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भारत में जल संकट : समस्याएं एवं सुझाव | |||||||
Water Crisis In India : Problems & Suggestions | |||||||
Paper Id :
15815 Submission Date :
12/03/2022 Acceptance Date :
19/03/2022 Publication Date :
21/03/2022
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सारांश | विश्व की इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी समस्या 'जल संकट की मानी जाती है। क्योंकि विश्व में उपलब्ध जल का मात्र 2.7 प्रतिशत ही मानव उपयोगी है। शेष जल समुद्र में है। समुद्र के अतिरिक्त उपलब्ध जल में से मात्र 0.35 प्रतिशत झीलों एवं जलग्रहण क्षेत्रों में है तथा मात्र 0.01 प्रतिशत नदी नालों में है और भूगर्भ में 22.4 प्रतिशत है तथा शेष 77 प्रतिशत जल पृथ्वी के ध्रुवों पर बर्फ के रूप में विद्यमान है। अगर हम जल का उपयोग इसी तरह से करते रहे तो वह दिन दूर नहीं है कि हमे पानी कि बूंद-बूंद के लिए और उसी के साथ धरती की हर सम्पदा के लिए तरसना होगा। हमे यह मानसिकता बदलनी होगी कि पानी बचाने से लेकर उपलब्ध कराने का कार्य सरकार का है। राजस्थान में पुरखों की स्मृतियाँ बरकरार रखने के लिए भी जल संग्रह स्रोत कुआ, बावड़ी, टोबा, तालाब, जोहड़ कुंड, तलई, खड़ीन, बेरी आदि बनाने की परम्परा रही है। कई गाँवों में आज भी ये स्रोत जीवंत है। जल बेहद अनमोल हैं इस सन्दर्भ में एक कवि की निम्न पक्तियां दृष्टस्थ है। "जल ही जीवन है, जल ही कल है, बिन जल के सूना हर पल है । बूंद-बूंद की करे सुरक्षा जल पुरखो के तप का फल है ।" | ||||||
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The biggest problem of the twenty-first century of the world is considered to be 'water crisis'. Because only 2.7 percent of the available water in the world is useful to humans. The rest of the water is in the sea. Apart from the sea, only 0.35 percent of the available water is in lakes and catchment areas and only 0.01 percent is in river channels and 22.4 percent is in the underground and the remaining 77 percent is present in the form of ice at the poles of the earth. If we keep on using water in this way, then that day is not far away that we will have to yearn for every drop of water and with it every wealth of the earth. We have to change this mindset that from saving water to providing it is the task of the government. In order to preserve the memories of the ancestors in Rajasthan, there has been a tradition of making water storage sources like Kua, Baori, Toba, Talab, Johad Kund, Talai, Khadin, Beri etc. Even today this source is alive in many villages. |
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मुख्य शब्द | जल संकट, भूगर्भीय जल, प्राचीन जल स्रोत, सतही जल, प्रवाह तंत्र, जल उपयोग, जल प्रदूषण, जल संग्रहण, जल संसाधन, सिंचाई तकनीक, जल प्रबंधन, कृषक प्रशिक्षण, लवणीय जल, वर्षा जल संचयन, सामाजिक एवं घरेलू जल उपयोग व सुझाव। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Water crisis, Ground water, Ancient Water Sources, Surface Water, Flow System, Water use, Water pollution, Water harvesting, Water resources, Irrigation techniques, Water management, Farmer training, Saline Water, Rain Water harvesting, Social and Domestic Water Use and Suggestion. | ||||||
प्रस्तावना |
विश्व के मुख्य सातों महाद्वीपों पर पानी की कमी पाई जाती है। और इन महाद्वीपों में से एशिया महाद्वीप में पानी की मात्रा लगातार घटती जा रही है। जो आने वाले समय में बड़ा खतरा हो सकता है इसी महाद्वीप के भारत देश में भी जल संकट बना हुआ है। जल संकट की गंभीरता इस बात से स्पष्ट होती हैं की 50 वर्षों पहले हमें जितना पानी प्रतिव्यक्ति उपलब्ध था आज उसका केवल 40% ही हमारा प्रत्येक नागरिक उपयोग कर रहा है। दूसरी और हमारे देश में मानसून की अनियमितता के कारण पानी की कमी हो जाती है। जिस कारण फसलों में सिंचाई की समस्या पैदा होती तो कहीं-कहीं पर पीने योग्य पानी भी प्राप्त नहीं होता है।
भारत देश के अंदर विश्व की 17% आबादी निवास करती है और इस आबादी को कृषि कार्य, घरेलू कार्य, उद्दोगों आदि के लिए मात्र 4 प्रतिशत जल ही उपलब्ध है, जो की आबादी को देखते हुए काफी कम पाया जाता है। इस लिए भारत देश के कुछ राज्यों में वर्षा जल को इकट्टा करके कृषि कार्य एवं घरेलू कार्यों के प्रयोग किया जाता है।
हमारे देश की सबसे बड़ी बात यह है कि देश के लगभग साढ़े पांच लाख गाँव में से एक लाख गाँव को आज पीने योग्य पानी उपलब्ध नहीं होता है। हमारे देश में प्रति वर्ष लगभग 4000 घन किलोमीटर पानी वर्षा के रूप में भू-सतह पर गिरता है। जिसका आधे से दो तिहाई हिस्सा बेकार बह जाता है।
प्रतिवर्ष वर्षा से प्राप्त 400 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी में से 70 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी का वाष्पीकरण हो जाता है तथा 115 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी धरातल के विभिन्न पानी एकत्रित इकाइयों की ओर बह जाता है तथा शेष 215 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी भूमिगत हो जाता है।
वर्षा जल के उपयोग करने के साधनों को ध्यान में रखते हुए अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में वर्षा द्वारा प्रतिवर्ष 400 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी प्राप्त होता है। जिसमें से केवल 9.5 प्रतिशत जल ही उपयोग में लाया जाता है। बाकी वर्षा जल बेकार बह जाता है लेकिन वर्ष 2025 तक वर्षा के जल में कोई परिवर्तन नहीं होगा। लेकिन वर्षा जल उपयोग की मात्रा बढ़कर 105 मिलियन हैक्टेयर मीटर हो जाएगी और आने वाले लगभग 40 वर्षों के बाद हम 26 प्रतिशत वर्षा जल उपयोग करने लगेगें जो कि आने वाले समय में जल संकट से बचने का एक अच्छा कदम है।
दूसरी और घटता क्षैतिज भूगर्भजल धरती की गोद और कोख दोनों सूखा रहे है। ताप्ती, माही, साबरमती महानदी, पेन्नार आदि एक-एक करके नदी बेसिन खाली हो रहे है और यही हाल देश के 70 प्रमुख भूगर्भीय जल भंडारों का है। जैसे- भूजल तो पाताल में जा रहा है। पंजाब, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि के भू-जल का लगभग 90-94 फीसदी हिस्सा पंपसेटों ट्यूबवेलों द्वारा बाहर निकाला जा चुका है।
वर्षा का अधिकांश जल धरातल के प्रवाह तंत्रों के माध्यम से समुद्रों में मिल जाता है। जिसका हम प्रयोग नहीं कर सकते है। इसके अतिरिक्त तालाब, बाँध, झील, बावड़ी आदि की जल क्षमता कम होती जा रही है। क्योंकि इनमें वर्षा जल व तेज आँधियों मिट्टी जमाव हो रहा है।
प्राचीन समय में भारत में वर्षा जल को इकट्ठा किया जाता था जिसका उपयोग सिंचाई व पेयजल रूप में किया जाता था लेकिन वर्तमान में भारत के कुछ राज्यों में इसे महत्व दिया जाता है।
18वी शताब्दी के आरम्भ में देश के तालाबों में इकटठे किए हुए जल से कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 50 प्रतिशत भू-भाग सिंचित किया जाता था जो वर्तमान में कम होकर केवल 10 प्रतिशत ही रह गया है। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. देश के भिन्न-भिन्न राज्यों में जल संकट की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करना। 2. भारत में बढ़ रहे जल संकट के कारण व उसके निवारण तथा राज्यों में वर्षा जल प्रबंधन की तकनीकों को अपनाना। 3. देश में जल संकट क्षेत्रों का वर्गीकरण करना तथा वर्षा जल कार्यक्रमों का अध्ययन करना। 4. वर्षा जल का संग्रहण करने व उसका उपयोग करने की तकनीकों की जानकारी लेना। | ||||||
साहित्यावलोकन |
1967 में जल संसाधनों में मुख्यतः सतही जल प्रवाह, भूजल की ऊपरी सतह व निम्न सतह भूजल की गुणवत्ता जल भण्डार व जल के बंटवारे से सम्बन्धित बहुत सारे शोध पत्र व लेख प्रस्तुत किये गये।
विल्लाहा (1969) ने भू – प्रबन्धन पद्धति के द्वारा जल संग्रहण की विशेषताओं के संशोधन के आधार पर बाढ़ नियन्त्रण मापन को सुझाया।
1968 व 1969 के वर्षों में साहित्य के अच्छे परिमाण प्रस्तुत हुए जो मुख्यतः जल संसाधन प्रबंधन, सिंचाई की योजना तथा भूजल संसाधनों के अध्ययन के लिए वायुवीय फोटो चित्रों का उपयोग से सम्बन्धित है।
चतुर्वेदी (1963) के द्वारा प्रायद्धीपीय भारत के सिंचाई जलाशयों की उत्पत्ति
व विकास की खोज का प्रयत्न किया गया।
महाराष्ट्र राज्य सरकार (1970) ने महाराष्ट्र राज्य ट्यूबवेल व सिंचाई पर विस्तृत लेख प्रकाशित किये।
रेवेला व हरमन (1971) ने पश्चिमी घाटों में संरक्षित वर्षा जल की सम्भावनाओं का परीक्षण उपयुक्त बिन्दुओं के आधार पर वहाँ की खण्डित घाटियों के मार्गों से की तथा जल संसाधनों के उपयोग के द्वारा पूर्वी एवं पश्चिमी घाटों के जलाशयों की श्रृंखला का परीक्षण किया।
1972 व 1973 में जलचक्र, बाढ़ संकट, सम्भावित जल संसाधन, जल संरक्षण और फसल के लिए जल की आवश्यकता के संबंध में बहुत सारे कृत्य किये गये।
केन्द्रीय सिंचाई एवं शक्ति बोर्ड (1974) ने नदी जल के उपयोग के व्यवहार, नियन्त्रण व नियोजन की एक पुस्तक तैयार की।
राव (1975) ने भारत की जल सम्पन्नता और उसका मूल्यांकन, उपयोग व
योजना पर एक पुस्तक तैयार की चतुर्वेदी (1976) ने द्वितीय भारत जल अध्ययन पर एक पुस्तक लिखी और जल संसाधनों के उपयोग व प्रबन्धन पर बल दिया।
ड्यू एट ऑल (1982) ने जल संसाधनों के मूल्यांकन के लिए दूर संवेदन अनुप्रयोग के आधार पर एक नया उपागम प्रस्तुत किया।
शफी (1987) के द्वारा जल संसाधनों के नियोजन व प्रबंधन के क्षेत्रों में भारत के शुष्क व अर्द्धशुष्क प्रदेशों में जल प्रबन्धन के विशेष कार्यों पर लेख प्रस्तुत किये गये।
साहू 1984 ने वर्तमान जल के सन्दर्भ में जल संग्रहण व उसकी समस्याओं के प्रबन्धन पर लेख दिया।
लोवोविथ (1990) ने स्थलीय जलतन्त्र के उपयोग व परिवर्तन का विवेचन किया।
भट्टाचार्य (1985) ने पश्चिमी बंगाल के जल संसाधनों के संरक्षण व विकास पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
ब्रजेश विजयवर्गीय (1999) ने अपनी पुस्तक जलनिधि में हाड़ौती के जलाशयों के संकट व उनके समाधान के विचारों का वर्णन किया
बी.सी.जाट (2000) ने जल ग्रहण के प्रबंधन सम्बन्धी उपायों को विस्तार से समझाया है।
के. प्रधान व पी.सी. सेनापति (2002 ) द्वारा हीराकुण्ड केचमेन्ट क्षेत्र के चुने हुए जलग्रहण क्षेत्रों का हाइप्सोमेट्रिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।
जी.वी. प्रजापति व आर. सुब्बाह (2005) ने रावत सागर के जल ग्रहण के लिये कृत्रिम जलाशय प्रतिरूप के निर्माण में अपना योगदान दिया।
जी.वी. प्रजापति व आर सुब्बाह (2005) ने रावत सागर के जल ग्रहण के लिये कृत्रिम जलाशय प्रतिरूप के निर्माण में अपना योगदान दिया।
कीर्ति जादौन (2010) ने कोटा जिले के विकास में परती भूमि प्रबन्ध एवं जल ग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के योगदान पर कार्य किया।
सविन्द्र सिंह (2012) जल संसाधनों के प्रबन्धन का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
साहू (2014) वर्तमान जल के संदर्भ में जल संग्रहण एवं उसकी समस्याओं का विश्लेषण करते हुए जल प्रबन्धन का उल्लेख किया है। |
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मुख्य पाठ | भारत में गिरता भू-जल |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध पत्र में प्राथमिक एवं द्वितियक आकड़ों का प्रयोग किया गया है। आंकड़ों के संकलन भू-जल विभाग, सिंचाई विभाग, कृषि विभाग, जल स्वास्थ्य अभियांत्रिक विभाग, पत्र पत्रिकाओँ, समाचार पत्रों एवं विभिन्न वेबसाईट एवं पुस्तकों के माध्यम से किया गया है। |
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निष्कर्ष | जल संरक्षण आज के समय में बहुत ही आवश्यक हो चुका है, इस समस्या को लोगो को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। भूजल के गिरते स्तर और स्वच्छ जल की मात्रा में होती भारी कमी ने लोगो के लिए काफी बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। यह समस्या एक प्रकार से मानव द्वारा ही पैदा की गयी, जिसमें लोगो द्वारा पानी के अत्यधिक उपयोग के कारण जल संरक्षण अब एक आवश्यक कार्य बन गया है और यदि अभी भी जल संरक्षण को लेकर महत्वपूर्ण फैसले नही लिये गये तो आने वाले समय में यह समस्या एक गंभीर संकट बन जायेगा। अतः वर्तमान समय में जल संकट की समस्या बढ़ती जा रही है और इस समस्या से बचने के लिए उपरोक्त सभी तरीकों को अपनाना चाहिए ताकि हम भविष्य के लिए भी कुछ जल बचा सके और हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य उज्जवल हो सके। “जल संरक्षण है एक संकल्प, नही है इसका दूसरा कोई विकल्प” | ||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Singh, Savinder (2019). Disaster Management, Pravalika Publication, Prayagraj, p.448.
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Websites
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