ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VII , ISSUE- VIII November  - 2022
Anthology The Research
ग्रामीण विकास में महिलाओं की सहभागिता
Participation of Women in Rural Development
Paper Id :  16642   Submission Date :  16/11/2022   Acceptance Date :  22/11/2022   Publication Date :  25/11/2022
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ब्रह्म प्रकाश
सह - आचार्य
समाजशास्त्र विभाग
एन.आर.ई.सी. कॉलेज
खुर्जा,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। इसमें कोई शंका की बात नहीं है क्योंकि आज भी 21वीं सदी में लगभग 68% जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। अगर हम ग्रामीण विकास की बात करें तो महिलाओं को पीछे नहीं छोड़ सकते क्योंकि 68% का लगभग आधा भाग ग्रामीण समाज में महिलाओं का है और जब ग्राम के विकास की बात करते हैं तो निश्चित रूप से इसमें महिलाओं की सहभागिता को पीछे छोड़कर विकास की बात नहीं हो सकती है। वास्तव में महिलाओं के द्वारा ग्रामीण विकास में भागीदारी तब ही सम्भव है जब ग्रामीण महिलाएँ शिक्षित एवं स्वस्थ हो इसके लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा महिलाओं को ग्राम पंचायतों में भागीदारी देकर उनके अन्दर आत्मबल में वृद्धि की जा रही है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद India is called the country of villages. There is no doubt about it because even today in the 21st century, about 68% of the population lives in villages. If we talk about rural development, we cannot leave women behind because almost half of 68% is of women in rural society and when we talk about the development of the village, definitely there is no talk of development leaving behind the participation of women in it. might be possible. In fact, participation in rural development by women is possible only when rural women are educated and healthy, for this the central and state governments are increasing their self-confidence by giving women participation in village panchayats.
मुख्य शब्द सहभागिता, अर्थव्यवस्था, जनप्रतिनिधि, कल्याणकारी, आत्मबल, नीतियाँ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Participation, Economy, Public Representative, Welfare, Self-confidence, Policies.
प्रस्तावना
ग्रामीण विकास से अभिप्राय ग्रामीण लोगों की आर्थिक स्थिति में बदलाव करके उनकी सामाजिक स्थिति में बदलाव लाना है। इससे विकास के कार्यक्रमों को लोगों तक सही ढ़ंग से पहुँचाना तथा खेती के नये तरीकों को लोगों तक पहुँचाकर उनकी स्थिति को मजबूत करना है। वास्तव में ग्रामीण लोगों के स्तर में सुधार लाने के लिये शिक्षित बनाकर हम देश की 70 प्रतिशत में सुधार करके लोगों की अधिकतर समस्याओं में सुधार ला सकते हैं। वास्तव में अभी तक अनेकों प्रयासों के बाद भी अशिक्षा एक अहम मुद्दा बना हुआ है। ग्रामीण विकास के कार्यों का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों के सामाजिक आर्थिक स्तर को आगे ले जाना है। ग्रामीण विकास के कार्यों को सही ढ़ंग से पूरा करने के लिये सभी गॉव वालों से राय तथा निगरानी अति आवश्यक है। गाँधी जी के अनुसार ग्राम के सभी व्यक्ति को खाना कपड़ा के साथ-साथ रोजगार उपलब्ध कराना एक मात्र लक्ष्य था। 18 अगस्त, 1979 को ग्रामीण विकास दर्जा बढ़ाकर उसे ग्रामीण पुर्नगठन मंत्रालय का नाम दिया गया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिये कृषि कार्यों में मजदूरों की उपस्थिति अति आवश्यक है। क्योंकि जब ग्रामीण मजदूर कृषि कार्य में अपनी भागीदारी नहीं देगा तब उनकी समस्यायें बराबर बनी रहेंगी।
अध्ययन का उद्देश्य 1. अध्ययन का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को शिक्षित करके उन्हें आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से मजबूत करना है। 2. जब महिला समाज, आर्थिक और शैक्षिक रूप से सम्पन्न होगा तो निश्चित रूप से ग्रामीण विकास में उनकी सहभागिता बढ़ जायेगी।
साहित्यावलोकन
1. चोपड़ा, पी.एन. ने अपने अध्ययन में देखा है कि भारतीय महिलाएं स्वतन्त्रता के आन्दोलन में अगृणी रही है, जो एक गर्व की बात है।
2. सिंह, रूपेश कुमार ने अपने अध्ययन में देखा है कि भारतीय समाज में महिलाओं को आगे बढ़ाने में सरकार द्वारा सुविधाएँ देकर उनका मनोबल बढ़ाया है।
मुख्य पाठ
भारत के सभी ग्रामीण लोगों का जीवन खेती से जुड़ा होने के कारण गॉव के विकास के बिना देश का विकास असम्भव है। वास्तव में अगर देशका विकास देखना है तो गॉवों का विकास जरूरी है। क्योंकि भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या गॉव में निवास करती है।
भारत देश में महिलाओं की जनसंख्या काफी होने के बावजूद अगर देश के विकास में उचित भागीदारी नहीं होगी तो किसी भी प्रकार के विकास की बात करना सही नहीं होगा। अतः ग्रामीण विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण मानी गयी है। जैसे-जैसे महिलाओं की भागीदारी ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहीं है विकास के नये-नये आयाम खुल रहे हैं।
ग्रामीण महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में चुने जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक वातावरण की भी उन्नति होती है। इससे महिलाओं केेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे शिक्षा व स्वास्थ्य में वृद्धि होगी। इससे महिलाओं में पर्दा तथा मन की घबराहट दूर होती है। आज महिलायें तो हर जगह पर अपने पैर आगे की तरफ बढ़ा रही हैं। आज महिलायें किसी मामले में पुरूषों से कम नहीं है। वह अब हर क्षेत्र में अपना शौर्य व प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। प्राचीन इतिहास में भी  बहुत महिलायें हुयी जिन्होंने अपनी प्रतिभा को उस समय भी आगे बढ़कर तथा समाज के सामने लाकर दिखाया। महिलाओं के विकास के सरकार द्वारा कुछ उपाय व नीतियाँ भी समय-समय पर राज्य व केन्द्र सरकार द्वारा बनायी जा रही हैं।
महिला विकास सम्बन्धी नीतियाँ
महिलाओं के विकास के लिये कानूनी संरक्षण के साथ-साथ राष्ट्रीय उद्देश्यों व पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये राज्य व भारत सरकार ने कई नीतियां व उपाय भी चलाये हैं। जिसे महिलाओं को विशेषसुरक्षा व संरक्षण प्रदान किया जा सके।
1. स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की संशोधित शिक्षा नीति के तहत महिलाओं को उच्च प्राथमिकता तथा आप्रेशन ब्लैक बोर्ड योजना में संशोधित प्रावधान में 50 प्रतिशत स्त्रियाँ होनी चाहिये।
2. महिला एवं वाल विकास- यह विभाग मानव संसाधन मन्त्रालय महिला और वाल विकास विभाग बच्चों व महिलाओं के विकास का काम देखता है।
3. राष्ट्रीय महिला आयोग - 31 जनवरी 1992 ई0 को राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया जो महिलाओं को संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा अधिकारों को ठीक ढ़ंग से लागू कराता है।
4. राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति 2001 - महिला विकास के लिये 2001 में प्रथम बार राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति बनाई गई ताकि देश में महिलाओं को उचित साथ देकर उनका विकास किया जा सके।
महिलाओं के समाजिक आर्थिक विकास हेतु कार्यक्रम
ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता लाने के लिये तथा समय-समय पर उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये कुछ विकास व कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया जा रहा है।
1. समेकित बाल विकास योजना- इस योजना में कमजोर वर्ग की गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को आंगनवाड़ी के माध्यम से लाभान्वित करना है।
2. डबाकारा योजना- इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना जिसको 1982-83 में प्रारम्भ किया गया।
जब गॉवो में महिलाये ग्राम पंचायत में कार्य करना प्रारभ कर देंगी तो निश्चित ही गॉवों के अन्दर विकास होगा। भारत में महिलाओं की संख्या काफी है उन्हें जनप्रतिनिधि बनाना आवश्यक है। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से उनकी घबराहट दूर होगी और उनमें आत्मनिर्भरता का विकास होगा साथ ही आत्मबल में वृद्धि होगी। महिलाओं के जनप्रतिनिधि बनने से राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण सरल होगा एवं टकराव तथा अहम तुष्टि की भावना विकसित नहीं होगी। इससे विकास कार्यों में बाधा नहीं आएगी एवं ग्रामीण विकास तेजी से हो सकेगा।
यह बात पूरी तरह सही है अभी भी महिलायें सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी हुई हैं। अतः उनको ऊपर उठाने के लिये उन पर जिम्मेदारी डालना आवश्यक है। विकास पर नजर डालें तो महिलायें स्वयं कई दृष्टियों में पिछड़ी हुई हैं। अतः विकास सम्बन्धी जागरूकता को लेकर समाज आज भी संका की स्थिति में है। ग्रामीण विकास के लिये विकास के कार्यों की योजना बनाना, कार्य स्थल का दौरा करना, भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों से निपटना तथा विकास कार्यों की तकनीकी जानकारी रखना आदि महिलाओं हेतु उचित एवं योग्य कार्य नहीं मानेे जाते। राजनीति एवं विकास सम्बन्धी कार्यों की जिम्मेदारी देने से उनकी स्वयं की जिम्मेदारियां पारिवारिक दायित्वों में बाधा आयेगी।
महिला जनप्रतिनिधि की भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्र में विकास के नये आयाम खुल रहे हैं। क्योंकि महिला जनप्रतिनिधि होने के नाते वे महिलाओं की समस्याओं को भली-भांति समझेगी। अतः विकास करना आसान होगा। जैसे महिला शिक्षा, वाल विकास, पेयजल व्यवस्था आदि का सम्पूर्ण विकास होगा तथा विकास कार्यों की आज ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरी आवश्यकता है। महिलाओं को जनप्रतिनिधि बनाने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक वातावरण को अच्छा बनाया जा सकता है। इससे महिलाओं के मनोबल में वृद्धि, महिला शिक्षा, महिला स्वास्थ्य आदि में वृद्धि होगी तथा साथ ही साथ व्याप्त पर्दा प्रथा एवं घबराहट दूर होगी और सही निर्णय करने की क्षमता का विकास होगा।
वैसे महिला जनप्रतिनिधियों की यह कहकर आलोचना की जाती है कि महिला सरपंच परिवार के पुरूष सदस्यों पर निर्भर हो जाती हैं और गॉव सामाजिक रूप से विकसित नहीं हो पाते। इन सभी आलोचनाओं के बाद भी महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ये सभी  विकास के कार्यक्रम तभी लागू कर सकती है जब वह इन तत्वों से भली-भांति परिचित होगी।
निष्कर्ष अगर देखा जाये तो कोई भी क्षेत्र महिलाओं की सहभागिता से अलग नहीं है। आज भारतीय महिलाऐ ंना कि ग्रामीण विकास बल्कि सेना एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं। जिसमें गाँव के विकास के साथ-साथ देश के विकास में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. सिंह आर0जी0 (1992), अम्बेडकर विमर्श एवं सामाजिक परिवर्तन, प्रकाशित म0प्र0 हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, पृष्ठ 35 2. चौपड़ा, पी0एन0, भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन तथा महिलायें। 3. श्री वास्तव, रत्ना, 2002 महिला की सशक्त एवं विकास योजना जुलाई। 4. अन्सारी, एम0ए0, महिला और मानवाधिकार। 5. सिंह रूपेश कुमार (2010), उ0प्र0 शासन, आपके द्वारा शासकीय निर्देश परिपत्र। 6. रमाचन्द्रन पी0 (1995), पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन इन इण्डिया नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इण्डिया नई दिल्ली।