ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VI , ISSUE- XII March  - 2022
Anthology The Research
पंचायतों में महिलाओं की सहभागिता
Participation of Women in Panchayats
Paper Id :  15809   Submission Date :  12/03/2022   Acceptance Date :  18/03/2022   Publication Date :  25/03/2022
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आरती गहरवार
एसोसिएट प्रोफेसर
राजनीतिक विज्ञान विभाग
टीकाराम कन्या महाविद्यालय
अलीगढ़,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश पंचायती राज व्यवस्था लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की दिशा में उठाया गया एक कदम है। भारत देश में संविधान के 73वें संशोधन के द्वारा लागू त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था अवसरों की समानता तथा सत्ता के विकेन्द्रीकरण के महात्मा गाँधी के सपने को साकार करने का ठोस प्रयास है। इसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतक भेदभाव को मिटाकर समाज के सभी वर्गो की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए समुचित प्रावधान किए गए है। यह व्यवस्था अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं और समाज के हाशिए पर खडे़ अन्य सभी समुदायोंके सशक्तीकरण में अत्यधिक सहायक सिद्ध हो रही है। पंचायतो में महिलाओ के आरक्षण की व्यवस्था के परिणामस्वरुप उन्हें व्यापक प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ हैऔर इससे ग्रामीण समाज में बदलाव आया है। महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण न केवल महिलाओं के विकास के लिए आवश्यक है अपितु उनकी रचनात्मक क्षमता की सुलभता सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है और इसके बिना देश विकास की उम्मीद नहीं कर सकता। पंचायतीराज में महिलायें राजनीतिक कार्यों में सहभागिता कर रही है।महिलाओं की बढ़ती भागीदारी न केवल महिलाओं के खुद के स्वाभिमान के लिए सकारात्मक संदेश है बल्कि इससे भारत के गांवों में फैली सामाजिक असमानता भी दूर होगी।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Panchayati Raj system is a step towards democratic decentralization. The three-tier Panchayati Raj system implemented by the 73rd Amendment of the Constitution of India is a concerted effort to realize Mahatma Gandhi's dream of equalization of opportunities and decentralization of power. In this, appropriate provisions have been made to ensure the participation of all sections of the society by eradicating social, economic and political discrimination. This system is proving immensely helpful in the empowerment of Scheduled Castes, Scheduled Tribes, women and all other marginalized communities of the society. As a result of the system of reservation of women in Panchayats, they have got wide representation and this has brought a change in the rural society. Political empowerment of women is not only necessary for the development of women but access to their creative potential is also important from the social point of view and without this the country cannot hope for development. In Panchayati Raj, women are participating in political work. Increasing participation of women is not only a positive message for women's self-respect, but it will also remove social inequality spread in the villages of India.
मुख्य शब्द ग्रामीण विकास, महिला शक्तिकरण, नेतृत्व।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rural Development, Women Empowerment, Leadership.
प्रस्तावना
किसी भी राष्ट्र का विकास तभी संभव है जब वहाँ की महिलायें विकसित तथा आत्मनिर्भर हों। डा0 भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि ‘‘समाज में स्त्री का बड़ा महत्व है, जिस घर-परिवार में स्त्री शिक्षित हों, उनके बच्चे सदा ही उन्नति के पथ पर अग्रसर रहते हैं। जब तक हमारे आंदोलनों में महिलायें भरपूर हिस्सा नहीं लंेगी तब तक हमारा आंदोलन कभी सफल नहीं हो सकता। ग्रामीण विकास में महिला नेतृत्व एवं सशक्तिकरण का अभिप्राय महिलाओं को पुरूषों के समान कानूनी, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और मानसिक क्षेत्रों में निर्णय लेने की स्वतंत्रता से है। महिलाओं में इस प्रकार की क्षमता का विकास करना जिससे वे अपने जीवन का निर्वाह इच्छानुसार कर सकें तथा उनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान जागृत हो। पंचायतों को अधिकार संपन्न बनाने में 73 वें संविधान संशोधन के सभी प्रावधान स्त्रियों के सशक्तिकरण में मदद करते हैं। सैकड़ों अध्ययनों ने महिलाओं के लिए आरक्षण नीति के औचित्य की पुष्टि की है। बुनियादी निष्कर्ष यह है कि महिलाओं ने असाधारण रूप से अच्छा काम किया है। महिलाओं की अध्यक्षता वाली कई पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व का न केवल जमीनी प्रशासन पर असर पड़ा है बल्कि घरों से बाहर शक्ति और जिम्मेदारियाँ सम्हाल पाने की असमर्थता के बारे में कई भ्रांतियाँ भी दूर हो गई है। इस तरह 73 वे संविधान संशोधन के परिणामस्वरूप महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण का सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ा है। पहला प्रभाव तो ग्राम पंचायत स्वर पर प्रशासन और सेवायें प्रदान करने में स्पष्ट सुधार के रूप में सामने आया है, जिसका मुख्य कारण विशेष तौर पर लोगों की वास्तविक जरूरतों, अधिक पारदर्शिता तथा ग्राम समुदाय की महिला सदस्यों की भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करना था। दूसरा इस संशोधन से एक ऐसे राजनैतिक माहौल का निर्माण संभव हुआ है जिससे महिलायें सामाजिक दर्जा और आत्मविश्वास हासिल करने तथा दमन की परंपरा की सदियों पुरानी जंजीरों को तोड़ने में सक्षम हो सकी है। निर्वाचित महिलायें अन्य महिलाओं तथा किशोरियों के लिए आदर्श बन गई हैं। उनके परिश्रम और उनकी सफलताओं ने शिक्षा की अभिलाषा को मजबूती प्रदान की है। इससे ग्रामीण समाज में बदलाव आया है। अधिकांश पंचायतों में महिलायें सफल हुई हैं, यह बात उत्साहवर्धक है।
अध्ययन का उद्देश्य इस शोधपत्र का उद्देश्य ग्रामपंचायतों में महिलाओं की सहभागिता का विस्तृत अध्धयन करना है। पंचायते लोेकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में सबसे निचले स्तर पर आती हैं। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए इनका लोकतांत्रिक होना अत्यंत आवश्यक है। पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है ताकि महिलाओं की बड़ी संख्या वहाँ पहुँच सके। प्रस्तुत शोध पत्र में पंचायतों में महिलाओं की सहभागिता तथा उनकी निर्णय लेने की क्षमताओं के स्तर का पता लगाने का प्रयास किया गया है। महिलाओं का राजनीतिक प्रशिक्षण के साथ ही महिला सशक्तिकरण तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह शोध पत्र विस्तृत रुपरेखा प्रस्तुत करता है।
साहित्यावलोकन
सिंह अनिल (2016) भारत में महिलाओं की स्थिति कल और आज, अंक 8 मार्च केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, नई दिल्ली। महीपाल (2017) पंचायत में महिलायें, राष्ट्रीय पुस्तक न्याय नई दिल्ली।
मुख्य पाठ

सशक्त पंचायत सशक्त राष्ट्र

पंचायत राज के माध्यम से लाखों स्त्रियों का जो राजनीतिक प्रशिक्षण हो रहा है वह अंततः हमारी समग्र राजनीति के चरित्र को प्रभावित कर रहा है। पंचायती राज में महिलाओं का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है। आज देश में 2.5 लाख पंचायतों में लगभग 32 लाख प्रतिनिधि चुनकर आ रहे हैं इनमें से 14 लाख (45.15 प्रतिशत) से अधिक महिलायें हैं। महिलाओं की राजनीतिक कार्यों में बढ़ती भागीदारी न केवल उनके स्वाभिमान के लिए सकारात्मक संदेश है अपितु इससे भारत के गाँवों में व्याप्त सामाजिक असमानता भी दूर होगी। लिंग के आधार पर किया जाने वाला भेदभाव काफी हद तक खत्म किया जा सकेगा। अनेक सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा आदि से मुकाबला करने में आज की महिला सशक्त हो चुकी है।

       प्रत्येक महिला एवं वयस्क लड़की को चुनाव की प्रक्रिया में स्वतंत्र रूप से भागीदारी करने और स्वविवेक के आधार पर वोट देने का अधिकार प्राप्त है। संविधान में निर्धारित योग्यताओं के पूरा करने पर वे किसी भी तरह के चुनाव में उम्मीदवार भी हो सकती हैं। संविधान के 73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था से महिलायें राजनैतिक रूप से भी सशक्त हुई हैं और उनकी निर्णय लेने की क्षमता का भी विकास हुआ है। 2019 में पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी 44.37 प्रतिशत है। जबकि 2014 में यह 46.14 प्रतिशत थीं महिलाओं को पंचायत में 50 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिहार अग्रणी राज्य है। आज भारत में 20 राज्यों में यह लागू हो गया है। वर्तमान में महिला साक्षरता की दर 70.3 प्रतिशत है और उनमें जागरूकता भी बढ़ी है। 2009 में 110वें संविधान संशोधन को मंजूरी दे दी गई जिसके द्वारा महिलाओं के लिए पंचायती राज में आरक्षण 50 प्रतिशत कर दिया जाएगा। इससे निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या में और अधिक वृद्धि होगी। इस प्रावधान से महिलाओं की क्षमता उजागर हुई है जो भविष्य में भारत की राजनीति को नया मोड़ दे सकती है।

महिलाओं का सशक्तिकरण

संविधान के 73वें संशोधन के द्वारा पंचायतों में महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई आरक्षण अनिवार्य हो गया था। आरक्षण केवल सदस्यों के स्तर पर ही लागू नहीं किया गया है, बल्कि यह भी निश्चित किया गया कि कम से कम एक तिहाई अध्यक्ष महिलायें हों। चूँकि पंचायतों पर आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने तथा विषयों की व्यापक सूची के बारे में योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी डाल दी गई है इसलिए इससे निर्वाचित महिलाओं को गाँवों में हालात को बदलने के एक अनूठे अवसर के साथ-साथ अपने निजी विकास और सशक्तिकरण का मौका मिला है। स्त्रियों ने असाधारण रूप से अच्छा काम किया है। निर्वाचित महिलायें अन्य महिलाओं तथा किशोरियों के लिए आदर्श बन गई हैं। उनके परिश्रम और उनकी सफलताओं ने शिक्षा की अभिलाषा को मजबूती प्रदान की है। महिलाओं में साक्षरता की दर बढ़ रही है। गाँवों में भी बालिका शिक्षा का चलन हो रहा है। अब महिलायें भू्रण हत्या जैसी कुरीति को रोकने में सजग हैं। बाल मृत्यु दर भी कम हो रहा है। ग्रामीण नेतृत्व की श्रेणी में 30-45 वर्ष की महिलायें निर्वाचित होकर काम कर रही हैं। महिलाओं में राजनीतिक जागृति और प्रशासनिक क्षमताओं का विकास होने लगा है। विभिन्न सामाजिक योजनाओं की प्रगति से गाँवों के आर्थिक, सामाजिक जीवन में काफी बदलाव हुआ है। गाँव नए भारत के नए बाजार के रूप में उभर रहे हैं। पंचायतों के माध्यम से विभिन्न सामाजिक योजनायें सीधे गाँव और ग्रामीणों तक पहुँच पा रही हैं। अब सरकार की कोशिश है कि इन संस्थानों को और अधिकार दिए जायें ताकि यह न केवल वित्तीय रूप से मजबूत हो बल्कि बेहतर कामकाज के लिए प्रोत्साहित भी हो ताकि देश के आर्थिक विकास में गाँव अधिक से अधिक योगदान कर सकें।

       भारत में पंचायती राज में महिलाओं के लिए आरक्षण के कारण विश्व में स्थानीय स्वशासन के स्तर पर सबसे अधिक महिलायें भारत में ही निर्वाचित होती हैं। विभिन्न सफल महिला नेतृत्व की पंचायतों के अध्ययन से यह सामने आया है कि महिलाओं के नेतृत्व में आगे आने से विकास कार्यों को अधिक निष्ठा एवं ईमानदारी से आगे ले जानेहरियाली बढ़ानेजल संरक्षण को बढ़ावा देनेनशा कम करने जैसे सामाजिक सुधारों को प्राथमिकता देने में सफलता मिली है। इस तरह पंचायतों में महिला नेतृत्व की बढ़ती सफलता महिलाओं के सशक्तिकरण की दृष्टि से नहीं अपितु विकास कार्यों एवं समाज सुधार में प्रगति की दृष्टि से भी एक सराहनीय उपलब्धि है। 

       महिला जनप्रतिनिधि शिक्षा के विस्तार के साथ ही ग्रामीण विकास को अभूतपूर्व गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही हैं। ये महिला जनप्रतिनिधि स्वयं निरक्षर हैं। अतः ये नहीं चाहती कि इनके गाँव में कोई भी व्यक्ति विशेषकर महिलायें और बालिकायें अशिक्षित रहें। इससे स्कूलों में विद्यार्थियों का नामांकन बढ़ा है। इन प्रयासों से शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं का सशक्तिकरण और गाँवों का विकास सुनिश्चित है। 

राज्यवार पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण का विवरण

क्र0सं0

राज्य

पंचायतों की संख्या

1

आंध्र प्रदेश

22945

2

असम

2431

3

बिहार

9040

4

छत्तीसगढ़

9982

5

हिमाचल प्रदेश

3330

6

झारखंड

39+79

7

कर्नाटक

5833

8

केरल

1165

9

मध्य प्रदेश

23412

10

महाराष्ट्र

28277

11

ओड़िशा

6578

12

राजस्थान

9457

13

त्रिपुरा

540

14

उत्तराखंड

7335

15

पंबंगाल

3713

समाज में महिला प्रधान की बदलती तस्वीर

आज राजनैतिक रूप से जागरूक महिलायें पंचायतों के चुनाव लड़ रही है। और चुनाव जीतकर स्वतंत्र रूप से फैसले ले रही हैं। पंचायतों में चुनकर आने वाली महिलायंे ज्यादातर युवा और पढ़ी-लिखी हैं। पंचायती राज संस्थाओं में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण की व्यवस्था से महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है और इससे समाज में क्रांतिकारी बदलाव और सुधार आ रहा है। केन्द्र और राज्य स्तर पर पंचायतों को सशक्त करने के अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। अभी हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की पहल महिलाओं को और अधिक सशक्त करेगी।

पंचायतों में महिलाऐं अपनी भूमिका निभा रही हैं, लेकिन प्रभावी भूमिका निभाने के लिए उनके सामने अनेक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व प्रशासनिक सीमाऐं समस्या पैदा कर रही हैं। उनकी अशिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने मुश्किल खड़ी की है। गरीबी भी महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण समस्या है। राजनीतिक सीमाओं के अंतर्गत निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की वांछित भागीदारी नहीं है, विधायिका के अलावा न्यायपालिका में भी इनकी संख्या नगण्य है। 

महिलाओं के सामने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व प्रशासनिक सीमायें हैं किन्तु उनका समाधान किया जा रहा है। महिलाओं की गरीबी दूर करने के लिए विभिन्न ग्रामीण विकास व उन्मूलन कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जैसे - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम आदि। महिलाओं की शक्ति सम्पन्नता की राष्ट्रीय नीति जो 1996 में बनाई गई थी, महिलाओं की विभिन्न समस्याओं के निवारण का इलाज है। 

पंचायतों में महिलाओं के अधिकारोंशक्तियों व उत्तरदायित्वों के बारे मेंपंचायत की कार्यवाही करने के लिए विभिन्न नियमों एवं कानूनों के बारे मेंवित्तीय व गैर-वित्तीय संसाधन इकठ्ठा करने के बारे में तथा विकेंद्रीकरण योजना तैयार करने के बारे में केंद्र सरकारराज्य सरकार एवं विभिन्न स्वैच्छिक संस्थाएं महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैंजिसके परिणामस्वरूप महिलाओं की सोच व समझ का विस्तार हुआ है और वे पंचायतों में अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभा रही हेंजो यह ढांढस बंधाते हैं कि महिलाएं भले ही अशिक्षित हैं और अनेक समस्याओं से ग्रस्त हैंफिर भी उन्होंने ग्रामीण समाज में नए उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। भविष्य में जैसे-जैसे महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त करने से और पंचायतों की बैठकों में भाग लेने के माध्यम से इकट्ठा होंगीकम मुखर महिला प्रतिनिधियों पर मुखर महिलाओं का प्रदर्शनकारी प्रभाव पड़ेगाजो उनकी पंचायतों की भूमिका को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। 81 वां संविधान संशोधनजो संसद व विधानसभाओं में महिला आरक्षण के बारे में हैंवह महिला पंचायत प्रतिनिधियोंमहिला विधायकों व महिला सांसदों के बीच तारतम्य बढ़ाएगा। इससे ग्रामसभा से लेकर लोकसभा की ओर महिलाओं का एक ताना-बाना तैयार होगाजो महिला पंचायत प्रतिनिधियों को अपनी प्रभावी भूमिका निभाने में मददगार होगा। महिलाओं की शक्ति संपन्नता की राष्ट्रीय नीतिजो 1996 में बनाई गई थीमहिलाओं की विभिन्न समस्याओं के निवारण का इलाज है। आने वाले समय में महिलाओं के स्वयं के प्रभाव से और महिलओं के विकास में कार्यरत विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों व बुद्धिजीवियों के सहयोग से उनके उदेश्य कार्यात्मक रूप ले पाएंगे।

महिला सहभागिता का प्रभाव

महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव 1992 के बाद देखने को मिला जब 72वें और 73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी गईं। बिहार भारत का ही नहीं अपितु विश्व का एक ऐसा प्रांत बन गया है जहाँ पंचायती राज तथा शिक्षक नियुक्ति नियमावली 2006 में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसके साथ ही निरक्षरता दर सबसे अधिक, सघन घनी आबादी और कुल प्रजनन दर अधिकतम वाले गंभीर समस्याग्रस्त बिहार जैसे राज्य में 8500 पंचायतों में 45000 से अधिक महिलायें चुनाव जीती हैं जो कि एक अनुपम उदाहरण है। पंचायतों में महिला आरक्षण ने जहाँ एक ओर महिलाओं की तकदीर बदलने का काम किया है, तो वहीं दूसरी ओर इसने पंचायतों की तस्वीर भी पूरी तरह से बदल दी है और राजनैतिक रूप से हाशिए पर पड़ी महिलाओं को समाज की मुख्य धारा में लाने का काम किया है।

निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या

वर्ष

निर्वाचित प्रतिनिधि लाख में

निर्वाचित महिला प्रतिनिधि लाख में

निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का प्रतिशत

2005

27.82

10.42

37.46

2010

28.51

10.48

36.75

2015

29.14

13.42

46.00

2020

31.65

14.53

45.91

परिणाम

ग्राम पचायतों में सफलता की नई गाथाएं लिखती महिला प्रतिनिधि

देश भर में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि लाखों की संख्या में सफलता की कहानियां लिख रही है। अपने क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव ला कर छाप छोड़ रही ये महिलाएं अन्य महिलाओं के लिए रोल मॉडल की भूमिका निभा रही हैं। तमिलनाडु के छह जिलों में इंडियास्पेंड अध्ययन 2017 में पाया गया है कि पीआरआई की निर्वाचित 60 प्रतिशत महिलाएं अपने परिवार के पुरूष सदस्यों या सहयोगियों से स्वतंत्र के रूप में काम कर रही हैं जोकि एक सकारात्मक बदलाव है।
वर्तमान में नवीनतम प्रौद्योगिकी के प्रयोग से हमारे देश का ग्रामीण परिदृश्य भी बदल रहा है। ई-पंचायतों के माध्यम से 2.5 लाख से अधिक ग्रामीण निकायों को स्वचालित करने की परियोजना के सराहनीय परिणाम मिल रहे हैं। 

ग्राम पंचायतों में वुनियादी अवसंरचना

वर्ष

ग्राम पंचायतों की संख्या

पंचायत भवन के साथ ग्राम पंचायत

कम्पयूटर के साथ ग्राम पंचायत

इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ ग्राम पंचायत

सार्वजनिक सेवा केन्द्र

2005

233886

उपलब्ध नहीं

उपलब्ध नहीं

उपलब्ध नहीं

उपलब्ध नहीं

2010

238054

164483 (69.09 प्रतिशत)

53568 (22.50) प्रतिशत

97392 (40.91) प्रतिशत

85000 (35.70.) 

प्रतिशत

2015

248154

196822 (79.31 प्रतिशत)

166827 (67.23 प्रतिशत)

132539 

(53.41 प्रतिशत)

147798 

(59.56 प्रतिशत)

2020

255487

198637 (77.75 प्रतिशत)

201741 (78.96 प्रतिशत)

136693 (53.50 प्रतिशत)

240592 (94.17 प्रतिशत)

कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान शहरों से गांव वापसी के कारण पंचायतों ने ग्रामीण आबादी के बीच वायरस के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। इसलिए वायरस के कारण होने वाली व्यापक तबाही के प्रबंधन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों ने भी महामहारी के इस संकट के दौर में जनभागीदारी और प्रभावी स्थानीय शासन के माध्यम से आवश्यक स्वास्थ्य सुविधायें प्रदान करने और समय पर टीकाकरण सुनिश्चित करने में सराहनीय योगदान दिया, इस प्रकार पंचायतों में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता है। 
निष्कर्ष पंचायती राज कानून ने ग्रामीणों को अपने फैसले खुद करने का अवसर प्रदान किया है। ग्रामीणों मुख्यतः ग्रामीण महिलाओं में शिक्षा के विकास से पंचायती राज संस्था को बल मिला है। इससे ग्राम पंचायतें अपने आर्थिक और अन्य सामुदायिक फैसले ज्यादा विवेकपूर्ण ढंग से करने में सक्षम बनी हैं। इस प्रकार पंचायती राज व्यवस्था का सकारात्मक परिणाम ग्रामीण भारत में धीरे-धीरे देखने को मिल रहा है। भारतवर्ष में पंचायती राज व्यवस्था के व्यावहारिक स्वरूप ने एक लंबा समय तय किया है। प्राचीन इतिहास के अवलोकन से पता चलता है कि वैदिककाल में भी पंचायतों का अस्तित्व देखने को मिलता था। बौद्धकाल में ग्राम परिषदें थी। इन परिषदों का कार्य ग्राम भूमि कर, लगान की व्यवस्था, शान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करना था तथा चंन्द्रगुप्त मौर्य के काल में ग्रामीण लोग पंचायतों में रूचि लिया करते थे। चाणक्य, ग्राम को प्रथम राजनीतिक इकाई के रूप में स्वीकार करते थे। सन् 1947 में भारत के आजाद होने के बाद पंचायती राज तथा ग्रामीण विकास की दिशा में उल्लेखनीय कार्यक्रम प्रारंभ किए गए। स्वतंत्र भारत के संविधान में राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों से संबंधित अध्ययाय के अनुच्छेद 40 में उल्लेख है कि राज्य ग्राम पंचायतों की स्थापना के लिए आवश्यक कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्ति व अधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाई के रूप में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक हो। व्यावहारिक रूप में ’पंचायती’ शब्द का आस्तित्व आजाद भारत में श्री बलवन्त राय मेहता के ’’लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण’’ के प्रतिवदेन से उदय हुआ और जो अनवरत अपने अस्तित्व को बनाए हुए है। पंचायतीराज में महिलाओं की राजनैतिक क्रियाशीलता हेतु पारिवारिक सदस्यों का सामंजस्य और समर्थन अति आवश्यक है। महिलाओं को अधिकारों के साथ-साथ उत्तरदायित्वों को भी वहन करना होगा। उन्हें सुनियोजित ढंग से सामाजिक परिवर्तन के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना होगा। आज महिलाओं ने अपने आत्मविश्वास से पंचायतों के अंदर और बाहर अपनी भागीदारी से सुशासन के स्तर को और सशक्त बनाया है। उनका सशक्तिकरण आरंभ हुआ है उसकी तार्किक परिणति तब होगी जब असमान और अन्यायपूर्ण कानून और सामाजिक रिवाज खत्म हो जायेंगे। पंचायती राज ने ऐसे सशक्तिकरण की नींव रख दी है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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