टोंस घाटी के लोग भी अपनी संस्कृति को बनाए रखने के लिए विशेष प्रकार की परम्परा से जुड़े होने के कारण पारपंरिक वस्त्रों को पहनते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य 1. उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी के टोंस घाटी की महिलाओं के पारम्परिक परिधानों के बारे में जानना। 2. यह जानना कि पारपंरिक परिधानों के निर्माण से यहाँ के लोगों की आय पर क्या असर पड़ रहा है। 3. यह जानना कि आज की पीढी यहाँ के पारंपरिक परिधानों को पहनने के बारे में क्या विचार रखती है।
साहित्यावलोकन
एक भारत श्रेष्ठ भारत दूरदर्शन देहरादून, त्रिपाठी प्रियंका एण्ड यशराज विनायक (2018), एमरजन्सी ऑफ कॅलचरल एण्ड फैशन यूनिकनेस फ्रोम बिहार (इंडिया) रूटेड इन इट्स डिसटिनक्टिव रिजनल बैकग्राउण्ड, अमेरिकन जरनल ऑफ आर्ट डिजाइन, वाल्यूम 3 पृष्ठ सं 26-32।
मुख्य पाठ

शोध विधि एवं प्रक्रिया 

1. शोध विधि - प्रस्तुत शोध कार्य में शोधकर्ता द्वारा वर्णनात्मक सर्वेक्षण विधि एवं व्यक्तिगत साक्षात्कार पद्धति का प्रयोग किया गया है आँकड़ो का एकत्रीकरण करने के लिए शोधकर्ता ने प्राथमिक  स्रोत तथा द्वितीयक स्रोत का प्रयोग किया है, द्वितीयक  स्रोत के अन्तर्गत - इंटरनेट प्रकाशित पुस्तकें , समाचार पत्र इत्यादि सम्मिलित है। 

2. अघ्ययन क्षेत्र - प्रस्तुत शोध में उत्तराखड़ के जनपद उत्तरकाशी की टोंस घाटी से 50 महिलाओं को लिया गया है जो विभिन्न गांवों जैसे- बैनोल, नैटवाड़, पांवतल्ला , पांव उपला, सुनकुंडी, जखोल, सिदरी, सौड़ सांकरी, फिताड़ी, लिवाडी, कासला, ओसला आदि में वास करती है। 

3. न्यादर्श का चयन - प्रस्तुत शोध कार्य में शोधकर्ता ने यादृच्छिकी न्यादर्श विधि के माध्यम से आँकड़ों का एकत्रीकरण किया है शोधकर्ता ने उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी में टोंस घाटी की महिलाओं के पारपंरिक परिधानों के अध्ययन हेतु लाॅटरी विधि का प्रयोग किया है इस विधि के अन्तर्गत टोंस घाटी में स्थित ग्रामीण क्षेत्र से सबसे पहले 100 महिलाओं को लिया गया तत्पश्चात 50 महिलाओं को लॉटरी डालकर चयनित किया गया प्रस्तुत शोध में 35 वर्ष से 85 वर्ष तक की उम्र की महिलाओं को सम्मिलित किया गया हैं। 

परिणाम और चर्चा

महिलाओं के पारपंरिक परिधान  

1. कमर के ऊपरी हिस्से में पहने जाने वाले वस्त्र 

यह परिधान वह परिधान होते है जो कमर के ऊपरी हिस्से में पहने जाते हंै यह परिधान इस प्रकार से हैं। 

फज्जी- फज्जी महिलाओं की कमर के ऊपरी हिस्से में पहने जाने वाला वस्त्र होता है, यह भेड़ की ऊन से बना होता है इसमें कॉलर वाले गले का इस्तेमाल किया जाता है यह अलग-अलग रंगों में बनाया जाता है जैसे - काला, सफेद, भूरा और स्लेटी आदि, टोंस घाटी में ज्यादातर ठण्ड रहती है इसलिए यह वस्त्र काफी प्रयोग में लाया जाता है फज्जी बनाने के लिए भेड़ के ऊन की छंटाई, कताई, बुनाई यहाँ की स्थानीय महिलाएँ व पुरूष अपने आप ही करते हैं। 

भूरा, स्लेटी, काला, सफेद फज्जी का छाया चित्र

विश्लेषण - उपर्युक्त तालिका सं 1 के अनुसार 60% महिलाओं का कहना है कि वह काले रंग की फज्जी पहनना ज्यादा पसंद करती हैं। जबकि 20%  महिलाओं ने कहा कि उन्हें सफेद रंग की फज्जी पहनना पसन्द है शेष 20%  महिलाओं ने कहा कि वे भूरे रंग की फज्जी पहनना पसन्द करती है।

परिणाम - उपरोक्त परिणाम के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि ट्रोंस घाटी की महिलाएँ ज्यादातर काले रंग की फज्जी पहनना पसन्द करती है।

2. कमर के निचले हिस्से में पहने जाने वाले वस्त्र- कमर के निचले हिस्से में पहने जाने वाले वस्त्र निम्मलिखित है।

1. सुतणी - यह वस्त्र महिलाओं के कमर के निचले हिस्से में पहना जाता है। यह चुड़ीदार पायजामें के आकार का होता है। यहाँ की स्थानीय भाषा में इस पायजामें को सुतणी कहा जाता है। यह 2-3 मी0 कपड़े का बना हुआ होता है यह भेड़ की ऊन से बनाया जाता है तथा यह रंग-बिरंगे जैसे लाल, पीला, नारंगी, हरा, काला आदि धागों को साथ में डिजाईनिंग करके भी बनाया जाता है कभी-कभी यह काले रंग में भी बनाया जाता है। यहाँ महिलाएँ काले रंग की सुतणी से ज्यादा रंग-बिरंगी सुतणी पहनना पसन्द करती है।

महिलाओं की रंगबिरंगी व काली सुतणी का छाया चित्र

विश्लेषण- उपर्युक्त  तालिका सं0 2 के अनुसार 40% महिलाओं का कहना है कि वे सुतणी को बनाने के लिए भेड़ की ऊन का प्रयोग करती है जबकि 60% महिलओं ने कहा कि वे साधारण रंग-बिरंगे धागों से सुतणी बनाते हैं।

परिणाम - उपरोक्त परिणाम के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि ज्यादातर महिलाएं साधारण रंग-बिरंगे धागों से सुतणी बनाई जाती है।

3 कमर में बांधने वाला वस्त्र-यह वस्त्र वह होता है जिसे महिलाएँ अपनी कमर में बांधने के लिए प्रयोग में लाती है, यह वस्त्र दो प्रकार होते हैं। तन्टी, लौकटी।

1- तन्टी - तन्टी कमर में बाँधने वाला वस्त्र होता है इसकी लम्बाई 4 मी0 तक की होती है तथा चैड़ाई 5 इंच तक होती है यह लाल, पीला, काला, नांरगी, हरा आदि रंगों को मिलाकर बनाई जाती है। इसमें एक विशेष प्रकार से डिजाइनिंग की जाती है। इस डिजाइन को यहाँ के लोग स्थानीय भाषा में (चैलकुड़ी) के नाम से जानते हैं। चैलकुड़ी का अर्थ होता है - चिड़िया अर्थात् उड़ती हुई चिड़िया की आकृति को बनाया जाता है, तन्टी को पहनने का कारण यह है कि टोंस घाटी में अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र है जिससे यहाँ खेती का काम ज्यादा होता है जिस कारण से कमर में ज्यादा दबाव पड़ता है, तो इस दबाव को रोकने के लिए कमर में तन्टी को पहना जाता है।

2-लौकटी- लौकटी भी कमर में बंाधने वाला वस्त्र है लेकिन लौकटी को महिलाएँ (पच्यूड़ी - जो कि कमर के पिछले हिस्से में पहनने वाला वस्त्र होता है) पच्यूड़ी को पहनते समय लौकटी का प्रयोग किया जाता है। लौकटी की डिजाइनिंग तन्टी से अलग होती है लौकटी की लम्बाई 9-10 मी0 तक होती है इसकी चैड़ाई आधा इंच होती है। लौकटी को यहाँ महिलाएं अपनी पसन्द के अनुसार अपने आप बुनकर पहनती है।

महिलाओं की तन्टी एवं लौकटी का छाया चित्र

विश्लेषण- उपर्युक्त तालिका सं 3 के अनुसार 80% महिलाओं ने कहा है कि वे कमर में बांधने के लिए तन्टी का प्रयोग ज्यादा करती है जबकि मात्र 20% महिलाओं का कहना है कि वे लौकटी का प्रयोग करती है। 

परिणाम- उपरोक्त तालिका के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि यहाँ महिलाएँ कमर में बाँधनें के लिए लौकटी से ज्यादा तन्टी का प्रयोग करती है। 

कमर के पिछले हिस्से में पहने जाने वाला वस्त्र

1 पच्यूड़ी - टोंस घाटी की महिलाएँ कमर के पिछले हिस्से में जो वस्त्र पहनती है उसे पच्यूड़ी कहते हैं। यह भी भेड़ के ऊन से बनाई जाती है यह या तो काली या सफेद या फिर काला, सफेद दोनों रंग के बाॅक्स वाली होती है इसकी लंबाई 3 मीटर तथा चैड़ाई 1 मीटर होती है। इसमें डिजाइनिंग भी की जाती है। स्थानीय भाषा में इस डिजाइन को बुटा धारी डिजाइन कहते हैं। यहाँ की महिलाएँ बुटाधारी डिजाइन को खुद ही बनाती है यह दिखने में भी बहुत सुन्दर होती है। 

साधारण डिजाइन पच्यूडी  बूटाधारी डिजाइन पच्यूड़ी   काली रंग की पच्यूड़ी  

विश्लेषण- उपर्युक्त तालिका सं 4 के अनुसार यह पाया गया है कि 60% महिलाएँ बुटाधारी डिजाइन से बनी पच्यूड़ी ज्यादा पसन्द करती हैं जबकि 40% महिलाओं ने कहा कि वे साधारण डिजाइन की पच्यूड़ी पहनना पसन्द करती हैं। 

परिणाम - उपरोक्त तालिका के आधार पर हम यह कह सकते है कि बुटाधारी डिजाइन से बनी पच्यूड़ी को ज्यादातर महिलाएँ पहनना पसन्द करती हैं। 

सिर पर लपेटे जाने वाला वस्त्र - ये वे वस्त्र होते हैं जिन्हें सिर पर लपेटा जाता है ये दो प्रकार के होते हैं । ढ़ाँटूला, ढ़ाँटूली

1. ढ़ाँटूला- यह सिर में बांधने वाला वस्त्र होता है। जिसका रंग काला होता है यह वस्त्र 1 से 2 मीटर तक का होता है तथा इसके चारों किनारों में लाल, पीले रंग की लेस लगाई जाती है जिससे यह काफी सुन्दर दिखाई देता है। टोंस घाटी की महिलाएँ ढ़ाँटूला का प्र्रयोग आज से 40-50 वर्ष पहले ज्यादा किया करती थी, लेकिन अब यह वस्त्र कम पहना जाता है इसका कारण यह है कि यह काफी भारी होता है जिससे महिलाएँ अपने रोजमर्रा के पहनावे में इसे पहन पाती, लेकिन यहाँ पारपंरिक मेले, जागरे आदि में जरूर पहनती है।  

ढ़ाँटूला का छायाचित्र

ढाँटूली का छाया चित्र

विश्लेषण - उपर्युक्त तालिका संख्या 5 के अनुसार मात्र 10% महिलाओं ने कहा कि परिधान के स्वनिर्माण से उन्हें आय प्राप्त होती है जबकि 90% महिलाओं का कहना है कि उन्हें परिधान स्वनिर्माण से कोई प्रत्यक्ष आय प्राप्त नहीं होती है। 

परिणाम - उपरोक्त तालिका के अनुसार हमारा यह कहना है कि ज्यादातर महिलाओं को परिधान स्वनिर्माण से किसी भी तरह की प्रत्यक्ष आय प्राप्त नहीं होती है।               

बुनाई करते हुए महिला का छायाचित्र

विश्लेषण - उपर्युक्त तालिका सं 6 के अनुसार 10% महिलाओं ने कहा कि उन्हें परिधान स्वनिर्माण से प्रत्यक्ष आय प्राप्त होती है क्योंकि वे इन वस्त्रों को बनाकर बेचती भी है। शेष 90% महिलाओं का कहना है कि स्वनिर्मित वस्त्रों से उन्हें किसी भी प्रकार की प्रत्यक्ष आय नहीं होती, लेकिन उन्हें अपने लिए कपड़े बाहर से खरीदने नहीं पड़ते।  

परिणाम - उपरोक्त तालिका के आधार पर हमारा यह कहना है कि ज्यादातर महिलाएँ स्वनिर्मित परिधानों को बेचती नही है। जिससे उन्हें प्रत्यक्ष आय प्राप्त नहीं होती है किन्तु उन्हें अपने लिए बाहर से भी कपड़े खरीदकर नहीं लाने पड़ते है। जिससे उन्हें अप्रत्यक्ष आय प्राप्त होती है।  

विश्लेषण- उपर्युक्त तालिका संख्या 7 के अनुसार हमने यह पाया कि 90% महिलाओं का कहना है कि वे अभी भी पारपंरिक  परिधानों को पहनना पसन्द करती हैं शेष 10% महिलाओं ने कहा वे इन परिधानों को ज्यादा नहीं पहनती हैं। 

परिणाम- उपरोक्त तालिका के आधार पर हमारा यह कहना है कि ज्यादातर आज की पीढी भी यहाँ के पारपंरिक परिधानों को पहनना पसन्द कर रही है। 

आज की नई पीढ़ी द्वारा पहने जाने वाले पारम्परिक परिधानों का छायाचित्र

यह शोध भारतीय सांस्कृतिक रूप से समृद्ध टोंस घाटी की महिलाओं के पारपंरिक परिधानों को लोगों तक पहुँचाने का एक सार्थक प्रयास है जिसमें व्यक्तिगत साक्षात्कार पद्धति का प्रयोग कर यह पाया गया कि टोंस घाटी में महिलाएँ भेड़ के ऊन से बने वस्त्र पहनती हैं। कमर के ऊपरी हिस्से वाले भाग में पहने जाने वाले वस्त्र को फज्जी कहते है। कमर के निचले हिस्से में महिलाएँ सुतणी पहनती है एवं कमर को बांधने के लिए तन्टी व लौकटी का प्रयोग करती हैं। कमर के पिछले हिस्से में पच्यूड़ी को पहनती हैं। इसके अलावा सिर पर ढाँटूला व ढाँटूली का प्रयोग किया जाता है। हमने यहाँ की परम्परा में ज्यादा बदलाव नहीं देखा। आज भी यहाँ की महिलाएँ पारंपरिक परिधानों को स्वयं बनाती है जिससे इन्हें अपने लिए वस्त्र बाहर से नहीं खरीदने पड़ते इन परिधानों को आज भी महिलाएँ पहनना पसन्द करती है। 

निष्कर्ष यह शोध भारतीय सांस्कृतिक रूप से समृद्ध टोंस घाटी की महिलाओं के पारपंरिक परिधानों को लोगों तक पहुँचाने का एक सार्थक प्रयास है जिसमें व्यक्तिगत साक्षात्कार पद्धति का प्रयोग कर यह पाया गया कि टोंस घाटी में महिलाएँ भेड़ के ऊन से बने वस्त्र पहनती हैं। कमर के ऊपरी हिस्से वाले भाग में पहने जाने वाले वस्त्र को फज्जी कहते है। कमर के निचले हिस्से में महिलाएँ सुतणी पहनती है एवं कमर को बांधने के लिए तन्टी व लौकटी का प्रयोग करती हैं। कमर के पिछले हिस्से में पच्यूड़ी को पहनती हैं। इसके अलावा सिर पर ढाँटूला व ढाँटूली का प्रयोग किया जाता है। हमने यहाँ की परम्परा में ज्यादा बदलाव नहीं देखा। आज भी यहाँ की महिलाएँ पारंपरिक परिधानों को स्वयं बनाती है जिससे इन्हें अपने लिए वस्त्र बाहर से नहीं खरीदने पड़ते इन परिधानों को आज भी महिलाएँ पहनना पसन्द करती है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. एक भारत श्रेष्ठ भारत दूरदर्शन देहरादून 2. त्रिपाठी प्रियंका एण्ड यशराज विनायक (2018), एमरजन्सी ऑफ कॅलचरल एण्ड फैशन यूनिकनेस फ्रोम बिहार (इंडिया) रूटेड इन इट्स डिसटिनक्टिव रिजनल बैकग्राउण्ड, अमेरिकन जरनल ऑफ आर्ट डिजाइन, वाल्यूम 3 पृष्ठ सं 26-32। 3. रानी अनिता एण्ड भट्ट पूजा (2015), अ स्टडी ऑन द ट्रेडिशनल, काॅस्ट्यूम ऑफ रोंगपा ट्राइब ऑफ उत्तराखण्ड, इन्टरनेश्नल जरनल ऑफ हयूमैनिटिज एण्ड सोशल सांइसेस, वाल्यूम-4 पृष्ठ सं 61-70 4. सिंह गिरधर नेगी (2014), हिमालय के महासू उपासकों की अनूठी संस्कृति, मल्लिका बुक्स प्रकाशन, 348 मेन रोड़, सन्त नगर, बुराड़ी दिल्ली पृष्ठ सं 39-103 5. सौरभ एण्ड शहनाज जहाँ (2015), इफैक्ट ऑफ सोशल चेन्ज प्रोेसेस ऑन ट्रैडिश्नल काॅस्ट्यूम एण्ड टेक्सटाइल, ए स्ट्डी इन उत्तराखण्ड, एशियन रिजाॅनैन्स, वाॅल्यूम पअ - पृष्ठ सं - 199-205। 6. Rana, M (2013) Uttarakhand ki Jan Jati. Chocha-Marcha. Vinsar Publishing Company, Dehradun, India.